यशवन्त कोठारी का उपन्यास : नया सवेरा - 5

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किशोर उपन्यास नया सवेरा यशवन्त कोठारी (पिछले अंक से जारी…)   अभिमन्‍यु बाबू विद्यालय में परीक्षा की तैयारी करने लगे। परीक्षाये...

किशोर उपन्यास

नया सवेरा

यशवन्त कोठारी

(पिछले अंक से जारी…)

 

अभिमन्‍यु बाबू विद्यालय में परीक्षा की तैयारी करने लगे। परीक्षायें निश्‍चित दिवस से सुचारु रूप से चलने लगी। प्रधान जी के आदमियों ने गड़बड़ी की कोशिश शुरू में की। मगर प्राचार्य की दृढ़ता तथा पुलिस-प्रशासन की ठोस व्‍यवस्‍था से अव्‍यवस्‍था नहीं हो पाई। प्रधान जी मनमसोस कर रह गये। इधर वे फिर राजधानी गये थे, लेकिन प्राचार्य या अभिमन्‍यु बाबू के खिलाफ कुछ खास नहीं कर पाये थे। दूसरी ओर धीरे-धीरे कस्‍बे के लोगों को अभिमन्‍यु बाबू की योजनाओं पर विश्‍वास होता जा रहा था। पर्यावरण, शिक्षा, प्रौढ़शिक्षा तथा अन्‍ना द्वारा किये जा रहे सब कार्यो की कस्‍बे की जनता को अखबारों के जरिये जानकारी मिल रही थी। साथ ही वे यह भी महसूस कर रहे थे कि इन सब कार्यो में अभिमन्‍यु या उनकी टीम के किसी भी सदस्‍य का कोई व्‍यक्‍तिगत स्‍वार्थ नहीं है। ये सब परोपकार का काम है और धर्म का काम हे। जनता में एक नई जागरूकता एक नया उत्‍साह इस वर्ष देखने में आया था। छात्रावास के छात्र अपने खाली समय में कस्बे में इन कार्यक्रमों की चर्चा करते। सफलता का श्रेय प्राचार्य अभिमन्‍यु बाबू तथा अन्‍ना को देते। प्रशासन ने भी इन कार्यो में सहयोग दिया था। विकास अधिकारी इनके कार्यो से संतुष्ट थे। ऐसी स्‍थिति में प्रधानजी का दुखी होना स्‍वाभाविक था उनके कुछ खास लोग हमेशा इस टोह में रहते हैं कि स्‍कूल या छात्रावास में कुछ गड़बड़ी हो तो वे मामले को उठायें। मगर उन्‍हें निराशा ही हाथ लगी।

इसी बीच अभिमन्‍यु बाबू ने प्रतियोगी परीक्षा की अन्‍तिम परीक्षा पर गम्‍भीरता से ध्‍यान देना शुरू किया। अप्रैल के अन्‍तिम सप्‍ताह में परीक्षा थी। अभिमन्‍यु बाबू के बापू का स्‍वास्‍थ्‍य अब ठीक था। वे अस्‍पताल से वापस छात्रावास आ गये थे। मां और कमला उनकी सेवा कर रही थी। अभिमन्‍यु बाबू परीक्षा देने जाने वाले थे। मां के पास आकर बोले।

‘‘ मां मेरी आई․ए․एस․ की परीक्षा सोमवार से शुरू होंगी तैयारी मैने कर ली है। बापू की तबियत भी ठीक है। तुम कहो तो परीक्षा दे आऊं। शहर जाना होगा।''

‘‘ जरूर जाओ बेटा। परमात्‍मा तुम्‍हें कामयाब करें। यहां मैं और कमला सब सम्‍भाल लेंगे। फिर अन्‍ना-प्रतिभा मैडम तथा छात्र तो हैं ही। ''

‘‘ हां मां सोचता हूं परीक्षा दे ही आऊं। '' यह कहकर उन्‍होंने मां बापू के चरण छुए और परीक्षा देने के लिए चले गये। परीक्षा देकर अभिमन्‍यु बाबू वापस राजपुर आये तो प्राचार्य ने उन्‍हें बुलाया और कहा।

‘‘ प्रधान जी अपने काम में सफल हो गये हैं। आज राजधानी से भी टेलीफोन आया है। '' शायद कुछ बुरी खबर आने वाली है। ‘‘ अच्‍छा तुम्‍हारे पर्चे कैसे हुए। ''प्राचार्य ने पूछा।

‘‘ सब ठीक हो गये सर। मुझे विश्‍वास है कि मेरा चयन हो जायेगा। ''

‘‘ शाबाश। तुम चिन्‍ता मत करो। सब ठीक हो जायेगा।''

शाम को बापू की तबियत का हालचाल पूछने अन्‍ना व प्रतिभा आई तो अन्‍ना ने अभिमन्‍यु से परीक्षा के बारे में पूछा।

‘‘ पेपर तो ठीक हो गये हैं साक्षात्‍कार भी ठीक ही हुआ हे। ''

‘‘ सब हो जायेगा। आप जैसे जहीन, ईमानदार और नैतिक मूल्‍यों में दृढ़ आस्‍था रखने वाले अफसरों की देश को बड़ी जरूरत है'' अन्‍ना ने कहा।

आखिर कार्य पालिका प्रजातन्‍त्र का एक स्‍तम्‍भ है। '' मिसेज प्रतिभा बोली।

‘‘ हां वो तो ठीक है मगर चयन होना इतना आसान भी नहीं है। ''

‘‘ आसान नहीं है मगर असंभव भी तो नहीं है। ''

‘‘ हां ये बात तो है। ''

कमला चाय ले आयी। मिसेज प्रतिभा ने कमला की परीक्षा के बारे में पूछा-

‘‘ मेरा तो परिणाम भी आ गया। आठवीं में प्रथम श्रेणी में उत्‍तीर्ण हुई हूं।'' कमला ने चहक कर कहा।

‘‘ ओह। शाबाश। बधाई मिठाई कब खिलाओगी। '' अन्‍ना ने कहा। सब खिलखिलाकर हँस पड़े।

बापू का स्‍वास्‍थ्‍य अब ठीक-ठीक था। मगर लगातार सेवा से मां की तबियत गड़बड़ा गयी थी। अभिमन्‍यु ने मां को डाक्‍टर साहब को दिखाया। वे बोले।

‘‘ थकान और वृद्धावस्‍था से ऐसा हो जाता है आप इन्‍हें ताकत की दवाइयाँ दे तथा कुछ फल, दूध एवं पौष्टिक आहार दें। ठीक हो जायेंगी।, चिन्ता जैसी कोई बात नहीं है। ''

अभिमन्‍यु बाबू सुबह शाम माँ-बापू की सेवा में रहते । एक शाम माँ ने कहा-

‘‘ बेटा अब मेरा बुढ़ापा है, बापू बीमार है बस एक इच्‍छा हे,बहू का मुंह देख लूं। एक बात बता। अन्‍ना के बारे में क्‍या सोचता है रे तू। ''

अभिमन्‍यु शरमा गया। इस दृष्टि से कभी सोचा भी नहीं था। मामूली शैक्षणिक जान पहचान थी बस। बोला-

माँ ऐसी भी क्‍या जल्‍दी है बापू को पूरा ठीक हो जाने दे। मेरी मानों तो पहले कमला की शादी करना। ''

कमला के अठारह बरस की होने में अभी पांच वर्ष की देर है और तू चौबीस का हो गया है। बोल क्‍या मर्जी है तेरी।''

‘‘ देख मां-अभी परीक्षा दी है उसका परिणाम आने दो फिर विचार करेंगे।''

‘‘ ठीक है। ''

अभिमन्‍यु ने मां-बापू को दवा दी। और छात्रावास की तैयारी में लग गया।

अचानक सुबह सुबह कमला ने जगाया और अखबार नचाती हुई बोली

‘‘ भैया इसमें तुम्‍हारा परिणाम छपा है। ''

‘‘ ला मुझे दिखा। ''

‘‘ नहीं पहले मिठाई लाओ। ''

‘‘ ला मुझे दे नहीं तो मारूंगा। ''

तभी मां भी आ गयी। बापू आशा भरी नजरों से देख रहे थे अभिमन्‍यु ने लपक कर कमला के हाथ से अखबार छीन लिया। स्‍थानीय अखबार था। आई․ए․एस․ का परिणाम प्रकाशित हुआ था। अभिमन्‍यु प्रथम घोषित हुआ था उसका वर्षो का सपना आज पूरा हुआ था।

‘‘ मां मां में आई․ए․एस․ में प्रथम आया हूँ। ''

उसने मां बापू के चरण छुए। मां ने आशीषा। असहाय बापू की आँखों से आंसू छलक पड़े। अभिमन्‍यु भी भावविभोर हो गया। काश आज बापू बोल सकते। मगर बापू खुश थे।

शीघ्र ही यह खबर कस्‍बे में जंगल की आग की तरह फैल गयी कि अभिमन्‍यु बाबू आई․ए․एस․ हो गये हैं। छात्र, अध्‍यापक नागरिक सब बधाई देने आने लगे। तभी प्राचार्य भी आये। उन्‍होंने अभिमन्‍यु बाबू को माला पहनाई, बधाई दी और कहा-

‘‘ तुम चाहो तो अपने वर्तमान पद से त्‍यागपत्र दे सकते हो ताकि प्रधान जी जो राजधानी जाकर कर के आये हैं, उसका प्रभाव नहीं हो। ''

यह ठीक समझकर अभिमन्यु बाबू ने अध्‍यापक के पद तथा छात्रावास के अधीक्षक पद से अपना त्‍यागपत्र दे दिया। जिसे प्राचार्य ने स्‍वीकृति हेतु उच्‍च अधिकारियों को भेज दिया। इसी बीच प्राचार्य का स्‍थानान्‍तरण आदेश भी प्रधानजी के क्रियाकलापों से आ गया मगर प्राचार्य ने कोई चिन्‍ता नहीं की। अन्‍ना व मिसेज प्रतिभा ने आकर अभिमन्‍यु को बधाई दी। आज अन्‍ना ने मां के चरण छुए। बापू को प्रणाम किया। अभिमन्‍यु ने उसकी सर्वे रिपोर्ट के बारे में पूछा अन्‍ना बोली।

‘‘ मैने प्रोजेक्‍ट रिपोर्ट बनाकर जयपुर प्रो․ सिंह को भेज दी है। तथा रिपोर्ट के कुछ हिस्‍से प्रकाशनार्थ भी भेजे हैं। शायद शीघ्र ही छपकर आ जायेंगे।''

‘‘ अरे यह तो बहुत अच्‍छी बात है। ''

तभी मां आई और बोली।

‘‘ बेटा अब तो तुम आई․ए․एस․ भी हो गये हो। अब शादी के लिए क्‍या बहाना बनाओगे। ''अभिमन्‍यु शरमा गया। क्‍या जवाब दे। मां फिर बोली ‘‘ अन्‍ना का भी प्रोजेक्‍ट पूरा हो गया है। ''

लेकिन बातचीत कैसे शुरू हो। तभी मिसेज प्रतिभा बोल पड़ी-

‘‘ अन्‍ना तुम अपने पापा को तार देकर यहीं बुला लो। ''

क्‍यों।

‘‘ अभिमन्‍यु से अच्‍छा दामाद उन्‍हें कहाँ मिलेगा।'' मिसेज प्रतिभा ने हंसते हुए कहा। ''

‘‘ तुम तो मजाक करती हो। ''

‘‘ हां बेटी मेरी भी यही इच्‍छा है। '' अभिमन्‍यु की मां बोल पड़ी।

अभिमन्‍यु के पिता ने भी आशा भरी नजरों से अन्‍ना की ओर देखा। बोल नहीं सकते थे। मगर आंखों ने बहुत कुछ कह दिया था।

अन्‍ना ने कनखियों से अभिमन्‍यु बाबू को देखा। एक क्षण को दोनों की नजरें मिली। शरमाई और झुक गयी। मूक सहमति पाकर अन्‍ना ने साड़ी का पल्‍लू ढका और मां-बापू का आशीर्वाद ले लिया। उसने पापा को तार देकर बुला लिया। प्रो․ सिंह को भी तार दे दिया ताकि आशा भी आ जायें।

विद्यालय के अध्‍यापकों, छात्रों, कस्बे के लोगों ने मिलकर अभिमन्‍यु बाबू के आई․ए․एस․ बनने पर उनका अभिनन्‍दन करने का निश्‍चय किया। प्राचार्य महोदय ने विद्यालय में सब व्‍यवस्‍था कराने का जिम्‍मा लिया। प्राचार्य महोदय स्‍वयं स्‍थानान्‍तरण का संत्रास भोग रहे थे, मगर इस कार्य के प्रति उनके मन में बड़ा उत्‍साह था। छात्रों ने भी खूब मन से इस कार्यक्रम को सफल बनाने का निश्‍चय किया। स्‍थानीय नागरिकों ने भी सहयोग दिया। इस कस्‍बे में काम करने वाला व्‍यक्‍ति पहली बार आई․ए․एस․ जैसे उच्‍च पद हेतु चयनित हुआ था। अभिमन्‍यु के गांव के लोग भी इस अभिनन्‍दन समारोह में शामिल होने के लिए आये थे।

प्रारम्‍भ में प्राचार्य महोदय ने सभी का स्‍वागत किया ओर कहा यह सभी के लिए सौभाग्‍य की बात है कि हमारे विद्यालय के और इस तहसील के एक गांव के हमारे अपने अध्‍यापक अभिमन्‍यु बाबू ने देश की सर्वोच्‍च सिविल परीक्षा प्रथम स्‍थान में पास की है वास्‍तव में इस गौरव के लिए अभिमन्‍यु बाबू की जितनी प्रशंसा की जाये कम है बहुत कम लोग जानते हैं कि अभिमन्‍यु बाबू विज्ञान के अध्‍यापक होकर भी राजनीति व समाजविज्ञान के भी ज्ञाता हैं। इन्‍होंने छात्रों की बहुमुखी प्रतिभा के विकास के लिए काफी काम किया है। इस विद्यालय में रहते हुए अभिमन्‍यु बाबू ने पर्यावरण, नशीली दवाओं, बाल विवाह , प्रौढ़ शिक्षा जैसे सार्वजनिक महत्‍व के क्षेत्रों में काम किया। इस वर्ष विद्यालय का परीक्षा परिणाम पिछले से भी बेहतर रहा है।

वास्‍तव में विद्यालय में छात्रों का सर्वांगीण विकास हेतु हमें अभिमन्‍यु बाबू जैसे लोगों की जरूरत है। वे एक युग के निर्माण में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं वे सच्‍चे अर्थों में युग निर्माता हैं। उन्‍होंने अपने छात्रों में युग निर्माण की बात कूट-कूट कर भरी है।

मैं इनका अभिनन्‍दन करता हूँ और उम्‍मीद करता हूँ कि देश के आला अफसर के रूप में युग निर्माण की प्रक्रिया को जारी रखेंगे। '' यह कह कर प्राचार्य महोदय बैठ गये तभी प्रो․ सिंह खड़े हुए और बोले- ‘‘ मैं भी आप का स्‍वागत करता हूँ। अभिनन्‍दन करता हूँ और आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ। वास्‍तव में इस देश को ईमानदार अफसरों की बड़ी जरूरत है।''

अन्‍ना के पापा भी पहुंच गये थे वे अभिमन्‍यु के बारे में देख सुनकर बहुत खुश हो रहे थे।

अन्‍ना ने उन्‍हें अभिमन्‍यु बाबू की उपलब्‍धियों तथा कार्य प्रणाली के बारे में सब कुछ बता दिया था। अन्‍ना के पापा अभिमन्‍यु बाबू के बारे में सब जानकर अभिभूत थे उन्‍हें यह जानकर और भी खुशी हुई की दोनों एक दूसरे को पसन्‍द करते थे। उन्‍हें यह जोड़ी बहुत अच्‍छी लगी।

तभी प्रधान जी ने अपने आदमियों के साथ हाल में प्रवेश किया एक बार तो सन्‍नाटा छा गया। सब स्‍तब्‍ध थे। पता नहीं क्‍या हो। छात्र अलग कसमसाने लगे। कुछ छात्र तो नारेबाजी करने लगे। कुछ छात्र उत्‍तेजित हो गये। प्राचार्य ने खड़े होकर छात्रों को शान्‍त किया। प्रधानजी मंच पर चढ़ गये। अभिमन्‍यु बाबू के गले में माला पहनाई। हाथ मिलाया बधाई दी। और माइक पर आकर बोले।

‘‘ मुझसे बड़ी गलती हुई। मैं आप सभी के सामने अभिमन्‍यु बाबू से और आप सब से क्षमा याचना करता हूँ। आप लोग कृपा करके मुझे क्षमा करें। मैं इस देवता पुरूष को पहचान नहीं पाया। अपने क्षुद्र स्वार्थों के कारण मैंने तथा मेरे आदमियों ने अभिमन्‍यु बाबू को नाना दुख दिये। उन्‍हें प्रताड़ित किया। धमकियां दी यहां तक कि उन पर हाथ भी उठाया। आज मैं अपने कर्मों का प्रायश्‍चित करता हूँ। '' आज से मैं अभिमन्‍यु बाबू के दिखाये मार्ग पर चलकर जनहित में काम करने का प्रण लेता हूँ। एक बात और प्राचार्य महोदय का जो स्‍थानान्‍तरण मैंने कराया था उसे भी पुनः रद्द करवा दिया है। प्राचार्य महोदय भी मुझे क्षमा करें।''

यह कह कर प्रधान जी ने पुनः अभिमन्‍यु बाबू से हाथ मिलाया और मंच से उतरकर सभा में बैठ गये।

सभी छात्रों ने प्रसन्‍न होकर तालियां बजाई । हाल ‘‘ प्रधान जी जिन्‍दाबाद। '' ‘‘अभिमन्‍यु बाबू जिन्‍दाबाद। '' के नारों से गूंजने लगा।

अभिमन्‍यु बाबू अपने अभिनन्‍दन का प्रत्‍युत्‍तर देने खड़े हुए हाल काफी समय तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा। शान्‍ति होने पर अभिमन्‍यु बाबू ने बोलना शुरू किया।

‘‘ दोस्‍तों मैं आप ही के बीच का एक छोटा आदमी हूँ। कल तक आप के बीच में काम करता था। अध्‍यापक था जो भी दायित्‍व मुझे सौंपा जाता था उसे मन लगाकर पूरा करने की कोशिश करता था।

मुझे खुशी है कि प्रधान जी ने अपनी गलती महसूस की वे बड़े है। बुजुर्ग है मैं उनका सम्‍मान और अभिवादन करता हूँ जो हुआ सो हुआ। अन्‍त भला तो सब भला।

मैं आप को बताना चाहता हूँ कि यदि हम अपना काम ईमानदारी व निष्ठा से पूरा करें तो हमें सफलता अवश्‍य मिलती है। सफल होने के लिए दृढ़ आत्‍मविश्‍वास और काम करना की लगन होनी चाहिए बस। रास्ते की तमाम रुकावटों के बावजूद सफल होना ही मानव का स्‍वभाव है जब तक सफलता नहीं मिले तब तक कर्म को त्‍यागो मत। हम सबको मिलकर एक नये युग, एक नये भारत, एक नये विश्‍व का निर्माण करना है। जो जहां है वहां पर अपनी पूर्ण सामर्थ्‍य के साथ काम करे। तभी युग निर्माण का महान स्‍वप्‍न साकार होगा। हम सब एक हैं। हमारे देश की परम्‍परा, संस्‍कृति और इतिहास ने हमें मिलजुल कर रहना सिखाया है। सर्व धर्म समभाव तथा वसुदैव कुटुम्‍बकम हमारे आदर्श रहे हैं। अपने इस अभिनन्‍दन के लिए मैं आप सभी का आभार व्‍यक्‍त करता हूँ। तथा यह भी घोषणा करता हू। कि आई․ए․एस․ के रूप में अपनी पहली पोस्‍टिंग इसी कस्‍बे में लेने की कोशिश करूंगा और कस्‍बे के समग्र विकास के लिए हर सम्‍भव प्रयत्‍न करूंगा। मैं इस तहसील में पैदा हुआ। यह मेरी पहली कर्म भूमि रही है। और अब भी मैं कहीं पर रहूं, इस कस्‍बे तथा यहां के लोगों के लिए मेरे दरवाजे हमेशा खुले रहेंगे। मैं पूरी कोशिश करूंगा कि यह तहसील पूरे देश में एक आदर्श तहसील के रूप में जानी जाये। यहां पर कोई अनपढ़ नहीं होगा, कोई नशा नहीं करेगा। पर्यावरण ठीक होगा हम सब मिलकर एक नये युग का निर्माण करेंगे। जहां पर सब जगह सुख और संतोष रहेगा। इस अवसर पर मैं प्राचार्य महोदय अपने साथी अध्यापकों प्रो․ सिंह अन्‍ना जी, छात्रों तथा नागरिकों सभी के प्रति आदर और स्‍नेह व्‍यक्‍त करता हूं। और आपको विश्‍वास दिलाता हूँ कि प्रजातन्‍त्र का एक स्‍तम्‍भ कार्य पालिका कन्‍धे से कन्‍धा भिड़ाकर देश में एक नये युग के निर्माण हेतु कृत संकल्‍प है। आइये हम सब मिलकर युग निर्माण के अधूरे कार्य को पूरा करें।''

‘‘ हाल देर तक तालियों से गूंजता रहा। अभिमन्‍यु बाबू अपनी सीट पर आकर बैठ गए तभी अन्‍ना के पापा मंच पर चढ़ गये। और माइक पर बोले। ''

‘‘ मैं अभिमन्‍यु बाबू की सगाई अपनी बेटी अन्‍ना के साथ करने की घोषणा करता हूँ दोनों एक दूसरे को पसन्‍द भी करते है।''

फिर एक बार हाल बधाईयों और तालियों से गूंज उठा। अन्‍ना ने शरमाकर आँखें झुका ली।

अभिनन्‍दन कार्यक्रम समाप्‍त हो गया। प्राचार्य महोदय पूर्ववत काम करने गये। सामन्‍तवादी प्रधान जी जनहित में लग गये। ट्रेनिंग पूरी करके अभिमन्‍यु बाबू जब इसी कस्‍बे में एस․डी․एम․ बनकर आये तो उनके साथ मिसेज अन्‍ना थी। वे दोनों मिलकर पुनः एक नये युग के निर्माण हेतु काम करने लगे। अभिमन्‍यु बाबू ने तहसील को दो वर्षो में ही आदर्श तहसील के रूप में विकसित कर दिया। गणतंत्र दिवस पर उन्‍हें इस कार्य हेतु राज्‍यपाल द्वारा पुरस्‍कृत भी किया गया। युग निर्माण का युग निर्माण सपना पुनः साकार हुआ।

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समय निरन्‍तर चलता रहता हे। समय किसी के लिए भी नहीं रुकता। वास्‍तव में हम समय का भोग नहीं करते हैं। समय ही हमारा भोग करता है। समय के साथ साथ चलना किसी के लिए भी संभव नहीं होता है। कभी न कभी समय छोड़ कर आगे बढ़ जाता है।

कुछ वर्षो के अन्‍दर सब कुछ बदल गया है। राजपुर जिला घोषित हो गया और अभिमन्‍यु बाबू इस जिले के प्रथम जिलाधीश नियुक्‍त होकर आ गये हैं। आज वे और अन्‍ना अपने विशाल बंगले के लॉन में बैठ कर अपने पिछले दिनों की यादें ताजा कर रहे हैं। अचानक अन्‍ना ने कहा।

‘‘ देखिये समय किस तेजी से बदल रहा है। आज राजपुर जिला बन गया है। सर्वत्र आर्थिक पैमाने हो गये हैं। मनुष्य का सोच आर्थिक सोच हो गया है। खुली अर्थ व्‍यवस्‍था ने समाज को एक नये संसार से परिचित कराया है। ''

‘‘ - हां ये तो हैं, मगर सब कुछ खुल जाने से स्‍वतंत्रता स्‍वच्‍छदता में बदल जाती है और समाज तथा व्‍यक्‍ति के उच्छृंखल बन जाने की संभावना बन जाती है। '' अभिमन्‍यु बाबू ने गंभीर होकर कहा।

‘‘ - हां यह संभव है। मगर शायद आजके विश्‍व की यही मांग है। वैसे भी निर्धनता मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है। निर्धन होना ही सबसे बड़ा अपराध है। यक्ष ने जब युधिष्ठिर से पूछ कि सबसे ज्‍यादा दुखी कौन है तो युधिष्ठिर का प्रत्‍युत्‍तर था-निर्धन व्‍यक्‍ति सबसे ज्‍यादा दुखी है। उपनिषदों में भी निर्धनता को पौरुष-हीनता माना गया है। अर्थात व्‍यक्‍ति में पौरुष उतना ही है, जितना उसके पास धन हे। सभी गुण कंचन में बसते हैं। धनवान ही रूपवान, चरित्रवान,साहित्‍य, कला, संस्‍कृति का पारखी, सज्‍जन और सबल होता हैं हर युग में धनवान की पूछ होती रहती है। राजा, मंत्री भी धनवान की बात ध्‍यान से सुनता है। इसलिए युग में धन का महत्‍व और भी ज्‍यादा हैं। जीवन में निर्भरता का अभिशाप सबसे बड़ा अभिशाप है। धन से युग में सब कुछ क्रय किया जा सकता है और इसी कारण व्‍यक्‍ति साम, दाम, दंड, भेद, सही, गलत सभी तरीकों से धन कमाने के लिए दौड़ पड़ता है, वह पैसे की इस अन्‍धी दौड़ में घुड़ दौड़ के घोड़े की तरह दौड़ रहा है। निर्धन तो हमेशा दुख, कोप ओर दुर्भाग्‍य का मारा होता है, ओर यदि व्‍यक्‍ति धनवान से निर्धन हो जाता हे तो उसके कष्ट और बढ़ जाते हैं, मित्र मुंह मोड़ लेते हैं, रिश्‍तेदार पहचानना बंद कर देते हैं और उपेक्षा व अपमान का जीवन जीने को बाध्‍य होना पड़ता हे। ''

अन्‍ना एक सांस में बोल पड़ी।

अन्‍ना का लम्‍बा वक्तव्य सुनकर अभिमन्‍यु बाबू कुछ नहीं बोले। वे कही अतीत में खो गये थे। इसी समय अर्दली ने आकर दिल्‍ली से आवश्‍यक सूचना प्राप्‍त करने हेतु फोन की सूचना दी। अभिमन्‍यु बाबू अन्‍दर फोन सुनने चले गये। अन्‍ना शून्य में निहारने लगी। पता नहीं क्‍यों आज उसका पुराना जीवन दर्शन जाग उठा था।

अभिमन्‍यु बाबू वापस आये बोले ।

‘‘ अन्‍ना दिल्‍ली से महत्‍वपूर्ण सूचना आई है। इस वर्ष पन्‍द्रह अगस्‍त का समारोह स्वर्ण जयन्‍ती के रूप में मनाया जायगा और इस पुनीत कार्य हेतु काफी तैयारियां की जायगी। मुख्‍य समारोह हमेशा की तरह दिल्‍ली में होगा। हमें भी अपने जिले में स्‍वतंत्रता की स्‍वर्ण जयन्‍ती मनानी हे। ''

-‘‘ अच्‍छा यह तो बड़ी खुशी की बात है। क्‍या वास्‍तव में आजाद हुए पचास वर्ष हो गये हैं। ''

-‘‘ हां हां क्‍यों नहीं।''

-‘‘ देश ने कई क्षेत्रों में बहुत अच्‍छा विकास किया है। विज्ञान - तकनालॉजी, अन्‍तरिक्ष अनुसंधान, रक्षा अनुसंधान, आदि क्षेत्रों में हमारा देश विश्‍व के कुछ प्रमुख देशों में से एक है। ''

-‘‘ लेकिन अभी भी देश में गरीबी, अशिक्षा का अन्‍धेरा है। समय के साथ स्‍वास्‍थ्‍य और अन्य समस्‍याएं बढ़ रही है।

-‘‘ समस्‍याओं का निदान भी हो रहा है। हम सब मिलकर आगे बढ़ रहे है। और सबसे बड़ी बात यह है कि हमने स्‍वतंत्रता को पचास वर्षो तक सहेज कर रखा है। मां भारती के आंचल पर धब्‍बा नहीं लगने दिया है। ''

-‘‘ कुछ हद तक आप शायद ठीक कह रहे हैं। मगर सब कुछ ठीक-ठाक हो ऐसा भी नहीं लगता है।''

-‘‘ सब कुछ कहीं भी ठीक नहीं होता है। हर जगह कुछ कमियां होती है। एक आधे भरे हुए गिलास को आधा खाली भी कहा जा सकता है। खैर। मुझे कार्यालय जाना है और हां तुम कमला को फोन करके बच्‍ची सहित बुलवा लेना। स्‍वतंत्रता दिवस समारोह देख कर उसे बड़ी खुशी होगी। ''

‘‘ जी अच्‍छा। ''

अभिमन्‍यु बाबू दफ्तर चले गये। अन्‍ना को अपना अतीत कचोटने लगा। यूरोप-अमरीका में पली बसी प्रवासी भारतीय अब इस देश की माटी से वापस इतनी जुड़ गई थी, कि उसे अब पश्‍चिम की हवा की भी याद नहीं आती। मगर जो खुली हवा इस देश में बहने लगी है,उसका परिणाम क्‍या वही होगा जो विदेशों में हुआ है। शायद नहीं क्‍योंकि इस देश की संस्कृति, परम्‍परा बहुत गहरे तक एक दूसरे को जोड़े रखने की क्षमता रखती हे।

राष्ट्रीय एकता, अगण्यता तथा देश भक्‍ति यहां के लोगों में कूट कूट कर भरी हुई है। और ऐसी स्‍थिति में देश के बिखरने का प्रश्‍न ही नहीं पैदा होता हे। दंगे,कर्फ्यू,जातिवादी उन्माद कुछ समय के लिए आते हैं और तेज हवा के झोंके की तरह चले जाते हैं। वे देश की एकता और साम्‍प्रदायिक सौहार्द को तोड़ नहीं पाते। यह महान देश एक है। यहां पर एकता में अनेकता है और अनेकता में एकता है।

अन्‍ना ने कमला को फोन कर बच्‍ची सहित आने का निमंत्रण दिया। शाम को गाड़ी भेज दी। कमला अपनी एक मात्र बच्‍ची के साथ अन्‍ना के पास आ गई। अन्‍ना ने कमला को गले लगाया, कमला ने अभिमन्‍यु बाबू के चरण छुए, नन्हीं मामाजी की गोद में चढ़ गई। सभी ने मिलकर खाना खाया। खाने के बाद कमला, अन्‍ना और अभिमन्‍यु बाबू बैठे तो कमला बोल पड़ी।

-‘‘ भाई साहब अब जब की आजादी की पचासवीं वर्ष गांठ मनाई जा रही है। आप क्‍या सोचते हैं ? ''

-‘‘ इसमें सोचना क्‍या हैं ये तो एक खुशी का मौका है कि देश में प्रजातन्‍त्र पचास वर्षो से निरन्‍तर चल रहा है। ''

- वो तो ठीक है, मगर क्‍या इस प्रजातंत्र की कोई कीमत भी दी है।''

-‘‘ कीमत का देश की अस्‍मिता के सामने क्‍या महत्‍व है। देश एक रहे तो कोई भी कीमत ज्‍यादा नहीं है। ''

-‘‘ विकास के कारण क्‍या हमने कुछ खोया है ? ''

-‘‘ हां शायद पर्यावरण पर कुछ प्रभाव हुआ है। ''

-‘‘ और हमारे नैतिक मूल्‍य कम हुए हैं।'' अन्‍ना ने कहा।

-‘‘ नैतिक मूल्‍य हर देश में कम हुए हैं हमारे देश में मूल्‍य अन्‍य देशों की तुलना में बेहतर है। '' अभिमन्‍यु बाबू ने बात को संभाला।

-‘‘ लेकिन आप ये भी तो देखिए कि हम शायद गांधी जी को भूल गये हैं।''

मैं ऐसा नहीं मानता। गांधी जी की प्रासंगिकता आज भी है। सच, ईमानदारी और अहिंसा का रास्‍ता कभी बन्‍द नहीं होता। केवल कुछ समय के लिए हम रास्‍ते भटक सकते हैं। ''

-‘‘ लेकिन इस भटकाव के लिए कौन जिम्‍मेदार है। '' कमला ने पूछा।

-‘‘ हम सभी। हम सभी इस भटकाव के लिए जिम्‍मेदार हैं। यदि रास्‍ता बदल दिया गया है तो मंजिल कैसे मिलेगी। हमें हमारा सही रास्‍ता चुनना होगा। तभी हम अपनी मंजिल की ओर जा पायेंगे। ''

-‘‘ लेकिन लगता है कि हम कहीं खो गये हैं। ''

नहीं खोये नहीं भटक गये हैं और यदि सुबह का भूला सायं को धर लौटे आता है तो उसे भूला नहीं कहते। '' अभिमन्‍यु बाबू ने हंसते हुए कहा। सभी सोने चले गये क्‍योंकि दूसरे दिन प्रातः जल्‍दी उठकर आजादी की पचासवीं जयन्‍ती मनानी थी।

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(क्रमशः अगले अंकों में जारी…)

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: यशवन्त कोठारी का उपन्यास : नया सवेरा - 5
यशवन्त कोठारी का उपन्यास : नया सवेरा - 5
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