‘‘ देखो, तुम्हारे शरीर पर कपड़ा नहीं है ; तुम यह कमीज पहन लो !'' यह कहकर राव साहब ने अपनी कमीज उतारी और ग्रामीण को दे दी । बेचार...
‘‘ देखो, तुम्हारे शरीर पर कपड़ा नहीं है ; तुम यह कमीज पहन लो !'' यह कहकर राव साहब ने अपनी कमीज उतारी और ग्रामीण को दे दी । बेचारा ग्रामीण असमंजस में पड़ गया-क्या करे क्या न करे !
स्थानीय नेता जोशी ने कहा, ''अरे, ले लो ! हुजूर मेहरबान है साले ! '' और ग्रामीण ने कृतकृत्य होकर कमीज पहन ली। साथ वाली बच्ची को राव साहब ने पुचकारा और ब्रेड के टुकड़े खाने को दिये। बच्ची ने कभी ब्रेड देखी नहीं थी ; समझ न पाई कि इसका क्या करे।
इस बार भी स्थानीय नेता ने उबारा-
‘‘ खा ले.....खा ले.....खाने की है ! ''
‘‘ अच्छी है। ''
ग्रामीण और उसकी पुत्री अपने रास्ते चल दिये।
राव साहब ने नयी कमीज पहनी और काफिला आगे चला।
कुछ समाचार पत्रों ने राव साहब की दानशीलता का ऐसा चित्र खींचा कि स्वयं कर्ण भी शर्मा गया।
-- इसी उपन्यास से.
व्यंग्य उपन्यास
यश का शिकंजा
-यशवन्त कोठारी
सम्पूर्ण कालोनी में नीरवता, रात्रि का द्वितीय प्रहर ।
राजधानी की पाश कालोनी के इस बंगले में से आती आवाजें चारों ओर छायी नीरवता को भंग कर रही थीं। कभी-कभी दूर कहीं पर किसी कुत्ते के भौंकने से इस शान्ति को आघात पहुंच रहा था।
एक बड़े कमरे में पांच व्यक्ति थे। केन्द्रीय सरकार के वरिष्ठ मंत्री श्री रानाडे, उनके अपने पत्र के सम्पादक-मित्र आयंगार, रानाडे के विश्वासपात्र सचिव एस. सिंग और उद्योगपति सेठ रामलाल ।
सेठ रामलाल अपनी बढ़ती तोंद और चढ़ती उम्र को सम्भालने के लिए एक महिला को हमेशा अपने साथ रखते थे, और आज वे राजधानी की सुन्दरतम कालॅगर्ल शशि को साथ लाये थे।
कमरे में शराब और सिगरेट की बदबू फैल रही थी। रानाडे ने कीमती शराब का घूंट भरा,शशि की ओर देखा और अपने सचिव को बाहर जाने का इशारा किया।
सचिव के चले जाने के बाद उन्होंने कहा-
‘‘ बड़ी मुसीबत हो गयी है भाइ ! प्रधानमंत्री तो अड़ गये हैं-अब क्या होगा ? सेठजी , तुम्हारा लाइसेन्स भी मुश्किल है.....''
‘‘ तो मेरा क्या होगा ?'' सेठ रामलाल परेशान होने लगे।......
पहलू बदल कर रानाडे ने कहा-
होना जाना क्या है ? हमने गांधी की समाधि पर कसम खाई थी, नहीं तो इस सरकार को कभी का गिरा देते ! कोई सूरजकुण्ड जा रहा है , तो कोई वहां से आ रहा है। कोई दोहरी सदस्यता से परेशान हो रहा है तो कोई अपने पुत्र की रंगीनियों में डूब रहा है। यहां हर कोई दूसरे की पगड़ी को अपने पैरों में देखना चाहता है। ''
‘‘ लेकिन इन सब छिछली राजनीति का हश्र क्या होगा ? '' आयंगार ने सिगरेट का धुंआ उपर उछालते हुए पत्रकारिता का बघार लगाया।
‘‘ देखो भाई , साफ बात है.....'' रानाडे कुछ देर रूके और धवल चांदनी बिछे सोफे पर पसर गये। शशि ने उनके हाथ में जाम पकडा़या। उन्होंने एक घूंट लिया। आंखें मूंदीं, अपनी सफाचट खोपड़ी पर हाथ फेरा । दीवार पर टंगे गांधीजी के चित्र को मन-ही-मन प्रणाम किया और कहने लगे-
‘‘ अगर मुझे हटाने की साजिश जारी रही, तो मैं कहे देता हूं , किसी को नहीं बख्शूंगा-एक-एक को देख लूंगा ! .....''
आयंगार , तुम कल अपने अखबार में, सत्ताधारी पार्टी में फूट पर एक तेज-तर्रार सम्पादकीय लिख दो ! ''
‘‘ लगे हाथ यह भी लिख देना कि शीध्र ही कुछ असंतुप्ट सांसद , एक अलग पार्टी की घोषणा करनेवाले हैं। ''
‘‘लेकिन इससे समस्या का समाधान थोड़े हो जाएगा ! ''आयंगार ने टांग अड़ाई।
‘‘ तुम वही करो जो मैं कहता हूं, और आगे-आगे देखते जाओ, होता क्या है ! इस बार अगर प्रधानमंत्री को नीचा नहीं दिखाया तो मेरा नाम रानाडे नहीं ! ''
मैं 50 वर्ष से भारतीय राजनीति में भाड़झोंक रहा हूं , और ये कल के लड़के मुझ पर सार्वजनिक रूप से आरोप लगाते हैं-मुझे बलात्कारी और अत्याचारी कहते हैं। अरे भाई , सभी खाओ और खाने दो । लेकिन नहीं ! खाएंगे भी नहीं बौर फैला भी देंगे। लेकिन मैंने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं ! '' रानाडे ने आवेश से कहा।
‘‘ सेठ रामलाल , तुम कल तक मुझे दस लाख रूपये दो;प्रसार-प्रचार और खरीद-बेच करना पड़ेगा। ''
‘‘ तुम्हारी जो 10 करोड़ की चांदी बाहर भेजी थी, वह पहुंच गयी या नहीं ! ''
‘‘ जी हां पहुंच गयी है । '' सेठजी ने उत्तर दिया।
‘‘ बस तो तुम दस लाख रूपये भिजवा दो ! '' रानाडे ने आदेशात्मक स्वर में कहा।
इसी बीच सचिव ने आकर बताया-
‘‘ सर, पी. एम. का फोन है। ''
‘‘ हां, हैलो, मैं रानाडे ....''
‘‘ यस, उस फाइल का क्या हुआ ? ''
‘‘ अभी मेरे पास ही है ! ......''
‘‘ लेकिन मैंने आपसे कहा था , उसे जल्दी निकाल देना ! ....''
‘‘ मैं पार्टी के संगठन में व्यस्त रहा, सर !.....''
‘‘ देखिये मिस्टर रानाडे , संगठन और चन्दे की व्यवस्था का समय नहीं है यह। हमें कुछ करके दिखाना है ! चुनावी वायदे पूरे नहीं हुए तो हमें भी इतिहास रद्दी की टोकरी में फेंक देगा....''पी.एम. का स्वर गूंजा।
‘‘ लेकिन इसमें मैं क्या करूं, ! ..... पिछली बार मेरे चुनाव क्षेत्र में बाढ़ आयी तो आपने सहायता कम कर दी। '' -रानाडे बोल पड़े, '' इस बार आपके चुनाव क्षेत्र में अकाल है तो फाइल पर जल्दी निर्णय आवश्यक हैं ! क्या हम सभी ने इसी की कसम खाई थी ?'' रानाडे ने जोड़ा।
‘‘ पर यह बहस का समय नहीं है ! रात काफी हो गयी। तुम फाइल मुझे भिजवा दो । '' -पी. एम. ने कहा और फोन रख दिया।
रानाडे ने फोन रखा। सचिव को फाइल पी. एम. के पास फौरन भेजने को कहा और शशि से एक और जाम लेकर पिया।
रानाडे के चुप हो जाने के बाद कमरे में शान्ति छा गयी। कोई कुछ नहीं बोल रहा था। सभी के चेहरे पर तनाव साफ दिखाई दे रहा था ! आयंगार सिगरेट के छल्ले बनाता रहा।
सेठ रामलाल ने जाने की इजाजत मांगी , मगर रानाडे ने कोई जवाब नहीं दिया।
रानाडे ने कहा, ‘‘अच्छा तो फिर कल के अखबार में जैसा मैंने कहा वैसा आ जाना चाहिए !''
‘‘ जी , अच्छा ! '' - आयंगार ने हां-में-हां मिलाई ।
‘‘ अब तुम जाओ !''
आयंगार के जाने के बाद रानाडे ने सेठ रामलाल को आंखों का इशारा किया। सेठजी समझ गये।
‘‘ अच्छा शशि, तुम यहीं ठहरो, मैं चलता हूं। ''
इससे पहले शशि कुछ कह सके , सेठजी बाहर जा कर अपनी कार में बैठकर चल पड़े।
कमरे में रानाडे और शशि बचे रहे। वही हुआ जो ऐसे अवसरों पर होता आया है। कुछ दिनों बाद शशि के नाम से एक बड़ी कम्पनी के श्ोयर खरीदे गये।
संसद-भवन से एक लम्बी केडीलाक बाहर निकली और तेजी से आगे बढ़ गयी। इस कार के पीछे तीन-चार अन्य कारें भी तेजी से चल पड़ी। लम्बी केडीलाक कार के अन्दर केन्द्रीय सरकार के वरिष्ठ मंत्री रानाडे, और उसके पीछे वाली कारों में उनके अनुयायी थे। सभी केन्द्रीय मंत्रिमंडल की मीटिंग से वाक आउट करके आ रहे थे।
रानाडे के आवास पर आज बड़ी गहमा-गहमी है। लान में इधर-उधर झुण्ड बनाकर लोग बैठे हैं, बतिया रहे हैं। आनेवाली कारों की लम्बाई से आनेवाले की हैसियत नापी जा रही है।
रानाडे के दोनो सचिव और मिस असरानी तेजी से इधर से उधर भाग-दौड़ कर रहे हैं ।
मनसुखानी की अंगुलियां टाइपराइटर पर मशीन की तरह दौड़ रही हैं। पास के कमरे में टेलिप्रिन्टर तेजी के साथ कागज और कागजों पर समाचार उगल रहा था।
डाइंग रूम के बाहर वाले कमरे में पत्र-प्रतिनिधि बैठे थे। उससे आगे कुछ विशिष्ट व्यक्ति एक कमरे में रानाडे का इन्तजार कर रहे थे। अचानक बाहर हल्ला हुआ-
‘‘ रानाडे आ गए।'' दोनों सचिव उधर दौड़ पड़े। कार में से रानाडे को सहारा देकर उतारकर अन्दरवाले कमरे में ले जाया गया। अन्दर के मंत्रणा-कक्ष में रानाडे और उनके अनुयायी बैठे और वार्ताक्रम प्रारभ हुआ-
‘‘ अगर कुमारस्वामी को तोड़ा जा सके तो हमारी स्थिति ठीक हो सकती है।'' रामश्वर दयाल ने कहा।
‘‘ तुम यह क्यों भूल जाते हो , कि इससे उत्तर में हमारी शक्ति कम हो जायेगी।'' -रानाडे बोले ।
‘‘ तो फिर क्या किया जाए ? '' रामेश्वर ने चिन्तातुर हो कर कहा ।
‘‘ प्रधानमंत्री तो बिलकुल भी झुकना नहीं चाहते .....''
‘‘एस. सिंग, तुम जरा उन सांसदों की सूची बनाओ जो हमारे साथ है, और सभी को फोन पर सूचित कर दो-मीटींग शाम को होगी । ''
‘‘ जी अच्छा ! '' एस. सिंग दौड़कर मनसुखानी के पास आया। फटाफट सूची टाइप हुई और रानाडे को दी गयी।
सूची पर एक नजर डालकर रानाडे बोले , ‘‘ कुल 120 एम. पी. मेरे साथ हैं। उत्तर के राज्यों में मेरे तीन मुख्यमंत्री हैं , इन्हें भी बुलवा लो । ''
‘‘ अब समय आ गया है कि खुला संघर्ष कर लिया जाए ! '' -रानाडे बोले।
‘‘ रामेश्वर, तुम शाम की मीटी्रग की तैयारियां करो। उसके तुरन्त बाद ही एक पत्रकार-सम्मेलन होगा ! '' रामेश्वर चल दिये।
‘‘ सर, बिहार में मंत्री हरिहर नाथ मिलना चाहते हैं ! ''
‘‘ अभी मैं किसी से नहीं मिलूंगा ! पत्रकारों से भी कह दो-शाम की मीटिंग के बाद आयें। ''
‘‘ जी, अच्छा !'' सचिव चला गया।
रानाडे उठकर अन्दर वाले कमरे में विश्राम हेतु चल दिये।
यह कमरा काफी अन्दर था, किसी को अन्दर आने की इजाजत न थी। बहुत कम लोग जानते थे कि कमरे में क्या रहस्य है। वास्तव में कमरा रानाडे की ऐशगाह था।
रानाडे डनलप के नरम गद्दे पर लेट गए। मगर चित्त अशान्त था। तृष्णा की भी अजीब हालत है- वे लेटे-लेटे सोचने लगे-कहां तो गांधी और उनके सपनों का भारत , आचार्य नरेन्द्रदेव का समाजवाद और कहां हम जो केवल राजनीतिक उठापटक पर ही जिन्दा हैं। कोई तुलना ही नहीं है।
उन्हें अपना अतीत सताने लगा-गरीब मां-बाप की इकलौती सन्तान, देश के एक गरीब गांव में जन्मा बालक रानाडे । पांच वर्ष का हुआ , मां चल बसी। बीमारी और बेकारी ने कुछ समय बाद बाप को भी लील लिया। सेठों ने जमीन हड़प्ा ली। मौसी ने पाला पोसा। तभी से रानाडे ने राजनीति में आने की ठानी । शिक्षा-दीक्षा पूरी नहीं हो पायी, लेकिन भाषण कला में जमते गए। तहसील से जिला, जिला से प्रान्त और प्रान्त से राजधानी तक की लम्बी दूरी रानाडे ने पार की है। कई पटकियां खायीं , कई खिलायीं-लेकिन बढ़ते चले गए । उन्हें स्वयं आज आश्चर्य होता है- वे कहां थे, कहां आ गए ! हर रात वे सुहाग रात की तरह मनाते है। उनका विचार है, मानसिक शान्ति और प्रफुल्लता हेतु यह आवश्यक है !
विचारों के इस महासमुद्र में अचानक एक धुंधली आकृति उन्हें दिखाई देने लगी। धीरे-धीरे आकृति साफ होती गयी। इसी के साथ उन्हें कमरे में एक अजीब सन्नाटा और रहस्यपूर्ण आवाजें सुनाई पड़ने लगीं। आकृति उनके पलंग के पास आकर खड़ी हो गयी, वे डर गये। चीखना चाहते थे, लेकिन चीख नहीं निकली।
यह आकृति अकसर उन्हें अकेले में परेशान करती है, वे कुछ नहीं कर सकते। ओझाओं, ज्योतिषियों, तान्त्रिकों, हडभोपों-सभी से वे ताबीज, गण्डा, डोरे लेकर देख चुके , कुछ नहीं होता ।
आकृति उनकी पुत्रवधू कमला की है, जो बरसों पूर्व उनकी हविस का शिकार होकर आत्महत्या कर चुकी है। उनका पुत्र पागल होकर किसी नदी में डूब मरा। कहने वाले अभी तक कुछ-न-कुछ कहते रहते हैं। रानाडे ने इस डर से बचने के लिए नींद की गोलियां खायीं और सो गये ।
लम्बे समय बाद रानाडे को आज की सुबह इतनी ताजी ओर सुहावनी लग रही थी। रात की खुमारी धीरे-धीरे उतर रही थी टेबल पर देश-विदेश के प्रमुख अखबार थे। वे सुर्खियों को टटोल टटोलकर परख रहे थे।
आयंगार ने सत्ताधारी पक्ष पर तीखा आक्रमण किया था। सर्वव्याप्त असंतोष के लिए उसने प्रधान मंत्री को दोषी ठहराया था ;लेकिन प्रधानमंत्री के अखबारों ने देश में व्याप्त अराजकता, हिंसा, लूटपाट और हरिजनों को जिन्दा जला दिये जाने का सेहरा रानाडे के सर पर बांधने की कोशिश की थी।
अचानक सचिव ने आकर ध्यान भंग किया-
‘‘ सर, अपने क्षेत्र से विधायक हरनाथ आये हैं।''
हरनाथ रानाडे के विश्वासपात्र विधायक थे। वे क्षेत्र की हर छोटी-बड़ी घटना की जानकारी रानाडे को देते रहते थे। और रानाडे इस हेतु कुछ कार्य करवा देते थे।
‘‘ प्रणाम महाराज '', और हरनाथ उनके चरणों में झुक गये। हरनाथ अकेले नहीं थे, उनके साथ ही एक किशोरी बाला थी।
रानाडे ने उसी की ओर मुखातिब होकर पूछा-
‘‘ कहो , क्या बात है ?''
‘‘ सर, .....ऐसा....है.....'' और बेचारी किशोरी कुछ बोल न सकी । रानाडे ने हरनाथ पर दृष्टि फेंकी ;हरनाथ कहने लगे-
‘‘सर, इसके साथ घोर अन्याय हुआ है ! ये आपके क्षेत्र की सामाजिक कार्यकर्ता हैं। इनका स्थानान्तरण अन्यत्र कर दिया गया। बेचारी बड़ी दुखी हैं। घर पर बीमार मां है, और कोई नहीं । आपको पिता-तुल्य मानकर आयी हैं, इनकी मदद करें !''
‘‘ अच्छा, तो आप वापस स्थानान्तरण चाहती हैं। लेकिन यह विभाग तो मेरे पास नहीं है। और सम्बन्धित मंत्री मेरे गुट के भी नहीं हैं। ''
किशोरी का चेहरा रूआंसा हो गया। रानाडे समझ गए। उन्होंने उसकी पीठ पर हाथ फेरा और कहा, ‘‘ खैर, तुम निराश मत हो ओ ! अभी तो आराम करो , फिर जैसा होगा वैसा करेंगे !''
किशोरी ने पैर छुए और हरनाथ के साथ चली गयी।
उसे एक स्थानीय होटल के कमरे में ठहरा दिया गया।
दूसरी रात को होटल के उस कमरे में फोन आया-
‘‘ तुम अभी रानाडे के यहां चली आओ। तुम्हारा काम हो जाएगा !''
रानाडे की कोठी पर रात को सर्वस्व लुटाकर किशोरी , वापस आते समय होटल जाने के बजाय आत्महत्या कर गयी। दूसरे दिन अखबारों ने बड़ा हल्ला मचाया। लेकिन कुछ नहीं हुआ। अखबारों को विज्ञापन और सम्बन्धित पत्रकारों को प्लाट बांट दिए गये धीरे-धीरे सब ठीक हो गया।
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प्रधान मंत्री आवास। बड़ा विचित्र और अनोखा व्यक्तित्व है प्रधान मंत्री का धीर, गम्भीर ! ऐसा लगता है, जैसे विचारों और समस्याओं के महासमुद्र में डूबे हैं। उम्र लगभग 75 वर्ष , शुभ्रधवल वस्त्रों में , धोती की लांग सम्भालने के साथ-साथ देश और पार्टी की बागडोर सम्भालने में भी निपुण।
कार्यालय की अण्डाकार मेज के पीछे रिवोल्विंग कुर्सी पर बैठे हैं, फाइलों का अम्बार और टेलीफोनों की कतार । लाल, सफेद, काला और पीला-चार फोन। एक इन्टरकाम, कई तरह के बटन , कमरे में देश के महापुरुषों के चित्र ।
आज राव साहब गम्भीर ज्यादा ही हैं। सुबह से ही वे पार्टी के आवश्यक कार्य में व्यस्त हैं। उनके स्वयं के क्षेत्र में भयंकर सूखा था, लोग पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहे थे। आदिवासी पत्तियां और जड़ें चबा-चबाकर अपना समय निकाल रहे थे। उड़ती हुई खबरें भूख से मरने की भी आयी थीं, लेकिन राव साहब ने उसे विरोधियों की चाल कहकर टाल दिया था। उनके अनुसार-
‘‘ यह गन्दी राजनीति से प्रेरित है। मेरे चरित्र-हनन का प्रयास किया जा रहा है।''
फिर भी राव साहब अपने क्षेत्र के प्रति उदासीन हैं, ऐसी बात नहीं । परसों ही वहां का हवाई सर्वेक्षण करके आये है। कल ही अफसरों को फोन पर नये आदेश दिये हैं। सम्बन्धित मंत्रालयों के मंत्रियों को भी आगाह किया है। एक कनिष्ठ मंत्री की ड्यूटी अपने ही क्षेत्र के जिला-मुख्यालय पर लगा दी है। लेकिन यह रानाडे- ‘‘ साला समझता क्या है, अपने आपको-120 एम.पी. क्या हैं, इसके पास, अपने आपको खुदा समझता हैं ! ''
उन्होंने फोन पर आदेश दिया-
‘‘ सी.बी.आई. के प्रमुख को बुलाओ ! ''
थोड़ी देर बाद सी.बी.आई. प्रमुख ने एड़ियां बजाकर सेल्यूट किया।
राव साहब ने सिर के हल्के इशारे से अभिवादन स्वीकार किया और बैठने का इशारा किया-
‘‘ आपका विभाग ठीक चल रहा है ?''
‘‘ जी हां.....''
‘‘ कोई राजनैतिक दबाव तो नहीं है ? ''
‘‘ जी नहीं ! ''
‘‘ देखिये, मै। चाहता हूं कि सभी जगह कानून और व्यवस्था मजबूती से कायम की जाए ओर बिना किसी दबाव के सब कार्य करें।....... अगर कोई परेशानी हो तो सीधे मुझे बताएं ! '' राव साहब बोले ।
‘‘ जी, अभी तो कोई नहीं ''- चीफ बोले।
‘‘ उस होटल-काण्ड की- जिसमें एक किशोरी की मृत्यु हो गयी थी , कौन जांच कर रहा है ? .......''
‘‘ वो, केस तो फाइल हो गया, सर ! ''
‘‘ क्यों ? क्यों फाइल हो गया ? ''
‘‘ दैट वाज ए केस आफ सुसाइड ! ''
‘‘ सुसाइड ? हाउ कैन यू से ? क्या तुमसे पूछकर लड़की ने आत्महत्या की, या तुम्हें कोई सपना आया ? ''
सी.बी.आई. प्रमुख बगलं झांकने लगे उन्हें ऐसी उम्मीद नहीं थी, लेकिन अब क्या हो सकता है !
‘‘ वेल मैंन, किसी ईमानदार अफसर को वापस वह केस दो और पूरी तहकीकात कराओ ! मुझे शक है, इस हत्याकाण्ड में कुछ विशेष लोगों का हाथ है।''
‘‘ ओ.के., सर ! ''
‘‘और देखो, जिस एस.पी. को लगाओ, उसे कह देना-पूरी रिपोर्ट मैं स्वयं देखूंगा ! ''
‘‘ जी, बेहतर ! ''
‘‘ जाइये ! ''
प्रमुख ने बाहर आकर पसीना पोंछा ।
रात्रि का प्रथम प्रहर, राव साहब के अध्ययन-कक्ष में टेबलट्यूब का प्रकाश। राव साहब कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण और गोपनीय फाइलों के अध्ययन में व्यस्त हैं।
सचिव ने आकर बताया, ‘‘ एस.पी. इन्टेलीजेन्स मिलने आये हैं। राव साहब के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आयी और उन्होंने एस.पी. को भेजने को कहा। एस.पी. का अभिवादन स्वीकार कर कहने लगे-
‘‘ कब से इन्टेलीजेन्स में हो ? ''
‘‘ सर , दस वर्ष से ! ''
‘‘ अभी तक तुम उपर नहीं बढ़े ? ''
‘‘..............''
‘‘ खैर , जो केस तुम्हें दिया गया है, वह बहुत महत्वपूर्ण है। पिछले कुछ समय से राजधानी में मासूम लड़कियों से बलात्कार और हत्या की वारदातें बढ़ गयी हैं,....... होटल-काण्ड के केस का अध्ययन किया आपने ? ''
‘‘ जी हां ......दैट इज़ ए केस आफ सुसाइड । ''
‘‘ दैट इज़ ए केस आफ सुसाइड'' - कितनी आसानी से बोल गए तुम ! लेकिन होटल के बाहर जो कार खड़ी थी, उसमें पड़ोसी राज्य के एक भूतपूर्व मंत्री हरनाथ थे ? ''
‘‘ जी, हां .....''
‘‘ वे वहां क्या कर रहे थे ? '' राव साहब ने पूछा ।
‘‘ .................''
‘‘ देखो '' अब राव साहब ने उन्हें आत्मीयता से समझाया-
‘‘ ऐसे केसेज़ की गुत्थी सुलझाने में बुद्धि ओर धैर्य चाहिए। पूरे केस की स्टडी करो और देखो कि वास्तव में क्या हुआ ! ''
‘‘ जी ..... ! ''
‘‘ ओ.के. ! '' राव साहब ने कहा और एस.पी. बाहर आ गए। सचिव ने आकर बताया -
‘‘ सर, अमेरिकन राजदूत मिलना चाहते हैं। ''
इधर राव साहब की शारीरिक, मानसिक और राजनीतिक शक्ति में निरन्तर कमी आयी है। शारीरिक रूप से वे काफी अशक्त हो गए है। सभी राजरोग उन्हें घेरे हुए हैं। मधुमेह, ब्लड-प्रेसर, हृदय रोग के अलावा यदा-कदा उन्हें वृक्क से सम्बन्धित शिकायतें भी रहती हैं, लेकिन उन्होंने हमेशा देश और पार्टी को शरीर से उपर समझा है। यही कारण है, इस स्थिती में भी देश की बागडोर वे बूढ़े घोड़े की तरह सम्भालते चले आ रहे हैं। मानसिक रूप से भी वे अपने आपको अब ज्यादा सक्षम नहीं पाते है। विरोधियों ने निरन्तर अपनी शक्ति का विकास किया है, और इसी कारण राव साहब राजनीति के अखाड़े के अनुभवी खिलाड़ी होते हुए भी अपनी शक्ति को कमजोर होता देख रहे हैं।
विरोधी पक्ष के कई प्रमुख नेताओं पर उन्होंने समय-असमय कई उपकार किए हैं। कोटा, परमिट, लाइसेन्स , विदेश-यात्राएं अक्सर वे बांटते रहते हैं। अपने दरबार से किसी विपक्षी को खाली हाथ नहीं जाने देते । लेकिन फिर भी अब वो बात नहीं रही । धीरे-धीरे उनके चारों ओर एक जमघट एकत्रित हो गया, जो केवल स्वयं अपना हित-चिन्तन कर सकता है। स्थिति दिनोंदिन बिगड़ने लगी। राव साहब चाहकर भी इन लोगों से नहीं बच सकते ।
उन्होंने रानाडे को मंत्रिमण्डल से हटाने की सोची, लेकिन उसके बाद उत्पन्न होने वाली स्थिति का ध्यान आते ही उन्हें अपनी कुर्सी डोलती नजर आती और वे चुप रह जाते । इस बार उन्होंने रानाडे की जड़ें ही खोखली करने का निश्चय किया। तीन राज्यों में रानाडे के मुख्यमंत्री थे। सबसे पहले उन्होंने इन तीनों राज्यों में अपने विश्वस्त अनुचर भेजने का तय किया, ताकि वहां राजनैतिक अस्थिरता उत्पन्न की जा सके। अगर इस कार्य में वे सफल हो जाते हैं तो फिर रानाडे की जड़ों में मठ्ठा डाला जा सकेगा, और किसी बहाने से वे रानाडे को मंत्रिमण्डल से हटा देंगे।
फोन करके उन्होंने अपनी विश्वस्त माया को बुलवाया और उसे पूरी योजना समझाने लगे-
‘‘ देखो माया, अब स्थिति धीरे-धीरे बिगड़ रही है। सीमाओं पर अशान्ति है, केन्द्र में राजनीतिक अस्थिरता है..... और रानाडे मान नहीं रहें हैं। ''
(क्रमश: अगले अंकों में जारी…)
यशवन्त कोठारी का व्यंग्य उपन्यास : यश का शिकंजा पढ़ने के बाद लगता है पूरी रचना पढ़नी पड़ेगी
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