किशोर उपन्यास नया सवेरा यशवन्त कोठारी ( पिछले अंक से जारी…) फरवरी मार्च के ये दिन। हवा बौराई हुई बहती रहती है। शहर का वातावर...
किशोर उपन्यास
नया सवेरा
यशवन्त कोठारी
फरवरी मार्च के ये दिन। हवा बौराई हुई बहती रहती है। शहर का वातावरण, फूलों से लदा फँदा रहता है वासन्ती फूलों का एक खिला संसार यूनिवर्सिटी में महक रहा है। बड़े-बड़े शानदार बंगले के लॉनों में बोगनबेलिया की लताएं इठला रही थी। सुबह का कुंवारा मौसम हो तो फूलों की महक और भी मोहक लगती है। टीचर्स होस्टल को जाने वाली सड़क पर अन्ना और उसकी नई बनी सहेली आशा चली जा रही थी। अचानक पीछे से कार के हॉर्न की आवाज से वे दोनों चौंक पड़ी। आशा ने मुड़कर देखा भाईजान थे।
‘‘आओ अन्ना। ये मेरे भाई हैं। सोशियोलोजी के प्रोफेसर और ये अन्ना है। अभी अभी मेरी सहेली बनी है और अब हमारे घर चल रही है। ''
अन्ना सकुचाकर कार में बैठ गई। वे घर आ गये। प्रोफेसर अपनी स्टडी में चले गये। वे दोनों बेडरूम में गपशप करने आ गई।
अन्ना घर तो तुमने बहुत ही खूबसूरती से सजा रखा है हर चीज करीने से और सुन्दरता ऐसी की स्थान से हटाने मात्र से असुन्दर दिखने लगती है।
‘‘ अरे ये मेरा नहीं भाई का शौक है, वे हर चीज करीने से और व्यवस्थित पसन्द करते हैं इसी मारे तो अभी तक कुंवारे हैं और शायद आगे भी ऐसे ही रहेंगे। ''
‘‘ अरे क्यों ? ''
‘‘ ऐसा ही है। '' आशा ने बात टाल दी। '' अच्छा चलो बाहर बैठकर चाय पीते है भाई भी वहीं आ जायेंगे। ''
सुन्दर मख़मली-लॉन के किनारों पर वासन्ती फूल और लताएं। धीमी हवा के झकोंरें
भाई आये। गम्भीर चाल। मोटा चश्मा। विद्वत्ता की एक छाप जो आदमी को सम्मान से जानने का हक दिलाती है।
‘‘ आजकल तुम्हारी क्लासेज का क्या हाल है ? ''
‘‘ हाल बड़े बेहाल है भाई जी। यूनिवर्सिटी में अब पढ़ने कौन आता है सब मटरगश्ती करने आते हैं। ''
‘‘ मगर तुम्हें तो पढ़ना है भाई। नहीं तो चाची कहेंगी लड़की को पढ़ा भी नहीं सका, इतना भी नहीं हुआ। '' और वे खिलखिलाकर हंस पड़े।
अन्ना ने देखा दुग्ध श्वेत दन्तपंक्ति, जैसे कई हँस एक साथ उड़ पड़े हों और हवा में देर तक तैरती रही वो हंसी।
‘‘ अच्छा और तुम्हारी इस सहेली अन्ना का क्या कार्यक्रम है। कब तक रहेगी । ''
‘‘ जी अभी कुछ तय नहीं है, सोच रही हूँ निकल जाउं। ''
‘‘ कहां। ''
‘‘ इस प्रदेश को देखने समझने और जीने। ''
‘‘ तुम एक काम क्यों नहीं करती। ''
‘‘ जी ''
‘‘ मेरे पास एक प्रोजेक्ट आया हुआ है राजस्थान के गांवों में कस्बों में महिलाओं और बच्चों का सामाजिक अध्ययन। कई दिनों से इस पर काम करने की सोच रहा था। तुम चाहो तो इस प्रोजेक्ट पर काम कर सकती हो। काम का काम और घूमना भी । इसी बहाने तुम राजस्थान के लोक-जीवन और संस्कृति को भी नजदीक से देख सकोगी। ''
अचानक अन्ना सोच में डूब गई उलझाव के इन दिनों यह प्रोजेक्ट भी क्या बुरा है, लेकिन अन्ना हाँ भरने से पहले कुछ और सोचना चाहती थी।
‘‘ कितने समय रूकना होगा। ''
‘‘ ये तो तुम पर है। वैसे प्रोजेक्ट कई वर्षो तक चल सकता है प्रारम्भ में एक वर्ष समझ लो । ''
‘‘ ठीक है मुझे स्वीकार है। ''
अन्ना और आशा दोनों हँस पड़े।
‘‘ तो कल विभाग में आकर जॉइन कर लो। '' यह कहकर प्रोफेसर अपनी स्टडी में चले गये।
रात को पलंग पर लेटे अन्ना ने आंखे बन्द कर ली उसके सामने नये पुराने कई दृश्य आये गये। कई दिन बीत गये। कई रातें रीत गई। दोपहर। शाम। रात। हवा। सूरज। चांद। कहीं मोहित करने वाले बन्धन। कहीं कमल की तरह खिली स्वतन्त्रता। सब कुछ आँखों के सामने गुजर गया अचानक वह किस बन्धन में बंध गई क्या वह प्रोजेक्ट को सहेज सकेगी। लेकिन जीवन में यह मोड़ उसे भा गया था। रेत के टीबों से मेवाड़ी पहाड़ों तक की यात्रा का यह सुनहरा अवसर वह खोना नहीं चाहती थी। स्टडी में अभी भी लाईट जल रही थी। शायद प्रोफेसर सिंह अध्ययन कर रहे थे। अन्ना और आशा एक ही कमरे में सो गई।
प्रातः तैयार होकर अन्ना ने समाज शास्त्र विभाग में जाकर ज्वाइन किया और राजस्थान में महिलाओं और बच्चों के सामाजिक अध्ययन के प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए राजपुर रवाना हो गई। जाते समय प्रोफेसर साहब ने राजपुर के तहसीलदार के नाम एक पत्र भी दे दिया।
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राजपुर में उतरते ही अन्ना ने सोचा सबसे पहले स्थानीय तहसीलदार से ही मिलना चाहिए। प्रशासक के नाते आंकड़ों की भाषा में तहसीलदार साहब ने उसे विकास, प्रगति, उपलब्धियाँ, आदि के बारे में कुछ इस तरह बताया कि अन्ना शीघ्र ही उन्हें सफल प्रशासक मान बैठी। तहसील से निकल ही रही थी कि उसे पास में ही आवासीय विद्यालय का विशाल प्रांगण नजर आया। उसने कस्बे में महिलाओं और बच्चों की स्थिति के बारे में इस विद्यालय के स्थानीय अध्यापकों तथा छात्रों से बात करने का निश्चय किया। वह सीधे ही स्टाफ रूम में चली गई। वहां पर हिन्दी की अध्यापिका मिसेज․ प्रतिभा से उसने परिचय किया और बोल पड़ी-
‘‘ मैडम। मैं जयपुर से महिलाओं और बच्चों की सामाजिक स्थिति की परियोजना पर काम करने यहाँ आई हूँ। मैं गांव में महिलाओं और बच्चों की सामाजिक स्थितियों का अध्ययन करना चाहती हूँ। आप शायद इसी जगह की हैं। अतः शायद मेरी कुछ मदद कर सकें। मैं आपकी आभारी रहूंगी। साथ ही यदि आप अन्य साथी अध्यापकों से भी मेरा परिचय करा सकें तो मुझे सुविधा होगी। ''
मिसेज प्रतिभा ने खुशी खुशी अन्ना का परिचय अपने सहयोगियों से कराया।
‘‘ ये मि․ एन्टोनी अंग्रेजी पढ़ाते हैं।'' अन्ना ने शालीनता से हाथ जोड़े।
ये हैं गणित के महेश गुप्ता साहब।
‘‘ नमस्कार। ''
‘‘ नमस्कार। ''
इसी समय अभिमन्यु ने स्टाफ रूम में प्रवेश किया। अन्ना ने देखा। अपरिचय के विन्ध्याचल बीच में खड़े थे। लेकिन एक आकर्षण था। मिसेज प्रतिभा ने परिचय कराया।
‘‘ ये है विज्ञान के अध्यापक अभिमन्यु बाबू। कल ही आये हैं और छात्रावास के अधीक्षक भी हैं। ''
‘‘ ये अन्ना है यहां पर महिलाओं और बच्चों की स्थिति पर शोध करेंगी।'' ‘‘ अच्छा। नमस्कार। ''
‘‘ नमस्कार। '' अन्ना के दोनों हाथ स्वतः शालीनता से जुड़ गये। अन्ना ने पूछा-
‘‘ इस कस्बे में महिलाओं और बच्चों की स्थिति कैसी है क्या अन्य जगहों की तरह ही है ? ''
मिसेज प्रतिभा बोल पड़ी।
‘‘ यहां स्थिति कुछ ठीक इस कारण है कि जनता में जागृति है, वे शिक्षा के महत्व को समझ रहे हैं, और अपनी लड़कियों को स्कूलों में भेज रहे हैं। कस्बे में कन्याओं और महिलाओं हेतु पढ़ाई की व्यवस्था भी है। राजनैतिक जागृति भी है। ''
‘‘अच्छा यह तो बड़ी अच्छी बात है। ''
‘‘ अब घर की महिला अपने तथा बच्चों के स्वस्थ्य के बारे में भी जागरूक हैं तथा नियमित रूप से सरकारी सुविधाओं का लाभ लेना जानती है। आपको यह जानकर खुशी होगी कि पिछले कई वर्षो से यहां पर बाल विवाह जैसी कोई घटना नहीं घटी है'' मिसेज प्रतिभा ने फिर कहा।
‘‘ अच्छा। '' अन्ना को आश्चर्य हुआ।
अभिमन्यु बोल पड़ा।
‘‘ इसमें आश्चर्य की क्या बात है सामाजिक कुरीतियों के बारे में यदि जनता को सही तरीके से समझाया जाये तो बात समझ में आ जाती है, और एक बार बात समझ में आ जाने के बाद लोग बाग उस बात पर अमल करते हैं। गांव की पंचायत, जाति की पंचायत, बड़े बूढे. सब मिल बैठकर समस्या को खतम कर देते हैं, और ऐसा तो अक्सर होता रहता है। ''
‘‘ लेकिन क्या दहेज, बहू जलाना, तलाक, आदि की घटनाएं भी नहीं होती है। ''
इस बार गणित के महेश जी बोल पड़े।
‘‘ बहन जी ये सब शहरों के बड़े लोगों के चक्कर है गांव में बहू का मान बेटी के बराबर होता है, बेटी को दुख देना और बहू को दुख देना एक ही बात है बहू घर की लक्ष्मी है और लक्ष्मी का अनादर हमारी परम्परा या संस्कृति में कभी नहीं रहा। ''
‘‘ लेकिन फिर भी क्या सभी कुछ अच्छा ही है। ''
‘‘ नहीं है सब कुछ अच्छा नहीं है औसत भारतीय कस्बों, गांवों की तरह यहाँ भी पेयजल का संकट है, सरकारी तंत्र में अनियमितताएँ है, मगर इन सब के बावजूद एक चीज है आशा, उमंग, उल्लास, खुशी, और जीवन को भरपूर जीने की इच्छा जो हमें हमारी परम्परा से जोड़ती है। प्रजातन्त्र की आवश्यकता है, इसी कारण उसकी कीमत भी देनी पड़ती है। '' अभिमन्यु का स्वर कुछ तल्ख हो उठा। मगर सभी ने उसकी बात को सराहा। कुछ पल को वह रुका फिर बोल पड़ा।
‘‘ प्रजातन्त्र के मूल्यों में आस्था रखना ही परम धर्म है जो अनैतिक है उसे समाप्त करने का प्रयत्न किया जाना चाहिए। स्थिति बच्चों की हो या पुरूषों की या महिलाओं की साक्षरता और सतत शिक्षा से ही सुधार हो सकता है। आखिर बच्चों तथा महिलाओं के बिना एक सम्पूर्ण और सुन्दर विश्व की कल्पना कैसे की जा सकती है ? बच्चे प्रकृति का सबसे खूबसूरत उपहार हैं और महिलाएं वो उपहार हम तक पहुँचाती है। ''
‘‘ लेकिन अभिमन्यु बाबू सवाल ये है कि सब इसके लिए क्या कर सकते है ? अन्ना जी इतनी दूर से यही सब जानने-समझने आई है। '' मिसेज प्रतिभा ने बहस के एक जीवन्त मोड़ देने की सफल कोशिश की।
‘‘ हां हम क्या कर सकते हैं ? '' महेश जी भी बोल पड़े।
अन्ना ने भी प्रश्न वाचक दृष्टि से देखा।
अब अभिमन्यु बोल पड़ा।
‘‘ मैं तो एक कम उम्र का नौजवान हूँ युवा होने के कारण अधीर हूँ और जल्दी से जल्दी मंजिल चाहता हूँ मगर मैं यह भी जानता हूँ कि मन्जिल न तो आसान है और न ही बहुत पास। मगर सुनहरे भविष्य के सपने तो देखे जा सकते हैं। ''
‘‘ सपने हकीकत तो नहीं बन जाते। '' अन्ना ने फिर प्रश्न का तीर मारा।
‘‘ सपनों को हकीकत बनाने की कोशिश ही जीवन और संघर्ष का दूसरा नाम है। '' तभी घण्टी बजी।
‘‘ माफ करें। मैं कक्षा लेकर अभी आता हूँ। '' अभिमन्यु अपनी कक्षा में विज्ञान पढ़ाने चला गया। अन्ना स्टाफ रूम में बैठी बतियाती रही। उसे रह रह कर अभी हुई बहस पर विचार करने में सुख का अहसास हो रहा था। वह सोचने लगी यदि इस प्रोजेक्ट पर काम ही करना है तो इसी कस्बे को आधार बनाकर करना ठीक रहेगा।
मिसेज प्रतिभा पूछ बैठी ।
‘‘ अन्ना तुम कहाँ ठहरी हो। ''
‘‘ अभी तो आई हूँ। सोचती हूँ किसी डाक बंगले में रूक जाउं। ''
‘‘ मगर डाक बंगला तो यहां से बहुत दूर है। तुम ऐसा करो मेरे पास रह लो। मैं भी अकेली रहती हूँ मेरे मिस्टर जिला मुख्यालय पर कार्यरत हैं। हम दोनों मिलकर खाना भी बना लेंगे और अपना अपना काम भी करते रहेेंगे ।''
‘‘ मगर आपको असुविधा होगी। ''
‘‘ असुविधा कैसी। अभी छुट्टी होती है तो अपन दोनों साथ साथ चलते हैं। विद्यालय से पांच मिनट का रास्ता है। ''
तभी विद्यालय की छुट्टी की घण्टी बजी। ढेरों बच्चे ऐ साथ निकल पड़े मानो प्रकृति के उपहार धरती पर चल पड़े हों।
अन्ना और मिसेज प्रतिभा भी चल पड़ी।
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छात्रावास में अभिमन्यु अपने कक्ष में बैठकर मेस सम्बन्धी जानकारी अपने सहयोगी से ले रहा था तभी विंग मॉनीटर लिम्बाराम ने प्रवेश किया और आदर के साथ खड़ा हो गया।
‘‘ कहो लिम्बाराम कैसे आये हो ? कुछ परेशानी है क्या। ''
‘‘ सर। छात्रावास के सम्बन्ध में कुछ बातें करना चाहता था। ''
‘‘ अच्छा बैठो। सुनो एक काम क्यों नहीं करते चारों मॉनीटर एक साथ आ जाओ और सभी बातों पर एक साथ चर्चा कर ले इस नवीन सत्र की एक कार्य योजना भी बना ले ताकि सब कार्य व्यवस्थित, सुचारु रूप से चल सके।
‘‘ यही ठीक रहेगा सर। अभी छात्रों के पढ़ने का समय भी नहीं है। मैं तीनों मॉनीटरों को बुला लाता हूँ। ''
यह कहकर लिम्बाराम जाने लगा। अभिमन्यु ने साथ में अवतार सिंह प्रोक्टर को भी बुलाने के निर्देश दिये। कुछ ही देर में चारों मॉनीटर तथा प्रोक्टर अभिमन्यु के कक्ष में एकत्रित हो गये। अभिमन्यु ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा- ‘‘ आप लोगों पर इस छात्रावास की महती जिम्मेदारी है। मैं तो केवल आप लोगों की सहायता के लिए हूँ। छात्रावास में मेस की सुविधा साफ, सफाई, सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा खेलकूद आदि के लिए आप लोगों को दिल लगाकर काम करना होगा। साथ ही आप लोगों को इस कस्बे के सामाजिक उत्थान के लिए भी काम करना चाहिए। मेरी मान्यता है कि आप लोग मिलजुल कर काम करें तो पढ़ाई के अतिरिक्त समय में भी बहुत कुछ कर सकते हैं। ''
‘‘ हां सर हम भी महसूस करते हैं कि हमारे पास काफी समय बचता है। जिसे हम इधर-उधर के कामों में नष्ट कर देते हैं। यदि कोई स्पष्ट दिशा- निर्देश हो तो हम सब मिलकर कुछ नया और अनोखा काम अवश्य कर सकते हैं। यदि इस काम में हमें आनन्द भी आएगा। और खुशी भी होगी। '' लिम्बाराम तुरन्त बोल पड़ा।
‘‘ लेकिन सर '' असलम ने अपनी बात रखी ‘‘ जो छात्र पढ़ाई में कमजोर हैं उन छात्रों की ओर ध्यान देने के लिए भी हमें कुछ करना चाहिए। ''
‘‘ बिल्कुल असलम मैं तुमसे शत प्रतिशत सहमत हूँ तुम चारों मॉनीटर अपनी अपनी विंग के कमजोर छात्रों की एक सूची बनाओ और मैं उन्हें अतिरिक्त समय में यहाँ पढ़ाउंगा ताकि उनकी कमजोरी दूर हो। ''
‘‘ यही ठीक रहेगा सर। '' सुरेश शर्मा बोल पड़ा।
‘‘ और आप लोग एक और बात का ध्यान रखें। यदि किसी छात्र की कोई निजी आवश्यकता हो तो उसका भी ध्यान रखें। हम सब एक साथ मिल बैठकर उसका समाधान खोज निकालेंगे।'' अभिमन्यु बाबू ने फिर कहा।
‘‘ खाली समय का सदुपयोग करने की शुरूआत हम वृक्षारोपण से करेंगे। शाम को सभी छात्र छात्रावास के पीछे वाले खाली मैदान में एकत्रित हो जायें वहीं से हम अपने अभियान का श्रीगणेश करेंगे। मैं कोशिश करूंगा कि प्राचार्य महोदय भी उस समय वहां पर उपस्थित रहें। ''
‘‘ सर एक बात पूछना चाहता हूँ। अवतार सिंह पहली बार बोला।
‘‘ हां हां पूछो। झझकों मत। ''
‘‘ सर कुछ अपने बारे में बताइये। ''
अभिमन्यु बाबू हंस पड़े कुछ पल मौन रहे। फिर गम्भीर स्वर में बोल पड़े।
‘‘ अवतार सिंह मैं सामान्य निम्न मध्यम वर्गीय परिवार का सदस्य हूँ यह नौकरी तीन वर्ष की प्रतीक्षा के बाद मिली है। और विज्ञान में स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई मैंने जयपुर से की है। प्रतियोगी परीक्षाओं की भी तैयारी यहां रह कर करूंगा।''
‘‘अच्छा सर। एक बात बताइये। ''
‘‘ नैतिक मूल्यों में इतना हास क्यों हो रहा है ? '' लिम्बाराम पूछ बैठा।
‘‘ देखो लिम्बाराम मूल्य हमारी नैतिकता से जुड़े है और आजकल भौतिकवाद का समय हैं। उपभोक्तावादी संस्कृति तथा खुली बाजार व्यवस्था ने नैतिकता को लगभग नष्ट कर दिया है और मूल्य भी विघटित हो गये है। वर्षो के प्रजातन्त्र ने हमारे जीवन में कई बड़े बदलाव पैदा किये है और दूसरी ओर कई क्षेत्रों में हमने बहुत ज्यादा प्रगति की हैं विकास और प्रगति के कुछ मूल्य भी हमने चुकाये हैं और नैतिक मूल्यों का हास इन्हीं में से एक है तुम शायद कला संकाय में हो, इतिहास में अक्सर ऐसे अवसर आए है जब मूल्यों में हास होने पर नई दिशा देने के लिए किसी महात्मा सन्त या महापुरुष ने इस देश को दिशा दी है। विकास और प्रगति के मूल्यों को चुकाने के लिए हम आजकल पर्यावरण की समस्या से जूझ रहे है। समाज को स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं होने के कारण अन्धकार में भटकाव है। रोशनी की तलाश जारी है।
‘‘ अच्छा सर विज्ञान की इतनी प्रगति के बावजूद मानव संतुष्ट क्यों नहीं है ? ''
‘‘ मानव का संतुष्ट हो जाना उसकी प्रगति को रोक देगा। प्रगति के लिए नियमित रूप से आगे की ओर देखना जरूरी है। '' चलते जाना ही जीवन है क्या नदी कभी रुकती है वह चलती ही जाती है। ''
‘‘ सर वृक्षारोपण के लिए क्या करना होगा ? ''
‘‘ फिलहाल तो हम मैदान को ठीक करेंगे। फिर वर्षा ऋतु में बारिश हो जाने पर पेड़ पौधे को लगायेंगे। ''
‘‘ लेकिन सर । पौधे ? ''
‘‘ पौधे वन विभाग देगा या विद्यालय प्रशासन खरीदेगा। ''
‘‘ प्रशासन के भरोसे तो सर कामकाज नहीं चलता। '' सुरेश ने कहा
‘‘ देखो शुरू में ही निराश हो जाना या पूर्वाग्रह पाल लेना ठीक नहीं है हम कोशिश करेंगे और सफल होंगे। '' अभिमन्यु ने कहा।
‘‘ अब तुम लोग जाओ शाम पांच बजे पीछे वाले मैदान में एकत्रित हो जाना मैं और प्राचार्य जी वही मिलेंगे। ''
छात्रों के जाने के बाद अभिमन्यु ने पिताजी को पत्र लिखा ।
श्रद्धेय पिताजी,
सदर चरण स्पर्श।
आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि मैने काम संभाल लिया है। सब कुछ ठीक-ठाक है वातावरण तथा कस्बा दोनों ही ठीक है शायद थोड़ी बहुत ऊंच नीच है तो वह समय पर अपने आप ठीक हो जायेगी। मुझे यहां पर छात्रावास में ही रहने को क्वार्टर मिल गया है। सोचता हूँ आप लोग भी यहीं पर आ जाये तो ठीक रहेगा। अब वहाँ गांव में कब तक रहेंगे ? कमला की भी पढ़ाई यहां पर जारी रह सकेगी। आपका पत्र पाते ही मैं लेने आ जाउँगा। माताजी को प्रणाम अर्ज कराये तथा कमला को शुभाशीष।
आपका प्रिय पुत्र
अभिमन्यु।
पत्र को पोस्ट करने के लिए उसने चौकीदार को दिया। और स्वयं प्राचार्य से मिलने चल दिया।
प्राचार्य अपने कक्ष में थे। उन्होंने अभिमन्यु की वृक्षारोपण योजना ध्यान से सुनी और कहा-
‘‘मैं तो आ जाउँगा काम भी शुरू कर देंगे। मगर हमारे पास इस समय अतिरिक्त बजट नहीं है। और आप जानते हैं बिना बजट के सरकारी काम कैसे हो सकता है ? ''
‘‘ आप चिन्ता न करें फिलहाल हम सभी लोग श्रमदान करेंगे। पौधे बारिश के बाद वन विभाग से प्राप्त करेंगे। ''
‘‘ फिर ठीक है मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है। ''
‘‘ तो चले। ''
‘‘ आइये। '' अभिमन्यु और प्राचार्य चलकर मैदान में आ गये। छात्र पहले से ही उपस्थित थे। अभिमन्यु ने मॉनीटरों तथा प्रोक्टर का परिचय प्राचार्य से कराया। प्राचार्य ने सबसे पहले मिट्टी उठाकर डाली। काम शुरू हुआ छात्रों ने जमीन को समतल करना शुरू कर कंकड़ पत्थर बुहारते दो घण्टों के श्रम से छात्र थक गये। आगे का काम कल करने का संकल्प ले सभी लौट पड़े।
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दूसरे दिन विद्यालय में अध्यापक कक्ष में इस घटना की चर्चा थी।
एन्टोनी बोले- ‘‘ व्हाट। श्रमदान इस युग में। अभिमन्यु बाबू का दिमाग फिर गया है नया नया जोश है। ''
‘‘ आप ठीक कहते है। '' गणित के गुप्ताजी बोल पड़े। ‘‘ लड़के पढ़ते तो है नहीं ये फालतू का झंझट क्या पालेंगे। ''
‘‘ मगर यदि कोई अच्छा काम शुरू हो रहा है तो शुरू में ही उस काम की बुराई क्यों करनी चाहिए '' मिसेज प्रतिभा बोल पड़ी।
‘‘ आप नहीं समझेंगी। नया नया लगा है। अगर इस तरह के लटके झटके नहीं दिखायेगा तो प्रभावशाली कैसे सिद्ध होगा। '' चन्द्रमोहन जी ने अपना दर्शन दिया।
आप लोग कुछ भी कहें जी, दुनिया में पृथ्वी दिवस या पर्यावरण दिवस पर इतना काम होने लगा है तो यहाँ अवश्य ही कुछ होगा। मिसेज प्रतिभा ने कहा।
‘‘ हां हां भाई ठीक है। सब हो रहा है होने दो। मगर हमें बक्शो। '' एन्टोनी बोल पड़े।
‘‘ हां ये ठीक है। '' चन्द्रमोहन बोले।
इसी समय अभिमन्यु बाबू ने स्टाफ रूम में प्रवेश किया। उसे देखते ही सब चुप हो गये।
अभिमन्यु बाबू के हाथ चाक से भरे थे। उन्होंने हाथ धोये। पानी पिया। और एक कुर्सी पर आराम से बैठकर बोले-
‘‘ मुझे देखते ही आप लोग चुप क्यों हो गये। ''
‘‘ कुछ नहीं हम आपके पेड़ लगाने की योजना की चर्चा कर रहे थे। '' मिसेज प्रतिभा ने बातचीत का सिलसिला फिर जोड़ा।
‘‘ हां यह तो एक आवश्यकता है। कल्पना कीजिये यदि पृथ्वी ही नहीं होगी तो हम सब कहां होंगे ओर जीवन का क्या होगा। ''
‘‘ लेकिन ये श्रमदान․․․․․․․․․․। '' एन्टोनी बोल।
‘‘ वो तो प्रारम्भिक स्थिति है जब काम दिखने लगेगा तो जिला प्रशासन भी मदद करेगा और फिर आप सभी भी तो सहयोग करेंगे। शुरू में ही सहायता मांगना ठीक नहीं है। ''
‘‘ मुझे तो माफ करना भाई। '' एन्टोनी उठकर चले गये।
‘‘ अभिमन्यु बाबू आपकी बात और काम दोनो में दम है। आप लगे रहिये। धीरे धीरे लोग आपके साथ हो जायेंगे, और कारवाँ बनता जायेगा। '' मिसेज प्रतिभा ने उसका हौसला बढ़ाया।
घण्टी बजी। सभी अध्यापक अपनी अपनी कक्षा की ओर बढ़ गये। अभिमन्यु का कालांश खाली था।
अभिमन्यु के कदम स्वतः पुस्तकालय की ओर बढ़ .गये। उसने देखा पुस्तकालय समृद्ध है लेकिन पढ़ने वालों का अभाव था। पत्र पत्रिकाएं बिखरी पड़ी थी। पुस्तकों पर धूल थी। और वाचनालय खाली पड़ा था। उसके मन में दुख की एक रेखा खिंच गयी। सरस्वती का मन्दिर और पुस्तकों की यह दशा। वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था।
शाम को छात्रावास में अपने कक्ष में आने पर चौकीदार ने उसे पिताजी का पत्र दिया। संक्षिप्त सा पत्र था। पिताजी अपने गांव को छोड़ने को तैयार नहीं थे। हां कमला को यहां भेजने को तैयार थे। अभिमन्यु ने तय किया कि अकेले रविवार को गांव जाकर कमला को अपने साथ ले आयेगा।
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(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)
bahut khoob !
जवाब देंहटाएंvishya ko umda shabd aur soorat dedi aapne
badhai !