हरि भटनागर की कहानी : सग़ीर और उसकी बस्‍ती के लोग

SHARE:

अ ब्‍बा मरा तो सग़ीर पशोपेश में पड़ गया। अब वह किसके साथ काम पर जाए? पेट कैसे भरे? नाल लगाने का काम ऐसा है जो अकेले नहीं किया जा सकता। उस...

ब्‍बा मरा तो सग़ीर पशोपेश में पड़ गया। अब वह किसके साथ काम पर जाए? पेट कैसे भरे? नाल लगाने का काम ऐसा है जो अकेले नहीं किया जा सकता। उसमें किसी-न-किसी की मदद की ज़रूरत होती है, फिर उसकी अभी उमर ही क्‍या है! काम भी तो वह ठीक से सीख नहीं पाया... काफ़ी देर तक ज़ेहन में लड़ने के बाद उसके सामने ज़हीर उस्‍ताद की तस्‍वीर खड़ी हुई। ज़हीर उस्‍ताद बस्‍ती के आदमी हैं और काफ़ी नेक। सबके आड़े वक्‍त में काम आते हैं। वह सोचने लगा, अगर ज़हीर उस्‍ताद उसे काम पर रख लें तो कितना अच्‍छा रहे। लेकिन क्‍या वे उसे रखेंगे?  इस सवाल पर वह उदास हो गया।  मगर उनके पास उसे जाना तो चाहिए। बिना गए कैसे सोच लिया कि वे काम नहीं देंगे! ज़हीर उस्‍ताद अकेले हैं शायद रख लें उसे। उनका लड़का अभी हाल में मरा है...

वह ज़हीर उस्‍ताद के पास गया।

ज़हीर उस्‍ताद ने उसे नाल लगाने के काम में रख तो लिया लेकिन एक लम्‍बी फिकर में डूब गए वे। नाल लगाने के काम से उनका खुद का गुज़ारा बमुश्‍किल चलता था। सग़ीर को रखने का मतलब था कि उसे उतने पैसे दो कि उसकी अम्‍मी का भी गुज़ारा हो जाए। यह उनके लिए समस्‍या थी, लेकिन वे घबराए नहीं। सोचा, लड़के को रख लिया है तो अब निबाह करना ही होगा। थोड़ी दौड़-धूप और सही! सग़ीर उमर में छोटा ज़रूर था लेकिन था चुस्‍त-दुरुस्‍त। उन्‍होंने उसे काम में अख्‍तियारी दिलाने की बात सोची। इससे उन्‍हें फ़िलहाल अभी मदद मिलेगी, बाद में जब वह अपना अलहदा काम जमा लेगा तो उन्‍हीं का नाम होगा कि ज़हीर उस्‍ताद का शागिर्द है... उन्‍हीं का पौधा है!

ज़हीर उस्‍ताद काफ़ी ख्‍़ाुश हुए उस दिन। और इसी ख्‍़ाुशी में लिपटे-लिपटे उन्‍होंने सग़ीर को काम सिखलाना शुरू किया। वे उसे काम पर ले जाते और नाल लगाते वक्‍त तरह-तरह की जानकारियाँ देते। अब्‍बा के साथ काम करते हुए सग़ीर थोड़ा-बहुत काम सीख गया था लेकिन जहाँ अब्‍बा से डरता था, वहीं ज़हीर उस्‍ताद से उसका दोस्‍ताना बरताव है। जिस बात को डर के मारे अब्‍बा से पूछ नहीं पाता था, ज़हीर उस्‍ताद से धड़ल्‍ले से पूछता। ज़हीर उस्‍ताद शग़ल करते हुए काम करते और जानकारियाँ देते।

सग़ीर दिन भर ज़हीर उस्‍ताद के साथ काम में जुटा रहता। शाम को ज़हीर उस्‍ताद थोड़ा-बहुत जो पैसा देते, वह अम्‍मी के हाथ पर रख देता। अम्‍मी, उसी में, रो-गाकर, दोनों जून पेट भरने का जुगाड़ करती। लेकिन ऐसे भी दिन आते जब दोनों जून चूल्‍हा भिनभिनाता, अम्‍मी उदास बैठी रहती...

ज़हीर उस्‍ताद के गहकी वे इक्‍केवान और किसान हैं जो ज़्‍यादातर क़स्‍बे के आस-पास के गाँव से आते। इक्‍केवान तो फ़िलहाल रोज़ाना सवारी ढोते लेकिन किसान क़स्‍बे के बाज़ार के दिन ही आते। बाज़ार के दिन अगर कोई बीज-त्‍यौहार रहता तो वे अगले बाज़ार को आते या आ जाते तो पड़ाव डाल देते।

घोड़े को नाल लगाने में कोई दिक़्‍क़त नहीं आती। घोड़ा आराम से पूँछ हिलाता खड़ा रहता है  उसका एक-एक पाँव मोड़-मोड़कर खुर छील दो, फिर नाल लगा दो। पर बैल के नाल लगाने में ख्‍़ाासी दिक़्‍क़त आती है। उसे पहले पैरों में रस्‍सा बाँधकर गिराना पड़ता है  यही सबसे बड़ी दिक़्‍क़त होती है। बैल गिर जाता है तो कोई परेशानी नहीं। धड़ से नाल टाँक दो। पर नाल लगाने में तजुर्बेकार हाथ की ज़रूरत होती है जो ऐसी कील ठोके कि न घोड़े-बैल को दिक़्‍क़त हो, न इक्‍केवान-गाड़ीवान को घोड़े-बैल की वजह से काम बंद करना पड़े। और इक्‍केवान-गाड़ीवान उसी आदमी के पास आते जो मिनटों में बिना किसी जिल्‍लत के काम फ़तह कर दे।

ज़हीर उस्‍ताद के हाथ को यह माहिरी हासिल थी। वे जानवर देखते जिसके नाल लगानी होती, पहले उसका पुट्‌ठा ठोंकते, फिर मिनटों में नाल लगाकर दौड़ा देते।

ज़हीर उस्‍ताद चाहते कि सग़ीर उन्‍हीं की तरह जल्‍द माहिरी पा ले। ऐसा वे इसलिए चाहते कि उन्‍हें दमे की बीमारी थी। कभी तबियत ठीक रहती, कभी ऐसी बिगड़ती कि खाट से उठा न जाता। बेपनाह तकलीफ उन्‍हें कई दिनों के लिए लिटा देती। ऐसे वक्‍त माहिरी हासिल हो जाने पर, उन्‍हें सग़ीर के सहारे की उम्‍मीद थी।

पाँच-छः माह में सग़ीर को अपने काम में पूरी माहिरी हासिल हो गई, लेकिन ज़हीर उस्‍ताद की नामौजूदगी में एक भी गाहक उसके पास न फटकता। इसके कई कारण थे  एक तो, चूँकि वह नाटा था और चौदह बरस की उमर के बावजूद नौ-दस बरस का लगता। गहकी यह सोचकर कि अभी लौंडा है, काम बिगाड़ देगा  उसके पास न आते। दूसरे, नाल लगाने वाले अन्‍य लोग भी मौजूद थे जो गहकियों की समझ में सग़ीर से अच्‍छा काम कर लेंगे  इसलिए वे उसके पास न आते...

हालाँकि उसे शाम को ख्‍़ााली हाथ लौट आना पड़ता फिर भी उसे आशा थी कि गहकी उसके पास काम की ख्‍़ाातिर आएँगे, ज़रूर आएँगे...

यही दिन होते जब सग़ीर के घर का चूल्‍हा दोनों जून भिनभिनाता और उसकी अम्‍मी उदास बैठी रहती।

ऐसे हालात में, जब ज़हीर उस्‍ताद खाट से चिपके होते और सग़ीर नाल का बस्‍ता ले रोज़ लौट रहा था  उसे एक बात सूझी। वह क़स्‍बे की दुकानों में काम के लिए गया। उसे चाय की एक दुकान में काम मिल गया। दुकान बहुत छोटी और गंदी थी। लगता था उसमें चाय न बिककर कोयला बिकता हो। लेकिन सग़ीर वहाँ ज़्‍यादा दिन काम न कर सका। वहाँ के भद्दे आचरण, हाड़तोड़ मेहनत, उस पर थोड़ा पैसा, जिसमें उसका भी पेट न भरे, अम्‍मी और ज़हीर उस्‍ताद की बात दीगर... वह काम छोड़कर भाग आया था। इसी तरह वह एक दूसरी चाय की दुकान में काम की खातिर गया, जो शक्‍ल-सूरत में पहली दुकान जैसी थी, बल्‍कि उससे बदतर... वहाँ भी वह ज़्‍यादा दिन न टिक सका। वह सारी ईज़ा झेलने को तैयार था यदि उसे मात्रा उतना पैसा मिला जाता जिससे उसका, अम्‍मी और ज़हीर उस्‍ताद का पेट भर जाता, लेकिन दोनों जगह से वह निराश था।

उसकी अम्‍मी कहती  रिक्‍शा तो तू अब चला ही सकता है, किसी मालिक से अरदास कर किराए पर देने के लिए, अगर न दे तो बता मैं चलूँ मिन्‍नत करूँ। सग़ीर कई बार रिक्‍शामालिकों के पास भी गया जो किराए पर रिक्‍शा उठाते, पर किसी ने कम उमर और कमज़ोर देह के कारण उसे रिक्‍शा न दिया। एक मालिक ने तो उसकी कलाई पंजे में भरते हुए कहा था  मुरगे-तीतर की टाँग की तरह तो तेरी कलाई है, रिक्‍शा क्‍या चलाओगे... इसके बाद उसने ठहाका लगाते हुए भद्दी गाली उछाली थी।

सग़ीर ने रिक्‍शेवाली बात अम्‍मी को नहीं बताई। और अम्‍मी है जब ज़हीर उस्‍ताद खाट पकड़ते और भूख की बेहालियत काटने दौड़ती, अपनी बात दोहराती। आज भी जब ज़हीर उस्‍ताद खाट से चिपके हैं और सग़ीर सुबह नाल का बस्‍ता लेकर काम पर गया था, दोपहर तक उसकी बोहनी नहीं हुई, लौट आया, अम्‍मी ने रिक्‍शे की बात उठाई...

सग़ीर को अम्‍मी के इस रवैये से कोफ्‍त होती। वह नहीं चाहता कि अम्‍मी रिक्‍शेवाली बात उठाए, लेकिन अम्‍मी है अपनी आदत से मजबूर... उसे अम्‍मी पर ज़ोरों का गुस्‍सा आया, साली यह अम्‍मी है! जान रही है तब भी बम्‍बू किए जा रही है... उसका मन हुआ उठकर एक थपरा जमा दे, लेकिन पता नहीं क्‍यों वह जब्‍त कर गया। यकायक उसके दिल में अम्‍मी के प्रति प्‍यार उमड़ पड़ा कि आँसू आ गए। आखिर अम्‍मी की ग़लती ही क्‍या है! वह भी तो भूखी पड़ी है... वह तो नेक सलाह दे रही है, यह तो मेरी ग़लती है कि मैं उसे पूरी बात बताता नहीं, लेकिन वह टिपिर-टिपिर बोलती बहुत है, इससे गुस्‍सा आता है... अगर मैं उसे पूरी बात बता भी दूँ तो क्‍या होगा, वह दूसरे काम के लिए कहेगी और दूसरा काम मिलना नहीं है...

यकायक वह झोपड़ी के बाहर आ गया। उसका मन हुआ, कहीं निकल जाए और तब तक झोपड़ी में न आए जब तक अंधेरा न हो जाए, क्‍योंकि तब मुमकिन है, अम्‍मी सो जाए और वह सवाल-जवाब से बच जाए।

सग़ीर जिस बस्‍ती में रहता है, वह क़स्‍बे से अलग एक कोने पर है। बस्‍ती में तीस-चालीस फूस की झोपड़ियाँ हैं, जो बोरों, टीन और बरसाती पन्‍नियों से ढकी-मुँदी हैं जिन्‍हें देखकर लगता कि इनमें इंसान न रहकर चील-कौवे रहते हैं। बस्‍ती में चारों ओर गंदगी है जिस पर सूअर-चील-कौवों और कुत्तों की मुकम्‍मल नोंक-झोंक चलती है।

सग़ीर झोपड़ी के बाहर आ खड़ा हुआ, तभी उसे एक कुत्ता दिखाई पड़ा जो किकियाते भागते सूअर का पीछा कर रहा था। सूअर सरपट भागता जा रहा था, किन्‍तु बीच-बीच में पलटकर कुत्त्ो को काटने भी लगता था... कोई दूसरा दिन होता, सग़ीर को यह दृश्‍य उम्‍दा लगता। चूँकि आज जब उसका पेट भूख से जल रहा था, उसे यह दृश्‍य ज़रा भी अच्‍छा न लगा। उल्‍टे उसे लगा, कुत्ता सूअर का पीछा न करके उसका पीछा कर रहा है! बस्‍ती में छोटे-छोटे नंग-धड़ंग बच्‍चे धूल उड़ाते हुए हँस-खेल रहे थे। सग़ीर उनके बीच से ऐसे निकला गोया उनसे बचना चाह रहा हो!

वह उस सड़क पर आ गया जो क़स्‍बे को नदी से जोड़ती है। सड़क पर आने पर उसे पता चला कि क़स्‍बे में ‘नहान' है। नहान की वजह से सड़क पर सैकड़ों की भीड़ आ-जा रही है। आने-जाने वाले लोग हँसते-खिलखिलाते एक-दूसरे को धकियाते बढ़ रहे हैं।

सड़क के बग़ल कँटीली झाड़ियाँ हैं। सग़ीर का पायजमा उनमें फँसकर कई बार फटा, लेकिन उससे बेख्‍़ाबर वह नदी के घाट की ओर बढ़ गया।

घाट पर सैकड़ों की भीड़ है। नदी में कोई आधा डूबा खड़ा है, कोई डुबकियाँ लगा रहा है, कोई छलाँगें। कोई पत्‍थर पर एड़ी घिस रहा है, कोई तौलिया से बदन पोंछ रहा है। औरतें भी नहा रही हैं, मर्द भी, बच्‍चे भी। सभी चीख-चिल्‍ला, हँस-से रहे हैं।

अब्‍बा जिंदा था तब सग़ीर कभी-कभार उनसे आँख बचाकर घाट पर आ जाया करता था, लेकिन जब से अब्‍बा मरा, वह घाट पर नहीं आ पाया था। एक तरह से वह सारे उल्‍लास से कट गया था। उसके सामने केवल एक चिन्‍ता थी  पेट की! वह हमेशा यही सोचा करता था कि अधिक-से-अधिक गहकी उसके पास आएँ और वह अधिक-से-अधिक पैसा पाए और अम्‍मी के सुपुर्द कर दे। बस! इसके अलावा उसके ज़ेहन में कोई बात आई ही नहीं!

कभी यह घाट, इसका रेत, इसका पानी उसमें दूर से गुदगुदी पैदा करते थे, पर आज वही रेत है, वही घाट है, वही पानी है  उसमें ज़रा भी गुदगुदी नहीं कर पा रहे हैं!

सग़ीर के पास से नहा-धोकर लोग निकल रहे हैं। उनमें से कुछ ‘हरे राम हरे राम' कुछ ‘सीता राम सीता राम' ज़ोर-ज़ोर से गाते हुए हथेलियाँ बजा रहे हैं। वे अपने कंधों-सिरों पर गीली जाँघिया-बनियान डाले हुए हैं। उनके माथों पर चंदन का टीका लगा है।

सग़ीर को उनके इस तरह गला फाड़ चिल्‍लाकर गाने पर गुस्‍सा आया। उसने उनकी तरफ़ से मुँह फेर लिया। कुछ देर तक वह निरर्थक, दूर तक फैले बालू के विस्‍तार को देखता रहा, तभी उसे अपने पास दो लड़के खड़े दिखाई दिए, जो पंजों पर भुना दाना रखे थे और एक-एक बीनकर खा रहे थे। उनके इस तरह खाने को देखकर सग़ीर को ज़ोरों की भूख महसूस हुई। यकायक उसने उनकी तरफ़ से मुँह फेर लिया गुस्‍साकर, लेकिन लड़कों की तरफ़ जब उसने फिर देखा, वे पंजों पर रखा दाना खा चुके थे और बग़ल के खेत की ओर बढ़ गए थे। मेड़ पर वे हँसते हुए दौड़ रहे थे। चूँकि मिट्‌टी बलुई और नम थी, इसलिए बार-बार गिरते, बार-बार उठकर दौड़ते। सग़ीर को उनकी यह हरकत अच्‍छी लगी। वह मुस्‍कुरा दिया और उठकर उन लड़कों की ओर बढ़ा। लड़के आगे बढ़कर आम के दरख्‍तों के पीछे खो गए। सग़ीर ठिठककर खड़ा रह गया। शायद इंतज़ार करने लगा  लड़कों के निकल आने का, लेकिन वे दिखाई नहीं दिए। उनके स्‍थान पर दस-बारह लोग नमूदार हुए, जिन्‍हें देखकर लगता था कि किसी बड़े घर के हैं। सभी सुंदर कपड़े और चमचमाते जूते-चप्‍पल पहने थे। वे हँसते-खिलखिलाते बेतकल्‍लुफी से बातें करते धीरे-धीरे चले आ रहे थे। एक आम के दरख्‍़त के नीचे आकर वे बैठ गए। उनके पास एक छोटा-सा ट्रांजिस्‍टर था, जिसमें कोई गाना आ रहा था। सग़ीर का गाने में ज़रा भी मन नहीं लगा। चूँकि गाने के समगान पर उन लोगों में बैठा एक चार बरस का बच्‍चा ठुमक रहा था और दूसरे लोग उसकी ओर देखकर झूमते हुए चुटकियाँ बजा रहे थे, इसलिए उसे गाना, बच्‍चे का ठुमकना और लोगों का चुटकियाँ बजाना अच्‍छा लगने लगा। बच्‍चा अनेक मुद्राओं का अभिनय करता हुए ठुमक रहा था और सग़ीर सोच रहा था कि उसकी बस्‍ती में इतनी उमर के बहुतेरे बच्‍चे हैं लेकिन सभी फूहड़, नंग-धड़ंग, चिथड़ों में लिपटे अपनी नाक तक नहीं पोंछते हैं, जबकि यह बच्‍चा कितना होशियार है, किस तरह कमाल दिखा रहा है। सग़ीर को उसके इस ‘कमाल' पर आश्‍चर्य हुआ!

बच्‍चा थक गया था, इसलिए चूतड़ के बल गिर पड़ा। लोग ठठाकर हँस पड़े। तभी एक आदमी हँसता हुआ खड़ा हुआ। पहले उसने एक महिला से ट्रांजिस्‍टर बंद करने को कहा फिर गाने के लिए गला साफ़ करने लगा। तभी ‘याराना', ‘सिलसिला' की आवाज़ उठी। उसने मुस्‍कुराते हुए कई बार सिर झुकाया और गाना गाने लगा। उसके गाते ही कसे कपड़े पहने एक लड़की खिलखिलाकर हँस पड़ी। गाता आदमी भी हँस पड़ा, किन्‍तु उसने गाना जारी रखा।

गाने का दौर काफ़ी देर तक चलता रहा। लगभग सभी लोगों ने, चाहे वह तुतलाता बच्‍चा क्‍यों न हो, गाने की एक-दो कड़ी गुनगुनाई। गाने के तुरंत बाद लोग गोलाई में घिर आये और कुछ खाने लगे। थोड़ी देर बाद एक औरत जिसके कंधे तक बाल थे, दुबली-पतली थी, बेतरह होंठ रंगे थी, फुरती से उठी। बेलबूटे से कढ़े एक झोले में से उसने सुनहरी पन्‍नियों के कई पैकेट निकाले और सभी लोगों को लोका-लोका कर देने लगी। लोगों ने पन्‍नियाँ खोलीं, चटखारा लिया  फाइन!

काफ़ी देर तक वे हँसते-खिलखिलाते रहे फिर एकाएक हाथी की तरह झूमते चले गए।

सग़ीर जो चुपचाप बैठा इन लोगों का क्रियाकलाप देख रहा था, आहिस्‍ते से उठा और उस स्‍थान पर आ गया, जहाँ पर लोग हँस-खिलखिला रहे थे। लोग एक सॉस की बोतल जिसमें आधा सॉस मौजूद था, काँटेदार एक चम्‍मच और एक केक लापरवाही से छोड़कर चले गए थे। सग़ीर खड़ा सोच रहा है कि ये कौन-सी चीज़ें हैं? क्‍या ये खाने की चीज़ें हैं? जब लोग गोलाई में घिर कर खा रहे थे, तब सग़ीर को उन लोगों के बीच में रखी वे चीज़ें दिखाई नहीं पड़ रही थीं जिन्‍हें वे खा रहे थे। सग़ीर सोच रहा है, क्‍या लोग बोतल में रखी चीज़ खा रहे थे? लेकिन खाने की चीज़ कहीं बोतल में रखी जाती है! फिर... फिर... वह उन चीज़ों को आश्‍चर्यचकित-सा देख रहा है। यह काँटेदार चीज़ क्‍या है! इससे भला खाने से क्‍या ताल्‍लुक! कहीं इससे भी खाया जा सकता है? केक उठाकर वह सोचने लगा है, यह कौन-सी चीज़ है? सग़ीर ने क़स्‍बे की एक-दो दुकानों में काम भी किया था, वहाँ भी उसका इन चीज़ों से साबिका नहीं पड़ा था। बहुत देर तक वह इन चीज़ों के बारे में सोचता रहा, उसकी समझ में नहीं आया। उसे एक बात सूझी। उसने इन चीज़ों को उठा लिया और अपनी बस्‍ती में जाकर हमउमर लड़कों को बुलाया जो गुल्‍ली-डंडा खेल रहे थे।

उसने हाथ में ली हुई चीज़ों की ओर इशारा करते हुए पूछा  ये कौन-सी चीज़ें हैं? लड़के उन चीज़ों पर झुके और अचम्‍भे से देखने लगे। कई लड़कों ने छूकर भी देखा  कौन-सी चीज़ें हैं? वे आपस में फुसफुसाने लगे।

सग़ीर ने देखा, सभी के चेहरों पर एक फीकापन-सा तैर गया है। उसने बड़बड़ाते हुए सबको धक्‍का-सा दिया और तेज़ कदमों से अम्‍मी के पास आ गया। उसे विश्‍वास था कि अभी उन चीज़ों के बारे में ज़रूर बता देगी। इसलिए जैसे ही उसने उन चीज़ों को अम्‍मी के हाथों पर रखा, वह हाँफती हुई-सी बोलने लगी  क्‍या लाए बेटा... अरे, यह बोतल कहाँ से लाये... इसमें क्‍या लगा है चिपचिपा-चिपचिपा, कल्‍छुल! यह कैसी कल्‍छुल? ऐसी भी कहीं कल्‍छुल होती है? यह गोल-गोल खाने की चीज़ है क्‍या?

सग़ीर ने अम्‍मी से उन चीज़ों के बारे में दुबारा न पूछा। उसे अम्‍मी पर गुस्‍सा आया। उसने झटके से अम्‍मी के हाथों से उन चीज़ों को ले लिया और झोपड़ी के बाहर आ गया।

अम्‍मी के बाद उसके ज़ेहन में जिसका नाम आया, वे ज़हीर उस्‍ताद थे। ज़हीर उस्‍ताद अपनी झोपड़ी में सीना पकड़े पड़े थे। सग़ीर झुककर झोपड़ी में घुसा और उन चीज़ों को सामने रखते हुए उनका नाम पूछा।

ज़हीर उस्‍ताद बमुश्‍किल साँस लेते हुए बोले  कहाँ पाए इन्‍हें बेटा? सग़ीर ने जब बताया तो ज़हीर उस्‍ताद ने कहा  हम क्‍या जानें बेटा! साठ बरस की उमिर हो गई, कभी मनमाफिक लुकमे न मिले... खुदा से रोज़ भीख माँगता हूँ कि जो रूखा-सूखा देता है उसमें कटौती तो न करे, मुला... किस्‍मत में भूखा मरना लिखा है तो खुदा ही क्‍या कर सकता है...

सग़ीर की जिज्ञासा शांत न हुई। वह संजीवन नाई के पास गया। संजीवन नाई क़स्‍बे का सबसे बुज़्‍ाुर्ग आदमी था। सग़ीर को पूरा यक़ीन था कि वह उन चीज़ों के बारे में ज़रूर जानता होगा, लेकिन संजीवन कह रहा था  इ तो बोतल है और क्‍या है?

सग़ीर ने जब बोतल में भरी चीज़ और उन दोनों चीज़ों के बारे में पूछा तो जैसे वह गुस्‍सा गया, बोला  हम का जानें का है... तुम बताओ का है? ... हाँ नहीं तो! कभी देखा हो तो जानें भी! जिसे देखा नहीं उसके बारे में भला का बताऊँ? ... कहते-कहते वह अपनी झँगली, नाव-सी खाट में लेट गया, एक गहरी साँस छोड़कर।

सग़ीर संजीवन के पास से निराश लौटा, तभी उसे मल्‍लू कुम्‍हार और रईश कबाड़िया मिल गया। मल्‍लू ने अपनी असमर्थता ज़ाहिर कर दी। चूँकि रईश को घर पहुँचने की जल्‍दी थी और जवाब देने की कोई ज़रूरत नहीं समझी, इसलिए वह तेज़ी से चला गया।

सग़ीर ने अपनी बस्‍ती के तकरीबन सभी लोगों से पूछा, लेकिन कोई भी उन चीज़ों के बारे में कुछ नहीं बता पाया। उसे कोफ्‍त होने लगी। तबियत उन चीज़ों को चूर कर देने की हुई। जे़हन में बार-बार एक जलता लावा उठता कि ये कौन चीज़ें हैं जिनसे उसकी पूरी बस्‍ती नावाक़िफ है! उसने एक बड़ा-सा पत्‍थर उठा लिया  चीज़ों को चूर-चूर कर देने के लिए, लेकिन पता नहीं क्‍यों, फेंक दिया।

यकायक उसने उन चीज़ों को उठाकर सामने फेंक दिया। बोतल एक पत्‍थर से टकरा गई  फूट गई। उसमें से कोई लाल-लाल गाढ़ा पदार्थ बाहर निकल कर फैल गया। तभी एक खजहा कुत्ता कान फड़फड़ाता वहाँ से गुज़रा। पहले उसने गाढ़े पदार्थ को सूँघा और मुँह हटा लिया, पर तुरंत ही वह उसे चाटने लगा।

सग़ीर की तीव्र इच्‍छा हुई कि वह कुत्ते को भगा दे और खुद उस चीज़ को चाटने लगे।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: हरि भटनागर की कहानी : सग़ीर और उसकी बस्‍ती के लोग
हरि भटनागर की कहानी : सग़ीर और उसकी बस्‍ती के लोग
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoZfIgd5fTwgEaCTcgETmSJW2_VwtRIi1LWo58u8tYPe2_Y1QG68e4cWU-dPbZMAZAEX3DrRYhWLbi77Z-5PHzoBOMFL6FJMP-blNXOOmmgH783CsJYiMNcxs1Snq1Z4tu40RY/%20sir%20(WinCE)_thumb.jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2009/03/blog-post_12.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2009/03/blog-post_12.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content