यशवन्त कोठारी का उपन्यास : नया सवेरा - 4

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किशोर उपन्यास नया सवेरा यशवन्त कोठारी (पिछले अंक से जारी…) अभिमन्‍यु और कमला जब गांव पहुंचे तो रात गहरा चुकी थी। गाँव सुनसान और नी...

किशोर उपन्यास

नया सवेरा

यशवन्त कोठारी

(पिछले अंक से जारी…)

अभिमन्‍यु और कमला जब गांव पहुंचे तो रात गहरा चुकी थी। गाँव सुनसान और नीरव था, अपने घर तक पहुँचने में अभिमन्‍यु ने शीघ्रता बरती। घर के बाहर ही उसे अकबर मिल गया।

‘‘ कैसे हैं बाबूजी। '' अभिमन्‍यु ने अधीरता से पूछा।

‘‘ अब ठीक है। वे सो रहे हैं। मां उनके सिरहाने बैठी हैं। ''

कमला तुरन्‍त भीतर चली गयी। वो मां से लिपटकर रो पड़ी। अभिमन्‍यु भी अन्‍दर आया। माँ के चरण छुए। बाबूजी के बारे में पूछने लगा।

‘‘ क्‍या हुआ था। ''

‘‘ अब बुढ़ापा सबसे बड़ी बीमारी है बेटा। '' मां ने रोते हुए कहा।

‘‘ कुछ दिन बुखार रहा। वैद्यजी की दवा दी । फायदा नहीं हुआ। एक रोज बेहोश हो गये। फिर होश आया तो बायाँ हिस्‍सा काम नहीं करता है। ''

‘‘ अभिमन्‍यु, बापू के लकवा हो गया है। '' अकबर ने हकीकत बताई।

‘‘ मां अब मैं तुम दोनों को यहां नहीं रहने दूंगा। कल सुबह ही बापू को लेकर राजपुर चलेंगे। वहीं अच्‍छा इलाज भी हो सकेगा ''

‘‘ जैसा तुम ठीक समझो बेटा। अब हमारे दिन ही कितने हैं काश तुम शादी कर लेते तो कुछ चैन मिलता। ''

तभी अभिमन्‍यु के बापू ने आँखें खोली। पहचानने की कोशिश की।

अभिमन्‍यु ने चरण छुए। वह बापू के शरीर पर मालिश करने लगा। मां व कमला घर के काम में लग गयी।

अकबर चला गया। अभिमन्‍यु सूने कमरे में अकेले चुपचाप विचार करने लगा। उसे याद आया हाड़ तोड़ मेहनत कर घर चलाने वाला बापू, आज कैसी असहाय स्‍थिति में है। उसे अपने घर परिवार के अभाव, भूख, बेकारी के दिन भी याद आये। उसका मन उदास हो गया। उसे याद आया बचपन में नंगे पांव स्‍कूल जाना। एक ही कुर्ते को रात में धोकर सुबह पहन कर परीक्षा देने जाना। इस गांव से कितनी यादें जुड़ी हुई है। बचपन और जवानी की यादें। जिन्‍दगी की कठोर यादें अभावों की यादें। भूख और प्‍यास की यादें। अकाल की यादें। उसे फिर याद आया किस तरह परीक्षा के दिनों में भी उसने अकबर का कुर्ता पहन कर परीक्षा दी थी, क्‍योंकि उसका इकलौता कुर्ता नदी में बह गया था। और तुरन्‍त दूसरा कुर्ता बनवाने को पैसे नहीं थे। इसी गांव के पोस्‍ट आफिस के बाहर बैठकर उसने लोगों के पत्र और तार लिखे थे। कभी निःशुल्‍क और कभी पैसे लेकर ताकि अपनी पढ़ाई जारी रख सके। उसकी आंखें भर आई। बापू ने एकाध बार तो उसके स्‍कूल की फीस मां के गहने बेचकर भरी थी। समय ने सब धो दिया। बापू ने तभी पानी मांगा। अभिमन्‍यु तन्‍द्रा से जागा। बापू को पानी पिलाया। खुद भी पिया। रात काफी बीत गयी थी। अभिमन्‍यु वहीं बापू के पैताने सो रहा।

सुबह अभिमन्‍यु, मां, कमला और बापू को लेकर राजपुर चला आया। वहां पर सर्वप्रथम अभिमन्‍यु ने बापू को डाक्‍टर साहब को दिखाया और दवा शुरू हुई। धीरे धीरे बापू की तबियत सम्‍भलने लगी। विद्यालय के अध्‍यापक भी अभिमन्‍यु के घर पर कुशलक्षेम पूछने आये। छात्रावास की व्‍यवस्‍था अभिमन्‍यु ने पुनः सम्‍भाल ली ।

रंजन की नशीली दवा लेने की आदत छूट चुकी थी। कमजोर बच्‍चों को लिम्‍बाराम व अन्‍य होशियार छात्र पढ़ा रहे थे। वृक्षारोपण तथा मैदान का काम ठीक था। छात्र सांस्‍कृतिक कार्यक्रमों की तैयारी में व्‍यस्‍त थे। कुछ छात्र मिलकर एक पत्रिका भी निकालना चाहते थे। शायद हस्‍तलिखित भित्‍ति पत्रिका की योजना थी।

इधर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी अभिमन्‍यु रात को पुनः करने लगा। उसे अपने सफल होने की उम्‍मीद भी थी। प्रारम्‍भिक लिखित परीक्षा वह पास कर चुका था। अभी अन्‍तिम लिखित परीक्षा होने में तीन माह थे वह बापू की बीमारी के कारण कुछ परेशान था। मगर मां व कमला सब सम्‍भाल रही थी। यदा कदा मिसेज प्रतिभा तथा अन्‍ना भी आ जाती थी। बापू की तबियत संभल रही थी अब वे खाट पर बैठ सकते थे। बोलने लग गये थे।

अभिमन्‍यु ने मां से कहा- ‘‘ माँ मुझे विद्यालय के सांस्‍कृतिक कार्यक्रमों में कुछ समय ज्‍यादा देना पड़ सकता है। ''

‘‘ ठीक है बेटा तुम काम में व्‍यस्‍त हो जाओ मैं और कमला सब सम्‍भाल लेंगी। ''

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विद्यालय के स्‍टाफ रूम में सांस्‍कृतिक कार्यक्रमों के क्रम में प्राचार्य ने अध्‍यापकों तथा कक्षाओं के मॉनीटरों का एक उपवेशन बुलाया था। सभी लोग प्राचार्य कक्ष में उपस्‍थित थे।

मिसेज प्रतिभा ने सर्वप्रथम सांस्‍कृतिक कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्‍तुत की। तीन दिन तक चलने वाले इस समारोह में मुख्‍य अतिथि के रूप में समाजविज्ञान के प्रोफेसर सिंह आ रहे थे। उसकी स्‍वीकृति मिल चुकी थी। समारोह में नाटक, वाद-विवाद तथा निबन्‍ध प्रतियोगिताएँ होनी थी। खेलकूद प्रतियोगिताएँ अलग स चल रही थी। कुछ छात्रों ने एक पत्रिका निकालने की बात कही। प्राचार्य महोदय ने एक हस्‍तलिखित पत्रिका निकालने की व्‍यवस्‍था करने के निर्देश एन्‍टोनी सर को दिये ताकि छात्रों की सृजनात्‍मक प्रतिभा प्रकाश में आयें।

अन्‍तिम दिन समापन समारोह में पुरस्‍कार वितरण कार्यक्रम में विकास अधिकारी के बुलाने का निश्‍चय किया गया। प्राचार्य ने मिसेज प्रतिभा के साथ कुछ अन्‍य छात्रों तथा अध्‍यापकों की ड्यूटी लगा दी ताकि काम सुचारु रूप से चल सके । उद्‌घाटन सत्र के तुरन्‍त बाद वाद-विवाद प्रतियोगिता रखी गयी थी। विषय भी रोचक था। ‘‘दहेज प्रथा का औचित्‍य'' छात्रों में उत्‍साह था। अध्‍यापक भी इस कार्यक्रम को सफल बनाने में जुटे हुए थे। अगले सोमवार से कार्यक्रम शुरू होने थे। सोमवार आया। जयपुर के प्रोफेसर सिंह निर्धारित समय पर अन्‍ना के यहां आ गये। अन्‍ना ने अपनी प्रोजेक्‍ट रपट दिखाई। प्रोजेक्‍ट की प्रगति से वे खुश थे। सन्तुष्ट भी। आशा भी साथ आयी थी। अन्‍ना व आशा आपस में बतियाने लगी। तभी प्रतिभा ने कहा।

‘‘ चलो स्‍कूल में कार्यक्रम के उद्‌घाटन का समय हो रहा है। ''

प्रो․सिंह ने कार्यक्रम का विधिवत उद्‌घाटन किया, छात्रों ने सभा भवन को खूब सजाया था।

प्रारम्‍भ में प्राचार्य महोदय ने विद्यालय के इतिहास पर प्रकाश डाला। प्रो․सिंह ने अपने संक्षिप्‍त मगर सारगर्भित भाषण में देश की इस नई पीढ़ी को भावी कर्णधार बताया। उन्‍होंने नये युग के निर्माण की महत्‍ता को समझाया और छात्रों को युग निर्माता की संज्ञा दी।

कार्यक्रम चल ही रहा था कि बिजली घुल हो गयी। तभी एक कोने से शोर शराबा हुआ कुछ छात्र आपस में झगड़ने लगे। कुछ अध्‍यापक दौड़े मगर तब तक देर हो चुकी थी। भीड़ में प्रधान के आदमी घुस आये थे। असामाजिक तत्‍वों ने मिलकर तोड़ फोड़ नारेबाजी शुरू कर दी थी। ''

प्राचार्य महोदय ने मौके की नजाकत को सम्‍भालते हुए मंच से कहा

‘‘ आप लोग शांत हो जाइये विद्यालय की गरिमा का ध्‍यान रखिये। हम सब इसी विद्यालय की प्रतिष्ठा से जुड़े हुए हैं।

तभी कोई चीज सनसनाती हुई और अभिमन्‍यु बाबू के सिर पर लगी। उनके सिर से खून बहने लगा सारा वातावरण बिगड़ गया। शोरगुल, अन्‍धकार और आपा धापी का माहौल बन गया, प्राचार्य की आवाज शोर में डूब गयी।

अभिमन्‍यु बाबू को तुरन्‍त अस्‍पताल ले जाया गया उन्‍हें मरहम पट्टी के बाद छुट्टी दे दी गयी। कस्बे में भी तनाव था। छात्र उत्‍तेजित थे। वे दो दो हाथ करना चाहते थे। कस्‍बे में जनता भी प्रधानजी व उनके आदमियों से तंग आ चुकी थी। मगर अभिमन्‍यु बाबू,प्राचार्य आदि ने छात्रों को समझाकर शान्‍त किया।

मगर छात्रों के मन में प्रधान जी के प्रति आक्रोश था। वृक्षारोपण का मामला, फिर रंजन तथा कुछ अन्‍य को नशीली दवाएं बेचने का मामला आदि से कस्‍बे की आम जनता तथा छात्र सभी परेशान थे। मगर वे लोग मजबूर थे कई बार कस्‍बे वालों ने कोशिश की थी। मगर प्रधान जी के हाथ लम्बे थे। पुलिस-प्रशासन उन पर हाथ डालने में झिझकता था। वे एक तरह से माफिया लीडर हो गये थे।

विद्यालय में घटी घटना का विवरण अखबारों में छपा था। छात्र फिर उत्‍तेजित हो रहे थे। छात्रावास में मीटिंग करते। मगर अभी तक कार्यवाही नहीं की गयी थी। अभिमन्‍यु अक्‍सर घूम घूम कर छात्रों को समझाता। प्राचार्य ने समारोह को समाप्‍त धूपित कर दिया। पुरस्‍कार विजेता छात्रों को पुरस्‍कार दे दिये गये। छात्रों का एक दल इन सबसे अलग अध्‍ययन में व्‍यस्‍त हो गया। परीक्षाएं पास आ रही थी।

अभिमन्‍यु भी अपनी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लग गया बापू का स्‍वास्‍थ्‍य धीरे धीरे सुधर रहा था।

एक रोज शाम को वो छात्रावास में अपने कक्ष में बैठा था तभी प्रोक्‍टर अवतार सिंह आया। कहने लगा।

‘‘ सर एक इशारे की देर है हम सब मिलकर प्रधानजी व उनके आदमियों से निपट सकते हैं। ''

‘‘ नहीं अवतार सिंह हमें यह नहीं करना है। पाप का धड़ा भरने दो अपने आप फूट जायेगा। ''

‘‘ मगर सर आप तो कहते थे कि अन्‍याय को सहना भी अन्‍याय है। ''

‘‘ हां मैं अब भी कहता हूं। मगर जब तक पुण्‍य है तब तक व्‍यक्‍ति की ज्यादतियाँ चलती है। पाप का घड़ा तो रावण का भी भर गया था। और फिर वह स्‍वतः नियति के हाथों नष्ट हो गया था। ''

‘‘ ठीक है सर। सर एक ओर बात है मेरे चाचा अपनी लड़की का ब्‍याह जल्‍दी करना चाहते है। वो अभी बारह वर्ष की ही है। ''

‘‘ ये तो गलत है। बाल विवाह क़ानूनन अपराध है इसके लिए शारदा एक्‍ट बन चुका है। ''

‘‘ हमने समझाया मगर चाचा मानते ही नहीं है। ''

‘‘ भैया मुझे ले चलो। गांव के बड़े बुजुर्गों को इकट्ठा करो। '' ये सब तो रोकना ही पड़ेगा। यदि सामाजिक बुराइयों को नहीं रोक सकते तो हमारा पढ़ा लिखा होना बेकार हे। ''

‘‘ चाचाजी कहते हैं। जल्‍दी शादी से कई परेशानियों से बच सकते हैं। फिर गौना तो देर से करते हैं। ''

‘‘ चाचाजी गलत कहते हैं। जल्‍दी शादी से सैंकड़ों परेशानियाँ पैदा होती है। तुम चाचाजी को समझाओ। उन्‍हें पत्र लिखो। जरूरत पड़े तो मुझे ले चलो। ये नहीं होना चाहिए। अपने गांव के सरपंच की मदद लो। ''

‘‘ मैं फिर कोशिश करता हूं। सर आप चलते तो ठीक रहता। ''

तभी अन्‍ना अपने प्रोफेसर सिंह के साथ आई।

‘‘ आप अभी यहीं हैं प्रोफेसर साहब ''ं। अभिमन्‍यु ने अभिवादन के बाद पूछा।

‘‘ हां सोचा कुछ दिन रहकर यहां के गांवों में स्‍त्री व बच्‍चों की स्‍थिति पर एक पुस्‍तक लिखूँ। ''

‘‘ये तो खूब अच्‍छी बात है। ''

‘‘ लेकिन मुश्‍किल ये है कि गांवों के लोग ज्‍यादा सहयोग नहीं करते हैं।'' अन्‍ना बोल पड़ी।

हां तुम ठीक कहती हो। ''

‘‘ इस अवतार सिंह के चाचाजी अपनी लड़की का बाल विवाह करना चाहते हैं मगर हम सभी को मिलकर इसे रोकना होगा।''

‘‘ हां सर आप सभी चलिये।'' अवतार सिंह बोला। मामला प्रोफेसर सिंह व अन्‍ना की रूचि का था सो अवतार सिंह, के साथ सभी उसके गांव चल पड़े। गांव पास ही था। अवतार सिंह ने अपने घर में जाकर चाचा को बताया कि उसके अध्‍यापक तथा बड़े प्रोफेसर साहब आये है चाचा शुरू में नाराज हुए। मगर अभिमन्‍यु बाबू के तर्कों तथा प्रोफेसर सिंह के निवेदन से बात उनकी समझ में आयी। अभिमन्‍यु ने अवतार सिंह के चाचा से कहा-

‘‘ देखिये। आपकी लड़की अभी कुल बारह वर्ष की है। अभी तो इसके खेलने खाने के दिन हैं।''

‘‘ लेकिन बाद में बिरादरी में लड़का आसानी से नहीं मिलता है। गांव में बदनामी होती है। ''

‘‘ काहे की बदनामी। सरकार ने इस बाल विवाह को गैर कानूनी घोषित कर रखा हे।''

‘‘ सवाल कानून का नहीं है मास्‍टर जी। सवाल समाज और गांव तथा बिरादरी का है आप तो चले जायेंगे। हमें तो यहीं रहना है। ''

‘‘ देखिये हम सभी आपसे निवेदन करते हैं कि इस बाल विवाह को रोकिये। यह एक सामाजिक अपराध है।'' प्रो․सिंह बोले।

अवतार सिंह और अभिमन्‍यु बाबू ने भी समझाया।

गांव के सरपंच भी आ गये। धीरे धीरे अवतार सिंह के चाचा पर बातों का असर हुआ उसने अपनी बच्‍ची का विवाह अट्ठारह वर्ष पर करने का निश्‍चय किया उसने बाल विवाह नहीं करने की सौगन्‍ध के साथ ही गांव में सरपंच के साथ मिलकर बाल विवाह रोकने में सहयोग करने की सौगन्‍ध खाई इस सफलता से सभी बड़े खुश थे। वे रात में ही वापस राजपुर लौट आये। अन्‍ना ने प्रोजेक्‍ट में इस घटना का वर्णन विस्‍तार से करने का निश्‍चय किया। दूसरे दिन प्रोफेसर साहब वापस चले गये समाचार छपाया। चारों तरफ अभिमन्‍यु बाबू की तारीफ हुई। साथी अध्‍यापक भी खुश हुए प्राचार्य ने अभिमन्‍यु बाबू को बुला कर शाबाशी दी ।

इसी बीच राजपुर के प्रधान जी ने कुछ लोगों को इकठ्ठा किया और अभिमन्‍यु बाबू के खिलाफ भड़काया। कुछ लोग इस बात से भी नाराज थे कि विवाह जैसे पवित्र कार्य में भी अभिमन्‍यु बाबू रोड़ा अटकाते हैं। मगर अभिमन्‍यु बाबू ने कोई प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त नहीं की।

विद्यालय में अध्‍यापन के बाद अभिमन्‍यु बाबू छात्रावास में अपने क्‍वार्टर में आते। बापू की सेवा सुश्रूषा करते और कमला की पढ़ाई-लिखाई देखते। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते।

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एक दिन अभिमन्‍यु बाबू को प्राचार्य ने अपने कक्ष में बुलाया और कहा-

‘‘ अभिमन्‍यु बाबू मैं इस लड़ाई में तो आपके साथ हूँ क्‍योंकि आप सच्‍चाई, ईमानदारी, और नैतिक मूल्‍यों के लिए काम कर रहे हैं मगर मेरी कुछ सीमाएं है और आप जानते होंगे कि एक सीमा के बाद हमसे ब केवल मूकदर्शक रह जाते हे। ''

‘‘ आपसे सहमत हूँ सर। मगर आप चिन्‍ता नहीं करे। मेरा दायित्‍व में खूब समझता हूँ। इसका अन्‍तिम परिणाम स्‍थानान्‍तरण या प्रोबेशन पर होने के कारण बर्खास्‍तगी भी जानता हूँ। '' अभिमन्‍यु बाबू ने अपना पक्ष रखा।

‘‘ बात ये है अभिमन्‍यु बाबू कि आज सुबह ही प्रधान जी का फोन आया था, वे एक बार आपसे मिलना चाहते है मेरा भी ख्‍याल है कि मिल लेने में हर्ज ही क्‍या है। आपकी और उनकी कोई व्‍यक्‍तिगत लड़ाई तो है नहीं ''

‘‘ लड़ाई तो स्वार्थों और मूल्‍यों के बीच है सर। ''

‘‘ और फिर वे एक बार पिटवा चुके हैं धमकियां दिलवा चुके हैं। फिर मिलने का औचित्‍य क्‍या है ? ''

‘‘ मेरी सलाह मानकर एक बार आप उनसे मिल लें। शायद बात सुलझ जाये वे यह बात आपके भविष्य के लिहाज से कहा हूँ। आज सायंकाल आप मेरे साथ उनके यहां चलेंगे। ''

‘‘ यदि यह आपका आदेश है तो मुझे स्‍वीकार है। मैं सायंकाल आपके साथ चला चलूंगा।'' यह कह कर अभिमन्‍यु बाबू बाहर आ गये। सारे दिन उनका किसी काम में मन नहीं लगा। सायंकाल के समय प्राचार्य प्रधानजी के बंगले पर पहुचे वहां पर कुछ लोग पहले से ही थे। एक दो को और अभिमन्‍यु बाबू ने पहचान लिया। प्रधान जी ने कहा।

‘‘ देखो अभिमन्‍यु तुम सुधार के अच्‍छे काम कर रहे हो। '' मुझे भी यह सब अच्‍छा लगता है। मगर प्रजातन्‍त्र में सबके हितों को ध्‍यान में रखना पड़ता है। अब देखो तुमने मेस के इस ठेकेदार के काम को बन्‍द कर दिया। ''

‘‘ तो क्‍या मिलावटी खाना खिलाकर बच्‍चों को बीमार कर देता ? ''

‘‘ देखो खाने से कोई नहीं मरता, भूख से मरते हैं। '' और ये किशनबाबू के दवा का तो कारोबार ही चौपट हो गया। कोई भी इनकी दुकान से दवा खरीदने नहीं आता। ''

‘‘ तो इसमें मेरा क्‍या कसूर है ? वे नशीली दवा का धन्‍धा करते थे। पकड़े गये। छापा पड़ा। बदनाम हुए। अखबारों में छपा। '' अभिमन्‍यु बाबू उखड़ गये।

‘‘ मेरी बात ध्‍यान से सुन लो।'' ‘‘प्रधान जी ने कठोर आवाज में कहा। ''

‘‘ इसी प्रकार आसपास के गांवों में शिक्षा के नाम पर बाल विवाह रोकने के प्रयास भी तुमने तथा तुम्‍हारे छात्रों ने किये हैं। ''

‘‘ यह एक सामाजिक बुराई है और इसे रोकना जरूरी हैं ''

‘‘ सदियों से चली आ रही परम्‍परा बुराई नहीं होती। ''

‘‘ दादा अपने पोते का ब्याह अपने सामने करना चाहता है फिर गौना बाद में युवावस्‍था में होता है इसमें बुराई क्‍या है। ''

‘‘ बुराई ये है कि शादी दो पवित्र आत्‍माओं का मिलन है।'' गुड्‌डे गुडि्‌डयों का ब्‍याह नहीं ''

ठीक है छोड़ो इस बात को। मैंने तुम्‍हें और प्राचार्य को यह कहने बुलाया है कि आप लोग अपने काम से काम रखो। इन व्‍यर्थ के प्रपन्‍चों में नहीं पड़ो।'' ‘‘ ये व्‍यर्थ के प्रपंच नहीं है। प्रधान जी।'' इस बार प्राचार्य बोल पड़े। ‘‘ ये हमारी शिक्षा का एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है और हम सभी को इस यज्ञ में मदद करनी चाहिए।''

‘‘ देखो प्रिन्‍सिपल साहब मैं आपको फिर समझाता हूँ। '' कि आप वृक्षारोपण वाली जमीन से हाथ खींच लें। ''

‘‘ ऐसा कैसे हो सकता है। यह तो विद्यालय की जमीन है।''

‘‘ मेरे हाथ बहुत लम्‍बे हैं। '' इस बार प्रधान जी ने सीधा वार किया।

‘‘ मैं आप दोनों का ट्रान्‍सफर करा दूंगा। या फिर राजधानी जाकर अभिमन्‍यु बाबू को बर्खास्‍त करा दूंगा। आप दोनों अपने आपको समझते क्‍या हैं।''

अब अभिमन्‍यु बाबू ने क्रोध में आकर कहा।

‘‘ आप जो चाहे कर लें। हमें अपने मार्ग पर चलने दें। आप की हरकतों का जवाब देने के बजाय हम अपना काम करना ज्‍यादा पसन्‍द करेंगे। हमारा काम ही हमारा जवाब है। ''

‘‘ ठीक है फिर मैं आपको देख लूंगा। ''

प्रधान जी के यहां से अभिमन्‍यु बाबू सीधे छात्रावास की ओर चल पड़े। प्राचार्य भी चले गये। अभिमन्‍यु बाबू का मन उदास था। रास्‍ते में छात्र मिले। मगर उन्‍होंने ध्‍यान नहीं दिया सीधे अपने कक्ष में आये। बापू अब ठीक थे। कमला की परीक्षाएं चल रही थी अभिमन्‍यु बाबू चुपचाप छत पर टहलने लगे। कुछ ही दिनों में प्रतियोगी परीक्षाएं शुरू होने वाली थी। उन्‍होंने अपना ध्‍यान परीक्षा की ओर केन्द्रित करने का निश्‍चय किया ओर सो गये।

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अन्‍ना अपने कमरे में मिसेज प्रतिभा के साथ अपनी सर्वेक्षण रपट को अन्‍तिम रूप देने के पूर्व विमर्श कर रही थी। बातचीत को शुरू करते हुए अन्‍ना ने कहा।

‘‘ ग्रामीण क्षेत्र में बालिकाओं पर कभी ध्‍यान नहीं दिया है। उन्‍हें हमेशा एक भार समझा गया। इसका बड़ा मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है। और ये बालिकाएं बड़ी होकर जब माँ बनती है या गृहस्‍थ जीवन में प्रवेश करती है तब भी अपने आपको कमजोर, असहाय समझती हुई हमेशा किसी के सहारे जीवन यापन करती है। ''

‘‘ तुम ठीक कहती हो लेकिन बालिकाओं पर अब ध्‍यान दिया जाने लगा है उन्‍हें अब पढ़ने भी भेजा जाता है। बीमार होने पर इलाज भी कराया जाता है। '' मिसेज प्रतिभा ने बात को आगे बढ़ाया।

‘‘ लेकिन सबसे अहम समस्‍या तो शिक्षा की है। खासकर प्रौढ़ महिलाओं की शिक्षा तथा उत्‍तर साक्षरता की और अभी ज्‍यादा ध्‍यान नहीं दिया जा रहा है। एक और बात जो मैने सर्वे के दौरान महसूस की है वो ये कि हर कोई यह समझता है कि पढ़ने का कोई लाभ लड़की या महिला को मिलने वाला नहीं है। जब कि हकीकत में बात ऐसी नहीं है। एक कन्‍या को शिक्षित करने अर्थ है एक पूरे परिवार को शिक्षित करना। क्‍योंकि शिक्षित महिला दूसरे परिवार में जा करके शिक्षा की नई अलख जगाता है। '' अन्‍ना ने अपना निष्कर्ष प्रस्‍तुत किया।

‘‘ राजपुर तथा आसपास के गांवों,खेड़ों, ढाणियों में जाकर मैंने यह महसूस किया है कि समाज में उपेक्षित स्‍त्री और बालिका दोनों हैं। जबकि देश के भविष्य के लिए इनको सुखी, स्‍वस्‍थ्‍य और खुशहाल रखा जाना चाहिए।'' अन्‍ना फिर बोली।

‘‘ और फिर इतने सारे बन्‍धन। सब महिलाओं के लिए हैं। '' मिसेज प्रतिभा ने कहा।

‘‘ हां बन्‍धनों का अपना अलग इतिहास है। सदियों की गुलामी तथा रूढ़िवादिता ने बेड़ियाँ डाल दी है। विदेशी हमलों से बचने के लिए नये नये बन्‍धन महिलाओं और बालिकाओं पर लगाये गये थे। '' अन्‍ना बोली।

‘‘ हां और फिर कई जगहों पर पैदा होते ही लड़कियों को मार डालने की परम्‍परा भी तो थी। ''

‘‘ हां यह दुखद अध्‍याय भी था मगर यह समाप्‍त हो चुका है। ''

हां इतिहास में रह गयी हैं ये बातें। मगर अभी भी इस देश में महिलाओं की स्‍थिति में सुधार हेतु बहुत कुछ किया जाना है। ''

‘‘ तुम ठीक कहती हो। तुम अपनी रिपोर्ट में कुछ सुझाव भी देना। ''

‘‘ निश्‍चित रूप से। मैं चाहूँगी कि इस रपट के कुछ अंश छपें और उन पर बहस हो। ताकि आगे के कार्यक्रमों पर काम हो सके। ''

‘‘ अन्‍ना एक बात बताओ। तुम्‍हारा प्रोजेक्‍ट तो अब शीघ्र ही समाप्‍त हो जायेगा। फिर सोचा है क्‍या करोगी।''

‘‘कुछ नहीं सोचा। मैं सोचना भी नहीं चाहती जो हाथ में है उसे पूरा कर लूं। बस फिर शायद वही उलझाव, भटकाव शायद वापस पापा के पास चली जाउं। वे हैदराबाद में हैं। नई मम्‍मी ने बड़े प्‍यार से बुलाया है मगर कुछ कह नहीं सकती। कुछ निश्‍चित भी नहीं है तुम जानती हो मेरा मन तो बस पंछी की तरह है बस उड़ जाना चाहती हूं। ''

‘‘ तुम्‍हारा मन पंछी है मगर सब कोई तो पक्षी नहीं बन सकते। रविवार को तुम्‍हारे जीजाजी आयेंगे। ''

‘‘ अच्‍छा सच। कितनी खुशनसीब हो तुम।'' दोनों हंस पड़ी।

रात गहरा रही थी। अन्‍ना व मिसेज प्रतिभा सो गये।

प्रधान जी ने अपनी कार्यवाही शुरू कर दी थी। प्राचार्य और अभिमन्‍यु बाबू अपने अपने काम में व्‍यस्‍त थे। कस्‍बे के स्थानीय लोगों में प्रधानजी तथा उनसे जुड़े निहित स्वार्थों वाले लोग इधर-उधर अभिमन्‍यु बाबू के खिलाफ जहर उगल रहे थे। इधर छात्रावास में भी छात्रों में फूट डालने की कोशिश की जा रही थी। वातावरण ठीक नहीं था। अभिमन्‍यु बाबू के बापू का स्‍वास्‍थ्‍य भी ज्‍यादा ठीक नहीं था।

इधर प्रधान जी राजधानी का चक्‍कर भी लगा आये थे। और उन्‍होंने कस्‍बे में अफवाह उड़वा दी थी कि शीघ्र ही प्राचार्य और अभिमन्‍यु बाबू को ठीक करने के आदेश राजधानी से आ जायेंगे।

छात्रावास में जिस ठेकेदार को अभिमन्‍यु बाबू ने घटिया और मिलावटी खाना खिलाने के कारण निकाल दिया था, वो ठेकेदार भी प्रधानजी के साथ था। विद्यालय में छात्रों में कई प्रकार की बीमारियां होने लग गयी थी। छात्रावास के मॉनीटर तथा प्रोक्‍टर भी असमंजस की स्‍थिति में थे। इसी बीच प्राचार्य ने एक रोज स्‍टाफ मीटिंग बुलाई। वे बोले-

‘‘ शीघ्र ही छात्रों की परीक्षाएं होने वाली हैं। अधिकांश कक्षाओं में पाठ्यक्रम पूरा हो चुका है। ऐसी रिपोर्ट मिली है। यदि किसी कक्षा में पाठ्यक्रम अधूरा है तो कृपया उसे पूरा करावें। ''

‘‘ सर। परीक्षा के दिनों की ड्यूटी की स्‍थिति कैसी रहेगी। पिछली बार भी काफी तनाव था। '' एन्‍टोनी बोले।

‘‘ तनाव होते रहते हैं। हमें इन सबके बजाय स्‍वयं के काम की ओर ध्‍यान देना चाहियें ठीक है कि सांस्‍कृतिक कार्यक्रम के दौरान कुछ गड़बड़ी हो गयी। मगर ऐसा हर बार तो नहीं होगा। '' प्राचार्य ने कठोर स्‍वर में कहा।

‘‘ फिर भी सर। कुछ सुरक्षा व्‍यवस्‍था।'' गणित के महेश जी बोल पड़े।

‘‘ इस तरफ से आप निश्‍चिंत रहें। नकल विरोधी कानून पास हो चुका हे। मैं इसे पूरी सख्‍ती से लागू करूंगा। आप लोग निश्‍चिंत होकर परीक्षा व्‍यवस्‍था की ओर ध्‍यान दें। अपराधिक तत्‍वों को कोई रियायत नहीं दी जायेंगी।''

‘‘ सर मैं कुछ कहना चाहता हूं। '' अभिमन्‍यु बाबू ने अनुमति मांगी।

‘‘ यस मि․ अभिमन्‍यु।''

‘‘ सर क्‍या ऐसा नहीं हो सकता कि हम लोग छात्रों को पहले से ही इस प्रकार से तैयार करें कि नकल विरोधी कानून की आवश्‍यकता ही नहीं पड़े।''

‘‘ वो कैसे।'' प्राचार्य ने पूछा।

‘‘ पाठ्यक्रम समय पर पूरा होने के बाद यदि सभी छात्र अच्‍छी तैयारी करें तो इस अधिनियम की जरूरत ही नहीं पड़े। '' अभिमन्‍यु बाबू ने पूछा।

‘‘ ये थोथा आदर्शवाद है। '' एन्‍टोनी बोल पड़े।

‘‘ थोथा आदर्श नहीं, श्रीमान‌ हम अपने गिरेबान में झांकें क्‍या हम सब पाठ्यक्रम के साथ न्‍याय करते हैं। पाठ्यक्रम के साथ न्‍याय नहीं होने से भी नकल होती है।''

‘‘ खैर छोड़ो इस बहस को। जरूरत पड़ने पर हम इस नियम का उपयोग करेंगे। आप लोग अपना अपना दायित्‍व पूरा करें। ''

यह कह प्राचार्य ने उपवेशन समाप्‍त किया। और अभिमन्‍यु बाबू को अपने कक्ष में रोक लिया।

‘‘ देखो अभिमन्‍यु बाबू इस बार परीक्षा में आप को सहायक केन्‍द्राध्‍यक्ष बनाया जा रहा हे। ताकि सब कुछ व्‍यवस्‍थित और ठीक चले। ''

‘‘ सर मैं अभी बहुत जूनियर हूं।''

‘‘ सवाल सीनियर-जूनियर का नहीं। विश्‍वास का है,वैसे भी हमारे यहां के छात्रों का परीक्षा परिणाम शत-प्रतिशत रहता है। हां एक बात और प्रधानजी व उनके लोग अपना काम कर रहें हैं। तुम थोड़ा सावधान रहना। ''

‘‘ सर मेरा उद्‌देश्‍य तो केवल संस्‍था की प्रतिष्ठा को उपर उठाना है, मैंने हर काम को इसी कोण से देखा और सोचा है। ''

‘‘ ठीक है तुम चलो। ''

अभिमन्‍यु बाबू नमस्‍कार करके बाहर आये। स्‍टाफ रूम में मिसेज प्रतिभा तथा कुछ अध्‍यापक बैठे थे। शायद उन्‍हें इस बात की जानकारी मिल गयी थी कि अभिमन्‍यु बाबू को सहायक केन्द्राध्यक्ष बनाया गया है। मिसेज प्रतिभा ने बधाई दी।

मगर कुछ अध्‍यापकों ने अभिमन्‍यु बाबू को देख कर मुंह बिचकाया। अभिमन्‍यु बाबू ने शालीनता से कहा।

‘‘ मुझे आप सभी लोगों के सहयोग की आवश्‍यकता है। परीक्षा का काम सभी का काम है। हमें विद्यालय में व्‍यवस्‍था को बनाये रखना हे। और हमारा विद्यालय तो जिले में अव्‍वल रहता हे। ''

‘‘ हां वो तो आप नहीं थे तब भी अव्‍वल था। '' एन्‍टोनी ने कहा।

‘‘ हमें इस परम्‍परा को बनाये रखना है। ''

तभी चपरासी ने आकर कहा।

‘‘ सर। आपके पिताजी की तबियत बहुत खराब है।''

अभिमन्‍यु तुरन्‍त अपने क्‍वार्टर की ओर चल पड़ा। वहां पहुंचकर देखा पिताजी बेहोश थे। छात्रों का एक झुण्‍ड भी वहां था। मां ओर कमला रो रही थी। उन्‍होंने तेजी से छात्रों को हटाया मां-कमला को सांत्‍वना दी। और बापू को अस्‍पताल ले जाने की तैयारियां की। अस्‍पताल में डाक्‍टरों ने जांच के बाद बताया कि किडनी का आपरेशन होगा। और अभी करना होगा तुरन्‍त खून की जरूरत थी। अभिमन्‍यु बाबू ने अपना खून देने की पेशकश की। तब तक छात्रावास के छात्र और प्रतिभा तथा अन्‍ना भी वहां पहुंच गयी थी। छात्रों में से केवल दो छात्रों का खून मिला। छात्र मोहम्‍मद शरीफ तथा एन्‍थेनी का खून रोगी के खून से मिला। वास्‍तव में सभी के समझ में आ गया कि खून जात-पात, सम्‍प्रदाय, छोटे-बड़े में विभाजित नहीं किया जा सकता। साम्प्रदायिकता से उपर होता है खून का रंग जो केवल लाल होता हे।

अन्‍ना का खून भी मिल गया। इस प्रकार बापू को अन्‍ना व मोहम्‍मद शरीफ का खून चढ़ाया गया। उनका आपरेशन सफल रहा।

शाम को अस्‍पताल में बापू की जिन्‍दगी और मौत की लड़ाई में डाक्‍टर जीत गये थे आपरेशन के बाद देखभाल की जिम्‍मेदारी अन्‍ना,मां और कमला ने अपने सिर पर ले ली। बापू ज्‍यादा बोल नहीं सकते थे, मगर चुपचाप आंखों से सब व्‍यक्‍त कर देते थे।

अभिमन्‍यु के बापू अस्‍वस्‍थ तो थे, मगर मन से कुछ कहना ओर करना चाहते थे, उन्‍होंने इशारे से अभिमन्‍यु को अपने पास बुलाया और अटकते हुए कहा-

‘‘ बेटे इस नश्‍वर देह का क्‍या भरोसा। कब क्‍या हो जाये। मेरी बड़ी इच्‍छा है कि शरीर किसी के काम आ जाये। बेटे मेरी तमन्ना है कि मैं अपने शरीर का दान कर दूं। नेत्र दान तथा देहदान के फार्मों पर दस्‍तखत कर दूं। तुम बचे हुए कार्य कर लेना। ''

अभिमन्‍यु की मां भी यह वार्तालाप सुन रही थी। तुरन्‍त बोल पड़ी।

बेटा दो फार्म लाना। एक मेरे लिए भी। ''

‘‘ क्‍यों माँ ऐसा क्‍यों ? ''

बेटा इससे बड़ा पुण्‍य का काम और क्‍या हो सकता है कि मेरी मृत्‍यु के बाद मेरी आंखों से कोई नेत्रहीन व्यक्ति इस दुनिया को देख सके और इस संसार का आनन्‍द ले। मैं भी तेरे बापू की तरह ही नेत्रदान का पुण्‍य कुमाऊंनी। ''

‘‘ अच्‍छा मां जैसी आप दोनों की इच्‍छा। ''

शाम को अभिमन्‍यु ने आकर फार्मों पर माता पिता के दस्‍तखत कराकर स्‍थानीय चिकित्‍सालय में जमा कर दिये ताकि देह दान का काम सफल हो सके।

अभिमन्यु के माता पिता द्वारा देहदान का समाचार अखबारों में बड़ी सुर्खियों में छपा। वास्‍तव में स्‍वास्‍थ्‍य शिक्षा में अखबार बहुत महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। अभिमन्‍यु के माता पिता को इस सत्‍कर्म के लिए चारों तरफ से बधाई मिली।

इससे प्रेरित होकर कस्‍बे के कई लोगों ने भी नेत्रदान हेतु फार्म भरे। शुरू में कुछ लोग इस कार्य से असंतुष्ट थे। मगर जब उन्‍हें बताया गया कि व्‍यक्‍ति की मृत्‍यु के बाद ही नेत्रों तथा देह के अन्‍य अंगों को काम में लिया जाता है तो काफी ज्‍यादा संख्‍या में नेत्रदान के फार्म भरे गये। लेकिन प्रधान जी व उनके आदमी इस काम से भी नाराज हुए। उनके आदमियों ने पूछा ‘‘ मृत्‍यु के बाद शरीर की ऐसी दुर्दशा। नरक मिलेगा। ''

किन्‍तु लोगों ने प्रधानजी की बातों की ओर ध्‍यान नहीं दिया। नेत्रदान एक संकल्‍प की तरह हो गया। नेत्रदान महादान व देहदान के नारे से कस्‍बा गूंज उठा।

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(क्रमशः अगले अंकों में जारी…)

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रचनाकार: यशवन्त कोठारी का उपन्यास : नया सवेरा - 4
यशवन्त कोठारी का उपन्यास : नया सवेरा - 4
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