श्री लाल के घर में खुशी का माहौल था। सब तरफ चहल-पहल और खूब कोलाहल था। नई बहू आ जाने से रौनक में और अधिक इजाफा हो गया था। ढोलक की थापों के...
श्री लाल के घर में खुशी का माहौल था। सब तरफ चहल-पहल और खूब कोलाहल था। नई बहू आ जाने से रौनक में और अधिक इजाफा हो गया था। ढोलक की थापों के साथ महिलाओं के गाने के स्वर गूँज रहे थे। बधायें और दादरे गाये जा रहे थे।
श्री लाल की खुशी का पारावार न था। उनके छोटे भाई विशम्भर का विवाह था। अम्माँ - बाबूजी की मृत्यु के बाद उन्होंने ही भाई को पाला और कोई तकलीफ नहीं होने दी। विशम्भर श्रीलाल से उम्र में बहुत छोटा है , इसलिये उन्होंने उसे बेटे की तरह स्नेह दिया है।
बारात से लौटे रिश्तेदार समधियाने की खातिरदारी की तारीफ कर रहे थे, जिसे सुनकर श्रीलाल का दिल बल्लियों उछल रहा था। रात की खुमारी अभी तक उतरी नहीं थी और मन व्यवस्थाओं में उलझ रहा था।
अचानक बाहर तालियाँ पीटने की आवाजें सुनाई पड़ी। स्त्री पुरूष के मिले - जुले अजीब से स्वरों के साथ तेज आवाजें भी आ रही थीं। श्रीलाल ने बाहर आकर देखा कि अपने पूरे फौज- पाठे के साथ शबनम मौसी की हमजात सोफिया तालियाँ फटकारती हुई बाहर मौजूद थी। इस बार उनके साथ तेरह - चौदह साल का एक लड़का भी था, जिसे लगभग धकेलती हुए सोफिया बोली - ‘‘चल बल्लू उधर बैठ तो।'' सोफिया तालियाँ पीटते हुए कह रही थी - ‘‘ हाय - हाय.........हाय हमें तो शगुन चाहिये। लड़के का ब्याह है....... कोई मजाक नहीं।'' ‘‘फिर वही तालियों की फट् - फट् ......'' दो हजार एक का रेट चल रहा है........ल्याओ .....छोटू की भाभी.......... नया साड़ी - ब्लाउज। और देखो मिठाई- विठाई ,अनाज वगैरह भी लेती आना। ''
तालियों की चट - चटाहट सुनकर दूसरे लोग भी बाहर निकल आये। सबके चेहरे पर मुस्कान की रेखा पसरी हुई थी। उन्हें देखते ही सोफिया पहले से भी अधिक तेज आवाज में तालियाँ पीटती हुई बोली ......... हाय.....हाय.......हाय...... अच्छे खाते-पीते हो......... तुम लोग। इतना नहीं दोगे तो गरीब बेचारा क्या देगा........ हाय........हाय........हाय......... हमारा पेट कैसे पलेगा। कहते हुए उसने पेट पर पड़े साड़ी के पल्ले को झटके से हटाकर अपना पेट दिखा दिया जिससे पेट के साथ - साथ बदन का ऊपरी हिस्सा भी दिख गया।
बल्लू को यह सब देखकर जरा भी हैरत नहीं हुई। वहाँ खड़े पुरूष लोग एक-दूसरे को इशारा करके हँस दिये। उन लोगों के भाव ताड़कर श्रीलाल ने छोटे बच्चों को अन्दर जाने का आदेश सुना दिया। श्रीलाल सोफिया से कुछ कहना चाह रहे थे लेकिन उसने उन्हें बोलने का जरा भी मौका नहीं दिया। वे बार - बार कुछ कहते लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह दबकर रह जाती।
उन लोगों में सोफिया ही मुखिया दिखाई दे रही थी। उसने अपने साथियों को ललकारते हुए कहा - ‘‘ अरे री गाओ रे गाओ। ऐ बल्लू बजा तो ढोलक। ऐ संगीता, ऐ रबीना लगा तो ठुमका। अरी ओ रम्भा ओ सुल्ताना निकाल तो घुँघरु।
देखते ही देखते उनका पिटारा खुला। रबीना और संगीता ने बड़े - बड़े घुँघरु बाँध लिये। रम्भा ने मंजीरे संभाल लिए, सुल्ताना ने ढपली पकड़ ली। बल्लू ने लपक कर ढोलक घुटनों के नीचे दबाकर अपने हाथ ढोलक पर साध लिये और सोफिया की ओर देखने लगा। सोफिया ने गाना शुरू कर दिया - ‘‘ कांटा लगा.................''
एक खास तरीके से रवीना और संगीता मटक रही थीं और बल्लू ध्यान से उन लोगों का नाचना देख रहा था। रबीना दांये तरफ झुककर उत्तेजित अदायें दिखा रही थी। संगीता पैरों को आगे- पीछे कर कदमताल करके नाच रहीं थी। वह बांये हाथ से अनोखे अंदाज में साड़ी की प्लेटें बीच में से ऊपर को उठाये, दूसरे हाथ को नचा-नचाकर घूम रही थी। वे कभी -कभी लम्बा घूँघट डाल लेती, तो कभी उरोजों को और कूल्हों को झटके के साथ मटका देती थी।
बल्लू सोच रहा था - होली हो या दीवाली सब त्यौहारों पर सोफिया बस्ती के सब घरों से शगुन लेती है अब तो राखी पर भी आने लगी है। वैसे शादी - ब्याह हो या बच्चे का जनम सबके लिये उनके अलग - अलग रेट चलते है। बाजार में दुकानवालों से भी खूब रुपये लेती है। उन्हें रिझाती है, फिर पटाती है नये नये गीतों पर एक अलग तरह से कदम ताल के ठुमकें लगाती हैं। टी. वी देख -देखकर हीरोईनों जैसा नाचने की कोशिश भी करती हैं। अंगों की चटक और कमर की लचक दुकानवालों के मनोरंजन का साधन बन जाती है।
बल्लू वैसे तो इन लोगों की इन हरकतों का आदी हो गया है लेकिन फिर भी इन लोगों का सीने बार -बार पल्ला हटा लेना और साड़ी घुटनों के ऊपर खींच लेना ,उसके मन में कभी- कभी जुगुप्सा भर देती हैं। इनमें से कोईर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र् - कोई बीड़ी सिगरेट पीतीं थीं कोई तम्बाकू खातीं थीं। नये-नये डिजायन के जनाना कपड़े व आर्टिफिशियल जेवर पहनना उनकी पसन्द में शुमार थीं। सबकी आईब्रो तराशी हुई रहती। होठों पर चकाचक लिपिस्टिक लगी होती थीं। सीने पर रूई के पैड वाली ब्रा से उत्तेजक उभार दे दिया जाता था। सब की दाड़ी-मूछ नीट एण्ड क्लीन होती थीं और वे तो ब्यूटी क्वीन हो जाती थीं। जो स्त्री जैसी होती थीं उनके पेट पर बाल नहीं होते थे वे शायद औरत के रूप में जन्म लेकर भी अधूरी रही होती थी। साथ में ढोलक बजाने वाला प्रायः पुरूष ही रहता था। ढोलक की गमक ऐसी कि सुनने वाले का ही मन नाचने को हो जाये।
श्री लाल ने देखा कि बल्लू तेरह-चौदह साल का बालक है। उसकी रेखें निकलना शुरू हो गई थी। उसे देखते ही श्रीलाल को याद आया कि चौदह साल पहले एक पागल कहीं बाहर से घूमती फिरती इस मुहल्ले में आ गई थी। कुछ महीनों बाद उस पगली के एक बच्चा पैदा हुआ था। पगली उस बच्चे को कैसे पालती ? सब चिंतित थे। लेकिन मुहल्ले के किसी परिवार ने इतनी हिम्मत नहीं दिखाई कि उस बच्चे को पाल सकें। तब पांडुरंगा जिंदा थे। उनकी टीम ने ही यह जिम्मा ले लिया था। उन दिनों श्रीलाल के मन में इन लोगों के प्रति अपार श्रद्धा उमड़ आयी थी। शायद यह लड़का वही है। अब तो खूब बड़ा हो गया है और बड़ी मुस्तैदी से ढोलक बजाना भी सीख गया है।
बल्लू को गाना सुनकर बड़ा मजा आ रहा था। गाने की एक लाइन सोफिया गा रही थी फिर उसी लाइन को सुल्ताना और रम्भा दोहरा देती थी। इन दोनों में से जो भी लाइन को गलत दोहरा देती थी उसी की तरफ सोफिया आँखें तरेर देती थी। बल्लू ने रवीना पर एक नजर डाली वह नाच कर रही थी। अपने कंधे हिलाकर उरोजों को ज्यादा मटका रही थी। उसने अपना ध्यान वहां से हटा लिया।
वह सोच रहा था कि ये मुहल्ले वाले भी अजीब होते हैं। मुहल्ले में किसी के भी यहाँ बच्चा पैदा हो तुरन्त इन लोगों को खबर कर देते हैं। मुहल्ले वालों में सब्र कहां रहता है। वे भी तमाशा देखना चाहते है कि हमारे घर से जितना लिया था पड़ोस वाली श्रीवास्तवनी उतना देती है या नहीं। मुहल्ले का कोई भी शुभ चिंतक एसएमएस की तरह तुरन्त सूचित कर देता है। ये मुहल्ले वाले आपस में कितनी ईर्ष्या करते हैं।
सोफिया जब बच्चे के जन्म पर नेग मांगने आती है तो अलग ढंग से नाचती है। इनमें से एक जन नये बच्चे को गोद में लेकर नाचती है और दिये गये अनाज के कुछ दाने बच्चे की माँ की गोद में डालकर कई आशीष दे डालती है........... दूधो नहाओ पूतो फलो.... बच्चा जुग-जुग जिये...... बच्चा कलेक्टर बने..... गाड़ियों में घूमे....... खूब नाम कमाये।
अब सोफिया का दूसरा गाना शुरू हो गया था - प्यार किया तो डरना क्या.....। बल्लू आज तक नहीं समझ पाया कि इनमें से कौन किस कौम की है। उनके नाम भी अजीब होते हैं सलमा बी ,बड़ी बी, जगीरा सुनयना। ये जरूरी नहीं था कि जिस कौन से वे आयी हैं वैसा ही नाम रखा जाये। इस खेमे में आकर नये नाम पा लेने से इनका भूतकाल समाप्त हो जाता था। साम्प्रदायिक सदभाव की अनोखी मिसाल थी। हिन्दू के मुस्लिम नाम और मुस्लिमों के हिन्दू नाम रखे जाते थे। अधिकांश ने तो हीरोईनों के नाम पर अपने नाम रख लिये थे। जैसे माधुरी, रानी, डिम्पल, रवीना, रम्भा, वगैरह।
‘‘जरा एक मिनट मेरी बात तो सुन लो सोफिया‘‘ श्रीलाल की आवाज सुनतें ही अचानक सोफिया ने गाना बन्द कर दिया। बल्लू के हाथ रूक गये। रवीना और संगीता के भी पैर थम गये। वे कह रहे थे देखो सोफिया बहन ये नेग तो ज्यादा है।
सोफिया ने धमकी भरे स्वर में कहा -‘‘ देखो लालजी यदि नेग नहीं दोगे तो हम अभी नंगा नाच दिखाते हैं।'' बल्लू को मालूम था कि मनमाफिक या बँधे रेट के मुताबिक शगुन न मिलने पर वह वे नंगे होने की धमकी देती है। वह सोच रहा था कि इन लोगों के नंगे होने में पता नहीं कौन- सा श्राप समाया हुआ था कि धमकी से ही सब लोग डर जाते हैं। उसने तो कई बार इनको इस मुद्रा में देखा है। लेकिन उसे समझ नहीं आया कि समाज के लोग उन्हें नंगा देखने में कौन सा अपशगुन मानते हैं। इसी बात से रेल में भी ये लोग सवारियों को ब्लेक करने लगी हैं। श्रीलाल ने सभी बच्चों को घर के अंदर भेज दिया था वे कहने लगे ‘‘देखो सोफिया पांड्डरंगा मामू जब तक जिंदा थे कभी यहाँ शगुन लेने नहीं आये। उनके बाद सोफिया बहन तुम वारिस बनीं। तुम्हें तो सब मालूम है इसलिये मामू का धर्म तुम्हें निभाना चाहिये।
सोफिया गुस्से में बोल रही थी-‘‘हाय-हाय-हाय अब वो जमाना गया। अब ऐसा नहीं चलेगा।'' उसने तालियों की आवाज फटकारी '' घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खायेगा क्या ?''
श्रीलाल ने तर्क दिया-‘‘वो हमारी माँ को बहन मानते थे यही रिश्ता चला आ रहा है.......।'' रिश्ते की बात सुनकर सोफिया को तैश आ गया। वह बोली-‘‘तुमने रिश्ता माना होता तो हम भी निभाते। रिश्ता तुमने तोड़ दिया है।..... हाय-हाय-हाय..... शादी के न्यौता देने के समय हम कोई नहीं थी। हमें भी कार्ड देते तो मानते।'' उसकी तालियों की आवाज फट-फट कर गूँजी। वह बोली अभी तक हर मौके पर बुलावा आता रहा सो हम भी रिश्ता निभा रही थीं। अब तुमने रिश्ता तोड़ा है तो तुम्हें भुगतान तो करना पड़ेगा।''
श्रीलाल ने बात को टालने के उद्देश्य से तर्क दिया-‘‘परसों आ जाना बहू के लिबउआ आयेंगे तुम्हें लड़की वालों से नेग दिला देंगे।''
सोफिया खीझतीं हुई बोली-‘‘हमारे भी कुछ उसूल है लालजी। लड़की की शादी में लड़की वालों से शगुन नहीं लेते, लड़के वालों से लेते हैं। जिसकें यहां गमी हो जाती है उसके यहाँ से साल भर तक नेग दस्तूर नहीं लेते। पहली लड़की पैदा होने पर नेग लेते हैं। दूसरी लड़की होने पर जिद नहीं करते। गरीबों को कम पैसों में बख्स देते हैं।''
बल्लू उन लोगों की जिरह होते देख रहा था। सोफिया को गुस्से में देखकर वह निर्णय नहीं ले पा रहा था कि ये इसका असली रूप है या वो असली रूप था जो सुमानी लहर में बरबाद लोगों के वास्ते दान देने के लिये कलेक्टर को सबसे पहले पाँच हजार का चैक देते वक्त दिखा था। और उस दिन सड़क पर खून से लथपथ व्यक्ति को जब कोई नहीं उठा रहा था उसे सोफिया ही अस्पताल पहुँचा आई थी। डॉक्टर से उसने कहा था कि खून की जरूरत हो तो हमारा ले लो लेकिन डर यही है कि कहीं उसे कोई बीमारी न हो जाये। हम जैसा श्राप न लग जाये बेचारे को।
श्रीलाल ने रिश्ते के अलावा और भी कई हील- हवाले दियें, मान-मनोवन किया और माफी मांगी। तब कहीं जाकर उसका गुस्सा ठण्डा हुआ। उसने बड़ी मुश्किल से एक साड़ी और पांच सौ एक रूपये में सोफिया को सहमत किया।
अंदर से नई बहू को बुलाया गया। सोफिया ने नई बहू की बलाये लेते हुये कई आशीष दिये। पांडुरंगा के नाम से बहू के हाथ में इक्यावन रूपये मुँह दिखाई के भी दिये। फिर लड़की की ओर इशारा करके श्रीलाल से बोली-हमारी बीटिया भी सयानी हो गई हैं इसके हाथ कब पीले कर रहे हो। अबकी बार बुलावा देना मत भूलना। क्या नाम है इसका ?
श्रीलाल ने संक्षिप्त उत्तर दिया-प्रतिभा।
अब तो कॉलेज में पढ़ रही होगी ?
हाँ।
बल्लू ने देखा नई बहू से सटकर खड़ी प्रतिभा शर्म की गठरी बनी जा रही थी।
वे लोग आपस में मस्ती करती लौट पड़ी।
दो महीने बाद की बात है अगस्त का महीना शुरू हो गया था। पानी जोर से बरस रहा था। रात में बल्लू दालान में सोता था। पहले वह सब लोगों के साथ सोता था। सभी लोग उसे अपने पास लिटाने को आतुर रहतीं थीं। शुरू में तो वह समझता था कि सब उसे बेहद प्यार करती हैं। लेकिन धीरे-धीरे उसे महसूस होने लगा कि रात में उसके शरीर पर उन लोगों के हाथ रेंगने लगते हैं। उनके हाथों का स्पर्श उसे अच्छा लगता और वह स्खलित हो जाता। एक रात जब एक के बाद एक चार लोगों ने उसे परेशान किया तो वह चीख उठा। तब से सोफिया ने उसे बाहर दालान में सुलाना शुरू कर दिया। उसने सबको हिदायतें भी दे दी कि वह पांडुरंगा की अमानत है इसलिये उसे अपनी टीम से अलग करना नहीं चाहती अन्यथा अब बल्लू की उमर अलग रहकर के खाने कमाने की हो चुकी है। उसने गुस्से में कहा कि बल्लू के साथ किसी ने भी बदसलूकी की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।
उसे रात्रि में अब भी कमरे से कई तरह की आवाजें सुनाई दे रही थीं। उसका मन हुआ कि वह किबाड की दरार में से झांके लेकिन उस रात की घटना याद आते ही वह पस्त हो गया।
दोपहर का समय था। बल्लू का नियम था कि पास की गली में नुक्कड़ पर बने होटल पर चाय और टोस्ट खाता था। आज कुछ ज्यादा ही बारिश हो रही थी। वह चाय पीने चल दिया। आज होटल बंद था। निराश होकर वह लौट ही रहा था कि उसने देखा श्रीलाल की बेटी प्रतिभा कॉलेज से आ रही थी। वह छाता लगाये थी लेकिन फिर भी भींग गई थी। उसके कपड़े बदन से चिपक गये थे। घर जल्दी पहुँचने के चक्कर में वह गली में घुस गईं। उसी समय उसने देखा कि प्रतिमा के मुहल्ले का लड़का छिंगा भी पीछे-पीछे गली में चला गया बल्लू निर्पेक्ष सा घर लौट आया।
शाम हो चली थी। टीम की सदस्य घर लौटने लगी थीं। रवीना बदहवास सी सोफिया के पास आई और बोली सोफिया बी तुमने कुछ सुना ? उसका सीना धोंकनी के समान चल रहा था। सोफिया ने कहा-जरा दम ले ले फिर बताना।
रवीना फिर से बोल पड़ी-मैं श्रीलाल के मुहल्ले से आ रही हूँ। मैं सुनकर आयी हूँ कि दिन दहाड़े आज उसकी लड़की की किसी ने इज्जत लूट ली।
बल्लू पास ही खड़ा था बोला-कब ?
आज दिन में। वो होटल वाली गली में।
बल्लू हक्का-वक्का रह गया। वह बोला-दिन में तो मैंने उसे देखा था गली में जाते। हां उसके पीछे-पीछे एक लड़का भी गया था उसी के मुहल्ले का दादा छिंगा।
सोफिया ने उसे पकड़कर झिझोंड़ दिया और बोली-बता और क्या देखा था तूने ?
वह घबराकर बोला- कुछ नहीं मैं तो वापस आ गया था।
सोफिया रवीना की ओर मुखातिब होकर बोली-फिर पुलिस में रिपोर्ट लिखवा दी होगी, मरेगा साला आपने आप।
रवीना बोली-वही तो ! उन्होने रिपोर्ट नहीं लिखवाई है.............सुनते ही सोफिया ने बल्लू का हाथ पकड़ा और दनदानाती हुई श्रीलाल के यहाँ पहुँच गई।
श्रीलाल घर पर ही मिल गये। उनका चेहरा बुझा हुआ था। सोफिया ने जाते ही प्रश्न दागा- आपने रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई ?''
श्रीलाल पहले तो चौंक गये कि इन्हें कहाँ से मालूम पड़ गया। फिर बोले-देखो जो होना था सो हो गया। अभी तो बात घर की घर में है। पुलिस में जाने से बात पूरे शहर में फैल जायेगी। फिर उससे शादी कौन करेगा।''
सोफिया ने कहा- बात घर की घर में नहीं रह गई पूरे मुहल्ले में खबर हो गई है। लड़की की इज्जत की चटकन और थाली की खनक सबको मालूम पड़ जाती है।
बल्लू ने देखा, प्रतिभा चुपचाप बैठी है। सोफिया ने प्रतिभा से पूछा-क्यों छिंगा ही था ना ? उसने हां में सिर हिलाया और उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
सोफिया ने श्रीलाल पर जोर डालते हुये कहा-देखो लालजी बल्लू देगा गवाही। चलो तुम रिपोर्ट लिखाने चलो। श्रीलाल ने कहा-देखो सोफिया बहन होना जाना कुछ नहीं है। वो गुण्डा बदमाश है।
सोफिया उलाहना देने वाले स्वर में बोली-‘‘तुम लोग औरतों को आगे बढ़ाने की बातें तो बड़ी-बड़ी करते हो। लेकिन जब कुछ करने की बारी आती हैं तो पीछे हट जाते हो। सच्ची बात ये है कि आज भी तुम्हारी मानसिकता नहीं बदली है।''
श्रीलाल टस से मस नहीं हुये। सोफिया पैर पटकती घर वापस आ गई।
घटना के पाँचवे दिन होटल वाली उसी गली में छिंगा बेहोश पड़ा मिला। पुलिस आई, तफ्तीश हुई और उसे अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। जल्द ही यह खबर सब जगह फैल गई कि किसी ने उस लड़के का गुप्तांग काट दिया है। यह खबर मिलते ही सोफिया की टीम अस्पताल जा पहुँची। उसकी हालत ठीक नहीं थी। सोफिया ने डॉक्टर से बात करके पता लगाया कि पंद्रह दिन में आराम मिल पायेगा। ये पंद्रह दिन उन सब को खूब ज्यादा लगे।
सोफिया बीच-बीच में छिंगा को देख आती थी। जिस दिन वह स्वस्थ हुआ सोफिया पूरे फौज-पाठे के साथ अस्पताल पहुँच गई। अब वे लोग उसे अपनी बिरादरी में शामिल करना चाहती थी। पुलिस दरोगा ने सोफिया से कहा-‘‘हमारी तफ्तीश चल रही है इसलिये वह अभी अस्पताल में ही रहेगा। यह सुनकर सोफिया मायूस सी हो वापस आ गई।
सावन का महीना शुरू हो गया था। सभी लोग अलग-अलग मुहल्ले में उगाहनी के लिये निकल गई। सोफिया बल्लू को साथ लेकर श्रीलाल के मुहल्ले में चल दी। सोफिया श्रीलाल के घर राखी का दस्तूर लेने आई। श्रीलाल घर पर ही मिल गये। उन्होंने भेदती निगाहों में पूछा-‘‘सब लोगों को शक है कि तुम लोग बिरादरी में अपनी संख्या बढ़ाने के लिये लोगों के अंग-भंग कर रही हो।''
सोफिया बड़े ऊँचे स्वर में बोली-नहीं लालजी हमारी संख्या तो ईश्वर बढ़ाता है। खुदा न करे वह और अधिक संख्या बढ़ाये। हमें कितना कष्ट है इस योनि में होने का , ये तो हम ही जानती हैं। जिसके होने पर में ये नाशमीटे दम भरते हैं। और हमारी बहू बेटियों की इज्जत से खेलते हैं।
बल्लू को याद आया कि उस रात तेज बारिश में सोफिया पांच छः लोगों को लेकर कही जा रही थी। उसने भी चलने की जिद की थी। होटल बंद हो गया था। उसे होटल की बैंच पर बिठा दिया गया था। सुल्ताना और रम्भा एक लड़के की घसीटते हुये गली में ले गई थी। वह भीगता कांप रहा था। अचानक गली से तेज चीख आई। कुछ देर बाद वह सभी वापस आ गई थी। उसने कई बार पूछा था कि-‘‘क्या हुआ। ये चीख कैसी थी ?'' लेकिन उसे कुछ नहीं बताया गया। आज उसे समझ आया कि क्या माजरा था बल्लू अंदर ही अंदर भुनभुनाने लगा कि इन लोगों ने उसे अभी तक अपनी जमात में शामिल नहीं किया है।
बल्लू देख रहा था कि सोफिया आज दूसरे ही अंदाज में थी। इस बार न कोई तालियों की फटफट थी और ना ही हाय-हाय के स्वर।
सोफिया के चेहरे पर कई भाव आ जा रहे थे। कुछ देर शांत रहकर वह बोली-‘‘हां यही सच है कि ये काम हमने किया है लेकिन अपनी संख्या बढ़ाने के लिये नहीं बल्कि तुम जैसे भीरू लोगों में चेतना जगाने के लिये। जिस दिन बलात्कारियों को ये सजा मिलने लग जायेगी उस दिन से कोई भी गुंडा औरतों की इज्जत लूटने की हिम्मत नहीं कर सकेगा।
सोफिया श्रीलाल को शांत देखकर विषाक्त स्वर में बोली अलबत्ता पहले तो मां-बाप इज्जत के डर से रिपोर्ट लिखाते नहीं हैं। यदि रिपोर्ट लिखा भी दें तो केस साबित नहीं हो पाता। रूपयों की भरमार से सबूत के बिना केस रफा-दफा हो जाता है। यदि जुर्म साबित भी हो जाये तो कितने साल की सजा होगी। पांच साल की, सात साल की बस.........। जमीन पर हाथ मारते हुये वह बोली-‘‘हरामियों को ऐसी सजा मिले जो हमने दी है। तो कोई बहू-बेटियों की तरफ आँख उठाने की हिम्मत न करे।
यह सुनकर बल्लू के मन में आये उन लोगों के प्रति, क्रोध, नफरत, उपेक्षा का भाव सब कुछ समाप्त हो गया। उसे लग रहा था कि संवेदना इन लोगों में है जो दूसरों पर आश्रित रहते हैं। संवेदना श्रीलाल जैसों में नहीं है। इज्जत से तो यह लोग जीते हैं। दूसरों की इज्जत तो मौके-बैमौके उधड़ती रहती है।
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पदमा शर्मा
एफ-1 प्रोफेसर कॉलोनी
शिवपुरी (म.प्र.)
Best story, Congratulationm
जवाब देंहटाएंRavi...21.1.2010