(प्रविष्टि क्रमांक - 15) श्रीरंगीलाल जी मेरे ही मुहल्ले के जीव हैं। एक यही तो हैं हमारे सगे पडोसी। वैसे तो हमारे और भी कई पडोसी है...
श्रीरंगीलाल जी मेरे ही मुहल्ले के जीव हैं। एक यही तो हैं हमारे सगे पडोसी। वैसे तो हमारे और भी कई पडोसी हैं। परन्तु जैसा अपनापन श्रीरंगीलाल जी के साथ है वैसा और किसी के साथ नहीं। इसका भी एक कारण है- वह हैं भाभी जी। भाभी जी माने श्रीरंगीलाल जी की एकमात्र सुंदर, सुशील धर्मपत्नी और उनके हाथ की बनी इलायची वाली चाय। अकसर हमारी शामें उन्हीं के घर गुजरती हैं। हम अपने-अपने अनुभव, सुख-दुख एक-दूसरे से बांटते और भाभी जी के हाथ की बनी इलायची वाली चाय और साथ में बाय का आनन्द उठाते।
श्रीरंगीलाल जी प्रदेश सरकार के किसी विभाग के मुलाजिम हैं। वैसे तो प्रदेश सरकार के किसी विभाग का मुलाजिम होना अपने आप में काफी अहमियत रखता है। यहां ऊपरी कमाई की काफी गुंजाईश रहती है। यह ऊपरी कमाई वेतन से अधिक मानी जाती है। यहां रोज कोई न कोई मुर्गा फंस ही जाता है। परन्तु इसके विपरीत श्रीरंगीलाल जी के बारे में सुना जाता है कि वे काफी ईमानदार व्यक्ति हैं। इसका भी एक कारण है वे प्रदेश सरकार के एक ऐसे विभाग से संबध्द हैं, जिसका दूर-दूर तक पब्लिक से कोई भी डीलिंग नहीं है। उनका विभाग सरकारी कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने का कार्य करता है। भई जब पब्लिक से डीलिंग ही नहीं है तो ऊपरी कमाई का जरिया ही कहां से आए। देखा जाए तो श्रीरंगीलाल जी का ईमानदार होना भी अपने आप में एक मजबूरी ही है। वैसे कहा भी जाता है कि व्यक्ति ईमानदार तभी तक रह पाता है, जब तक उसे बेईमानी करने का मौका नहीं मिलता। मौका मिले तो विभाग ही बेच दे। हां तो वैसे तो श्रीरंगीलाल जी ईमानदार व्यक्ति हैं, परन्तु कभी-कभार बच्चों की फरमाइश पर विभाग से लेखन सामग्री मतलब रजिस्टर, पेन्सिल, फोटोपेपर आदि ले आते हैं, इसे बेईमानी की श्रेणी में नहीं लाया जा सकता है। क्योंकि यह प्रत्येक सरकारी कर्मचारी के मौलिक अधिकार की श्रेणी में आता है। इसी प्रकार सरकारी आयोजनों की व्यवस्था में से उनके द्वारा कुछ बचा लेना भी बेईमानी की श्रेणी में नहीं रखना चाहिए, क्योंकि इसे भाग-दौड़ की एवज में बचाया हुआ पारिश्रमिक माना जाना चाहिए।
ऐसे ही एक दिन शाम को भाभी जी के हाथ की बनी चाय पीने की गरज से जब मैं श्रीरंगीलाल जी के घर पहुंचा तो देखा कि श्रीरंगीलाल जी गहरी सोच की मुद्रा में बैठे हैं। उनके माथे पर चिन्ता की गहरी लकीरें उभर आईं हैं। मुझे देखते ही बोले- आइए शर्मा जी। आप की ही प्रतीक्षा कर रहा था। मैंने पूछा- क्या बात है। काफी चिन्तित दिख रहे हैं। कुशल मंगल तो है ना। बोले- वही तो नहीं है। मुख्यालय से खबर आई है एक घाघ अफसर की तैनाती यहां हो रही है। सुना है कि वह बड़ा ही बेईमान किस्म का अफसर है। बात-बात में रिश्वत मांगता है और न दो तो अनुशासनिक कार्रवाई कर देता है। अब हमारी ईमानदारी का क्या होगा। इसकी लाज कैसे बचेगी। मैंने कहा- इसमें कौन सी बड़ी बात है। मुख्यालय में आपकी पैठ है ही। उसका स्थानांतरण रूकवा दो। कहने लगे- वह भी कोशिश करके देख ली। वह भी बड़ा सोर्स वाला है। उसी ने अपने प्रयास से यहां इस जिले में स्थानांतरण करवाया है। मैं ही नहीं पूरा का पूरा स्टाफ चिन्तित है। अब क्या होगा शर्मा जी।
मामला वाकई काफी गंभीर था। आज की चाय में वह स्वाद महसूस नहीं हो रहा था। अनमने मन से चाय सुड़की और घर आ गया। इसी उधेड़बुन में एक सप्ताह गुजर गया भाभी जी के हाथ की बनी वह इलायची वाली चाय पीए। एक सप्ताह बाद जब मैं श्रीरंगीलाल जी के घर गया तो श्रीरंगीलाल जी को आफिस की फाइलों में सिर खपाए पाया। काफी अचम्भा हुआ, जो शख्स यह कहता था कि आफिस में कोई काम नहीं है सारा दिन मक्खी मारते बीत जाता है। आज अचानक इतना सारा काम कहां से टपक गया जो आफिस के बाद घर पर भी उसे निपटाने की नौबत आ गई हो। रहा न गया पूछ ही लिया। श्रीरंगीलाल जी रूहासे हो गए और उसी अंदाज में कहने लगे- उस घाघ अफसर ने ज्वाइन कर लिया है और सारे स्टाफ की नाक में दम कर दिया है। आफिस के सारे पोर्शनों के स्टेटमेंट तैयार करवा रहा है। नया-पुराना सभी विवरण मांग रहा है। प्रस्तुत नहीं करने पर अनुशासनिक कार्रवाई की धमकी दे रहा है। कहते-कहते मानो श्रीरंगीलाल जी अभी रो ही पड़ेंगे। मुझे उनकी दशा पर सहानुभूति होने लगी। जिस व्यक्ति ने अपने अब तक कार्यकाल में कभी कोई फाइल पलटकर नही देखी। सारे दिन आफिस में मक्खी मारता था। अचानक इतना सारा काम कैसे निपटाएगा। मैं सांत्वना के दो शब्द बोलने ही वाला था कि वे गिड़गिड़ाने लगे- आप ही कोई युक्ति बताओ कैसे इस विजातीय तत्व से छुटकारा पाया जाए। मैंने कहा- इसमें कौन सी बड़ी बात है। हम भारतीयों में इतनी क्षमता तो है ही किसी को भी जड़ से उखाड़ फेक सकते हैं। जब हमने तीन सौ वर्ष पुराने अंग्रेजी शासन के दरख्त को उखाड़ फेका तो फिर इसकी क्या बिसात।
श्रीरंगीलाल जी ने मानो इस महामंत्र को आत्मसात कर लिया हो। जोर-जोर से सिर हिलाने लगे। इस महाअभियान को चलाने के लिए अगले दिन ही पूरे स्टाफ की गुप्त बैठक श्रीरंगीलाल जी के घर पर आहूत की गई। गहन विचार विमर्श हुआ। निर्णय के अनुसार चार दल का गठन हुआ। सबके कार्य निर्धारित हुए। कार्य निर्धारण के अनुसार पहले दल, जिसमें नरम मिजाज के सदस्य थे, को असहयोग आंदोलन छेड़ना था। दूसरे दल, जिसमें गरम मिजाज के सदस्य थे, को बात-बात में डराना धमकाना था। तीसरे दल, जिसमें कूटनीति शास्त्र के विशेषज्ञ थे, को कथित विजातीय तत्व का शुभचिंतक बनकर उससे गलत-सलत कार्य के लिए उकसाना और उसे सतर्कता मामलों में उलझाना था। सबसे महत्वपूर्ण कार्य चौथे दल के रूप में महिला मोर्चा को सौपा गया था। इसके अंतर्गत विजातीय तत्व जब तीन तरफा प्रहार से किसी तरह बचकर निकलना चाहे तो उस पर अपना संविधान प्रदत्त ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना था। सभी अपने-अपने कार्य में निपुण थे। और जो नहीं थे उन्हें बकायदा क्रैश कोर्स कराया गया। इस बीच मुझे आवश्यक कार्यवश करीब एक पखवाड़े के लिए शहर से बाहर जाना पड़ा। व्यस्तता के कारण न ही मैं अपने सगे पड़ोसी का हाल-चाल ले सका और न ही उनकी ओर से कोई समाचार दिया गया। एक पखवाड़े के पश्चात जब मैं वापस आया तो सोचा आज शाम को भाभी जी के हाथ की बनी चाय पीने अवश्य जाऊंगा और लगे हाथ श्रीरंगीलाल जी के आफिस का हाल-चाल भी पूछ लूंगा। परन्तु यह क्या शायद श्रीरंगीलाल जी को मेरे वापस आने की खबर मिल चुकी थी। आफिस का काम निपटाकर जैसे ही शाम को मैं घर पहुंचा वे मुझे मेरे ही घर पर मिल गए। उनके हाथ में मिठाई का डिब्बा था। प्रसन्न मुद्रा में उन्होंने मुझे लपककर अपनी बांहों में भर लिया। बोले- शर्माजी, आज हम उस विजातीय तत्व के चंगुल से हमेशा के लिए मुक्त हो गए हैं जिसने हम जैसे सरकारी दामादों को अपना गुलाम बनाना चाहा। आपके मंत्र के प्रभाव से ही उसे काले पानी की सजा हो गई है। पूरा स्टाफ आपका हार्दिक शुक्रगुजार है। घर-घर मिठाईयां बांटी जा रही हैं। हम सबकी तरफ से यह मिठाई आपके लिए है।
श्रीरंगीलाल जी को प्रसन्न देखकर मुझे भी हार्दिक प्रसन्नता हुई और होती भी क्यों ना। आखिर वे जो ठहरे मेरे सगे पड़ोसी ही ना। अपने सगों को प्रसन्न देखकर कौन अभागा प्रसन्न नहीं होगा। अत: मेरा प्रसन्न होना स्वभाविक था। परन्तु साथ ही एक हार्दिक कष्ट भी हुआ कि आज भाभी जी के हाथ की बनी इलायची वाली चाय से महरूम जो होना पड़ा। फिर भी यह तो पता चल ही गया कि यह मंत्र साधारण मंत्र नहीं है बल्कि महामंत्र है। इस महामंत्र का प्रयोग अगर किसी पर कर दिया जाए तो समझो वो गया ही गया। इस महामंत्र के प्रयोग से जैसे श्रीरंगीलाल एंड पार्टी का भला हुआ वैसे ही भगवान अन्य मुसीबत के मारो का भी भला करे।
इति श्रीरंगीलाल कथा समाप्तम्।
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श्याम बाबू शर्मा
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