(प्रविष्टि क्रमांक - 9) इंडियन टाइम हमारे देश में बहुत प्रसिद्ध हैं और इसका ईजाद भी हमारे ‘ सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां‘ के व...
(प्रविष्टि क्रमांक - 9)
इंडियन टाइम हमारे देश में बहुत प्रसिद्ध हैं और इसका ईजाद भी हमारे ‘ सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां‘ के वासियों ने की है, इसलिए इसे इंडियन टाइम की संज्ञा दी गई है। हम दो बजे दिन की मीटिंग रखते हैं और वह शाम को पांच बजे शुरू होती है। चुनावी सभा में नेताजी का भाषण सुबह 11 बजे रखा जाता है और शाम को 5 बजे शुरू होता हैं। दुकान का उद्घाटन 2 बजे रखा जाता है, छः बजे शाम को फीता कटता है। साहित्य सम्मेलन भी आठ बजे रात को रखे जाते हैं, दस बजे शुरू होते हैं। कवि सम्मेलन नौ बजे रात को रखे जाते हैं, ग्यारह बजे शुरू होकर एक बजे रात को खत्म होते हैं। इस प्रकार ये जो समय का अंतराल है, यही अंतराल ‘इंडियन टाइम‘ कहलाता है।
हम सभी भारतवासी ‘इंडियन टाइम‘ के कायल है। सम्मेलन तब तक शुरू नहीं हो सकता हैं, जब तक अध्यक्ष नहीं आ जाते हैं और अध्यक्ष तब तक नहीं आ सकते हैं, जब तक टी.वी., कैमरामैन, आकाशवाणी वाले, फोटोग्राफर , पे्रस वाले एकत्र न हो जाये। सभी के एकत्र होने में टाइम लगता है। वह दिन सभी का रहता है। सभी अपने नखरे दिखाते हैं। सभी नाचने वालों की तरह आयोजक को नचाते हैं। पिछली उधारी की याद दिलाते हैं। चाय नाश्ता नहीं कराया , उलाहना देते हैं। कार्यक्रम में वरीयता प्रदान नहीं की, की शिकायत करते हैं। कुर्सी में आगे जगह नहीं रखी , पहले नाम नहीं दिया, आदि दुखडा रोते हैं।
दर्शकों को बताया जाता है कि अध्यक्ष महोदय, के आने की सूचना प्राप्त हुई है, चल दिये हैं। आते ही कार्यक्रम शुरू हो जायेगा। सारा दोष अध्यक्ष पर डाला जाता है। जबकि अध्यक्ष समय से पांच मिनट पूर्व आकर बंद कमरे में चुपचाप बैठा ‘स्टेज सजना‘ देखता रहता है। यदि भूल से अध्यक्ष महोदय , सही समय पर आ जाए तो आयोजक , प्रायोजक , नियोजक , संयोजक , आलोचक, उद्घोषक गायब मिलते हैं। सबके मिल जाने पर ही पूरा कुनबा जुड़ने पर, कार्यक्रम शुरू होता है और आठ की जगह दस बज जाता है।
सभी लोग राष्ट्रीय घड़ी से टाइम मिलाकर चलते हैं। सब राष्ट्रीय टाइम के कायल हैं । इसलिए किसी भी देशभक्त को समय पर न आने के कारण नहीं डांटा जा सकता है, क्योंकि वह राष्ट्र भक्ति का पालन कर राष्ट्रीय अनुशासन के अनुसार समय पर राष्ट्रीय टाइम से आया है।
हमारे देश में कुछ ऐसे लोग हैं, जो समय के पाबंद नहीं है, बल्कि समय उनका पाबंद रहता हैं ऐसे व्यक्ति पूजकों के कारण ही समय का महत्व नहीं है। ऐसे लोगों के बारे में जानबूझकर अंधे , बहरे , पागल बने लोगों द्वारा यह दर्शाने का प्रयास किया जाता है कि वे समय के पाबंद नहीं है, बल्कि समय ही उनका गुलाम है। ऐसे अंध श्रद्धालुओं की अंध पूजा के कारण ही कार्यक्रम इंडियन टाइम को भेंट चढ़ जाते हैं। दर्शक मन मारकर कुछ नहीं कर पाता है। सब अंधभक्ति , अंध-श्रद्धालुओं के बीच में कार्यक्रम शुरू होने का विरोध और बहिष्कार करने का साहस नहीं कर पाते हैं।
हमारे देश में समय की कीमत नहीं है। लोगों के पास समय ही समय है। घंटों पान, सिगरेट की दुकान पर गप्प मार सकते हैं, एस.टी.डी. बूथ में बैठी टेलीफोन बाला से पे्रमालाप कर सकते हैं , स्कूल-कालेजों के पास खडे होकर श्रृंगार रस का आनंद ले, गजगामिनी , मृगनयनी, विश्व सुंदरी, शहर सुंदरी, टॉप टेन के दर्शन कर सकते हैं। ऐसे लोगों के लिए समय की कोई कीमत नहीं है। इनके पास समय ही समय है।
हममें से कई लोग दफ्तर जाते हैं, हाजरी लगाते हैं, चाय-पानी करते हैं, मेच फिक्सिंग की बात , लालू की याद , अटल जी के दर्द , ममता के इस्तीफे , पासवान की रेवडी, कर्मचारी शासित बजट की बातें कर टाइम पास करते हैं और समय पर सीधे घर पर आकर वहीं बातें सोते तक टी.वी. पर देखते हैं। हम लोगों को पता ही नहीं चलता कब एक तारीख आ गई, कब दीवाली का बोनस मिल गया। हम लोग कुछ दिन नहीं, बल्कि साल दर साल ऐसे ही टाइम पास कर के निकाल देते हैं। ऐसे लोगों के देश में समय की नई खोज न हो यह नहीं हो सकता है।
हमारे देश में यह नहीं सोचते हैं कि आज का दिन फिर नहीं आयेगा। हमारे लिए तो हर दिन एक जैसा होता है। ग्यारह से पांच काम करों, लाइन से से लोगों को बुलवाओं ,जितना निपट गया ठीक, नहीं तो कल फिर से लाइन लगवाओ। बीच -बीच में कुर्सी बचाने वी.आई.पी. लोगों का काम चुपचाप सर्कस के करतब दिखाने वालों की तरह करते जाओ। सालों कट जाएंगे , पता भी नहीं चलेगा।
हमारे देश को आजाद हुए 50 से अधिक साल हो गये हैं, लेकिन देश की गीत में कोई परिवर्तन नहीं आया है। आजादी के समय से 80 प्रतिशत लोग अंगूठा लगा रहे हैं। साक्षरता की ज्योति करोडों का ईधन खाकर, कुछ दूर तक ही चलकर साक्षरता की अलख जगा पायी है। वह भी ऐसी साक्षरता है, जो केवल नाम लिखना सिखाती है। अपने प्रति अच्छे-बुरे को पढने -समझने की सीख और प्रज्ञावान्, व्यक्ति पैदा नहीं करती।
हमारे देश में समय को चना खाने, मूंगफली छिलने, मक्खी मारने, घूइंयां छीलने से नापा-तौला गया है। जानवर भी हर काम समय पर करता है। वह ठीक समय जागता है, सोता है, और खाता है। परन्तु आदमी के समय का कोई ठिकाना नहीं है। वह समय इधर-उधर की उडान में, उखाड-पछाड में, कच्ची-पक्की बात करने में, कल्पना के घोडे दौडने में नष्ट कर देता है। जबकि सभी समय उपयुक्त होता है। समय का उचित उपयोग करके समय को बचा सकते हैं।
आचार्य चाणक्य का कहना है कि ‘ समय किसी के रूकने से नहीं रूकता है। समय अपनी गति से चलता रहता है। समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। इसलिए समय की कीमत को समझो, गुजरा समय कभी वापस नहीं आता, सदा इंसा नही समय की प्रतीक्षा करता है। समय मूल्यवान है। इससे लाभ उठाने वाले ही आगे बढते हैं।‘ इन सूत्रों को ध्यान रखा जाए तो ‘इंडियन टाइम‘ के मजाक से बचा जा सकता है। वैसे दम है तो बहिष्कार ही इलाज है।
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umesh kumar gupta
2nd ADJ seoni MP
SEONI COURT SEONI MP
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