दादाहीनता से ग्रसित मर्दों के सशक्तिकरण की प्रतिबद्धता के प्रति वचनबद्ध हो समाज के तमाम मर्दों को सूचित किया जाता है कि मुहल्ले के मर्द जागर...
दादाहीनता से ग्रसित मर्दों के सशक्तिकरण की प्रतिबद्धता के प्रति वचनबद्ध हो समाज के तमाम मर्दों को सूचित किया जाता है कि मुहल्ले के मर्द जागरूकता मंच द्वारा मर्द अधिवेशन अगले हफ्ते धूमधाम से किया जा रहा है। इस अधिवेशन को शहर के नामचीन धर्म पत्नियों के सताए मर्द संबोधित करेंगे।
बंधुओ, आप तो जानते ही हैं कि जबसे नारी सशक्त हुई है, मर्द घुट-घुट कर जीने को विवश हो रहा है। जबसे नारी अपने अधिकारों को जानने लगी है, मर्द की दशा शोचनीय हो गई है। जबसे नारी शिक्षित हुई है,मर्द की स्थिति समाज में दयनीय हो गई है। जबसे नारी चाहर दीवारी से बाहर आई है, मर्द का नारी पर से एकाधिकार खत्म हो गया है। जबसे नारी बास बनी है, बेचारा मर्द किचन में कैद होकर रह गया है। जबसे नारी ने आर्थिक क्षेत्र में अपने को आजमाया है, बेचारे मर्द को बरतन धोने, कपड़े धोने का काम करना पड रहा है। वह मर्द न होकर आया बन कर रह गया है।
हम मर्दों ने आजतक नारी को अपने कब्जे में जैसे- कैसे रखा है। नारी को उपभोग की वस्तु समझा है। आज उसकी यह हिम्मत! आपको यह सब देख रोना नहीं आ रहा हो तो इसका सीधा सा मतलब है कि आप मर्द नहीं। आपकी आंखों का पानी भी ग्लोबल वार्मिंग से सूख चुका है। दोस्तों, यह खतरे की घंटी नहीं, साइरन है। अगर आप आज नहीं जागे तो तय मानिए कभी सोना नसीब नहीं होगा। इसलिए अगर चैन से सोना है तो जाग जाओ।
मित्रों! हम उस परंपरा के मर्द हैं जिन्होंने नारी की अग्नि परीक्षा ली। हम उस परंपरा के मर्द हैं जिन्होंने नारी को गर्भवती होने के बाद लोक लाज के डर से त्याग दिया। हम उस परंपरा के मर्द हैं जिन्होंने शौक के लिए नारी को भरी संसद में दांव पर लगा दिया। हम उस परंपरा के मर्द हैं जो पहले तो प्रेम का ढोंग करते हैं और मन भर जाने के बाद प्रेमिका को छोड़ शान से सेहरा बांध कहीं और निकल पड़ते हैं। घोड़ी की आंखों से आंसू झरते हों तो झरते रहें, पर हमने अपनी आंखों की चमक कभी कम नहीं होने दी है। हम उस गौरवशाली परंपरा के प्रतीक हैं जो रात- रात भर देवदास हो कोठों पर पड़े रहते आए हैं, धर्म-पत्नी घर में इंतजार करती हो तो करती रहे। यह उसका धर्म है। यह उसकी नियति है। हम उस परंपरा के मर्द हैं जो नारी को देवदासी बना भी उसे अधिकार पूर्वक शोषित करते आए हैं। हम मर्द उस परंपरा के कीर्ति स्तंभ हैं जो सन्यासी होने के बाद भी जीवन में नारी को सन्यास से ज्यादा महत्व देते आए हैं। हम उस परंपरा के मर्द हैं जिनके गांव में आज तक बारात नहीं आई। हम उस परंपरा के मर्द हैं जो पत्नी को अकेला छोड़ घुप्प रात में असत्य की खोज में निकल पड़ते आए हैं। हम उस परंपरा के मर्द हैं जिनके पांव की ठोकर मात्र से ही नारी को मुक्ति मिलती आई है।
ऐसे में, क्या आज हम अपने गौरवपूर्ण अतीत को छोड़ दें? इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में हमारे गए मर्दों ने जो झंडे गाड़े हैं, क्या उन्हें उखाड़ दें? लानत है ऐसे मर्द समाज पर। मुझसे तो यह लानत सहन नहीं होती, आप कर सकते हैं तो सहन करते रहें।
हद है यारो! आप लोग नारी सशक्तिकरण के लिए मंचों पर उछलते रहे, अपनी नारी को सशक्त करने के चक्कर में खुद अशक्त होते रहे। वह सशक्त होती रही और आप घर के दरवाजे पर बैठ उसका इंतजार करते रहें? यह कहां का कानून है? अपने पांव पर खुद कुल्हाड़ी मारना कहां की बुद्धिमत्ता है?
इसलिए अगर आपको अपनी सत्ता बचाए रखनी है, अपनी मर्यादा बचाए रखनी है तो आइए और हम मर्दों के साथ अपना कंधा मिलाइए। याद रखिए! जीवन का रथ हमेशा एक ही पहिए से चलता आया है, भविष्य में भी एक ही पहिए से चलता रहेगा।
बस! इन्हीं कुछ मर्द समाज पर आए संकटों को ध्यान में रखते हुए मर्द अधिवेशन बुलाया जा रहा है ताकि मर्दों को उनकी अस्मिता पर छाए संकटों से अवगत करवाया जा सके। घटाते लिंग अनुपात के बाद भी नारी को सशक्त करने की आपकी सोच क्या दर्शाना चाहती है दोस्तों? हम वह हैं जो पत्नी सहित प्रेमिकाएं तो बीस- बीस रखना चाहते हैं पर अपने घर में बेटी नहीं चाहते। और इधर सरकार के हाल तो देखिए,महिला आयोग तो बना दिया पर मर्द आयोग के नाम पर पत्थर तो क्या, एक रोड़ा भी नहीं रखा। हम मर्द आपसे यह पूछना चाहते हैं ऐसा क्यों? हमारी सामंती सोच पर अपनों ही द्वारा आक्रमण क्यों? यह कैसा लाकतंत्र है जहां सरकार तो मर्द बनाते हैं और बनता महिला आयोग है।
अतः आप सज्जनों से हाथ जोड़ विनती है कि आप इस अधिवेशन को कामयाब बनाने के लिए हमें पूरा सहयोग दें। इस अधिवेशन की सफलता आपकी अपनी सफलता होगी। नारी के प्रति बदलता दृष्टिकोण हमें कतई पसंद नहीं। हम चाहते हैं कि नारी शिक्षित तो जरूर हो पर वह हमें अनपढ़ ही लगे। हम चाहते हैं कि वह आर्थिक दृष्टि से मजबूत तो हो पर हाथ हमारे आगे ही फैलाए। हम चाहते हैं कि वह स्वतंत्र तो हो पर हमारे सामने गुलाम ही रहे। वह चाहर दीवारी से बाहर तो निकले पर नाचे हमारे इशारों पर ही। वह अधिकारों के प्रति जागरूक तो हो पर अधिकारों की चाबी रहे हमारे पास ही। हम चाहते हैं कि घर में मर्द चौबीसों घंटे चारपाई पर पसरा रहे और वह इधर- उधर से कमा कर उसका पेट पालती रहे। घर चलाना उसी की जिम्मेवारी है। घर बनाना उसी की जिम्मेवारी है। वह गृहलक्ष्मी है ,वह गृह देवी है। मर्द प्रकृति से स्वच्छंद है। हम कट्ठमुल्ले नई सोच को केवल और केवल सोच तक ही सीमित रखें, इसी में हम सब की भलाई है।
दोस्तों! यह अधिवेशन हर दृष्टि से केवल और केवल आफ हितार्थ है। इसलिए इस अधिवेशन में बढ़चढ़ कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाएं। दर असल दोस्तों, अधिवेशन तो एक बहाना है,हमें हर हाल में बस आपको जगाना है। अभी नहीं ,तो कभी नहीं। मर्द एकता जिंदाबाद!
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अशोक गौतम
गौतम निवास अपर सेरी रोड
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ईमेल - a_gautamindia@rediffmail.com
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