‘‘ विश्वविद्यालय बंद है। मुनाफाखोर, तस्कर सक्रिय हैं। विद्यार्थी आंदोलन कर रहे हैं। ‘‘ किसान रैलियां निकाल रहे हैं। मजदूरों ने कारख...
‘‘ विश्वविद्यालय बंद है। मुनाफाखोर, तस्कर सक्रिय हैं। विद्यार्थी आंदोलन कर रहे हैं।
‘‘ किसान रैलियां निकाल रहे हैं। मजदूरों ने कारखानों में काम करना बन्द कर दिया है। सैकड़ों मिलों में तालाबन्दी है .....''
‘‘ हालात दक्षिण में भी खराब है ..... रामास्वामी ने कहा- ‘‘ तेलंगाना विवाद तो कहीं भाषा की लड़ाई । ''
‘‘ ऐसी स्थिति में यदि हम मिल जाएं तो राव साहब का पत्ता काट सकते हैं।''
--- इसी उपन्यास से
व्यंग्य उपन्यास
यश का शिकंजा
-यशवन्त कोठारी
‘‘ येन-केन-प्रकारेण हमें रानाडे को डाउन करना ही है ! राजधानी के होटल-काण्ड की मैंने नये सिरे से जांच के आदेश दिए है। रानाडे के खिलाफ एक आयोग बैठाने की भी बात सोच रहा हूं। लेकिन इस बीच तुम उन प्रदेशों में जाओ, जहां रानाडे के मुख्यमंत्री है, और किसी भी तरह वहां की सरकार गिराओ। जो भी सम्भव हो सके करो और सफल होकर आओ। ''
‘‘ देखिए, तीन में से दो प्रदेशों की सरकारें तो कभी भी गिराई जा सकती हैं, क्योंकि वहां पर रानाडे समर्थकों का बहुमत ज्यादा नहीं है। तीसरे प्रदेश हेतु ज्यादा मेहनत होगी ! ''
‘‘ कोई बात नहीं, हमें सब कुछ करना है ! ''
‘‘ अब तुम जाओ और कार्य शुरू करो, साथ में कुछ अनुचर और ले जाओ। ''
‘‘ ठीक है ! ''
किसी प्रान्त की राजधानी में मायादेवी श्रीवास्तव का पदार्पण बहुत बड़ी घटना मानी जाती है। मुख्यमंत्री जानते हैं कि केन्द्र में मायाजी का आना क्या मायने रखता है, और इसी कारण उनके आगमन को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है । जब से पता चला कि मायादेवी आ रही हैं, मुख्यमंत्री भयभीत हैं। उन्होंने मायादेवी के स्वागत-सत्कार की जोरदार तैयारियां कीं।
एअर-कण्डीशन्ड डिब्बे से उतरते ही अपने स्वागत में मुख्यमंत्री ही नहीं , पूरे मंत्रिमण्डल को देखकर वे खुश हुई, लेकिन उन्हें तो अपना काम करना था ! विधान सभा बन्द थी। वर्तमान मुख्यमंत्री के पास 110 विधायक थे और विपक्ष में 90 । मायाजी को 10-15 विधायक तोड़कर विपक्ष में मिलाने थे।
सुबह और रात में , हर समय उन्होंने काम किया उन्होंने नोटों की थैलियां खोल दीं।
उधर मुख्यमंत्री और उसके चहेते मंत्रियों ने भी डटकर मुकाबला किया। लेकिन कुछ हरिजन विधायकों को मायाजी तोड़ने में सफल हो गयीं। एक विधायक को उप-मुख्यमंत्री पद का लालच दिया गया।
दूसरे दिन अखबारों में प्रमुख समाचार था-
‘ वर्तमान सरकार अल्पमत में । '
‘ सरकार का इस्तीफा ! '
‘ नये मंत्रिमण्डल का गठन शीघ्र। '
मायाजी का काम समाप्त हो गया था । वे और उनके सचिव अगले प्रदेश की राजधानी हेतु उड़ चलें ; और मायाजी जब एक सप्ताह के बाद ही वापस राव साहब से मिलीं, तो राव साहब उनके कार्य से बहुत खुश थे, और इस खुशी में उन्होंने वह रात माया जी के नाम कर दी।
3
वे तीनों राजधानी के एक साधारण दारू के ठेके से पीकर निकल रहे थे।
एक भूतपूर्व मंत्री और वर्तमान विधायक हरनाथ थे, दूसरे एक पत्रकार थे राम मनोहर और तीसरे सज्जन व्यापारी ।
‘‘यार, इस देश का क्या होगा ? '' हरनाथ ने नश्ो में हांक लगायी।
‘‘ होना जाना क्या है-जैसा चल रहा है , चलता रहेगा ! '' व्यापारी ने बनिया- बुद्धि दर्शायी।
‘‘ देखो प्यारे , इस देश का भविष्य जनता के हाथों में पूर्णरूप से सुरक्षित है। लोकतन्त्र सुरक्षित है, अतः हमें चिन्ता की जरूरत नहीं है। आप और मेरे-जैसे पढ़े-लिखे गंवारों से ज्यादा बुद्धिमान है इस देश का अनपढ़ मतदाता , जो सही समय पर सही कदम उठाकर सरकार को चेतावनी दे देता है। ''
‘‘ तुम तो यार , भाषण देने लग ! नेता मैं हूं या तुम हो ? '' हरनाथ ने जोड़ा।
‘‘ देखो हरनाथ, अगर सरकारें ऐसे ही गिरती रहीं तो फिर मध्यावधि चुनाव होंगे और तुम्हारा वापस मंत्री बनने का सपना अधूरा रह जाएगा। अतः अगर कुछ कर सकते हो तो अभी कर लो। कल का भरोसा मत करों ! '' राम मनोहर ने अपना ज्ञान दर्शाया।
‘‘ राजनीति और पत्रकारिता में बहुत अन्तर है बच्चे , फ्रूफ उठाने से छपाई नहीं हो जाती। देखो, अभी तो होटल-काण्ड भी चल रहा है। मैं प्रदेश का पावरफुल एम.एल.ए. हूं, और इसी कारण मुख्यमंत्री ने भी प्रधानमंत्री को कहा है कि मुझे इस केस में फंसा दिया जाए। इधर रानाडे की नाव में छेद होता जा रहा है ! ''
‘‘ तो तुम क्या कर रहे हो ? ''
‘‘ करूंगा, समय आने पर सब कुछ करूंगा ! अभी तो तुम नश्ो को जमाने का इन्तजाम कराओ । ......''
तीनों ने मिलकर एक बोतल और पी, और फिर चल पड़े ।
‘‘ देखो, अगर केन्द्र से रानाडे हटते हैं तो हम तीनों ही नुकसान में रहोगे। ''
‘‘ राम मनोहर, तुम्हारे अखबार का कोटा मिल गया ? ''
‘‘ कहां यार !''
‘‘ तो तुम कल रानाडे से , मेरा नाम लेकर मिलो । और देखो, अपने अखबार में होटल-काण्ड को आत्महत्या का मामला लिख दो। बाकी मैं देख लूंगा। '' हरनाथ बोल।
एस.पी. वर्मा के जीवन में पहला मौका नहीं था यह , जब उपर के आदेशों के अनुसार रपट को बदलना पड़ता है । वे ऐसे कार्यो में माहिर है और इसी कारण चीफ ने जान-बूझकर उन्हें इस काम में लगाया है।
‘ दूध का दूध और पानी का पानी '- करने के लिए वर्मा ने पूरी फाइल पढ़ी और कल सुबह हेतु कुछ बिन्दु नोट किए ।
‘ होटल के बाहर जो कार खड़ी थी, उसमें हरनाथ थे। उनके बयानों को नोट करना । '
‘ लड़की की पास्टमार्टम-रिपोर्ट पर एक डाक्टर के हस्ताक्षर नहीं - इसको चेक करना। '
‘ होटल के मैनेजर के बयान लेना। '
‘ कार का ड्राइवर आज तक लापता है, क्यों ? '
ज्यों-ज्यों वर्माजी केस में उतरते गए, त्यों-त्यों उन्हें मजा आने लगा-अगर इस बार चीफ और पी.एम. की नजर में चढ़ जाउं तो सब ठीक हो जाए ।
लेकिन रानाडे और हरनाथ कच्चे खिलाड़ी नहीं थे। दूसरे दिन एक सड़क-दुर्घटना में एक टक ने एस.पी. वर्मा की जीप को कुचल दिया। वर्मा की मृत्यु घटनास्थल पर ही हो गयी।
इस दुर्घटना पर सबसे पहला शोक-सन्देश रानाडे का ही आया।
‘‘ श्री वर्मा एक कर्तव्य-परायण और जागरूक अधिकारी थे। उनके असामयिक निधन से मुझे दुख हुआ है। परमात्मा उनकी आत्मा को शान्ति दे ! ''
अखबारों ने राजधानी में बिगड़ती हुई कानून और व्यवस्था पर लम्बे-चौड़े लेख सचित्र छापे। कुछ ने सरकार की निन्दा की। आयंगार ने पूरा दोष सम्बन्धित मंत्रालय पर थोप दिया जो पी.एम. के पास था ।
पी.एम. इस अचानक वार से बौखला तो गए, लेकिन उन्होंने धैर्य नहीं खोया। वापस चीफ को बुलाकर किसी व्यक्ति को लगाने को कहा। इस बार इस बात का ध्यान रखा गया कि बात खुले नहीं , और गुपचुप सब तय किया गया।
इस कार्य से निपटकर पी.एम. अपनी स्टडी रूप में आए। आज उनका चित्त अशान्त था। गीता उठाई और पढ़ने लगे।
अनाश्रिताः कर्मफलं कार्य कर्म करोति यः।
स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्नचाक्रियः॥
मन नहीं लगा, उन्हें याद आया-
ना दैन्यं न च पलायनम्........
-युद्ध में न तो दीनता दिखाओ और न ही पलायन करो। आज उनकी स्थिति भी ऐसी ही हो रही है, लेकिन वे दीनता नहीं दिखाना चाहते। गीता से मन उचटा तो आज उन्हें रवि बाबू की-‘चित्त जेथा भय शून्य ' ..... याद आयी, वे उसे ही गुनगुनाने लगे।
लेकिन कहां , आज न निर्भयता है और न न्याय । वे परेशान हो उठे।
अभी पूरी तरह सवेरा नहीं हुआ है । मौसम साफ है। उपाकालीन प्रकाश चारों तरफ फैलना शुरू ही हुआ है। मन्द-मन्द समीर बह रहा है। राजधानी में ऐसी सुबहें अधिक नहीं आतीं ।
राव साहब आज जल्दी उठ लिये। विशाल कोठी के हरे-भरे लान में वे एक खादी की शाल डाले धीरे-गम्भीर चाल से टहल रहे थे। उनके साथ उनके विश्वास-पात्र मदनजी चल रहे थे। पिछले दिन की पूरी राजनीतिक गतिविधियों से राव साहब को अवगत कराने की जिम्मेदारी है मदनजी की , और उन्होंने इस कार्य में कभी कोई ढ़ील नहीं आने दी। राजधानी के किस कोने में कब कौन-कितने एम.पी. के साथ गुप्तगू कर रहा है, उनका अगला कदम क्या होगा, और इस अगले की काट क्या होगी, तुरूप का इक्का कब और कैसे चलना चाहिए। मदनजी ने राव साहब का साथ बरसों निभाया है, नमक खाया है, और अपनी बात को सही ढ़ंग से प्रस्तुत करना हैं। एस.पी. वर्मा की मौत को लेकर वे कह रहे थे-
‘‘ देखो, अपने रानाडे ने किस सफाई से सब काम कर दिया ! सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी । ''
‘‘ हां, इस बार वे सफल हो ही गए ! ''
उस दिन रानाडे के यहां मीटिंग में तीनों भूतपूर्व मुख्यमंत्री और करीब 100 एम.पी. थे, सभी मिलकर नयी पार्टी बनाने की बात कर रहे थे।
‘‘ हूं .....'' राव साहब कुछ नहीं बोले।
‘‘ तीनों मुख्यमंत्री तो रानाडे पर दबाव डाल रहे हैं कि वे भी सत्ता से अलग हो जाएं। ''
‘‘ तो कौन मना करता है ! ''
‘‘ लेकिन रानाडे नहीं निकलेंगे ! वे चाहते हैं कि सरकार को गिराकर फिर अलग हों । ''
‘‘ जब जहाज डूबता है तो चूहे पहले भागते हैं। और क्या समाचार है ? ''
विश्वेश्वर दयाल ने भी अपने सर्मथकों की मीटिंग का आयोजन किया है-
‘‘ कितने लोग थे ? ''
‘‘ राज्यमंत्री सुराणा और मनसुखानी थे। ''
‘‘ हूं ''-राव साहब इस बार भी चुप रहें वे शान्त मन टहलने लगे। मदनजी से रहा नहीं जा रहा था। आज राव साहब की चुप्पी उन्हें बहुत रहस्यमय लग रही थी। पता नहीं कब क्या हो जाए।
‘‘ अच्छा, अब तुम चलो ! '' उन्होंने मदनजी को जाने का इशारा किया। मदनजी के जाने के बाद उन्होंने फोन कर मनसुखानी और सुराणा को बुलवाया ।अपने चेम्बर में बैठ कर वे मनसुखानी और राज्यमंत्री सुराणा का इंतजार करने लगे। गृह-मंत्रालय से उन्होने इन मंत्रियों के खिलाफ की गयी जांच की फाइलें भी मंगवा लीं। उन्हें ही उलट-पलटकर देख रहे थे वे। दोनों मंत्री आए। बैठे।
‘‘ कल आप विश्वेश्वर दयाल के यहां मीटिंग में थे ? ''
सुराणा हकलाने लगे। मनसुखानी का पानी उतर गया।
‘‘ जी , हां ......''
‘‘ तो क्या आप उनके साथ हैं ? ''
‘‘ ऐसी तो कोई बात नहीं । ''
‘‘ तो फिर ? ''
‘‘ बात ऐसी है कि सुराणा ने कूटनीति का सहारा लिया- मुझे यह विभाग पसन्द नहीं है। ''
‘‘ तो आपको मुझसे मिलना चाहिए था। विश्वेश्वर दयाल इसमें क्या करेंगे ! ''
‘‘ ......................''
‘‘ खैर बोलो , क्या चाहते हो ? ''
‘‘ गृह मंत्रालय। '' सुराण ने सीधी बात की ।
राव साहब क्षण भर को झिझके फिर उबल पड़े।
‘‘ तुम्हारे काम तो ऐसे है कि जेल भेजा जाए, और तुम गृह मंत्रालय चाहते हो। ये देखो तुम्हारी फाइलें ! ''
‘‘ फाइलों में क्या रखा है, साहब ! मेसे साथ 60 एम.पी. हैं। बोलिए, क्या फैसला है ? '' राव साहब के चेहरे पर परेशानी के चिन्ह उभर आए-‘‘ और मनसुखानी तुम क्या चाहते हो ? ''
‘‘ अपने को तो आप उद्योग में लगा दीजिए । ''
‘‘ हूं, अच्छा हो जाएगा ! ''
अगले दिन समाचार-पत्रों में हेड लाइन थी-
‘ केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में फेर-बदल '
‘गृह विभाग सुराणा को। '
‘ उद्योग मंत्रालय में मनसुखानी ....'
देर रात को राष्ट्रपति ने आदेश प्रसारित कर इस फेर-बदल की पुष्टि कर दी ।
4
केन्द्रीय मंत्रिमण्डल की विशेष बैठक चल रही थी। कुछ राज्यों की विधान सभाओं और लोकसभा हेतु कुछ उपचुनावों पर विचार होना है।
प्रधानमंत्री राव साहब और रानाडे के समर्थकों में सीधी तथा तीखी झड़पें होने की सम्भावना को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री ने ये मीटिंग बुलाई है। उन्होंने अपने प्रारम्भिक भाषण में, देश में व्याप्त अकाल और बाढ़ की ओर अपने साथियों का ध्यान खींचा। बढ़ती मंहगाई, लूटपाट, आगजनी, हत्याएं,बलात्कार, आरक्षण के पक्ष और विपक्ष में देश के हर कोने में रोज होनेवाले आन्दोलन, विदेशों में देश की गिरती हुई प्रतिष्ठा, बढ़ती मुद्रास्फीति आदि सभ प्रश्नों को बिना लाग-लपेट के उन्होंने कहा।
मूल प्रश्न पर आते हुए उन्होंने निकट भविष्य में राज्य विधान-सभाओं के चुनाव की बागडोर अपने विश्वस्त अनुचर मदनजी को सौंपने का तय किया और लोकसभा उनचुनावों की बागडोर रानाडे को सौंपी ।
रानाडे कहां मानने वाले थे -
‘‘ अगर विधान-सभा चुनावों में उम्मीदवारों का चयन सही नहीं हुआ तो उसका प्रभाव लोकसभा पर भी पड़ेगा, सत्ताधारी पक्ष हार जाएगा ! ''
‘‘ देखा, सभी कार्य एक साथ एक आदमी नहीं कर सकता। सत्ता का विकेन्द्रीकरण आवश्यक है ! '' राव साहब रानाडे के इस वार को झेल गए।
आप और मैं , यहां दिल्ली में बैठकर देश के आन्तरिक मामलों पर विचार तो कर सकते है, लेकिन गांवों, झोंपडियों और ढाणियों में क्या हो रहा है - यह जानना भी आवश्यक है। और इस बार उम्मीदवारों का चयन ताल्लुका, तहसील और पंचायतों के आधार पर होगा। ''
इस बार रानाडे फिर उलझ पड़े-
‘‘ तो फिर आप ये चुनाव नहीं जीत पाएंगे । ''
‘‘ चुनाव ढाणियों में नहीं, मैदानों में लड़े और जीते जाते हैं। '' मुस्कराते हुए राव साहब के चेहरे पर शिकन तक नहीं आयी, उन्होंने वैसे ही हुए कहा-
‘‘ जैसे भी हो , हमें सत्ताधारी पक्ष की लाज बचानी है।
‘‘ सत्ता की द्रौपदी पर सभी , कौरव और पाण्डव एक होकर लगे हुए है। '' रानाडे फिर फुफकारे।
‘‘आपने पिछले मास ही हमारे गुट के मुख्यमंत्रियों को गद्दी से उतार दिया। ''
‘‘ कोई किसी को नहीं उतारता भाई ! सब कर्मों का फल है। अगर उन लोगों को जाना था तो वे गए ! '' राव साहब अभी भी शान्त ही थे ।
‘‘ नहीं ! आपने जान-बूझकर मेरा पक्ष कमजोर किया है। आप क्या मुझे बच्चा समझते हैं ! '' रानाडे फिर गुर्राये ।
‘‘ देखो रानाडे ''- अब उनके के चेहरे पर क्रोध की एक हल्की-सी झायी , ‘‘क्या मैं नहीं जानता कि एस.पी.वर्मा की मृत्यु कैसे हुई या होटल- काण्ड में कौन लोग दोषी हैं ! ''
‘‘ अगर आप जानते हैं तो कार्यवाही कीजिए। हम कब मना करते हैं ! '' इधर रानाडे के समर्थकों ने हो-हल्ला मचाना शुरू कर दिया।
मीटिंग अधूरी छोड़नी पड़ी।
कुछ समय बाद उम्मीदवारों के चयन पर फिर बहस हुई। इस बार पी.एम. के उम्मीदवार खड़े हुए, वहां रानाडे ने दिग्गजों को खड़ा करने की सिफारिश की। जहां रानाडे के उम्मीदवार थे, वहां पी.एम.ने दिग्गज लोगों को खड़ा किया।
पिछले चुनावों में विरोधी दल के नेता के रूप में रामास्वामी जीतकर आ गए थे, लेकिन इनके अधिकांश सहयोगी इस चुनाव की वैतरणी को पार नहीं कर सके, और वे सभी अपने क्षेत्रों में प्रेत-काया बन विचरण करने लगे।
रामास्वामी वैसे तो मद्रास के हैं, लेकिन हिन्दी ठीक-ठाक बोलने लगे हैं, इसी कारण अपने आपको राष्ट्रीय स्तर का नेता मानने लगे। जोड़-तोड़ करके उन्होने दिल्ली में अपने खास लोगों को खास ओहदे दिला दिए। वैसे भी सचिवालय पर अंग्रेजी का आधिपत्य होने के कारण रामास्वामी को कभी कोई दिक्कत नहीं आयी। नार्थ ऐवेन्यू के छोटे फ्लैट को छोड़कर रामास्वामी केबिनेट दर्जे की एक कोठी को सुशोभित करने लगे ।
कई विरोधी दलों में से एम.पी.को तोड़-ताड़कर उन्होंने अपनी शक्ति का विस्तार कर लिया। गहरे काले रंग का चश्मा और उसी रंग के सूट में जब वे लोकसभा में विपक्ष की ओर से सरकार की बखिया उधेड़ना शुरू करते, तो कनिष्ठ मंत्री सदन का भार झेलने में असमर्थ रहते। अधिकांश मंत्री इस काल में सदन से बाहर चले जाते। आंकड़ों, तथ्यों और घटनाओं का पैना विश्लेषण करने में कुशल रामास्वामी सभी मंत्रालयों के क्रियाकलाप पर तीखे प्रहार करते। अक्सर राव साहब स्वयं उनकी जिज्ञासाओं को शान्त करते और रामास्वामी चुप्पी साध जाते। सांयकाल राव साहब उनको कोठी पर बुलाते, बतियाते, सार्वजनिक मसलों पर गम्भीर मंत्रणाओं का जाल रचते, और अन्त में रामास्वामी कुछ समय के लिए विदेश चले जाते या अपने भतीजे-भानजे के नाम पर किसी नयी फैक्टरी का लाइसेन्स लेकर आते।
इन दिनों भी स्थिति बिगड़ रही थी। रामास्वामी होटल-काण्ड और राजधानी में व्याप्त हिंसा और मारपीट की घटनाओं पर बहस की मांग कर रहे थे। विपक्ष के सदस्य उनके समर्थन में थे। लेकिन सत्ताधारी पक्ष और विशेषकर रानाडे के साथी इसका विरोध कर रहे थे। अगर बहस हो तो सब गुड़-गोबर होने का अंदेशा था।
रामास्वामी ने वर्मा की रहस्यमय मृत्यु की जांच की मांग की।
सत्ताधारी पक्ष इसे भी नकारना चाहता था। लेकिन बहस का सूत्र राव साहब ने अपने हाथ में ले लिया-
‘‘ मुझे अफसोस है कि एक कर्त्तव्य-परायण और ईमानदार अफसर का ऐसा दुखद अन्त हुआ। हमने केस सी.बी.आई.के वरिष्ठ अधिकारी को दे दिया है। रिपोर्ट आने पर सदन को इसकी सूचना दे दी जाएगी, और अगर आवश्यक हुआ तो दोषी व्यक्तियों पर मुकदमे चलाये जाएंगे। ''
‘‘ लेकिन क्या वर्मा होटल-काण्ड की जांच करने के कारण मारे गए ? ''
‘‘ नहीं, इस केस का होटल-काण्ड से सम्बन्ध जोड़ना उचित नहीं होगा। '' -रानाडे के एक समर्थक बीच में ही बोल पड़े।
राव साहब ने उन्हें इशारे से मना किया और कहने लगे-
‘‘ जब तक जांच की रिपोर्ट नहीं आ जाती, हमें किसी प्रकार की अटकलबाजी नहीं करनी चाहिए। हमें रिपोर्ट आने तक इन्तजार करना ही पड़ेगा ! '' रामास्वामी इस बार कुछ न कह सके। उनके साथी भी चुप्पी लगा गए। बहस अधूरी, हवा में लटक गयी।
आज अर्से बाद रामास्वामी को रानाडे का फोन मिला। किसी गुप्त मंत्रणा हेतु।
सायंकाल के भोजन पर रानाडे और रामास्वामी साथ-साथ थे।
रानाडे उन्हें अपनी योजना समझा रहे थे-
‘‘ देश की स्थिति बिगड़ रही है। घेराव, हड़ताल, तोड़फोड़, अराजकता की स्थिति है। ''
‘‘ चारों तरफ अजीब माहौल हो गया है। लगता है, कानून और व्यवस्था नाम की कोई चीज ही नहीं है ! हर रोज अखबारों में ऐसे समाचार आते हैं कि बस मत पूछो ! ''
‘‘ विश्वविद्यालय बंद है। मुनाफाखोर, तस्कर सक्रिय हैं। विद्यार्थी आंदोलन कर रहे हैं।
‘‘ किसान रैलियां निकाल रहे हैं। मजदूरों ने कारखानों में काम करना बन्द कर दिया है। सैकड़ों मिलों में तालाबन्दी है .....''
‘‘ हालात दक्षिण में भी खराब है ..... रामास्वामी ने कहा- ‘‘ तेलंगाना विवाद तो कहीं भाषा की लड़ाई । ''
‘‘ ऐसी स्थिति में यदि हम मिल जाएं तो राव साहब का पत्ता काट सकते हैं।''
‘‘ सो कैसे ? ''-रामास्वामी की आंखों में चमक आयी। देखो, मेरे सौ एम.पी.हैं, तुम्हारे पास पचास-साठ है; अगर अपन मिलकर नयी पार्टी की धोषणा कर दे तो यह अल्पमत की सरकार हो जायगी- गिरेगी और राष्ट्रपति आपको बुलाएंगे। आप सरकार बना लेना। '' रानाडे कुटिलता से मुस्कराया। रामास्वामी इस दाव को समझ नहीं पाये। लेकिन प्रधानमंत्री की कुर्सी का सपना उन्होंने अवश्य देखा था। अगर यह सब सम्भव हो तो क्या कहने ! उन्होंने बात को तोलने की गरज से पूछा-
‘‘ आपका क्या होगा ? ''
‘ अरे भाई, हम तो तुम्हारे सहारे पड़े रहेंगे। अब मेरी पटरी राव साहब से नहीं बैठ सकती। इस कारण कह रहा हूं। ''
‘‘ कुछ कर गुजरे ! हम एक विशाल रैली का आयोजन कर रहे हैं। दस लाख लोग आएंगे ; तुम चाहो तो उसी रैली में घोषणा कर दो। ''
‘‘ नहीं ! इतना जल्दी तो सम्भव नहीं होगा ; मुझे मित्रों से भी पूछना होगा । ''
‘‘ खैर, बाद में बता देना। ''
दोनों मुस्कराते हुए बाहर आये। रामास्वामी कार में बैठे और चल दिए।
रानाडे बेडरूम में गए। गोली खायी, सचिव को मिस मनसुखानी को भेजने को कहा और सो रहे।
(क्रमशः अगले अंकों में जारी…)
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