खुदा सभी को सभी कुछ दे पर परेशान पड़ोसी न दे। वह कई दिनों से मुझे परेशान किए बैठे था, खुद तो परेशान था ही। इधर कमबख्त अपनी ही परेशानियां ...
खुदा सभी को सभी कुछ दे पर परेशान पड़ोसी न दे। वह कई दिनों से मुझे परेशान किए बैठे था, खुद तो परेशान था ही। इधर कमबख्त अपनी ही परेशानियां क्या कम हैं, ऊपर से पड़ोसी की परेशानियां और। चलो पड़ोसी की परेशानियों में खुद को शामिल कर भी लिया जाए,पर पड़ोसी भी तो उस लायक होना चाहिए। भाई साहब, आप हर चीज से पीछा छुड़ा सकते हैं पर दो चीजों से नहीं, एक प्रेमिका से और दूसरे पड़ोसी से।
वह उस दिन घंटों मेरे घर में बैठे रहा। परेशान! मुझे भी कमबख्त ने परेशान कर डाला था। उस दिन तो मैंने खुदा से गुहार लगाई थी कि या मेरे खुदा या तो मुझे इस लोक से उठा ले या मेरे इस पड़ोसी को।
‘तू धर्म को मानता है क्या?'
‘मानता हूं। न मानता तो अपनी पत्नी का धर्म पति कैसे होता?'
‘अच्छा, एक बात बता? धर्म तेरे लिए क्या है?'
‘धर्मांधता।' मुझे उस वक्त बड़ा गुस्सा आया था । यार पूछना ही है तो पूछ तेरे जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी क्या है ,जिसे मैं आज भी झेल रहा हूं। तो मैं दुनिया भर की पीड़ा जीभ पर लिए कहूं कि हे मेरे दोस्त! मेरे जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी है कि मैं बड़े कालर खड़े करके निकला था प्रेमी बनने और बन गया पति। पर वह तो आज धर्म के पीछे हाथ मुंह धो कर पड़ा था।
‘ धर्म हमें क्या क्या करने की इजाजत देता है?'
‘ सबकुछ करने की।'मैंने इतनी सहजता से कहा जैसे मैं धर्म का ठेकेदार होऊं।'
‘तो एक बात कहूं! पर किसी को भी मत कहना। मन में उसने महीनों से उथल पुथल मचा कर रखी है। घर का न खाना अच्छा लग रहा है न पीना। पत्नी के साथ रहते हुए भी जागते हुए भी वही दिखती है और सोए हुए भी वही। मैं दूसरा विवाह करना चाहता हूं बस! क्या अपना धर्म इसकी इजाजत देता है? मेरा कहीं और दिल आ गया है। अब तुझसे छिपाना क्या!'
‘इस उम्र में?अपना धर्म फिलहाल तो इसकी इजाजत नहीं देता। आधे बाल तो तेरे सफेद हो चुके हैं! अब आगे की सोचने के दिन शुरू हो गए और एक तू है कि...'पर उसने मेरी एक न सुनी। अपनी ही बकता रहा।
‘ तो क्या धर्म बदला जा सकता है?'
‘क्यों नहीं। धर्म तो यहां जांघिए से भी आसानी से बदला जा सकता है।'
‘सच!!'
‘सोलह आने सच।'
‘ तो क्या मैं धर्म बदल कर फिर सुहागरात मना सकता हूं?' मत पूछो उस वक्त उसके स्याह चेहरे पर कितना नूर झलका था।
‘ हां!!'
‘कौन सा धर्म?'
उसी धर्म को जिसे पिछले दिनों एक आदरणीय ने अपनाया था। '
मुझे उसकी इस बात पर उससे भी ज्यादा हंसी आई थी,सो मैंने उससे पूछा,‘ पहली ठीक ढंग से पाल रहा है क्या! परेशानियों से काले पड़े चेहरे पर क्यों कालिख मलने को आमादा है?'
‘पालने वाला मैं कौन? तू कौन? जिसने सिर दिया है सेर देने वाला तो वही है। दुनिया में आए हैं तो मन मसोस कर क्या जीना मित्र! क्या पता कब प्राण पंखेरू उड़ जाएं।'
‘ तो दो दो को विधवा करने की सोची है क्या?' आगे उसने कुछ नहीं कहा चुपचाप मेरे यहां ये उठा और... और सच मानिए, उस दिन पता नहीं भगवान ने मेरी कैसे सुन ली। अगले दिन पड़ोसी गायब। खुशी में पगलाया ज्यों ही उसके घर लड्डू बांटता पहुंचा तो दिमाग ने कहा,‘ रे पगले ! ये तू लड्डू बांटता कहां आ गया? इनको अगर तेरे लड्डू बांटने के कारण का पता चल गया तो गए सिर के पचासों दवाइयां लगाकर बचाए बाल भी।' और मैं सिर पर पांव रख वहां से हवा हो लिया।
घरवालों ने उसके गायब होने के इश्तिहार कहां कहां नहीं दिए! शहर के शौचालय से लेकर पुस्तकालय तक उनकी गुमशुदगी के पर्चे चिपकाए गए ,पर नतीजा सिफर । अखबारों में पर्चे बांटे गए तो उसके गायब होने की सूचना पा घर मे उधार लेने वालों की कतार आ लगी। घरवालों को तब पता चला कि उसने किस -किसको चाटा हुआ था।
धीरे-धीरे जब उसकी घरवाली भी उसे भूलने लगी तो हम कौन होते उसे याद रखने वाले? हां कभी कभी जब पत्नी से नोक झोंक सीमा से बाहर हो जाती तो वह बड़ा याद आता और मेरा मन भी करता कि...
और कल वह अचानक फिर प्रगट हो गया। अकेले नहीं , नई बीवी के साथ। कर्मजली उसकी एक्स पत्नी ने ही यह शुभ खबर दी।
वह शान से बंधु सीना फुलाए हुए। चेहरे की सारी झुर्रियां कहीं गायब। न कोई शर्म न कोई हया। चार महीने सेहत सुधार के लिए घर से अलग रहने के लिए काफी होते हैं शायद।
‘ और बंधु! कैसे हो? इतने दिन आखिर कहां रहे? ये आखिर साथ में है क्या? कर ही गए न आखिर अपने मन की।'
‘ अब मैं बंधु नहीं, मुहम्मद हूं।'
‘इस धर्म से तो नाम कटवा लिया,अब ऊपर भी बही में नाम बदलवा लेना।'
‘वहां भी अर्जी दे दी है, चिंता न कर।' कह उन्होंने डाई की मूंछों पर ताव दिया तो मेरी काली मूंछें भी सफेद हो गईं। धर्म कल्प सच्ची को गधे का भी हुलिया बदल कर रख देता है। फिर उन्होंने सगर्व ऐलान किया,‘ हे मुहल्ले वालो ! अब हम राम प्रकाश नहीं रहे। अब हम राम मुहम्मद हो गए हैं। अतः सभी को सूचित किया जाता है कि अब हमें इसी नए नाम से जाना जाए। पुराने नाम के खात्मे के साथ अब अपने पुराने सारे संबंध खत्म। कल हमने कमेटी हाल में रिसेप्शन रखी है , राम प्रकाश की श्रीमती सहित सभी सादर आमंत्रित हैं। अब चाहे मां रूठे या बाबा हमने दूसरी शादी कर ली ,धर्म ने हंस के हामी भर ली..' गुनगुनाते वे जिस आटो में आए थे उसी आटो में चले गए,नई बेगम के साथ।
मे गॉड पीस हिज़ एक्स सोल!!
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डॉ. अशोक गौतम
गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड
नजदीक वाटर टैंक, सोलन- 173212 हि.प्र.
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