हालांकि होरी के पास अब कतई जगह न बची थी किसानी का काम करने के लिए। कुछ जगह बेचारे को थोड़ी थोड़ी करके बच्चों के विवाह के समय बेचनी पड़ी ...
हालांकि होरी के पास अब कतई जगह न बची थी किसानी का काम करने के लिए। कुछ जगह बेचारे को थोड़ी थोड़ी करके बच्चों के विवाह के समय बेचनी पड़ी तो कुछ बिल्डर माफिया ने डरा धमका कर उससे मार ली। जो कुछ खेत बचे थे वे सरकार ने सेज के नाम पर देश हित में उससे ले लिए।
होरी तब उदास बैठा था अपने अतीत को याद करता। कुत्ता पास ही बंधा गुनगुना रहा था। उसे गुनगुनाते हुए देख होरी को गुस्सा आया तो उसने कुत्ते से अधिक अपने पर गुस्से होते कहा,‘ यार कुत्ते यहां अपना सबकुछ लुट गया और एक तू है कि गुनगुना रहा है।'
कुत्ते ने कुछ देर के लिए गुनगुनाना बंद कर कहा,‘ देखो मालिक! व्यवस्था जो करती है ठीक ही करती है। भगवान जो करता है वह ठीक करे या न! '
‘ तू तो बड़ा नमक हराम कुत्ता निकला यार! मैंने तो सोचा था कि इस लोक में सब नमक हराम हो सकते हैं पर कुत्ते नहीं। पर नमक हरामी में तो तू सबका बाप निकला। अब तू ही बता मैं इस किसान पास बुक का क्या करूं? अब मेरे पास किसान के नाम पर केवल और केवल यह किसान पास बुक ही रह गई है या फिर यह जंग लगा हल।'
‘ मालिक मुझे इस बात की खुशी हो रही है कि अबके पूस की रात में हम दोनों को कम से कम ठंड में मरना तो नहीं पड़ेगा। सदियाँ हो गई थीं पूस की रात में तुम्हारे साथ फसल की जुगाली करते पर बाद में मिलता क्या था? भूसी तक तो साहूकार उठा कर ले जाता रहा। अब कम से कम घर में तो पड़े रहेंगे खींदडों के बीच।'
‘यार! अब तक अपने को किसान तो समझता था। अब खाएंगे क्या?'
‘सरकारी राशन की दुकान जो है।'
‘ एक किसान सरकारी राशन की दुकान से आटा दाल खरीद कर खाए इससे बड़ी लानत उसको और क्या होगी?'
‘ छोड़ो मालिक ये मिथ्या दंभ! लानत की बात अगर कोई देश में सोचने लग जाए तो एक भी देश में न रहे। ये देश खाली हो जाए। इसलिए जैसे भी जो भी मिले, अक्ल को मार कर खाए जाओ, कलजुग के गुण गाए जाओ। जीना इसी का नाम है।'
गोबर तो पहले ही घर से भाग चुका था, ड्राइवर होने के शौक में। उसकी घरवाली की उससे न बनी तो उसने अपनी चुनरी उठाई और अपने मायके चली गई। शादी विवाह अब कौन से जनम जनम के बंधन रह गए भैया! जब मर्जी की बिना तीन बार तलाक बोलने से पहले ही हो जाए तलाक।
होरी ने अपने घर की देहरी पर माथा टेका और अपने कुत्ते को वहीं छोड़ , कांधे पर हल उठाए शहर आ गया। कुत्ते ने बहुत मिन्नतें की,‘ मालिक अपने साथ ही ले चलो न मुझे। तुम्हारा और धनिया का साथ भले ही जनम जनम का न हो पर मेरा और तुम्हारा साथ तो जनम जनम का है। जितनी बार तुम जनम लोगे उतनी ही बार मैं जनम लूंगा । मोक्ष न कभी किसान को मिलेगा न कुत्ते को।'
पर होरी न जाने क्यों कुत्ते को शहर लाने से डर गया।
अचानक शहर में एक दिन ठेला ढोते ढोते एक साम्यवादी नेता जी की मेहरबानी हुई तो उन्होंने अपने पचास बीघा का फार्म हाउस उसको बटाई पर दे दिया यह कह कर कि बटाई पर हल भी चला ले और रात को मेरे फार्म हाउस की चौकीदारी भी कर ले। धनिया को फार्म हाउस में झाड़ू पोंछे को काम मिल गया। तब उसे बहुत गुस्सा आया था अपनी बहू पर । क्या जरूरत थी मायके जाने की।
नेता जी का आशीर्वाद मिलते ही होरी ने बरसों से बेकार पड़े हल को ठीक किया, सड़कों से आवारा छोड़े बैलों में से एक जोड़ी बैल छांट कर फार्म हाउस ले आया।
बीज के लिए सरकार की दुकान पर गया तो वहां सस्ता बीज न मिला। पता चला कि वह तो बाजार में खुले भाव बिकने के लिए पहले ही बिक चुका है सो होरी के पास बीज खरीदने के लिए पैसे तो न तब थे जब देश आजाद नहीं था, न अब हैं जब देश आजाद हो चुका है। वह हार कर फिर शहर के लाला के पास गया, उसके आगे गिड़गिड़ाया,‘ मालिक, बीज खरीदने के लिए उधार चाहिए!'
‘सरकारी बैंक से ले। कुछ है तेरे पास गिरवी रखने के लिए?' लाला ने पहले से भी सीधी बात की।'
‘धनिया है। और तो सब खत्म हो लिया।'
बीज का इंतजाम हो गया पर मानसून न आया। सरकार बराबर कह रही थी कि अबके मानसून समय पर आएगा। होरी को आस बंधी थी कि अबके मानसून ठीक रहा तो उपज अच्छी होगी। फसल आते ही वह गांव जाकर गिरवी रखी गाय भी शहर ले आएगा, फिर धनिया को।
और वह हुक्का गुड़गुड़ाता सुनहले सपनों में खो गया। पर एक कमबख्त आंखें थीं कि सपने देख ही नहीं पा रही थीं।
मानसून समय पर तो क्या लाख इंतजार करवाने के बाद भी नहीं आया। फार्म हाउस में डाले बीज जलने लगे।
वह सरकार के पास गया। दोनों हाथ जोड़े,‘ सरकार आपने तो कहा था मानसून समय पर आएगा।'
‘ मानसून और नेता का भरोसा कौन करे? वो करे जो मूर्ख हो।'पता नहीं किसने कहा।
‘पर सरकार, अब किसानों का क्या होगा?'
‘जो हर साल होता है। देखो होरी, परेशान मत हो। तुम किसानों के साथ यही तो पंगा है कि तुम परेशान बहुत जल्दी हो जाते हो। समय पर मानसून आ जाए तो परेशान, समय पर मानसून न आए तो परेशान। बारिश हो गई तो परेशान, सूखा पड़ गया तो परेशान। रही बात समय पर न आने की। वह कौन सा हमारा नौकर है? होता भी तो कौन सा समय पर आने के लिए बाध्य होता। समय पर देश में हो क्या रहा है?चपरासी तक तो यहां पर समय पर आते नहीं, औरों की तो छोड़ो। सरकार मानसून से संपर्क बराबर बनाए हुए है। हमने मानसून से संवाद करने के लिए कृषक सचिवों की जो समिति बनाई है वह भी मानसून से बराबर तालमेल बनाए हुए है। उन्होंने कहा है कि वे कुछ ले देकर मानसून को पटा रहे हैं। मानसून को मनाने की भरपूर कोशिश सरकार कर रही है। पर ये विपक्ष है न! हमारी हर कोशिश को बेकार करने में डटा है। हौसला रखो! इस देश में किसान हौसला नहीं रखेगा तो और कौन रखेगा!'
‘ तो मानसून आएगा न सरकार!'
‘ कमाल है यार! आएगा कैसे नहीं। हम बहुमत में हैं। अल्पमत में होते फिर भी उसकी दादागिरी सहन कर लेते। सरकार सबकुछ सहन कर सकती है पर किसी की दादागिरी नहीं। मानसून की भी नहीं। वह विपक्ष की हर चाल को पानी पिलाकर ही रहेगी होरी।'
‘स्थिति नियंत्रण में तो है न हजूर!'
‘ डांट वरी, बी हैप्पी ! सरकार तनाव पर तो नियंत्रण रख नहीं सकती पर नियंत्रण पर सदा उसका पूरा नियंत्रण रहा है।'
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डॉ. अशोक गौतम
गौतम निवास ,अप्पर सेरी रोड, नजदीक मेन वाटर टैंक
सोलन-173212 हि.प्र.
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(चित्र – कृष्णकुमार अजनबी की कलाकृति)
बहुत ख़ूब...
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डायनासोर भी तोते की जैसे अखरोट खाते थे
waah waah !
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