बहुत चीजें, हैं खाने के लिए -शरद तैलंग आम भारतीयों को चाहे कुछ और हो न हो खाने पीने या पीने खाने का शौक अवश्य हो...
बहुत चीजें, हैं खाने के लिए
-शरद तैलंग
आम भारतीयों को चाहे कुछ और हो न हो खाने पीने या पीने खाने का शौक अवश्य होता है। किसी के विवाह का निमंत्रण मिला नहीं कि सबसे पहले नजर इस बात पर जाती है कि प्रीतिभोज कब और कहां है। विवाह के आशीर्वाद समारोह में दूल्हा दुल्हन प्रतीक्षा करते रहते हैं कि आप आएं और उनको आशीर्वाद दें परन्तु आप पकवान और मिष्ठान्नों का सेवन करके उनके पिताजी को लिफाफा स्वरूप आशीर्वाद दे कर अपना रास्ता नाप लेते हैं । एक शायर ने कहा है बल्कि वो शायर और कोई नहीं मैंने ही कहा हैं कि ‘ तुम मुबारकबाद दिल से दो या न दो गम नहीं, खाओ दावत दो लिफाफा ये बचा व्यवहार है’।
मान लीजिए यदि निमंत्रण पत्र में प्रीतिभोज का उल्लेख न हो सिर्फ आशीर्वाद देने के लिए ही बुलाया हो तो चन्द इने गिने लोग ही उसमें शरीक होंगे और बाद में बाकी लोग क्षमा याचना उन्हीं कुछ घिसे पिटे पुराने बहानों को लेकर करते मिल जाएंगे जैसे ‘अरे यार एकाएक तबियत खराब हो गई थी‘ या ‘बाहर चला गया था’ अथवा ‘घर पर उसी समय मेहमान आ गए थे’ आदि । इसी शौक के कारण संभवत: हमारी संस्कृति में मनुष्य के जन्म लेने से उसके मरने तक अनेक अवसरों पर चाहे उसका जन्म हो या जन्मदिन हो सगाई हो या शादी हो नौकरी हो या सेवा निवृत्ति या मृत्यु हो अथवा और भी बहुत से मौकों पर खाने पीने की परम्परा का प्रावधान रखा गया है।
यह बात भी उल्लेखनीय है कि बहुत से लोगों को खाने पीने की चीजों के अतिरिक्त और भी बहुत कुछ खाने का शौक होता है जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है ‘रिश्वत’। हालांकि सार्वजनिक स्थल पर इसके खाने पर रोक है किन्तु अत्यन्त स्वादिष्ट होने के कारण कुछ लोग इसको खाए बिना नहीं रह पाते और सार्वजनिक स्थल की जगह सार्वजनिक विभागों में खा लेते हैं। यदा कदा ही इसको खाने के पश्चात कुछ गड़बड़ी की शिकायत पाई गई है वरन इसको खाने के बाद नींद बहुत अच्छी आती है। जिन लोगों की बेटियां विवाह योग्य होतीं हैं वे लोग इसको खाना बहुत पसंद करते हैं।
इसके अलावा लोग ‘जूते’ तथा ‘चप्पलें’ भी खाते हैं । एक ओर जहां जूते पुरूष वर्ग की ओर से खिलाए जाने पर जायकेदार होते हैं वहीं दूसरी ओर चप्पलें महिलाओं के हाथ की स्वादिष्ट होतीं हैं। इनकी उपलब्धता भी बहुत आसान है तथा जजमान की जब इच्छा हो थोड़े से प्रयास से इन्हें खाया जा सकता है।
इसी श्रेणी में ‘पिटाई‘ या ‘मार’ खाने का भी अपना अलग ही महत्व है। पुलिस विभाग द्वारा यह चीज, बडे, आवभगत के साथ लोगों को परोसी जाती है। चोर बदमाश तथा असामाजिक तत्वों को यह खिलाने में उन्हे बहुत आनंद आता है। इनका स्वाद भी लोगों को वर्षों तक याद रहता है।
कुछ लोग दूसरों का ‘दिमाग’ खाने के शौकीन होते हैं।आप इन्हें चाहे कितना भी मना करें उनको आप के दिमाग में इतना अधिक स्वाद मिलता है कि वे इसे खाते ही रहते है।अनेक अवसरों कुछ जोर जबरदस्ती करने के बाद ही वे इसे खाना बंद करते हैं।
‘धूल’ खाना भी अक्सर देखा गया है। इसकी विशेषता यह है कि चाहे जड़ हो या चेतन दोनों इसे खाते रहते हैं। इसे बहुधा लम्बे समय तक पड़े पड़े ही खाया जाता है। इसलिए बहुत सी सरकारी योजनाओं तथा दफ़्तरों में फाइलों को यह पदार्थ अत्यन्त रूचिकर लगता है।
एक और महत्वपूर्ण चीज, है वह है ‘डांट’। इसका स्वाद बहुत कड,वा होता है इसलिए इसे खाना कोई पसन्द नहीं करता परन्तु इसको खिलाने वाले अत्यधिक तादाद में पाए जाते है विशेष कर सरकारी कार्यालयों तथा विद्यालयों में।आपके न चाहते हुए भी वे आपको खिला ही देते है फिर आप की भी इच्छा होती है कि आप भी किसी दूसरे को खिलाएं। इसको खिलाने वालों में अफसरों तथा अध्यापकों की संख्या अधिक होती है तथा वे लोग इसको खिलाते समय अपने आप को बहुत सम्माननीय समझते हैं।
इसी तरह कुछ लोग ‘कसमें’ भी बहुत खाते है। कसमें खाने के लिए राजघाट सर्वश्रेष्ठ जगह है । कसमें खाने के बाद बहुत जल्दी हजम हो जातीं हैं इसलिए उनका स्वाद बहुत समय तक बना नहीं रहता अत: इन्हें थोड़े थोड़े अन्तराल के बाद खाना पड,ता है। भगवान तथा महान नेताओं के नाम से खाई जाने वाली कसमें खाने के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं तथा हर समय हर जगह उपलब्घ हो जातीं हैं। नेताओं तथा प्रेमी प्रेमिकाओं को यह चीज बहुत पसन्द है तथा वे अक्सर इसका सेवन करते रहते हैं।
बेरोजगारों को खाने के लिए जो चीज मुफ़्त में आसानी से उपलब्ध है वह है ‘हवा’ तथा ‘धक्के’ । यह भी सभी जगहों तथा सरकारी और गैर सरकारी कार्यालयों में आसानी से मिल जाती है। अनेक वर्षों तक इसका स्वाद लेते रहने के बाद ही इससे मुक्ति मिलती है । अन्य लोग भी इसे राशन की दुकानों में नल और बिजली के बिल जमा करने के स्थानों में बैंक पोस्ट आफिसों में तथा रेल के रिजर्वेशन आफिस में खाते पाए जाते हैं।
इन सभी खाने वाली चीजों में सबसे महत्वपूर्ण चीज, है ‘पैसा’ । इसकी विशेषता है कि खुद के बनाए हुए पैसे में वो आनन्द नहीं आता जो दूसरों के बनाए हुए पैसे को खाने में आता है इसीलिए सब लोग दूसरों के बनाए पैसे को खाने की फिराक में रहते हैं । बहुत से लोग इसे खाने के बाद डकार भी नहीं लेते है तथा इसे डकार जाते हैं।
देश के किसी हिस्से में किसी विपदा मसलन बाढ़, या सूखा आने पर राहत के लिए आए पैसे का स्वाद बहुत स्वादिष्ट होता है तथा अनेक लोग इसको खाने के लिए लालायित रहते हैं। आजकल इसके खाने वालों की संख्या में तेजी से बॄद्धि होती देखी जा रही है।
खाने की प्रवृत्ति साहित्यिक तथा सांस्कृतिक आयोजकों में भी बहुतायत से पाई जाती है तथा ऐसे लोग कवियों तथा कलाकारों के पारिश्रमिक में से कुछ हिस्सा स्वयं खा जाते है।
कुछ लोग ‘ठण्ड’ खा जाते है इन को खाने वालों में बच्चों तथा बुजुर्गों की संख्या अधिक होती है फिर इसको पचाने के लिए उन्हें गर्मी खिलाई जाती है । जवान उम्र के लोगों को गर्मी खाना अच्छा लगता है। सर्दी के दिनों में लोग धूप भी बहुत खाते है।
इनके अतिरिक्त चारा, सीमेन्ट, लोहा, लकड़ी, दलाली जैसी और भी ढेरों चीजें इस देश में विद्यमान है जिन्हें विभिन्न प्रकार के लोग खाते रहते हैं अगर कमी है तो बस सिर्फ रोटी की जिसे खाने के लिए आज भी लाखों लोग तरस रहे हैं।
ये देश है वीर जवानों का
-शरद तैलंग
इसमें सन्देह की कोई गुंजाइश नहीं है कि हम लोग अक्सर यह भूल जाते हैं कि हमारा देश वीर नौजवानों का देश है और था । हमारे देश में ही राणा प्रताप‚ लक्ष्मीबाई‚ शिवाजी ने जन्म ले कर अपने दुश्मनों के दाँत खट्टे कर के हमारे स्वाभिमान की रक्षा की थी परन्तु आज की पीढ़ी में बहुत से ऐसे नौजवान हैं जब उनको यह बात बताई जाती है कि किस तरह इन महान विभूतियों ने अपने दुश्मनों से लोहा लिया तो वे पूछते हैं कि इतने लोहे का वे क्या करते थे और दाँत खट्टे करने के लिए तो एक नींबू ही बहुत है। उनसे लक्ष्मीबाई के बारे में पूछो तो कहेंगे ‘ हां लक्ष्मीबाई हमारे पड़ोस में झाडू पोंछा करने आती है। राणा प्रताप को वे बहुत अच्छा निशानेबाज, बतायेंगे जिसका पूरा नाम जसपाल राणा है। पी.टी. उषा के लिए वे कहते है कि सुबह उषाकाल के समय में की जाने वाली पीटी को पी.टी. उषा कहते हैं। इससे तन और मन दोनों प्रसन्न रहते हैं। यदि उनसे ‘सूरदास तब विहंसि जसोदा लें उर कंठ लगायो’ का अर्थ पूछो तो वे बतायेंगे कि ‘तब सूरदास ने मुस्कराती हुई यशोदा को अपने गले से लगा लिया’। कबीर के दोहे ‘चलती चक्की देख कर’ के बारे में उनकी राय है कि यह दोहा कवि पाटनदास जी का लिखा हुआ है। इससे भी बढ़ कर एक नौजवान ने तो इस दोहे को कोटा निवासियों को ही चेतावनी देने वाला बताया जिसकी कल्पना कबीर दास ने वर्षों पहले कर ली थी कि यदि तुम दो पाटन के बीच में रहोगे तो साबित नहीं बचोगे अर्थात मुसीबत में रहोगे। ये दो पाटन है केशोवराय पाटन तथा झालरा पाटन।
जब हमने एक नौजवान से पूछा कि क्या तुम्हें मालूम है कि ‘ये देश है वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का’ तो वह बोला ‘ हां अच्छी तरह मालूम है अभी कल ही तो एक बारात में मैंने इस पर खूब डांस किया था’। इस देश में आजकल यदि सबसे सरल काम कोई है तो वह है डांस करना। पहले नृत्य विद्या को सीखने के लिए बडे पापड़, बेलने पड,ते थे परन्तु आज हरेक मां यह कहते मिल जाएगी कि ‘हमारा बबलू बहुत ही अच्छा डांस करता है। वे माताएं जो अपने पुत्रों को युद्ध के मैदान में लड़ने के लिए भेजते समय अपने आप को गौरवान्वित महसूस करतीं थीं आज अपने सुतों को डांस करते देख कर मन ही मन खुशी से फूली नहीं समातीं हैं। अब न तो साज, की आवश्यकता रह गई और न ही साजिन्दों की। अब ये सारे उपकरण सीडी और कैसैटस संस्कृति के तहत हरेक की जेब में पड़े रहते हैं। वीर जवानों का देश आजकल व्याह शादियों में नौजवानों के डांस के काम ही आ रहा है और डांस भी ऐसा जिसे पिचके हुए गाल मरियल से चेहरे तथा अगरबत्ती नुमा टांगों जिस पर जीन्स का आवरण चढ़ा, हो जैसे नौजवानों द्वारा ऐसी ऊलजुलूल हरकतों के रूप में प्रस्तुत किया गया हो जैसे भैरूजी का भाव आ गया हो । यह एक दुखद पहलू है किन्तु सुखद पहलू भी है कि कम से कम एक गीत तो ऐसा बचा है जो आज के नौजवानों को अपने देश में इतने घोटालेबाजों‚ इतने भ्रष्ट लोगों‚ इतने अत्याचारियों के होते हुए भी यह याद दिलाता रहता है कि ‘ये देश है वीर जवानों का’ ।
रचना अच्छी लगी . धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाएँ। शरद जी का व्यंग्य लेखन परवान चढ़ता जा रहा है। वे नियमित लिखते रहें तो और पैना होता जाएगा।
जवाब देंहटाएंसार्थक व्यंग्य।
जवाब देंहटाएं( Treasurer-S. T. )