संस्थान के हैदराबाद केन्द्र के प्रभारी डॉ0 पी0 विजय राघव रेड्डी ने नवीकरण पाठ्यक्रम के उद्घाटन समारोह में आने के लिए मुझे आमंत्रित किय...
संस्थान के हैदराबाद केन्द्र के प्रभारी डॉ0 पी0 विजय राघव रेड्डी ने नवीकरण पाठ्यक्रम के उद्घाटन समारोह में आने के लिए मुझे आमंत्रित किया। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के हैदराबाद केन्द्र ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास के सहयोग से 5 सितम्बर 1993 से 14 सितम्बर 1993 तक नवीकरण पाठ्यक्रम आयोजित किया था। मैंने उनसे मालूम किया कि पाठ्यक्रम के उद्घाटन समारोह में ऐसी क्या विशेषता है जो आप मुझे आमंत्रित कर रहे हैं। उन्होंने मुझे अवगत कराया कि पद्मभूषण डॉ0 मोटूरि सत्यनारायण जी ने समारोह का उद्घाटन करने की स्वीकृति दे दी है।
5 सितम्बर 1993 को दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास( चेन्नई ) के हॉल में उद्घाटन समारोह आयोजित हुआ। डॉ0 मोटूरि सत्यनारायण जी से मिलकर मुझे नई चेतना एवं नई स्फूर्ति का अनुभव हुआ। उनके उद्घाटन भाषण में उदात्त एवं उदार विचारों की अभिव्यक्ति हुई। उनका भाषण सात्विक श्रम एवं अध्यवसाय का ही प्रमाण नहीं था, उन्नत मेधावी मनीषी एवं अर्न्तदृष्टि युक्त प्रज्ञा पुरुष के तत्वान्वेषण का सहज प्रस्फुटन था।
हिन्दी का प्रत्येक विद्यार्थी इस तथ्य से अवगत है कि हिन्दी को जो संवैधानिक महत्व मिला उसमें आपका महत्वपूर्ण अवदान है। भारतीय संविधान सभा के सदस्य होने का गौरव आपको प्राप्त हुआ। सन् 1940 से 1942 ई0 तक भारत में महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में व्यक्तिगत सत्याग्रह और भारत छोड़ो आन्दोलन हुआ। उस काल में हिन्दी का प्रचार-प्रसार करना स्वाधीनता-आन्दोलन का अविभाज्य अंग था। दक्षिण में स्वाधीनता आन्दोलन एवं हिन्दी का प्रचार-प्रसार परिपूरक थे। विभिन्न राजनैतिक आन्दोलनों के समय तत्कालीन राज-सत्ता ने राजनैतिक नेताओं के साथ-साथ हिन्दी प्रचारकों को भी कैद किया। मोटूरि सत्यनारायण जी ने जेल में रहकर हिन्दी प्रचार का कार्य जारी रखा। जेल से मुक्त होने पर आपने हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक योजनाएँ बनाईं। इन योजनाओं में केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण मंडल योजना, दक्षिण के साहित्य की प्रकाशन योजना एवं कला भारती की योजना आदि सर्वविदित हैं। मैने अपने भाषण में केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण मण्डल योजना के सम्बन्ध में सभागार में उपस्थित श्रोताओं को अवगत कराया। मैंने कहा कि केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के जन्म का श्रेय मोटूरि सत्यनारायण जी को है। इस संस्था के निर्माण के पूर्व आपने महात्मा गांधी की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से स्थापित दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के माध्यम से दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार के क्षेत्र में अनुपम योगदान दिया। भारत की स्वतंत्रता के बाद आप राज्य सभा के मनोनीत सदस्य बने। इस कारण मद्रास के स्थान पर देश की राजधानी उनके कार्यक्षेत्र का केन्द्र बन गई। आपने कुछ अन्य राष्ट्र सेवक हिन्दी सेवियों के सहयोग से आगरा में ‘‘अखिल भारतीय हिन्दी परिषद्'' की स्थापना की। संविधान सभा के अध्यक्ष एवं भारत के प्रथम राष्ट्रपति महामहिम डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद परिषद के अध्यक्ष थे। श्री रंगनाथ रामचन्द्र दिवाकर तथा लोकसभा के तत्कालीन स्पीकर श्री मावलंकर परिषद् के उपाध्यक्ष थे। प्रसिद्ध उद्योगपति श्री कमलनयन बजाज परिषद् के कोषाध्यक्ष थे। इसके दो सचिव थे - (1) श्री मोटूरि सत्यनारायण (2) श्री गो0प0 नेने। डॉ0 मोटूरि सत्यनारायण जी ने हिन्दीतर राज्यों के सेवारत हिन्दी शिक्षकों को हिन्दी भाषा के सहज वातावरण में रखकर उन्हें हिन्दी भाषा, हिन्दी साहित्य एवं हिन्दी शिक्षण का विशेष प्रशिक्षण प्रदान करने की आवश्यकता का अनुभव किया। इसी उद्देश्य से परिषद् ने सन् 1952 में आगरा में हिन्दी विद्यालय की स्थापना की। सन् 1958 में इसका नाम ‘‘अखिल भारतीय हिन्दी विद्यालय, आगरा' रखा गया। श्री मोटूरि सत्यनारायण जी ने अपने परिषद् के विद्यालय का प्रबन्ध भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय को सौंपने का निर्णय किया। मैंने श्रोताओं को अवगत कराया कि जिस संस्था (दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास) में आज कार्यक्रम हो रहा है उसके सर्वेसर्वा मोटूरि सत्यनारायण जी रहे तथा जिस संस्था (केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के तत्वावधान में आज कार्यक्रम हो रहा है वह संस्था मोटूरि जी की विलक्षण प्रतिभा, श्रेयस्कर दृष्टि, समन्यवादी राष्ट्रीय चेतना तथा स्पृहणीय क्रियाशीलता का प्रतिफल है।
मोटूरि जी को चिन्ता थी कि हिन्दी कहीं केवल साहित्य की भाषा बनकर न रह जाए। उसे जीवन के विविध प्रकार्यों की अभिव्यक्ति में समर्थ होना चाहिए। उन्होंने कहा -
‘‘भारत एक बहुभाषी देश है। हमारे देश की प्रत्येक भाषा दूसरी भाषा जितनी ही महत्वपूर्ण है, अतएव उन्हें राष्ट्रीय भाषाओं की मान्यता दी गई। भारतीय राष्ट्रीयता को चाहिए कि वह अपने आपको इस बहुभाषीयता के लिए तैयार करे। भाषा-आधार का नवीनीकरण करती रहे। हिन्दी को देश के लिए किए जाने वाले विशिष्ट प्रकार्यों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बनना है।''
डॉ0 मोटूरि सत्यनारायण जी ने ‘प्रयोजन मूलक हिन्दी' की संकल्पना को हिन्दी जगत के सामने रखा। प्रयोजनमूलक हिन्दी के लिए आपने अप्रमत्त भाव से जो कार्य किया उससे न केवल केन्द्रीय हिन्दी संस्थान को अपने शैक्षिक कार्यक्रमों में बदलाव के लिए प्रेरणा मिली अपितु बाद में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को भी मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। इस सम्बन्ध में आपने हिन्दी एवं जनतंत्र के अर्न्तसम्बन्धों को लेकर जो चिन्तन प्रस्तुत किया वह आपके गम्भीर अध्येता होने का प्रमाण है तथा भारत की समन्वयशील संस्कृति, समन्यववादी चेतना और उदार वृत्तियों का परिचायक है।
समारोह सम्पन्न होने के बाद मेरा उनके साथ विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श हुआ। मैं उनके औदार्य और औदात्य व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ। मैंने उन्हें आगरा सत्रान्त समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में पधारने का आमंत्रण दिया। उन्होंने आमंत्रण स्वीकार किया। सन् 1994 ई0 के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के सत्रान्त समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में पधारकर उन्होंने जो विचार प्रस्तुत किए उनसे संस्थान की भावी योजनाओं को आकार देने की दिशा तथा उस समय प्रवर्तमान परियोजनाओं को पूर्ण कराने की प्रेरणा प्राप्त हुई। यह उनका अन्तिम संस्थान-संदर्शन था। उन्होंने भारत की समन्वयशील संस्कृति, समन्यवादी चेतना तथा राष्ट्रीय एकता एवं एकीकरण की माध्यम हिन्दी के प्रचार-प्रसार आदि क्षेत्रों में जो योगदान दिया, उस प्रदाय का एक संस्मरणात्मक लेख में आकलन करना सम्भव नहीं है।
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मोटूरि सत्य नारायण ः जीवनवृत्त
1. जन्म ः 2 फरवरी, 1902
2. जन्मस्थान ःआन्ध्र प्रदेश के कृष्णा जिले का दोण्पाडु ग्राम
3. निधन ः 6 मार्च, 1995
4.पद ः दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के प्रचार संगठक, आन्ध्र-प्रान्तीय शाखा के प्रभारी, मद्रास (चेन्नई) की केन्द्र सभा के परीक्षा मंत्री, प्रचारमंत्री, प्रधानमंत्री (प्रधान सचिव), राष्ट्र भाषा प्रचार समिति, वर्धा के प्रथम मंत्री, भारतीय संविधान सभा के सदस्य, राज्य सभा के मनोनीत सदस्य (प्रथम बार-1954 में), केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के संचालन के लिए सन् 1961 में भारत सरकार के शिक्षा एवं समाज कल्याण मंत्रालय द्वारा स्थापित ‘केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण मण्डल' के प्रथम अध्यक्ष (चेयरमेन), राज्य सभा के दूसरी बार मनोनीत सदस्य, केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण मण्डल के दूसरी बार अध्यक्ष (1975 से 1979)
5. गतिविधियांँ एवं कार्य ः-
दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार आन्दोलन के संगठक, हिन्दी के प्रचार-प्रसार-विकास के युग-पुरुष, गाँधी जी से भावित एवं गाँधी-दर्शन एवं जीवन मूल्यों के प्रतीक, हिन्दी को राजभाषा घोषित कराने तथा हिन्दी के राजभाषा के स्वरूप का निर्धारण कराने वाले सदस्यों में दक्षिण भारत के सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक।
दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति तथा केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के निर्माता।
6. उपाधियाँ एवं सम्मान ः-
भारत सरकार, अनेक विश्वविद्यालयों, दक्षिण भारत की हिन्दी प्रचार-प्रसार की संस्थाओं एवं केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा सम्मानित।
विशेष उल्लेखनीय ः-
1. पद्म भूषण (भारत सरकार)
2. डी0 लिट्0 (मानद्) (आन्ध्र विश्विद्यालय)
3. हिन्दी प्रचार-प्रसार एवं हिन्दी शिक्षण-प्रशिक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए ‘गंगा शरण सिंह पुरस्कार' प्राप्त विद्वानों में सर्वप्रथम है।
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प्रो0 महावीर सरन जैन
(सेवानिवृत्त निदेशक
केन्द्रीय हिन्दी संस्थान)
123, हरिएन्कलेव, चांदपुर रोड, बुलन्दशहर-203001
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