तत्व एक है। तत्व अद्वैत एवं परमार्थ रूप है। जीव और जगत उस एक तत्व ́ ब्रह्म ΄ के विभाव मात्र हैं। अध्यात्म एवं धर्म के आराध्य राम तत्व है...
तत्व एक है। तत्व अद्वैत एवं परमार्थ रूप है। जीव और जगत उस एक तत्व ́ ब्रह्म ΄ के विभाव मात्र हैं। अध्यात्म एवं धर्म के आराध्य राम तत्व हैं, अद्वैत एवं परमार्थ रूप हैं - रामु ब्रह्म परमारथ रूपा। इसी कारण राम के लिए तुलसीदास ने बार बार कहा है -
́ व्यापकु अकल अनीह अज निर्गुन नाम न रूप। भगत हेतु नाना बिधि करत चरित्र अनूप΄।
अध्यात्म के मूल्य शाश्वत होते हैं। राजनीति के मूल्य कभी भी शाश्वत नहीं होते। जो राजनीतिज्ञ सत्ता प्राप्ति के कुत्सित मोह से ग्रसित हो जाते हैं उनके लिए जीवनमूल्य, उच्च आदर्श, उसूल केवल कहने के लिए रह जाते हैं; केवल बोलने के लिए रह जाते हैं। ऐसे राजनीतिज्ञों का जीवन मूल्यविहीन हो जाता है। कुर्सी हथियाने के लिए गिरगिट की तरह रंग बदलना इनका स्वभाव हो जाता है। हवा में नारे उछालकर तथा भावों के आवेग का तूफान बहाकर वोट बटोरना इनका धर्म हो जाता है। ऐसे राजनीतिज्ञों के लिए भगवान राम साध्य नहीं रह जाते, आराध्य नहीं रह जाते ; ́ब्यापकु ब्रह्म अलखु अबिनासी। चिदानंदु निरगुन गुनरासी।। ΄ नहीं रह जाते ; परमार्थ रूप नहीं रह जाते। ऐसे राजनीतिज्ञों के लिए भगवान राम चुनावों में विजयश्री प्राप्ति के लिए एक साधन होते हैं, उनके नाम पर भोली भाली जनता से पैसा वसूलकर अपनी तिजोरी भरने का जरिया होते हैं; दूसरो के उपासना केन्द्र के विध्वंस एवं तत्पश्चात् विनाश, तबाही, बरबादी के उत्प्रेरक होते हैं। अध्यात्म का साधक एवं धर्म का आराधक तो राम के लिए अपने दुर्गुणों की बलि चढ़ा देता है ; राजनीति के कुटिल नेतागण राम के नाम पर मन्दिर बनवाने के लिए जनआन्दोलन चलाकर, जनता की भावनाओं को भड़काकर कुर्सी पर काबिज होने के बाद राम की ही बलि चढ़ा देते हैं ; राम को अपने एजेन्डे से बाहर निकाल देते हैं। अध्यात्म के साधक एवं धर्म के आराधक के लिए तो राम त्याग, तपस्या एवं साधना के प्रेरणास्रोत होते हैं ;राजनीति के धोखेबाज नेताओं के लिए तो राम ́ शिला पूजन ΄ के नाम से करोड़ों- करोड़ों की धनराशि वसूलने के लिए एक जरिया हो जाते हैं। अध्यात्म के साधक एवं धर्म के आराधक के लिए तो राम - अजित अमोघ सक्ति करुनामय - हैं, सर्वव्यापक हैं, इन्द्रियों से अगोचर हैं, चिदानन्द स्वरूप हैं, निर्गुण हैं, कूटस्थ एकरस हैं, सभी के हृदयों में निवास करने वाले प्रभु हैं, ́ब्यापक ब्यापि अखंड अनन्ता΄ हैं वही सच्चिदानन्द राम राजनीति के चालबाज नेताओं के लिए समाज के वर्गों में वैमनस्य, घृणा, कलह, तनाव, दुश्मनी, विनाश के कारक एवं उत्प्रेरक हो जाते हैं। राजनीति की कुटिलता, चालबाजी, धोखेबाजी का इससे बड़ा प्रतिमान और क्या हो सकता है कि सत्ता प्राप्ति के पूर्व जिन नेताओं ने राम के नाम की कसमें खायीं, सौगन्ध खा खाकर बार बार कहा - ́ सौगन्ध राम की खाते हैं, मन्दिर यहीं बनायेंगे ΄ ; जन जन को भावनाओं के सागर की उमगाव एवं उछाव रूपी लहरों से आप्लावित कर दिया - ́ बच्चा बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का ΄ मगर जब राम के नाम के सहारे सत्ता प्राप्त कर ली तो फिर उन राजनेताओं को राम से कोई मतलब नहीं रहा , राम से कोई प्रयोजन नहीं रहा , राम से कोई वास्ता नहीं रहा। राजा दशरथ ने तो राम कथा में राम को बनवास दिया था ;राजनीति के धोखेबाज नेताओं ने राम को अपने एजेन्डे से ही निकाल फेंका।
आखिर क्या कारण है कि जब चुनाव निकट आते हैं तो इन नेताओं को राम के किसी प्रतीक के सहारे अपनी वैतरणी पार करने की सूझती है। पिछले दिनों जब राम सेतु का मुद्दा उछाला गया तो मैंने एक मित्र को बतलाया कि पउम चरिउ एवं अध्यात्म रामायण जैसे ग्रन्थों में राम सेतु के रामचरितमानस से भिन्न संदर्भ हैं। उन्होंने उत्तर दिया कि हमारी श्रद्धा तो केवल तुलसी कृत रामचरितमानस में है। उनका कहना ठीक था। उत्तरभारत के जनमानस की आस्था तुलसी कृत रामचरितमानस में है। आस्था के आगे तो कोई तर्क काम कर नहीं सकता। मैं ऐसे आस्थावान एवं प्रबुद्ध जनों के लिए तुलसीकृत रामचरितमानस की दोहा चौपाइयों के आधार पर राम के तात्त्विक स्वरूप का निरूपण करना चाहता हूँ:
भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप ।
किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनूरूप।।
जथा अनेक वेष धरि नृत्य करइ नट कोइ ।
सोइ सोइ भाव दिखावअइ आपनु होइ न सोइ । ।
तुलसीदास की मान्यता है कि निर्गुण ब्रह्म राम भक्त के प्रेम के कारण मनुष्य शरीर धारण कर लौकिक पुरुष के अनूरूप विभिन्न भावों का प्रदर्शन करते हैं। नाटक में एक नट अर्थात् अभिनेता अनेक पात्रों का अभिनय करते हुए उनके अनुरूप वेषभूषा पहन लेता है तथा अनेक पात्रों अर्थात् चरितों का अभिनय करता है। जिस प्रकार वह नट नाटक में अनेक पात्रों के अनुरूप वेष धारण करने तथा उनका अभिनय करने से वे पात्र नहीं हो जाता ; नट ही रहता है उसी प्रकार रामचरितमानस में भगवान राम ने लौकिक मनुष्य के अनुरूप जो विविध लीलाएँ की हैं उससे भगवान राम तत्वतः वही नहीं हो जाते ; राम तत्वतः निर्गुण ब्रह्म ही हैं। तुलसीदास ने इसे और स्पष्ट करते हुए कहा है कि उनकी इस लीला के रहस्य को बुद्धिहीन लोग नहीं समझ पाते तथा मोहमुग्ध होकर लीला रूप को ही वास्तविक समझ लेते हैं। आवश्यकता तुलसीदास के अनुरूप राम के वास्तविक एवं तात्विक रूप को आत्मसात् करने की है । भारत के प्रबुद्ध जन स्वयं निर्णय करें कि वास्तविक एवं तात्विक महत्व किसमें निहित है। राम की लौकिक कथा से जुड़े प्रसंगों को राजनीति का मुद्दा बनाकर राम के नाम पर सत्ता के सिंहासन को प्राप्त करने की जुगाड़ भिड़ाने वाले कुटिल, चालबाज, धोखेबाज नेताओं के बहकावे में आने की अथवा भगवान राम के वास्तविक एवं तात्विक रूप को पहचानने की, उनको आत्मसात् करने की, उनकी उपासना करने की, उनकी लोक मंगलकारी जीवन दृष्टि एवं मूल्यों को अपने जीवन में उतारने की।
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प्रोफेसर महावीर सरन जैन
सेवा निवृत्त निदेशक , केन्द्रीय हिन्दी संस्थान
123, हरि एन्कलेव
बुलन्द शहर - 203001श्
shree ram akalpaniy param satya hai. jagat ke palanhar aur rachaeta sansar ke param guru hai.
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