हरि भटनागर की कहानी : हुलिया

SHARE:

दो पहर को जब मालिक नहीं आया, मोटर गैराज में काम करने वाले तेरह बरस के नारू को लगा कि अब नहीं आएगा। इसलिए भी कि दोपहर को न आने पर मालिक अक...

दोपहर को जब मालिक नहीं आया, मोटर गैराज में काम करने वाले तेरह बरस के नारू को लगा कि अब नहीं आएगा। इसलिए भी कि दोपहर को न आने पर मालिक अक्सर आता नहीं था। अभी-अभी उसने और उसके चार साथियों ने जो क़रीब-क़रीब उसी की उमर के थे, मिलकर आठ-दस गाड़ियाँ धो-धाकर भन्नाट की थीं। अब उनके पास फ़िलहाल काम न था, इसलिए फ़ालतू बैठे थे।

सभी साथी जब बीड़ियाँ धौंकने लगे और उस लड़की की हँस-हँसकर बातें करने लगे जो ऊँची एड़ी की सैंडिल, कसे कपड़े पहने जिनमें से उसका समूचा शरीर फाड़कर निकल पड़ना चाह रहा था - लहराती हुई निकली, नारू बाँह खुजलाता हुआ, यूँ ही, नीम के पेड़ की ओर बढ़ा, जहाँ दो-चार रोज़ से एक नाई बैठने लगा था। नाई बूढ़ा था और चुँधी आँखों वाला। गाल उसका हमेशा फड़कता ही रहता मानों किसी मच्छर या गन्दी मक्खी ने काट खाया हो। टाट के एक छोटे-से टुकड़े पर बैठा वह ऊँघ रहा था। ज़मीन पर नीम से टिका दो बालिस्ता आईना था। उसके आस-पास हजामत बनाने के सामान थे। जगह-जगह बारीक काले, सफे़द बाल बिखरे थे। साबुन की गन्ध थी। लगता था कि अभी कुछ देर पहले किसी की हजामत बनाई गई है। नारू तफ़रीहन, वहाँ खड़ा हो गया था जब आईने में उसे किसी नाले से निकाला हुआ मैला सना चैला नज़र आया। आईने में उसे वह चैला ख़राब लगा। जब चैला हिला और लगा कि यह चैला नहीं, उसका अपना पैर है तो उसे इन्तहा दुख हुआ। उसका पैर ऐसा कैसे हो गया? बैठकर वह इस पर सोचने ही जा रहा था कि आईने में उसे अपना चेहरा दिखा। कहीं दूसरे का चेहरा तो नहीं - इस ख़्याल से उसने पलटकर पीछे देखा - कोई न था। यक़ीन तो नहीं हुआ लेकिन जब चेहरा कई बार हिलाया-डुलाया तो यक़ीन हुआ। यह उसका ही चेहरा है। सालों पहले उसने अम्मी के छोटे-से, चटके आईने में अपना चेहरा देखा था। उस वक़्त उसके चेहरे पर लाली थी। आँखों की पुतलियाँ काली और गटे सफे़द थे। बाल छोटे-छोटे थे और ललछौंह। इस वक़्त वह नारू न होकर बीमार बन्दर बल्कि उससे बदतर लग रहा था। आँखें अन्दर को धँसी थीं। मुँह पर सफे़दी और झुर्रियाँ थीं। बाल बिखरे और लटों की शक्ल में निहायत गन्दे थे। हाथ-पैरों और गले-गरदन और छाती के गिर्द मैल की काली परत दिखती थी जिसे नाख़ून से आसानी से खुरचा जा सकता था। बनियाइन तेल-मोबीआयल सनी, पानी से तर थी। उसे धक्का-सा लगा। गाड़ी को साफ़-दन्नाक करने वाला वह ख़ुद ऐसे हुलिए में है! छि है!!!

दिमाग में उसके यकायक एक विचार आया और वह चहक उठा। सिर को उसने पीछे, पीठ की तरफ़ छोड़ा और ठठाकर हँसते हुए दो-चार क़दम बढ़ा। इस प्रक्रिया में वह नाई से टकरा गया और उसके ऊपर गिरते-गिरते बचा। इस बीच उसने बनियाइन उतार ली और उसे लहराता हुआ दौड़ पड़ा। वह अपना हुलिया दुरुस्त करेगा - एक बेहतर इन्सान बनेगा! यह बात उसे पुलकित कर रही थी और वह हवा भरे जाते ट्यूब की तरह फूलता जा रहा था। बड़ा-सा पुल, कोयले की सिलसिलेवार दुकानें, कबाड़खाना, चिकमण्डी जहाँ लोगों के हल्ले के बीच कूड़े के ढेर पर चील-कौवों और कुत्तों की मार-काट थी - तालाब का छोर, मस्जिद और वह घोड़ा जिसके मुँह पर चारे का थैला बँधा था, पार हुए और वह चक्करदार गलियों के जाल को पीछे छोड़ता एक छोटे-से टपरे के सामने रुका जो कि उसका अपना घर था। टपरे के सामने नाली थी जिस पर असंख्य मच्छर भनभना रहे थे। नाली फलाँग कर वह टपरे के पास आया। दरवाज़ा यानी टटरा तारों से बँधा था। वह ताला था। बैठकर उसने ताले को खोला अैर टटरे को खिसकाकर अन्दर घुसा। थोड़ी देर में जब निकला, हाथ में उसके लौकी के बिए बराबर साबुन था।

कूदता हुआ, दुलकी चाल में वह बम्बे पर गया। बम्बे में टोंटी नहीं थी। उसकी जगह किसी ने लकड़ी ठोंक रखी थी। नारू ने पहले शराफत से लकड़ी निकालने की कोशिश की, फिर थोड़ा गुस्सा कर पत्थर से ठोंका-पीटी की, इस पर भी जब लकड़ी ने अपनी ऐड़ न छोड़ी तो वह मइयो-बहन पर उतर आया और उसने उस पर एक करारी लात दे मारी। लात पड़ते ही पानी फौवारे की शक्ल में बह निकला। एक धार ऊपर को उछल रही थी, दूसरी नीचे। नीचे वाली धार मोटी थी जिसे छूकर उसने पानी के सर्द-गर्म होने का अन्दाज़ लगाया। पानी ठण्डा था। उसमें सिहरन-सी तैर गई। लेकिन दूसरे ही क्षण वह धार के नीचे बैठा था पालथी मारकर। थोड़ी देर में उसने बदन में साबुन मलना शुरू किया।

काफी देर तक वह नहाता रहा। जब मैल की जगह बदन पर सुर्ख ददोरे बन गए और पाँच-छः औरतें बाल्टी-मटके लिए उसके हटने का इन्तज़ार करने लगीं, वह हटा और सिर से पानी काँछता, कूदता हुआ उसी दुलकी चाल से टपरे में घुस गया।

अम्मी की बहुत ही पुरानी, गली-सी धोती से जो छूने से फट रही थी, बदन पोंछने के बाद ख़्याल आया कि उसके पास एक नीली कमीज़ है जिसे अम्मी पिछले दिनों इज्तिमा से ख़रीदकर लाई थी। उसमें बटन लगाने थे और दो-एक जगह रफू करना था। अम्मी ने यह कमीज़ ईद के लिए ख़रीदी थी। और समय निकाल कर दुरुस्त कर दी थी। ईद पर नहीं, आज वह उसे पहनेगा! ईद से बढ़कर है आज का दिन! कमीज़ की खोज में लग गया वह।

टपरे में घुसते ही नीम-अन्धेरा छा जाता था। एकदम से घुसने पर लगता कि किसी सुरंग में आ गए हैं। लेकिन धीरे-धीरे हल्का उजाला छा जाता था। इस पर भी ज़्यादातर अन्दाज़ से काम लिया जाता था। नारू खोज में लगा था और कमीज़ थी कि मिल नहीं रही थी। ऊपर से डोरी टूट गई जिस पर कपड़े टँगे थे। उसमें यकायक डर समा गया रस्सी के टूटने का। अम्मी को पता न लगे, नहीं वह धुनक डालेगी - इस ख़्याल से वह डोरी को बाँधने लगा। लेकिन डोरी में गाँठ नहीं लग रही थी। गाँठ लगाने पर वह छोटी हो रही थी। आख़िरकार वह खीझ गया। जो होगा, देखा जाएगा - बुदबुदाते हुए उसने डोरी छोड़ दी और कपड़े की ढेरी लिए टटरे के पास आया। नीली कमीज़ ऊपर दिख गई। कमीज़ को जब उसने झाड़कर देखा उसमें बड़े-बड़े छिद्दे थे। चूहों ने बीच-बीच में उसे खा लिया था। उसने सोचा था कि कमीज़ में वह हीरो लगेगा। मगर यहाँ चूहों ने हीरो को कबाड़ी में बदल दिया था। अब क्या पहने वह? पूरी कमीज़ बरबाद हो गई थी। रफू से भी काम नहीं चल सकता था। उसे अम्मी पर बेहद ग़्ाुस्सा आया जो इस वक़्त काग़ज़-पन्नियाँ बटोर रही होगी, कन्धे पर बोरा लादे, चुड़ैल की तरह! एक कमीज़ को वह सँभालकर नहीं रख सकी! हद है! ज़रा भी अकल नहीं है उसमें! बाप ने तभी उसे घर से हकाल दिया लात मार के और दूसरी लुगाई रख ली। ...वह बड़बड़ा रहा था, तभी उसे छोटा-सा झिलमिल सुनहरा शाल मिल गया जो साबुत था और बला का सुन्दर। कमीज़ के ऊपर इसे ओढ़कर वह अपनी इच्छा पूरी कर सकता है। वह ख़ुश हुआ। यकायक उसे आईने का ध्यान आया। वह खोजने लगा। लेकिन वह मिल नहीं रहा था। हालाँकि इस कोशिश में चूल्हे के डिब्बा-डिबिये गिर गए। कूल्हे पर आहिस्ता से रगड़कर उसने आईना साफ़ किया। इस तरह सँभाल कर कि चिटका आईना कहीं काट न खाए।

आईने में उसे जो कुछ दिखा, वह अच्छा था, उत्साहवर्धक। यही वजह थी कि वह फ़िल्मी गीत की कोई कड़ी होंठों को गोल करके सीटी में गा उठा। कपड़ों को लात से किनारे किया और उँगलियों से बाल काढ़े। छिद्देभरी कमीज़ पहनी। उस पर सुनहरा शाल डाला और थोड़ा तिरछा हुआ उसी तरह जैसे फ़ोटो में उसने शाहरुख को देखा था। दायाँ हाथ होंठों पर जमाया मानों उँगलियों में सिगरेट फँसी हो और बिना टटरा लगाए, तार कसे, वह झुग्गी से बाहर निकला - सीटी बजाता हुआ।

उसे लगा कि नाली के उस पार जंगी झुका हुआ जैसे कि वह पीठ पर बतौड़ी की वजह से चलता है - सामने आ खड़ा हुआ और उसे अजीबोगरीब निगाह से देख रहा है, आश्चर्य से खुले होंठों पर उंगलियाँ रखे।

नारू ने उसे ज़ोरों से झिड़का - क्या देख रहा है बे, ऐसे चूतियों की तरह!

जंगी ने हकलाते हुए कहा - मैं, मैं नारू को देख रहा हूँ या...

नारू अकड़ता बोला - अबे चूतिए! मैं नारू थोड़े हूँ! मैं शाहरुख खान हूँ! शाहरुख खान!!!

- क्या? - जंगी ठठाकर हँस पड़ा - शाहरुख खान! बो तो बम्बे में रहता है। यहाँ कहाँ?

- तू चूतियई रहेगा हमेशा! - नारू ने कहा - शाहरुख खान बम्बे में नहीं, तेरे सामने है, झकलेट!!!

किसी के चीखने-चिल्लाने से उसकी तन्द्रा भंग हुई। देखा तो बस्ती के बहुत सारे औरत मर्द-बच्चे थे जो कै़दियों की तरह एक-दूसरे से बँधे टपरों के बीच की निहायत ही सकरी कुलिया में जानवरों की तरह चीख-चिल्लाकर बतिया रहे थे। उसने महसूस किया कि उसको देखकर यकायक सब चुप हो गए हैं। फुसफुसी-सी फैल गई है उनके बीच। कुहनी मारते हुए वे आँखों से इशारे कर रहे हैं।

वह तन गया। कालर छुआ और इस तरह चला जैसे पिछली दफा बस्ती में आया आफिसर चला था।

कनखियों से देखता हुआ वह तेज़ी से आगे बढ़ा। कुहनियाँ और इशारे चल रहे थे। एक बिखरे बालों वाली औरत अपने लड़के को शायद इसलिए चीखते हुए लतियाने लगी थी क्योंकि वह नारू की उमर का था और नालायक! जबकि नारू क्या से क्या हो गया!

नारू मुस्कुराया और उसकी यह मुस्कुराहट काफ़ी देर तक बनी रही जबकि लड़के के रोने-चीखने की आवाज़ काफ़ी पीछे बेजान होकर छूट गई थी। यही नहीं, कूड़े के ढेर पर बसी उसकी बस्ती, उसके रहवासी और चील-कौवों का हुजूम सब पीछे छूट गया था। उसने पलटकर देखा - धूप में सब कुछ गर्दो-गुबार में डूबा था।

उसने सोचा कि वह गैराज की तरफ़ चले। वहाँ अपना नक्शा तो दिखाए अपने हीरोहोण्डों को! फिर सोचा कि नहीं, वह वहाँ नहीं जाएगा। बाज़ार में घूमेगा। मस्ती करेगा।

जिस मुकाम पर अब वह है, वहाँ से सुन्दर-सी कालोनी शुरू होती थी। साफ़-सुन्दर, एक से रंग में पुते मकान। बाहर बड़ा-सा गेट। हरी-हरी घास। रंग-बिरंगे फूल और मकानों पर चढ़ी लताएँ। नारू यहाँ से क़रीब-क़रीब रोज़ाना गुज़रता था डरता हुआ। पता नहीं क्यों उसे लगता कि वह चोर-गिरहकट है। आज महसूस हुआ कि वह चोर-गिरहकट जैसा कुछ नहीं। एक अच्छा इन्सान है जिसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता। ऐसा सोचता, तना हुआ वह कालोनी से गुज़रा। लोग उसे देख रहे थे, आपस में खुसफुस कर रहे थे, इससे बेखबर वह आगे बढ़ा।

जब वह रुका, कालोनी काफ़ी पीछे गर्द में डूबे, फूटे मर्तवान-सी चमक रही थी। तारकोल की सड़क पर जगह-जगह बेजान-सी छाँह लेटी थी, लगता था, पानी फैला है।

वह आगे बढ़ा।

सामने कूड़े का पहाड़ तना था। कूड़े के ढेर में उसे कुछ हिलता दिखाई दिया। ग़ौर से देखा तो दो लड़के थे। कूड़े में खोए हुए लगते थे। कन्धों पर बोरा लादे वे झुके हुए थे। कुछ बीन रहे थे। दोनों एक उमर के लगते थे। उनमें कुछ सजीव था तो वे आँखें थीं जिन्हें नचाते हुए वे एक-दूसरे से इशारे कर रहे थे। नारू को उनकी आँखों के सामने कुछ हिलता दिखा। ये हाथ थे जिन्हें वे हिला रहे थे। शायद सलाम कर रहे थे।

नारू को लड़कों का सलाम करना अच्छा लगा। ख़ुशी से भर उठा। कुछ है वह, पुलिस इंस्पेक्टर जैसा! यह विचार आते ही वह यकायक ज़ोरों से गरजा। उसका गरजना था कि लड़के भयभीत हो गए और बोरों को छोड़ भाग खड़े हुए। कूड़े को वे छोटे-छोटे पाँव से फलाँगते जा रहे थे। जगह औंधक-नीची थी इसलिए वे लड़खड़ा जाते। गिरने-गिरने को होते किन्तु सँभल जाते थे।

थोड़ी देर में दोनों पुल के नीचे खो गए। पता नहीं क्यों नारू को उनका खोना ख़राब लगा। सोचने लगा कि हो सकता है, थोड़े इन्तज़ार के बाद दोनों आएँ। लेकिन जब नहीं आए तो वह पुल की ओर बढ़ा।

पुल के बीचोंबीच आकर वह खड़ा हो गया। गरदन निकालकर उसने पुल के नीचे झाँका। घास में छिपा नाला हल्की गूँज के साथ बह रहा था। नारू को काफ़ी पहले की घटना याद हो आई जब वह नाला फलाँगना चाहता था, फलाँग नहीं पाता था। नाले में गिर जाता था। साथ के दूसरे लड़के थे जो एक सपाटे में कूद जाते थे। सिर्फ़ वही था जो कूद नहीं पाता था। इस वक़्त उसे अपने मन की साध पूरी करने की इच्छा हुई। लेकिन अपने रुआब का ख़्याल कर उसने अपनी इच्छा को दबा दिया।

कार के ट्यूब जितना सूरज जब क्षितिज में धीरे-धीरे बैठ रहा था, नारू न्यू मार्केट की तरफ़ बढ़ा जहाँ दुकानें रोशनी में चमक रही थीं। चैड़ी-सी सड़क थी जिसके एक तरफ़ लाइन से अनगिनत कारें और स्कूटरें खड़ी थीं और दूसरी तरफ़ काँच के दरवाज़ों वाली दुकानें थीं। बहुत ही सुन्दर, चमकते कपड़ों से सजे-धजे-स्त्री-पुरुष दुकानों का दरवाज़ा ठेलकर आ-जा रहे थे।

नारू जिस दुकान के बाहर खड़ा था, वह सोने-चाँदी की दुकान थी। दुकान में इतनी रोशनी थी मानों हजारों सूरज को कै़द कर लिया गया हो। थोड़ा आगे अर्धवृत्ताकार घेरे में आइसक्रीम की दुकानें थीं जहाँ लोग हँसते-खिलखिलाते हुए आइसक्रीम खा रहे थे और पेप्सी पी रहे थे। दुकानों के सामने तीन-चार गुब्बारे वाले थे जो बड़े से अड्डों में बेहिसाब गुब्बारों के तोते, बन्दर बाँधे थे और चुटकियों से गुब्बारे बजाते जाते थे। उनके ही सामने दस-पन्द्रह नवयुवक थे जो अपनी-अपनी मोटर-साइकिल और स्कूटरों पर बैठे सिगरेट फूँकते हुए ठहाके लगा रहे थे।

एक लड़के ने जिसकी कमीज़ के सारे बटन खुले थे और जिसमें से उसकी सुन्दर छाती चमक रही थी, कहा - आज शाहरुख खान शहर में है।

दूसरे लड़के ने हँसते हुए कहा - मुझे तो उसका शाल जँचता है।

तीसरे ने कहा - क्या रुआब से चलता है यार! जी करता है क़दमों पर बिछ जाऊँ।

नारू ने तिरछे चलते हुए कनखियों से लड़कों को देखते हुए मन में आह्लादित होकर कहा - क़दमों में बिछने की ज़रूरत नहीं है। इत्तई काफ़ी है।

एक नवविवाहित जोड़ा ख़ूबसूरत लिबासों में एक-दूसरे का पंजा जकड़े खिलखिलाता जा रहा था। नारू मुस्कुराता उनके समानान्तर चला। किसी बात पर नवयुवती ही-ही कर हँसी। नारू भी उसी अन्दाज़ में ही-ही कर हँस पड़ा। थोड़ी देर बाद जब नवयुवक ने खी-खी करते हुए ज़ोरों का ठहाका लगाया तो नारू ने भी खी-खी की और ज़ोरों का ठहाका दे मारा।

यकायक नवयुवक ने देखा, कोई लड़का उसके बराबर चलता हुआ उसकी नकल कर रहा है तो वह सहसा रुक गया। उसको रुकता देख नारू भी रुक गया। नवयुवक ने तनकर नारू को घूर कर देखा तो नारू ने भी नवयुवक को उसी तरह घूर कर देखा।

नवयुवक ने ज़मीन पर जूते चटकाए तो नारू ने भी अपने नंगे पैर की एड़ी चटका दी।

इस पर नवयुवती खिलखिलाकर हँस पड़ी तो नारू भी उसकी तरह खिलखिलाकर हँस पड़ा।

नारू की हरकत पर नवयुवती हँस-हँसकर दुहरी हुई जा रही थी। नारू भी उसी की तरह हँस-हँसकर दुहरा होने लगा।

यकायक नवयुवक ने नवयुवती के पंजे में अपना पंजा फँसाया और एक तरफ़ को मुड़ गया।

नारू ने हवा में पंजा लहराया और उसी तरह कल्पना में नवयुवती के पंजों में अपना पंजा फँसाया और दूसरी तरफ़ मुड़ गया।

वह काफ़ी देर तक हँसता रहा और हँसता चला गया।

- -

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: हरि भटनागर की कहानी : हुलिया
हरि भटनागर की कहानी : हुलिया
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoZfIgd5fTwgEaCTcgETmSJW2_VwtRIi1LWo58u8tYPe2_Y1QG68e4cWU-dPbZMAZAEX3DrRYhWLbi77Z-5PHzoBOMFL6FJMP-blNXOOmmgH783CsJYiMNcxs1Snq1Z4tu40RY/%20sir%20(WinCE)_thumb.jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2009/03/blog-post_5054.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2009/03/blog-post_5054.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content