ह मारे देश पर आजकल संकट के गहरे, घने, काले, लम्बे बादल मंडरा रहे हैं. इतना बड़ा संकट हमारे देश पर आज से पहले कभी नहीं आया, कम-से-कम मेरी जान...
हमारे देश पर आजकल संकट के गहरे, घने, काले, लम्बे बादल मंडरा रहे हैं. इतना बड़ा संकट हमारे देश पर आज से पहले कभी नहीं आया, कम-से-कम मेरी जानकारी में नहीं. हो सकता है मेरी जानकारी आधी -अधूरी हो. इतिहास में हम बहुत दूर नहीं जा सकते क्योंकि इतिहास लिखना हमारी परम्परा में नहीं है. बीते हुए को लिपिबद्ध करना हमें हमारे आकाओं ने सिखाया और कहते है न गुरु गुड़ ही रहा चेला चीनी हो गया. आज हम इतिहास लिखने में इतने कुशल हो गए हैं कि जब-तब इतिहास को लिखने बैठ जाते हैं. कभी भगवे रंग में रंगने का प्रयास करते हैं. कभी उसे माक्र्सवादी चश्मे से देखने की कोशिश करते हैं. कभी दलित की दृष्टि से देखते हैं. कभी उसमें नारी विमर्श की खोज करते हैं. कभी उसे इस कोण से लिखते हैं, कभी उस कोण से और जब तक लिखना समाप्त कर पाते हैं तब तक हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है और नई कमान सम्भालने वाले उसे नए ढंग से संवारने में लग जाते हैं. आपने देखा ही होगा जब नई चिड़िया घोंसला अपनाती है तो पुराने सब तिनकों को बुहार कर बाहर कर देती है और नए सिरे से घास-फूस ला कर फिर से घोंसला बनाती है.
तो इतिहास लिखने की हमारी परम्परा रही नहीं है, पर जहाँ तक इतिहास की मेरी जानकारी है उसमें देश पर इतने भयंकर संकट की चर्चा कहीं नहीं मिलती है. देश बड़े संकट के दौर से गुजर रहा है. आप और हम जिम्मेदार नागरिक होने के कारण इससे आँखें नहीं मूँद सकते हैं. अगर हमारे यहाँ उपलब्ध इतिहास पर दृष्टि डालें जो महाभारत के रूप में प्राप्त है तो वहाँ भी इस तरह के किन्हीं संकटों का उल्लेख हमें नहीं मिलता है. आगे चलकर कालीदास के साहित्य में भी कहीं इसका वर्णन नहीं है. हमें आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिककाल में भी इसका ऐसा चित्रण नहीं मिलता है. अगर साहित्य समाज का दर्पण है तो हम बेखटके कह सकते हैं कि यदि इस संकट का नजारा इन कालों के साहित्य में नहीं मिलता है तो इससे साफ जाहिर है कि इन कालों में यह संकट था ही नहीं. अतः हम निःसंकोच कह सकते हैं कि यह संकट इससे पहले देश पर कभी आया ही नहीं. यह हमारे समाज के लिए उत्तर आधुनिकतावाद की उपज है. इसे हम समाजवाद का संकट कह सकते हैं क्योंकि यह पूरे समाज पर छाया हुआ है. इसे हम साम्यवाद का संकट कह सकते हैं क्योंकि यह सभी पर समान रूप से गहराया हुआ है.
पर संतोष की बात है इस संकट से आपको अकेले नहीं जूझना है, सारा देश, सारे उद्योग, सारे बाजार, सारे मल्टीनेशनल आफ साथ हैं. सभी मिलकर इस समस्या का समाधान ढूँढ रहे हैं. करोड़ों खर्च करके इसका हल निकालने के लिए शोध कार्य किया जा रहा है. आखिर यह राष्ट्रीय संकट की बात है, इसे नजर अन्दाज नहीं किया जा सकता है. प्रयोगशालाओं में तरह-तरह के प्रयोग किए जा रहें हैं ये प्रयोग निष्फल नहीं रहे हैं. कोई इस समस्या को कुछ हद तक कम कर सकने की बात कह रहा है, तो
देश का संकट २
कोई इसे पचास प्रतिशत तक घटाने में कामयाब होने की बात कह रहा है. कोई-कोई नब्बे प्रतिशत सफल होने का दावा कर रहा है. परंतु संकट इतना जटिल, इतना उलझन भरा है कि अभी तक कोई भी इससे शत-प्रतिशत उबारने का वायदा नहीं कर पा रहा है. वैसे भी आज फैशन के इस दौर में १००क् की गारंटी कौन दे. प्रतिस्पर्धा में कोई कोर्ट में नालिश न ठोंक दे, सो कुछ शोधकर्ता ९९क् पर संतोष करने को मजबूर हैं. हमारे बासमती और नीम का पेटेंट भले ही अमेरिका ले ले, पर हमारे इस राष्ट्रीय संकट के समाधान को पेटेंट करने के लिए वह भी उत्सुक नजर नहीं आता है.
आज बाजारवाद का बोलबाला है. हर बात के बीच में बाजार खडा है और हम बीच बाजार खड़े हैं. कोई कबीर नहीं है जिसके हाथ में लुकाठी हो और ना ही कोई कबीर के साथ चलने को तैयार है. किसे अपना घर जलाना है. आज कौन इतना मूर्ख है जो अपना घर जलाए. अब जब बाजार बीच में आ गया है जैसा कि अक्सर होता है प्रतिस्पर्धा बड़ी जबर्दस्त है सो कुछ लोगों को मजबूरन दाम कम करने पड़ रहे हैं. कोई इस संकट के हल को १०क् छूट पर बेच रहा है. कोई उसी दाम में मात्रा १०क् ज्यादा देने को तैयार है, फायदा न होने की हालत में दाम वापस करने को सहमत है, तो कोई आपको जबरदस्ती एक हल के साथ दूसरा मुफ्त में थमाने को या यों कहें ठेल देने को तत्पर है. बच-बच के रहना रे. पर कहाँ बच पाएंगे.
अब आप इस संकट को अवश्य पहचान गए होंगे. अगर अभी भी नहीं पहचान पाए तब आपने जरूर अपने बाल धूप में सफेद किए हैं और आपको गॉदरेज हेयर डॉय लगानी चाहिए, अगर यह सूट न करे तो वैस्मोल हेयर डाई आजमाइए और उसका कमाल देखिए. अच्छा क्या कहा आपने, इससे आपको एलर्जी है, तो गार्नियर हेयर डाई ट्राई कीजिए.
यह संकट आपको पाँच मिनट आराम नहीं करने देता है. हर पाँच मिनट पर यह आपको सोचने पर मजबूर कर देता है और इस संकट की एक विशेषता यह है कि आप इसके बारे में जितना ज्यादा सोचते हैं यह उतना बढ़ता जाता है. और यह तब और भी ज्यादा संकटपूर्ण स्थिति को प्राप्त होता जाता है. यह संकट अपने आप में कई और संकटों को समाए हुए है. कभी यह एक रूप में प्रकट होता है, कभी दूसरे रूप में. पहले-पहल यह संकट मात्र स्त्रियों को ग्रस रहा था, वह भी केवल प्रौढ स्त्रियों को. धीरे-धीरे इसने अपनी गिरफ्त में पुरुषों को भी ले लिया, पहले केवल वृद्धावस्था की ओर जाते पुरुषों को, पर अब यह इतना सर्वव्यापी हो चुका है कि युवा और बच्चे भी इसकी गुंजलक में कस चुके हैं. बल्कि अब इसका सारा ध्यान युवा और बच्चों खासकर बच्चियों की ओर है. वे ही बाजार की असली ताकत हैं, टारगेट हैं. आज हरेक की जबान पर बस एक ही राग है ‘अब जिन्दगी है तेरी जुल्फों में’.
कमाल है, आप अभी तक इस संकट को नहीं पहचान पा रहे हैं और यह है कि सुरसा के मुँह की तरह बढ़ता जा रहा है. उठिए, जागिए और इसका सामना कीजिए. इसको जानने-समझने के लिए आपको कहीं दूर नहीं जाना होगा. यह आफ घर, आफ अपने कमरे में चीख-चीख कर कह रहा है मुझे जानो, मुझे पहचानो, मैं हूँ, मैं हूँ, डॉन. यह टीवी के पर्दे पर हर क्षण उपलब्ध है, हर चैनल पर हाजिर है. जब देखो तब लहरा रहा है.
देश का संकट ३
हाँ, साहेबान, मैं बात कर रही हूँ बालों पर आए देश व्यापी संकट की. महाभारत में जब द्रौपदी ने केश
खुले रखने का ऐलान किया तब उसे इस खतरे की जानकारी न थी, वरना वह अपने उलझे बालों के लिए लिवॉन का इस्तेमाल अवश्य करती. बालों की कीमत बस आप जाने या फिर जाने लिवॉन. कालीदास की लम्बे, घने, काले बालों वाली नायिकाओं को भी इस संकट का आभास न था, अन्यथा वे बालों का झड़ना रोकने के लिए पैंटीन-प्रो का इस्तेमाल अवश्य करतीं.
यह उत्तर आधुनिकतावाद की देन है. आज इसके पाँव अंगद की तरह जम चुके है. शीघ्र यदि इसके समाधान के लिए किसी डाई, किसी शैम्पू, किसी तेल, किसी जेल का इंतजाम न किया तो शायद आपको समाज निकाले का सामना करना पड़े. पति, पत्नि एक दूसरे के साथ बाहर जाना बन्द कर देंगे. युवा पडोसी आपको आँटी बुलाने लगेंगे. बालों में हो शान तो हर काम है आसान.
कोई साबुन न इस्तेमाल कर लीजिएगा वर्ना लोग पूछेंगे ‘आपकी तबियत तो ठीक है न’. बालों के लिए तो बस जरा-सा लिवॉन काफी है. तेल की तरह नहीं चपोतना है. वैसे अगर आप पैराशूट हेयर ऑयल लगाएंगे तो बालों में तीन गुना नई जान आ जाएगी. ऐसी जान की वाकई बाकी सब बेजान लगे. क्लीनिक प्लस शैम्पू आफ बालों का अन्दाज बदल सकता है. पैंटीन से दो महीनों में बालों का झड़ना ५०क् बन्द. बालों के लिए कोई समझोता नहीं .
उफ कितने संकट छाए हुए हैं आजकल हमारे बालों पर. बाल बीमार हैं. इन्हें क्लीनिक ले जाना पड़ेगा. कभी सफेदी का संकट. कभी डैंड्रफ का. कभी बाल का झड़ना. कभी लटें सीधी नहीं हो रहीं हैं. कभी घुँघराले बालों का घुँघरालापन समाप्त हो रहा है. कभी घुँघराले केश सीधे-सपाट नहीं हो पा रहें हैं, जब कि आज रात पार्टी का कोड, आज का स्टाइल है, सीधे-सपाट बाल. बदले बाल, बदले अन्दाज. और अगर आफ बाल सीधे-लम्बे हैं पर आफ उनको घुँघराले बाल पसन्द हैं तो हाजिर है सन सिल्क कर्ल कंट्रोल जिससे आफ कर्ल रहें सुलझे-सुलझे.
इन राष्ठ्रीय संकटों से हमें निपटना है, वरना हम किसी को मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे. डैंड्रफ यदि आपको आफ मनपसन्द काले कपडों को पहनने से रोक रहा है तो उसे कहिए चल हट. और यदि तब भी वह आपकी बात न माने तो उसे उसे एंटी डैंड्रफ शैम्पू से धो डालिए. नया क्लीनिक प्लस इंतजार कर रहा है, क्या आज आप अपने बालों को क्लीनिक ले गए? बालों की कीमत जाने आप जाने बाजार.
देखने से लगता है कि हमारे देश में न तो गरीबी का संकट है, न अशिक्षा का, न बेरोजगारी है, न कोई महामारी, है तो बस एक ही संकट है. बालों पर आया हुआ संकट. यही है आज हमारे देश का सबसे बड़ा संकट. यही है आज के भारत का ज्वलंत प्रश्न. यदि हमने शीघ्र इसे हल न किया तो आगामी इतिहास, आने वाली पीढी, हमें कभी माफ नहीं करेगी. हमें इसे जल्द-से-जल्द दूर करना है तभी दिमाग रहेगा कूल.
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