कला संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अवयव है जो मानव मन को परिष्कृत एवं अलंकृत करती है। भारतीय दर्शन साहित्य एवं धार्मिक मान्यताओं आदि की अभिव...
कला संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अवयव है जो मानव मन को परिष्कृत एवं अलंकृत करती है। भारतीय दर्शन साहित्य एवं धार्मिक मान्यताओं आदि की अभिव्यक्ति विश्ोषतः दृश्य कलाओं में देखा और अनुभव किया जा सकता है।[1] कला के चिन्तन व विवेचन से आध्यात्मिक सुख प्राप्त होता है। पर यदि उसे प्रविधि विश्ोष द्वारा विकसित किया जाय तो वह कलाकार के लालित्य और सृजन की प्रेरणा बन जाती है। यही प्रेरणा कला को जन्म देती है। कला किसी भी बाह्य माध्यम के द्वारा अपने भावों की अभिव्यक्ति को कहते हैं। ये बाह्य माध्यम चित्र, शब्द, स्वर अथवा अन्य हो सकता है।[2] अन्य इस संदर्भ में क्योंकि आज कलाकार अपनी अभिव्यक्ति के लिये नित नये साधनों को खोज कर रहा है। वह ऐसे माध्यम तलाशने में जुटा है, जिससे वह अधिक से अधिक, सशक्त और प्रभावी तरीके से अपने भावों की अभिव्यंजना कर सके । प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक कला इतिहास में हमें ऐसे कई उदाहरण प्राप्त होते हैं।
सर्व प्रथम 1849 में रिचर्ड वेगनर ने ग्रीक थियेटर से प्रभावित होकर एक ऐसे कला संसार की सृष्टि की जिसमें चित्र में संगीत, शब्दों इत्यादि का प्रयोग किया था जिससे दर्शकों को एक भिन्न एंन्द्रिय आनंद की अनुभूति हुई ।[3] 1930 में अतियथार्थवादी शिल्पियों ने संस्थापन कला में जिस कला का सृजन किया वह फनफेयर जैसा लगता था। जर्मन कलाकार कर्ट श्वीटर्स ने अपने बड़े घर को जंक कोलाज में बदल दिया था।[4] 1958 में फ्रेंच कलाकार yues klein ने पेरिस मेे एक प्रदर्शनी की थी जिसमें उनकी कृति को देखकर आज के संदर्भों में प्रयुक्त संस्थापन कला का आभास किया गया था।[5] हालांकि संस्थापन कला शब्द की शुरूवात 1970 के दशक से मानी गई। 20वी सदी के अंतिम दशक तक आते आते यह अपने पूरे यौवन पर थी। संस्थापन कला समकालीन कला की एक शैली के रूप में उभर कर सामने आई । कला का यह विशिष्ठ नामकरण हाल ही में आया है। जबकि इसका पहला प्रयोग 1969 में ही हो गया था, जब मार्शल डशेम्प ने रेडीमेट आर्ट में विभिन्न वस्तुओं का प्रयोग कर अपनी कलाभिव्यक्ति प्रस्तुत की थी।[6] प्रारंभ में ये कलाकृतियां अस्थायी होती थीं बाद में कलाकृतियों को क्र्रय कर संग्रहीत किया जाने लगा । जैसे 1981 में हीशोर्न म्यूजियम वाशिंगटन द्वारा कलाकार जूडी पफ की कृति काबुकी को संग्रहीत किया। 1987 में सांची गैलरी लंदन द्वारा रिचर्ड विल्सन की कृति 20/50 को संग्रहीत किया गया। यही कारण है कि इस विधा को पूर्व में अन्य भिन्न भिन्न नामों से जाना जाता था जैसे प्रोजेक्ट आर्ट, टेम्परेरी आर्ट आदि। [7]
संस्थापन कला , प्रदर्शनी स्थल को तीन आयामी कलाकृति के रूप में अभिव्यक्ति को कहते हैं। इस शैली में वास्तु से संबंधित दिलचस्प एवं रोजमर्रा की वस्तुओं को एक स्थान पर संयोजित कर प्रदर्शित किया जाता है। इस नई विधा में कलाकृति एवं दर्शक के मध्य समन्वय स्थापित हो जाता है। कभी कभी दर्शक इस कलाकृति का हिस्सा भी बन जाता है। संस्थापन कला में उपयोग की जाने वाले माध्यम या संसाधन असीमित है। साथ ही यह विभिन्न क्षेत्रों में जैसे अमूर्त अथवा कथानक आधारित, राजनीतिक अथवा सैद्धांतिक, अस्थायी अथवा स्थायी अभिव्यक्ति में अपना स्थान बना चुका है। इस कला शैली के लिये यह आवश्यक नहीं है कि इसके प्रदर्शन के लिये आर्ट गैलरी का ही प्रयोग किया जाय। इसके प्रदर्शन के लिये खुली सड़कों, बगीचों, खेतों, समुद्री किनारों अथवा किसी भी सार्वजनिक स्थान का उपयोग किया जा सकता है। इस विधा में हर संभव मिश्रित माध्यमों का प्रयोग वातावरण विशेष को प्रदर्शित करने के लिये किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत नवीनतम माध्यमों जैसे वीडियो साउण्ड परफारमेंस इंटरनेट इत्यादि का प्रयोग कर वर्चुअल आभासीय वातावरण की सृष्टि की जाती है। इसका आशय कला और जीवन के मध्य दूरी को मिटाना भी है। और दर्शकों को मंचीय अनुभव में शामिल करना भी है।
1910 के दशक में कलाकार चित्रकला या मूर्तिकला के परम्परागत अभिव्यक्ति से भिन्न कुछ अलग करना चाहते थे। इसी संदर्भ में रूसी, जर्मन और डच कलाकारों ने फाइन आर्ट और क्राफ्ट को शिल्प वास्तुकला और अलंकरण के साथ एकीकृत कर शुद्ध ज्यामितीय रूपों में अपनी कलाभिव्यक्ति की । और यही संस्थापन कला के रूप में उभरने लगी। इस शैली में फ्रांसीसी अमरीकी कलाकार मार्शल डशेम्प, जर्मन कलाकार कर्ट श्वीटर ने अनेक कलात्मक कृतियों का निर्माण किया है जिसमें उन्होने चित्र अंतराल में आकर्षक वातावरण की सृष्टि की है। जिसमें ‘1200 बैग ऑफ कोल'1938 जिसमे उन्होने कोयले की 1200 थैलियों को फर्श पर संयोजित किया एवं एक महत्वपूर्ण शिल्प कार्य में एक कमरे में सेट ओर माइल के लचीले तारों के जाल से अपने विचारों को अभिव्यक्त किया । दोनो ही कृतियां न्यूयार्क की कला दीर्घाओं में दर्शकों के अनुभवों में परिवर्तन हेतु प्रदर्शित की गई। जर्मन के कलाकार श्वीटर ने अपने घर में पाये जाने वाले अनुपयोगी सामग्रियों द्वारा कलाकृति ‘‘झूठा‘‘ टुकड़ा का निमार्ण किया ।[8] एक अन्य अग्रणी अमरीकी कलाकार लुइस नेवेल्शन और लुइस बर्गाइस ने 1950 में एक वृहद कलाकृति का निर्माण किया जिसमें लकड़ी के विभिन्न रूपों का प्रयोग किया गया । इस कृति में उन्होने स्वतंत्र वस्तु के स्थान पर वातावरण की सृष्टि को प्रमुखता दी। पश्चिमी संस्थापन कला को गुटई समूह द्वारा जापान में 1954 में शुरू किया गया जो एलन काप्रो जैसे अमरीकी संस्थापन कलाकारों द्वारा प्रभावी मंच में शामिल किया गया।
1980 के बाद से संस्थापन कला को एक अलग विषय के रूप में देखा जाने लगा। और एन हैमिल्टन, डेविड हेमोन्स, जमीमा पफ अन्य अमरीकी कलाकारों में जीवंत और जटिल संस्थापन कला बनाने के लिये सामग्री की एक व्यापक श्रेणी का उपयोग किया गया। जिसमें 1995 में पेंसिल्वेनिया कन्वेशन सेंटर को फिलाडेल्फिया में बदल दिया । इस संस्थापन में इस्पात एल्यूमीनियम के अनुपयोगी गिलास और अन्य रंगीन रचना सामग्री के साथ कार्निवाल का 14 किलोमीटर लम्बा दृश्य स्थापित किया गया । इसी संदर्भ में भारतीय कलाकार सुबोधगुप्ता ने भी कई चित्र, इंस्टालेशन,वीडियो, में अभूतपूर्व प्रयोग किये हैं, और इनकी कृतियों को विश्व के प्रतिष्ठित संग्रहो जैसे चार्ल्स साची, फ्रांसिस पिनोल्ट और फ्रांक कोहेन में संग्रहित किया गया है।[9] 2006 में बनाई गई वेरी हंगरी गॉड उनकी जीवन का एक अहम मोड़था जिसमें उन्होने लोगों की भूख पर हजार किलो के खोपड़ी चमकदार एल्यूमीनियम के बर्तनों से निर्मित कर टिप्पणी की। इसे पेरिस के चर्च इग्लीस सेंट बर्नाड में रखा गया। [10] आने वाले समय मे संस्थापना कला एक महत्वपूर्ण और सशक्त कलाभिव्यक्ति के रूप में अपना स्थान बना लेगा । आज कलाकार हर संभव प्रयोग इस शैली में कर रहा है। जिसमें इंटरेक्टिव इंस्टालेशन का भी प्रयोग बढ़ा है। जिसमें कलाकार कलाकृति के साथ साथ दर्शक को भी कृति में शामिल करता है। इन प्रयोगों में विभिन्न कला सामग्रियों के साथ विडियो साउण्ड का तालमेल रंगों के प्रभाव इस तरह उत्पन्न किया जाता है कि दर्शक एक विशेष आभासीय वातावरण में स्वयं को महसूस करता है। विवान सुन्दरम ने एक ऐसा ही प्रभाव 12बेड इन वार्ड में दिखाया है इन संस्थापन में 12लोहे के पलंग रखे गये उन पर चप्पल के आकार के छेद वाले जाल बिछा कर उपर से प्रकाश की रोशनी इस तरह डाली गई जिससे पलंग पर रखे गये चप्पल के आकार के छाया जमीन पर पड़ने लगी और उस पूरे कमरे का वातावरण दर्शक के मन में समाज के उस विशेष तबके के माहौल का आभासीय प्रभाव डालने लगा जो झुग्गी झोपड़ी में जाने से महसूस होता । इसी तरह अनुपयोगी सामान और कचरों का ढेर लगाया गया उस पर एक लड़के को चढ़ता हुआ बनाया गया यह एक वीडियो मिश्रित कला है इससे सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह के भाव को दर्शाने का प्रयास किया गया । सकारात्मक इस दृष्टि से कि अंततः वह लड़का कचरे के ढ़ेर पर चढ़ने में सफल हो ही गया और नकारात्मक इस दृष्टि से समाज का एक तबका इससे आगे सोच ही नहीं सकता ।[11] आज का समकालीन कलाकार संस्थापन कला में नये नये प्रयोग कर रहा है इससे यथासंभव उन भावों की अभिव्यक्ति में भी सफलता मिलती जहां पारम्परिक कलाकर्म में कलाकार स्वयं को असहज महसूस करता है।
इस विधा में कार्य करने वाले अन्य राष्ट्रीय अर्न्तराष्ट्रीय कलाकारों में डी ला क्रूज एनजेल, ग्रेगलेन, फ्रेंज बेस्ट, एलीसन ओलफर, जेफ्री शॉ, सुबोध गुप्ता, अनीश कपूर, जेनी होल्जर, नितिश कलात, रीना साइनी कलात, तल्लूर एल एन, माइकल जो, रीना बेनर्जी इत्यादि प्रमुख हैं।
[1] कला विलास -आर ए अग्रवाल-पृ.03
[2] कला समीक्षा-जी के अग्रवाल
[3] विकी पीडिया.अार्ग
[4] डमीस. काम/इंस्टालेशन आर्ट
[5] आर्टसाहक्लोपीडिया.काम
[6] विकीपीडिया.आर्ग
[7] इंस्टालेशनआर्ट.नेट
[8] आर्टलेक्स.काम
[9] आर्ट इंडिया अंक13 इशू 2 पृ.53 2008
[10] आर्ट इंडिया अंक 14. 2009
[11] आर्ट इंडिया अंक 13 इशू 2 पृ. 133 2008
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डॉ. रेखा श्रीवास्तव
सहा प्राध्यापक चित्रकला
शा महारानी लक्ष्मी बाई कन्या महा.
भोपाल
waah
जवाब देंहटाएंnayanaakarshak aur man bhaavan !
Rochak aalekh.
जवाब देंहटाएं{ Treasurer-S, T }
adhbhut aalekh.....is par kuchh bhi kah pana mere boote ke baahar hai.....!!
जवाब देंहटाएंअत्यंत रोचक,आभार।
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