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abook2read.com में यशवंत कोठारी का अंग्रेज़ी उपन्यास एंगल्स एंड ट्राएंगल्स प्रकाशित हुआ है. उक्त स्थल से यह उपन्यास प्रिंट/डाउनलोड हेतु क्रयादेश दिया जा सकता है. उपन्यास की कीमत है £3.5
आह वर्षा। वाह वर्षा॥। हाय वर्षा॥।
यशवन्त कोठारी
वर्षा का आना एक खबर है। वर्षा का नहीं आना उससे भी बड़ी खबर है। वर्षा नहीं तो अकाल की खबर हो जाती है। कल तक जो अकाल को लेकर चिल्ला रहे थे वे ही आज वर्षा के आगमन पर हर्ष की अभिव्यक्ति कर बाढ़ बाढ़ खेल रहे हैं। जो नेता अफसर अकाल की सेवा में थे वे ही अब बाढ़ की व्यवस्था कर अपना घर भरने मे लग गये हैं। आसमान में उमड़ते घुमड़ते बादल, चमकती बिजली, मेघ गर्जन और तेज बौछारें मन को गीला कर जाती है। उदासी कही दूर पीछे छूट जाती है। मन मयूर नाचने लग जाता है। सरकार में तबादलों की वर्षा है, पहाड़ों पर हरियाली हैं, प्रियतमा चूरमा खाने पहाड़ों की आड़ में चली गई है। यही तो समय होता है वर्षा के आगमन का कालीदास मेघदूत लिखते हैं ऋतु संहार में वर्षा का अलौकिक वर्णन करते हैं, और मन बौरा जाता हैं। वर्षा कभी स्वयं प्रेमिका बन जाती है कभी मानिनी पत्नी बन जाती है, कभी स्वयं दूती सा व्यवहार करने लग जाती हैं कभी मुग्धा नायिका की तरह हो जाती है तो कभी प्रोढ़ प्रगल्भा की तरह बनने संवरने लग जाती है। कभी वर्षा सौतन हो जाती है तो कभी कठोर सास या फिर सावन के झूले पर बैठी इठलाती भारतीय परम्परागत नारी बन सबको लुभा लेती है। गीत, सावन की बूंदे लेहरिया, गेबर, चूरमा, आभूषण, वस्त्रालंकार मेहन्दी रचे हाथ, मुंह पर चादंनी की शोभा, मृणाल बाहों में झूलता झूला सब मिलकर वर्षा को वर्षा बनाते है।
मगर आज की वर्षा हे भगवान। राज्य पानी के लिए लड़ रहे है, वर्षा होते ही बिना मांगे पानी दे रहे हैं। कृष्णा कावेरी से लगाकर पंजाब की नदियों से पानी बिना मांगे मिल रहा हैं। आधी रात को बेला महकते हैं, वर्षा आती है। पिया बिन डरपत मन मोरा रामचरित मानस में राम कहते हैं। और पिया की खोज में वानर सेना को लगा देते है।
वर्षा है तो मेंढक है, केंचुएं हैं, हाथियों की चिंघाड़ है, वर्षा नहीं तो कोयल तक नहीं कूकती।
रात को उमस की गरमी से परेशान रहता हूं सुबह आषाढ़ का बादल देखकर मन प्रसन्न होना चाहता है मगर अखबार में बाढ़ के समाचार देखकर वर्षा का हर्ष काफूर हो जाता है। मेघों से घिरा मैं स्वंय को बाढ़ से गिरा पाता हूं। कुछ समझ में नहीं आता तन मन क्यो अलसा रहा है, शायद वर्षा के स्वागत में मन अधीर है।
हवा में खुनक है, वो मन्द मन्द बादलों को ले जा रही है। जल के बादल रंग बदल रहे है, गिरगिट की तरह या भारतीय राजनेताओं की तरह वे बहे चले जा रहे हैं। दिशाहीन नहीं है बादल वे प्रिया के देश उड़ कर जा रहें हैं, मन है कि उनके पीछे भागता चला जा रहा है। तेज वर्षा के कारण बादल फटने के कारण बिजली गिरने के कारण बाढ़ में बह जाने के कारण बस गरीब ही मारा जाता हैं। चिड़िया दाना ढूंढ रही है, गरीब के आशियाने में पानी भर गया है क्योंकि वर्षा हो रही है। नदी नाले झीलें, तालाब बांध सब में पानी ही पानी है चारों तरफ से पानी बह कर वर्षा का आनन्द दे रहा है। वर्षा हो तो अच्छा, लगता हैं बच्चे उछल कूद कर रहे हैं। छतपर सड़क पर नालों में नंगे बदन नहा रहे हैं। कम उम्र लड़कियां भी नहा रही है प्रौढ़ाएं उन्हें वरज रही हैं। मगर मन है कि मानता नहीं।
वर्षा ऋतु का आना सर्वत्र साक्षी होता है। पेड़ो पर, जंगलों में, घरों में, तालाबों में सर्वत्र वर्षा दिखाई देती हैं साक्षी ऋतु सर्वत्र हर्ष को बिखरा देती है। है वर्षा तुम मरूधरा की वसुन्धरा पर जमकर बरसो।
वर्षा में राजनीति ठंडी पड़ जाती है। अफसरी दुबक जाती है। छतें टपकने लग जाती है। साहित्य में सीलन आ जाती है। चोर उचक्के नये नये बितान तान कर अपने धन्धे पर चल पड़ते हैं।
वर्षा आई तो मन हर्षा। अफसर की बेबी बाढ़ में पिकनिक मनाने चल पड़ती है। सरकारी गाड़ी सरकारी ड्राइवर, सरकारी पेट्रोल, सरकारी अरदली सरकारी खानापीना । उन्हें बाढ़ सुन्दर, ब्यूटिफुल और क्यूट दिखाई पड़ती हैं। और गरीब कच्ची बस्ती की मलिका के साथ फोटो खिंचवा कर अखबार में दे आती हैं। आह वर्षा वर्णन बड़ा सुहाना, वाह वर्षा के क्या कहना, बाढ़ के लिए खरीद में जीमों चूरमा बाटी की गोठ करों और हाय वर्षा तुम अभी क्यों आई। कुछ समय ठहरती या फिर कब आओगी। मेरे मन में यही सब गुमड़ रहा है। और बाहर मेंढ़क टर्र टर्र कर रहे हैं। केंचुए अफसरों की शक्ल में सचिवालय में रेंग रहे है। बरसाती मेढ़कों की तरह लोग समर्थ की विरूदावलियां गा रहे है। वाह वर्षा वाह।
कालीदास तो श्रृंगार के अप्रतिम कवि है वर्षा मेंढ़क, सुन्दर स्त्रियां, कामदेव उनके प्रिय विषय है, वो बताते हैं की बरसात में नदियां बहती है, बादल बरसते है, मस्त हाथी चिघांड़ते है, जंगल हरे भरे हो जाते है, और अपने प्रियतमों से बिछुड़ी स्त्रियां दुखी होती है मोर नाचते है, और बन्दर गुफाओं में छिप जाते हैं।''
सैकड़ों झरने, हजारों नदिया नाले सब लवालब भर जाते है। और सर्वत्र पानी ही पानी हो जाता है समुद्र की प्यास को बुझाने चल पड़ती है सैकड़ों नदिया, और समुद्र है कि फिर भी प्यासा ही रह जाता है वह प्यासा ही अगली वर्षा का इन्तजार करने लगता है।
धरती पर बिछ गई है एक हरी चादर वर्षा की बूंदे सूर्य की किरणों के कारण हीरों सी चमक रही है। वीर बहूटियों से धरती अटी पड़ी है। चारों तरफ वर्षा की झड़ी लगी है। धरती और समुद्र की प्यास बुझाने वर्षा फिर आयेगी । इन्दर भगवान की कृपा रहेगी। कृष्ण गोवर्धन पर्वत को तर्जनी पर उठा लेंगे और वृन्दावन ही नही संपूर्ण विश्व को आनन्द देंगे।
वर्षा ऋतु सबसे सुन्दर लगती है लोकगीतों में इस सुन्दरता का बड़ा मनोहारी वर्णन है। मैं एक लोकगीत के अंशों के साथ इस प्रबन्ध को समाप्त करने की इजाजत चाहता हूं -
कच्ची नीम की निबौरी,
सावन कब आवेगो ?
बाबा दूर मत दीजो हमकूं
कौन बुलावेगो। ?
हे वर्षा मैं तुम्हारा फिर आह्वान करता हूं। आओ और मुझे भिगोओ।
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यशवन्त कोठारी
86, लक्ष्मीनगर ब्रह्मपुरी बाहर
जयपुर 302002
फोन 2670596
बेहतर व्यंग्य...
जवाब देंहटाएंएक गंभीर रवानगी के साथ...
शानदार व्यंग्य। हालांकि अभी वर्षा पूरी तरह से शुरू नहीं हुई है, पर होने पर यह पूरी तरह से चरित्रार्थ होगा।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }