यशवन्‍त कोठारी का व्यंग्य - दामाद: एक खोज

SHARE:

अपनी साली की शादी में जाने का मेरा कोई विचार ही नहीं था। सोचता था कि पत्‍नी अपनी दोनों बच्‍चियों को लेकर चली जाएगी और सब काम सलटा क...

अपनी साली की शादी में जाने का मेरा कोई विचार ही नहीं था। सोचता था कि पत्‍नी अपनी दोनों बच्‍चियों को लेकर चली जाएगी और सब काम सलटा कर आ जाएगी। मगर पत्‍नी का आग्रह बड़ा विकट था; आग्रह क्‍या, आदेश ही था दोनों लड़कियाँ जवान हो गई हैं और उनके लिए दूल्‍हा ढूँढने का यह एक स्‍वर्णिम अवसर था। आखिर मैंने हार मानी और साथ जाने के लिए कार्यालय से छुट्‌टी ले ली। जी․पी․एफ․ से कुछ ऋण लिया, साली की लड़की के लिए एक अच्‍छा सा गिफ्‍ट लिया और चल पड़ा साली की लड़की की शादी के साथ-साथ अपनी लड़कियों के लिए भी दामाद की खोज करने।

दामाद की खोज में मेरी इकलौती साली को महारत हासिल थी। आखिर उसने अपनी दोनों बच्‍चियों के लिए अच्‍छे-से अच्‍छा वर ढूँढा था। वर-वधू, विवाह और विवाह के लिए घर-परिवार, मित्रों, परिचितों, रिश्‍तेदारों में विज्ञापन करने का मौका साली जी नहीं छोड़ती थीं और इसी का परिणाम था कि एक-से-एक अच्‍छे रिश्‍ते आते चले गए, वह छाँटती चली गई और अंत में सर्वगुण-संपन्‍न दामाद पाने में सफल हुई। पत्‍नी भी आखिर में अपनी बड़ी बहन की शरण में दामाद खोजने हेतु आ गई। साली की शरण में मैं भी चला गया, ताकि अपनी सुंदर-सुशील सुताओं के लिए हैंडसम, प्रोफेशनल तथा कमाऊ दामाद ढूँढ सकूँ।

दामाद की खोज करने के लिए मुझे पत्‍नी ने कुछ टिप्‍स बताए। सालीजी ने भी इन टिप्‍स को सही किया और सालीजी की लड़की की शादी के बाद इस खोज कार्यक्रम को जारी रखने का निर्णय लिया गया।

साली की लड़की की शादी में दूर-पास के सब रिश्‍तेदार आए थे। बिरादरी में साली के परिवार की बड़ी पूछ थी, सो शहर के नामी व्‍यापारी, अफसर, छुटभैया नेता सभी आए थे। बिरादरी के लोगों में मैंने भी बहनोईजी की मार्फत अपनी बच्‍चियों के बायोडाटा इधर-उधर करने शुरू किए। प्रारंभ में लोगों ने औपचारिकता का निर्वाह किया।

‘‘ज्‍यों ही आपकी बच्‍ची के लायक कोई लड़का निगाह में आएगा, तुरंत आपको खबर कर देंगे।'' एक अन्‍य सज्‍जन बोले।

‘‘आजकल दहेज की बात तो समाप्‍त हो गई है, मगर कन्‍या यदि कामकाजी हो तो बेहतर रहता है।''

मैंने भी उनकी हाँ-में-हाँ मिलाते हुए कहा,‘‘ प्रोफेशनल है, जॉब मिलने में कोई दिक्‍कत नहीं आएगी। बस, एक बार बात पक्‍की हो जाए तो जॉब दिला देंगे।''

‘‘तो फिर ठीक है, जहाँ कहीं बात जमेगी, मैं आपको सूचित कर दूँगा।''

इधर मेरी पत्‍नी ने जनवासे-बरात से लगाकर दूर-पास के सभी रिश्‍तेदारों में अपनी लड़कियों के गुण गाने शुरू कर दिए-‘‘लड़कियाँ पढ़ी-लिखी हैं, एक एम․बी․ए․ तो दूसरी इंजीनियर हैं। सो आप निश्‍चिंत रहें।''

महिलाओं ने तुरंत कहा, ''प्रोफेशनल हैं, ये तो अच्‍छी बात है; मगर कहीं जॉब करा दें तो ठीक रहेगा। आजकल दोनों के कमाने का जमाना है। नई पीढ़ी डिंक होती है।''

‘‘डिंक माने क्‍या ?''

‘‘डिंक माने डबल इन्‍कम नो किड।''

‘‘अच्‍छा, वो क्‍यों ?''

‘‘कैरियर के लिए बच्‍चों की आवश्‍यकता नहीं। कैरियर ही सबसे बड़ी बात है।'' एक महिला ने जानकारी दी।

बातचीत शादी से शुरू होकर शादी पर खत्‍म हो जाती। साली की लड़की की शादी आराम से हो गई। रिश्‍तेदार अपने-अपने घर चले गए। एकांत में पत्‍नी ने दीदी से पूछा, ‘‘दीदी, ये तो बताओ कि इतनी सुंदर जोड़ी तुमने जमाई कैसे ?''

‘‘अरे छोटी, बड़े पापड़ बेले हैं मैंने। इनके भरोसे रहती तो यह काम भी ढंग से नहीं होता। इन्‍होंने तो केवल बजट की स्‍वीकृति दी है, बाकी सब काम-काज मैंने ही निपटाया है।''

‘‘अच्‍छा, वो कैसे ?''

‘‘पहले लड़की का बायोडाटा बनाया, रिश्‍तेदारों को भेजा। जवाब नहीं आया। अखबार में विज्ञापन दिया। जो रेसपोंस आए, उनको एक-एक करके प्रयास किए। कुछ हमें नहीं जमे, कुछ उन्‍हें। फिर लड़की ने इंटरनेट पर भी बायोडाटा दिया। दूल्‍हा-दुलहन डॉट काम, शादी डॉट कॉम, मेट्रिमोनियल डॉट कॉम, जैन टू-जैन डॉट कॉम और कई साइटों पर बायोडाटा चला दिए। इन स्‍थानों से रेसपोंस जल्‍दी आए।''

‘‘फिर ?''

‘‘इनमें से कुछ फर्जी निकले, कुछ काम के नहीं थे। विदेशों से आए रेसपोंस की जाँच जरूरी थी, अतः हमने पहले देशी स्‍थानों पर ही प्रयास किए। लड़के वाले समझदार थे। जल्‍दी ही बातचीत शुरू कर दी। लड़का हमें पसंद आ गया, उन्‍हें लड़की पसंद आ गई। आखिर इंजीनियर लड़की वेतन बीस हजार रुपए मासिक कैसे पसंद नहीं आती !''

दीदी हँसने लगी।

‘‘हाँ, आज नहीं तो कल। दामाद की खोज के लिए यह सब आवश्‍यक हो गया है। अब पहले वाला जमाना तो रहा नहीं कि सेवक, नाई, पंडित सगाई लेकर जाएँ। अब तो इन्‍हीं साधनों का सहारा लेना पड़ता है। एक बात और आजकल लड़कियों की कमी है। अपनी बिरादरी में दस लड़कों पर सात लड़कियाँ हैं और अच्‍छी लड़कियाँ चार से पाँच होती है। ऐसी स्‍थिति में समाज ने दान-दहेज का नाम लेना बंद कर दिया है।''

‘‘वो तो ठीक हैं दीदी, मगर अच्‍छे लड़के भी तो कम हैं!''

‘‘कम हैं, मगर मिल जाते हैं। खोज करते-करते कोलंबस कहाँ-से-कहाँ पहुँच गया!''

‘‘दीदी, ठीक है। हमारे कोई लड़का तो है नहीं, सो हम तो इन्‍हीं दो लड़कियों की शादी के लिए दामाद ढूँढ रहे हैं।'' मैंने कहा।

साली बोल पड़ी, ‘‘दामाद-और अपनी पसंद का दामाद ढूँढना मुश्‍किल तो है, लेकिन असंभव नहीं। सर्वप्रथम आप अपनी पसंद निश्‍चित कीजिए।

‘‘पसंद मतलब ?'' पत्‍नी ने गंभीरता से पूछा।

‘‘आप कैसा दामाद चाहते हैं ?''

‘‘दामाद कैसा भी हो, चलेगा।''

‘‘नहीं, यह बात ठीक नहीं है। दामाद के विषय में आपकी चॉइस बिलकुल साफ होनी चाहिए, तभी आप मंजिल तक पहुँच सकेंगे।''

‘‘हाँ, हमारी चॉइस साफ है। लड़का सुंदर-गोरा हो, जो अपने पाँवों पर खड़ा हो।''

‘‘और घर-बार ?''

‘‘वह भी ठीक ही होना चाहिए।''

‘‘तो अब आपकी इच्‍छा का दामाद ऐसा होगा-सुंदर-गोरा, जो अपने पाँवों पर खड़ा हो। नौकरी या व्‍यवसाय करता हो।''

‘‘हाँ, और बड़ा दामाद कम-से-कम इंजीनियर बड़ी लड़की इंजीनियर है और छोटी के लिए भी प्रोफेशनल लड़का ही ठीक रहेगा।'' मैंने कहा।

‘‘तो आपकी खोज के पैरामीटर तय हो गए हैं-अर्थात्‌ आपको जो लड़के चाहिए, उनकी रूपरेखा आपके दिमाग में स्‍पष्‍ट हो गई है। अब अपनी बिरादरी में नजर दौड़ाइए और इस योग्‍यता के लड़के देखिए। यदि नहीं हैं तो अखबार में विज्ञापन दीजिए। बायोडाटा भेजिए-मँगवाइए और देखिए, शीघ्र ही काम शुरू कर दीजिए।''

‘‘दीदी, कुंडली, शनि, मंगल का चक्‍कर ?''

‘‘ये सब छोड़ो, आजकल शनि-मंगल का जमाना नहीं है, कर्म पर विश्‍वास रखने का जमाना है। अपने पिताजी ने भी कुंडली नहीं मिलाई, फिर भी हम सब सुखी हैं और जीवन आनंद से बीत रहा है।''

मैं पत्‍नी के साथ वापस लौट आया। दफ्‍तर जाने लगा। दोनों लड़कियाँ पढ़ाई में व्‍यस्‍त थीं। पत्‍नी सुबह-शाम मुझे कोंचती थी। दीदी का दिया हुआ ज्ञान हमारे पास था। हम दामाद की खोज में एक सीढ़ी पार कर चुके थे। बिरादरी में पढ़े-लिखे कम थे, नौकरियाँ थी नहीं, व्‍यापार-व्‍यवसाय लड़कों के बापों के नाम थे। लड़के कम ही थे, जो होशियार थे। इधर, बच्‍चियों की उम्र भी बढ़ रही थी।

मैंने राष्‍ट्रीय अखबारों में विज्ञापन दिए। काफी बायोडाटा आए। उन्‍हें छाँटा। हम दोनों लड़का देखने निकले।

एक स्‍थान पर लड़के के पिता ने स्‍पष्‍ट रूप से दहेज की माँग रख दी। हम लड़का देखे बिना ही चल दिए। दूसरे स्‍थल पर लड़के की हाइट बायोडाटा के हिसाब से कम थी। उसी शहर में एक अन्‍य लड़के की योग्‍यता लिखे अनुसार नहीं थी। एक लड़के के पिता ने लड़की की मार्कशीट की माँग की।

पत्‍नी बोली, ‘‘आप शादी लड़की से करेंगे या मार्कशीट से ?''

‘‘वो तो ठीक है बहनजी, मगर सब चीजों की जानकारी आवश्‍यक है, बाद में टेंशन ठीक नहीं रहता है।''

हम फिर आगे चले।

एक लड़के के पिता ने कहा, ‘‘आपकी बच्‍ची की सभी योग्‍यताएँ ठीक हैं, बस हाइट जरा कम है।''

पत्‍नी ने फिर कहा, ‘‘ हाइट से क्‍या होना-जाना है। आजकल ऊँची एड़ी की सैंडिल पहनने से जोड़ी ठीक लगती है।''

मगर लड़के के पिता नहीं माने। वे चाहते थे कि एड़ी के नीचे नोटों की गड्‌डी रखकर हाइट बढ़ाई जाए।

हम दामाद की खोज में आगे बढते गए। शहर-दर-शहर, कॉलोनी-दर-कॉलोनी, गाँव-दर-गाँव, कस्‍बा-दर-कस्‍बा हम चलते रहे। मंजिल का कहीं पता न था।

जॉन आस्‍टिन का उपन्‍यास ‘प्राइड ऐंड प्रिंज्‍यूडिस' मैने इस दौरान दो बार पढ़ा। विक्रम सेठ का ‘ए सुटेबल बॉय' भी पढ़ा। भारतीय संस्‍कृति में घर-परिवार की व्‍यथा-कथा भी देखता चला गया।

एक स्‍थान पर लड़की की उम्र लड़के से ज्‍यादा निकली। लड़के वाले तैयार थे, मगर मेरी बच्‍ची ने मना कर दिया। वास्‍तव में मैं और पत्‍नी भी इस बेमेल विवाह के लिए तैयार नहीं थे। वे लड़की की कमाने की योग्‍यता से प्रभावित थे, मगर बात बनी नहीं।

इंटरनेट पर शादी के लिए जो विवरण भेजे गए थे, उनमें से कुछ विदेशी विवरण थे। इनमें से अधिकांश लोग जल्‍दी ही भारत आकर शादी करने को इच्‍छुक थे। कुछ परमवीर शादी के तुरंत बाद वापस जाना चाहते थे। कुछ मित्रों ने बताया कि इन विदेशियों का भरोसा नहीं, कुछ एक बार वहाँ शादी कर चुके होते हैं, कुछ वीजा, ग्रीनकार्ड व कानूनी पेचीदगियों के कारण शादी का नाटक करते हैं। उनसे बचने में ही भलाई है। मैं समझ गया कि विदेशी दामाद की खोज करना बेकार है।

देशी दामादों की ओर पुनः ध्‍यान देना शुरू किया। कुछ अच्‍छे प्रपोजल अखबारी दुनिया से आए थे। ये भावी दामाद आस-पास के थे, सभी पढ़े-लिखे थे, बस रोजगार का मामला जरा कच्‍चा था। इनके पिता उच्‍च पदों पर थे, मगर लड़कों को नौकरी दिलाना मुश्‍किल काम था।

एक लड़के के पिता ने मुझसे कहा, ‘‘दान-दहेज नहीं चाहिए। आप तो भावी दामाद को किसी सरकारी, गैर-सरकारी स्‍वयंसेवी संस्‍था में घुसा दें।'' मगर यह छोटी सी शर्त बहुत बड़ी थी।

एक अन्‍य भावी समधी ने कहा, ‘‘आपकी लड़की कमाएगी और लड़का घर सँभाल लेगा।'' मगर मेरी छोटी लड़की ने इस प्रस्‍ताव को सिरे से ठुकरा दिया।

खारिज प्रस्‍तावों की एक बड़ी फाइल बन गई थी। बायोडाटा की फाइल से मैं रोज नए प्रस्‍ताव निकालता। पत्‍नी-बच्‍चियों से चर्चा करता और सिंदबाद की नई यात्रा हेतु निकल पड़ता।

लड़कियाँ अपनी पढ़ाई के अंतिम दौर में थीं। शीघ्र ही उनकी नियुक्‍ति की संभावना थी। मैं और पत्‍नी चाहते थे कि शीघ्र ही इनके हाथ पीले हो जाएँ तो गंगा नहाएँ; मगर बात बन ही नहीं रही थी।

इस बार मैंने कुछ ऐसे लड़के छाँटे, जो मध्‍यम वर्ग के नौकरी-पेशा वाले थे। ये बड़े शहरों में सेट होने के लिए कस्‍बों से आए थे। एक लड़के ने स्‍पष्‍ट कहा, ‘‘अंकलजी, बहन की शादी के बाद ही इस मैं विचार करूँगा।'' एक अन्‍य लड़का भी इसी प्रकार की परेशानी से लड़ रहा था।

लड़के देखने के इस दौर में मुझे कुछ लोगों ने सलाह दी कि यदि आपके घर में एक लड़का भी हो तो बहू को साथ ही ढूँढ लो तथा यदि बहू ठीक मिल जाए तो दामाद ढूँढने में आसानी हो सकती है; मगर हमारे लिए यह संभव नहीं था। दोनों लड़कियों के लिए भावी दामाद ही हमारे लड़के होने वाले थे। एक लड़का घरजमाई बनने को तैयार था, मगर इस बार भी लड़की ने मना कर दिया।

एक भावी दामाद लड़की देखने घर आया। लड़की से बातचीत के बाद बोला, ''अंकल, मेरी सैलेरी काफी कम है और प्राइवेट सर्विस है, कभी भी छूट सकती है।''

इस जानकारी के बाद लड़की ने फिर मना कर दिया। इधर, हम सामूहिक विवाह और परिचय सम्‍मेलन में भी गए, मगर परिणाम वही-ढाक के तीन पात ! जो अच्‍छे घर-परिवार थे, वे वहाँ पर जाते ही नहीं थे; जो दूसरे दर्जे के लोग थे, वे कामकाजी-पढ़ी-लिखी नहीं, घरेलू दुलहन चाहते थे।

दामाद की खोज में मेरे हाथ-पाँव अब ठंडे होने लगे थे। इस संपूर्ण कार्यक्रम के कारण घर-परिवार, नाते-रिश्‍ते, मित्र-परिचित पीछे छूट रहे थे। मैं, पत्‍नी और बच्‍चियाँ कभी-कभी उदास हो जाते। कभी अपनी बात सँभालने के लिए कहते, ‘योग आते ही सब ठीक हो जाएगा।'

‘‘क्‍या करें, योग ही नहीं है ?''

‘‘इस सीजन में जरूर सब ठीक हो जाएगा।''

वर्षा बीती। शरद आई। दीपावली आई-गई। अब शादियों के नए सीजन शुरू हो गए थे। हमें पूरी उम्‍मीद थी कि इस नए सीजन में हमें हमारे दामाद मिल जाएँगे और दामादों की हमारी खोज पूरी हो जाएगी।

नए सीजन में हमारे यहाँ भी शहनाई बजेगी। बारात आएगी। इसी आशा में मैंने इस बार कंप्‍यूटर पर स्‍वयं पत्र-व्‍यवहार किया। लड़के पड़ोस के शहर के थे, जाने-पहचाने निकले। जो दामाद मिले वे पढ़े-लिखे-इंजीनियर, सॉफ्‍टवेयर की दुनिया के हैं। दान-दहेज नहीं देना पड़ा। लड़कियों की पंसद के अनुकूल लड़के मिल गए। लड़कों के माँ-बाप ने भी सामान्‍य शादी की ही बात रखी, जो हमने सहर्ष मंजूर कर ली। शादियाँ सानंद हो गई। मेरी दोनों बच्‍चियाँ सुखी और संतुष्‍ट हैं और दोनों दामाद मुझे व पत्‍नी को बेटों की तरह ही पालते-पोसते हैं। हम अपनी खोज से खुश हैं।

0 0 0

यशवन्‍त कोठारी

86, लक्ष्‍मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर,

जयपुर-302002 फोनः-2670596

ykkothari3@yahoo.com

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: यशवन्‍त कोठारी का व्यंग्य - दामाद: एक खोज
यशवन्‍त कोठारी का व्यंग्य - दामाद: एक खोज
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEir4jxzdFOXQijUhYs-MKdHnQ0rZ6E3DPqeR83pXa-arYgmNOfea6J7mH1V4eWPIa8hhSFEcA2SWhgnLqyR8zVmfkZylpgiG3kkiANEpaEKwmt8GiVqZQiyAILRbwsjFQJUb15N/%20kothari[2].jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2009/08/blog-post_22.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2009/08/blog-post_22.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content