मानसून के तुरन्त बाद मैं बुखार से पीड़ित रहा। डाक्टरों ने शुरू में वाइरल बताया बाद में टाईफाइड का भ्रम रहा और निदान में मलेरिया पा...
मानसून के तुरन्त बाद मैं बुखार से पीड़ित रहा। डाक्टरों ने शुरू में वाइरल बताया बाद में टाईफाइड का भ्रम रहा और निदान में मलेरिया पाया गया। शुरू में बुखार आते ही मैं नुक्कड़ वाले डाक्टर के पास चला गया। उनके पास डाक्टरी की सनद नहीं है, मगर भीड़ खूब पड़ती है। बिना किसी प्रकार के टेस्ट कराये वे दवाईयां दे देते है और मरीज या तो ठीक हो जाते हैं या ऊपरवाले बड़े डाक्टर के पास चले जाते हैं। इस डाक्टर से निपटकर मेरा रोग जो था वह कुछ और बढ़ गया। खानापीना बन्द हो गया । लिखना पढ़ना भी बन्द हो गया। दफ्तर से मेडिकल लेने के लिए सरकारी डाक्टर की पर्ची जरूरी थी, सो मैंने अब सरकारी डाक्टर का रूख किया, डाक्टर ने आला लगाया, थर्मामीटर लगाया, जांच की, कुछ टेस्ट कराये और मोतीझरा का इलाज शुरू कर दिया। मगर बुखार को न टूटना था न टूटा। बदन और हडि्डयां तक टूट गई। कभी ठण्ड लगे कभी बुखार आये। कभी पसीना आये मुंह कड़वा हो गया जैसे विपक्षी की जीत पर होता है। बुखार दागी मंत्रियों की तरह सरकार रूपी शरीर में टिका हुआ था।
आखिर मैंने फिर डाक्टर बदल लिया। नये डाक्टर ने पुराने नुस्खों को फेंकने के बाद कहा शायद आप को डेंगू या मलेरिया या फ्ल्यू हैं। इन सभी रोगों की अलग अलग पहचान बहुत मुश्किल है, इस कारण मैं आपको सभी के लिए एक दवा लिख देता हूं। मैं मनमार कर वाइरल बुखार, डेगूं बुखार और मलेरिया बुखार की दवाएं खाने में लग गया। खून की जांच, पेशाब, मल की जांच कराने के बाद भी डाक्टर किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में असमर्थ था, मगर मैं धीरे धीरे रोग की गिरफ्त में आ गया था। आखिर हार कर डाक्टर ने एक नये प्रकार का मलेरिया घोषित कर दिया। उसने बताया इस नये मलेरिया, रोग के कीटाणु वर्षों तक शरीर में छुपकर बैठे रहते हैं और मौका देखकर आक्रमण कर देते हैं। मैं समझ गया ये कीटाणु भारतीय राजनीति से आये हैं।
वास्तव में हमारे देश के दरवाजे हर प्रकार की बीमारी के लिए हमेशा खुले हुए रहते हैं। हम किसी भी रोग को अन्दर आने से मना नहीं करते । मलेरिया, डेंगू, फ्ल्यू, आईफ्ल्यू, वाइरल हो या कोई अन्य रोग सभी का इस महान देश में स्वागत है। हमारे पास अपनी बीमारियों का स्टाक भी है और विदेशों से आयात भी कर लेते है। कई बीमारियों का पता तो केवल उसके लक्षणों से ही चलता है। डाक्टर, वैध, हकीम या झोलाछांप कम्पाउडर केवल लाक्षणिक चिकित्सा करके रोगियों को ठीक कर देते हैं। देश की बीमारियों के लिए हजारों डाक्टर दिल्ली में भरे पड़े हैं। डाक्टर ही डाक्टर हर मर्ज की दवा मगर दुर्भाग्य देखिये देश का कि मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की । मेरा मलेरिया भी बढ़ता गया। घर वाले डाक्टर दवा, पथ्य सब बदलते रहे, मगर मेरा मर्ज देश के मर्ज की तरह ठीक नहीं हुआ। मेरा खानापीना सब छूट चुका था। घर वाले जबरदस्ती खिला रहे थे, ताकि सांस चलती रहे। देश की भी यही स्थिति है , देश की सांस को भी बनाये रखना जरूरी है। जो जितना खा सकता है, खाता है और सुखी रहता है। गरीब का उपहास बीमारी भी उड़ाती है।
मेरी बीमारी ने मेरे हाड़ तक तोड़कर रख दिये हैं। ऐसी भंयकर बीमारी तेज बुखार, जो हिम्मत तोड़ देता है। डाक्टर मलेरिया का कारण मच्छर बताते है, मगर मुझे लगता है मलेरिया का कारण व्यवस्था है। करोड़ो रूपये मलेरिया के मच्छरों को मारने के लिए आये, योजना आयोग ने भी दिये, विदेशों से भी आये। मगर डाक्टरों, अफसर ओर नर्स बहन जी ने मिलकर अपना मलेरिया ठीक कर लिया। हम आम जनता के मलेरिया को ठीक करने से क्या फायदा।
इधर बुखार ज्यादा हो गया है। डाक्टर सर पर ठण्डे पानी की पट्टी रखने को बोलता है। मगर इस देश के सिर पर ठण्डे पानी की पट्टी कौन रखेगा । मैं तो आज नहीं तो कल ठीक हो जाऊंगा। मगर देश के मलेरिया को कौन और कैसे ठीक करेगा।
इधर यार दोस्त मजाक में कहने लगे। तुम्हें तो लबेरिया हो गया है। मादा एनोफलीज मच्छर ने तुम्हें काट लिया हैं ओर इस काटने के कारण मलेरिया रूपी लबेरिया हो गया है।
खाट पर पड़े रहने से खराब काम और कोई नहीं हो सकता है। हालांकि बुखार है, मगर चिन्तन मनन और मन्थन को कोई कैसे रोक सकता है। इस कारण चिन्ता और चिन्तन साथ साथ होते रहते हैं।
बुखार के सहारे आदमी चाहे तो कहां नहीं पहुंच सकता है। बुखार से धर्म, अध्यात्म तक का सफर किया जा सकता है। राजनीति पर चिन्तन किया जा सकता है। साहित्य पर विवाद किया जा सकता है मेरा बुखार इस वर्ष की सर्व श्रेष्ठ साहित्यक उपलब्धि हैं। मगर अकदमी माने तब न । बुखार का रंग न पीला होता है और न ही भगवा। बुखर तो बस बुखार होता है। मेरा ताप बढ़ रहा है। मेरा अभिनन्दन करने वालो जल्दी करो फिर ना कहन खबर ना हुई।
बीमारी का एक फायदा ये भी है कि लोग मिलने जुलने आते हैं। फल, फूल लाते है और ढेर सारी हिदायतों के साथ थोड़ी सी शुभकामनाऐं दे जाते है। वे सोचते है, शुभकामनाओं से नहीं आदमी हिदायतों से जल्दी ठीक होता है। डाक्टर घबरा जाते हैं,जब तक सांस तब तक आंस।
वास्तव में मच्छरों का मुख्य काम ही बीमारी फैलाना है वे पूरे देश को बीमार करने की क्षमता रखते हैं। अन्य जानवर ऐसा नहीं करते, मगर मच्छर तो बस बीमारियों के लिए ही जिंदा है। देश को मच्छरों से सावधान रहना चाहिये। मच्छर मार, आन्दोलन एक जन आन्दोलन की तरह चलाया जाना चाहिये। मच्छरों का निर्यात कर देना चाहिये। या इन्हे कम्प्यूटरों से काबू में कर लेना चाहिये। मच्छरों से बचाव के लिए इनकी जनसंख्या पर रोक लगाने के प्रयोग असफल हो गये हैं। पूरे देश को बुखार हो जाने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। आखिर मच्छर का काटा है ये देश बेचारा। बीमारियों की सहनशक्ति राजनीतिक दलों की तरह हो गयी है॥ सब के सब असहिष्णु हो गये है। आज मलेरिया है कल डेंगू है, परसों वाइरल और नरसों फ्ल्यू हो जाता है। सभी राजनीतिक दलों को मच्छर एक साथ काट जाते हैं।
हर व्यक्ति के अपने दुख होते है। हर समाज की अपनी बीमारियां होती है, और बीमारियों के डाक्टर भी होते है। मलेरिया अब बदला लेने पर उतारू है, बुखार धीरे धीरे कम हो रहा है और शरीर में वापस जान आ रही हैं। मैने मलेरिया को साध लिया हैं आप भी बीमारी को साध ले डाक्टर के भरोसे न रहे, जान है तो जहान है। मानसून गया। मच्छर आया। मच्छर आया। मलेरिया लाया।
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यशवन्त कोठारी
86, लक्ष्मीनगर ब्रह्मपुरी बाहर जयपुर 302002, फोन 2670596
व्यंग्य प्रस्तुति के लिए आभार.
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