ओम श्री कुर्सीयायः नमः ॥ अथ श्री कुर्सी सूत्रम ॥ 1 ॥ टीका : हे कुर्सी माता मैं आपको नमस्कार करता हूं, अब मैं कर्सी सूत्र का श्री गण...
ओम श्री कुर्सीयायः नमः ॥
अथ श्री कुर्सी सूत्रम ॥1॥
टीका : हे कुर्सी माता मैं आपको नमस्कार करता हूं, अब मैं कर्सी सूत्र का श्री गणेश करता हूं ।
शंका : कुर्सी शब्द स्त्रीलिंग है फिर भी ‘‘श्री'' लगाने का औचित्य स्पष्ट करें ।
निवारण : वत्स कुर्सी स्त्री, पुरूषों, आबालवृद्धों को समान रूप से प्रिय है । अतः श्री ही उपयुक्त हैं, हां तुम चाहो तो सुश्री लगाकर कुर्सी का महत्व और बढ़ा सकते हो ।
कुर्सी चरित्रम् नेतास्य भाग्यम् ।
देवों न जाने कुतो मनुष्यम् ॥2॥
टीका : सुश्री कुर्सी का चरित्र और नेता रूपी जन्तु का भाग्य तो देवता भी नहीं जानं सकते । मनुष्य क्या जानेगा ।
शंका : महाराज इस गूढ़े श्लोक का अर्थ विस्तार से बताइयें ।
निवारण : बालक ! सद्यः राजनीति पर दृष्टिपात करोः और नारायण नारायण भजो, सब कुछ तुम्हारी बुद्धि मेंं समा जावेगा ।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव ॥3॥
टीका : कुर्सी ही मेरी माता और पिता है, इस संसार में इसके अलावा ओर कुछ भी मेरा नही है, अतः इसे पाने के लिये सामदाम दण्ड भेद सब कुछ सही है जो इस सत्य को स्वीकार नहीं करेंगे वे कष्ट के भागी होंगे ।
कुर्सी क्षेत्रे दिल्ली क्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
नेता-नेताई न किमकूर्वन्ते ॥4॥
टीका : कुर्सी का क्षेत्र दिल्ली है ऐसा शास्त्रों में लिखा है ।
नेता नेताईन वहां पर क्या कर रहे हैं ?
निवारण : हर नेता को अर्जुन की तरह केवल कुर्सी दिखाई दे रही है, और इस कुर्सी के हेतु वह लड़मर रहा है, घिघिया रहा है । छुरा भोंक रहा है और सभी सम्भव कार्य कर रहा है ।
कुर्से त्वमधिक धन्या नेतारपि धन्यों भवतारकोअपि ।
मज्जति चुनाव समुद्रे तब कुच कलशावलम्ब कुरुतें ॥5।।
टीका : हे कुर्सी ! नेता दूसरों को तो भवसागर पार करा देते हैं, परन्तु जब वह स्वयं चुनाव रूपी काम के समुन्द्र में डूबने लगते हैं तब आपके कुच-कलशों (हत्थों) को पकड़कर ही पार उतार पाते हैं ।
शंका : अगर कुर्सी बिना हत्थों वाली हो तो क्या होता है ?
निवारण : ऐसी स्थिति में कुर्सी की टाँगें या पूंछ पकड़कर भी भवसागर को पार करने का विधान है ।
सर्वेरक्षका : कुर्सी ।
कुर्सी रक्षका नेता ॥6॥
टीका : सभी की रक्षा कुर्सी करती है, और कुर्सी की रक्षा नेता करता है ।
शंका : नेता कुर्सी की रक्षा कैसे करता है ।
निवारण : लगता है आजकल अखबार नहीं पढ़ते, नेता कुर्सियों के पीछे ऐसे ही पड़े हैं, जैसे, कुवारियों के पीछे लड़के पड़े रहते हैं । छेड़ों तो दुख ना छेड़ों तो दुख ।
उत्साहवन्ता पुरूषाःप्राप्तः कुर्सी ॥7॥
टीका : उत्साही और परिश्रमी पुरुष कुर्सी को प्राप्त करते हैं ।
शंका : क्या कुर्सी को बिना पाये काम नहीं चलता हैं ।
निवारण : सामान्यजन का काम तो चल जाता है लेकिन जानवरों के बाड़ में सभी कुर्सी चाहते हैं, अतः उनका कार्य नहीं चल पाता है । जाओ और जार्ज आरवेल का उपन्यास पढ़ो ।
कर्मण्येवाधिकारस्ते,
कुर्सी फलेषु कदाचनः ॥8॥
टीका : कर्म किये जाओ, कभी तो कुर्सी रूपी फल की प्राप्ति होगी ।
शंका : लेकिन यह श्लोक तो कुष्ण ने गीता में कहा है ।
निवारण : तो क्या हुआ वत्स, उस समय भी तो लड़ाई कुर्सी के लिये ही थी ।
कुर्सीनाम मालिक
डिक्टेटर भवन्ते ॥9॥
टीका : कुर्सी का मालिक डिक्टेटर बन जाता है ।
शंका : कोई उदाहरण दीजिये ।
निवारण : इमर्जेन्सी का इतिहास देखो बालक ! वहां हर ऐरा-गैरा नत्थु खैरा अपने आपको डिक्टेटर से कम नहीं समझता था, और कुछ तो वास्तव में ही बन ही गये ।
उच्चासने, उच्चेपद, उच्चयेवन गर्विते,
उच्चाधिकार संयुक्तें, कुर्से नमोस्तुते ॥10॥
टीका : है ऊंचे आसन, बड़े पद और उच्च यौवन तथा अधिकारों से सम्पन्न कुर्सी तुझे नमस्कार है ।
शंका : कुर्सी का यौवन कैसा होता है ।
निवारण : कुर्सी चिरयौवना होती है मूर्ख, कुर्सी कभी बूढ़ी नहीं होती । हां कभी-कभी भारत सरकार की तरह लंगड़ा कर चलने लग जाती है ।
प्रतिशंका : लंगड़ी कुर्सी कब स्थिर होती है ।
प्रतिनिवारण जब इमरजेन्सी लगती है ।
या कुर्सी सर्व भूतेषु लज्जारुपेण संस्थिना ।
नमस्तस्ये, नमस्तस्ये, नमस्तस्ये नमो नमः ॥11॥
टीका : कुर्सी रूपी देवी सभी जगह व्याप्त है और इसे बार-बार नमस्कार है ।
शंका : यह श्लोक तो दुर्गापाठ का है ।
निवारण : तो क्या हुआ अब यह नव कुर्सी पाठ में भी सम्मिलित है ।
यो भजन्ते मानवा :
ते प्राप्तः कुर्सीर् ॥12॥
टीका : जो इस सूत्र का पारायण करेंगे वे कुर्सी को आसानी से प्राप्त करेंगे ।
शंका : क्या कुर्सी आवश्यक है ।
निवारण : हां रहीम ने कहा है, कुर्सी गये ना उबरे नेता, मानस चून ।
प्रतिशंका : क्या नेता मानस में नहीं आते ।
प्रतिनिवारणः यह शंका व्यर्थ है, स्वयं समझो ।
सुफलम् प्राप्नुवन्ति प्रातः भजन्ति ये ।
रतिरम्भा भवेद दासी, लक्ष्मीस्तु सहगामिनी ॥13॥
टीका : जो व्यक्ति इस सूत्र का पारायण प्रातः उठकर करेंगे उसे रतिरम्भा तथा लक्ष्मी जैसी सहगामिनियां अभिसार हेतु कुर्सी देवी प्रदान करेंगी ।
॥ इति श्री कुर्सी सूत्रम्॥
टीका : अब मैं कुर्सी-सूत्र का समापन करता हूँ ।
0 0 0
यशवन्त कोठारी
86, लक्ष्मीनगर ब्रह्मपुरी बाहर
जयपुर 302002
फोन 2670596
नमस्त्स्यै,नमस्त्स्यै,नमस्त्स्यै नमो नमः॥
जवाब देंहटाएंवाह यशवंत जी आभार रवि भैया।