1 घुटन घुटती हूं मैं जब-जब याद आते हैं वो लम्हे ! चलती राह पर साइकिल लिये जा रही थी अचानक लगा कोई पीछा कर रहा है उस...
1 घुटन
घुटती हूं मैं
जब-जब याद आते हैं वो लम्हे !
चलती राह पर
साइकिल लिये जा रही थी
अचानक लगा
कोई पीछा कर रहा है
उसने अपनी साइकिल
मेरे आगे की ओर कहा
फिल्म देखने चलोगी
मैंने अनदेखा, अनसुना किया
थोड़ी दूरी पाटने के बाद
फिर वही हरकत
मैंने साइकिल आगे निकाली
फूल स्पीड के साथ
टांगें कांप रही थी
हैंडल कस कर पकड़ा
मानो सडक पर
मैं अकेली चली जा रहीं हों
लेकिन उतनी ही स्पीड के साथ
पीछा होता रहा
कब तक आगे निकलती ?
फिर वही हरकत
साइकिल बराबरी पर थी
चलती रही
अंदर एक आग लिए
आग से जलन पैदा हुई
सहन कब तक करती ?
सीधा तमाचा मुंह पर !
नाउम्मीद थी
हड़बड़ाकर, सीधा सडक पर गिरा
दाई और मेन सडक पर
गुजर रही तूफानी कार ने
तुरन्त ब्रेक लगाये
टायर चरमरा गये
एक अनहोनी टल गयी
दोनों ओर से आवाजें आईं
लेकिन दम घुट गया
सड़क पर जमा भीड़ को देखकर
बच गया, बच गया
मर ही गया होता
भगवान का शुक्र है
दूसरा व्हीकल नहीं आ रहा था
बीबी बच्चे बर्बाद होने से बच गए
बेचारा बाल-बाल बचा ।
मैंने भीड़ को देखकर कहा-
बीबी, बच्चों का पेट भरने के लिए
पैसे नहीं होते
राह चलती को फिल्म दिखा रहा है
जवाब मिला-
'तुम्हारा इससे क्या बिगड़ गया
फिल्म दिखाने के लिए ही पूछा था'
तुमने तो इसकी जान ही ले ली थी
भीड़ मेरी नहीं उसी की थी
मैंने साइकिल उठाई
चल पड़ी अपनी मंजिल की ओर
एक घुटन भरा अहसास लिए
घुटती हूं मैं
जब-जब याद आते हैं वो लम्हें !
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विश्वविद्यालय का खुला
हरा भरा वातावरण
रंग-बिरंगे, हरे-भरे फूल
मानो जिन्दगी में
कुछ कर गुजरने का संदेश दे रहे हो
कांटों के बीच खिलना, हंसना सिखा रहे हो
अचानक पीछे कदमों की आहट सुनी
कान के पास फुसफुसाहट आई
कहाँ जा रही हो?
संक्षिप्त सा जवाब-'सैन्ट्रल लाइब्रेरी'
नैट की तैयारी कर रही हो !
दूसरा सवाल , जवाब -'हूँ'
पास होना चाहती हो
वी.सी. का बेटा मेरा दोस्त है
जे.आर.एफ. करवा देगा, अदा से कहा
लालच !
शिकारी, शिकार को फंसाने का
जाल बुन रहा था
गरीबी से जूझती लड़की
टूट गयी, जे.आर.एफ. के लालच में
कहा, जे.आर.एफ. करवा देगा ?
जवाब हाँ में था
चण्डीगढ घर पर जाना होगा
सुबह चलेंगे, शाम को वापिस
लेकिन मेरे पास किराए के पैसे नहीं
वहां तक का किराया बहुत लगता है
मैं दूँगा उधार
सूद सहित वापिस लूँगा ।
पहली बार छात्रावास से बाहर जा रही हूँ
अकेली एक अजनबी के साथ
अन्दर से सहमी, डरी हुई
लेकिन कोई चारा नहीं था
पचास रुपये उधार लिए जो अपर्याप्त थे
स्वाभिमानी भी थी
लेकिन लाचार और मजबूर भी
सुबह बस खाली सड़क पर
भागी जा रही थी
चण्डीगढ आ गया,
लेकिन पता चला आगे जाना पड़ेगा
वह बाहर गया है ।
सोचा,यहां तक आ गये हैं
थोड़ा और सही
चण्डीगड़ से कालका बस में बैठ गये
बस फिर दौड़ने लगी
पूछा, कितनी देर लगेगी पहुंचने में
जवाब मिला आने वाला है
छटपटाहट में खिड़की से बाहर झांका
बाहर घना अंधेरा था
सब कुछ धुंधला सा नजर आ रहा था
अचानक साइन बोर्ड पर ध्यान गया
लिखा था कालका २० किलोमीटर
खतरे की घण्टी बज गयी
चाय-पानी के लिए बस स्टाप पर रुकी
कहा, बहुत प्यास लगी है
पानी पीकर आती हूँ
दूसरी ओर कंडक्टर की आवाज आई
कंडक्टर चण्डीगढ़ - चण्डीगढ़ चिल्ला रहा था
मेरे अन्दर से आवाज आई
अपने आपको बचा लो
इसके चुंगल से बचाओ अपने आपको
एक शक्ति अन्दर महसूस की
भागकर चलती-चलती बस में चढ़ गयी
धम्म से सीट पर बैठ गयी
जैसे खूंखार शेर के मुंह से हिरन
किसी तरह बच निकलता है,
दिल धक्क-धक्क कर रहा था
मानो कलेजा फट जाएगा
लग रहा था शेर अभी भी पीछे दौड़ रहा हो
लेकिन बस सडक पर दौड़ रही थी
नहीं पता था ! आगे का रास्ता कैसे होगा ?
पचास रुपये का टिकट था चण्डीगढ़ का
इसके बाद फूटी कौड़ी नहीं थी
मंजिल तक पहुंचने के लिए
चण्डीगढ़ पहुंची
बस स्टैण्ड पर खड़ी सोचती रही
क्या करुं ?आगे कैसे जाऊं ?
कुछ समझ नहीं आया
बस में बैठ गयी,
एक सुन्दर जवान लड़के के पास
कहा, मेरा पर्स चुरा लिया है
मुझे भी टिकट लेनी है
उसने मेरी टिकट ले ली
आंखों में लालच की बू थी
इसके अलावा कोई चारा नहीं था
दोबारा मिलने का झांसा दिया
तीर निशाने पर लगा
और चल पड़ी अपनी मंजिल की ओर
एक घुटन भरा अहसास लिए
घुटती हूँ मैं
जब-जब याद आते हैं वो लम्हे !
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चिलचिलाती धूप में
भूख-प्यास से दम निकला जा रहा था ।
कंकड़-पत्थरों से टकराते हुए
गंतव्य स्थल तक जाने को
दिल बेचैन था
पांव पूरे शरीर को घसीटते हुए लिए जा रहे थे
आखिर गर्मी से थोड़ा निजात पाने का जरिया मिला
सामने घनी छांव में खड़े लोग
बस का इन्तजार कर रहे थे
उस भीड़ में मैं भी शामिल हुई
सामने गुजरते हुए काले-काले अंगूर
रेहड़ी की शोभा बढ़ा रहे थे
मुंह में पानी आ रहा था
जीब अंगूर का स्वाद
चखने को बेताब थी
अंगूर खरीदकर खाने की गुंजाइश
जेब में नहीं थी
पांव अपने आप रेहड़ी की ओर बढ़ गये
पूछा, अंगूर कैसे दिए
सोलह रुपये पाव, जवाब मिला
सोलह से कम नहीं हो सकते
जवाब नहीं में मिला
अच्छा एक खाकर देखूं
दो अंगूर उठाये, मुंह में डाल लिए
जीभ की इच्छा पूरी हुई
कहा नहीं, मीठे नहीं है
कहकर चल पडी
पीछे से जवाब मिला
उम्र ही कुछ ऐसी है जो...
मैं कुछ नहीं कह सकी
और चल पड़ी
अपनी मंजिल की और
एक घुटन भरा अहसास लिए
घुटती हूँ मैं
जब-जब याद आते हैं वो लम्हे !
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2. आम की फांक
रेहड़ी वाले ने पुकारा-
आम ले लो आम
मीठे-मीठे आम
पके हुए आम
लँगड़ा आम ले लो
दरवाजे में
चौखट के पास
बिछी हुई
खाट (चारपाई) पर
बैठा हुआ
छोटी, बड़ी लड़कियों का झुण्ड
रेहड़ी वाले की आवाज को सुनकर
बडे प्यार से
इत्मीनान से
प्यासी-प्यासी नजरों से
निहारता है
कभी आम वाले को
तो कभी
रेहड़ी में पड़े आमों को
जी मचल उठता है
ललचाई आंखें
ठहर जाती है
रेहड़ी पर रखे आमों पर
सभी एक-दूसरे के मुंह की ओर
ताकती हैं
आंखे आपस में टकराती है
मनों एक ही मंजिल हो
एक ही चाहत हो
एक ही प्यास हो
बस सिमट जाती है
सारी इच्छाएं
सारे सपने आमों पर
इतने पैसे किसी के पास
है नहीं
आम खरीदकर खा सके
दो जून रोटी
बामुशक्कत मिलती हो
आम का स्वाद
बडे दूर की बात है ?
सबकी आंखें
एक-दूसरे को ढाढ़स
सा देती है,
मानो बचपन में ही
सीख लिये हों
सपनों को
समेटने के तरीके
अनाज मण्डी से
चिलचिलाती
तपती धूप में
हाथों में झाडू
सर पर अनाज की
गठरी लिए
माँ
दरवाजे की चौखट पर
पाँव रखती है
खिल उठते हैं
सभी के चेहरे
कीचड़ में पैदा हुए
कमल के फूलों की तरह
मन मांगी मुराद
मानो पूरी हो गयी हो
बड़ी लड़की
अपने हाथों से सहारा
देती है
गठरी उतारने में
और छोटी
घड़े में से ठण्डा पानी
लाकर देती है
अपनी माँ को
खुशी-खुशी चहक उठती है
लड़कियाँ
रंग-बिरंगी
आकाश में उड़ती
तितलियों की तरह
एक बार फिर कहीं
दूर किसी गली से
आवाज कानों से
टकराती है
आम ले लो आम
मीठे-मीठे आम
पके हुए आम
लंगडा आम ले लो
कोई माँ
कोई ताई
कोई मौसी
कहकर चिल्लाती है
आम लाकर दो
आम लाकर दो...।
और माँ
गठरी खोलकर
कुछ अनाज
उनकी झोली में डालकर
दे देती है आम के लिए
अपनी प्यारी-प्यारी बेटियों को
सारी थकान काफूर
हो जाती है
उन खिले हुए
चेहरों को देखकर ।
अनाज को लेकर
लड़कियाँ
खरीद लाती है
एक आम
इकलौता आम
और माँ
बडे प्यार से
ममता का हाथ
सिर पर फेरकर
सबको बराबर-बराबर
दे देती है
चाकू से काटकर
छोटी-छोटी
आम की फांक ।
3. जीवन
जीवन तो है नाम एक ऐसी परिभाषा का
जिसमें आवागमन रहता आशा और निराशा का
निराशा को गले लगा आशा संग जिसने झेला है
सच मानो तो सच हुई उसकी यह जीवन बेला है ।
मीठा जीवन कड़वा जीवन, जीवन के कई रंग है
दुखों से तुम मत घबराना सुख भी आते संग है
धैर्य रख जीवन में जिसने दुखों को बाहर धकेला है
सच मानो तो सच हुई उसकी यह जीवन बेला है ।
तारों का अनुशासित रहना हमको यही सिखाता है
जीवन में मर्यादा हो तो सम्मान स्वयं मिल जाता है
घर-आंगन में लग जाता फिर तो खुशियों का मेला है
सच मानो तो सच हुई उसकी यह जीवन बेला है ।
बचपन यौवन और बुढ़ापा जीवन के ये अंग है
हर अंग में जीवन को जीने की नई उमंग है
उन उमंगों में जिसने रंगा मन का चेला है
सच मानो तो सच हुई उसकी यह जीवन बेला है ।
जन्म हुआ यदि जीवन का फिर मृत्यु भी तो आएगी
कितना भी बचा लेना पर लेकर तुमको जाएगी
पर संघर्ष करके हंसते-हंसते छोड़ा जिसने दुनिया का झमेला है
सच मानो तो सच हुई उसकी यह जीवन बेला है ।
4. अस्मत
हे ईश्वर ! तेरे सत्य और शक्ति को
अब मैं जान गई हूँ
तेरी दलाली और कमीनेपन को भी ।
शुक्र है तू कहीं नहीं है
केवल धंधे का ट्रेड नेम है
अगर सचमुच तू कहीं होता
तो सदियों की यातना का हिसाब
मैं तुझसे जरुर चुकाती ।
जिस तरह से हमने धिक्कार सहे
जालिमों के अत्याचार, अनाचार सहे
अपने शरीर पर लगे दाग सहे
भूख से तड़पते, कुचलते बाल सहे
अगर सचमुच तु कहीं होता
मैं तुझे दिखाती,
आकर देख
कैसे रोती है अस्मत ?
कैसे रोती है अस्मत ?
5. बेबसी
मैं आगे बढ़ने की तमन्ना करती हूं
क्यूं पांव मेरे पीछे ले जाते हैं
मैं हंसने की तमन्ना करती हूं
क्यूं आंसू मेरे छलक आते हैं
मैं चाहती हूं बयां करुं अपना अस्तित्व
क्यूं लेखनी मेरी कतराती है
दम घुटता है गमों को पीने से
क्यूं दर्द होंठों पर आकर ठहर जाता है ।
6. बेरी का पेड़
कैसी है जिन्दगी मेरी
ठीक बेरी के पेड़ की तरह
जो बीच चौराहे पर सीधी खड़ी
आने-जाने वाले राहगीरों को
चुपचाप देखती है
कभी तो सावन की फुहार पाकर
झूम उठती है
कभी बसन्त आने पर झड़ जाती है
जिन्दगी सफलता पाकर
अपने क्षैतिज को पा लेती है
खिल उठती है साकार सफलता से
लेकिन ...
जब टूटती है
बडे-बडे पहाड़ों को खाई बनते देर नहीं लगती
उस क्षण
जिन्दगी झड़ जाती है
बेरी के पेड़ की तरह ।।
खिल उठती है साकार सफलता से
लेकिन....
जब टूटती है
बडे-बडे पहाड़ों को खाई बनते देर नहीं लगती
उस क्षण
जिन्दगी झड़ जाती है
बेरी के पेड़ की तरह ।।
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सम्पर्क -
डॉ. कौशल पंवार
सहायक प्राध्यापक,
मोतीलाल नेहरू कालेज
दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
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चित्र – रेखा की कलाकृति – कागज पर स्याही से रेखांकन
बेहतर रचना । आभार ।
जवाब देंहटाएंये आप बीती घुटन तो ऐसी लगी की मेरे भी पैर कांपने लगे.कविता पढ़ कर ऐसा लगा जैसे आपने लड़कियों की कितनी जिंदगियों को जिया है
जवाब देंहटाएंSaarthak rachnaayen.
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