(1) हौसले हों गर बुलन्द . . . बातें करता सागर की तो उसका दायरा बड़ा है, तू नदी की बात कर, उसकी गोद में पला है। मजबूत इरादों को...
(1)
हौसले हों गर बुलन्द . . .
बातें करता सागर की तो उसका दायरा बड़ा है,
तू नदी की बात कर, उसकी गोद में पला है।
मजबूत इरादों को बना, और खुद फौलाद बन,
तेरे साथ - साथ औरों का भी इसमें भला है।
जज्बाती होना अच्छी बात है, पर जज्बातों के,
साये में तो किसी का, जीवन नहीं चला है।
घबरा जाना, फिर किस्मत पे छोड़ देना सब कुछ,
ठीक है, कभी-कभी, पर सदा नहीं, तेरा भला है।
हौसले हो गर बुलन्द ‘सीमा' मेरी बात पे यकीं कर,
फिर कौन सा काम, कल पर किसी का टला है।
(2)
कोई मरहम नही रखता यहां ...........
मुझसे पूछ तो मैं सच बतलाऊं तुझको लोगो के पास,
अपने दुख और दूसरों की ख़ुशियों का हिसाब होता है।
घाव पे किसी के कोई मरहम नही रखता यहां पर,
सब के पास बस अपने जख्मों का हिसाब होता है ।
कहने दे जिसे जो कहता है बुरा मत माना कर तू,
ऊपर वाला अच्छे-बुरे सबका हिसाब कर लेता है।
कोई किसी का खुदा नहीं होता मत डरा कर किसी से,
सब का मालिक तो एक है जो खुद हिसाब कर लेता है।
इंसान की फितरत है अच्छे दिन भूल जाता है अक्सर वो,
गर्दिश में जो दिन गुजरे ‘सदा' उनका हिसाब रख लेता है।
(3)
ऊंचे दरख्तों के साये में . . . .
कुछ भलाई के काम कर, औरों के काम आ,
नाम चट्टानों पे लिख कोई मशहूर नहीं होता ।
आंखों में बसने के संग सांसों में पला हो जो,
फ़कत कह देने से वह दिल से दूर नहीं होता ।
खुद से खफ़ा है तू औरों से खुश क्या होगा,
मायूस दिल हो गर तो चेहरे पे नूर नहीं होता ।
ऊंचे दरख्तों के साये में छांव, चाहे न लगे,
लेकिन ठंडी हवाओं से वो दूर नहीं होता ।
ख्वाहिशों के समन्दर में लगाता है गोता हर कोई,
हकीकत का मोती ‘सदा' हर मुठ्ठी में नहीं होता ।
(4) सदा उद्धार करती आई है . . . .
जब बहती निर्मल नदी हिम गिरि के करीब ही,
उसकी निर्मलता देख, गिरि भी अडिग रहते हैं ।
अनवरत बहते रहना, प्यासे को पानी देना कैसे,
कर लेती है सब सरिता, मन ही मन कहते हैं ।
छुपा के अन्तर्मन में रेत के ढेर उजली दिखती,
निर्मल जल इतना दिखता प्रतिबिम्ब कहते हैं ।
कहीं नर्मदा बन जाती है कहीं सरयू कहलाती ये,
गंगा-जमुना का जहां मिलन, उसे संगम कहते हैं ।
कितनों जीवों का जीवन संजोये अपने आप में,
पापियों को तार देती, इसमें स्नान से कहते हैं ।
शिव की जटा बिराजी ये, भागीरथ धरा में लाये इसे
ये सदा उद्धार करती आई है जग का सब कहते है।
(5)
सजाकर सपनों को तेरे . . . .
चाहत को तेरी गर मैने अपना बनाया होता,
सपनों को तेरे अपनी आंखों में सजाया होता ।
सजाकर सपनों को तेरे, तुझे प्यार के झूले में,
हमसफर अपनी वीरान राहों का बनाया होता ।
तेरी खामोश आंखों से मैंने नजरे मिलाकर,
की होती बातें तुझे हाले दिल बताया तो होता ।
तेरा वो खामोश रहकर कहना दिल की बातें,
तेरे दिल को मैने अपना राजदार बनाया होता ।
पल दो पल की खुशियां पाकर उनको फिर खो देना,
खेल तकदीर के ‘सदा' मैं पहले समझ पाया होता
(6) चाहत नाम है वफ़ा का . . . . .
नजर से नजर मिलने का कसूर इतना ही होता है,
दीवारें कितनी भी उठाए कोई एतराज नही होता है।
आ गया जो दिल किसी पे तो क्या करेंगे आप,
इश्क को देखिए हुस्न का मोहताज नहीं होता है ।
जोश, और जुनून का आलम होता है दिल में हरदम,
कदम कितना भी आहिस्ता उठे बेआवाज नहीं होता है।
चाहत नाम है वफ़ा का, ये ज़ज्बा, नेमत है खुदा की,
छुपाये कोई कितना भी पर यह राज नहीं होता है।
राजा रंक न जाने ये, जात-पात न माने ये, चाहत में,
मानो तो कोई किसी का ‘सीमा' सरताज नहीं होता है।
(7)
नाम तेरा लेते ही . . . .
जब तक हम साथ हैं हंस लेते हैं,
हो के दूर भी हमें मुस्कराना है।
शिकवा शिकायत जाने भी दो,
रुठे हैं जो उनको भी मनाना है।
आओ उमंग की बातें करते हैं
फिर मुझको तुमसे दूर जाना है।
आंख में आंसू भर आते हैं जुदाई में,
इनको छलकने से भी तो बचाना है।
नाम तेरा लेते ही ‘सदा' चमकती आंखे,
तेरे दीदार का भी लुत्फ तो उठाना है।
(8)
लगन जब सच्ची हो . . . .
अरमानों की मेंहदी लगाना मेरे नाम वाली,
सजी है वादों की डोली जो यहां तेरे लिये ।
प्रीत की रस्में होगी मिलन की कसमें भी,
लाया हूं मनुहार की वरमाला तेरे लिये ।
आंगन में तेरे सितारे भी गवाह है चांद भी,
भरुंगा मांग तेरी जो होगी तू सिर्फ मेरे लिये ।
ये सात फेरों का बंधन बांधेगा मन से हमें ऐसे,
होंगे आज से हम एक सिर्फ एक दूजे के लिये ।
हसरतें पूरी हो जाती सारी लगन जब सच्ची हो,
तेरा हर ख्वाब ‘सदा' मेरा होगा मैं हूं तेरे लिये ।
(9) चुरा लिये जिन्दगी ने . . . .
हसरतों के समन्दर में जब - तब,
एक नई हसरत जन्म लेती रही ।
चुपके से उसको बहला दिया मैने जब,
देख बेबसी मेरी वो भी दफन होती रही ।
घुटन, दर्द, आंसू भी उसके न हुये जब,
पल- पल वो पराई खुद से होती रही ।
लुटा दिया उसने यूं तबस्सुम का खजाना,
खोखली हंसी से खुद ही आहत होती रही ।
चुरा लिये जिन्दगी ने हर हंसी पल उसके,
फिर भी ‘ सदा' वो उसकी बन्दगी करती रही ।
(10)
बंदिशें लगा के देखा है मैने . . .
दर्द से मेरा रिश्ता बहुत है पुराना,
आंसुओं का भी है यहां आना-जाना ।
कुछ अश्क दूर तक आ के, ठहर जाते हैं तो,
कुछ का काम होता है, केवल छलक जाना ।
सुनाता हूं दास्तां जब अधूरे प्यार की, कहता हूं,
बन्द कर दो अब तो यूं अपना आना-जाना ।
तमाम बंदिशें लगा के देखा है मैंने उस पर,
न बंद हुआ उसका, मुझे यूं सरेआम रुलाना ।
तनहाई के साये में ही ‘सदा' गुजरा मेरा हर पल,
शान में था उसकी हर महफ़िल की जान बन जाना ।
सीमा सिंघल, रीवा (म.प्र.)
सीमा सिंघल की दसों कविताएँ अच्छी हैं।
जवाब देंहटाएंइनको रचनाकार पर प्रकाशित कर
पढ़वाने के लिए भाई रवि रतलामी
बधायी के पात्र हैं।
ji ha aapne bilkul such kaha maine bhi inki saari kavitae padi hai aur such me saari ki saari kavitae ek dum se dil ko chhune wali hai
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