यश का शिकंजा -यशवन्त कोठारी (पिछले अंक से जारी…) अभी सुबह हुई है। अखबारों के हाकरों और दूधवालों की साइकिलों की घंटियां सुनाई दे ...
यश का शिकंजा
-यशवन्त कोठारी
अभी सुबह हुई है। अखबारों के हाकरों और दूधवालों की साइकिलों की घंटियां सुनाई दे रही है। राजधानी के हाकर आवाज लगा रहे हैं-
‘‘ उप-चुनाव-क्षेत्र में हरिजनों को जिन्दा जलाया गया।''
‘‘ पुलिस देखती रही । ''
‘‘ कई औंरतों की हत्या । ''
‘‘ बलात्कार और बर्बरता का घृणास्पद कारनामा । ''
एक के बाद एक हाकर इसी प्रकार की आवाजें लगाते चले जा रहे हैं।
संवाद-समितियों के मार्फत जो पूरे समाचार आये, वे इस प्रकार थे-
‘‘ गांव मोलेला में चार हरिजनों को तीन रोज पूर्व जिन्दा जला दिया गया। कुछ हरिजनों ने थाने में जाकर रपट लिखाई तो पुलिस ने उन्हें मार-पीटकर भगा दिया। ''
इस समाचार का आना था कि सत्ताधारी पक्ष और अफसरों में खलबली मच गयी। तत्काल प्रधान मंत्री राव साहब ने क्षेत्र के जिलाधीश से वायरलेस पर सीधे बातें की
‘‘ स्थिति कैसी हैं ? ''
‘‘ सर, पूरी तरह नियन्त्रण है। ''
‘‘ तुम लोगों ने पहले कदम क्यों नहीं उठाया ? ''
‘‘ सर, कुछ पता ही नहीं चल पाया । ''
‘‘ और देखो, दोषी आदमियों को अविलम्ब गिरफ्तार कर लो । ''
‘‘ जी हां .....''
‘‘ किसी प्रकार की ढ़ील की जरूरत नहीं है। ......हां, क्या नाम था उस लड़की का, जिसकी हत्या कर दी गयी ? ''
‘‘ जी ‘ भूरी......''
‘‘ अच्छा उसके मां-बाप ....?''
‘‘ उन्हें भी मार डाला गया। ''
‘‘ और आप सभी देखते रहे ? श्ोमफुल, हम स्वयं आकर देखेंगे। ''
‘‘ जी अच्छा ! ''
जब से इस घटना का पता चला है, आसपास के गांवों, ढाणियों और खेड़ों में आतंक का साम्राज्य छा गया है। पुलिस वैसे भी कुछ नहीं करती, लेकिन दिन-दहाड़े झोंपडी को आग लगाकर जिन्दा जला दिये जाने की घटना ने तो लोगों की सोचने-समझने की शक्ति ही छीन ली और .......
हे भगवान् एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार ऐसी मौत दुश्मन को भी न मिले ! लेकिन महत्व बढ़ गया इस उपचुनाव के कारण। नहीं तो इस देश में ऐसी घटनाओं की ओर कोई ध्यान नहीं देता। विरोधियों ने गांव के अन्दर ही, जली हुई झोंपड़ी की राख पर टूटा टेबल रखकर मीटिंग का आयोजन कर दिया। नेता जो राजधानी से आए थे, कहने लगे-
‘‘ मैं आपको बता दूं, कानून और व्यवस्था इस सरकार के बस का काम नहीं। पुलिस बेकार है, नाकारा और आन्दोलन में व्यस्त हैं। जिस देश की पुलिस रक्षा करने के बजाय भक्षण करने लग जाए, वहां ऐसा ही होता है ! ''
‘‘ मैं आप से यह कहना चाहता हूं कि आप सरकार के भरोसे मत रहिये। कल भूरी मरी, आज कोई और मरेगा, और आप लोग इसी प्रकार हैरान, परेशान होते रहेंगे। सरकारी नेता और वोट लेनेवाले राजधानी चले गए, और आप को इन हैवानों के भरोसे छोड़ गए। मैं तो कहता हूं कि पुलिस सबसे अधिक संगठित गुण्ड़ों का महकमा है। ये सब चोर और सूअर हैं। ''
‘‘ अबे, उसको गाली देने से क्या होगा ! '' भीड़ में से आवाज आयी। नेता ने अपना पसीना पोंछा, आवाज की तरफ हाथ फैलाकर कहने लगे-
‘‘ कुछ नहीं होगा, मैं जानता हूं, कुछ नहीं होगा ! लेकिन भूरी की मौत से क्या हम सबको कोई सबक नहीं लेना चाहिए ? ''
‘‘ हमारी भी मां हैं, बहनें हैं ; क्या उन्हें भी जिन्दा जला दिया जाना चाहिए ? मैं पूछता हूं, कहां हैं वे सरकारी अफसर और कानून-कायदे ? क्या गरीब की इज्जत नहीं होती ? ''
‘‘ आप लोग शायद नहीं जानते, सभी अफसर और बड़े नेता राजधानी में बैठकर इस घटना पर लीपापोती कर रहे हैं, ताकि चुनाव में इसका बुरा असर नहीं पड़े । ''
व्ो तनिक रूके, फिर लहजा बदलकर कहने लगे-
‘‘ शीघ्र ही सत्ताधारी पक्ष के लोग यहां आएंगे। आप उनसे कहिए-हमें आश्वासन नहीं, हत्यारा चाहिए। जब तक हत्यारे पकड़े नहीं जाएंगे, हम चुनाव नहीं होने देंगे !....... मैं संसद में आपकी आवाज को बुलन्द करूंगा। ''
व्ो बैठ गए। सभा में शान्ति थी, अब स्थानीय नेताओं ने इस घटना पर दुख प्रकट किया। सभा समाप्त हुई।
इस छोटे-से गांव की किस्मत में इतना सौभाग्य शायद गलती से लिख दिया गया। बनास नहीं के तट पर यह गांव, कुल दो हजार की आबादी। कुछ अहीर, कुछ हरिजन, कुछ कुम्हार ; सभी श्रमजीवी। बेचारे मुश्किल से अपना पेट पालते थे। कुम्हार लोग मिलकर मूर्तियां बनाते। टेराकोटा की ये मूर्तियां विश्व-प्रसिद्ध तो थीं, लेकिन बेचारे कुम्हारों को इसका मोल क्या पता ! यदाकदा कोई विदेशी आता, इनके चित्र खींचकर ले जाता, और ये गरीब, इसी में खुश। कुछ बिचौलिये इनसे सामान खरीदते और बढ़िया मुनाफे पे बेच देते।
गांव में एक मात्र पढ़ा-लिखा था हरिया कुम्हार, जो शहर से बारहवीं कक्षा में फेल होकर गांव आ गया था। हादसे के दिन वह गांव में ही था। रात का समय था। हरिजन टोला में से वह गुजर रहा था, अचानक उसे कुछ खुसर-पुसर सुनाई दी, फिर एक लड़की की चीख, और थोडी देर बाद पूरे टोले में आग लगा दी गयी। हरिया बेचारा भागा, और धर में अपने बापू और मां को बताया-
‘‘ अरे देखो, वठे कई बेइरियो सब झोपड़ा बलरिया है। राख बेइर्ग्या ! ''
‘‘ अरे दौड़ो-दौड़ो। ''
आसपास के कुछ लोग दौड़े, लेकिन तब तक सब कुछ स्वाहा हो गया था। तब से ही हरिया कुछ उदास-सा हरिजन टोला की ओर देखता रहता। उस दिन विरोधी पक्ष की मीटिंग में भी वही बोला था ; लेकिन बोलने से क्या होता !
गांव के पटवारी, मास्टर और थाने को इसकी सूचना दी गयी , लेकिन कुछ नहीं हुआ। तब हरिया ने शहर जाकर अखबार वालों से सम्पर्क साधा। ऐसी चटपटी खबर और उपचुनाव ! अखबारवाले लपके आए। अपने फोटो-कैमरों और टेपरिकार्डरों से लैस होकर जब वे लोग गांव में उतरे, तो गांव में नया डर व्याप गया।
ये तो बाद में हरियाने उन्हें समझाया, तब गांववालों ने अखबारवालों को कुछ दबे-दबे शब्दों में बताया।
कुछ ही दिनों में देश के सभी अखबारों में समाचार आ गए। साप्ताहिकों ओर मासिकों ने भी अपना धर्म निभाया। प्रान्तीय दैनिक समाचार-पत्रों के सम्पादकों ने सम्पादकीय लिख मारे, और अब बारी आई, विरोधी दलों की। एक दल फेरी लगाकर वापस जाता तो दूसरा फेरी लगाने को तैयार !
अफसरों, मंत्रियों, और नेताओं की चरण-रज स्वतंत्रता के बाद पहली बार इस गांव में पड़ने लगी।
छोटा गांव इनके आतिथ्य के भार से दबा जा रहा था। गांव के लोगों की समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब क्या और क्यों हो रहा है ?
उस दिन विरोधी पक्ष की मीटिंग समाप्त होने पर गांव के बुजुर्ग उदाबा के घर के बाहर गांव के लोग इकठ्ठे होकर आग तापने और बतियाने लगे-
‘‘ का रे खूमा, यो सब कईं वैइरियो ? जीने देखो सोई धोवत्यों पकड़ने अठे आइरियों ! ...........
‘‘ अबे मूं कई बताउं बा ! मने तो यूं लागे के अणारी धोवती री लांग अबे खुलवा वारी है। ''
‘‘ हां, यूइज दीखे। नी तो आज तक कोई नी आयो ! ''
‘‘ हो, अबे आपां देख रिया हां ! '' खूमा ने आग की ओर पांव किए और तापने लगा। उदा ने आकाश की ओर देखा-कोई तारा टूटकर गिर गया।
‘‘ देख, वो आकाश में देख, कोई तारो टूटो है। अबे, जरूर कई न कई वेगा !''
‘‘ वेई तो वेई, अबे आपा कईं कर सकां ! ''
खूमा और उदा चुप हो रहे।
नाथू बेचारा दिन भर के परिश्रम से क्लान्त था, लेकिन फिर भी बोल पड़ा-
‘‘ अणी भूरी ने कणी मारी। बापड़ी बारा तेरा साल रीजही। ''
‘‘ कई केइ सका ! कई-कई वेजा। अबे तो कई भरोसो इस नीरयो। मूं भी अबे तो चुपचाप देखूं।'' खूमा ने कहा। उदा फिर भी उदास ही रहा। खूमा ने चिलम सुलगाकर कश खींचा और चिलम उदा की ओर कर दी।
‘‘ अबे थारी कई मरजी है ? पुलिस आवेगा, आपाणा ब्यान लगा......''
‘‘ ब्यान-ब्यान लेगा ओर कई वेगा। भूरी तो पाछी आवेगानी ! ''
‘‘ पण अबे ब्यान कुण देगा।'' खूमा ने धुंआ उगलते हुए कहा।
‘‘ अबे कण्डी मोत आई जो ब्यान देगा, वे कई आपाने छोड़ देगा। आपाने ब्यान का झगड़ा में नी पड़नो। ''
हरिया भी आकर बैठ गया था, कहने लगा-
‘‘ ब्यान तो देणा पडसी ! आपाइस अगर ब्याण नी दांगा, तो फेर हत्यारों कूकर पकडा़येगा ? ''
‘‘ अरे भाया, थू टाबर है, मत बच में पड ! अणि राज-काज में मूं पूरो डूबग्यो हूं। खूमा ने बुजुर्गाना अन्दाज में कहा।
‘‘ मारी पूरी दस बीगा जमीन ये खाई गया, मां सब कई नी कर सक्या। सब सूअर, चोर ने बइमान हे। ''
‘‘ जवार लाल के मरेया पाछो कोइ गत रो आदमी नी बच्यो है। ये तो गिद्ध है गिद्ध, जो आपाणी लास रो मांस भी नोच-नोचने खावेगा। ..... आज भूरी री लास खावेगा, काले मारी और परसूं थारी लास खावेगा ! ''
‘‘ पण काका '' हरिया फिर बोला, ‘‘ आपांने अन्याय के खिलाफ आवाज तो उठाणी पड़सी। जो आज हरिजनां के लारे ब्यो, वो ने अगर सजा कराई दो तो ठीक रहे। ''
‘‘ थूं नी समझेगा ! '' उदा ने उसे टोका- ‘‘ आपण्ो अठे गरीबी सब सूं मोटो दोस है, और वणीरी सजा आपा सब भुगत रया है। ''
‘‘ तो थां सब ब्यान नी दोगा ? ''
‘‘ हां, माणी मरजी तो कोई नी। ये तो ब्यान लेई ने पराजाई, पछे आपांने रैणो तो अठेइज पड़ेगा। ''
‘‘ तो पछे ठीक है। मूं तो ब्याण दूंगा ! ''
‘‘ जसी थारी मरजी ! '' हरिया चल दिया। उदा, खूमा भी अपने-अपने घर चले गए।
जब से यह खौफनाक हादसा हुआ है, गांव के लोग रात को बाहर नहीं निकलते, अपनी-अपनी झोंपड़ियों में आंतकित-से पड़े रहते हैं।
इधर रात-दिन मंत्रियों, अफसरों और नेताओं की गाड़ियों की आवाजाही के कारण परेशानियां और भी बढ़ गयीं।
स्थानीय नेता और उपचुनाव के उम्मीदवारों ने तो अपना डेरा ही यहां डाल दिया, ताकि हर छोटी-बड़ी घटना का ध्यान रहे। कुछ पत्रकार भी किसी मसालेदार समाचार के इन्तजार में यदाकदा इधर आ जाते। गांव के शांत और सामान्य जनजीवन में एक तूफान -सा आ गया था, लेकिन गांव वालों को इससे कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ था। मक्का की रोटी और कच्चा कांदा ‘प्याज' खानेवालों को किसी ने भी यह नहीं कहा कि अब गेहूं की रोटी और सब्जी खाओ !
विरोधी पक्ष की मीटिंग की पूरी रिपोर्ट मदन जी ने अपने अनुचरों से प्राप्त कर ली थी। वे राव साहब की कोठी पर यही सब बताने को इतने सवेरे आये हैं। अभी राव साहब टहलने को लान में आए ही हैं कि मदनजी ने दण्डवत् कर रपट सुनाने का अभियान प्रारंभ किया-
‘‘ विरोधी पक्ष के नेता रामास्वामी ने बहुत अच्छा भाषण दिया।......ऐसी मीटिंग मैंने बरसों से नहीं देखी । ''
‘‘ तुम स्वयं गए थे वहां ? ''
‘‘ जी हां ! अगर रामास्वामी की मीटिंग का असर हा गया तो आपके प्रत्याशी के जीतने का कोई आधार नजर नहीं आता। लोगों में इस घटना को लेकर बड़ा रोष है ; पूरा क्षेत्र ही एक होकर विरोध में जा रहा है। पूरे लोक-सभा क्षेत्र में घूमा हूं मैं, सभी जगह सरकार के लिए केवल गालियां हैं। ''
‘‘ हूं.......!'' राव साहब कुछ नहीं बोले।
‘‘ तुम गांव के बारे में कुछ बताओ।''-अचानक राव साहब कहने लगे।
‘‘ छोटा-सा गांव है, और झगड़े की जड़ थी भूरी। कुछ लोगों का कहना है कि हरिया कुम्हार और हरिजन भूरी में कुछ प्यार-व्यार था, और इसी कारण कुम्हारों ने हरिजनों को जला दिया।''
‘‘ अच्छा.....! रामास्वामी ने वहां क्या कहा ? ''
‘‘ मैं आपकी आवाज संसद में उठाउंगा। मैं ये करूंगा, वो करूंगा। हमें भूरी के हत्यारे को पकड़ना है, आदि-आदि।''
‘‘ हूं....!'' फिर एक लम्बी चुप्पी। राव साहब की यही आदत थी जो मदनजी को पसंद नहीं है ; लेकिन क्या करें, कुछ तो सहना ही पड़ता है !
‘‘ अब विपक्षियों ने जिला मुख्यालय पर धरना देना शुरू कर दिया है। उन्होंने इस घटना को लेकर ‘प्रदेश बन्द ' का आयोजन भी कर दिया है.........! ''
‘‘ हूं.......! ''
‘‘ अगर ये सफल हो गये, तो यह सीट तो आपके हाथ से गई समझिये ! ''
‘‘ ऐसा नहीं होगा ! एक काम करो, वहां पर ऐलान कर दो कि राव साहब स्वयं आएंगे और उनके दुख-दर्द सुनेंगे। ''
‘‘ हां, अगर आप जाएं तो हवा बदल सकती है। ''
‘‘ और देखो, विरोधियों को विरोध प्रकट करने दो। लोकतन्त्र की मजबूती के लिए यह बहुत आवश्यक है। सभी अधिकारियों को आदेश दे दो कि ताकत का इस्तेमाल नहीं करें। ''
‘‘ जी अच्छा ! ''
‘‘ अच्छा, अब जाओ ! ''
राव साहब ने अपने सचिव को बुलवाया, ‘‘ हम मोलेला जाएंगे, प्रोग्राम बनाओ ! और सुनो, एक विशेष प्रेस-कान्फ्रेन्स बुलाओ । ''
‘‘ जी....''
आनन-फानन में प्रधानमंत्री -निवास पर पत्र प्रतिनिधियों की भीड़ इकट्ठी हो गयी। प्रधानमंत्री आये और कहने लगे-
‘‘ जो कुछ मोलेला में घटित हुआ, वो तो आप सभी को मालूम ही है। मैंने घटना की न्यायिक जांच के आदेश दे दिये हैं। मैं कानून और व्यवस्था को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहा हूं। मैं स्वयं इस गांव में जाकर दुखी और संतप्त लोगों से मिलूंगा, उनके बीच बैठूंगा, ताकि वस्तुस्थिति से वाकिफ हो सकूं .....''
'' कुछ लोगों का कहना है कि भूरी की मौत में सत्ताधारियों का हाथ है।'' -एक संवाददाता ने पूछा।
'' बकवास है। उस गांव में हम लोगों का क्या काम ! ''
‘‘ नहीं, कुछ स्थानीय नेता; जिनकी पहुंच उच्च पदासीनों तक है, इसके लिए जिम्मेदार बताये जाते हैं।''-एक संवाददाता जो मोलेला जाकर आया था, कहने लगा।
‘‘ नहीं, ऐसा नहीं हुआ ! तुम लोग उलटे-सीधे वक्तव्य छापकर जनता को गुमराह करते हो। ''
‘‘ तो क्या भूरी की मौत स्वाभाविक तरीके से हुई ? ''
‘‘ अभी मैं कुछ नहीं कहूंगा। जांच की रपट आने दो।...........अच्छा ! ''
यह कह प्रधानमंत्री तेजी से अन्दर चले गये। पत्र-प्रतिनिधि और विदेशी संवाददाताओं ने प्रधानमंत्री के साथ जाने के इरादे से अपने प्रोग्राम बनाये।
प्रधानमंत्री का काफिला तेजी से धूल उड़ाता हुआ मोलेला गांव की ओर बढ़ रहा था।
गांव के नजदीक आकर उन्होंने सामने से आते हुए एक अर्धनग्न ग्रामीण को देखकर गाड़ी रोकने का इशारा किया। तुरन्त पूरा काफिला रूक गया।
उन्होंने ग्रामीण को पास बुलाया। ग्रामीण हक्का-बक्का, डरते-डरते उनके पास आया-
‘‘ खमा अन्नदाता, घणी खम्मा ! जै रामजी की ! ''
‘‘ जै रामजी की ! '' राव साहब ने कहा, ‘‘ कहो भाई, ठीक तो हो ?''
‘‘ हां, हुजूर ! ''
‘‘ देखो, तुम्हारे शरीर पर कपड़ा नहीं है ; तुम यह कमीज पहन लो !'' यह कहकर राव साहब ने अपनी कमीज उतारी और ग्रामीण को दे दी । बेचारा ग्रामीण असमंजस में पड़ गया-क्या करे क्या न करे !
स्थानीय नेता जोशी ने कहा, ''अरे, ले लो ! हुजूर मेहरबान है साले ! '' और ग्रामीण ने कृतकृत्य होकर कमीज पहन ली। साथ वाली बच्ची को राव साहब ने पुचकारा और ब्रेड के टुकड़े खाने को दिये। बच्ची ने कभी ब्रेड देखी नहीं थी ; समझ न पाई कि इसका क्या करे।
इस बार भी स्थानीय नेता ने उबारा-
‘‘ खा ले.....खा ले.....खाने की है ! ''
‘‘ अच्छी है। ''
ग्रामीण और उसकी पुत्री अपने रास्ते चल दिये।
राव साहब ने नयी कमीज पहनी और काफिला आगे चला।
कुछ समाचार पत्रों ने राव साहब की दानशीलता का ऐसा चित्र खींचा कि स्वयं कर्ण भी शर्मा गया।
10
राव साहब के स्वागत में स्थानीय नेता और अफसर बिछे जा रहे थे। गांव से काफी दूर ही उन लोगों ने तोरण द्वार बनवाये थे। जगह-जगह राजस्थानी वेश-भूषा में लड़कियों ने मंगल-गान गाये। स्त्रियों ने आरती उतारी। राव साहब फूल-मालाओं से लदे-लदे डाक-बंगले तक पहुंचे। बिना विश्राम किये वे सीधे उस स्थल के लिए पैदल ही चल पड़े , जहां भूरी और उसके मां-बाप को जिन्दा जला दिया गया था।
तेज धूप थी। राव साहब पैदल सबसे आगे गांव की गलियों से गुजर रहे थे; साथ में अनेक छुटभ्ौये और अफसर । बेचारों को पैदल चलना पड़ रहा था। मन-ही-मन वे सभी इसे बूढ़े की सनक समझ रहे थे।
‘‘ साला खुद भी मरेगा और हमें भी मारेगा ! ''
‘‘ अरे, इसका क्या है-आज मरा कल दूसरा दिन !हमें तो जिन्दगी गुजारनी है।''
‘‘ लेकिन क्या करें ! नौकरी है। ''
‘‘ तो चलो पैदल !....सब कपड़े खराब हो गये। ''
त्ोजी से चलते हुए राव साहब पास की हरिजन की झोंपड़ी पर पहुंचे-
‘‘ जै रामजी की, काका ! ''
भीतर से आतंकित, आशंकित बूढ़ा बाहर आया।
‘‘ भूरी और उसके मां-बाप यहीं रहते थे ? ''
‘‘ जी, अन्नदाता ! ''
‘‘ आपके रिश्तेदार थे ? ''
‘‘ हां हुजूर, वे मारा काका रा बेटा हा। ''
‘‘ अच्छा....मुझे बहुत दुख हुआ है।'' राव साहब वहीं जमीन पे मुड्ढ़े को लेकर बैठ गये। बूढ़ा रोने लगा। और आश्चर्य के साथ सभी ने देखा, राव साहब भी उसके साथ-साथ रोने लगे। उन्होंने बूढ़े को सान्त्वना दी और कहने लगे-
‘‘ काका, अब क्या हो सकता है ! लेकिन मैं इस मिट्टी की कसम खाता हूं....'' राव साहब ने पास पड़ी उठा ली ‘‘ कि भूरी के हत्यारे को जरूर दण्ड दूंगा।''
बूढ़ा ये सब देख-सुनकर कृतकृत्य हो रहा था। राव साहब ने आसपास के घरों में झांका। एक जगह पानी पिया, कुछ और बातें कीं, और अपने काफिले को लेकर वापस लौट आये।
सायंकाल उसी स्थल पर राव साहब ने मीटिंग का आयोजन करवाया। स्थानीय नेताओं के बोलने के बाद राव साहब उठ खड़े हुए-
‘‘ माताओ, बहना ओर भाइयो !
आप पर बड़ा भारी दुःख आ पड़ा है। मुझे मालूम है कि हमारी गलती या लापरवाही के कारण ऐसा हुआ। मैं आप सभी से इसकी माफी मांगता हूं। क्षमा करें ! '' अब राव साहब असली बिन्दु की ओर अग्रसर हुए-
‘‘ भूरी की मौत और उसके मां-बाप को जिन्दा जला दिये जाने की खबर सुनते ही मैं यहां दौड़ा चला आया। मैंने अपने सभी कार्यक्रम रद्द कर दिये। अफसर नहीं माने। मैंने कह दिया-मैं पहले यहां आउंगा, और आया। मैं मानता हूं कि मेरे इस तरह यहां आ जाने से भी भूरी के हत्यारों की पकड़ हो जायेगी, ऐसा नहीं है; लेकिन मुझे बताया गया कि आप लोग आतंकित है, भयभीत हैं; बयान नहीं देना चाहते। मैं कहता हूं आप निर्भय रहिये, निर्भय बनिये। पहले वाले अकर्मण्य पुलिस अफसरों को हटाकर नये योग्य अफसरों को लगाया गया है । ये लोग आपके जान-माल की पूरी रक्षा करेंगे..........''
‘‘ इस मक्ख्ानबाजी से क्या होगा ? हम चुनाव नहीं होने देंगे ! '' भीड़ में से आवाज आयी। एक डी.आई.जी. और कई अन्य लोग उधर दौड़े। राव साहब ने उन्हें डांटा।
‘‘ नहीं , आप लोग यहीं ठहरिये ! ''
उन्होंने भीड़ की ओर मुखातिब होकर कहा-
‘‘ ठीक है, आप में रोष है- होना चाहिए ! अभी आप लोग उत्तेजित हैं। लेकिन थोड़े ठंडे दिमाग से सोचिये। क्या इस काण्ड का सीधा सम्बन्ध लोकसभा चुनाव से है? नहीं....
‘‘ लेकिन फिर भी अगर आप लोग नहीं चाहते तो चुनाव नहीं होंगे। हम चुनावों को स्थगित कर देंगे..........
‘‘ अब आप ये सोचिये, भूरी की हत्या किसने की, और उसको पकड़वाने में आप क्या मदद दे सकते है। अगर आप लोग सहयोग करें तो, हम तीन दिन में भूरी के हत्यारों का पता लगा लें............
‘‘ अब मैं एक दूसरी बात आपसे कहना चाहूंगा। मुझे बताया गया कि ऋण-योजना में इस गांव को अभी तक कुछ नहीं मिला.........
‘‘ जब तक राज्य-सरकार और इसके अधिकारी कुछ प्रबन्ध करें, मैं अपने कोष से पचास-हजार रूपये इस कार्य हेतु देता हूं !'' समर्थकों ने जोर से तालियां बजाई। जब तालियों की आवाज कुछ कम हुई तो राव साहब फिर बोले-
‘‘ भूरी के निकटतम रिश्तेदार काका को मैं पांच हजार रूपये का अनुदान देता हूं। ये रूपया वापस नहीं लिया जाएगा।''
(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)
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