कदम कदम चलना सीख गया है मुन्ना। नन्हें-नन्हें कदमों से भागता है तो सांस रोके देखती रह जाती हूँ। पक्षियों के पीछे जाएगा। तितलियो...
कदम कदम चलना सीख गया है मुन्ना। नन्हें-नन्हें कदमों से भागता है तो सांस रोके देखती रह जाती हूँ। पक्षियों के पीछे जाएगा। तितलियों को देखेगा और कभी रात में अगर जुगनू दिखाई दे जाएं तो चांदी है मुन्ने की।
पानी में तो उसके प्राण बसते हैं। एक दिन दरवाजे के पास जरा सा बरसात का पानी इकट्ठा हो गया। मुन्ने के मन में तो लड्डू फूट दिए। नन्हें-नन्हें पांवों से पानी में छप-छप करता छींटें उड़ाता खिलखिलाने लगा। गर्मियों का मौसम हो तो बात ही और है। पाइप पकड़ घास को नहला देता है। क्यारियों में बाढ़ ला देता है। पेड़ -पौधों की नख-शिख धुलाई कर देता है। पाइप के आगे जरा सी अंगुली अटका दूरगामी और ऊँची बौछार बनाते उसकी मुस्कान फूट-फूट पड़ती है। नहाने के लिए जब टब में बैठ जाए तो घंटों बीत जाते हैं और निकालना मुश्किल हो जाता है।
मुन्ने ने रेसिंग साइकिल लिया है। उसका मन करता है कि इसे खूब तेज चलाए और घर से बाहर चलाए। घर चार सौ गज का हो या हजार गज का- उसे सदा छोटा ही लगता है। बाहर को भागता है। सबका ध्यान दरवाजे की चिटकनी लगाने में ही अटका रहता है। ममा पपा वाले घर की गली में हर पल कारें- स्कूटर आते-जाते रहते हैं और ममा की ममा यानी नानी यानी मॉम को भी वाहनों से, कुत्तों से डर लगता है। पर वह लाडला है। उसकी कोई भी आकांक्षा मॉम के यहां टाली नहीं जा सकती। मॉम साथ-साथ जाएंगी। यहां अपना तिपहिया वाहन चला कर मुन्ने को बहुत मज़ा आता है। दाएं मुड़ो तो आगे शापिंग काम्पलेक्स है। वह मनपसंद खरीददारी करने के बाद अपनी चीज़ें डिक्की में रख लेता है। बाएं मुड़ो तो पार्क है। मुन्ना सीसा लेता है, रेलिंग लेता है, मेरी- गो- राउंड पर मजे करता है, लटकने का यत्न करता है, झूले पर धीरे-धीरे झूलता है और फिर संतुष्ट मन से लौट आता है।
मुन्ना आग से खेलने वाला बहादुर बच्चा है। अग्नि देवता की उपस्थिति में उसके तेवर ही बदल जाते हैं। मंदिर उसे अच्छा लगता है, क्योंकि वहां उसे माचिस या लाइटर मिल जाते हैं। वहां धूप या अगरबत्ती होती है, ज्योति होती है। हवन उसे अच्छा लगता है, क्योंकि जैसे ही उसमें सामग्री या आहूति डालो, अग्नि तेज होने लगती है। जन्म दिन उसे भाते हैं, क्योंकि किसी का भी जन्म दिन हो, वर्षगांठ हो-केक की मोमबत्तियाँ जलाने का काम मुन्ने के सुपुर्द ही रहता है। उसकी दीपावली महीनों चलती है। उसके लिए कुछ शुर्लियां, कुछ फुलझड़ियां, कुछ चक्रियां, कुछ अनार बचा कर रखने ही पड़ते हैं।
मुन्ना आता है तो मेरे घर में, मन में उत्सव सा उन्माद छा जाता है। मुन्ना बोलता है तो ठंडी बौछारें पड़ने लगती हैं, खिले-खिले फूलों की सुगंध हर ओर फैलने लगती है।
मुन्ने के मॉम में प्राण बसते हैं। क्यों ? ममी-पापा दिन में पच्चास बार कहेंगें - यह मत करो, यहां मत जाओ, इसे मत छेड़ो। बहुधा घूरना और थप्पड़ दिखाना उनके सारे लाड पर पानी फेर देता है। पर मॉम है कि मुन्ने के मन की हर बात पहले ही जान लेगी। वह उन्हें डोमिनेट कर सकता है। अपने इशारों पर नचा सकता है। कर्त्ता होने का सुख भोग सकता है।
खिलौनों के प्रति उसका स्वाभाविक आकर्षण है। अगर गुब्बारे वाले के यहां कुछ खास पसन्द आ जाए तो झट से बोल देगा, मैं अब बड़ा हो गया हूँ, गुब्बारों से नहीं खेलता। तीर-कमान से राम जी की तरह खेलूंगा। बैट बाल ठीक है। लॉन के किसी पेड़ की टहनी तोड़ मोड़ कर कंधे पर रखेगा और कहेगा-
‘मैं हनुमान जी बन गया हूं। लक्ष्मण जी के लिए संजीवनी बूटी लाया हूँ।'
कुछ न पसंद आए तो यह भी बोल देगा- ‘यह तो लड़कियों वाला है।'
उसके खेल नितान्त मौलिक हैं।
मुन्ना चाकलेट बेचेगा, सब्जी बेचेगा, केले बेचेगा। पूछ कर देखें-
‘चाकलेट अंकल ! चाकलेट कितने का ?'
‘दो पैसे का।'
‘अंकल एक देना।'
वह झूठमूठ का चाकलेट देगा, पैसे लेकर जेब में डालेगा और कहेगा-
‘यह लो बाकी पैसे।'
उसकी सर्वाधिक प्रिय गेम है- कारीगर बनना, मेकैनिक बनना और सर्वाधिक प्रिय खिलौने हैं- स्कूटर या कार के औजार। इस तरह की मकैनो भी उसे पसंद है। अपने तिपहिया वाहन को उलटा करके घंटों लगा रहेगा।
स्कूल-स्कूल खेलना और टीचर बनना उसे पसंद है। चादर में घर बनाना उसे भाता है।
‘ट्रिन ट्रिन।'
‘कौन है ? '
‘मैं हूँ ! रक्षिता !'
‘आइए जी, आइए जी। बैठिए।'
‘नमस्ते जी।'
‘क्या हाल-चाल हैं ?'
‘हम तो ठीक हैं बस।'
‘आप कोक पिएंगे या चाय ?'
मुन्ना बड़ों की तरह बोलता है।
बाजार जाने का उसे विशेषतः रहता है।
‘मॉम चलो।'
‘कहाँ ?'
‘डाक्टर सैट लेना है।'
और डाक्टर सैट उसे इतना पसंद आया कि पूछो न।
चार दिन बाद लोहड़ी थी। कहा-
‘आज खेल लो, तब ले जाना।'
पर डाक्टर सेट की सुरक्षा के लिए वह इतना सतर्क हो उठा कि उसे सिर के नीचे रखकर सोया। जाते समय अटैचीनुमा वह डिब्बा अपने हाथ में ही रखा। ऐसे मौकों पर किसी पर भी भरोसा करना उसे नहीं भाता।
मुन्ने के कुछ रहस्य हैं, जिन्हें वह किसी से साझा नहीं करता और मन की सात परतों में छिपे रहस्य सिर्फ मॉम को बताएगा। घण्टों खेलने के बाद लॉन में छोटी कुर्सी पर बैठा मुन्ना गुरु गम्भीर स्वर में बोला-
‘ममा मुझे मारती है।'
‘पहले मारती है, फिर कहती है चौप्प।'
उसने तुतलाती आवाज में अपने दुख सांझे किए।
मॉम अंदर-बाहर तक हिल गई। पौने तीन साल के बच्चे के दुख। और फिर मुन्ने की ममा को समझाया गया। हिदायतें दी गई। कोमल मन पर खरोंच न पड़ जाए, ठीक-गलत का अंतर स्पष्ट किया गया। दिनों तक मॉम कभी मुन्ने से, कभी उसकी ममा से पूछ ताछ करती रही। स्कूल में कोई बच्चा परेशान करे तो छुट्टी तक उसके चेहरे पर परेशानी खुदी रहती है। हां ! ममा से बात करने के बाद उसका मन अवश्य हल्का हो जाता है।
एक नम्बर का नकलची है मुन्ना।
‘मुन्ना ! गुप्ता अंकल कैसे हँसते हैं ?' दोनों हाथों से ताली बजा जोर-जोर से हँसेगा।
‘नानू क्या कहते हैं ?'
‘ओ तेरा भला हो जाए।'
आपके आने पर दीदी (मौसी) क्या कहती है-
‘हैलो जीजू'।
‘जीजू कौन है ?
‘मैं हूँ।'- वह पूरे आत्म विश्वास से बोलता है।
उसके रहस्यों की कई परतें हैं। आत्मीयता के क्षणों में बोला-
‘मुझे आपका घर ममा के घर से अच्छा लगता है, पर ममा को नहीं बताना।'
अगर उसकी बात बता दो, तो गुस्से में डांट अवश्य जाएगा।'
शरारतों से बाज न आने पर कभी मुन्ने को पुलिस अंकल से, कभी बोरी वाले बाबे से, कभी काक्रोच से, कभी छिपकली से डराया जाता था। पर जल्दी ही उसने इस झूठ को खेल में तबदील कर दिया। मोबाइल पकड़ पूरे रौब से बोलेगा-
‘पुलिस अंकल ममा को पकड़ कर ले जाओ। मुझे तंग कर रही हैं।'
‘मुझे पुलिस पकड़ कर ले जाए।' ममा ने रोने का नाटक किया।'
पर मुन्ना पूरे रौब में था- ‘सॉरी बोलो।'
'सॉरी।'
‘पुलिस अंकल! मत आना , ममा ने सॉरी बोल दिया है।'
कालोनी के सेक्योरिटी गार्ड से मुन्ने की दोस्ती हो गई है। उसके पास देर तक बैठा-खड़ा बतियाता रहता है।
वह पूछेगा- ‘आपका बाईक कितने का है।'
मुन्ना झट से जवाब देगा- ‘दो रूपए का।'
‘पेट्रोल डलवा लिया ?'
‘हां! दो हजार का पेट्रोल डलवा लिया।'
मुन्ने के कानों में अतिरिक्त श्रवण शक्ति है। दूर से आ रही बेकरी वाले की आवाज़ उसे सुन जाती है। वह चौकन्ना हो उठता है। उठकर अंगुली पकड़ लेता है। बाहर तक ले आता है और फिर आंखें घुमा-धुमा कर संकेत देता है कि वैफर/ चिप्स वाले अंकल आ रहे हैं।
तर्कशक्ति अकाट्य है मुन्ने की।
‘खाना ऐसे फेंकते हैं ? भगवान जी होते हैं इसमें'- ममा ने डांटा।
चपाती की बाइट मुँह में डालते बोला- ‘क्या मैं भगवान जी को खा रहा हूँ ?'
छिपकली और काक्रोच से मुन्ना डरता है और उसे स्पष्ट है कि इनसे डरना चाहिए। बाथरूम में एक छोटा सा छिपकली का बच्चा देख वह भयभीत हो गया। मैंने उसे बातों में लगाना चाहा-
‘छिपकली ने कपड़े ही नहीं पहने।'
वह झट से बोला-‘छिपकली कपड़े नहीं पहनती।'
'छिपकली की ममा कहां है ?'
'छिपकली की ममा नहीं होती।'
हर बात समझने और समझाने का उसका अपना तरीका है।
‘आप एरोप्लेन में श्रीनगर जाओगे, तो बड़ा मज़ा आएगा। एरोप्लेन में खाना भी आता है।' मैने उसका व्यावहारिक ज्ञान बढ़ाने के लिए कहा।
‘मैं ममा पापा के साथ छुक-छुक गाड़ी पर दिल्ली गया था, तो वहां भी खाना आता था।'
चीज़ों और बातों में संगति बिठाना उसे आता भी है और भाता भी है।
पास-पड़ोस में, नाते- रिश्ते में, जान-पहचान में अनेक नन्हें बच्चे हैं, लेकिन इस मन में मुन्ने की जगह अपनी है, अपनी और अद्वितीय।
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डॉ. मधु संधु, बी-14, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर-143005, पंजाब
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