नया सवेरा यशवन्त कोठारी (पिछले अंक से जारी…) अन्ना के पास बहुत सा समय खाली रहता। करने को कुछ विशेष नहीं था। ऐसे में वो स्वयं में ...
नया सवेरा
यशवन्त कोठारी
अन्ना के पास बहुत सा समय खाली रहता। करने को कुछ विशेष नहीं था। ऐसे में वो स्वयं में खो जाती। कुछ न कुछ सोचती रहती। कमरे में अकेली बैठी प्रवासी जीवन पर सोचने समझने के प्रयास करती। अन्ना ग्रामीण जीवन में महिलाओं की स्थिति पर कार्य कर चुकी थी और इसी कारण महिलाओं, विशेष कर गरीब और दलित महिलाओं के लिए कुछ करना चाहती थी। सामाजिक संस्थाओं, स्वयंसेवी संस्थाओं और सरकारी प्रयासों से वह संतुष्ट नहीं थी। उसने कच्ची बस्ती में रहने वाली महिलाओं तथा बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में हो रही उपेक्षाओं पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। कच्ची बस्ती में प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र खोलने, बालिकाओं के नियमित विद्यालय जाने तथा उन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी देने के लिए उसने स्वयं आगे आने का निश्चय किया।
तभी उसे पापा का टेलीफोन मिला। वे स्वयं राजपुर में कुछ समय के लिए उसके पास आ रहे थे। अन्ना को बड़ी प्रसन्नता हुई। कितने लम्बे अन्तराल के बाद वो पापा से मिलेगी। अभिमन्यु को भी इस समाचार से अच्छा लगा। अपने माँ-बापू के जाने के बाद उसे पहली बार किसी बुजुर्ग का आशीर्वाद मिलेगा। अन्ना और अभिमन्यु पापा को लिवाने गये। पापा आये। कुशल क्षेम के बाद अभिमन्यु, अन्ना और पापा बैठे। बातचीत पापा के जीवन से ही शुरू हुई।
‘‘ पाप अपने प्रारम्भिक जीवन के बारे में बताईये। ''
अभिमन्यु ने पूछा।
‘‘ कुछ खास नहीं। मैं हैदराबाद में पैदा हुआ था। प्रवासी राजस्थानी था। शिक्षा पूरी नहीं कर सका। मगर पैसा कमाना चाहता था। विदेश चला गया। हर प्रकार का काम किया। लगन थी। पैसा हो गया। पहले व्यापारी फिर उद्योगपति बन गया। अन्ना की माँ विदेशी थी। शीघ्र देहान्त हो गया। अन्ना भारत आ गयी थी। मैं प्रवासी था। मन विदेश में नहीं लगा। तभी एक भारतीय नारी से मैंने दूसरा विवाह किया, यह विवाह चला नहीं। अथाह संसार सागर में मैं अकेला था। सब समेट कर वापस हैदराबाद आ गया। मैं काफी समय से शान्त अकेलापन भोग रहा हूँ। आज अचानक तुम लोगों के बीच अपने को पाकर अच्छा लग रहा है। मैंने अपने पैसा का एक न्यास बना दिया है। अन्ना मुख्य न्यासी है। चाहता हूँ इस पैसे का सदुपयोग हो। मेरी भी पुरखों की धरती देखने की बड़ी लालसा थी। अब जाकर पूरी हुई । अपनी माटी से जुड़ने का आनन्द ही कुछ और होता है। '' पापा एक सांस में बोल गये।
‘‘ लेकिन पापा सब कुछ होकर भी कुछ नहीं होना यह अजीब संयोग क्यों होता है ? ''
‘‘ क्या पता बेटा। '' पापा मौन हो गये।
‘‘ पापा अब आप हमारे साथ ही रहिये। वैसे भी घर में कोई बड़ा-बुजुर्ग नहीं है। '' अभिमन्यु ने कहा। मगर पापा ने कोई जवाब नहीं दिया।
अभिमन्यु ने फिर कहा-
‘‘ आज कच्ची बस्ती का दौरा है, अन्ना तुम भी तो चलना चाहती थी। ''
‘‘ हाँ पापा आप भी चलिये। ''
‘‘ हां चलो। शायद मैं भी गरीबों के लिए कुछ कर पाऊं। अपने न्यास से मदद दूंगा।''
पापा,अन्ना, अभिमन्यु राजपुर की कच्ची बस्ती की तरफ चल पड़े। उबड़ खाबड़ रेत के टीलों पर बसी कच्ची बस्ती। सर्वत्र गरीबी के दर्शन, न बिजली की सुविधा न पेयजल। न शिक्षा व स्वास्थ्य।
अभिमन्यु और अन्ना को देखकर लोगों ने अपने दुखड़े रोने शुरू कर दिये। एक आदमी बोल पड़ा-
‘‘ सर सड़क पर गाड़ियां बहुत तेज गति से जाती हैं, अक्सर दुर्घटनाएँ होती हैं। ''
‘‘ हूं। ''
‘‘ और सर बिजली नहीं है। नलों में पानी नहीं आता है। ''
‘‘ हूं। ''
‘‘ हमारे यहाँ पर एक भी प्राथमिक शाला नहीं है। ''
‘‘ हाँ स्कूल आवश्यक है।'' पापा ने कहा।
‘‘ महिलाओं के लिए शिक्षा केन्द्र होने चाहिये। '' एक बच्ची बोल पड़ी।
अभिमन्यु समझ गया मूल समस्या गरीबी और बेकारी है और इस समस्या से निजात पाना आसान काम नहीं है। फिर भी प्रयास किया जाना चाहिये। अन्ना ने वहीं पर बस्ती की कुछ महिलाओं को एकत्रित किया और कहा-
‘‘ आप स्वयं आगे आयें। सायंकाल पढ़ाने की व्यवस्था की जा रही है। आप सायंकाल पास के मकान में एकत्रित हो और प्रौढ़शिक्षा के कार्यक्रम से जुड़े। ''
बस्ती में पानी, बिजली की व्यवस्था के लिए पापा ने प्रयास किये। बस्ती के लोगों ने शुरू में ध्यान नहीं दिया। लेकिन पापा और अन्ना लगे रहे। अभिमन्यु के प्रशासनिक सहयोग से दलित वर्ग के लोगों में जागृति आने लगी। वे अपने अधिकारों को समझने लगे।
अन्ना और पापा बार बार कच्ची बस्ती जाते। लोगों को समझाते। बच्चों को स्कूल भिजवाने के प्रयास करते। रात्रि में प्रौढ़ों को पढ़ाने की व्यवस्था करते। धीरे धीरे कच्ची बस्ती में परिवर्तन आने लगे।
सामाजिक परिवर्तनों के साथ साथ कच्ची बस्ती के लोगों में स्वास्थ्य के प्रति भी जागरूकता आई । छोटे परिवार के लाभ भी वे समझने लगे। बढ़ती जनसंख्या के खतरों से बचने के उपायों पर अब खुली चर्चा करने लगें
कच्ची बस्ती में सुधार के कार्यक्रम को सुचारु रूप से चलाने के लिए अभिमन्यु ने एक कच्ची बस्ती सुधार समिति बना दी ।
समिति प्रति सोमवार बस्ती में जाती, बस्ती के लोगों की समस्याओं को सुनती और समाधान के प्रयास करती। बस्ती के लोगों की समस्याएँ भी गिनी चुनी थी। पानी-बिजली आने के बाद सड़कें और नालियां बन गई। बच्चे पढ़ने जाने लगे। अपराधी लोगों ने बस्ती में आना-जाना कम कर दिया। धीरे धीरे बस्ती की औरतें प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों में आने लगी। वे हिसाब सीख गयी। हस्ताक्षर करना सीख गई। उन्हें स्वास्थ्य के बारे में जानकारी हो गयी। पापा और अन्ना के नियमित आने के कारण सरकारी अफसर भी बस्ती की समस्याओं पर ध्यान देने लगे। अन्ना ने महसूस किया की बस्ती की सभी समस्याओं की जड़ में नशाखोरी है,बस्ती के लोग शराब, तम्बाकू और अन्य मादक पदार्थों के आदि हैं। वे लोग कच्ची शराब का उपभोग करते है। अन्ना ने बस्ती में शराब बन्दी हेतु बस्ती के लोगों को जागरूक किया। बस्ती की महिलाओं ने अन्ना को सहयोग दिया। बस्ती की महिलाओं ने शराब की दुकान के सामने निरन्तर प्रदर्शन और धरना दिया। परिणामस्वरूप शराब की दुकान को बस्ती से दूर ले जाया गया। तम्बाकू से उत्पन्न खतरों की ओर ध्यान दिलाने के भी सार्थक परिणाम आये। नशाबंदी शिविरों का आयोजन किया गया।
तम्बाकू और अन्य दवाओं के उपयोग पर रोक से बस्ती के लोगों के जीवन-स्तर में सुधार आने लगा। गरीब घरों में दोनों समय चूल्हा जलने लगा। मर्दों की कमाई से घर में शराब के बजाय खाने-पीने का सामान आने लगा। बच्चों के कुपोषण पर भी रोक लगी। बस्ती के बच्चे और महिलाएं मिलकर छोटे-मोटे रोजगार में लग गये। कच्ची बस्ती में धीरे धीरे विकास की गंगा बहने लगी। बस्ती के लोग, अन्ना को देवी समझने लगे। अन्ना को भी अपने होने की सार्थकता महसूस होने लगी। बस्ती के विकास के समाचार धीरे धीरे राजधानी तक पहुँचने लगे। पत्रकारों के सहयोग के कारण स्थानीय, प्रान्तीय राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों में बस्ती में हो रहे परिवर्तनों पर समाचार कथाएं छपने लगी। लोगों को जानकारी मिली तो कई स्वयं सेवी संस्थाएं भी आगे आई। सरकारी अनुदान भी मिले और राजपुर की यह कच्ची बस्ती एक आदर्श बस्ती के रूप में पहचानी गई। अन्ना को अपना श्रम सार्थक होते देखकर आन्तरिक खुशी हुई। उसके चेहरे पर संतोष की मुस्कान थी। यह देख कर अभिमन्यु बोल पड़ा। --
‘‘ आज बड़ी प्रसन्न दीख रही हो, क्या बात है।''
‘‘ प्रसन्नता की बात है। कच्ची बस्ती के विकास से मुझे लगता है मैंने एक अच्छा काम किया। मेरे होने की सार्थकता सिद्ध हुई। शायद मेरी जड़ों की खोज भी अब पूरी हुई है।''
‘‘ अच्छा चलो तुम्हें संतुष्ट देखकर मुझे भी अच्छा लगता है। पापा कहाँ हैं ? '' अभिमन्यु बोला-
‘‘पापा आज वापस जाने की बात कर रहे थे, मैंने मना किया है। ''
‘‘ नहीं उन्हें अब यहीं रहना है। मेरी ओर से भी कहना। मैं कार्यालय जा रहा हूँ। ''
‘‘ जी अच्छा। ''
अन्ना पापा के पास आयी। पापा पर अब उम्र के पड़ावों की छाया स्पष्ट दिखाई दे रही थी। मम्मी के जाने के बाद पापा टूट गये थे, फिर प्रवासी जीवन छोड़कर वे वापस अपने देश लौट आये थे। मगर यहाँ भी जीवन का आनन्द नहीं मिला था। पापा चुपचाप, शान्त पलंग पर लेटे थे। अन्ना ने धीरे से कहा-
‘‘ पापा । ''
‘‘ हाँ बेटे । ''
‘‘ आप वापस जाना चाहते थे। ''
‘‘ हाँ।''
‘‘ लेकिन पापा अब आप हमारे साथ ही रहिये। वहाँ अब है भी क्या ? ''
‘‘ वो तो ठीक है मगर-।'' पापा वाक्य पूरा नहीं कर सके।
‘‘ मगर-वगर कुछ नहीं आप को अब हमारे साथ ही रहना है। उनकी भी यही इच्छा है। '' अन्ना ने निर्णायक स्वर में कहा।
पापा कुछ नहीं बोले। शून्य में देखते रहे। अन्ना चुपचाप उन्हें देखती रही।
अभिमन्यु, अन्ना पापा अपने विशाल लॉन में बैठे थे। तभी अकबर और सेवानिवृत्त प्राचार्य भी आ गये। एक अनौपचारिक वातावरण बन गया। अभिमन्यु और प्राचार्य मिलकर स्कूल के पुराने दिनों की चर्चा करने लगे। अकबर भी बातचीत में शामिल हो गया। अचानक प्राचार्य ने कहा-
‘‘ कच्ची बस्ती के काम से जिले का नाम रोशन हुआ है। ''
‘‘ हाँ ये बात तो है। '' अकबर बोल पड़ा।
‘‘लेकिन जिले में अब उग्रवाद का साया पड़ गया है। कल के अखबार में फिर एक बम फटने का समाचार है। '' अकबर बोला-
‘‘ लेकिन संतोष की बात है कि कोई जान माल का नुकसान नहीं हुआ है। '' अभिमन्यु ने कहा।
‘‘ हाँ लेकिन इस तरह कब तक चलेगा। '' अन्ना ने कहा ।
‘‘ यह समस्या कोई एक जिले या राज्य की नहीं है। यह एक विश्वव्यापी समस्या है। गुमराह और भटके हुए लोगों को, पड़ोसी देशों से मदद मिलती है और ये युवा हमारे देश की मुख्य धारा से कटकर उग्रवादी बन जाते हैं। इन युवाओं को समझा कर वापस मुख्य धारा से जोड़ना ही मुख्य कार्य है। ''
‘‘ लेकिन यह तो बड़ा मुश्किल काम है। '' पापा बोले।
‘‘ हाँ मुश्किल अवश्य ह,ै मगर असंभव नहीं। यदि सब मिलकर प्रयास करें तो संभव है। वास्तव में मित्रता या शत्रुता स्थायी नहीं होती, स्थायी व्यक्ति के स्वार्थ होते हैं। कल जो बम फटा था, उसमें गिरफ्तार युवा को हम लोगों ने तथा पुलिस ने समझाया और उसने आत्मसमर्पण करने का विचार व्यक्त किया है। ये भटके हुए अपने ही बच्चे इन्हें घर का रास्ता दिखाने की आवश्यकता हे। ''
‘‘ यह तो एक अच्छा समाचार है।'' अन्ना ने कहा।
‘‘ और सुनाओ अकबर तुम कैसे आये।'' अभिमन्यु ने पूछा।
‘‘ सर गाँव के स्कूल में जो प्रौढ़शाला खोली गयी है,उसमें उत्तर साक्षरता हेतु पुस्तकों की आवश्यकता थी। ''
‘‘ ठीक है इस वर्ष सभी केन्द्रों में पुस्तकें भेजने के प्रयास किये जा रहे हैं। शायद इस बजट बाद में यह कार्य सम्पन्न हो जायेगा। ''
मैं ट्रस्ट से भी पुस्तकें क्रय करने के लिए राशि दूंगा। '' पापा बोल पड़े।
सभी ने मौन सहमति व्यक्त की।
‘‘ अच्छा मैं चलूं। '' अकबर ने कहा।
‘‘ ठीक है। ''
अकबर के जाने के बाद अन्ना, अभिमन्यु और पापा बैठे रहे। कुछ समय तक मौन रहा। फिर पापा बोले-
‘‘ विदेशों में इतने बरस रहा मगर यह सुकून नहीं मिला। अपनी धरती अपने लोग,अपनी मिट्टी, अपनी हवा, सब कुछ अपना और प्यारा। ''
‘‘ पापा यही सब सोच कर तो मैं उस समय आपको छोड़कर भारत लौट आई थी। मुझे पश्चिमी जीवन की निरर्थकता का बोध हो गया था। '' अन्ना बोली।
‘‘ मगर आज भी कितने प्रतिभाशाली वैज्ञानिक, इन्जीनियर, डाक्टर प्रतिवर्ष विदेश चले जाते हैं। अभिमन्यु ने कहा।
‘‘ हाँ इस प्रतिभा पलायन को रोकने के प्रयास किये जाने चाहिए। आश्चर्य की बात है कि विदेशों में किये जाने वाले अधिकांश उच्च तकनीकी कार्य भारतीय कर रहे हैं। फिर भी वे उपेक्षित जीवन जी रहे हैं। ''
‘‘ क्यों कि अपने देश में उन्हें साधन नहीं मिल रहे हैं। ''
‘‘ साधनों की दुर्लभता से कोई घर नहीं छोड़ता। ''
‘‘ घर छोड़ने का कारण महत्वाकांक्षा है। ''
‘‘ लेकिन महत्वाकांक्षी होना बुरा नहीं है। ''
‘‘ सवाल अच्छा या बुरे का नहीं है। सवाल ये है कि हमारा देश के प्रति भी कोई कर्तव्य है या नहीं। जिस देश में पैदा हुए, पले, बढ़े उसी देश को केवल स्वयं की प्रगति के लिए छोड़ कर चले जाना उचित हे क्या ? '' अभिमन्यु ने तीखे स्वर में कहा।
‘‘ शायद तुम ठीक कह रहे हो। मगर युवा मन की उमंगों को रोकना मुश्किल होता है, उस समय तो मन पंछी बन कर उड़ जाना चाहता है। ''पापा ने कहा।
‘‘ पंछी बनकर उड़ने के लिए इस देश का आकाश छोटा नहीं है पापा। इस महान देश की महान विरासत में काम करने का आनन्द ही कुछ और है। ''- अभिमन्यु बोला।
‘‘ शायद यही सब सोचकर तुम यहीं रह गये। '' अन्ना ने हँसते हुए कहा। सब हंस पड़े।
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अभिमन्यु अपने कार्यालय में बैठा था। आज उसके पी․ए․ ने बताया कि कुछ लोग उपभोक्ता आन्दोलन के बारे में बात करने के लिए आने वाले हैं। उपभोक्ता आन्दोलन पूरे समाज पर प्रभाव डाल रहा था। शासन ने भी उपभोक्ता के संरक्षण हेतु कानून बना दिये थे। उपभोक्ता संगठन के प्रतिनिधि आये। संगठन के अध्यक्ष ने सबका परिचय कराया। फिर कहा-
‘‘ सर जिले में उपभोक्ता के हितों को ध्यान में रखने के लिए एक उपभोक्ता न्यायालय बना है, मगर इसमें अभी भी नियुक्ति नहीं हुई है। ''
‘‘ यह कार्य शीघ्र कर दिया जायगा।'' अभिमन्यु बोला।
‘‘जिले में उपभोक्ताओं को अगर न्याय मिल सके तो बहुत अच्छा रहेगा।'' सचिव बोल पड़े।
‘‘ ठीक है। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए शासन ने कानून बना दिया है। मगर केवल कानून से काम नहीं चलता है। आप जनता को जागरूक करिये। उन्हें उपभोक्ता क़ानूनों की जानकारी दीजिये। उपभोक्ता को ज्ञात होना चाहिये कि जिस सेवा को वो सशुल्क प्राप्त कर रहा है, उस सेवा में होने पर उसे हर्जाना मिल सकता है। यह जानकारी जन-मानस तक पहुँचाने में आप लोग क्या कर रहें हैं। '' अभिमन्यु ने पूछा।
‘‘ सर हम मीडिया के माध्यम से लोगों को जानकारी दे रहे हैं। ''
‘‘ यह काफी नहीं है नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से भी लोगों को बताइए। प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों में जाइये और लोगों को उपभोक्ता आन्दोलन के बारे में बताइये। कुछ उदाहरण भी दीजिये। ''
‘‘ उदाहरण कैसे सर। '' अध्यक्ष ने पूछा !
‘‘ उदाहरण बिल्कुल स्पष्ट और व्यवहारिक होने चाहिए। यदि एक व्यक्ति ने घड़ी खरीदी है और घड़ी खराब हो गयी है तो उस व्यक्ति को हर्जाने स्वरूप नई घड़ी मिलेगी या घड़ी का पूरा पैसा और यही बात अन्य वस्तुओं पर भी लागू होगी। ''
‘‘ उपभोक्ता को अपनी बात कहने का भी अधिकार है। यदि कोई कम्पनी उसे मुआवजा नहीं देती है तो उपभोक्ता अदालत में जा सकता है।'' सचिव बोला।
‘‘ बिल्कुल सरकार व वकील का खर्चा नहीं होता है।'' एक अन्य साथी बोल पड़ा।
‘‘ तो आप लोग कस्बे के बुद्धिजीवियों, अध्यापकों व जागरूक लोगों को एकत्रित कीजिये और इस आन्दोलन से जनता को अवगत कराइये। प्रशासन आपको आपके वांछित सहयोग देगा।'' अभिमन्यु ने कहा और समाप्त किया।
उपभोक्ता आन्दोलन के सक्रिय कार्यकर्ताओं ने जिले के गांवों में जाकर लोगों से बातचीत शुरू की। पास के एक गांव में जब वे पहुंचे तो एक किसान ने पूछा-
‘‘ मैंने एक कम्पनी से एक फव्वारा सिंचाई के लिए खरीदा है जो कम समय में ही खराब हो गया है। मुझे क्या करना चाहिये। ''
‘‘ सर्वप्रथम तुम सम्बन्धित कम्पनी को लिखो, बिल की प्रति अपने पास रखो। यदि दुकानदार या कम्पनी तुम्हारा फव्वारा नहीं बदलती है या उसकी निशुल्क मरम्मत नहीं करती है तो तुम जिला उपभोक्ता न्यायालय में अपना वाद दायर कर सकते हो। वहां से तुम्हें न्याय मिल जायेगा। ''
‘‘ लेकिन मैं तो गरीब, अनपढ़ और कम्पनी सर्व समर्थ․․․․․।''
‘‘ उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है तुमने शुल्क दिया है और कम्पनी को तुम्हारा काम करना होगा।''
लोगों के समझाने पर किसान ने कम्पनी को पत्र लिखा गांव के मास्टर जी ने मदद की, कुछ दिनों में ही कम्पनी का आदमी आकर उसका उपकरण ठीक कर गया। गांव में यह समाचार फैला तो उपभोक्ता आन्दोलन की सार्थकता लोगों की समझ में आयी। धीरे धीरे लोगों में उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जानकारी बढ़ने लगी। एक नये सामाजिक परिवर्तन का आधार तैयार हुआ।
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सर्दियों के दिन थे। लॉन में अभिमन्यु, अन्ना और पापाजी बैठे थे। बंगले के चौकीदार ने सूचना दी कि कुछ स्कूली बच्चे मिलना चाहते हैं अभिमन्यु ने उन्हें अन्दर बुला लाने की आज्ञा दी। कुछ स्कूली बच्चे अपने स्कूली गणवेश में आ गये। अभिमन्यु और अन्ना ने बड़े प्यार से उनसे बातचीत शुरू की बच्चों ने बताया कि वे अभिमन्यु के पैतृक गांव से आये हे। जिला स्तरीय व खेलकूद में भाग लेकर वापस गांव चले जायेंगे।
अन्ना ने पूछा-
‘‘ तुम लोगों के गांव में स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी है ? ''
‘‘ हाँ मेम अब स्वास्थ्य शिक्षा की जानकारी मिलती है। ''
‘‘ अच्छा ये बताओ सभी के पास पुस्तकें हैं। '' पापा ने पूछा।
‘‘ नहीं सर कुछ बच्चों के पास पुस्तकों की कमी है। ''
एक बच्चे ने शालीनता से उत्तर दिया।
‘‘ क्यों ? '' अभिमन्यु ने जानना चाहा।
‘‘ सर गरीबी के कारण पुस्तकें नहीं खरीद पाये। '' एक अधिक उम्र के छात्र ने कहा।
अभिमन्यु मौन रह गये। पापा ने पूछा।''
‘‘ अच्छा तुम्हारे स्कूल में ऐसे कितने छात्र है जिन्हें पुस्तकों की आवश्यकता है।''
‘‘ सर करीब बीस छात्रों को पुस्तकों तथा गणवेश हेतु यदि छात्रवृति मिल सके तो कृपा हो।'' एक अन्य छात्र बोल पड़ा।
अन्ना फिर सोच में डूब गयी। अभिमन्यु को अपने ही गांव के बच्चों की स्थिति में कोई सुधार नहीं दिखा। वो मन ही मन दुखी हुआ। पापा बोल पड़े।
‘‘ अन्ना मेरे न्यास से इस गांव के सभी गरीब स्कूली छात्रों को पुस्तकें तथा गणवेशों को दिये जाने चाहिये। ''
‘‘ हाँ पापा यही ठीक रहेगा। '' अन्ना ने सहमति व्यक्त की। इस वार्तालाप के बीच में ही अन्ना ने देखा कि एक छात्र सहमा सा दूर खड़ा था। अन्ना ने उसे अपने पास बुलाया, प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और पूछा-
‘‘ तुम्हारा नाम क्या हे ? ''
‘‘ मोहम्मद शरीफ ।''
‘‘ किस के लड़के हो।''
‘‘ अकबर का। ''
‘‘ अच्छा तो तुम अकबर के बेटे हों। '' अभिमन्यु बोला।
‘‘ हाँ अंकल।'' अब लड़का खुल गया था।
‘‘ अकबर भाई को नमस्कार कहना।'' अन्ना बोल पड़ी।
‘‘ अच्छा गांव में किसी छात्र को छात्रवृति मिलती है ? पापा ने पूछा।
छात्रों ने कोई जवाब नहीं दिया।
अच्छा एक काम करना। गरीब छात्रों से एक-एक प्रार्थनापत्र लिखवाकर स्कूल के प्राचार्य से अग्रेषित करवाकर मुझे भेज देना मैं अपने न्यास से गरीब छात्रों के लिए वजीफा दूंगा।'' पापा ने निर्णायक स्वर में कहा।
स्कूल के छात्रों को अच्छा लगा। वे सभी को प्रणाम कर वापस जाना ही चाहते थे। कि अन्ना ने सबको मिठाई खाकर जाने को कहा। बच्चे चहकने लगे। अभिमन्यु, अन्ना और पापा को भी अपना बचपन याद आ गया। कुछ समय बाद बच्चे चले गये।
समय गुजरता रहता है व्यक्ति के पास छूट जाती है जीवन की कड़वी मीठी यादें। आज फिर अभिमन्यु को अपना अतीत याद आ गया था।
वे कुछ उदास हो उठा। सांझ गहरा गयी थी। वे सब अन्दर चले गये।
अन्न ने कमला को बुलवा लिया था। पापा भी थे। अभिमन्यु ने भी समय निकाला था, सभी मिलकर पुरानी बातों को याद कर रहे थे। अभिमन्यु के संघर्ष की गाथा एक खुली किताब की तरह थी, एक सामान्य अध्यापक से उच्च पद तक पहँचने की कथा जो सच्चाई, ईमानदारी और नैतिक मूल्यों पर आधारित थी। अभिमन्यु को देश से प्रेम था, प्रजातन्त्र से प्रेम था। लगातार काम करने से अभिमन्यु को लोगों का प्यार भी मिला था। प्रजातान्त्रिक मूल्यों में आस्था के कारण अभिमन्यु सर्वत्र आदर पाता था। वे चारों बैठे थे तो पापा बोले-
‘‘ अभिमन्यु आप अब भावी जीवन के बारे में क्या सोचते हैं। ''
‘‘ मुझे अपने जीवन के भवितव्य से क्या करना है। व्यक्ति से बड़ा है देश , देश का भवितव्य उज्ज्वल होना चाहिए। व्यक्ति आते हैं,चले जाते है, महान देश रहना चाहिए और यही हम सब का लक्ष्य होना चाहिए। ''
‘‘ फिर भी क्या सोचते हो तुम। '' अन्ना बोली।
‘‘ सोचना क्या है। कर्मण्येवाधिकारस्ते। बस मुझे चलते जाना है माइल्स टू गो बिफोर आई स्लीप। ''
‘‘ फिर भी। '' कमला ने कुरेदा। ''
‘‘ कुछ नहीं, अपने लिए कुछ नहीं चाहिए। देश अक्षुण्ण रहे और इसमें यदि मेरा कोई योगदान संभव हो तो अवश्य हो।''
‘‘ लेकिन यदि कोई साथ न दे तो।'' कमला ने फिर पूछा।
‘‘ कोई बात नहीं एकला चालो रे। '' अभिमन्यु बोला।
‘‘ मैं चाहता हूँ कि मेरा देश निर्भय हो ओर सभी का सिर गर्व से उन्नत हो। सवेरे का सूरज सभी को प्रकाश दे। वो सभी को बिना भेदभाव से अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाये। यही मेरी अभिलाषा है। एक नया सवेरा हो और सभी को रोशनी मिले, यह रोशनी सभी के जीवन को आलोक से भर दें। आओ हम सब मिलकर एक नये सवेरे का स्वागत करें ;उसे प्रणाम करें। ''
‘‘ तमसो माँ ज्योतिर्गमय। ''
----यशवन्त कोठारी ः जीवनवृत्त्ा
नाम ः यशवन्त कोठारी
जन्म ः 3 मई, 1950, नाथद्वारा, राजस्थान
शिक्षा ः एम․एस․सी․ -रसायन विज्ञान ‘राजस्थान विश्व विद्यालय' प्रथम श्रेणी - 1971 जी․आर․ई․, टोफेल 1976, आयुर्वेदरत्न
प्रकाशन ः लगभग 1000 लेख, निबन्ध, कहानियाँ, आवरण कथाएँ, धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, सारिका, नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान, राजस्थान पत्रिका, भास्कर, नवज्योती, राष्ट्रदूत साप्ताहिक, अमर उजाला, नई दुनिया, स्वतंत्र भारत, मिलाप, ट्रिव्यून, मधुमती, स्वागत आदि में प्रकाशित/ आकाशवाणी / दूरदर्शन से प्रसारित ।
प्रकाशित पुस्तकें
1 - कुर्सी सूत्र (व्यंग्य-संकलन) श्री नाथजी प्रकाशन, जयपुर 1980
2 - पदार्थ विज्ञान परिचय (आयुर्वेद) पब्लिकेशन स्कीम, जयपुर 1980
3 - रसशास्त्र परिचय (आयुर्वेद) पब्लिकेशन स्कीम, जयपुर 1980
4 - ए टेक्सूट बुक आफ रसशास्त्र (मलयालम भाषा) केरल सरकार कार्यशाला 1981
5 - हिन्दी की आखिरी किताब (व्यंग्य-संकलन) -पंचशील प्रकाशन, जयपुर 1981
6 - यश का शिकंजा (व्यंग्य-संकलन) -प्रभात प्रकाशन, दिल्ली 1984
7 - अकाल और भेडिये (व्यंग्य-संकलन) -श्रीनाथ जी प्रकाशन, जयपुर 1990
8 - नेहरू जी की कहानी (बाल-साहित्य) -श्रीनाथ जी प्रकाशन, जयपुर 1990
9 - नेहरू के विनोद (बाल-साहित्य) -श्रीनाथ जी प्रकाशन, जयपुर 1990
10 - राजधानी और राजनीति (व्यंग्य-संकलन) - श्रीनाथ जी प्रकाशन, जयपुर 1990
11 - मास्टर का मकान (व्यंग्य-संकलन) - रचना प्रकाशन, जयपुर 1996
12 - अमंगल में भी मंगल (बाल-साहित्य) - प्रभात प्रकाशन, दिल्ली 1996
13 - साँप हमारे मित्र (विज्ञान) प्रभात प्रकाशन, दिल्ली 1996
14 - भारत में स्वास्थ्य पत्रकारिता चौखम्भा संस्कृत प्रतिष्ठान, दिल्ली 1999
15 - सवेरे का सूरज (उपन्यास) पिंक सिटी प्रकाशन, जयपुर 1999
16 - दफ्तर में लंच - (व्यंग्य) हिन्दी बुक सेंटर, दिल्ली 2000
17 - खान-पान (स्वास्थ्य) - सुबोध बुक्स, दिल्ली 2001
18 - ज्ञान-विज्ञान (बाल-साहित्य) संजीव प्रकाशन, दिल्ली 2001
19 - महराणा प्रताप (जीवनी) पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2001
20 - प्रेरक प्रसंग (बाल-साहित्य) अविराम प्रकाशन, दिल्ली 2001
21 - ‘ठ' से ठहाका (बाल-साहित्य) पिंकसिटी प्रकाशन, दिल्ली 2001
22 - आग की कहानी (बाल-साहित्य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004
23 - प्रकाश की कहानी (बाल-साहित्य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004
24 - हमारे जानवर (बाल-साहित्य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004
25 - प्राचीन हस्तशिल्प (बाल-साहित्य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004
26 - हमारी खेल परम्परा (बाल-साहित्य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004
27 - रेड क्रास की कहानी (बाल-साहित्य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004
28 - कब्ज से कैसे बचें (स्वास्थ्य) - सुबोध बुक्स, दिल्ली 2006
29 - नर्शो से कैसे बचें (बाल-साहित्य) सामयिक प्रकाशन, दिल्ली 2006
30 - मैं तो चला इक्कीसवीं सदी में - (व्यंग्य) सार्थक प्रकाशन, दिल्ली 2006
31 - फीचर आलेख संग्रह -सार्थक प्रकाशन, दिल्ली 2006
32 - लोकतंत्र की लंगोट (व्यंगय-संकलन) - प्रभात प्रकाशन 2006
33 - स्त्रीत्व का सवाल - (प्रेस)
34 - हमारी संस्कृति - (प्रेस)
35 - हमारी लोक-संस्कृति - (प्रेस)
36 - बाल हास्य -एकांकी - (प्रेस)
37 - स्त्री पुरुष सम्बन्ध कल, आज और कल (प्रेस)
38 - Introduction to Ayurveda- CÈukÈmba Sansskrit PratishtÈn, Delhi 1999
39 & Angles and Triangles (Novel) Press
40 & Cultural Heritage fo Shree Nathdwara (Press)
सेमिनार - कांफ्रेस ः- देश-विदेश में दस राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में आमंत्रित / भाग लिया राजस्थान साहित्य अकादमी की समितियों के सदस्य 1991-93, 1995-97
पुरस्कार सम्मान ः-
1- राज्यसभा की कमेटी ‘पेपर्स लेड अॉन दी टेबल अॉफ राज्य सभा' द्वारा प्रशंसा पत्र
2- ‘मास्टर का मकान' शीर्षक पुस्तक पर राजस्थान साहित्य अकादमी का 11,000 रू․ का कन्हैयालाल सहल पुरस्कार ।
3- साक्षरता पुरस्कार 1996
4- बीस से अधिक पी․एच․डी․ /डी․ लिट् शोध प्रबन्धों में विवरण -पुस्तकों की समीक्षा आदि सम्मिलित ।
5- प्रेमचन्द पुरस्कार, दलित साहित्य अकादमी पुरस्कार, लक्ष्मी नारायण दुबे पुरस्कार आदि ।
सम्प्रति ः राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर में रसायन विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर एवं जर्नल अॉफ आयुर्वेद तथा आयुर्वेद बुलेटिन के प्रबंध सम्पादक ।
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यशवन्त कोठारी का रचना संसार
उपन्यास- ;1;यश का शिकंजा ;2;तीन लघु उपन्यास ;3;।
ngles & triangles ;4;असत्यम्, अशिवम्, असुन्दरम्
व्यंग्य-संकलन- ;1;कुर्सीसूत्र ;2;हिन्दी की आखिरी किताब ;3;राजधानी और राजनीति ;4;अकाल और भेडिये ;5;मास्टर का मकान ;6;दफ्तर में लंच ;7;लोकतन्त्र की लंगोट ;8;मैं तो चला इक्कीसवीं सदी में ;9;सौ श्रेप्ठ व्यंग्य रचनाएं
पत्रकारिता- भारत में स्वास्थ्य पत्रकारिता
बाल-प्रोढ.- ;1;नेहरूजी की कहानी ;2;नेहरू के विनोद ;3;साँप हमारे मित्र ;4;अमंगल में मंगल ;5;नशों से कैसे बचे? ;6;कब्ज से कैसे बचे? ;7;खानपान ;8;ज्ञान विज्ञान ;9;प्रेरक प्रसंग ;10;महाराणा प्रताप ;11;‘ठ' से ठहाका ;12;प्रकाश की कहानी ;13;प्राचीन खेल परम्परा ;14;हमारे जानवर ;15;रेडक्रास ;16;आग की कहानी ;17;हमारे हस्तशिल्प ;18;हमारी संस्कृति ;19;हमारी लोकसंस्कृति ;20;स्त्रीत्व आदि
अन्य- ;1;फीचर आलेख संग्रह ;2;इन्ट्रोडक्शन टू आयुर्वेद ;3;कल्चरल हेरिटेज अॉफ श्रीनाथद्धारा ;4;मेन-वूमेन रिलेशनशिप ;5;रसशास्त्र परिचय ;6;पदार्थ विज्ञान परिचय
सम्पर्क- 86,लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर
जयपुर-302002
फोनः-0141-2670596
mailto:ykkothari3@yahoo.com
behd prerna dayk upnyas .aaj jarurat nai aise lekhan ki .naiaur shi disha deta upnyas .
जवाब देंहटाएंbadhai