यशवन्त कोठारी का व्यंग्य : मिलिए बुद्धिजीवी से…

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बुद्धिजीवी उसे कहते हैं, जो बुद्धि खाकर जीवित रहता है। कुछ लोगों का कहना है कि बुद्धिजीवी वह होता है जो बुद्धि की अर्थी निकाल देता है। सा...

बुद्धिजीवी उसे कहते हैं, जो बुद्धि खाकर जीवित रहता है। कुछ लोगों का कहना है कि बुद्धिजीवी वह होता है जो बुद्धि की अर्थी निकाल देता है। सामान्‍य सामाजिक प्राणी बुद्धिजीवी से डरता है क्‍योंकि बुद्धिजीवी का शारीरिक व्‍यक्‍तित्‍व डरावना होता है। बढ़ी हुई घनी दाढ़ी या फ्रेंचकट दाढ़ी, कीमती चश्‍मे से झांकती भारी-भारी आंख्‍ों, महंगे जूते और फटी हुई जेब। कड़का होना बुद्धिजीवी का प्रमुख लक्षण है। उसकी जेब में कीमती बटुआ तो होगा, मगर खाली होगा। खाली बटुए से बुद्धिजीवी देश की सरकार को खरीदने की ताकत रखता है।

आप पूछ सकते हैं, ये बुद्धिजीवी है क्‍या बला और कहां पाई जाती है यह कला। तो पाठकों सावधान होकर सुनिये और सच मानकर पढ़िये।

बुद्धिजीवी विश्‍वविद्यालयों, रंगमंच, कला केन्‍द्रों, कॉफी हाउसों, टी-स्टालों, सभाओं, सेमिनारों, कान्‍फ्रेंसों, अखबारों में पाये जाते हैं। ये वे लोग हैं जो दूसरों के सुख से दुखी होते हैं, खुद के दुख इन्‍हें ज्‍यादा दिखाई नहीं देते। ज्‍यादातर बुद्धिजीवी जीवन में एक बार विदेश अवश्‍य जाते हैं और वापस आकर तोते की तरह ‘जब मैं विदेश में था' वाक्‍यांश अलापते रहते हैं। जब भी उन्‍हें अपने नियमित कार्यों से फुरसत मिलती है वे देश, विदेश, राजनीति, अर्थ नीति, विज्ञान के क्ष्‍ोत्र में अपना ज्ञान बघारने लग जाते हैं। बुद्धिजीवी किसी भी विषय पर एक नहीं होता । बुद्धिजीवियों को किसी एक मुद्दे पर सहमत करना और मेंढ़क तोलना बराबर है। बल्‍कि मेरे मित्र झपकलाल के अनुसार मेंढक तलना आसान है, ख्‍ौर।

इधर देश के बुद्धिजीवियों को सरकार कर चिन्‍ता है, जो बुद्धिजीवी सरकार में हैं, वे बाहर वालों को बुद्धिजीवी नहीं मानते जो बुद्धिजीवी सरकार से बाहर हैं वे सरकारी बुद्धिजीवियों को बिका हुआ मानते हैं। कुल मिलाकर बेचारे बुद्धिजीवियों की बड़ी हालत खराब है। मगर इनकी आर्थिक दाल घी से भरी हुई रहती है। विदेशी पैसा, विदेशी कपड़ा और विदेशी भाषा से सजे-ढंके ये देशी बुद्धिजीवी वातानुकूलित कक्षों में बैठ कर गरीबी पर शोध पत्र पढ़ते हैं या गरीबी मिटाने के बारे में सम्‍पादकीय लिखते हैं।

मैनें एक जाने-माने बुद्धिजीवी को नमस्‍कार करने का प्रयास किया मगर मैं हिन्‍दी का अदना लेखक, वो देश का प्रखर बुद्धिजीवी। उसने मेरे नमस्‍कार का जवाब देना उचित नहीं समझा। इसका कारण मेरी समझ में तब आया जब वही बुद्धिजीवी एक देशी छोकरी को विदेशी शराब का महत्‍व समझाते हुए पकड़ा गया। बुद्धिजीवियों का बेशरम होना बहुत जरूरी है, वे शरम, लज्‍जा, भय, इज्‍जत जैसी छोटी चीजों की परवाह नहीं करते। जब भी दो चार बुद्धिजीवी एक विषय पर विचार करने एकत्र होते हैं, एक दूसरे की छीछालेदर करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। वार्तालाप कुछ इस तरह होता है-

‘‘ तुमने मेरी शोध को अपनी पुस्‍तक में छाप लिया।''

‘‘ तुमने मंत्री तक को नहीं छोड़ा।''

‘‘ अबे जा।''

‘‘ जा तेरे जैसे कई देख्‍ो हैं।''

पाठकों, भाषा अंग्रेजी भी हो सकती है। बुद्धिजीवी जब गुस्‍से में होता है तो अंग्रेजी बोलता है, ज्‍यादा गुस्‍से में होता है तो गलत अंग्रेजी बोलता है।

यदि शराब विदेशी हो तो बुद्धिजीवी शालीन हो जाता है। यदि परोसी जाने वाली शराब देशी हो तो बुद्धिजीवी देशी फाश गालियां देने लग जाता है। ऐसी स्‍थिति में पार्टी, सेमिनार या कांफ्रेन्‍स के आयोजक सचिव उन्‍हें टी.ए. - डी.ए. देकर विदा कर देते हैं।

हर समझदार बुद्धिजीवी अपने अलावा सभी को मूर्ख समझता है। हर बुद्धिजीवी की सफलता के पीछे एक सुन्‍दर महिला होती है और इस सुन्‍दर महिला के पीछे बुद्धिजीवी की पत्‍नी होती हैं यदि कभी यह सुन्‍दर महिला बुद्धिजीवी की पत्‍नी के हत्‍थ्‍ो चढ़ जाती है तो झोटा पकड़ कर निकाल दी जाती है।

बुद्धिजीवी स्‍वयं कोई काम नहीं करता, उसके चेले-चपाटे, शिष्‍य-शिष्‍याएं, चमचे-चमचियां सब काम करते हैं और नाम बुद्धिजीवी का होता है। बुद्धिजीवी प्रोफेसर को सकता है, सम्‍पादक हो सकता है, साहित्‍यकार, लेखक हो सकता है। वह सरकार का धमकाता है। वह अकादमी को डराता है, वह शोध छात्र की दुनिया उजाड़ सकता है, क्‍योंकि वह देश का प्रमुख एक मात्र बुद्धिजीवी है।

अकसर बुद्धिजीवियों की तरह ही एक और प्राणी होता है जो बुद्धिजीवी का स्‍त्री संस्‍करण होता है, जिसे हम सुविधा के लिए बुद्धिजीवनी कह सकते हैं। ये महिलाएं भी बुद्धिजीवियों की तरह ही होती हैं। भारी नम्‍बरों के साथ कॉफी हाउस, आकाशवाणी, दूरदर्शन, विश्‍वविद्यालयों, अखबारों के कार्यालयों में चक्‍कर लगाती रहती हैं। इनका प्रमुख काम अपने बुद्धिजीवी के लिए अकादमी की फेलोशिप, कोई पुरस्‍कार या विदेश यात्रा का जुगाड़ करना होता है। बदले में इन्‍हें एक बौद्धिक सुरक्षा तथा विदेशी शराब उपलब्‍ध कराई जाती है, जो इन्‍हें रास आती है।

बुद्धिजीवी हर प्रकार के विषय का विश्‍ोषज्ञ होता है। यदि आकाशवाणी को मलेरिया के लिए टॉक देनी है तो हिन्‍दी का बुद्धिजीवी यह काम कर देता है। यदि दूरदर्शन पर विज्ञान का कार्यक्रम है तो अर्थ शास्‍त्र का बुद्धिजीवी हाजिर है।

बुद्धिजीवी नहीं तो देश, सरकार और जनता का क्‍या हो। कभी सोचा है आपने ? जितने भी गलत निर्णय होते हैं उनके पीछे एक-न-एक बुद्धिजीवी का हाथ होता है।

बुद्धिजीवियों से देश, समाज, काम को बचाने के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत है। बच्‍चे तक बुद्धिजीवी के नाम से डर कर रोना बंद कर देते हैं। अक्‍सर माताएं अपने बच्‍चों को कहती हैं- ‘चुप हो जा नहीं तो बुद्धिजीवी खा जायेगा।'

बुद्धिजीवी यदि खाता नहीं है तो भी काटता तो है। बुद्धिजीवियों मे अक्‍सर बहस इस बात पर होती है कि आज की कॉफी चा चाय या पेय पदार्थों का बिल कौन अदा करे। इस शाश्‍वत बहस का अन्‍त इस बात पर होता है कि आज का बिल किसी भक्‍त, शिष्‍य, शिष्‍या या चमचे से दिलाया जाये। यदि यह व्‍यवस्‍था संभव नहीं हो तो बिल को किसी सेमिनार, कांफ्रेंस, लंच या डिनर में एडजस्‍ट करने हेतु पेंडिंग कर दिया जाता है। यदि इस प्रकार के कई बिल पेंडिंग हो जाते हैं तो कॉफी हाउस वाला बुद्धिजीवियों का घुसना बंद कर देता है।

बुद्धिजीवियों में राज्‍याश्रय और सेठाश्रय दो परम प्रिय शब्‍द हैं। जो राज्‍याश्रय का बुद्धिजीवी है वह सेठाश्रयवादी बुद्धिजीवी करार देता है। वैसे लाभ के लिए ये दोनों बुद्धिजीवी तुरन्‍त एक हो जाते हैं।

बुद्धिजीवियों की नस्‍लों के बारे में वैज्ञानिकों में मतभ्‍ोद है। जब से क्‍लोन प्रणाली जन्‍मी है, बुद्धिजीवियों के भी क्‍लोन तैयार करने के बारे में सोचा जा रहा है। आप कल्‍पना करिये, एक जैसे सैकड़ों, हजारों बुद्धिजीवी सड़कों पर दौड़ रहे हैं, हर तरफ बुद्धिजीवी ही बुद्धिजीवी। दुनिया बुद्धिजीवियों से भर गई है। और आम आदमी इनसे बचता फिर रहा है। बचो, बुद्धिजीवी आ रहा है। भागो, भागो बुद्धिजीवी आया।

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यशवन्‍त कोठारी

86, लक्ष्‍मीनगर ब्रह्मपुरी बाहर

जयपुर 302002

फोन 2670596

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रचनाकार: यशवन्त कोठारी का व्यंग्य : मिलिए बुद्धिजीवी से…
यशवन्त कोठारी का व्यंग्य : मिलिए बुद्धिजीवी से…
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