अश्लीलता एक बार फिर चर्चा में है। मैं पूछता हूं अश्लीलता कब चर्चा में नहीं रहती। सतयुग से कलियुग तक अश्लीलता के चर्चे ही चर्चे है। आगे...
अश्लीलता एक बार फिर चर्चा में है। मैं पूछता हूं अश्लीलता कब चर्चा में नहीं रहती। सतयुग से कलियुग तक अश्लीलता के चर्चे ही चर्चे है। आगे भी रहने की पूरी संभावना है। यह बहस ही बेमानी है। श्लीलता आज है कल नहीं मगर अश्लीलता हर समय रहती है। अश्लीलता बिकती है उसका बाजार है, श्लीलता का कोई बाजार नही है। इधर एक साथ कुछ ऐसी फिल्में दृष्टिपथ से गुजरी जिनके नाम तक अश्लील लगते हैं। जिस्म, मर्डर, फायर, नो एन्ट्री, हवस, गर्लफेण्ड, खाहिश, जैकपाट, हैलो कौन है, तौबा तौबा, जूली, चेतना और न जाने क्या क्या । हर तरफ पोर्नोग्राफी का मायाजाल। रील की जिन्दगी के हर तरफ बस गरमागरम माल ही माल है। अश्लीलता का हमला पूरे युग पर हो रहे सभी हमलों में सबसे ज्यादा घातक और खतरनाक है। अश्लीलता पर चर्चा हो और देह, देह व्यापार, देह के अर्थशास्त्र पर चर्चा न हो यह कैसे मुमकिन है। साहित्य, कला संस्कृति और सभी जगहों पर अश्लीलता का जादू सर पर चढ़ कर बोल रहा है। सफलता के लिए कुछ भी करने को तैयार व्यापारी हर तरफ से अश्लीलता परोस रहे हैं और हर तरफ से अश्लीलता को भकोस रहे हैं। नारी विमर्श के नाम पर साहित्य में अश्लीलता चल रही है। न्यूड व नेकेड पेन्टिग के नाम पर कला में अश्लीलता बिक रही है। संस्कृति के साथ सर्वत्र बलात्कार हो रहा है। कौन है जो इसे रोके। हर कोई इस बहती नदी में स्नान करना चाहता है।
सफलता के लिए सी ग्रेड़ फिल्मों से सफर शुरू करने वाली नायिका बोल्ड दृश्य, कहानी की मांग और निर्देशक की इच्छा के नाम पर बिस्तर दर बिस्तर अश्लीलता के सहारे आगे बढ़ रही है।
उपेक्षित, शोषिता, वंचिता, बनकर जीने के बजाय सफल सुन्दर, और धनवान बनना ज्यादा आसान लगता है। इश्क, प्रेम मोहब्बत को हमने इबादत से निकम्मा और कमीना तक पहुंचा दिया गया है। नवधनाढ्य वर्ग को विकल्प और परिवर्तन चाहिये। वो नारी देह से मिले या पुरूष देह से अश्लीलता हो या कुछ और, नीला जहर हो या पीला जहर सब पी रहे हैं। इन्टरनेट पर अश्लीलता की सैकड़ों बेब साइटस हैं, सब पर जबरदस्त भीड़। कामुक साहित्य सबसे ज्यादा बिकते हैं। अश्लील साहित्य को बेचना सबसे ज्यादा आसान है। अश्लीलता की बाढ़ कहां नहीं है। घर परिवार से शुरू होने वाला यह सफर रेडियो, टीवी, कम्यूप्टर वेब साइटस से चलकर सड़को, होटलों सर्वत्र दिखाई दे रहा है। कैबरे, डिस्को थ्ोक, पब, रेड लाइट एरिया, कोठों क्लबों, और रिर्सोटों में पसर कर बैठ गई है अश्लीलता। है कोई जो अश्लीलता से पंगा ले । सर्वत्र देह के शिकारी डोल रहे हैं। कामुकता की संस्कृति के बहाने सब जगहों पर खुला ख्ोल हो रहा है। अश्लीलता का विस्तार कहां नहीं है। विकास की कीमत की तरह है अश्लीलता। विकास करो विकास। विकास के साथ अश्लीलता मुफ्त मिलती है।
अश्लीलता नारी की अस्भिता से जुड़ी है मगर अस्मत के सामने नतमस्तक है। अश्लीलता की अपनी उलझनें हैं। वे एक षड्यन्त्र की तरह व्यक्ति का अपने में लील लेती है। अखबारों में, खबरों में, टीवी चैनलों में पत्रिकाओं में सर्वत्र है अश्लीलता खूब भोगो। भोगते भोगते थक जाओ तो नयी अश्लीलता ढूंढो। अश्लीलता की परिभाषा बदल दों । छेड़ छाड़ से चलती हुई भदेस गालियों से होती हुई अश्लीलता सौन्दर्य प्रतियोगिताओं और केट वाक तक चली गई । अश्लीलता से पैसा आता है। पैसे से सुख आते है। भौतिक सुविधाएं आती है तो फिर देर किस बात की। चलो अश्लीलता की ओर । बलात्कार के समाचारों को रोचक तरीके से बार बार प्रस्तुत कर उसे बेचा जाता है। कई बार बलात्कार, और बलात्कारी से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है विधि। विधि का वर्णन बेहतर तरीका से किया जाता है। मैं पूछता हूं बलात्कार घाव है या हथियार। उसे एक हथियार के रूप में क्यों प्रयुक्त किया जा रहा है ?
समाज में देह शोषण को अलग अलग ढंग से बार बार प्रस्तुत करने से समाज में परिवर्तन कैसे हौ सकता है। समाज के ठेकेदार रोज अश्लीलता को ओढ़ते हैं, बिछाते हैं खाते हैं, पीते हैं। मजे करते हैं।
सौन्दर्य अलग चीज हैं, अश्लीलता अलग । अजन्ता, एलोरा, एलीफेन्टा, कालीदास का कुमार संभव या ऋतसंहार अश्लील नहीं है यारों उसकी नकल मत करो। अश्लीलता तो तब है जब इस देह को एक प्रोडक्ट के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। प्रोडेक्ट मत बनाओ। अश्लीलता स्वतः समाप्त हो जायगी। फिल्म हो या टीवी या प्रिन्ट मिडिया अश्लीलता तो व्यवहार में है एक मानसिक बेवाय की तरह है अश्लीलता।
अश्लीलता अबाल वृद्ध को अनावृत्त कर देती है। देह को भोगना ही पर्याप्त नही है, शायद इसलिए देह को अश्लीलता के रूप में एक प्रोडक्ट बनाया जा रहा है।
सिनेमाघर तोड़ने या किसी लेखक कलाकार के हाथ पैर तोड़ने से अश्लीलता श्लीलता में नही बदल जाती है। उसके लिए एक पूरी पीढ़ी को बलिदान करना पड़ता है।
ब्लू फिल्मों का जहर एक पूरी पीढ़ी को बरबाद कर रहा है। सी ग्रेड की फिल्मों की नायिका कहां से कहा तक चली गई। बड़े से बड़े नेता अभिनेता, खिलाड़ी का व्यक्तिगत जीवन अश्लीलता से भरकर छलक रहा है।
पोर्नोग्राफी एक बहुत बड़ा व्यवसाय है। माल बेचने के लिए इन्टरनेट का सहारा लिया जा रहा है। और हम सब बेबस होकर देख रहे है। हर नाचगाने में कामुक मुद्राएं, कैलि क्रीडाएं, रतिरहस्य दिखाए जा रहे हैं। और फिर तुर्रा ये की ये सब कामसूत्र में है, मगर कामसूत्र प्रोडक्ट नहीं है भाई, इसे रोकें। रिमिक्स गानों तक को कोई देख्ो तो दांतों तले उंगली दबा ले और यदि मूल निर्देशक, गायक, कलाकार देख ले तो शायद आत्महत्या कर ले या रिमिक्स करने वाले की हत्या कर दे।
अश्लीलता की परिभाषा कठिन हो सकती हैं, मगर अभिव्यक्ति बहुत सरल है और बचना बहुत कठिन है। इस बहस को अनन्त तक जाना है कोई रोक सके तो रोके ।
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यशवन्त कोठारी
86, लक्ष्मीनगर, ब्रह्मपुरी बाहर,
जयपुर-302002फोन- 2670596
बहुत सटीक बस्तुस्थिति रखी गई है, सच है-अपने बिस्तर पर सब वही करते हैं,पर बेचने को नहीं,प्रोडक्ट नहीं- वह सामाज़िकता है,प्रेम है,कला है,कर्म है,धर्म है, पूजा है; वही बाज़ार में/प्रोडक्ट्बनकर आये तो अश्लीलता ,अकर्म,अधर्म है। काम-सूत्र,खज़ुराहो के बहाने नहीं चल सकते ।
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