(नेपथ्य से संस्कृत के निम्न श्लोक की ध्वनि उत्तरोत्तर तेज होती हुई आ रही है, इसी के साथ पर्दा उठने लगता है।) ''ओम ...
(नेपथ्य से संस्कृत के निम्न श्लोक की ध्वनि उत्तरोत्तर तेज होती हुई आ रही है, इसी के साथ पर्दा उठने लगता है।)
''ओम श्री कुर्सिये नमः।
(इसके साथ ही मंचपर दो दीन-हीन कृशकाय व्यक्तित्व दिखाई देते हैं, एक की छाती पर मतदाता व दूसरे की छाती पर प्रहरी लिखा है।)
मतदाता: हे प्रभु अब मुझे उठा ले
मेरे से नहीं जाता
देखा,
यह अन्याय,
ये कुकर्म,
कुर्सी के नाम पर।
प्रहरी : अबे क्या बकता है,
शामत आई है तेरी,
रोता है, ऐसे
मर गया हो बाप जैसे,
साले चुप।
मेरी नौकरी
का क्या होगा।
मतदाता: मां बाप।
मेरी खता
बता।
नहीं तो
अन्दर कर दें,
रोटी तो मिले।
प्रहरी : साले,
को चाहिये रोटी,
काम की कहो,
तो नानी मरती।
चल फूट, फूट यहाँ से।
(मतदाता बेचारा घबरा कर चुप हो जाता है। स्टेज के दूसरे किनारे पर जा कर सर पर हाथ रख बैठ जाता है।)
प्रहरी : है कोई
माई का लाल,
चलाये प्रजातन्त्र
हम कुर्सी के बच्चे,
कुर्सी के बाप
कुर्सी के रक्षक
कुर्सी के भक्षक
चलायेंगे
कुर्सियां,
जूतों की जगह
हां हां
जब चलेगी
कुर्सियां
आयेगा मजा।
(धीरे-धीरे चलकर मतदाता की तरफ जाता है अनदेखे में उसे ठोकर मारता है। मतदाता चिल्लाता है।)
मतदाता: अन्धा है क्या ?
मुझे ठोकर मारता है,
वोट के दिन
अब नहीं शेष,
समझूगाँ, तुझे विशेष।
प्रहरी : तू क्या समझेगा,
छिः तू क्या समझेगा,
जा किसी कोने में खड़ा रह।
अब अपनी बारी की
प्रतीक्षा कर।
कुछ मिलेगा
चबा लेना
अनुभव से पेट भर
कुछ सीख।
यह देश तेरे से नहीं
कुर्सियों से चलता हैै।
रे निरे मूर्ख
(मतदाता फिर एक तरफ हो जाता है नेपथ्य में मीटिंग की आवाजें आती है। शोरगुल के मध्य कुछ चेहरे मंच पर आते है।)
अ : अब क्या होगा ?
पार्टी डूबेगी,
मेरी चुटियां खीचेंगी
मैं क्या जवाब दूंगा ?
एकता के नाम पर
मिटा मेरा नाम।
ब : तो रोता क्यों है,
अभी समय है,
बदल ले अपनी टोपी
हो जायेंगे पौ बारह
सुबह का भूला
भीष्म
अब घर आया समझो।
स : अगर नहीं मिलती कुर्सी
'द' को तो
मैं दूंगा त्याग पत्र
देखता हूँ
कौन रोकेगा मेरे ब्रह्मास्त्र को।
कौन है मुझ से शक्तिशाली
और अभिमानी,
ब : नहीं, छी
मुझे नहीं चाहिये कुर्सी
मैं सेवक हूँ
मुझे सेवक ही
रहने दो,
कहीं कोई
अभिमन्यु मरेगा,
तो मुझे फिर आना होगा
मुझे नहीं
चाहिये चेयर।
स : अभी या फिर
कभी नहीं,
'द' को चाहिये,
'द' है वरिष्ठ
मैं कनिष्ठ
मुझे भी चाहिये।
द : नहीं
मैंने कहा था,
मैं क्या करूँगा
मैं क्या कर सकता हूँ
हम हारे,
क्योंकि संख्या में थे कम
फिर भी हम जीवित है क्यो,
यह कैसी विडम्बना,
खून का घूँट पिया,
मैंने पार्टी को बनाया,
पार्टी को जिताया,
पार्टी ने मुझे क्या दिया
क्या नहीं दिया,
यह मेरा विलाप नहीं
अश्वत्थामा के घाव है।
(अटट्हास करता हुआ चला जाता है।)
ब : मैं
जानता था,
यह नाटक होना था,
हुंआ
लेकिन मुझे क्या
मुझे तो
अपनी चिन्ता है,
पार्टी टूटे या रहे,
वो त्यागे या मरे
मेरी कुर्सी खरी
तो मेरे को नहीं 'वरी'
ब : हां हां
तुम पुराने पापी हो,
तुम्हें किसी से क्या
राष्ट्र सम्मान हो या
कुर्सी सम्मान
तुम कुर्सी के पुजारी
जाओ और कुर्सी पर
टिको।
(अ जाकर एक कुर्सी पर बैठ जाता है।)
(प्रकाश प्रहरी पर व मतदाता पर केंद्रित होता है।)
प्रहरी : क्या होगा,
रात रात
भर जगने से क्या होगा,
देश विदेशों में क्या होगा,
हम जो इतिहास है,
हमारा क्या होगा।
मतदाता: होना क्या है,
आज तक क्या हुआ है।
जो कुछ आगे होगा।
ये लड़ेंगे,
लड़ते थे,
लड़ते रहेंगे।
नहीं होगा,
कुछ नहीं होगा
तेरा कुछ नहीं होगा।.......(रोता है,)
(रोते-रोते फिर एक बार कोने में जाकर सर पर हाथ देकर उदास बैठ जाता है।)
प्रहरी : सुनो
मेरे देशवासियों सुनो
सोचो,
समझो
लेकिन करो कुछ भी नहीं
तुम कुछ नहीं कर सकते,
यही तुम्हारी नियति है,
अरे हाय
कैसी ट्रैजेडी है
हम
गांधी के बन्दर
कल तक थे सिकन्दर
आज कुछ भी नहीं
वाह रे मुकद्दर।
(चल कर मतदाता के दूसरे वाले कोने में जाकर बैठ जाता है। आकाश निहारता है। अचानक गड़गड़ाहट की आवाज, प्रकाश, फिर आवाज फिर प्रकाश और अन्त में देव वाणी)
घबराओ नहीं
कुछ नहीं होगा,
यह देश
चलता रहा है
चलता रहेगा।
इसी तरह
लड़ने वाले
लड़-लड़ कर
मर जायेंगे।
फिर कोई
भीष्म-गांधी
बुद्ध महावीर
बचायेगा
भारत मां का चीर।
(मंच पर अ ब द स फिर आते है)
अ : वो आये
एकता के
रखवाले
लगायेंगे नारे
चले जायें।
ब : मैं
क्यों
चिल्ला रहा हूँ,
हमारे देश में
एकता में अनेकता
अनेकता में एकता
सब में एक
एक सब में
निराश न हों, प्यारे
होने वाले है वारे-न्यारे।
अ : मैंने
पटाया है 'न' को
वह मान
गया है,
अब कुर्सी पर बैठेगा,
हम उसके सहारे
कहीं चिपकेंगे।
द : मैंने प्रेस वालों को
है बुलाया
उन्हें स्काच से
लेकर देशी तक पिलाई,
कुछ को लड़कियां दिलाई
देखना कल के अखबारों में
कई गुल खिलेंगे,
कई पुराने दीपक बुझेंगे।
स : ये हुई ना कुछ बात
अरे सीधी से घी नहीं निकलता।
बहुत हाथ जोड़े
मानते ही नहीं
अब आओ,
वहीं मैदान
और वहीं घोड़े,
देखे कौन तेज दौड़े।
ब : तो कोई नया
सूत्र लाये हो,
समझौते का
या
'एकला चालो' का
नारा ही लगा रहे हो।
हम राजनीति के मोहरे हैं
कोई फुटबाल नहीं
कभी इस कोर्ट में
और
कभी आऊट
कभी लाइन आऊट
तो कभी मेन आऊट
कभी हूट
तो कभी पेराशूट
क्यो रे भरभूट।
अ : तो क्या हो गया,
काणे के ब्याह में
सौ रगड़े
अभी बढेंगे झगड़े
मैंने अखबारों में दिया,
मित्रों से कहा
मुझे मत निकालो
सब डूब जाओगे,
मेरा इस्तीफा वापस लाओ
कोई तो कुछ करो
मगर,
हाय रे दुर्भाग्य,
कोई नहीं सुनता
ओर क्यों सुने
आग लगी है,
मेरे घर।
क्यों पड़ोसी आये मेरे घर,
मैं क्या करता
कार्यकारिणी में कहा,
रैलियाँ निकलवाई,
तुम नहीं जानते।
मेरे चरित्र हनन के नाम पर
अश्लील फोटो खींचे,
मैंने
सत्य को छुपाया,
नहीं, पचाया,
उसे उगला नहीं
नहीं तो क्या होता इस देश का,
पार्टी का,
सर्वनाश।
अब भी समय है,
घावों पर मरहम
कभी-कभी सराहो,
पटिट्यां बांघो,
मुंह पर
और चुप चाप
तमाशा देखो।
(मंच पर एक मीटिंग का माहौल। कुर्सियों पर अ' ब, स, द बैठे हैं)
अ : मैं चाहूं तो
डूबा दूं सबको,
मेरे जीते जियेगी
पार्टी
मेरे साथ
मरेगी पार्टी
कौन है जो इसे
लाकर देगा
संजीवनी,
मेरे सिवाय।
बोलो
कोई तो बोलो
ग : लो,
फिर
नया सूत्र
सूत्रों पर सूत्र
उसके ऊपर सूत्र
नीचे सूत्र
दायें सूत्र
बायें सूत्र
सर्वत्र सूत्र ही सूत्र
लेकिन क्या होगा
कुछ नहीं
स द को लेना पड़ेगा।
स : नहीं,
मैं अकेला
नहीं आता
मेरा सम्पूर्ण दल
आता है।
नहीं तो मैं जाता हूँ।
(स चला जाता है......)
द : मैं कोई
अकेला आया था
जो आऊंगा अब
मैं वही करूँगा
जो कहेंगे सब
मेरा दल
कोमल
है
कमल की तरह
सभी पंखुड़ियां
जुड़ी हैं।
सभी साथ आती है।
साथ जाती है।
अ ब : यह नहीं कैसे
छिः
कैसी बात करते हैं आप
नहीं जानें से होगा हल
नाजुक हाल
सर्वत्र है बेहाल।
(स वापस आता है)
अ- : ब को लो
ब- : अ को लो
स- : द को लो
द- : स को लो
अ- : ब---- अ---- अ---- ब----
स---- द---- स---- द---- अ----
(तेजी से अ ब द स का सामूहिक गान)
गायन
कमेटी समेटी
चमेटी दमेटी
अमेटी कमेटी
बमेटी समेटी
चमेटी घमेटी
मैं नहीं जानता कुछ
होगा सर्वनाश अब
मैं क्यों कहुं बार-बार
कमेटी अमेटी,
चमेटी दमेटी-----
(गायन के साथ-साथ अ ब स द आपस में जूते मार लड़ने लग जाते हैं मतदाता जाकर छुड़ाता है)
मतदाता-: मैं जानता
था
यही होगा
यही होगा।
छिः
कैसे हैं यह लोग
डिग्री घारी
पढ़े लिखे,
लेकिन
मेरे से ज्यादा नासमझ लोग
दया करो
मेरे प्रभु इन
पर दया करो
ये नहीं जानते कि
ये क्या
कर रहे हैं।
अपना
मेरा
देश का
सर्वनाश
दया करो प्रभु
मेरे प्रभु दया करो।
द : मैंने राजनीति
की लंगोट
खोल कर
रख दी है
मैं
उदास
क्यों नहीं मेरा
नाम
मंत्री-सूची में
क्या मैं
आपसे भी
गया बीता हूँ
नहीं
खेली गई है चाल
मैं नहीं करूँगा
इन्हें माफ।
बदले की
ज्वाला से
जल रहा
जाता हूँ,
नाम फिर लिखाता हूँ
देखता हूँ
कौन करता है मुझे बाहर।
(द जाता है)
(मंच पर क्षीण प्रकाश होता है। मतदाता और प्रहरी चलते हुए मंच के मध्य में आते है)
प्रहरी : खाई के
पान बनारस वाला
मतदाता : खोले बन्द
अकल का ताला
फिर तोड़े सीधी कर दें
सब की चाल
छोरा गांगा किराने वाला।
प्रहरी : मैं हूँ प्रहरी
इस मंच का
इस अन्धे युग का
जो सदियों से चल रहा है,
अब गहरा गया है।
मैं शापित हूँ,
नहीं, नहीं मैं नापित हूँ।
मतदाता : अरे
तुम्हारे
पहरे
से आज तक
क्या हुआ,
जिसने चाहा
अन्दर आया
जिसने चाहा
बाहर गया।
इस तरह कब तक चलेगा,
कभी क्राउड में
कभी ग्राउन्ड में
कभी माइन्ड में,
कभी काइन्ड में,
इसी तरह रहेंगे।
इसी तरह प्रतीक्षा
करेंगे।
एक और
अन्धे युग की
एक और अन्धेरे कल की
जो लपेट लेगा हमें
हजारों-हजारों
वर्षों के लिये।
(प्रहरी और मतदाता दोनों सर पर हाथ रख बीच मंच पर बैठ जाते हैं)
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(डा. धर्मवीर भारती से क्षमा याचना सहित)
good natak
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