अमेरिका के राष्ट्रपति पर एक पत्रकार ने जूते फेंके! जूते अमेरिका के राष्ट्रपति पर नहीं पड़े । वे निशाना चूक गये । निश्चित रूप से जूते अमे...
अमेरिका के राष्ट्रपति पर एक पत्रकार ने जूते फेंके! जूते अमेरिका के राष्ट्रपति पर नहीं पड़े । वे निशाना चूक गये । निश्चित रूप से जूते अमेरिकी रहे होंगे जो अपने आका के प्रति वफादार रहे । वैसे भी पूरी दुनिया में जूते ही चल रहे है । जहां पर जूते नहीं चल पा रहे होंगे वहाँ पर चप्पलें , सेन्डिलें या बाथरूम स्लीपर्स चल रहे होंगे । इक्कीसवीं सदी में यह एक शानदार नजारा था जिसे बार बार दिखाया गया और दर्शकों ने उस दृश्य को बार बार देख कर मजा लिया ।
उपर से मजा ये कि जूता फेंकने वाले पत्रकार की लोकप्रियता का ग्राफ बड़ी तेजी से उपर चढ़ा । एक व्यक्ति उसे अपनी सुन्दर कन्या सौंपना चाहता है । पत्रकार इसी घटना से हीरो बन गया है । बाद में एक प्रेस वार्ता में भी उसने अपनी बात कहीं । विनम्रता पूर्वक मैं पूछना चाहता हूं कि जब पत्रकार के हाथ में कलम थी तो उसने जूते क्यों चलाये । एक जूता चलाया तो कोई बात नहीं उसने दूसरा जूता भी चला दिया । और मजे की बात ये कि बुश इस जूता-हमला से बच गये । आखिर जूते चलाने की नौबत क्यों आई । इससे आगे मजे की बात ये कि एक उधोगपति ने मर्सीडीज कार देने की घोषणा कर दी । भारत वर्ष में तो ऐसी जूतम पैजार रोज होती रहती है । राजनीति हो या अन्य क्ष्ोत्र जूतों को चलाने की परम्परा हमारे देश में काफी पुरानी है । राष्ट्रपति को जूता फेंकने से पत्रकार तो प्रसिद्ध हुआ ही है , अब जूता क्म्पनियां भी मैदान में आ गई और वे इस महान जूते को अपना साबित करने में लग गई है। जूता इराकी है या तुर्की या चीनी या जापानी , मगर मेरा अनुमान है कि ये जूते भारत की किसी कम्पनी के बने होंगे । हमारे देश में जूते मारने की परम्परा काफी पुरानी है और चरण पादुकाओं को पहनने के अलावा इतर कामों में लेने का बाकायदा भारत में दलों में प्रशिक्षण दिया जाता है ।
इधर कुछ लोगो ने जूते चलाने की वेबसाइट खोल ली है । लोग लाखों की संख्या में बुश पर जूतों का निशाना साध रहे हे । जो जूते इस पवित्र कार्य में लिए गये थ्ो उन्हें नीलामी में खरीदने के लिए लाखों डालरों की बोलियां लगाई गई है । देखो कौन सफल होता है ।
इस जूता प्रकरण को देख - सुन कर मेरे मन में एक अजीब उदासी छा गई है जूतों का यह सदुपयोग क्यों हो रहा है ? पूरे विश्व में एक अराजकता की स्थिति क्यों और कैसे आ रही है ।
जूता मारना आसान है मगर गम सहन करना मुश्किल है । बम मारना बन्द हो तो जूता मारना अपने आप बन्द हो सकता है ।
जूता-चिन्तन करते करते मुझे याद आया कि कुछ महत्वपूर्ण मुहावरे है जो जूते से सम्बन्धित है और काफी लोकप्रिय है एक मुहावरा है जूतों में दाल बांटना । यह मुहावरा भारतीय राजनीति , साहित्य , संस्कृति और कला के क्ष्ोत्र में बिलकुल फिट बैठता है ।
जूते चल गये भी एक मुहावरा है जिसका प्रायोगिक आप संसद से सड़क तक देख सकते हैं। भिगो भिगो कर मारना भी जूतों से सम्बन्धित मुहावरा है चमड़े का जूता जब पानी में भिगो भिगो कर मारा जाता है तो चोट ज्यादा लगती है । वैसे प्यार में जो जूते , चप्पल , सेडिल पड़ते हैं उस पर तो एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है ।
चरण पादुका पुराण चिन्तन जारी रखते हुए मैं अब आपको कुछ विशेष जूतों की विश्ोष जानकारी देना चाहता हूं । गान्धीजी की खड़ाउ (जूतों) ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश कर दिया। नेल्सन मण्डेला के जूते भी निलाम कर दिये गये । भरत ने राम की पादुकाओं से ही राज किया ।
जूतों पर कुछ और कहावतें भी याद आ रही है । दुल्हन के सब जूते दूल्हे के सिर , मियां की जूती मियां का सिर । जूते उठाना , जूता काटना जूते चमकाना , जूते मारना , मेरा सिर आपकी जूती , जूते घिसना , जूते चाटना , चान्दी का जूता , आदि । एक बार एक चुनाव में तो मतदाताओं को एक पांव का जूता बांट दिया गया और उम्मीदवार ने कहा यदि जीत गया तो दूसरे पांव का जूता भी चुनाव के बाद दे दूंगा । मगर जनता समझदार थी , उसने उम्मीदवार का जूता ही उसी के सर पर दे मारा ।
अगर किसी की जबान ज्यादा चलती है तो जूते सिर को खाने पड़ते हैं ।
जूतों का साहित्यिक महत्व भी बहुत है। एक व्यंग्य कार ने राष्ट्रीय जूता जैसी महान पुस्तक लिख डाली ।
वैसे जूतों के विज्ञापनों में जो नारी होती है वो भी जूतों की तरह सुन्दर होती है ।
समय के साथ साथ जूता-संस्कृति का भी बड़ा विकास हुआ है ।
कवि सम्मेलनी मंचों पर जूते चलना आम बात है और यदि सम्मेलन में सामने से एक पैर का जूता आता है तो नैपथ्य से दोनो पैर के चले जाते हैं । अकादमियों , परिषदों , आदि में जूते चलना आम बात है , वो संस्था ही क्या जिसमे जूते नहीं चलते हो । कई लोग अपने झोले में एक जोड़ी जूते अतिरिक्त रखते हैं न जाने कब जरूरत पड़ जाये । वैसे जूते हमेशा जोड़े में ही पाये जाते हैं । विवाहित जोड़ो में जो जूते या जूतियां चलती है वो किसे नही पता। जूते चलाने वाले परमवीरों को वीरता के लिए पुरस्कृत भी किया जा सकता है , जैसा इराकी पत्रकार के साथ हो रहा है । जूता चाहे चमड़े का हो या प्लास्टिक का या लकड़ी का या कपड़े का उसे चलाया जा सकता है । जवानी में ज्यादातर जवानों का लड़कियों द्वारा चप्पलीकरण-सैण्डलीकरण किया जाने की परम्परा है जो आज भी ठीक-ठाक ढंग से चल रही है ।
जूता खाना भी कला है और जूते खिलाना भी कला है । आप चाहे तो यह शौक चौराहे पर भी पूरा कर सकते हैं । मेरी सरकार से गुजारिश है कि वह एक राष्ट्रीय जूता उत्सव का आयोजन करे और सर्वाधिक जूते खा कर पचाने वाले को पुरस्कृत करे ।
जूतों में दाल बांटने के बाद यदि सरकार के पास समय हो तो जूतों की एक राष्ट्रीय प्रदर्शनी हेतु भी अनुदान जारी किया जा सकता है ।
जो छुटभ्ौया नेता जूते चाट रहे है , उन्हे छोड़ दिया जाये । जो अमीर लोग चांदी का जूता मार मार कर काम करा रहे है उन्हे वैसा ही करने का मार्ग - दर्शन भी दिया जाना उचित होगा।
जूता संसद में चले या चौराहे पर वापस कभी चलाने वाले के पास नहीं आता है , अतः जूता चलाने वालो को अतिरिक्त जोड़ी रखनी चाहिये । मन्दिरों से या सार्वजनिक स्थलों से जूतों का चोरी हो जाना एक राष्ट्रीय समस्या है जिस पर विचार की जरूरत है ।
इस जूता चिन्तन प्रबन्ध को पढ़कर आप की तबियत यदि मुझ पर जूता फेंकने की हो रही है तो बंदे का सिर हाजिर है । और वैसे भी मोची के लिए हर आदमी एक जोड़ी जूता है । क्या खयाल है आपका ।0 0 0
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यशवन्त कोठारी 86, लक्ष्मीनगर ब्रहमपुरी बाहर जयपुर फोन 2670596 .
वह जूता पुरान पसंद आया जूते से आदमी के व्यक्तित्व की भी पहचान होती है एक बार मै डी एम सी लुधियाना डाक्टऋ को दिखाने गयी तो वो मेरा जूता देख कर बोले किाप हिमाचल प्रदेश से हैं? जूतों पर उनकी रिसर्च से मैं दंग रह गयी
जवाब देंहटाएंआप का जूता चितंन पढ़ कर आनंद आया।हमारे देश को चाहिए की नेताओं पर चलने वालें जूतों का राष्ट्रीय सग्रालय बना दिया जाए।ताकी पता चलता रहे कि कौन-सा जूता कब किस पर चला}:))
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