‘चि म्बोराजो से तीन सौ मील से ज्यादा दूर, कोटोपाक्सी से सौ मील दूर इक्वाडोर एंडीज के विशाल वीराने में, मनुष्यों की दुनिया से कटी हुई एक रहस्...
‘चिम्बोराजो से तीन सौ मील से ज्यादा दूर, कोटोपाक्सी से सौ मील दूर इक्वाडोर एंडीज के विशाल वीराने में, मनुष्यों की दुनिया से कटी हुई एक रहस्यमय पहाड़ी घाटी में अंधों का प्रदेश है.’ इस घाटी प्रदेश में जितने लोग हैं सब अंधे हैं. बच्चे, बूढे जवान सबके सब. यदि इस प्रदेश को हम पृथ्वी के नक्शे पर खोजने निकले तो खोजते रह जाएँगे. परंतु यह एक साहित्यिक वास्तविकता है. एक साहित्यकार की कल्पना का प्रदेश है. एच जी वेल्स ने अपनी कहानी ‘द कंट्री ऑफ द ब्लाइंड’ के लिए इस प्रदेश की सृष्ठि की है. इस कहानी की शुरुआत इसी वाक्य से होती है. इस कहानी के सारे क्रिया कलाप इसी अनोखी दुनिया में चलते हैं.
मनुष्य एक असंतुष्ट प्राणी है. उसका मन कभी तृप्त नहीं होता है सदा और और की माँग करता रहता है. एक माँग की पूर्ति हो नहीं पाती है कि दिल और माँगने लगता है. यह बात भी सही है कि जिस दिन वह संतुष्ट हो जाएगा उसी क्षण सारा विकास, सारी प्रगति रुक जाएगी. सारे अन्वेषण, सारी शोधें, सारी खोजें इसी असंतोष का नतीजा हैं. अगर ऐसा न होता तो नए नए दर्शनों का निर्माण न होता, वैज्ञानिक उपलब्धियाँ न होतीं, संस्कृति सभ्यता न पनपती. कभी खुशी के लिए, कभी गम में, , कभी हताशा-निराशा में, कभी क्रोध से भर कर मनुष्य इस दुनिया से अलग एक और नई दुनिया बसाना चाहता है. प्राचीन काल से आज तक हर दार्शनिक एक नए समाज की रूपरेखा प्रस्तुत करता आया है चाहे वह प्लेटो हो अथवा कार्ल मार्क्स. आगे भविष्य में भी यह सिलसिला जारी रहेगा. सारा साहित्य मनुष्य की इस अतृप्ति का हासिल है. उन्हीं शाश्वत विषयों प्रेम, भय, काम, रति, मृत्यु, जिजीविषा, प्रतिकार पर युगों युगों से कहानियाँ न लिखी जाती रही होतीं. आदमी के पास जो है उससे उसकी जरूरतें कभी पूरी नहीं होती है उस पर सदा कुछ नया करने की धुन सवार रहती है. कुछ लोग इस पूरी दुनिया से खुश नहीं हैं और आगे बढ़कर एक अलग, एक निराली दुनिया बसाना चाहते हैं. नया करने की ललक ने स्वर्ग की कल्पना को साकार किया कुछ लोग वहीं नहीं रुके उन्होंने नरक बना डाला. अधिकाँश धर्म एक नरक की कल्पना पर रुक गए हिन्दू धर्म एक नरक से संतुष्ट न रह कर असंख्य नरक की बात करता है. कोई मानता है कि स्वर्ग ऊ पर है और मरने के बाद ही प्राप्त होगा और नरक पृथ्वी के नीचे पाताल में है और बुरा कर्म करने वालों को उसमें जलना सड़ना होगा. कुछ लोग मानते हैं कि स्वर्ग नरक यहीं है उसको कहीं और कभी और जाकर खोजने की आवश्यकता नहीं है. त्रिशंकु सशरीर स्वर्ग जाना चाहता था यह सम्भव नहीं था. एक समय उसने अकाल के दौरान विश्वामित्र की सहायता की थी इसलिए विश्वामित्र ने त्रिशंकु के लिए अलग स्वर्ग की ही रचना कर दी.
साहित्यकार एक ऐसा ही प्राणी है जिसका मन इस समाज, इस दुनिया से खुश नहीं है वह अपनी रचनाओं में एक दूसरी दुनिया बसाना चाहता है. साहित्यकार की अपना जहाँ बसानी की इच्छा नई नहीं है न ही यह बात किसी खास स्थान के साहित्यकार के लिए लागू होती है. यह स्थान से बँधी नहीं है. प्राचीन, नवीन, पूरब, पश्चिम सब साहित्य में काल्पनिक स्थानों की झाँकी मिलती है. पहले रचनाकार अपनी कल्पना से एक स्थान का सृजन करते है फिर उस स्थान को इतना महत्व प्राप्त हो जाता है, उस पर लोग इस कदर विश्वास करने लगते हैं कि उसको वास्तविक स्थान से जोड़ कर देखने का प्रयास प्रारम्भ हो जाता है उसकी भौगोलिक, ऐतिहासिक खोज शुरु हो जाती है. ‘एटलांटिस’ जैसे स्थान की खोज में ऊ नेस्को के वैज्ञानिकों और पुरातत्वेत्ताओं की टीम भिड़ी हुई है.
मलयालम लेखक ओ. वी. विजयन ने अपना इतिहास लिखने के लिए ‘खसाक’ का सृजन किया. भारतीय इंग्लिश लेखक आर. के. नारायण ने ‘मालगुडी’ रच डाला. आज बच्चा-बच्चा मालगुडी से परिचित है. ‘अल्फिस्टिया’ एक ऐसा स्थान है जिसका अस्तित्व मात्र इंटरनेट, मात्र वेब पर है. बीटल्स ने अपना ‘पेपरलैंड’ बसा लिया तो काफ्का ने अपना ‘कैसल’ बना लिया. जे. आर. आर. टोलकिएन को आधुनिक फंतासी का जनक माना जाता है. उन्होंने छोटा मोटा शहर या कोई प्रदेश न बना कर ‘मिडिल अर्थ’ (मध्य दुनिया ) ही बसा दिया. मार्शेल प्राउस्ट का ‘कॉम्ब्रे’, और स्टेफन लीकॉक का ‘मारीपोसा’ ऐसे ही काल्पनिक स्थान हैं.
तार्किक, गणितज्ञ, इंग्लिश लेखक लुई कैरोल ने १८६५ में एलिस के साथ साथ पाठकों को ‘वंडरलैंड’ में खूब घुमाया. बहुत कम लोग जानते हैं कि इस लेखक का वास्तविक नाम चार्ल्स लुटविग डॉगसन था. इस वंडरलैंड को कार्टूनिस्ट सर टेनियल जॉन ने अपने रेखांकन के द्वारा अमर कर दिया. अमेरिकन लेखक फ्रैंक बाउम क्यों पीछे रहते उन्होंने विजर्ड ऑफ ओज नामक १४ किताबें लिख डालीं किताबों की पाठकों के बीच लोकप्रियता का नतीजा यह हुआ कि उनके बाद कई और लेखक इसी नाम की किताबें लिखते रहे और लोगों को एक अनोखी दुनिया की सैर कराते रहे. मूल किताब १९०० में लिखी गई थी और इस में वर्णित ‘एमेराल्ड सिटी’ (पन्ना या हरित प्रदेश) को १९३९ में एक म्यूजिकल फिल्म बना कर परदे पर उतारा गया जिसे आज भी एक क्लासिक का दर्जा प्राप्त है. इस फिल्म ने जूडी गारलैंड को सिने जगत में सदा के लिए स्थापित कर दिया. दूसरे ओर एक भयंकर स्थान ‘जुरासिक पार्क’ का सृजन किया माइकेल क्रिचटोन ने जुरासिक पार्क नामक उपन्यास में. स्टीवन स्पीयलबर्ग ने इसी उपन्यास के आधार पर जुरासिक पार्क और लॉस्ट वर्ल्ड नाम से दो बहुचर्चित फिल्में बना दी, जिनमें रिचर्ड एटेनबरो काफी दिनों के बाद पुनः अभिनय करते दीखे. बच्चों के लिए लिखने वाली और आज की सर्वाधिक धनी लेखिका जे. के. रॉउलिंग के हैरी पोर्टर की निराली दुनिया बडों को भी खूब भाई. ‘हॉगवार्ट’ की अनोखी, जादूई दुनिया की रिकॉर्ड तोड बिक्री ने लेखिका को क्वीन एलीजाबेथ से भी ज्यादा धनी बना दिया. द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात कागज की कमी के फलस्वरूप इंग्लैंड में किताबों का उत्पादन प्रभावित हुआ था. इस मन्दी के दौर में एनिड ब्लाइटन कुछ गिने चुने लेखकों में से थीं जिनकी किताबों का उत्पादन न केवल जारी रहा वरन बढा. उन्होंने १९४९ से ‘नोडी’ श्रृंखला निकाली. अमेरिका में भले ही वे अनजानी हों परंतु उनके नोडी के ‘ट्वाय टाउन’ की सैर दुनिया के प्रायः सब देशों के बच्चे और बड़े बूढे शौक से करते हैं. मेरे संग नोडी से जुड़ा एक वाकया है. बहुत दिनों तक मैं नोडी शब्द को न मालूम क्यों नोबड़ी कहती और पढ़ती रही.
मालगुडी, गुलिवर, वंडरलैंड, एमराल्ड सिटी, हॉगवार्ट, टॉय टाउन जैसे स्थानों की रचना बच्चों के लिए की गई, वैसे बड़े इनका आनन्द कम नहीं उठाते हैं. परंतु कुछ लेखकों ने ऐसी दुनिया बसाई जिस जहाँ में केवल बड़ों की रसाई हो सकती है. ये जहाँ ज्यादा जटिल हैं. ज्यादा उलझनों से भरे हुए हैं. इनके निर्माण के पीछे एक भिन्न दर्शन काम करता है. ये जहाँ वयस्कों की ललक, उनकी लालसा का परिणाम हैं. मजा यह है कि इन काल्पनिक स्थानों में लोग विश्वास करते हैं और इनकी भौतिक खोज में आकाश पाताल एक किए रहते हैं.
इलियड और ओडिसी के रचयिता होमर के व्यक्तित्व की वास्तविकता को लेकर विवाद होता रहे पर उसके रचे ‘आइया’ को नकारना कठिन है. इस अंधे यूनानी कवि ने अपने बाद आने वाले बहुतेरे रचनाकारों को प्रभावित किया. दाँते, जॉन मिल्टन, मिग्युअल ड सर्वांटिस, एलैक्जेंडर पोप, जॉर्ज चैपमैन, रॉबर्ट फिटजराल्ड और जेम्स जॉयस सब होमर के ऋ णी हैं. इंग्लिश काव्य में रोमांटिक काव्य के प्रणेताओं में से एक सैमुअल टेलर कॉलरिज की प्रसिद्ध कविता कुबलाई खान के काल्पनिक स्थान जानाडू को कौन भूल सकता है? ऐसा ही एक काल्पनिक स्थान है ‘शांग्री ला’. कुनलुम पर्वतों के पश्चिम में स्थित यह एक रहस्यमयी आध्यात्मिक घाटी है जिसका निर्देशन एक लामासारी (बौद्ध विहार) से होता है. यह स्थाई यूटोपिया का पर्याय बन गया है जिस धरा पर प्रसन्नता शाश्वत है और जो बाह्य जगत से पूर्णरूपेण कटा हुआ है. १९३३ में ब्रिटिश लेखक जेम्स हिल्टन ने अपने उपन्यास ‘लोस्ट होराइजन‘ में शांग्री ला की कल्पना तिब्बत बौद्ध धर्म की परम्परा में वर्णित रहस्यमय शहर शाम्भाला के आधार पर की है. विलियम फॉक्नर का रहस्यमय ‘योक्नापटाफा’ मिसिसिपी के लाफेट काउंटी पर आधारित है जिसमें उन्होंने अपने पूर्वजों के साथ-साथ अमेरिकन आदिवासियों, अश्वेतों और गरीब श्वेतों तथा अन्य कई लोगों को बसाया है.
‘एल डोराडो’ एक ऐसा ही स्थान है जिसकी खोज में न मालूम कितने लोग भटके और भविष्य में कितने और लोग भटकेंगे. एल डोराडो का अर्थ स्पैनिश भाषा में स्वर्णिम होता है. दक्षिण अमेरिका में सोना आध्यात्मिक महत्व रखता है यह जीवन शक्ति और सूर्य का प्रतीक है. सोना प्राप्त करना मनुष्य की एक प्रारम्भिक ख्वाइश रही है. सारे रसायन शास्त्र की जड़ में सोना प्राप्ति की ख्वाइश ही रही है. यदि भारत सोने की चिडया न कहलाता तो भला इतने आक्रमणकारियों को आमंत्रित करता? एल डोराडो के सोने की खोज में अकेले और समूह में बहुत सारे लोग न मालूम कितनी कठिनाइयाँ उठाकर कुछ लोग हाथ मलते हुए वापस लौटे और कुछ कभी न लौट सके. फ्रांसिस्को ड ओरेलाना और वाल्टर राली ऐसे ही खोजी थे जिन्होंने एल डोराडो से सोना लने के लिए अनेक जोखिम उठए और अंत में जान गँवाई. वॉल्टर राली ने १५९५ में त्रिनीदाद पर चढाई की थी और जिनको भी वह मार सकता था उन सारे स्पेंनवासियों को उसने मार डाला था. वह एल डोराडो की खोज में ओरीनोको तक गया. उसे कुछ नहीं मिला लेकिन जब वह इंग्लैंड वापस गया तो उसने सबसे कहा कि उसे खजाना मिला गया है. उसके पास लोगों को दिखाने के लिए एक टुकड़ा सोना और थोड़ी सी बालू थी. उसने लोगों से कहा कि उसने ओरीनोको के तट पर एक चट्टान की चोटी से सोना खोद निकाला है. परंतु उसने जिस बालू को परीक्षण के लिए रॉयल मिंट को दिया था वह बेकार थी
उसमें सोने का नामोनिशान न था. और बाद में कई दूसरे लोगों ने बताया कि उसने उत्तरी अमेरिका से पहले ही सोना खरीद कर रख लिया था.
जब सब ओर से निराशा हाथ लगी तो तब उसने अपनी बात सिद्ध करने के लिए एक किताब लिखी जिस पर चार सदी तक लोग विश्वास करते रहे कि राली को सोना अवश्य मिला था. हालांकि उसकी किताब पढ़ना काफी कठिन है परंतु उस किताब का जादू जो सदियों तक लोगों के सिर चढ़ कर बोलता रहा उसके लम्बे शीर्षक में है. ‘द डिस्कवरी ऑफ द लार्ज, रिच अन्द ब्यूटीफुल एम्पायर ऑफ गुयाना, विथ अ रिलेशन ऑफ द ग्रेट एंड गोल्डन सिटी ऑफ मनोआ (विच स स्पेनियार्ड्स कॉल एल डोराडो) एंड द प्रोविंसेस ऑफ एमीरिया, एरोमाइया एंड अदर कंट्रीज विथ देयर रिवर्स एडज्वाइनिंग’. शीर्षक ही तीन लाइन में चलता है. सुनने में वास्तविक लगता है जबकि वह मुश्किल से मुख्य ओरीनोको तक ही गया था. और जैसा कि बहुत आत्मविश्वास वालों के संग होता है राली अपनी ही कल्पना के मकड़जाल में फँस गया. अधिकारियों ने इक्कीस साल बाद बूढे और बीमार राली को लन्दन की जेल से निकाल कर वह सोना लाने के लिए गुयाना भेजा गया जो उसके अनुसार उसने पाया था. इस चक्कर में उसका बेटा मारा गया. पिता ने अपनी प्रतिष्ठा, अपने झूठ, अपने दम्भ के लिए अपने बेटे को मौत के मुँह में ढकेल दिया. और तब राली के पास दुःख के अलावा कुछ न बचा. इतना ही नहीं उसे फाँसी के लिए लन्दन वापस आना पड़ा, जहाँ उसे फाँसी दे दी गई. इस तरह एल डोराडो के चक्कर में पड़ कर उसने अपनी और अपने बेटे की जान गँवाई. वाल्टर राली ने अपनी साहसिक यात्रा को एक रोमांटिक यात्रा वृतांत का रूप दे दिया. उनकी वर्णित परिमा नहर पर स्थित मानोआ टापू इतना भरोसे मन्द था कि दो सदी तक परिमा नहर नक्शे में भी दिखाई जाती रही. आज अनेक समृद्ध स्थान साहित्य में एल डोराडो के नाम से वर्णित हैं. इस पर गीत संगीत और फिल्म भी बनती रही हैं.
लेखक अपनी कल्पना से यथार्थ खडा करता है और यथार्थ में अपनी कल्पना का रंग भरता है. कई लेखकों ने अपनी कल्पना के बल पर नए देशों नए स्थानों का निर्माण किया है और ये स्थान साहित्य में अमर हो गए हैं. मार्केस ने एक ऐसे ही काल्पनिक स्थान ‘मकोंडो’ की रचना की है. मार्केस का वन हंड्रेड इयर्स पढ़ना अपने आप में एक जादुई अनुभव है. यह किताब एक उपन्यास मात्र नहीं है इसमें प्रवेश करते ही पाठक एक विचित्र लोक में पहुँच जाता है. यह स्थान एक विशाल समृद्ध सम्पदा की खान है यहाँ की संस्कति यहाँ की सामाजिक संरचना सब अनोखी है. जितने भी काल्पनिक स्थानों का निर्माण आज तक हुआ है उनमें से यह स्थान सर्वाधिक रोचक, जटिल और लुभावना है. इसमें एक ओर दैनन्दिन जीवन के सारे सामान्य कार्यकलाप चलते हैं दूसरी ओर असम्भव, अलौकिक, अविश्वसनीय घटनाएँ घटती रहती हैं. यह एक बेशकीमती साहित्यिक विरासत है. मकोंडो में एक परिवार के पीढ़ी दर पीढ़ी के लोगों और उपनिवैशिक रोमांस की झलकियाँ वर्णित हैं. यदि यूटोपिया मार्क्सवादियों को भला लगता है तो मकोंडो का जन जीवन सब तरह के नजरिए के पाठकों को पसन्द आता है क्योंकि सामाजिक संघर्ष के कारण इसे वाम दृष्टिकोण से देखा जा सकता है साथ ही इसे साम्राज्यवादी नजरिए से भी व्याख्याइत किया जा सकता है. परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका से परम्परावादी खुश हो सकते हैं. निराशावादियों के लिए आशा का मसाला इसमें मिलता है तो यहाँ के लोगों का दम्भी व्यवहार सुखभोगियों को सांत्वना प्रदान करता है. यह एक ऐसा स्थान है जो सब मिजाज के लोगों के लिए उपयुक्त है.
क्या कुछ नहीं घटता है मकोंडो में ? यहाँ जितनी निजी जीवन की चिंता है उतनी ही जनजीवन सार्वजनिक जीवन की चिंता नजर आती है. रोजमर्रा के क्रियाकलाप जैसे बच्चों की देखभाल, भाई बहनों के बीच ऊधमधाड़, उछलकूद, स्त्रियों की आपसी कलह, पति पत्नी की चुहल, दाम्पत्य का सुख सब पाठक की आँखों के समक्ष चलचित्र की भाँति चलते रहते हैं. वह उनमें शामिल रहता है, डूबता जाता है. क्या कुछ नहीं होता है मकांडो में जादुई अतियथार्थवाद का सटीक नमूना है यह प्रदेश. यदि वर्षा होती है तो होती चली जाती है, कुछ लोग जहाँ भी जाते हैं उनके सर पर तितलियाँ मंडराती रहती हैं, कुछ लोग कभी नहीं मरते हैं उनकी आयु का पता पाना मुश्किल है वह न घटती है न बढ़ती है, आकाश से पुष्प वर्षा होती है. सूखा पड़ता है बाढ़ आती है जो भी होता है अति होता है. सरकारी दमन का दृश्य आज के दृश्य से भिन्न नहीं है. खेतिहर मजदूर पर कहर टूटना मकोंडो की नियति है. गरीबी वहाँ भी अपने पैर जमाए हुए है लेकिन जीवन की मस्ती को पछाड़ नहीं पाती है. पारिवारिक जीवन, यौनेच्छा का विस्फोट, विद्रोह, रीति रिवाज, संस्कार, युद्ध, दमन, शर्णार्थियों की कतारें, भगोड़े तमाम बातें घटित होती हैं यहाँ. सबसे ज्यादा ध्यानाकर्षित करने वाली बात है मकोंडो में स्त्रियों का प्रभुत्व होना. मार्केस के जीवन में स्त्रियों की प्रमुखता और महत्व को वे स्वयं स्वीकार करते हैं फिर उनके बसाए प्रदेश में स्त्रियों की भूमिका प्रमुख क्यों न हो? इन सारे सूक्ष्म विवरण के लिए मार्केस ने खूब अध्ययन मनन और शोध किया है. इसके लिए मार्केस ने रसायन तंत्र, विष-औषध, बीमारियों, पाकशास्त्र, घरेलू दवाओं, कृषि शास्त्र खासकर केले की खेती, यौन विज्ञान का गम्भीर अध्ययन किया है. असल में मकोंडो महान अमेरिकी उपन्यास की क्रीड़ा भूमि है, समस्त मानव सभ्यता के उत्थान पतन की कहानी यहाँ घटित होती है. यह मानवता के उत्थान पतन की कहानी है. मकोंडो के निवासी धीरे-धीरे धनी और बुद्धिमान होते जाते हैं लेकिन इसके साथ ही वे अपनी जड़ों को, अपनी बेहतर परम्परा को खोते जाते हैं. एक समय आता है जब वे पतन की राह पर चलने लगते हैं.
माना जाता है कि यह मार्केस के बचपन के स्थान अराकटाका के नमूने पर निर्मित है. मकांडो कोलम्बिया के उत्तर के जंगल में स्थित है और यहाँ केले की खेती होती है. बांटु भाषा में मकांडो का अर्थ केला होता है. मकांडो नाम पहले-पहल मार्केस की कहानी लीफ स्टोर्म में आता है बाद में यह वन हंड्रेड इयर्स ऑफ सोलीट्यूड तथा अन्य कई कहानियों में आता है. यह नाम इतना प्रसिद्ध हो गया कि अराकटाका के लोग अपने शहर का नाम अराकाटाका मकांडो रखना चाहते थे. अपने उपन्यासों और कहानियों में वे पाठक को इस विचित्र स्थान मकांडो पर ले जाते हैं. जहाँ बहुत सी मायावी, जादुई बातें और घटनाएँ होती हैं यहाँ यथार्थ और स्वप्न, कल्पना सब घुलमिल जाते हैं उन्हें अलग करना कठिन है. इस उड़ान में फंतासी के साथ-साथ पारम्परिक दंत कथाएँ, वास्तविकता ऐसे गूँथी गई हैं कि जहाँ उन्हें स्पर्श किया जा सकता है साथ ही वे पहुँच के बाहर भी हैं. कभी लगता है लेखक रिपोर्टिंग कर रहा है, कभी लगता है वह एक स्वप्निल संसार की सृष्टि कर रहा है.
ऐसी ही एक दुनिया टोनी मारीसन ने रची है बल्कि उन्होंने एक साथ दो दुनिया रची है. एक स्थान मात्र पुरुषों के लिए निश्चित है जबकि दूसरे का सारा संचालन मात्र स्त्रियाँ करती हैं. नोबेल पुरस्कार प्राप्त के बाद १९९८ में मॉरीसन ने पैरडाइज लिखा. यह कहानी ओक्लाहोमा के ‘रूबी’ नामक स्थान काल्पनिक में ३६० जनसंख्या वाले एक छोटे से समुदाय की है. जिसका इतिहास बड़ा जटिल है गुलामी, शिकार, पूर्वाग्रह आदि से भरा हुआ. पूर्व गुलाम स्वयं शिकार में जुटे हैं. यह उन वास्तविक शहरों की कहानी है जहाँ केवल और केवल अश्वेत लोग रहते हैं पिछली सदी के आठवें दशक तक ऐसे शहर अमेरिका में अस्तित्व में थे. शायद आज भी हैं. एक समय का ‘द कॉन्वेंट’ के नाम से जाना जाने वाला लड़कियों का स्कूल अब अत्याचारी पतियों, प्रेमियों तथा सताए गए विगत से भागी हुई स्त्रियों की शरणस्थली है. इस शरणगाह पर नौ पुरुष आक्रमण करते हैं. इसमें मॉरीसन अश्वेत की पृष्ठभूमि, उनकी आपसी लड़ाई, आर्थिक झगड़ों, पूर्वजों की शत्रुता आदि का अन्वेषण करते हुए केवल अश्वेत के नगर ‘रूबी’ और मात्र औरतों के कॉन्वेंट का विश्लेषण करती हैं वे जानना चाहती हैं कि पुरुष क्यों अपने पितृसत्तात्मक स्वर्ग से डायनों को जड़ से समाप्त कर देना चाहते हैं. स्वर्ग कहाँ है और कौन इसका निवासी होता है आदि बातों के उत्तर खोजता यह पूरा उपन्यास इसी विचार के इर्द-गिर्द बुना गया है.
द न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए एक साक्षात्कार में उनका कहना है कि ‘सभी स्वर्गों का वर्णन पुरुष परिक्षेत्र के रूप में होता है स्त्री बिना सुरक्षा के होती है और उसे खतरा तथा हस्तक्षेप करने वाली दखलन्दाजी करने वाली के रूप में जाना जाता है. जब यही स्त्री एक जुट हो कर शक्तिशाली होती हैं तब उस पर आक्रमण होता है.’ उन्होंने यह खूब रिसर्च करके, इतिहास का अध्ययन करके लिखा है. इस कथा में कोई भी पात्र कहानी के अंत तक कोई नहीं मरता है. मॉरीसन मानती हैं कि सारे स्वर्ग सारे यूटोपिया उन लोगों के द्वारा निर्मित होते हैं जो वहाँ रहते नहीं हैं लोग जिन्हें वहाँ प्रवेश की इजाजत नहीं होती है. एकाकीपन अलगाव सदा से यूटोपिया का हिस्सा रहा है. यह मॉरीसन का अपना विशिष्ठ तरीका है स्वर्ग के विचार को जानने समझने का, सुरक्षित स्थान, जहाँ सब कुछ इफरात में है, जहाँ कोई आपको हानि नहीं पहुँचा सकता है, स्वर्ग की खोजबीन करने का. इसे वे अपना तप मानती हैं. पर इन सबके साथ यह स्थान सबसे विलग है सबसे अलग थलग होता है. वे यह भी मानती हैं कि पृथकता में स्वयं को नष्ट करने के बीज भी छुपे होते हैं. वे समय के साथ बदलने से इंकार कर देते हैं. वे सब चीजों को दूर रखना चाहते हैं और इसी कारण स्वर्ग का नाश होता है.
रूबी एक ऐसा स्वर्ग है जिसे प्रवास के लिए केवल अमेरिकन - केवल अफ्रीकन अमेरिकन ही नहीं खोज रहें हैं. जिन्होंने अपना देश, अपना घर छोड़ा है वे दूसरा घर खोज रहे हैं. दूसरे भी यही कर रहे हैं मगर दूसरों ने अपना घर छोड़ा है. अब वे वहाँ नहीं रहना चाहते हैं या वहाँ अब वे रह नहीं पा रहे हैं इसलिए रूबी खोज रहे हैं. अफ्रीकन अमेरिकन के घर खोजने में फर्क है वे ऐसा स्थान खोज रहे हैं जहाँ उनके अपने लोग हों अपनी आदतें अपनी सभ्यता संस्कृति हो जहाँ वे अपने आप में परिपूर्ण हों. इस दृष्टि से उनका स्वर्ग खोजने का उद्देश्य तनिक अलग है. रूबी के बाहर का कॉन्वेंट एक अलग स्वर्ग है. रूबी का पूरा शासन पुरुषों द्वारा चलाया जाता है जबकि कॉन्वेंट का शासन स्त्रियाँ चलाती हैं, पुरुषों द्वारा सताई गई स्त्रियों के द्वारा शासित है. मॉरीसन ने रूबी की पूरी व्यवस्था ओल्ड टेस्टामेंट के आधार पर की है. जो पितृसत्तात्मक है. जहाँ पुरुष अपनी स्त्रियों की सुरक्षा के प्रति बड़े सतर्क हैं. कॉन्वेंट की स्त्रियाँ पुरुषों का साथ नहीं चाहती हैं. यहाँ वे आपस में लड़ती झगड़ती हैं पर उन्हें भय नहीं है कि कोई उनका शिकार करेगा. रूबी में प्रोटेस्टेंट धर्म है जबकि कॉन्वेंट में धर्म संगठन पर आधारित नहीं है वह तकरीबन जादू के कगार पर है. दोनों के मूल्यों में आधारभूत भिन्नता है. यहाँ स्त्रियाँ सातवें दशक की हैं जिन्हें परम्परावादी अश्वेत भयंकर मानते थे. इस उपन्यास का एक पात्र रेवरेंड मैस्नर मॉरीसन के लिए बहुत विशिष्ठ है, बहुत अपना है, क्योंकि वह अपने धर्म के सिद्धांतों, नागरिकों के अधिकारों, नागरिकों के अधिकारों के विलय को लेकर बड़े धर्म संकट में है. वह युवाओं के सब कुछ से कट जाने को लेकर भी बड़ा परेशान है. वह काफी कुछ अन्ना केरेनीना के लेव की तरह है नैतिकता से उलझता हुआ. रेवरेंड मैस्नर बहस के लिए तैयार है. वह बच्चों की बात सुनने को राजी है. वाशिंगटन पोस्ट में १९९८ में मॉरीसन ने कहा, ‘‘केवल हम (मनुष्य) स्वर्ग की कल्पना कर सकते हैं, अतः चलो इसकी सटीक कल्पना करें, यह केवल मेरा तरीका, मेरा स्वामी, मेरी सीमाएँ, मेरे मूल्य, और आपको, आपको, आपको दूर रखना नहीं है. केवल हमीं यह कर सकते हैं. अतः इसके बारे में सोचें ... हाँ, स्वर्ग का अवसर बहुत क्षीण है. तो क्या?’’
पैरडाइज में दिखाए गए स्थल कुछ मायनों में बहुत खूबसूरत हैं और कुछ मायनों में बहुत खतरनाक. पैराडाइज की कथावस्तु १९७० में ओक्लाहोमा में काले लोगों के समूह द्वारा बहुत सारी अपनी औरतों को अपने सम्मान को बचाने के लिए मार देने की घटना पर आधारित है. वे सोचते थे कि ये स्त्रियाँ बुरी हैं और इसका असर उनकी नैतिकता पर पड़ता है. यह एक भीतर तक हिला देने वाली मार्मिक कथा है. निसन्देह मॉरीसन की रचनाओं में यह एक विशिष्ठ स्थान रखती है.
इंग्लिश राजनीतिज्ञ, कानूनविद, आदर्शवादी धार्मिक तथा लेखक थॉमस मूर अपने समय में एक ख्याति प्राप्त व्यक्ति था. १५२९ से १५३२ तक वह लॉर्ड चांसलर था. उसने एक काल्पनिक राज्य स्थापित किया जिसे उसने ‘यूटोपिया’ की संज्ञा दी. इस काल्पनिक राज्य की कीमत उसे अपनी जिन्दगी से चुकानी पड़ी. यह एक ऐसा राज्य है जहाँ किसी एक व्यक्ति की सत्ता नहीं है. १५१६ में उसने किताब यूटोपिया लिख कर इंग्लैंड के राजा हेनरी अष्टम को नकार दिया. सम्राट जो इंग्लैंड के चर्च का प्रमुख होता था उसे थॉमस मूर ने नकार दिया. उस पर राजद्रोह का मुकदमा चला और अंत में उसे फाँसी दे दी गई. उसकी मृत्यु के सात सौ वर्ष बाद कैथोलिक चर्च ने उसे संत की उपाधि प्रदान की और आज वह पूजा जाता है. यूटोपिया साहित्य का एक नया मुहावरा बन गया. एक ऐसा आदर्श और पूर्ण समाज जिसकी कल्पना तो की जा सकती है परंतु जिसका होना कठिन ही नहीं असम्भव है. इसके नाम में ही यह शामिल है.
अपने इस आदर्श राज्य में मूर एक यात्री को लाता है इस यात्री का नाम आर्कएंजेल की तर्ज पर राफेल हिथलोडे है. आर्कएंजेल सत्य का पर्याय है और हिथलोडे का अर्थ यूनानी भाषा में ‘बकवास करने वाला’ होता है. यूटोपिया शब्द को यदि अलग अलग हिस्सों तो यूनानी भाषा में उसका एक अर्थ ‘कोई स्थान नहीं’ तथा दूसरा अर्थ ‘अच्छा स्थान’ होता है. यह यात्री राफेल अपने लिए और गिल्स के लिए यूटोपिया की राजनीतिक व्यवस्था का वर्णन करता है. यहाँ का सामाजिक जीवन सटीक, उत्तम, तर्कपूर्ण और पूर्णरूपेण व्यवस्थित है. यूटोपिया में किसी के पास निजी सम्पत्ति नहीं है और धार्मिक सहिष्णुता का पालन होता है. किताब प्रमुख रूप से अनुशासन और व्यवस्था की बात करती है.
इसमें वर्णित समाज सर्वसत्तावाद का उदाहरण है आज के स्वतंत्रता के आदर्शों से सर्वथा भिन्न. इस दुनिया में बिना अधिकारियों की अनुमति के जन नीतियों पर बात नहीं की जा सकती है ऐसा करने पर मृत्यु दंड का प्रावधान है. निजी सम्पत्ति का प्रावधान न होने के कारण कार्ल मार्क्स के सिद्धान की तुलना इससे की जाती है. मार्क्स ईश्वर में विश्वास नहीं रखते थे जबकि यूटोपिया में धर्म है. यह धार्मिक सहनशीलता की बात करता है परंतु अनीश्वरवादी के लिए इस दुनिया में कोई स्थान नही है. मूर का सिद्धांत है कि यदि मनुष्य ईश्वर में आस्था नहीं रखता है या मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास नहीं करता है तो उस पर कदापि विश्वास नहीं किया जा सकता है. आज के समाजवादी यूटोपिया के प्रशंसक हैं. मूर का समुदाय बाइबिल के समुदाय पर आधारित है. बाद में बहुत सारे लेखकों ने यूटोपिया की अपने अपने साहित्य में नकल की. नाटककार रोबर्ट बोल्ट ने मूर के जीवन पर आधारित ‘अ मैन फॉर आल सीजन’ एक नाटक लिखा जिस पर बाद में इसी नाम से एक सफल फिल्म बनी. जिसे कई पुरस्कार प्राप्त हुए.
मध्य यूरोप में ‘रूरीटानिया’ एक ऐसा काल्पनिक राज्य है जिसमें एक लेखक ने अपनी तीन रचनाओं को स्थापित किया है. जी हाँ एंथॉनी होप ने १८९४ में ‘द प्रिजनर ऑफ जेंडा’, १८९६ में ‘द हार्ट ऑफ प्रिंसेस ओसरा’ तथा १८९८ में ‘रूपर्ट ऑफ हेंटजाऊ’ इसी काल्पनिक स्थान की भूमि पर रचा. बाद में आने वाले कई लेखकों ने इसी जमीन पर इन उपन्यासों के अगले क्रमिक भाग रचे. विज्ञान कथाकार साइमन हॉक्स ने ‘जेंडा वेनडेटा’ तथा जॉन स्पर्लिंग ने ‘आफ्टर जेंडा’ लिखा.
रूरीटानिया यूटोपिया से बिलकुल भिन्न, उसकी विरोधी दुनिया है यहाँ पूर्ण रूप से राजतंत्र है इस देश में जर्मन भाषा भाषी रोमन कैथोलिक लोगों का निवास है जिन पर तानाशाह राजा का शासन है और जनता जहाँ निरंतर पुलिस की निगरानी में रहती है, किसी को भी शक की बिना अपर गिरफ्तार किया जा सकता है. पूरा समाज अमीर और गरीब दो वर्ग में बँटा हुआ है. शर्तिया तौर पर यह रहने के लिए उपयुक्त स्थान नहीं है. लेकिन जब होप की इसी दुनिया को नाटक और फिल्म में प्रस्तुत किया गया तो उसे परि देश के सुन्दर रूप में दिखाया गया.
प्लेटो ने जिस विख्यात ‘एटलांटिस’ की चर्चा अपने डॉयलॉग में कितने युगों पहले की लोग आज भी उसकी खोज में आकाश पाताल एक किए हुए हैं. यूनानी भाषा में एटलांटिस का अर्थ होता है ‘एटलस का टापू’. एथेंस पर आक्रमण करते समय पराजित एटलांटिस एक दुर्भाग्यपूर्ण दिन समुद्र में डूब गया. प्लेटो ने अपने राजनीतिक सिद्धांतों के वर्णन के लिए इस टापू का सृजन किया था. प्लेटो का मकसद क्या था इस पर विद्वानों में मतभेद है कुछ का मानना है कि थेरा इरप्शन या फिर ट्रोजन युद्ध की पुरा स्मृति को उसने पुनर्जीवित किया है जबकि कुछ और लोग मानते हैं कि यह प्रेरणा उसने अपने समय की घटनाओं मसलन ३७३ ई पू के हेलिक के नष्ट होने या फिर सिसली के एथेंस पर आक्रमण से ग्रहण की है. बाद के बहुत से लेखक प्लेटो के एटलांटिस से प्रभावित रहे हैं फ्रांसिस बेकन ने ‘न्यू एटलांटिस’ रच डाला. आज भी यह कई फिल्मों , विज्ञान कथाओं और कॉमिक किताबों की प्रेरणा है. यह ऐतिहासिक परंतु उन्नत सभ्यता जो आज खो चुकी है का पर्याय है. बाद के बहुत से लेखक प्लेटो के एटलांटिस से प्रभावित रहे हैं फ्रांसिस बेकन ने ‘न्यू एटलांटिस’ रच डाला. आज भी यह कई फिल्मों, विज्ञान कथाओं और कॉमिक किताबों की प्रेरणा है. यह प्राक ऐतिहासिक परंतु उन्नत सभ्यता जो आज खो चुकी है का पर्याय है.
देश समाज की जर्जर स्थिति, कुरीतियाँ रचनाकारों के लिए बड़ी उर्वरक सिद्ध होती हैं. लेकिन अपने राजा, उसकी शासन प्रणाली, उसके दरबारियों के क्रियाकलापों की खामियों का वर्णन करने के लिए अत्यंत साहस की आवश्यकता होते है, भले ही यह वर्णन छद्म रूप में हास्य व्यंग्य की चासनी में डुबो कर किया जाए. यह साहस किया है जोनाथन स्विफ्ट ने. इसके लिए जिस मेधा की आवश्यकता है वह स्विफ्ट में है. जोनाथन स्विफ्ट ने १७२६ में आज से करीब तीन सौ साल पहले चार छोटे-छोटे ‘गुलिवर प्रदेशों’ का निर्माण कर दिया. वे तत्कालीन समाज की खासकर शासक समाज की कुरीतियों को मृदु फुहार से कठोर फटकार लगाते हैं. वे उस युग की अराजकता, दमन, अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करते हैं , उस युग के लोगों विशेष तौर पर राजसी लोगों के अनैतिक व्यवहार, महत्वाकांक्षा, आडम्बर, भाई भतीजावाद, लिप्सा, षडयंत्र, खोखली बहसों से ऊब कर गुलीवर की यात्राओं पर निकल जाते हैं. वे पाठकों को चार द्वीपों की सैर कराते हैं पहला द्वीप नन्हें नन्हें लिलिपुट लोगों का है, इसके ठीक विपरीत दूसरे द्वीप के निवासी इतने बड़े हैं कि वहाँ आम ऊँचाई के आदमी लिलिपुट नजर आते हैं इस ब्रोवडि न्गनैन के दरबार में गुलिवर का खूब अपमान होता है. उस काल में विज्ञान का उद्भव हो रहा था परंतु स्विफ्ट को विज्ञान में न रूचि थी न विश्वास. इसीलिए जन उनका गुलिवर तीसरे द्वीप, वैज्ञानिकों के द्वीप में पहुँचता है तो इस द्वीप में वैज्ञानिक उड़ते रहते हैं और वे बेकार की बहस में सिर खपाते रहते हैं यहाँ भी गुलिवर की रसाई नहीं होते है तो वह तरह तरह के मनुष्यों से परेशान हो कर चौथे द्वीप में जाता है यह द्वीप बोलने वाले घोड़ों का है जो काफी बुद्धिमान हैं. स्विफ्ट में हास्य के लिए गजब की जीवंतता है. वह अपने समय और समाज की बुराइयों को, अपने मन की कडुआहट को हास्य की चासनी में डुबो कर परोसता है. वैसे इन द्वीपों को रचकर उसे काफी नुकसान उठाना पड़ा. यह रचना उसे बहुत मँहगी पड़ी. उसे राज कोप का भाजक बनना पड़ा, इनकी कीमत चुकाने के लिए अपना मानसिक स्वास्थ्य गँवाना पड़ा. बहुत कम लोग जामते हैं कि स्विफ्ट ने अपनी रचना का नाम ‘ट्रेवल्स इन टू सेवरल रिमोट नेशंस ऑफ द वर्ल्ड ः इन फोर पाट्र्स’ रखा था परंतु पाठकों ने उसे ‘गुलीवर ट्रेवल्स’ नाम से अमर कर दिया. अब प्रकाशक भी इसी नाम का उपयोग करते हैं.
ये कुछ नमूने हैं साहित्यकारों की अपनी दुनिया के. उन लोगों की दुनिया के जो इस समाज, इस दुनिया से राजी नहीं हैं, इस दुनिया को बदल डालना चाहते हैं जो कठिन (असम्भव नहीं ?) है. इन लोगों ने अपना एक अलग एक अनोखा जहाँ बसाया. यह सिलसिला यहीं नहीं थमता है कभी नहीं रुकेगा. अभी न मालूम कितने और रचनाकार अपनी विचित्र दुनिया का सृजन करेंगे. कवि (रचनाकार) को यूँ ही ब्रह्मा के समकक्ष नहीं माना जाता है.
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( विजय शर्मा, १५१, न्यू बाराद्वारी, जमशेद्पुर ८३१००१. ई-मेलः vijshain@yahoo.com
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