सीताराम गुप्ता का आलेख : निदंक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय

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मशहूर-ओ-मारूफ़ उर्दू शायर मिर्ज़ा ‘ग़ालिब’ का एक शेर हैः           निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए थे लेकिन,           बड़े  बेआबरू  होकर...




मशहूर-ओ-मारूफ़ उर्दू शायर मिर्ज़ा ‘ग़ालिब’ का एक शेर हैः

          निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए थे लेकिन,

          बड़े  बेआबरू  होकर  तेरे  कूचे  से हम निकले।

        ये इज़्ज़त-आबरू ये बेइज़्ज़ती अथवा मानापमान क्या है? हमारे शरीर में इनका स्थान कहाँ पर है? वस्तुतः इसकी भौतिक सत्ता है ही नहीं। ये सब मन के स्तर पर घटित होता है और मन तो इसको जैसा समझाओगे, बताओगे वैसा ही मान लेगा और करेगा। जैसा हमने मन में सोच रखा है वैसा हो जाए तो सुख अन्यथा दुःख। दूसरों से जैसा आचरण हम चाहते हैं वैसा हो जाए तो इज़्ज़त अन्यथा बेइज़्ज़ती। एक शेर और देखिएः

            ख़ुल्द  से आदम  न  निकले  होंगे इस तौक़ीर से,

            उस ने ख़ुद उठ कर उठाया अपनी महफ़िल से मुझे।

ये साहब तो न सिर्फ़ ‘ग़ालिब’ को चार क़दम पीछे छोड़ देते हैं अपितु इनका तो अंदाज़ ही निराला है। इनके लिए तो मह़िफ़ल से निकाला जाना और ख़ुद महबूबा द्वारा महफ़िल से निकाला जाना तौक़ीर अर्थात् प्रतिष्ठा की बात है जो इन्हें हज़रत आदम से भी बड़ा कर देती है। अपना-अपना अंदाज़ है। मानापमान से बचना है तो इससे अच्छा उपचार और क्या हो सकता है? थोड़ा-सा दृष्टिकोण में परिवर्तन करने की ज़रूरत है और थोड़ा धैर्य से काम लेने की ज़रूरत है फिर किसमें ताक़त है जो आपका अपमान कर दे अथवा आपको दुख पहुँचा दे?

        यह आपके सोचने के ढंग पर निर्भर करता है कि आप किसी घटना को किस रूप में लेते हैं। यदि वास्तव में कोई ऐसी छोटी-मोटी घटना घट जाती है जो आपके लिए अपमान या बेइज़्ज़ती का सबब बन जाती है तो सोचिए क्या एक छोटी-सी घटना आपको विचलित करके रख देगी और आप स्वयं पर नियंत्रण खो बैठेंगे। बिल्कुल नहीं। यदि आप कहते हैं कि हाँ ये मेरा बहुत बड़ा अपमान है और मैं इसे कदापि बर्दाश्त नहीं कर सकता तो आप में धैर्य या सहिष्णुता नाम की कोई चीज़ है ही नहीं और इस स्थिति में आप सचमुच अपमान के अधिकारी हैं। आप स्वयं अपना अपमान करवाना चाह रहे हैं। आप स्वयं अपने अपमान का कारण बन रहे हैं। आप में ख़ुद का तमाशा बनते देखने की चाह पैदा हो रही है। आप इस स्थिति को स्वीकार कर स्वयं खुद को अपमानित करने की स्वीकृति दूसरों को दे रहे हैं। वास्तव में आपकी सहमति के बिना कोई आपका अपमान नहीं कर सकता।

        कहा गया है कि ‘‘असम्मानात् तपोवृद्धिः सम्मानात्तु तपः क्षयः’’ अर्थात् असम्मान से तपस्या में वृद्धि होती है और सम्मान से तपस्या का क्षय होता है, अतः मानापमान अथवा उपेक्षा के भय से स्थितियों से पलायन करना अविवेकपूर्ण पग है। स्थितियों को एक चुनौती के रूप में स्वीकार करें। आप चुनौती के रूप में स्वीकार करें कि मैं अपमान करने का प्रयास करने वाले या मिथ्या दोषारोपण करने वाले को अपना मित्र बनाकर ही दम लूँगा न कि उसको नीचा दिखाने का अवसर खोजें। यदि आप भी बदले की भावना से कार्य करेंगे तो उसे कभी सही और ग़लत का पता नहीं चल सकेगा।

        अपमानित या मर्माहत होकर व्यक्ति न केवल नई दृष्टि तथा दृष्टिकोण का विकास कर सकता है बल्कि नई दृष्टि और नये सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास विषम परिस्थितियों में ही सहजता से किया जा सकता है। हर स्थिति व्यक्ति को आत्म-विश्लेषण तथा पुनर्मूल्यांकन का अवसर प्रदान करती है। स्थिति जितनी विषम होगी, समस्या जितनी गहन होगी अथवा चोट जितनी गहरी होगी उतना ही अधिक आत्मविश्लेषण तथा पुनर्मूल्यांकन संभव हो सकेगा क्योंकि छोटी-मोटी घटना पर तो हम विचार करते ही नहीं।

        निरी प्रशंसा और सम्मान से व्यक्ति अहंकारी होकर अपने उचित मार्ग या कर्तव्य-पथ से विचलित हो सकता है। प्रशंसा तो विष के समान है जिसे मात्र ओषधि के रूप में अत्यंत अल्पमात्रा में ही लेना चाहिए। अधिक मात्रा घातक होती है। विरोध, निंदा या अपमान एक कटु ओषधि होते हुए भी अच्छी है क्योंकि ये रोगोपचारक है, प्रशंसा से उत्पन्न अहंकार रूपी रोग को नष्ट करने में सक्षम है। कबीर ने तभी तो कहा हैः

              निदंक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय,

              बिनु साबुन पानी बिनु, निर्मल करे सुभाय।

        आपको रोकने-टोकने वाला, आपकी ग़लती बताने वाला आपका शत्रु या अपमान करने वाला नहीं अपितु आपका परममित्र और शुभचिंतक है। बशीर बद्र का एक शेर हैः

              जिसकी मुख़ालफ़त हुई मशहूर हो गया,

              इन  पत्थरों  से कोई परिंदा गिरा नहीं।

        अपनी परवाज़ को, अपनी उड़ान को सलामत रखना है, ऊँचे उड़ते रहना है तो विरोध या अपमान को स्वीकार करना सीखें। संसद से लेकर व्यक्तिगत जीवन तक में सभी जगह विपक्ष या विरोधी या आलोचक की महत्वपूर्ण भूमिका की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

      मानापमान एक सापेक्ष स्थिति है। जीवन में हम न जाने कितनी बड़ी-बड़ी समस्याओं से जूझते रहते हैं। कभी आर्थिक संकट तो कभी भयंकर बीमारी। कभी कोई भीषण दुर्घटना तो कभी अपने किसी प्रियजन के बिछोह की स्थिति। जीवन में घटित इन बड़ी-बड़ी समस्याओं से किसी द्वारा कही गई छोटी मोटी कड़वी बात या कटूक्ति या अपमानजनक टिप्पणी को उसकी तुलना में तुच्छ समझकर बर्दाश्त कर लेना चाहिये। ये सोचना चाहिए कि इससे भी अपमानजनक स्थिति आ सकती थी। ये तो कुछ भी नहीं है। उर्दू शायर शुजाअ ख़ावर कहते हैं:

           गुज़ारे के लिये हर दर पे जाओगे ‘शुजाअ’ साहब,

          अना  का  फ़लसफ़ा रह जाएगा दीवान में लिखा।

सच जब जीवन-वृत्ति या रोज़गार की बात आती है तो हम देखते हैं कि इसके लिए कितने समझौते करने पड़ते हैं। जो काम पसंद नहीं वो करना पड़ सकता है। आदमी जिन सिद्धांतो के लिए जीवनभर संघर्ष करता रहा एक पल में उन सिद्धांतों को तिलांजलि देनी पड़ जाती है। बच्चों की शिक्षा और रोज़गार के लिए न जाने कितने लोगों की सलाह और सहायता लेनी पड़ सकती है। अनेकानेक विषम परिस्थितियों से जूझते जाना और सही रास्ता निकाल लेना ही जीवन है और इन परिस्थितियों में निंदा, अपमान और विरोध जैसी परिस्थितियाँ भी सम्मिलित हैं। एक शेर है:

              हक़परस्ती  है  बड़ी  बात मगर,

              रोज़ किस-किस से लड़ा कीजेगा।

आप किसी को बदल नहीं सकते। बदलना तो ख़ुद को ही पड़ेगा। स्वयं को परिवर्तित कर सको तो ज़माना न केवल बदलना प्रतीत होगा अपितु बदलेगा भी लेकिन कहीं न कहीं से तो शुरूआत करनी ही पड़ेगी। धैर्य अथवा सहिष्णुता का विकास करना भी एक अच्छा परिवर्तन और एक अच्छी शुरूआत है। विरोध कम से कम हो तो मानव की ऊर्जा की बचत ही है और इस ऊर्जा का उपयोग अन्य रचनात्मक कार्यों अथवा अन्य किसी सकारात्मक दिशा में किया जा सकेगा। समझदार व्यक्ति ईंट का जवाब पत्थर से देने की अपेक्षा फेंकी गई ईंटों को एकत्र कर उनसे मज़बूत दीवार बना लेता है। मानापमान पूर्णतः एक काल्पनिक स्थिति है। आप भी मानापमान के प्रति निरपेक्ष होकर तथा अपने दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तन करके सुखी-संतुष्ट जीवन जीने की ओर अग्रसर हो जाइए।

साभार: ‘‘द स्पीकिंग ट्री’’ नवभारत टाइम्स,

नई दिल्ली, दिनाँक: 02ः10ः2009 

                                सीताराम गुप्ता

                                    ए.डी.-106-सी, पीतमपुरा,

                                    दिल्ली-110034

                                  फोन नं. 011-27313954/27313679

                                                     

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रचनाकार: सीताराम गुप्ता का आलेख : निदंक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय
सीताराम गुप्ता का आलेख : निदंक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय
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रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2009/10/blog-post_2991.html
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