पवित्रता के नैसर्गिक और औषधीय गुणों से युक्त आस्था की प्रतीक गंगा विश्व की किसी भी सभ्यता एवं संस्कृति से आगे है...
पवित्रता के नैसर्गिक और औषधीय गुणों से युक्त आस्था की प्रतीक गंगा विश्व की किसी भी सभ्यता एवं संस्कृति से आगे है क्योंकि गंगा अपने गुणों के कारण गंगा कहलाती है, इसमें कितनी ही नदियां मिलकर इसके अस्तित्व को समाप्त नहीं कर सकीं बल्कि इसमें मिलकर अपना अस्तित्व एकाकार करके गंगा सागर हो गयीं।
विश्व की किसी भी संस्कृति-सभ्यता ने अपनी किसी नदी को गंगा जैसा प्यार, दुलार एवं सम्मान नहीं दिया है। भारतीय परिवेश में यहाँ गंगा धरती में है आकाश में है लेकिन वर्तमान में यह केवल पुराणों एवं महाकाव्यों की उक्ति ही लगती है। अब इक्ष्वांकुवंशी भागीरथ के कठिन एवं सतत कर्म की प्रतीक भागीरथी आज अपने ही लोगों द्वारा तिस्कृत, बहिष्कृत एवं प्रदूषित हो रही है। आज गंगाजल में प्रदूषण बढ़ाने वाले तत्वों में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। औद्यौगिक सभ्यता एवं भौतिकता की अंधी दौड़ ने गंगा को कचरा पेटी के रुप में परिवर्तित कर दिया है। इसके कारण गंगा दिन-प्रतिदिन कलुषित होती जा रही है। गंगा में व्याप्त गन्दगी की हालत यह है कि इसमें वास कर रहे जलीय जीव-जन्तु बेचैन हैं, उन्हें सांस लेने के लिए पर्याप्त आक्सीजन नहीं मिल पा रही है। आक्सीजन की कमी के कारण जलीय वनस्पतियों का भी विकास नहीं हो पा रहा है। वहीं दूसरी ओर गंगा में स्नान करने वालों की त्वचा में अनेक तरह के चर्मरोग हो रहे हैं। यह प्रदूषित जल कई तरह के संक्रामक रोगों का संवाहक बनता जा रहा है।
वर्तमान समय की स्थिति को देखते हुए आज वैद्यनाथ धाम हरिद्वार, कानपुर, इलाहाबाद (प्रयाग), वाराणसी (काशी), गाजीपुर, बलिया समेत बिहार राज्य से जहाँ भी गंगा गुजरती है वहाँ विभिन्न शोधों के आधार पर यह प्रमाणित हो चुका है कि गंगा के पानी में हानिकारक रसायन गंगा के अनोखे नैसर्गिक औषधीय गुणों को नष्ट कर रहे हैं। इसके पीछे प्रमुख कारण हैं कि गंगा के तटवर्ती इलाकों में बसे शहरों का हजारों टन जैविक एवं औद्योगिक अवशिष्ट बिना किसी शोधन संयंत्र से गुजरे प्रतिदिन सीधे नदी में प्रवाहित हो रहा है। जिसका परिणाम यह हुआ है कि जल का पी.एच.मान, बी.ओ.डी. तथा सी.ओ.डी. का स्तर, घुलित आक्सीजन की मात्रा, जल की कठोरता तथा पारदर्शिता मानक के अनुरुप नहीं रह गये हैं। आज स्थिति यह है कि गंगा का पी.एच.7.69 से 8.13 के बीच, एसएस-155 से 469 एम जी/1, डीओ-740 से 1145 एमजी/1, सीओडी-208 से 480 एमजी/1, सल्फेट 14 से 18एम.जी/1, बीडीओ 136 से 340 एम.जी/1, ए.सी.सी.ओ. 428 से 688 एम.जी/1 तथा सल्फेट 4 से 6 एम.जी/1 तक पहुँच गया है। इसी तरह मुक्त कार्बन डाई आक्साइड चार मिली ग्राम प्रतिलीटर के सापेक्ष कई स्थानों पर 10 मिली ग्राम प्रतिलीटर तक पहुँच रही है। अपमिश्रणों की वजह से नदी के जल की पारदर्शिता, जल की कठोरता आदि में भी भारी इजाफा हुआ है। इसके साथ ही जल में घुलित फास्फोरस व नाइट्रेट्स की मात्रा में भी मानक से कई गुना वृद्धि हो गई है जो इसमें स्नान करने वालों के लिए हानिकारक साबित हो रही हैं।
आज से बाईस वर्ष पूर्व 14 जून 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने वाराणसी के राजेन्द्र घाट से गंगा कार्य योजना की शुरुआत की थी। यह सामान्य बात नहीं कि इन 22 वर्षों से अधिक समय में 13अरब रुपये से अधिक पानी की तरह पानी में बहा दिए गये, लेकिन जीवन दायी गंगा के पानी की गुणवत्ता में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। गंगा एक्शन प्लान (प्रथम एवं द्वितीय)े क्रियान्वयन एवं रख-रखाव व बजट की कमी तथा भ्रष्टाचार की वजह से असफल हो गये हैं। केन्द्र के पास धन की कोई कमी नहीं है इसके लिए जरुरत है अच्छे प्रबंधन एवं दृढ़ इच्छा शक्ति की प्रवलता की। उदाहरण के रुप में पश्चिमी देशों की महत्वपूर्ण नदियां, थेम्स, राइन, डेन्यूब ब्राजील की एमजोनिया और अमेरिका की मिसीसिपी भी भारत की गंगा की तरह औद्योगिक कचरे की बजह से प्रदूषित थीं। वहाँ की सरकारों ने एक रणनीति बनाकर इन्हें प्रदूषण मुक्त करने में सफलता पा ली है। तो भारत यह कार्य क्यों नहीं कर सकता है? देश की जीवनरेखा, पवित्रता की नैसर्गिक और औषधियों से युक्त तथा आस्था के प्रतीक गंगा को अब प्रदूषण से मुक्त कराने के लिए गैर सरकारी संगठनों एवं धन सत्ता से जुड़े व्यक्तियों ने जोर अजमाइश शुरू कर दी है। जिसमें प्रमुख रुप से वैज्ञानिक योग गुरु रामदेव जी महाराज, साध्वी ऋतंभरा, स्वामी चिदानंद जी सरस्वती, हंसराज जी, राष्ट्रीय स्वाभिमान दल, राष्ट्रीय पानी मोर्चा, सिटीजन फॉर वाटर डेमोक्रेसी के अलावा अन्य धर्मों के लोग भी मोक्षदायिनी गंगा को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए सक्रिय हुये हैं। ये बात ठीक है कि पिछले कुछ वर्षों में राज्य सरकारें गंगा को प्रदूषण से मुक्त कराने में रुचि ले रहीं हैं। पर गंगा के साथ-साथ प्रशासन तंत्र एवं धर्म सत्ता से जुड़े लोग अन्य छोटी-छोटी नदियों के प्रदूषण मुक्त की ओर भी प्रयास करें तभी हम पुराने वैदिक स्वरूप को प्राप्त कर सकते हैं। वर्तमान में आवश्यकता यह है कि नष्ट होती इस विरासत को आज अक अदद भागीरथ की तलाश है। जो इसके तर्पण, अर्पण, और समर्पण वाले गुणों को लौटा सके।
---
युवा साहित्यकार के रूप में ख्याति प्राप्त डाँ वीरेन्द्र सिंह यादव ने दलित विमर्श के क्षेत्र में ‘दलित विकासवाद ' की अवधारणा को स्थापित कर उनके सामाजिक,आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया है। आपके पांच सौ से अधिक लेखों का प्रकाशन राष्ट्र्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की स्तरीय पत्रिकाओं में हो चुका है। दलित विमर्श, स्त्री विमर्श, राष्ट्रभाषा हिन्दी में अनेक पुस्तकों की रचना कर चुके डाँ वीरेन्द्र ने विश्व की ज्वलंत समस्या पर्यावरण को शोधपरक ढंग से प्रस्तुत किया है। राष्ट्रभाषा महासंघ मुम्बई, राजमहल चौक कवर्धा द्वारा स्व0 श्री हरि ठाकुर स्मृति पुरस्कार, बाबा साहब डाँ0 भीमराव अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान 2006, साहित्य वारिधि मानदोपाधि एवं निराला सम्मान 2008 सहित अनेक सम्मानो से उन्हें अलंकृत किया जा चुका है। वर्तमान में आप भारतीय उच्च शिक्षा अध्ययन संस्थान राष्ट्रपति निवास, शिमला (हि0प्र0) में नई आर्थिक नीति एवं दलितों के समक्ष चुनौतियाँ (2008-11) विषय पर तीन वर्ष के लिए एसोसियेट हैं।
संपर्क: एसोसियेट- भारतीय उच्च शिक्षा अध्ययन संस्थान राष्ट्रपति निवास, शिमला (हि0प्र0)
"वर्तमान में आवश्यकता यह है कि नष्ट होती इस विरासत को आज अक अदद भागीरथ की तलाश है। जो इसके तर्पण, अर्पण, और समर्पण वाले गुणों को लौटा सके।"
जवाब देंहटाएंसुन्दर आलेख।
बधाई।