राकेश भ्रमर की कहानी : सूखा

SHARE:

आषाढ़ बीत गया. आसमान में बादल का टुकड़ा तक न दिखा. धरती पर पानी की बूंद भी न गिरी. हवाएं आग बरसा रही थीं. जमीन तवे की तरह तप रही थी. आस...

Image231

आषाढ़ बीत गया. आसमान में बादल का टुकड़ा तक न दिखा. धरती पर पानी की बूंद भी न गिरी. हवाएं आग बरसा रही थीं. जमीन तवे की तरह तप रही थी. आसमान तकते-तकते लोगों की आंखें पथरा गयीं. मौसम विभाग की भविष्‍यवाणियां गलत साबित होती रहीं. बिजली विभाग अपनी मनमानी करता रहा. अघोषित बिजली कटौती ने लोगों को बेहाल कर रखा था.

प्रदेश सरकार ने स्‍मारकों और मूर्तियों पर खरबों रुपया खर्च कर दिया. जनहित की कोई योजना लागू नहीं हुई. केन्‍द्र सरकार की योजना से सड़कें, नालियां-नाले और तालाब खोदे जा रहे हैं. लोगों के जॉब कार्ड बने हुए हैं. सौ रुपये प्रति मजदूर मिल रहा है, लेकिन गर्मी ने जो हाल कर रखा है, उससे जनता में त्राहि-त्राहि मची हुई है. समय पर बरसात न हुई तो फसल नष्‍ट हो जाएगी. किसानों की दुर्दशा हो जायेगी.

प्रदेश की नदियों पर कई बांध हैं. नहरों का जाल बिछा हुआ है, परन्‍तु सभी रेगिस्‍तान की तरह सूखी हुई हैं. दूर-दूर तक फटी हुई धरती बेवा औरत की तरह सफेद चादर ओढे. नजर आती है.

पूरा गांव ही नहीं, आसपास के गांव के तमाम लोग नरेगा की योजनाओं में काम कर रहे हैं. परन्‍तु सभी काम कम, बातें ज्‍यादा करते हैं. घड़ी-घड़ी छाया की तरफ भागते हैं. नल से पानी भरकर लाते हैं. वह भी पीते-पीते खौलने लगता है.

कच्‍ची सड़क पर मिट्‌टी डालने का काम चल रहा था. दूर-दूर तक धूप की कड़ी चादर बिखरी हुई थी. लोगों का काम में मन नहीं लग रहा था, परन्‍तु अभी तो दस भी नहीं बजे थे. छुट्‌टी कैसे मिलती ? मेट साथ रहकर काम करवा रहा था. बड़ा काइयां है, किसी को हिलने नहीं देता. लेकिन वह भी आदमी था. धूप में तपने लगता तो किसी पेड़ की छाया के नीचे जा बैठता. उसकी देखा-देखी मजदूर भी जा बैठते.

आसपास ज्‍यादा पेड़ नहीं थे. इक्‍का-दुक्‍का महुए के पेड़ थे. कुछ बबूल के भी... जो बेवजह उग आए थे. उनकी छाया के नीचे बैठा भी नहीं जा सकता था. चारों तरफ कांटे बिखरे पड़े थे. महुए के एक पेड़ की छाया के नीचे सड़क पर काम करने वाले बैठे हुए थे. साथ में मेट रामशरण भी था. वह लोग आपस में बातचीत कर रहे थे.

गंगाराम माथे का पसीना गमछे से पोंछता हुआ बोला, ‘‘भैया, अब तो सहन नहीं होता. धरती के अन्‍दर पानी नहीं होगा, खेतों में हरियाली नहीं होगी, घर में अन्‍न का दाना नहीं होगा, तो यह रुपया किस काम आएगा.''

वह नवीं तक पढ़ा था. कुछ समझदार था. परन्‍तु पढ़ाई पूरी न कर सका. जवान हो चुका था. पढ़ने में मन ही नहीं लगता था. घूमने-फिरने और लड़कियां ताकने में मन रमने लगा था. गांव का माहौल था. कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था.

हाई स्‍कूल की परीक्षा बोर्ड से होनी थी. परीक्षा में बैठने की हिम्‍मत नहीं बांध पाया. नवीं तक तो स्‍कूल मास्‍टर बिना परीक्षा के ही पास कर देते हैं. बोर्ड की परीक्षा में कौन पास करता, सो परीक्षा में बैठा ही नहीं. बाप खीझकर रह गया. उसे पता था कि बेटे का मन पढ़ाई में क्‍यों नहीं लगता.

गंगाराम रात-दिन लड़कियों के सपनों में डूबा रहने लगा था. गांव में इधर-उधर मुंह मारता फिरता था. नाते-रिश्‍तेदारी में भी जहां कोई लड़की देखी, वहीं डेरा डाल दिया. हफ्‍तों घर नहीं लौटता था. बाप परेशान हो गया. काम-धाम भी कुछ नहीं करता था. मजबूरन शादी कर दी कि जिम्‍मेदारी पड़ने पर कुछ संभल जाएगा.

शादी के बाद संभल भी गया. बीवी आई तो पैसे की जरूरत महसूस हुई. बाप कहां तक खर्च पूरे करता ? मजूदरी करने लगा. यहां तक तो सब ठीक था, परन्‍तु लुगाइयों के पीछे भागने की आदत अभी तक न गई थी. जवान लड़की हो या औरत... देखते ही लार टपकाने लगता था.

गंगाराम की बात पर मेट रामशरण बोला, ‘‘क्‍या फरक पड़ता है ? सरकार के पास पैसा है. देश में अनाज नहीं होगा, तो अमेरिका से आ जाएगा. राशन कार्ड से अब भी लेते हैं, तब भी लेंगे. नरेगा से कमाई हो ही रही है. जेब में पैसा रहेगा, तो दुकान से भी खरीद सकते हैं.''

‘‘हां, बाबू, तुमको तो फरक नहीं पड़ेगा. दस लोग काम करते हैं, बीस की हाजिरी दिखाते हो. फालतू पैसा जेब में हो तो कुछ भी किया जा सकता है.'' छोटेलाल ने व्‍यंग्‍य से कहा. वह थोड़ा बुजुर्ग था. काम में हीला-हवाली करता था. मेट बात-बात पर उसे डांटता रहता था. लेकिन जवान लड़कियों को कुछ नहीं कहता था. उन पर बुरी नजर रखता था. प्रधान का चहेता था, इसलिए खुलकर कोई कुछ नहीं कह पाता था. आज मौका मिला तो छोटेलाल ने मन की भड़ास निकाल ली. मेट पर बातों से हल्‍का प्रहार कर दिया.

रामशरण के चेहरे पर नाराजगी के भाव प्रकट हुए. वह कुछ कहने के लिए उद्यत ही हुआ था कि गंगाराम ने टोंक दिया, ‘‘ हां, मेट बाबू की तो चांदी ही चांदी है. प्रधान के साथ मिलकर सरकारी खजाना लूट रहे है.'' वह भी मन ही मन मेट से जलता था. वह रंग रसिया था, परन्‍तु मेट के रहते वह अपनी गोटी नहीं फिट कर पाता था. उसे लड़कियों से बात करने का मौका ही नहीं मिलता था. मेट तुरन्‍त टोंक देता था. उसके डर से लड़कियां भी उससे कतराती थीं. जब तक काम चलता, मेट साथ ही रहता था. शाम को ही सब अलग-अलग होते थे, परन्‍तु तब सबको घर जाने की जल्‍दी होती थी.

प्रधान कभी-कभार ही काम देखने आता था. रामशरण उसका चहेता था. सब कुछ उसके ऊपर डाल रखा था. वैसे भी काम किसे करवाना था ? बस खानापूर्ति होती थी. मात्र दिखाने के लिए काम होता था. सरकार का पैसा बांटना था, इसलिए कुछ काम दिखाकर कागज बनाए जाते थे. फर्जी हाजिरी लगाकर मजदूरी हड़प करने के प्रपंच किए जाते थे. जो मजदूर वास्‍तव में काम करते थे, उनसे थोड़ा-बहुत काम लिया जाता था. उनसे भी ज्‍यादा डांट-डपट नहीं की जाती थी, ताकि आवाज न उठा सकें. दिन के ग्‍यारह बजते ही सारे मजदूर घर चले आते थे. शाम को चार बजे के बाद लौटते थे. इतने समय में कितना काम कर सकते थे. बस मिट्‌टी इधर से उधर करते रहते थे.

रामशरण ने चिढ़कर कहा, ‘‘तुम सभी साले कामचोर... बिना काम किए मजदूरी लेते हो और मुझ पर इल्‍जाम लगाते हो. कल से तुम्‍हारा नाम काट दूंगा रजिस्‍टर से... जॉब कार्ड हाथ में लिए घूमते रहे जाओगे.'' गुस्‍से में वह उठकर खड़ा हो गया और हवा में इधर-उधर हाथ झटकने लगा.

मजदूरों ने देखा, बात बिगड़ रही है. सभी चुप एक दूसरे का मुंह देखने लगे. उनमें एक प्रौढ़ महिला बुधिया थी. कम बोलने वाली, परन्‍तु समझदार. वह सबकी बातें सुन रही थी. बात बिगड़ती देख वह बोली, ‘‘बचुवा, तुम क्‍यों इनकी बातों पर उलझ रहे हो. ये दोनों तो पागल हैं. हम नहीं जानते क्‍या कि तुम हमारा कितना ख्‍याल रखते हो ? इनकी बातों पर मत जाओ. तुम समझदार हो. देखो तो कितनी गर्मी पड़ रही है. हर चीज उबल रही है. ऐसे में किसी का दिमाग सही रह सकता है ? परन्‍तु तुम हमारे अन्‍नदाता हो, अपना दिमाग सही रखो. दुनिया का काम ही है, दूसरों को बुरा-भला कहना.''

सबने बुधिया की बात से सहमति जताई और रामशरण का गुस्‍सा शांत हो गया.

नरेगा की योजनाओं से भले ही सबको रोजगार मिल रहा था. प्रधान के साथ-साथ योजनाओं से जुड़े अधिकारियों की जेबें गर्म हो रही थीं, परन्‍तु मौसम में जो गर्मी थी, उससे मनुष्‍य ही नहीं, पशु-पक्षी भी बेहाल थे. गांव व जिला ही नहीं, पूरा प्रदेश गर्मी और सूखे की मार झेल रहा था.

गांव के छप्‍पर वाले घरों में आग लगने की घटनाएं आम हो चुकी थीं. जान-माल का नुकसान हो रहा था. प्रतिदिन लू लगने से दो-चार लोगों की मौत की खबर से अखबार रंगे रहते थे. कई लोग हैजा की चपेट में आ चुके थे.

सड़क में काम करते-करते एक दिन तारा को चक्‍कर सा आ गया. वह सिर पकड़कर जमीन पर बैठ गई. लोग काम छोड़कर उसकी तरफ दौड़े, ‘‘क्‍या हुआ ? क्‍या हुआ ?'' लोग पूछ रहे थे. वह कुछ बोलने का प्रयास कर रही थी कि उसे उल्‍टी होने लगी. लोग डर गए. कहीं हैजा न हो. जल्‍दी से पेड़ के नीचे लाया गया. रामशरण के पास मोटर सायकिल थी. किसी तरह उसे बीच में बिठाया गया. पीछे से एक जवान औरत उसे पकड़कर बैठी. तेजी से गांव की तरफ भागे. घर पहुंचते-पहुंचते उसे दो बार और उल्‍टी हो चुकी थी. हैजा ही था.

तारा रामसजीवन की बीवी थी. वह पंजाब में एक ईंट-भटठे में काम करता था. घर में केवल सास और ससुर थे. अभी कोई बच्‍चा नहीं हुआ था. गरीबी ने उसे सड़क पर मजदूरी करने के लिए मजबूर कर दिया था. गांव में कॉलरा यानी हैजा और लू लगने का जो इलाज संभव था, वही किया गया. गांव की एकमात्र दूकान में अमृतधारा की शीशी नहीं मिली तो उसे प्‍याज पीसकर उसका रस पिलाया गया, परन्‍तु कोई फायदा नहीं हुआ.

पूरे गांव में खबर फैल चुकी थी कि सजीवन की बीवी को हैजा हो गया था. प्रधान भी आये. उनके पास मार्शल जीप थी. लोगों ने सलाह दी, तो उनकी जीप में तारा को लादकर कस्‍बे के अस्‍पताल लाया गया. वहां उसे भर्ती करवाना पड़ा. साथ में उसके सास-ससुर, मेट रामशरण और गंगाराम भी आये थे.

गंगराम का अपना स्‍वार्थ था. जब से तारा सड़क पर काम करने लगी थी, उसके चेहरे की झलक उसने देख ली थी. वह एक खूबसूरत और गठे बदन की युवती थी. गंगाराम का मन उस पर आ गया था. मौका मिलते ही उससे हंसी-मजाक कर लेता था. रिश्‍ते में भाभी लगती थी, इसलिए वह बुरा नहीं मानती थी. परन्‍तु ऐसा कोई मौका नहीं मिला था कि वह अपने दिल की बात उससे कह सकता.

उसके बीमार होने से गंगाराम को हार्दिक तकलीफ हुई थी. भगवान से दुआ कर रहा था कि उसे कुछ न हो. जल्‍दी ठीक हो जाए. गांव में हैजा से कई मौतें हो चुकी थीं. वह डरा हुआ था, जैसे उसकी ही बीवी हो.

प्रधानजी तारा को अस्‍पताल में भर्ती करवाकर चले गए. अस्‍पताल में गंगाराम और रामशरण रह गए. तारा के सास-ससुर बाहर बैठे थे. उसको ग्‍लूकोज चढ़ाया जाना था. कम्‍पाउन्‍डर ने ग्‍लूकोज लाने के लिए कहा तो दोनों एक दूसरे का मुंह देखने लगे. रामशरण थोड़ा दूर हट गया. सोच रहा था, कहीं उसे ही न खरीदना पड़. जाए. गंगाराम को अस्‍पताल और मेडिकल स्‍कूल की मिलीभगत पता थी. गांवों में लू लगने और हैजा से बहुत लोग बीमार पड़ते हैं. इस सबका इलाज ग्‍लूकोज से ही किया जाता है.

निजी डॉक्‍टरों और अस्‍पताल में अस्‍पतालों में मरीजों का तांता लग जाता है. बड़ी मुश्‍किल से ग्‍लूकोज उपलब्‍ध हो पाता है. कई बार तो दूसरे कस्‍बे से लाना पड़ता है. अस्‍पताल में दवाई ही नहीं मिलती, ग्‍लूकोज कहां से मिलेगा. डॉक्‍टर और कम्‍पाउन्‍डर पहले ही बेच देते हैं. वही बाद में मरीजों को मेडिकल स्‍टोर वालों से खरीदना पड़ता है. मेडिकल स्‍टोर वाले बढ़ी कीमत पर ग्‍लूकोज बेचते हैं. अस्‍पताल के डॉक्‍टर से मिले रहते हैं. मुनाफा आपस में बांट लेते हैं.

तारा के सास-ससुर के पास तो दमड़ी भी नहीं थी. मेट रामशरण चुट्‌ट और कंजूस आदमी था. हारकर गंगाराम को ही जेब ढीली करनी पड़ी. प्रेमिका के लिए इतना करना बुरा नहीं था. प्रेम में पापड़ तो बेलने ही पड़ते हैं. उधर तारा को ग्‍लूकोज चढ़ना शुरू हुआ, इधर दोनों फिर बाहर आ गये और एक पेड़ की छाया के नीचे खड़े हो गए.

थोड़ी देर तक इधर-उधर की बातें करने के बाद मेट ने कहा, ‘‘भाई, मेरे घर में कोई नहीं है. रात में रुक नहीं सकता. तुम भी अपने घर चले जाओ. यहां तारा के सास-ससुर तो हैं ही, देखभाल कर लेंगे.''

गंगाराम ने रूखे स्‍वर में कहा, ‘‘तुमको जाना हो तो जाओ. मैं तो रुकूंगा. तारा के ससुर बूढे. हैं. सास को कुछ पता नहीं... रात-बिरात किसी दवा की जरूरत पड़ी तो... अस्‍पताल में तो कुछ मिलता नहीं. बुखार की दवाई तक नहीं... कहने को सरकारी अस्‍पताल है और गरीबों का मुफ्‍त इलाज होता है. फोकट में तो कुछ भी नहीं मिलता यहां. सब कहने की बातें हैं.'' उसके स्‍वर में घृणा और तिरस्‍कार के भाव थे.

रामशरण चुप लगा गया. कहीं गंगाराम पैसे न मांग ले. उसके चेहरे के भाव देखकर गंगाराम हंसा, ‘‘फिकर न करो मेट बाबू ! तुमसे पैसे नहीं मांगूंगा. मुझे तुम्‍हारी फितरत पता है. बीड़ी भी मांगकर पीते हो. तुम्‍हारी जेब से पैसा क्‍या मुंह से थूक तक नहीं निकल सकता. देख रहा हूं.... मौसम में ही सूखा नहीं पड़ा है, तुम लोगों के दिलों में भी भयंकर सूखा पड़ा है. तुम्‍हारे जैसे लोग चाहे जितना पैसा कमा लें, प्‍यार, स्‍नेह और ममता दिल में कभी नहीं आ सकती. धरती का सूखापन तो मिट सकता है... बारिश होने पर धरती गीली हो सकती है, परन्‍तु तुम लोगों के मन का सूखा और अकाल कभी खत्‍म नहीं हो सकता.''

गंगाराम के व्‍यंग्‍य बाणों से रामशरण तिलमिला गया. कसमसाते हुए बोला, ‘‘अच्‍छा, मैं चलता हूं. तुम देख लेना. सुबह आऊंगा.'' और वह तेजी से चलता बना. उसे डर था कि गंगाराम और कुछ न कह दे.

गंगाराम उसे जाते हुए देखता रहा. फिर पच्‍च से जमीन पर थूक दिया. हूं... कल सुबह आएगा. पाजी कहीं का. नहीं आएगा तो क्‍या तारा का इलाज नहीं होगा.

अस्‍पताल परिसर और बरामदे में मरीजों के परिजनों और हितैषियों की भीड़ थी. कुछ बैठे थे तो कुछ खड़े. सभी आपस में बातें कर रहे थे. वह जाकर तारा के सास-ससुर के पास बरामदे में खड़ा हो गया. वह दोनों गुमसुम और उदास से बैठे थे. गंगाराम ने उन्‍हें सांत्वना दी, ‘‘चिन्ता न करो चाचा, तारा ठीक हो जाएगी.''

उन दोनों के मुंह से आवाज न निकली. असहाय और कातर नजरों से उसे देखा. जिस तरह कष्‍ट पड़ने पर भक्‍त भगवान की शरण में जाकर याचक नजरों से देखता है, कुछ वैसे ही भाव उनकी आंखों में थे.

गंगाराम कुछ दूर हटकर एक खंभे के सहारे खड़ा हो गया. इधर-उधर देखा. पास में दो पढ़े-लिखे व्‍यक्‍ति खड़े आपस में बात कर रहे थे. कान उनकी बातों की तरफ अनायास चले गये. एक कह रहा था, ‘‘सरकार की ऐसी की तैसी. एकदम निकम्‍मी सरकार है. जनता की भलाई के लिए तो कुछ कर ही नहीं रही.''

‘‘हां यार, देखो न, तीन महीने से वेतन नहीं मिला है. इधर बच्‍चा बीमार हो गया. लगन के दिन चल रहे हैं. रिश्‍तेदारी में कई शादियां हैं. हर शादी में हजार-पांच सौ खर्च हो जाते हैं. ऊपर से अस्‍पताल का खर्च... समझ में नहीं आता, क्‍या करें ?''

‘‘साली ....(सरकार को एक भद्‌दी गाली)....तुमने पढ़ा है, आज के अखबार में लिखा है कि राज्‍य सरकार ने पार्क और स्‍मारक बनवाने तथा उनमें सैकड़ों मूर्तियां लगवाने में लगभग 2000 करोड़ रुपया खर्च कर दिया है.''

‘‘क्‍यों नहीं करेगी ? मुख्‍यमंत्री के बाप का पैसा है न ! कर्मचारी भूख से मर रहे हैं. वेतन मिल नहीं रहा है और मुख्‍यमंत्री पत्‍थर के स्‍मारक, पार्क और मूर्तियां लगवाकर उद्‌घाटन कर रही हैं. जिस राज्‍य में जनता भूखी मरे, उसका पतन निश्‍चित है.''

‘‘बिलकुल सही कहा. इससे अच्‍छी तो पिछली सरकार थी. मंहगाई भी कम थी. इस सरकार ने तो अति कर दी. मुख्‍यमंत्री केवल पैसा बटोरने में लगी है. सुना है, अपने गांव के आसपास की सैकड़ों एकड़ जमीन खरीद ली है. गांव में किले जैसा मकान बनवाया हे. दिल्‍ली में दो कोठियों करोड़ों की लागत से खरीदी हैं.''

‘‘हां, बिलकुल सही बात है. अखबार वाले झूठ थोड़े लिखेंगे.''

गंगाराम का मन घृणा और वितृष्‍णा से भर गया. यह वहीं सरकार है, जिसे वह अपनी कहता था. इसे ही उसने अपना कीमती वोट दिया था. पार्टी के नेता तो करोड़पति और अरबपति बन गये. मुख्‍यमंत्री जीते जी अमर होने के लिए अपनी मूर्तियों का उद्‌घाटन कर चुकी हैं. बादशाहों की तरह जनता का पैसा बटोरकर अपनी जेब ही नहीं भर रहीं, अंधाधुंध गैरजरूरी कार्यों में खर्च कर रही हैं. जनता को क्‍या मिला... भूख और बीमारी.

गंगाराम को लगा कि जनता के लिए हर तरफ सूखा पड़ा है. केवल नेताओं के लिए सूखा नहीं है. उनके लिए हर तरफ हरियाली है...पैसे की हरियाली. सरकार जनता के लिए कुछ नहीं कर रही. बादल रूठे हैं, सरकार भी रूठी है.

लेकिन गरीब जनता की आंखों में सूखा नहीं है. उसकी आंखें नम हैं. उनमें बेथाह पानी भरा हुआ है. उनकी आंखों का पानी कभी नहीं चुकता, जिन्‍दगी भर रोते रहने के बाद भी... लेकिन जनता हताश नहीं है. सरकार जनता के लिए सूखी हो सकती है, बादल नहीं ... कभी न कभी जरूर बरसेंगे. धरती की प्‍यास बुझेगी. हर तरफ हरियाली होगी. फसलें लहलहाएंगी और किसान मुस्‍कराएगा. मजदूरों के कंधे पर फावड़े और हल होंगे. उनके होंठों पर मेहनत के गीत होंगे.

तारा भी ठीक होकर घर आ जाएगी... गंगाराम ने सोचा... हमारे लिए दिन इतने बुरे नहीं हो सकते. सूखा शाश्‍वत नहीं हो सकता.

उसने आसमान की तरफ देखा, बादल के कुछ सफेद टुकड़े धुनी हुई रुई की तरह टिके हुए थे. इन बादलों में पानी की बूंदे नहीं थी. यह तो सजावटी बादल थे जो आसमान में इसलिए छा गये थे कि आसमान सूखा न दिखे.

�����

(राकेश भ्रमर)

संपादक प्रज्ञा मासिक,

24, जगदीशपुरम्‌, लखनऊ मार्ग,

निकट त्रिपुला चौराहा, रायबरेली-229316

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. सचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है... वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी, बधाई स्वीकारें।

    जवाब देंहटाएं
  2. सच्‍चाई का आइना दिखाती है रचना।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: राकेश भ्रमर की कहानी : सूखा
राकेश भ्रमर की कहानी : सूखा
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjkerNcbuI6BL7HvRSiV29XvAGwmKocmRIzRy6gPz5VDnHmZc9DGoPDyQ79vrJI0OJIxrIfZM3rKdhwndV_8CLNQXBEsifEKuN4RZ46yKpXoZerLmQ6Oc6U77tvyz0uN9DSuS94/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjkerNcbuI6BL7HvRSiV29XvAGwmKocmRIzRy6gPz5VDnHmZc9DGoPDyQ79vrJI0OJIxrIfZM3rKdhwndV_8CLNQXBEsifEKuN4RZ46yKpXoZerLmQ6Oc6U77tvyz0uN9DSuS94/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2009/07/blog-post_7712.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2009/07/blog-post_7712.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content