किशोर उपन्यास नया सवेरा यशवन्त कोठारी (पिछले अंक से जारी…) अन्ना और मिसेज प्रतिभा साथ रहने लग गयी थी। अन्ना दिनभर कस्...
किशोर उपन्यास
नया सवेरा
यशवन्त कोठारी
अन्ना और मिसेज प्रतिभा साथ रहने लग गयी थी। अन्ना दिनभर कस्बे तथा आसपास के छोटे गांवों में जाकर महिलाओं ओर बच्चों की स्थिति पर सर्वेक्षण करने लगी। उसने महसूस किया कि गांवों में लड़कियों और लड़कों में अन्तर और भेदभाव कुछ ज्यादा ही है। कुपोषण तथा बीमारियों का प्रकोप भी ज्यादा है। सबसे बड़ी बात ये कि गांवों के बूढ़े ही नहीं नई पीढ़ी के पढ़े लिखे नौजवानों का रूख भी ऐसा ही था। लड़कियों को पढ़ाने के नाम पर ज्यादातर ग्रामीण लोग ना-नुकुर करते थे। प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों पर भी प्रौढ़ों की संख्या ही ज्यादा नजर आती थी। वहां महिलाएँ कम आती थी। अन्ना ने अपनी संक्षिप्त सी प्रारम्भिक रपट बनाकर अपने निर्देशक को जयपुर भेजी थी, उसने पत्र में प्रोफेसर साहब की बहन को भी यहां आने का निमंत्रण दिया था। शीघ्र ही आशा का जवाब आया कि भाईजान उसकी प्रारम्भिक रपट से सन्तुष्ट हैं तथा वह अपना काम जारी रखें। अगले माह परीक्षा समाप्त होते ही वह भी राजपुर का एक चक्कर लगा लेगी। और सम्भव हुआ तो प्रोफेसर साहब को भी अपने साथ लेती आयेगी।
अन्ना को यह सब जानकर बहुत खुशी हुई। उसके भटकाव-उलझाव को एक किनारा मिलने की उम्मीद थी और इसी उम्मीद को वह अपने प्रोजेक्ट के सहारे सहेज रही थी।
चाय पीते समय शाम को उसने मिसेज प्रतिभा को यह सब जानकारी दी तो वे भी बड़ी खुश हुई । बोली-
‘‘ इस देश में जब तक महिलाओं, लड़कियों और ग्रामीण बच्चों का सामाजिक उत्थान नहीं होगा, तब तक तमाम प्रगति का कोई मतलब नहीं है। प्रगति व्यक्ति और समाज को उपर उठाने के लिए है या नीचे गिराने के लिए । आज भी गांव में लड़कियों को कम उम्र में ही घर के काम काज में जोत दिया जाता है। यह तो शोषण है भाई । ''
‘‘ ये तो ठीक है मगर हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की धुरी तो व्यक्तियों के हाथ- पांव ही हैं, अधिक हाथ, अधिक आमदनी। '' अन्ना ने कहा।
‘‘ नहीं ये ठीक नहीं है। इस सामाजिक ढाँचे को बदलना होगा तभी तो एक नया खुशहाल, सम्पन्न, तथा समृद्ध भारत होगा। इस महान देश की महानता को बनाये रखने के लिए ग्रामीण जगत का सही विकास आवश्यक है। ''
‘‘ वाह वाह क्या बात है मगर बहिनजी यह आपकी कक्षा नहीं, घर है। लीजिये चाय पीजिये ठण्डी हो रही है। '' अन्ना ने मजाक किया।
दोनों हंस पड़ी। और चाय पीने लगी।
इसी समय अभिमन्यु बाबू आ गये। नमस्ते की औपचारिकता के बाद कहने लगे -
‘‘ गांव से पिताजी का पत्र आया है। सोचता हूँ जाकर मिल आऊं और बहन कमला को यहां ले आउ ताकि उसकी पढ़ाई जारी रह सके । ''
‘‘ मिसेज प्रतिभा आप से एक निवेदन है मुझे वापस आने में एक-दो दिन लग सकते हैं तब तक क्या आप छात्रावास के पीछे वाले मैदान में चल रहे काम-काज को चला लेंगी। मैं नहीं चाहता कि यह काम अधूरा रहे। ''
‘‘ वैसे तो आप ठीक कह रहे है। मगर सुना है कि प्रधानजी तथा कुछ अन्य लोग इस काम से नाराज हैं, वे इस जमीन का कोई अन्य उपयोग करना चाहते हैं। '' मिसेज प्रतिभा बोल पड़ी।
‘‘ वो सब बाद में देख लेंगे। जमीन तो विद्यालय की है, मगर प्रबन्ध समिति ओर प्रधानजी शायद कुछ और सोच रहे हैं। मैंने बी․डी․ओ․ साहब से भी चर्चा की है और वे इस जमीन में वृक्ष, पार्क,घास आदि विकासित करने में मदद करेंगे। '' अभिमन्यु बाबू बोले।
‘‘ तब ठीक है। आप आराम से गांव हो आइये। माता-पिता को ला सकें तो ले आइये। आप निश्चिंत रहें। कार्य जारी रहेगा। '' मिसेज प्रतिभा ने कहा।
‘‘ आप से ऐसी ही आशा थी। ''
अभिमन्यु ने शालीनता से हाथ जोड़े ओर रवाना हो गया।
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अपने गांव के घर में आकर अभिमन्यु ने सर्वप्रथम माँ-बाप के चरण स्पर्श किये। दोनों बुजुर्गों ने उसे आशीषा। कुशल क्षेम पूछी। कमला की चोटी खींचकर अभिमन्यु ने उसे पूरे चौक में घुमाया। फिर अटैची खोलकर कमला के लिए फ्रॉक, बापू के लिए धोती कुर्ता और मां के लिए साड़ी निकाल कर दी। कमला ने फ्रॉक पहनी, इठलाती हुई गयी और अपने भाई के लिए चाय बना लाई। चाय पीते हुए अभिमन्यु ने अपने बापू से कहा-
‘‘ बापू मैं कहता हूं अब आप सभी मेरे साथ चले चलो। वहां पर मुझे क्वार्टर मिल गया है। तीन कमरे हैं। और सब ठीक है। अपन सभी वहां आराम से रह सकते हैं। ''
‘‘ वो तो ठीक है बेटा मगर अब इस बुढ़ापे में इस गांव को छोड़कर कहां जाये। खेती-बाड़ी है,खेत खलिहान हैं और यह झोंपड़ा है। और फिर तुम्हारी मां का मन अब अन्य किसी जगह नहीं लगता है। ''
‘‘ मां को मैं मना लूंगा। बापू आप हां कर दो। ''
‘‘ नहीं बेटा अब इन बूढ़ी हड्डियों का मोह छोड़ दो। हमें यहीं रहने दो खेती-बाड़ी की देखभाल भी होती रहेगी और मन भी बहला रहेगा। तुम कमला को ले जाओ। उसे पढ़ाओ लिखाओ। '' बापू ने फिर कहा।
‘‘ और अभिमन्यु अब तेरी शादी भी तो करनी है '' मां बीच में बोल पड़ी।
‘‘ तू अब पढ़ लिख गया। नौकरी धन्धे से भी लग गया। अब काहे की देरी। ''
‘‘ हां भैया अब एक भाभी ले भी आओ। घर में बड़ा सूना सूना लगता है। '' कमला ने कहा।
‘‘ अरे माँ तुम भी क्या पचड़ा ले बैठी। अभी तो मुझे प्रतियोगी परीक्षा में बैठना है। उसकी तैयारी करनी है। ''
‘‘ देखो बेटे ये सब मैं नहीं जानती। बिरादरी से अभी रिश्ते आ रहे हैं। फिर दिक्कत होगी। '' मां ने फिर कहा।
‘‘ कोई दिक्कत नहीं होगी मां तुम चिन्ता मत करो। ''
‘‘ शायद भैया ने कोई लड़की पसन्द कर ली है। '' कमला ने कहा।
‘‘ धत् '' चुप।'' ऐसा भी होता है क्या। '' तो फिर क्या तय रहा बापू ? '' अभिमन्यु ने पूछा।
‘‘ तय यह रहा बेटे कि हम दोनों यहीं रहेंगे। तुम कमला को ले जाओ। और माह में एक बार आकर संभाल जाना। घबराने और चिन्ता करने की कोई बात नहीं है। पूरा गांव अपना है ओर फिर अकबर भी तो यहाँ है। कुछ बात होगी तो उसे बता देंगे। '' बापू ने निर्णय सुनाया।
‘‘ ठीक है। तो कमला तुम चलने की तैयारी करो। अपन कल सुबह ही चलेंगे। ''
‘‘ ओ․के․ भैया । '' कमला ने इठलाकर कहा।
सब खिलखिलाकर हंस पड़े।
अभिमन्यु गांव में निकल गया। अकबर अपनी दुकान पर बैठा था। दोनों गले मिले। अभिमन्यु ने उदास स्वर में कहा-
‘‘ अकबर माँ और बापू साथ नहीं चलना चाहते हैं, तुम उनको संभालते रहना। मैं कमला को लेकर कल सुबह ही चला जाउँगा। ''
‘‘ इसमें इतना उदास होने की क्या बात है। अमंगल में मंगल छिपा है। तू निश्चित रह । मैं मां-बापू का ख्याल रखूंगा। ''
‘‘ अच्छा अब चलता हूं। मां रोटी लिये बैठी होंगी ''
अभिमन्यु ने खाना खाया और सो गया।
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अभिमन्यु अपनी बहन कमला को लेकर जब बस से अपने गांव से राजपुर आया तो सुबह का सूरज बादलों से निकलना ही चाहता था। आसमान में आषाढ़ी बादलों का एक झुण्ड था। और हवा में हल्की ख़ुमारी थी। रात को हल्की बारिश हो चूकि थी, और अभी बारिश की संभावना थी। वैसे भी जुलाई में मानसून प्रारम्भ हो जाता है।
अभिमन्यु छात्रावास में अपने क्वार्टर में आया। कमला को सब समझाया और तैयार होकर अपने कक्ष में आया तभी चारों मॉनीटर भी आ गये।
लिम्बाराम ने अभिवादन के बाद कहा-
‘‘ सर। आपके जाने के बाद छात्रावास के पीछे वाले मैदान पर काम करने में कुछ परेशानी हुई। ''
‘‘ क्या परेशानी हुई ? ''
‘‘ बस सर। गांव के कुछ लोगों ने आपत्ति की। मगर प्राचार्य साहब ने सब ठीक-ठाक कर दिया। ''
इसी बीच सुरेश बोल पड़ा-
‘‘ सर कल शाम को झगड़ा हो ही जाता। वो तो प्रतिभा मैडम तथा कुछ अन्य लोग समय पर पहुँच गये।''
‘‘ क्यों ,झगड़े का कारण। ''
‘‘ गांव वाले इस जमीन को अपने पशुओं के लिए चाहते हैं दूसरी ओर प्रधानजी इस जमीन पर अतिक्रमण की फिराक में थे। '' असलम बोल पड़ा।
‘‘ मगर सर। हमने भी कमर कस ली थी और पक्का निश्चय कर लिया था कि इस जमीन पर वृक्षारोपण,ही करेंगे। '' लिम्बाराम ने बताया।
‘‘ अच्छा फिर । ''
‘‘ फिर सर प्रतिभा मैडम ने प्रिन्सिपल साहब को समझाया। फिर प्रिन्सिपल साहब ने बी.डी.ओ साहब से बात की। ''
‘‘ अच्छा। बात यहाँ तक पहुँच गयी। ''
‘‘ जी सर। '' फिर जब बी.डी.ओ साहब ने आकर गांव वालो तथा प्रधान जी को समझाया तब बात बनी। लिम्बाराम ने पूरी बात बताई।
‘‘ इसका मतलब है कि तुम लोगों ने मेरे नहीं होने के बावजूद एक किला फतह कर लिया है अब सब लोगों को मिलकर काम करना होगा ताकि हम इस मैदान का सम्पूर्ण विकास कर सकें तथा जमीन का सदुपयोग हो। '' अभिमन्यु ने गम्भीर स्वर में कहा। उसे कुछ अजीब सा लग रहा था। उसने प्रोक्टर को बुलवाया । छात्रावास के मेस, सफाई आदि की व्यवस्था के लिए निर्देश दिये और विद्यालय जाने की तैयारी करने लगा।
कुछ देर बाद अभिमन्यु विद्यालय पहुँचा, उसने स्टाफ रूम में झांका। कोई नहीं था। प्राचार्य कक्ष में कुछ अध्यापक थे। वह भी वहीं चला गया। प्राचार्य ने उसके अभिवादन के जवाब में कहा-
‘‘ अभिमन्यु बाबू प्रारम्भिक सफलता तो मिल गयी है मैंने बी․डी․ओ․ साहब से कह सुनकर जमीन पर फिलहाल विद्यालय का कब्जा करवा दिया है मगर स्थिति ज्यादा ठीक नहीं है कस्बे के प्रभावशाली लोग इस जमीन को आसानी से हाथ से नहीं जाने देंगे। ''
‘‘ आप ठीक कहते हैं सर । मगर मेरी पूरी कोशिश होगी ि क
इस मैदान का पूरा उपयोग वृक्ष,पेड़-पौधों, घास आदि के लिए हो। बारिश हो गयी है और हम आज ही से वृक्षारोपण शुरू कर देंगे। '' अभिमन्यु ने उत्तर दिया।
‘‘ ये तो ठीक है अभिमन्यु बाबू मगर अन्य सुविधाओं हेतु हमारे पास कोई बजट नहीं है। '' प्रिन्सिपल साहब ने फिर कहा।
‘‘ फिलहाल मैं आपसे कोई अतिरिक्त बजट की मांग नहीं करूंगा। '' अभिमन्यु ने दृढ़ स्वर में कहा। तभी अंग्रेजी के अध्यापक एन्टोनी बोल पड़े.-
‘‘ लेकिन हमें इन सब से क्या लेना देना। अपनी कक्षा लें। नौकरी करें। वेतन लें। और घर जायें। हम इस पचड़े में क्यों पड़ें ''
‘‘ आप इस पचड़े से बिल्कुल दूर रहें। एन्टोनी साहब। मगर मेरी बात अलग है। एक सीमा के बाद आदमी को किसी से डरने की जरूरत नहीं है। न समाज न अफसर से और न अपने आपसे क्योंकि गलत काम नहीं करना है।'' अभिमन्यु ने दृढ़ स्वर में जवाब दिया।
‘‘ सवाल गलत या सही काम का नहीं हैं सवाल ये है कि जमीन पर कब्जा चाहने वाले लोग बड़े प्रभावशाली हैं और वे हम सभी के लिए मुसीबत खड़ी कर सकते है। '' महेश जी बोल पड़े।
‘‘ अब ये सब तो भुगतना ही पड़ेगा। आखिर कब तक अन्याय के सामने घुटने टेक कर जिया जा सकता है। और फिर कानून तथा प्रशासन हमारे साथ है। '' अभिमन्यु ने तीखे स्वर में कहा।
‘‘ शायद आप ठीक कहते हैं। मगर अगर मुसीबत आई तो हम सभी पर आयेगी। भुगतना हम सभी को ही है। हम सभी को यहीं रहना है और पानी में रहकर मगर से बैर नहीं करना चाहिये। '' एन्टोनी बोल पड़े।
‘‘ ठीक है। अभिमन्यु बाबू आप अपना काम जारी रखें। '' प्राचार्य ने निर्णायक स्वर में कहा।
तभी प्रार्थना की घण्टी बजी। सभी प्रांगण की ओर बढ़ चले। नियमित काम शुरू हो गया।
अभिमन्यु अपनी कक्षा में आया। उसने छात्रों से स्वास्थ्य शिक्षा की बात करना प्रारम्भ की। सभी छात्र यह जानने को उत्सुक थे कि क्या वे अपने घर के अन्दर मामूली बातों का ध्यान रखकर बीमारी से बच सकते हैं। विज्ञान के इस क्षेत्र में उनकी जानकारी बहुत कम थी। अभिमन्यु ने अपने गम्भीर स्वर में छात्रों से संवाद कायम करते हुए अध्यापन प्रारम्भ किया। छात्र प्रभावित होते चले गये ।
अभिमन्यु ने बताया कि ग्रामीण स्वस्थ्य केन्द्रों पर टीकाकरण, गर्भवती महिलाओं की देखभाल, परिवार कल्याण आदि की निशुल्क सुविधा होती है। सन् 2000 तक सबके लिए स्वास्थ्य का नारा विश्व स्तर पर दिया जा रहा है और यदि साफ सफाई, पाने के पानी की शुद्धता का ही ध्यान रख लिया जाये तो बहुत सी बीमारियों से बचा जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वस्थ्य सुधार के लिए जरूरी है कि ग्रामीणों को स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी उनकी भाषा में तथा सामान्य तरीके से दी जाये। आप लोग चाहें तो अपने घर परिवार, मोहल्ले, पड़ोस में लोगों को पेयजल की शुद्धता के बारे में बता सकते हैं इससे बड़ा लाभ होगा। खाना खाने से पहले हाथ अच्छी तरह धो लेने मात्र से कई बीमारियों से बचा जा सकता है विषय को गम्भीरता बनाते हुए अभिमन्यु ने फिर कहा- सब स्वस्थ्य होंगे तभी देश स्वस्थ होगा। और देश की खुशहाली सभी के स्वास्थ्य में छुपी हुई है। आप लोग अपने खाली समय में गांव की खुशहाली के लिए लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा करें।
‘‘ लेकिन सर। स्वास्थ्य रक्षा इतनी जरूरी है तो फिर हमारी पहले वाली पीढ़ी इस ओर ध्यान क्यों नहीं देती। ''एक छात्र पूछ बैठा।
‘‘ कारण बड़ा साफ है, अशिक्षा। प्राचीन काल में सभी जागरूक थे। लेकिन गुलामी के दौर ने हमें अशिक्षित कर दिया। अशिक्षा के अंधेरे ने हमें पंगु,
काहिल बना दिया। हमारी प्राचीन संस्कृति में स्वास्थ्य सम्बन्धी जो जानकारियां थी हम उन्हें भूल गये। उपर से कुपोषण और गरीबी ने हमारी हालत और भी खराब कर दी। इसी कारण स्वास्थ्य शिक्षा हम सभी के लिए जरूरी है। और अशिक्षा का अन्धेरा मिटेगा तो सब का स्वास्थ्य ठीक होगा। ''अभिमन्यु ने विषय को समाप्त किया। तभी घंटी बजी। वह कक्षा से बाहर आया। स्टाफ रूम की ओर चल दिया।
वहां पर मिसेज प्रतिभा व अन्ना बैठी बतिया रही थी।
अभिवादन के बाद उसने अन्ना से पूछा।
‘‘ आपका प्रोजेक्ट कैसा चल रहा है ? ''
‘‘ प्रोजेक्ट की प्रगति संतोषजनक है। मैनें जो प्रारम्भिक रपट जयपुर भेजी थी उसे निर्देशक महोदय ने ठीक बताया है। लेकिन कुछ बातें समझ में नहीं आती हैं। गांवों में स्वरोजगार और स्त्री शिक्षा की स्थिति बहुत खराब है कुछ लोगों में नशाखोरी की आदतें भी हैं। सामाजिक बुराइयाँ भी है। कल मैं एक गांव में गई थी। वहां पर गांव वालों ने बताया पिछले साल एक गरीब आदमी की बिटिया की शादी दहेज के कारण नहीं हो सका। ''
‘‘ दहेज के राक्षस ने एक परिवार उजाड़ दिया। ''मिसेज प्रतिभा बोली।
‘‘ गांवों में ऐसी घटनाएं कम ही हैं। ''अभिमन्यु ने कहा।
‘‘ हां घटनाएं तो कम होती हैं मगर इन्हें रोकने का कोई तरीका भी तो हो। '' प्रतिभा मैडम ने कहा।
‘‘ तरीका एक ही है शिक्षा का उजाला फैलाओ। और कन्या को भी अपने पांवों पर खड़ा होने का अवसर दो। ''
‘‘ प्रशासन भी तो कुछ करें। आये दिन अखबारों में बाल विवाह के समाचार आते रहते हैं। '' अन्ना बोली।
‘‘ हां केवल कानून या नियम बना देने से समस्या का समाधान नहीं हो जाता है, सामाजिक समस्या से लड़ने के लिए पूरे समाज को जागृत होकर लड़ना पड़ता है और आप जानती है कि अनपढ़ आदमी से ज्यादा खतरनाक होता है कुपढ़। कुपढ़ गांव-कस्बों में खूब मिलते हैं उपर से छोटी मोटी नेतागिरी की सुविधा या प्रशासन में पहुंच। गरीब आदमी भी इन कुपढ़ लोगों से बच कर जी नहीं सकता। ये लोग सामाजिक बुराइयों को थोपते है और आम आदमी को सहन करना पड़ता है।'' अभिमन्यु ने समझाया।
‘‘ मगर आम आदमी इस बुराई को समझता क्यों नहीं। ''
‘‘ समझता है खूब समझता है मगर उसकी मजबूरी है। वो क्रान्ति की भ्रान्ति में नहीं पड़ना चाहता। पानी में रहकर मगर से बैर कौन ले। गांव वालों को रहना तो उन्हीं लोगों के बीच है। ''अभिमन्यु ने कहा।
‘‘ लेकिन अब तो बहुओं को जलाने जैसी घटनाएं भी कभी कभार होने लगी है। '' अन्ना ने फिर कहा।
‘‘ हां ये भी शहरी सभ्यता का प्रसाद है पहले गांवों-कस्बों में ऐसा नहीं होता था। '' अभिमन्यु बोला।
‘‘ यदि गांवों में स्वरोजगार के साधनों का विकास हो तो स्थिति में सुधार आ सकता है।''मिसेज प्रतिभा ने कहा।
‘‘ मगर रोजगार है कहाँ ? अन्ना ने पूछा।
‘‘ है। गांवों से शहरों की ओर पलायन करने की संस्कृति को रोकने की जरूरत है गांव अपने स्तर पर रोजगार पैदा कर सकता है गांवों में बहुत संभावनाएं हैं और इन संभावनाओं को तलाशा जाना चाहिए। ''अभिमन्यु बोल पड़ा।
तभी छुट्टी की घण्टी बजी। अभिमन्यु भी छात्रावास की ओर चल पड़ा।
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इस कस्बेनुमा गांव में प्रधान जी का बोलबाला था। वे ही यहां के सर्वेसर्वा थे। आने वाला हर अफसर उनकी चौखट पर हाजरी देता था। मगर सामन्तशाही के विदा होने के साथ साथ प्रधान जी का रोबदाब कम होता जा रहा था। वे इस बात से परेशान थे। इधर नया विकास अधिकारी भी उन्हें कुछ नहीं समझता था। प्रधान जी का मकान कस्बे के बीचोंबीच था। वे जिले के मुख्यालय से छपने वाले स्थानीय पत्र को पढ़ रहे थे। पत्र में विद्यालय में पर्यावरण कार्यक्रम तथा वृक्षारोपण का समाचार विस्तार से छपा था। वे इस समाचार से नाराज थे। मगर कुछ कर नहीं पा रहे थे। इसी समय विद्यालय के प्राचार्य महोदय आये। और अभिवादन कर बोले।
‘‘आपने बुलाया था । ''
‘‘ जी हां, आपके यहां जो नया लड़का आया है और जो छात्रावास का वार्डन भी है। क्या नाम है उसका ? ''
‘‘ जी अभिमन्यु बाबू। ''
‘‘ हां उसे थोड़ा समझा देना। मेरे से पंगा लेकर वह ठीक नहीं कर रहा है। यहां पर हुकूमत हमारी है। ये ठीक है कि वृक्षारोपण का हो गया। विकास अधिकारी की बात चल गयी। मगर अब आगे किसी नये काम में हाथ नहीं डालें तो ठीक होगा। ''
‘‘ लेकिन वो हमारी जमीन थी और हमने उसका उपयोग किया। इसमें गलत क्या था ? ''
‘‘ सवाल सही या गलत का नहीं है सवाल ये है कि क्या ये कल के छोकरे मुझे पढ़ायेंगे। ''
‘‘ आप गलत समझ रहें है। अभिमन्यु बाबू ने केवल छात्रों तथा विद्यालय के हित में काम किया है। तथा पर्यावरण में सुधार से सभी का फायदा है। वर्षा समय पर होगी। गरमी कम पड़ेगी। वातावरण ठीक रहेगा। पशुओं,पक्षियों,मनुष्यों, पेड़,पौधों सभी को शुद्ध वायु मिलेगी। ''प्राचार्य ने विस्तार से समझाया।
‘‘ मुझे भाषण मत दो। मैं सब जानता हूँ। हम उस जमीन का अधिग्रहण कर सकते थे। मगर मैंने यह ठीक नहीं समझा। मेरी पहुँच राजधानी तक है। ''
‘‘ आप के प्रभाव से मैं इन्कार नहीं करता। '' प्राचार्य बोले।
‘‘ सवाल ये है कि मैं अपने आदमियों को कैसे समझाऊं, वे कहीं कुछ कर बैठे तो तुम्हारे अभिमन्यु बाबू बड़ा कष्ट पायेंगे। ''
‘‘ ठीक है सर मैं चलता हूँ। ''
‘‘ हाँ उन्हें किसी सामाजिक झंझट से दूर रहने की सलाह देना चुपचाप आये कक्षा लें और वेतन लें। ''
प्राचार्य महोदय चले गये। उनके मन में कई तरह के विचार आ रहे थे। वे प्रधान जी के निहित स्वार्थों तथा घटिया हथकंडों से परिचित थे। इधर अभिमन्यु बाबू एक युवा उत्साही अध्यापक थे वे उनके उत्साह को भी बनाये रखना चाहते थे।
वे जब विद्यालय की ओर बढ़ रहे थे तभी छात्रावास का प्रोक्टर अवतार सिंह व कुछ अन्य छात्र दौड़ते हुए आये प्राचार्य से बोले-
‘‘ सर अभिमन्यु सर पर कातिलाना हमला हुआ हे वे बेहोश है। हम आपको खबर करने आये हैं कुछ अन्य छात्र अस्पताल ले गये हैं। ''
‘‘ चलो अस्पताल चलते हैं। '' प्राचार्य व छात्र तेजी से अस्पताल की ओर चल पड़े। डाक्टर प्राचार्य से परिचित थे। बोले-
‘‘ घबराने की बात नहीं है। मामूली चोट आई है शायद हमलावर ज्यादा कुछ कर नहीं पाये। शीघ्र ही होश आ जायेगा।''
तभी पुलिस वाले भी आये। अभिमन्यु बाबू एक खाट पर लेटे थे। सिर पर पट्टी थी। उन्होंने आंखे खोली। प्राचार्य व छात्रों को देख कर मुस्कुराने की कोशिश की। कमला उनके पास ही खड़ी थी। प्राचार्य के पूछने पर अभिमन्यु बाबू ने पुलिस कार्यवाही के लिए मना कर दिया।
‘‘ ये छोटे मोटे हादसे तो होते रहते हैं सर। इनमें थाना, पुलिस, कोर्ट, कचहरी की नहीं आपसी समझ और सदभाव की जरूरत है। वे लोग अपनी गलती समझ जायेंगे। क्योंकि प्रधान जी के आदमी शायद जमीन के मामले में मेरे से नाराज थे। ''अभिमन्यु बाबू ने शान्त स्वर में कहा।
‘‘ हां ये तो उन्होंने मुझसे भी कहा था। '' प्राचार्य बोल पड़े।
‘‘ सर आपकी इजाजत हो तो हिसाब-किताब बराबर कर दें। '' अवतार सिंह बोल पड़ा।
लिम्बाराम और असलम ने भी हां भरी। मगर अभिमन्यु बाबू तुरन्त बोल पड़े।
‘‘ नहीं नहीं। कभी नहीं। हमें हिंसा से नहीं प्यार और भाईचारे से उन्हें जीतना है। ''
तभी खबर पाकर मिसेज प्रतिभा तथा अन्ना भी आ गयी। अभिमन्यु बाबू की देखरेख का जिम्मा प्राचार्य ने छात्रों को दिया। रात में व्यवस्था हेतु निर्देश देकर वे चले गये। अभिमन्यु बाबू आराम करने लगे।
कुछ दिन तक कस्बे में तनाव रहा मगर अभिमन्यु बाबू की सूझबूझ तथा छात्रों पर उनके नियन्त्रण के कारण कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। बीमारी के दौरान अभिमन्यु बाबू ने घर पर खबर नहीं होने दी। वे स्वयं बीमारी से आत्मबल से लड़े और जल्दी ठीक हो गये। छात्रावास में आकर अभिमन्यु बाबू ने वृक्षारोपण की अपनी योजना को पुनः जारी रखा। वे सुबह क्लास लेते। सायंकाल वृक्षारोपण कार्यक्रम को देखते ओर रात में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते। बारिश का मौसम आ गया था। नन्हे नन्हे पौधे धीरे धीरे बढ़ रहे थे प्रकृति ने एक हरी मख़मली चादर ओढ़ रखी थी। पौधों को देखकर अभिमन्यु बाबू अक्सर खुश होते। उन्हें लगता मानों सैकड़ों बच्चें एक साथ खिलखिला रहे हों।
लिम्बाराम और साथी मॉनीटरों ने छात्रावास के कमजोर छात्रों की एक सूची बनाकर उनको पढ़ाने की व्यवस्था की। इससे छात्रों में एक नये उत्साह का संचार हुआ। असलम ने फुटबाल की टीमें बनाई और रोजाना मैदान पर अभ्यास करने लगा।
अवतार सिंह ने एक रोज आकर बताया कि छात्रावास के कमरा नम्बर पच्चीस में रहने वाला छात्र रंजन आजकल गुमसुम और अकेला रहता है। अभिमन्यु बाबू ने एक रोज शाम के समय रंजन को अपने कक्ष में बुलाया और उससे प्यार से पूछा।
‘‘ बोलो रंजन तुम्हें क्या परेशानी है, मैंने सुना है तुम कोई नशीली दवा खाने लगे हो। ''
प्रारम्भ में तो रंजन मना करता रहा। मगर बाद में सहानुभूति पाकर बोल पड़ा।
‘‘ सर। मैं अत्यन्त दुखी और परेशान हूँ। मेरे माता-पिता के पास धन तो बहुत है मगर मेरे लिए समय बिल्कुल नहीं है इसी कारण छात्रावास में रहता हूँ। बचपन में महीनों मैं अपने पिता से बात नहीं कर पाता था। मम्मी अलग सामाजिक कार्यो में व्यस्त रहती थी। एक रोज मेरे मित्र ने मुझे यह डग का रास्ता दिखा दिया। ''
‘‘ क्या छात्रावास में तुम्हारे अलावा भी कोई ऐसी दवा लेता है ? ''
‘‘ नहीं। प्रारम्भ में मैंने एक आधा कश लिया मजा आया। फिर मैं आदि होने लगा। ''
‘‘ अच्छा तुम मेरे साथ डाक्टर के चलो। ''
पूरी बात सुनकर डाक्टर साहब बोले-
‘‘ नशीली दवाओं का सेवन एक विश्वव्यापी समस्या है मगर रंजन अभी प्रारम्भिक अवस्था में है। कुछ दवाओं और कुछ स्नेहभाव से ठीक हो जायेगा। ''
अभिमन्यु बाबू ने रंजन के कमरे में लिम्बाराम की ड्यूटी लगा दी और रंजन में धीरे धीरे खोया हुआ आत्मविश्वास वापस आने लगा। उन्होंने प्राचार्य को कह कर रंजन के पिता को भी बुलाया। रंजन के पिता को सब कुछ समझाया गया। उन्होंने प्रतिमाह रंजन को देखने आने का वादा किया। अगली बार रंजन के माता पिता आये। रंजन उस दिन बहुत खुश था। मां बाप के जाने के बाद रंजन ने डग छोड़ने का निश्चय किया। अभिमन्यु, लिम्बाराम व अन्य छात्रों ने रंजन को अपने साथ रखा। धीरे-धीरे रंजन ठीक हो गया।
रंजन अब नशीली दवाओं के शिकंजे से बच गया था। वह छात्रावास के अन्य छात्रों को इन दवाओं, तम्बाकू आदि के कहर से अवगत कराने लगा। पढ़ाई के साथ साथ रंजन को इस काम में मजा आने लगा।
अभिमन्यु बाबू ने नशे से बचने के लिए छात्रों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से डाक्टर साहब की एक वार्ता छात्रावास में कराने का निश्चय किया। डाक्टर साहब इस कार्य हेतु सहर्ष तैयार हो गये।
सायंकाल के समय छात्रावास के कॉमनहाल में अभिमन्यु बाबू ने सभी छात्रों को एकत्रित होने का निर्देश दिया। प्रारम्भिक उद्बोधन के बाद डाक्टर साहब ने अपनी बातचीत प्रारम्भ की। उन्होंने कहा- मैं भाषण देने के बजाय आन लोगों के साथ एक संवाद कायम करके अपनी बात कहूंगा ताकि आप लोग नशे की बुराइयों और उसके दुष्प्रभाव को आसानी से समझ सकें। ''
‘‘ वास्तव में मादक द्रव्यों का प्रयोग एक गंभीर विश्वव्यापी समस्या है। आज की पीढ़ी की सामाजिक, व मानसिक स्थिति कल की पीढ़ी से अलग है। पीढ़ियों के इस अन्तराल के कारण एक संवादहीनता की स्थिति बन गयी है, ओर आज का युवा इस संवादहीनता का हल नशीली चीजों में तलाशता है। रंजन ने यही किया था। उसके पिता माता से उसका संवाद नहीं हो रहा था। क्यों रंजन। ''
‘‘ जी हां डाक्टर साहब मैं अकेलेपन और उपेक्षा से ऊब गया था । ''
‘‘ तुम ठीक कहते हो रंजन। उपेक्षा के कारण व्यक्ति नशे की और प्रवृत्त होता है। शहरी परिवेश, समाज, पाश्चात्य संस्कृति आदि कारण भी युवा को नशे की ओर धकेलते हैं। ऐसी स्थिति में कोई साथी उन्हें दवा की पहली खुराक देता है, मजा आता है और फिर व्यक्ति उसका आदि हो जाता है। आज प्रतिवर्ष लाखों लोग तम्बाकू के सेवन से मर रहे हैं। तम्बाकू के अलावा, गाँजा, चरस, अफीम, हेरोइन, ब्राउनशुगर, स्मेक आदि दवाओं का घातक असर ह्रदय संस्थान, फेफडों, दिमाग आदि पर होता है। ''
‘‘ लेकिन सर क्या नशे से पीड़ित व्यक्ति को सामाजिक तिरस्कार से ठीक किया जा सकता है ? '' लिम्बाराम ने पूछा।
‘‘ नहीं बेटे। नशे से पीड़ित व्यक्ति को सहानुभूति चाहिए। उस कारण का पता लगना चाहिए जिससे वह नशे का आदि होता है। तभी उसे नशे की लत से छुटकारा दिलाया जा सकता है। ''डाक्टर साहब ने शंका समाधान किया।
नशे वाले युवा को प्यार, सहानुभूति से ठीक किया जा सकता है। उन्होंने उपसंहार किया।
छात्रों पर वार्ता का बहुत अधिक असर हुआ।
रंजन व कुछ अन्य छात्रों ने मिलकर कस्बे के युवाओं को तम्बाकू सेवन के नुकसान बताने हेतु एक शिविर लगाया। शिविर से कस्बे में एक जागरूकता आई। परिणाम स्वरूप कई युवाओं ने तम्बाकू के सेवन से बचने की कसम खाई।
मगर प्रधान जी के आदमी इस घटना से फिर नाराज हो गये। उनके ही आदमी डग बेचते थे। अभिमन्यु बाबू के इस प्रयास पर फिर एक रोज प्राचार्य को टेलीफोन पर कहने लगे।
‘‘ देखो प्रिंसिपल साहब ये सब ठीक नहीं है। '' अभिमन्यु बाबू इसी तरह करते रहे तो हमें दूसरे रास्ते काम में लाने होंगे। '' प्राचार्य को धमकी देते हुए प्रधान जी बोले।
‘‘ वो तो आप आजमा चुके हैं। अभिमन्यु बाबू पर हमला हो चुका है। ''
वो मेरा काम नहीं था। मैं उन्हें हटवा दूंगा। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। ''
‘‘ देखिये प्रधान जी अध्यापक का जो दायित्व हैं वही अभिमन्यु बाबू कर रहे हैं। इस लड़ाई में मैं उनके साथ हूँ। क्योंकि सच्चाई, ईमानदारी और नैतिकता हमारे साथ है हमारा रास्ता इन्साफ़ का रास्ता है। ''प्राचार्य बोले।
‘‘ मैं तुम्हें भी समझा रहा हूँ। ''
‘‘ मैं जानता हूँ आप क्या कहना चाहते हैं मगर अध्यापक के पास नैतिक बल के अलावा है ही क्या, हम इसी बल पर जिन्दा हैं और रहेंगे। ''
‘‘ जैसी तुम्हारी मर्जी। मैं अपने आदमियों को नाराज नहीं कर सकता।'' ये कहकर प्रधान जी ने टेलीफोन रख दिया।
प्राचार्य ने एक गहरी सांस ली और स्टाफ रूम की ओर चल पड़े। वहां पर अभिमन्यु बाबू व अन्य अध्यापक थे। प्राचार्य ने संक्षेप में प्रधान जी से हुई बातचीत का ब्योरा दिया। तो गणित के गुप्ता जी बोल पड़े।
‘‘ हमें इन सब झगड़ों में पड़ने की जरूरत क्या है ? ''
‘‘ हम अपनी कक्षा ले और आराम करें।'' चन्द्र मोहन शर्मा बोल पड़े। कुछ अन्य अध्यापकों ने भी उनका साथ दिया। तभी मिसेज प्रतिभा ने कहा हम सब मिलकर यदि किसी अच्छे काम में साथ नहीं दे सकते तो हमारे होने का अर्थ ही क्या रह जाता है ? ''
अभिमन्यु बाबू ने लड़कों में नशीली दवा की आदत छुड़ाने के प्रयास किये तो सभी को अच्छा लगना चाहिए। आखिर यह एक विश्वव्यापी समस्या है और एक पूरी पीढ़ी के भविष्य का प्रश्न है। क्या गुमराह पीढ़ी को सही रास्ता दिखाना हमारा कर्तव्य नहीं है। ''
‘‘ समस्या का निदान यह तो नहीं कि हम कस्बे के प्रभावशाली लोगों से लड़ें। ''
‘‘ हम कहां लड़ रहें हैं। ''प्राचार्य बोले। ‘‘और न ही हमें लड़ना है। ''
‘‘ हमारी जिम्मेदारी हमारे छात्र और उनका सर्वांगीण विकास है। हमें नैतिक मूल्यों की रक्षा करनी है। ''
‘‘ आप ठीक कहते हैं सर। ''पहली बार अभिमन्यु बोल पड़ा।
‘‘ समाज में व्याप्त बुराई का यदि एक अत्यन्त छोटा सा हिस्सा भी हम नष्ट कर सकें तो यह हमारी एक बड़ी सफलता होगी और इस सफलता के लिए हमें कुछ सहन भी करना पड़े तो करना चाहिए। '' अभिमन्यु ने दृढ़ स्वर में कहा।'' और फिर समस्याओं से भागकर हम जायेंगे कहाँ, वे तो साये की तरह हमारे पीछे लगी रहेगी। हमें समस्याओं से निपटना पड़ेगा। चाहे वे सामाजिक हो या आर्थिक या राजनैतिक या फिर मानसिक। ''
‘‘ ठीक है। प्राचार्य बोल पड़े। अगले महीने हम विद्यालय में भी कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम करेंगे। मैं चाहता हूं कि इन कार्यक्रमों की बागडोर मिसेज प्रतिभा आप संभाले।''
‘‘ जैसा आप उचित समझें। ''
छुट्टी की घण्टी बजी।
सभी लोग अपने अपने घरों की ओर चल पड़े।
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सायंकाल का समय था। अन्ना और मिसेज प्रतिभा टहलती हुई छात्रावास में आई। कमला वहीं थी। वे तीनों बातें करने लगी। थोड़ी देर में अभिमन्यु बाबू मेस की व्यवस्था देखकर लौटे, तो बोले।
‘‘ अन्ना जी आपका प्रोजेक्ट कैसा चल रहा है ? ''
‘‘ ठीक चल रहा है। अगले माह प्रोफेसर यहाँ आयेंगे तब पूरी जानकारी हो सकेगी।''
‘‘ अच्छा तब सांस्कृतिक कार्यक्रम में उन्हें ही मुख्य अतिथि बना लें। '' प्रतिभा ने कहा।
‘‘ हां हां क्यों नहीं यह तो खुशी की बात होगी।'' अन्ना बोल पड़ी। अभिमन्यु ने भी सहमति जता दी।
सोचती हूं इस बार सांस्कृतिक कार्यक्रम में कुछ नया करें। आप क्या सोचते है।''
‘‘ नया अवश्य करें, मगर समस्या-प्रधान चीजें लें, ताकि हम नई पीढ़ी को कोई सन्देश दे सकें। बालविवाह, बालिका शिक्षा, नशीली दवाओं से बचाव आदि पर कोई वाद विवाद या नाटक किया जा सकता हे। ''
हम नशाबन्दी,मिलावट,अर्थ शुचिता,पर भी कुछ कार्यक्रम कर सकते हैं। '' अभिमन्यु ने विषय सुझाये। अन्ना ने कहा।
‘‘ हम छात्र-शिक्षक संबन्धों पर भी चर्चा कर सकते हैं। विषयों की कमी नहीं है। ''
‘‘ हां विषय तो और भी हो सकते हैं, विधवा विवाह, दहेज, कालाबाजारी, गांवों से पलायन, स्वरोजगार आदि। मगर कार्यक्रमों का स्वरूप कैसा हो ? '' मिसेज प्रतिभा ने जानना चाहा।
‘‘ कार्यक्रम जनरूचिकर तथा शिक्षाप्रद भी हो।'' अभिमन्यु की बातें मिसेज प्रतिभा को जम गयी।
अब बातचीत का विषय अन्ना का प्रोजेक्ट हो गया। तभी कमला चाय बना लाई। चाय पीते हुए अन्ना बोली।
‘‘ पुरूष प्रधान समाज में नारी की स्थिति कैसे सुधर सकती है ? ''
‘‘ शायद आप गलत सोचती हैं। नारी ही नारी की सबसे बड़ी शत्रु है। एक नारी दूसरी नारी का शोषण करती है। धर में भी और समाज में भी। मामला दहेज का हो या शिक्षा का। नारी नारी का साथ नहीं देती। '' अभिमन्यु बोला।
‘‘ मैंने यूरोप में भी देखा और अपने देश में भी। वहां भी मन भटकता है। यहां भी भटकता है भटकाव ही औरत की जिन्दगी है क्या ? ''
‘‘ नहीं। भारतीय परम्परा और संस्कृति में नारी मन में भटकाव नहीं है भटकाव पाश्चात्य संस्कृति की देन है। और अभी भी औरत स्त्री भटकाव में नहीं लगाव में जीती है और यही कारण है कि हमारे देश में शादी एक पवित्र बन्धन है। '' अभिमन्यु बोला।
‘‘ हां ये तो है। '' मिसेज प्रतिभा ने कहा।
इसी कारण पश्चिम की तुलना में हमारे समाज में स्थायित्व है। मन धर परिवार में एकाकार हो जाता है। आस्था वादी विचारों के कारण भारतीय जन मानस स्वयं का ही नहीं सम्पूर्ण विश्व का कल्याण करता है वह सब को साथ लेकर चलता है। सब के प्रति समभाव। धर्म हमारे लिए एक साधन है। बाधा नहीं। '' अभिमन्यु ने कहा।
तभी छात्रावास के चौकीदार ने आकर अभिमन्यु के हाथ में तार दिया। तार अभिमन्यु बाबू के धर से आया था उनके पिताजी की तबियत ठीक नहीं थी।
अभिमन्यु बाबू ने तुरन्त कमला से कहा तैयार हो जाओ। हम अभी गाँव चलेंगे। ''
मिसेज प्रतिभा ने कहा-‘‘ आप बापू व मां को यहीं ले आइए ''
अन्ना ने भी कहा-‘‘ हां यहीं ठीक रहेगा यहां पर चिकित्सा की सुविधा भी अच्छी है। ''
अभिमन्यु बाबू बोले-‘‘ मैं तो शुरू से ही इसी कोशिश में था। मगर माँ बापू मानते ही नहीं थे। अब जाकर ले ही आता हूँ। ''
‘‘ आप ज्यादा चिन्ता नहीं करे। ईश्वर सब ठीक करेगा। उसमें आस्था से जीवन की हर कठिन घड़ी गुजर जाती है। '' मिसेज प्रतिभा ने अभिमन्यु को सांत्वना दी।
‘‘ अमंगल में मंगल छिपा है। सब ठीक हो जायेगा। '' अन्ना ने भी कहा।
‘‘ अच्छा हम चलते हैं। आप बापू-मां को लेकर जल्दी आयेगा। '' ये कहकर अन्ना मिसेज प्रतिभा चल पड़ी।
अन्ना व मिसेज प्रतिभा के जाने के बाद अभिमन्यु व कमला ने बस पकड़ी और गांव पहुंच गये।
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(क्रमशः अगले अंकों में जारी…)
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