“…इन्टरनेट पर हजारों - लाखों साइटें । हर साइट के अलग नजारे । पढ़ाई -लिखाई से लगाकर मनोरंजन ,फिल्में ,गाने , प्यार ,सहजीवन की साईटे । हर स...
“…इन्टरनेट पर हजारों - लाखों साइटें । हर साइट के अलग नजारे । पढ़ाई -लिखाई से लगाकर मनोरंजन ,फिल्में ,गाने , प्यार ,सहजीवन की साईटे । हर साइट का अलग मजा । लेकिन खतरे भी बहुत । हर मेल बोक्स में जंक मेल । कभी अफ्रीका से कभी अन्य कहीं से । कभी लाखों को बटोरने का लालच । कभी फंसने का डर । कोई करे तो क्या करे ।
ऐसा ही एक वाकया स्कूल के एक ही अध्यापक के साथ हो गया । किसी जानकार व्यक्ति ने उनका ई मेल आईडी हेंक कर दिया । इस मेल से सभी को सूचना दे दी ।
‘ मैं एक जगह फंस गया हूं । लुट गया हूं । कृपया मेरी मदद करें। '
सभी जगहों से अध्यापक जी के पास मेल आने लगे । साइबर क्राइम की श्शुरूआत हो गयी । बड़ी मुश्किल से साइट का पेज बन्द किया । सभी को अपने राजी -खुशी होने की जानकारी मेल टेलीफोन एस.एम.एस. चिठ्ठी से दी गई । …” – इसी उपन्यास से.
॥ श्री ॥
असत्यम्।
अशिवम्॥
असुन्दरम्॥।
(व्यंग्य-उपन्यास)
महाशिवरात्री।
16-2-07
-यशवन्त कोठारी
86, लक्ष्मी नगर,
ब्रह्मपुरी बाहर,
जयपुर-302002
Email:ykkothari3@yahoo.com
समर्पण
अपने लाखों पाठकों को,
सादर । सस्नेह॥
-यशवन्त कोठारी
(बेहद पठनीय और धारदार व्यंग्य से ओतप्रोत इस उपन्यास को आप पीडीएफ़ ई-बुक के रूप में यहाँ से डाउनलोड कर पढ़ सकते हैं)
विश्विवधालय । माधुरी विश्वविधालय । शानदार भवन । शानदार लॉन । शानदार प्रयोगशालाएं । जानदार कार्यालय । कार्यालय में पसरा सन्नाटा । माधुरी विश्वविधलय का कुलपति कक्ष । कुलपति की शान के क्या कहने । शिक्षामंत्री का कक्ष भी फीका । स्वादहीन ।
माधुरी अपनी नदार ,जानदार ,असरदार कुर्सी पर आसीन । वे विश्वविधालय की एक मात्र स्थायी पदधारी । उनको और उनके पद को कोई खतरा नहीं ।
वे िवश्वविधालय की प्रथम अनोपचारिक उपवेशन की प्रथम महिला अध्यक्ष । गर्व से उनका माथा ऊंचा हो गया ।
कक्ष में प्रथम चक्र में रखी कुर्सियों पर विश्वविधालय के अधिकारियों ,अध्यापकों के रूप में अविनाश , हिन्दी टीचर कुलदीपक , बाबू झपकलाल , रजिस्टार शुक्लाजी , विराजमान थे । मेडम ने अपनी सहयोगी -स्टेनो के रूप्ा में अपने ही स्कूल की प्रिन्सिपल शुक्लाइन को भी बुलवा लिया था । अस्थायी विश्वविधालय में अस्थायी समिति का अस्थायी कोरम पूरा हो गया था । कुछ और नियुक्तियों की चर्चा हेानी थी। माधुरी मेडम प्रशासन -राजनीति -कूटनीति - नैाकरशाही आदि के गुर सीख रही थी । उसे किसी केा जवाब नही देना था । वो सर्वेसर्वा थी ।
विश्वविधालय के आर्थिक पक्ष को भी मजबूत करना था । फीस- अनुदान -एन.आर.आई. कोटा आदि से ही धन सुगमता से आ सकता था। इसके लिए विश्वविधालय की साख को जमाना था । माधुरी ने इस अनौपचारिक मीटिगं की औपचारिक शुरूआत की । वे बोली
‘‘जैसा कि आप सब जानते हैं , माधुरी विश्वविधालय इस खेत्र का एक मात्र निजि विश्वविधालय है और इसे बड़ी मुश्किल से मैं स्थापित कर पाई हूॅ ताकि इस खेत्र में शिक्षा ,तकनीकि शिक्षा , मेडिकल शिक्षा का विकास हो तथा इस खेत्र के बच्चे भी देश -प्रदेश के विकास में अपना योगदान दे सके ।
सर्व प्रथम हमे एक प्रख्यात शिक्षा विद चाहिये जो पूरी युनिवरसिटी के श्श्ौक्षणिक कार्यकलापों का ध्यान रख सके तथा विश्वविधालय को सम्पूर्ण शिक्षा जगत में मान दिलवा सकै ।
फिल हाल वित्त समिति तथा श्शासी निकाय की स्थापना एक्ट के अनुसार की जानी है । शासी निकाम हमारी सर्वोच्च संस्था है तथा मैं इसकी अध्यक्ष रहूंगी वित्त समिति में रजिस्टार ,लेखाधिकारी तथा डीन एकेडेमिक रहेगे । ' नियुक्ति समिति में विभागाध्यक्ष , रजिस्टार तथा विपय के दो विशेपज्ञ रहेगें । चयन समिति की सिफारिश पर कुलपति नियुक्ती देंगी । मगर चयन समिति की सिफारिश मानने के लिये मैं बाद्ध नहीं हूॅ ।
लेकिन मैडम ......अविनाश ने टोंका । ‘
‘चुप रहिये ।'काम होने दीजिये । नियमो में संशोधन होते रहेगें ।
वित्त समिति सरकार से अनुदान , विदेशो से सहायता ,एन.आर.आई फण्ड आदि से धन प्राप्त करने के लिए प्रयास करे ।
‘ लेकिन .....इस बार श्शुक्लाजी बोल पड़े । '
‘शुक्ला जी आपकी -हमारी बातें तो होती रहेगी । ' आपका हमारा साथ तो चोली -दामन की तरह है। फिलहाल आप विश्वविधालय की प्रथम मीटिंग के मिनिटस टाइप कराये । मेरे से अनुमोदन करा ले । हां एक बात ओर । कृपा करके एक क्लाज तदर्थ नियुक्ति का डाल कर सभी उपस्थित अधिकारी ,कर्मचारी , विश्वविधालय में तदर्थ नियुक्ति पर लग जाये । वेतन -भत्ते मैं तय कर दूंगी । ''
मिटिंग सधन्यवाद समाप्त की जाती है। चाय - रसगुल्लों का स्वाद ले । एक दूसरे को बधाई दें । '
पाठको इस प्रकार विश्वविधालय की प्रथम स्वादिप्ट व सफल बैठक सम्पन्न हुई ।
बैठक का विवरण मिडिया में विशेपकर पि्रंर्ट मीडिया में देने के खातिर भूतपूर्व कवि और विश्वविधालय के वर्तमान अस्थायी संविदा जनसम्पर्क अधिकारी इकलेाते स्थानीय अखबार के कार्यालय में पहुॅंचे । सम्पादकजी किसी फोटो जर्नलिस्ट को पत्रकारिता की बारीकियां समझा रहे थे ।
‘ कल तुमने ताजा टिण्ड़े का बासी फोटो लगा दिया गया था ।'
‘तो क्या सर । टिण्ड़े तो थे । टिण्डेों के स्थान पर भिण्डी तो नहीं थी ।'
‘ठीक है -मगर आगे से ध्यान रखना । '
तभी अविनाशजी ने संपादक के कक्ष में प्रवेश किया ।
‘और सुनाईयें संपादक जी क्या हाल -चाल है ? सम्पादक जी ने कोई जवाब नहीं दिया । अपनी आंखे कम्प्यूटर पर गड़ा ली । वे समझ गये ये ऐसे पीछा छोड़ने वाला नहीं है । वे एक स्थनीय समाचार का शीर्पक बदलनें में व्यस्त हो गये । एक देा कॉलम के समाचार को एक कॉलम का कर दिया । इसी बीच अविनाश ने अपनी िवज्ञप्ति आगे बढा़ई ।
‘ये क्या है ?'
‘ विज्ञप्ति है । सादर प्रकायानार्थ ।''
‘ ल्ेकिन इसमें समाचार कहॉं है ?''
‘ समाचार तो छपने पर अपने आप बन जायेगा । '
‘ लेकिन कुछ तो विवरण हो । तथ्य हो । सत्य तो हो । समाज के लिए संदेश हो । ' सम्पादक जी भापण देने पर उतारू थे ।
अविनाश ने धीरे से कहा
‘शाम को प्रेस क्लब में मिलते हैं ।
सम्पादक जी ने विज्ञप्ति को छपने भेज दिया ।
0 0 0
इधर जश्न-ए आजादी का दिन आ गया । आजादी साठ वर्प की हो गई । विश्वविधालय में झण्ड़ा रोहण का कार्यक्रम रखा गया । नये नियमों के अनुसार झण्ड़े को कोई भी फहरा सकता था । इस साठवीं आजादी में सब कुछ बाजार हो गया । दायित्व सब भूल गये । अधिकार ,मांगे , याद रह गये । गान्धी जी ने नारा दिया था अंगे्रजों भारत छोड़ों ,अब हालत ये है कि ईमानदारी , नैतिकता , श्शुद्धता ,असली चीजे ,सब भारत छोड़ने को उतारू हो गये । तथा रह गये झूठ ,बेईमानी , मक्कारी ,झूठे वादे ,गलत बयानी और चाटुकारिता । लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री को सुनते हुए भी कोफत होती है । क्योंकि कहते कुछ है करते कुछ है सरकार बचाने में होर्स टेडिगं होती है । सौदे बाजी होती है और सभी गलत कार्यो के लिए सब के दरवाजे ,खिड़कियां और छते खुली हुई है ।
लाल किले की प्राचीरे सैकड़ो वर्पो से गवाही देती आ रही है । कई प्रधानमंत्रियों को इन प्राचीरों ने सुना है ,समझा है । ये इतिहास की मूक-गवाह है । सब कुछ जानती है। समझती है । फिर भी चुप रहती है । जैसे भारतीय जनता । मगर चुप्पी, मौन की भी तो एक दहाड़ होती है ।
माधुरी विश्विवधालय में झण्ड़ा रोहण हुआ । शानदार हुआ । मिठाईयां बाटी और इस पावन अवसर पर माधुरी ने अपने पति सेठजी को विश्वविधालय का कुलाधिपति नियुक्त कर दिया । शिक्षा व्यवस्था पर आजादी के दिन एक जोर दार शानदार -तमाचा । एक अन्य िवश्वविधालय के कुलपति पद पर एक बड़े नौकरश्ााह को बिठा दिया । अकादमी पर एक वैधराज काबिज हो गये । एक चिकित्सा विश्वविधालय का े मजदूर नेता चलाने लगा । सचमुच आजादी । सबको आजादी ।
माध्ुरी ने विश्वविधालय के कर्मचारियों को स्थायी करने की घोपणा की । तालियां बजी । खुशियां मनाई गई । छात्रों ने जन-गण-मन गाया । भारत माता की जय बोली गई । आजादी मनाई गई । माधुरी ने एक टीवी चैनल पर भी यह कार्यक्रम दिखवा दिया । पूरे श्शहर में वाह-वाह हो गई । क्या कहने । सब कुछ असरदार ।
माधुरी ने कर्मचारियों को बोनस भी बंटवा दिया । अब कौन बोलता । माधुरी के पति सेठ रण छोड दास स्थायी कुलाधिपति हो गये । लेकिन ईमानदारी देखिये केवल एक रूपये प्रतिमाह के वेतन पर ।
कुलदीपक जी कवि थे । लेखक थे । साहित्यिक पत्रकार थे । मंच पर गलेबाजी कर लेते थे। विश्वविधालय में इकलौते हिन्दी प्राध्यापक थे । हेड थे । अपने आप को प्रोफेसर और बाकी सभी लोगो काे हेडलेस चूजे समझते थे । मगर चूजे कभी कभी ज्यादा खतरनाक साबित हो जाते थे । इधर कुलदीपक जी ने एक राप्टीय सेमिनार-कम कांफ्रेस कम वर्कशाप कम सिम्पोजियम की योजना का निर्माण कर विश्वविधालय की कुलपति की सेवा में प्रेपित कर दिया । माधुरी ने कुलनति कक्ष में कुलदीपक जी को तलब किया ।
‘ ये क्या बिमारी है ?
‘मेम ये बिमारी नहीं एक राप्टीय सेमिनार का प्रोजेक्ट है । जिसे आप विश्वविधालय ग्रान्ट कमीशन को अग्रेपित कर दे ।
‘ उससे क्या होगा ?
मैं अपने सूत्रों से इसे पास करा लूगां ।
तीन दिवसीय सेमिनार में देश के हिन्दी विद्वान भाग लेगें । अपने विश्वविधालय का नाम होगा । बड़े -बड़े लोग आयेगें । अखबारों मीडिया में कवरेज आयेगा । आपके विजुलस , बाइट्स दिखेगें । छपेंगे ।
‘लेकिन ये क्या विपय चुना हैं आपने ?
‘ विपय तो ठीक ही है ।
‘महिला सशक्तीकरण -स्त्री विमर्श । ये भी कोई विपय है भला । '
‘ विपय बिलकुल ज्वलन्त है । पूरी दुनिया में इस विपय पर काम हो रहा है , हिन्दी जगत में खास कर साहित्य की दुनिया में तो घमासान मचा हुआ है । हर बड़े,पत्र ,पत्रिका में इस विपय पर आलेख , परिचर्चाएॅ , लेख ,कविताएं छप रहीं है ।
‘ उससे क्या ?
‘ मेडम नया -ज्वलन्त विपय लेने से सेमिनार की स्वीकृति आसानी से मिल जाती है। तीन दिवसीय सेमिनार की रूपरेखा के बाद मैंने तीस लाख का बजट प्रस्तावित किया है। सब कुछ ठीक -ठाक रहा तो स्वीकृति मिल ही जायेगी । फिर एक स्मारिका छाप लेंगे । उससे भी आय हो जायेगी । प्राप्त श्शोध पत्रों व साराशों को पुस्तकाकार छाप कर बेंच देगें । मजे ही मजे । आपका नाम मुख्य सम्पादक -चेयरमेन आदि के रूप में जायेगा ।
ल्ेकिन ये विपय कुछ अजीब है ?
‘ अजी अजब -गजब विपय ही चलते हैं ।
ऐसे ही विपयों पर लिखा जा रहा है । सोंचा जा रहा है । छापा जा रहा है ।
‘ लेकिन क्या यू.जी.सी. मान जायेगी ।
‘ ये आप मुझपर छोड़ दीजिये । यू.जी.सी. के अलावा अन्य स्थानों से भी धन प्राप्त करने की कोशिश करूगां ।
‘ देख लीजिये । मैं पैसा देने की स्थिति मेें नहीं हूॅ ।
‘ आप से पैसे नहीं चाहिये । आप केवल स्वीकृति की अनुशंसा के साथ प्रोजेक्ट को यू.जी.सी. को भिजवा दे ।
हां एक बात ओर ।
क्या ?
इस सेमिनार से पूर्व मेरा प्रोफेसर पद पर स्थायी होना जरूरी है । कुलदीपक ने पूरी ध्ृाप्टता से धूर्तता पूर्वक कहां ताकि आयोजन समिति ठीक से बने ।
‘ माधुरी की त्येांरियां चढ़ गई । मगर सेमिनार में उसे अपना भी लाभ दिखाई दे रहा था ।
‘ लेकिन उसके ेलिए चयन समिति का होना जरूरी है ।
‘ उसमें क्या परेशानी है। एक विश्वविधालय के कुलपति आपकी वी.सी. सर्च कमेटी में रह चुके है , उन्हे बुलाकर अनुग्रहीत कर देंगे । एक अन्य विश्वविधालय में मैने एक व्यक्ति को पी.एच.डी. में मदद की है , उसे विपय -विशेपज्ञ के रूप में बुला लेते हैं। आप स्वयं चेयर परसन चयन समिति है ।
‘ लेकिन वेू वी.सी. बड़े खतरनाक है ?
‘खतरनाक वी.सी. को राजभवन से फोन करवा दिया है । सब ठीक हो जायेगा ।
‘ तो आप ने सब व्यवस्था करली है ।
हैं ! हैं ! .....हैं ।
ठीक है । इस सेमिनार के कागजों को ठीक से बनाले । दीपावली के बाद की तारीख रखलेे । तब तक आपके चयन के लिए भी कुछ करेंगे ।
‘ साक्षात्कार श्राद्धों से पहले और नियुक्ति आदेश नवरात्री तक हो जाये मेडम ।
‘ बड़े धूर्त हो ।
चलो कुछ करते हैं ।
कुुलदीपक प्रसन्न मुद्रा में बाहर आ गये ।
कुलदीपक के जाने के तुरन्त बाद अविनाश मेडम माधुरी से मिलने पहुॅंचें । उन्हें यह ज्ञात हो चुका था कि कुलदीपक किसी राप्टीय सेमिनार के सिल सिले में आये थे। कुलदीपक के प्रभाव को कम करना आवश्यक था । वे भी पुराने खिलाड़ी और पुराने शिकारी थे ।श्ौक्षणिक
राजनीति उन्हें भी आती थी । वे पहुॅचे । माधुरी की व्यस्तता की चिन्ता करने के बजाय वे सीधे मुद्दे पर आ गये ।
‘ गृह मंत्रालय से एक सरकुलर आया है । गृहमंत्रालय ने पदम पुरस्कारों के लिए प्रविप्ठियां आमन्त्रित की है ।
ये सुनते ही माधुरी के कान खड़े हो गये । दिमाग काम करने लग गया ।
‘ अच्छा क्या लिखा है सरकुलर में ।
‘ सरकुलर में गृहमंत्रालय ने विभिन पदम पुरस्कारों यथा भारतरत्न ,पदम विभूपण , पदम भूपण , पदम श्री आदि के लिए योग्य लोगों के आवेदन भेजने को कहा है। और इस विश्वविधालय में आप से ज्यादा योग्य कौन है ।
‘ तो अब हमें क्या करना चाहिये ।
क्रना क्या है आपका और मेरा बायोडेटा तैयार करवा कर भिजवाना है । लेकिन अपने को पदम पुरस्कार कौन और क्यों देगा ?
‘ अरे मेडम । जब अपराधियों ,स्मगलरों ,उठाईगिरों , भ्रप्ट नौकरशाहों तथा चवन्नी छाप राजनेताओं को पदम पुरस्कार मिल रहे है तो आप तो कुलपति है ।
‘ और तुम्हारा क्या होगा रे अविनाश ।'
‘मेरा क्या हैं मेडम । आपके पीछे -पीछे चल रहा हूॅ । कहीं तो पहुॅच ही जाउूगा ।
‘ ल्ेकिन पदम पुरस्कारों के लिए उच्च स्तर की सेटिंगं चाहिये ।
‘सेटिगं न होगी तो अगले साल फिर कोशिश कर लेंगे । अपने बाप का क्या जाता है? माधुरी के मौन को स्वीकृति समझ अविनाश ने बायोडेटा की प्रति आगे बढ़ा दी । बायोडेटा देखकर माधुरी स्वयं आश्चर्य में पड़ गई । क्या वे वास्तव में प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री ,समाजसेवी ,कुलपति ,दानदाता ,महिला हितेपी ,राज्यहितकारिणी ,ख्यातिप्राप्त श्शोधकर्ता ,लेखक ,समाज विज्ञानी थी ।
अोर अविनाश के बायोडेटा से भी ऐसी ही श्शब्दावली की बू आ रही थी ।
मधुरी ने सोच समझकर बायोडेटा को कुलाधिपति की पत्रावली में रखवा दिया । अविनाश धूर्तता से मुस्कराते हुए बाहर आ गये ।
कुलाधिपति सेठ जी ने बायोडेटा देखा । देख कर हॅसें । और माधुरी से बोले ।
‘ मेडम माधुरी जी क्या यह पदमपुरस्कार आपसे पहले मुझे नहीं मिलना चाहिये , और अविनाश क्या बिमारी है , केवल मेरा नौकर ।
‘ त्ो क्या करें ? माधुरी ने पूछा ।
‘ करना क्या है केवल तुम्हारा और मेरा बायोडेटा जायेगा । शिक्षाके व साहित्य के कोलम से । अपने को मिल जायेगा तो फिर -दूसरों के बारे में सोचेंगे ।
मधुरी केा बात समझ में आ गई । सेठानी जी उर्फ माधुरी मेडम सेठजी उर्फ कुलाधिपति व कुलपति के बायोडेटा पदम पुरस्कारों हेतु भेज दिये गये । इतिशुभम् ।
0 0 0
इधर माधुरी के स्कूल की कम्यूंटर लेब में नित नये खेल होने लगे । ब्राड़ बेन्ड सुविधा के कारण छात्रो , अध्यापकों ,कर्मचारियों ने अपने कई-कई ई-मेल आई डी बना लिये कुछ लोंगो ने अपने -अपने ब्लॉग बना लिये और ब्लॉगों पर कुछ -न कुछ लिखने लगे । मुफत कि सुविधा अर्थात फोकट का चन्दन घिस मेरे नन्दन । हल्दी - लगे ना फिटकरी रंग चोखा का चोखा ।
इन्टरनेट पर हजारों - लाखों साइटें । हर साइट के अलग नजारे । पढ़ाई -लिखाई से लगाकर मनोरंजन ,फिल्में ,गाने , प्यार ,सहजीवन की साईटे । हर साइट का अलग मजा । लेकिन खतरे भी बहुत । हर मेल बोक्स में जंक मेल । कभी अफ्रीका से कभी अन्य कहीं से । कभी लाखों को बटोरने का लालच । कभी फंसने का डर । कोई करे तो क्या करे ।
ऐसा ही एक वाकया स्कूल के एक ही अध्यापक के साथ हो गया । किसी जानकार व्यक्ति ने उनका ई मेल आईडी हेंक कर दिया । इस मेल से सभी को सूचना दे दी ।
‘ मैं एक जगह फंस गया हूॅ । लुट गया हूॅ । कृपया मेरी मदद करे ं। '
सभी जगहों से अध्यापक जी के पास मेल आने लगे । साइबर क्राइम की श्शुरूआत हो गयी । बड़ी मुश्किल से साइट का पेज बन्द किया । सभी को अपने राजी -खुशी होने की जानकारी मेल टेलीफोन एस.एम.एस. चिठ्ठी से दी गई ।
मगर इन्टरनेट टेक्नोलोजी के कारण सुविधाएॅ बढ़ी तो समस्याएW Hkh बढ़ी । इन्टरनेट पर आन लाइन बेकिंग से भी परेशानियॉं बढ़ी ।
माधुरी -शुक्ला मेडम व अन्य तकनीकी जान कार लोग सब जानते थे मगर मजबूर थे । वाइरस की समस्या अलग परेशान करती थी ।
बड़ी -बड़ी कप्यूंटर कम्पनियां आपस में लड़ती थी एक दूसरे की वेबसाइटस को हेंक कर लेती थी । खामियाजा सामान्य जनता को भुगतना था । वैसे निशुल्क सुविधा का इन्टरनेट पर जवाब नहीं । करोड़ो चिठि्ठयां इधर -उधर क्षणो में चली जाती और वो भी निशुल्क ,बिना किसी गलती के । क्या भारतीय ड़ाक -तार विभाग या कूरियर वाले यह कमाल दिखा सकते हैं । कभी नहीं ।
इन्टरनेट पर चेटिंग और ब्लॉगिग के दीवाने तो माधुरी -विश्वविधालय में भी अनेक थे । सुविधा ये हुई कि अब हिन्दी व भारतीय भापाओं में भी काम होने लग गया । नये -नये लेखक ,कवि ,व्यंगकार ,आ गये ,जो कहीं नहीं छपते वे इन्टरनेट पर छपने -खपने लग गये । चेटिंग के माध्यम से मित्र लोग अपनी बात कहने लग गये । ब्लॉंगो पर लम्बी-चौड़ी बहसे होने लग गई ।
माधुरी ने श्शुक्ला मेडम की मदद से उच्च शिक्षा पर एक सार्थक बहस श्शुरू करने के लिए ब्लॉग बनाया । अपनी बात कहने का प्रयास किया । लेकिन श्शीघ्र ही रोज नये -नये लोगों ने नये-नये सवाल उठाने श्शुरू कर दिये । कुछ सवाल विश्वविधालय की स्थापना ,निजि जीवन ,सेठजी ,नेताजी के बारें में भी आने लगे । माधुरी ने ब्लॉग लेखन बन्द कर दिया । हां फिर भी ब्लॉगों को वो प्रेम से पढती । अमिताभ बच्चन ,का ब्लॉग ,शाहरूखखान ,अामिरखान ,सलमान खान के ब्लॉगों को पढ़कर मजा आने लगा । बड़े -बड़े लोगो के छोटे -छोटे दिल । छोटी -छोटी बातों के बड़े - बड़े फसाने ।
हिन्दी भापा के ब्लॅाग । कुंठाओं अवसाद से भरे हुए । शुक्लाजी ने भी अपनी कुछ कविताएॅ ब्लॉग पर डाली । सर्दियों के दिन थ्ेा । पदम पुरस्कारों के दिन मगर माधुरी का कहीं नाम नहीं था । शायद अभी प्रजातन्त्र में कहीं कुछ नैतिकता जिंदा थी सब कुछ समाप्त नहीं हुआ था। आशा की कोई किरण अभी रास्ता दिखा रहीं थी ।
कल्लू मोची अपने ठीये पर बैठ कर सुबह का अखबार पढ़ रहा था । वो अखबार खरीदता नहीं था , सामने वाले हलवाई से मांगकर पढ़ता था । हलवाई खीजता था मगर अखबार दे देता था । कल्लू का मन अखबार में छपी खबरे देख देखकर दुखी होता था । सोचता था आजकल अखबारों में आता ही क्या है ? खूब सारे फोटो । सुन्दर लड़कियों के फोटो । अनंर्गल समाचार । कुछ अफवाहें और अखबार के मालिको क ेलेख , मालकिनों कि कविताएं ,राजनैतिक पार्टियों के रोपित समाचार । विज्ञप्तियां आदि ।
कल्लू किसी समाचार को पढ़ कर बड़बड़ा रहा था ।
क्या हो गया है , श्शहर को । बुजुर्ग दम्पति की हत्या । एक अन्य बुजुर्ग लूट लिया । चेन तोड़ी । तलाक। ,बलात्कार । पुलिस की नाके बन्दी । बैंक लूट बस यही सब रह गया है आजकल । लगता है सरकार नाम की कोई चीज कहीं है ही नहीं ।
कल्लू की बड़बड़ाहट सुन कर झबरा कुत्ता चौकन्ना हो गया । वो कल्लू की हां में हां मिलाने के लिए पंूछ हिलाने लगा । कल्लू मोची ने चाय की आवाज लगाई । हलवाई की चाय आधी कल्लू ने पी और आधी कुत्ते ने चाटी । कल्लू बेकार बैठा था । सोच रहा था । बारिश के मौसम मे ग्राहकी भी कमजोर पड़ जाती है लेकिन खर्चे कमजोर नहीं पड़ते । उसे तीन -चार लोग आते दिखाई दिये । धन्धे की कुछ आस बंध्ाी लेकिन वे लोग किसी का पता पूछ रहे थे ,कल्लू ने पता बताया फिर वहीं उदासी । वही उदास समाचार । कल्लू ने जबरे की ओर देखा । जबरा भी उसे टुकुर -टुकुर ताक रहा था । कल्लू फिर बोल पड़ा ।
‘ यार कल्लू जमाने को क्या हो गया है ? कोई भी सब्जी पचास रूप्ाये से कम नहीं । गेहूॅं पन्द्रह रूप्ाये किलेा । तेल सौ रूप्ाये किलो । और सरकार कहती है कि मंहगाई कम हो रही है । विकास दर बढ़ रही है । देश तेजी से तरक्की कर रहा है । सब कुछ तो बाजार हो गया है । बाजार में क्रयशक्ति वाला ही खड़ा रह सकता है । अर्थशास्त्र के अनुसार गरीबी का कारण क्रयशक्ति का अभाव है , वरना सामानों से तो बाजार अटा पड़ा है । भूख मरी का कारण अनाज की कमी नहीं खरीदने की श्ाक्ति की कमी है । कल्लू को यह अर्थशास्त्र कभी समझ में नहीं आता था।
झबरे कुत्ते की रूचि अर्थशास्त्र से ज्यादा हड्ड़ी के टुकड़े या -चाय - चाटने में थी। कल्लू गरीबी से दुखी था ,कुत्ता अर्थशास्त्र से दुखी था लेकिन दोनों असहाय थे । कल्लू ने फिर सोचा । आखिर सरकार के कदम महंगाई को क्यों रोक नही पाते। एक प्रधानमंत्री ने तो स्पप्ट कह दिया , महंगाई दूसरे मुल्कों की नीतियों के कारण बढ़ रही है । इट इज ए ग्लोबल फिनोमेना ।
हूॅ । क्या सरकार चाहे तो कुछ आवश्यक वस्तुओं के दाम कम नहीं कर सकती । गरीब काे कार , ए.सीए श्शेयर बाजार , मॉल ,मल्टी प्लेक्स , फलेट , टीवी , कम्ंयूटर नहीं चाहिये । केवल दोजरव को भरने के लिए दो जून रोटी चाहिये । मगर सरकार सुने तब न .........।
श्शाम हो चली थी । कल्लू ने सामान समेटा । घर को चल दिया । आज भी श्शायद धर पर पकाने को कुछ न हो । जबरा कुत्ता उसके पॉवों में लौट गया । उसने उसे पुचकारा और उदास मन से घर की और बढ़ गया ।
0 0 0 0
अविनाश , कुलदीपक माधुरी विश्वविधालय के स्टाफ रूम में गप-शप कर रहे थे । अविनाश वैसे तो जनसम्पर्क का काम देखते थे , मगर वे स्वयं की मार्केटिंग में भी माहिर थे । कुलदीपक पिछली बार चयन समिति से तो चयनित हो गये थे , मगर राज भवन ने अड़गां लगा दिया था । राज भवन के प्रतिनिधि के अभाव में चयन समिति की -संवैधानिकता पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया था । वे चयनित थे , मगर आदेश रूक गये थे । वे कोर्ट में जाना चाहते थे , मगर माधुरी ने रोक दिया था । कहा था । समय आने पर सब ठीक हो जायेगा । कुलदीपक मन मसोस कर रह गये थे , मगर सेमिनार में लग गये । क्योंकि सेमिनार का बजट आ गया था । बजट को मार्च के पहले निपटाना था । मगर कुलदीपक जी उूंचे खिलाड़ी थे , उन्होने झपकलाल को सेमिनार का काम काज संभलवा दिया था । समितियां बना दी गई थी । बजट की बंदर बांट जारी थी । कहीं कहीं विल्लियों की लड़ाई में बजट बन्दर ही खा जाने को उतावले थे ।
रजिस्टार श्शुक्लाजी अलग अपना अपना राग अलापते रहते थे , उन्होने ठेके पर एक सेवानिवृत्त लेखाकार को लेखाधिकारी के रूप में लगा दिया था बेचारा लेखाकार रजिस्टार के आदेशों की पालना में सभी गलत -सही कागजों पर सही बैठा देता था । कभी किसी कागज पर आखेप लगाता तो श्शुक्ला जी उसे बुलाते ,चाय पिलाते ,प्यार से समझाते और कहते ‘बाबूजी ! ये निजि विश्वविधालय है । यहॉं पर सब कुछ मेडम की मर्जी से चलता है । हर कागज पर वे हीं निर्णय लेती है । आप अपने सरकारी आखेपो के त्रिशूल नही गाड़े नही ंतो मेडम नाराज हो जायेगी । आपकी नौकरी तो जायेगी ही मेरी भी जारन सांसत में पड़ जायेगी ।
धीरे धीेरे विश्वविधालय अपना आकार ले रहा था । वहॉं पर मुखौटे थे , हाथी थे ।मगर मच्छ थे । छिपकलियां थी । चूहे थे । सब धीरे धीरे इस अरण्य में विचरण कर रहे थे । विश्वविधालय धीरे धीरे एक समन्दर का रूप्ा ले रहा था । विज्ञापनों के कारण छात्र-छात्राएॅं भी आने लगे थे । तकनीकि संस्थान हो जाने से फीस भी मोटी और उूॅची हो गई थी । सरकारी अनुदान भी मिलने लग गया था । विदेशों से भी पैसा आने लगा था । भव्य भवन के निर्माण में रजिस्टार साहब की कोठी भी बन गई थी । कहने को इन्जीनियर्स भी थे , मगर रजिस्टार श्शुक्लाजी बड़े चालू चीज थे । वे सभी को चूरा देते और लड्डू खुद हजम कर जाते । पढ़ने-लिखने के श्श्ाौक के कारण अध्यापकाे से बहस कर जाते और पद की गरिमा के कारण उन्हे चुपकर देते । वैसे अध्यापक बेचारा सबसे गरीब डरपोक ,कामचोर ,कायर जीव होता है , जिससे अध्यापन के अलावा पचास काम कराये जा सकते हैं । कुलदीपक जी उन्हीं पचास कार्यो में से एक सेमिनार में लगे थे । सेमिनार के उद्धघाटन में वे तसलीमा नसरीन ,मैत्रेयी देवी महाश्वेता देवी या अरून्धती राय को बुलाना चाहते थे मगर माधुरी मेडम व कुलाधिपति महोदयेा ने शिक्षामंत्री से पूर्व में ही समय ले लिया था । इस कारण स्त्री विमर्श व वूमेन लिब के अन्य जानकार सेमिनार में केवल भापण देने में ही व्यस्त रहे ।
शिक्षामंत्री के आने से विश्वविधालय का बड़ा भला हुआ । उसे स्थायी मान्यता मिल गई ।
कुलदीपक सेमिनार की सफलता से खुश थे । माधुरी विश्वविधालय के स्थायी करण से खशु थी । रणछोड़ दास जी महाराज अख्रबारो में फोटो टीवी पर श्शकल दिखने से खुश थे । अविनाश ,झपकलाल रजिस्टार आदि चूरे से खुश थे । सेमिनार के बजट से कुछ राशि बच गई थी ,एक दिन पूरे विश्वविधालय स्टाफ और छात्र-छात्राओं ने श्शानदार पिकनिक मनाकर बजट को संम्पूर्ण कर दिया ।
ऐसे विश्वविधालयों की हर राज्य में बाढ़ सी आ गई । तकनीकि संस्थानों की भी बाढ़ आ गई । सब कुछ शिक्षा के नाम पर जिसके लिए किसी ने लिखा कि शिक्षा पद्धति रास्ते में पड़ी वह कुतिया है जिस पर हर केाई एक लात मार देता है ।
सरकार के मुखिया ने अचानक यह इच्छा जाहिर की ि क वे राज्य क ेलेखकों ,बुद्धजीवियों से मिलेगे । लेखक तलाशेजाने लगें । कई लेखकों से सम्पर्क करने के प्रयास किये गये । मगर कई नकचढ़े लेखकों ने नवरत्नो में श्शामिल होने से मना कर दिया । कई लेखकों ने छुट भैये पत्रकारों ,कवियों के नाम सुझा दिये । कारिन्दों ने विपक्षी नेताओं से भी नाम मांगे , मगर इस बुद्धिजीवी मीट के लिए उन्होने अपने आदमियों को भेजना गंवारा न किया । कारिन्दों को बड़ा आश्चर्य हुआ । अच्छा खाना -नाश्ता , ए.सी. हाल में मुख्यमंत्री से मुलाकात का अवसर । मगर अच्छे लोग मिल नहीं रहे । जो मिल रहे थे उन्हे सरकार बड़ा उूॅचा लेखक -कलाकार मानने को तैयार नहीं । और पत्रकारों का क्या भरोसा ,कब क्या लिख बैठे । बड़ी परेशानी थी । मुख्यमंत्री के निजिसचिव ने जन सम्पर्क सचिव को तलब किया ।
ल्ेाखको की सूची बन गई क्या ?
‘ सर ! सूची कई बार बनी । कई बार बिगड़ी । अन्तिम सूची तो मुख्यमंत्री ही बनायेगें न । '
‘ तो क्या ? एक टेन्टेटिव सूची तो प्ा्रस्तुत करो ।
‘ सर इन लोगो का कोई भरोसा नहीं । कब कौन क्या बोल बैठे और फिर हमे सी .एम. के सामने नीचा देखना पड़े ।
‘ क्यों ? हम किसी को ज्यादा बोलने का अवसर ही नहीं देगे ।
स्ावाल अवसर का नहीं है श्री मान् । ये बुद्धिजीवी बड़ी खफती कौम होती है । ऐसा चूटयां भरती है कि सत्ता को बरसो याद रहता है ।
अापको याद है न एक पूर्व मुख्यमंत्री ने महादेवी वर्मा के बारे में क्या कह दिया था और जवाब में मुख्यमंत्री जी को कुर्सी छोड़नी पड़ी थी और आज तक वे राजनैतिक वनवास से वापस सत्ता की कुर्सी पर नहीं आये ।
‘ छोड़ो यार ये पुराने किस्से । तुम तो ऐसा करो राजधानी के मठाधीपों को छोड़ो और छोटी जगहों के दस-बीस कवियों ,साहित्यकार को बुला लो । दो -चार चाटुकार साहित्यकार जो सत्ता के नगाड़े बजाते रहते हैं , उन्हे भी बुलाओ । अच्छा खाना । अच्छा कार्यक्रम बस । सी.एम. खुश हो जाये । ये चुनावो का पूवार्भ्यास है।
ठीक है सर मै काशिश करता हूॅ । वैसे कुल कितने लोग चाहिये ।
यही कोई बीस -तीस लोग । प्रारम्भ में सी.एम. का उद्धवोधन ! फिर एक दो को बोलने का मौका फिर भोजन विसर्जन बस ।
‘ ये जो बोलने का अवसर है यहीं खतरा है ।
‘ मैं सब संभाल लूगां । आप तो व्यवस्था करें । अकादमियों के सचिवो -अध्यक्षों को भी बुला ले ।
‘ कई अकादमियां तो खाली पड़ी है ।
‘ जो है उन्हे तो बुलाओ यार ।
ज्ोा हुकम सर ।
जनसम्पर्क सचिव ने बाहर आकर पसीना पोंछा । मुख्यमंत्री की े लेखकों , बुद्धिजीवियों की मिटिंग में माधुरी विश्वविधालय की ओर से श्श्ुाक्ला जी व समाज सेवी के रूप में श्री मती श्शुक्ला जी ने स्वयं का नामाकंन करा लिया । अविनाश कुलदीपक टापते रह गये ।
मिटिंग साजधानी में थी । यथा समय मुख्यमंत्री सचिवालय मे एक बड़े हाल में सब व्यवस्थाएं की गई । कवि -लेखको को बिठाने के बाद निजि सचिव ने मुख्यमंत्री को सूचना दी । मुख्यमंत्री ने कुछ समय इन्तजार करा या । फिर आये । सभी को खड़ा होना था ,मगर कुछ व्यक्ति बैठे ही रह गये । मुख्यमंत्री ने अग्रिम पक्ति में बैठे व्यक्तियों से हाथ मिलाया । अभिवादन किया । मंच पर पहुॅचकर सभी और हाथ जोड़ नमस्कार किया । आसन पर बैठे । यह प्रेसवार्ता नहीं थी ,मिलन समारोह था ।
निजि सचिव ने एक पूर्व लिखित भापण मुख्यमंत्री की ओर बढ़ाया मगर मुख्यमंत्री जी ने अपना उदबोधन अलग से दिया ।
‘ मेरी सरकार ने पिछले कुछ वर्पो में प्रदेश का कायाकल्प कर दिया है । सड़क ,शिक्षा ,स्वास्थ्य ,ग्रामीणरेाजगार पर हमने बहुत खर्च किया है । आगे भी ये योजनाएं जारी रहेगी । आपलोगों से भ्ाी सहयोग चाहिये ताकि पूरा प्रदेश्ा तेजीसे आगे बढ़ सके । अब आप लोग संखेप में अपनी बात कहे । मैं नोट करूगा । उन्होने निजि सचिव को इशारा किया ।
श्शुक्लाजी अग्रिम पंक्ति में बैठे थे । खड़े हो गये । ‘श्री मान् ! उच्चशिक्षा की स्थिति ठीक नहीं है । सर्वत्र श्श्ौक्षणिक भ्रप्टाचार का राज हो गया है। शिक्षा का सीधा मतलब डिग्री से हो गया है और डिग्री के लिए भारी फीस । फीस दो डिग्री लो ।
म्ुख्यमंत्री ने टोका ‘ इसमे गलत क्या है ? आपका विश्वविधालय भी भारी फीस लेकर डिि ग्रयां दे रहा है ।मुझे सब पता है ।
श्शुक्लाजी बैठ गये । आपा खोते हुए श्री मती श्शुक्ला बोल पड़ी ।
प्रदेश में महिलाओं की िस्थ्ति खराब है । ग्रामीण रोजगार योजना में उन्हे पूरी मजदूरी नहीं मिलती । सूचना के अधिकार के तहत जानकारी नहीं मिलती ।
ऐसी सामान्य बातों से कुछ नहीं होगा । आप कोई केस बताईयें । मुख्यमंत्री ने फिर टोंका ।
‘ केस ही केस है सर । आप ध्यान तो दीजिये ।
‘ ठीक है आज बैठ जाईये । श्री मती श्शुक्ला बैठ गई ।
एक कलाकार नुमा पुराने बुजुर्ग खड़े हुए ‘सर ! आजादी के दिनों में हमने क्या क्या सपने देखे थे । मगर सब कुछ बाजार हो गया है । साहित्य ,कला ,संस्कृति , हस्तशिल्प ,कुटीर उधोग सब कुछ बाजार हो गया है ।
‘ बाजार होने से ही तो कीमत और मांग बढ़ती है । देखिये हमारा माल किस कीमत पर जा रहा है । तथा कलाकारों ,दस्तकारों की माली हालत कैसे सुधर रही है । ‘एक सचिव ने टोंका । मुख्यमंत्री ने सचिव को चुप रहने का इसारा किया । कलाकार फिर बोला ।
अकादमियों में काम काज ठप्प है। बजट केवल वेतन के लिए मिल रहा है । अकादमी -सचिव नौकरशाहों की तरह व्यवहार कर रहे है । वहॉ कलाकारों की कोई इज्जत नहीं ह। सचिव सर्वेसर्वा हो गये है।
त्ोा भई अकादमी के रोजमर्रा के काम तो सचिव ही करेंगे । मुख्यमंत्री बोले
‘ वो ठीक हें सर ! मगर कलाकार केवल सम्मान चाहता है ।
‘ सम्मान भी मिलेगा । हम श्शाघ्र ही नये अध्यक्षों की घोपणा करेंगे ।
एक सेवा निवृत अध्यापक जो लिखने का श्शौक रखेते थे बोल पड़े ।
‘सर ! शिक्षा विभाग की स्थिति दिनो दिन गिरती जा रही है । हर योजना असफल हो जाती है । योजनाओं में दोप नहीं होता मगर क्रियान्वयन में गलती होती है ।
‘ आप जब शिक्षा विभाग में थे ,सुधारने के क्या उपाय किये ।
‘ अध्यापक जी चुप लगा गये । मुख्यमंत्री व कारिंन्दे मन्द -मन्द मुस्काराने लगे ।
एक अन्य बुद्धिजीवी ने मंहगाई की बात उठाई लेकिन उनकी आवाज को नक्कार खाने में तूती की आवाज की तरह किसी ने भी सुनना उचित नहीं समझा ।
एक हारी हुई महिला ने टिकटों के बंटवारे में महिलाओं के आरक्षण की बात की । मुख्यमंत्री ने पचास प्रतिशत आरक्षण की घोपणा की और साथ ही कहा - महिलाओं के जीतने के बाद उनके पतियों को काम -काज में दखल नहीं देना चाहिये । चारो तरफ सरपंच पति , पार्पद पति ,प्रधान पति व जिला प्रमुख पति ,जैसे पद सृजित हो गये है । इस प्रवृत्ति को रोका जाना चाहिये । मुख्यमंत्री बोले जहां तक स्वास्थ्य ,ग्रामीण रोजगार ,गन्दापानी ,मौसमी बीमारियां आदि के मामले है , ये सब अपने आप धीरे -धीरे ठीक हो जायेगें । मुख्यमंत्री ने उपवेशन की समाप्ति की धोपणा की ।
‘ आईये भेाजन करते हैं। इसे वेद वाक्य से सभी आमन्त्रित बड़े प्रसन्न हुए । स्वादिप्ट - सफल कार्यक्रम की अखबारों में सरकारी तंत्र ने खुल कर प्रचार -प्रसार किया ताकि आगामी चुनावों में सरकारी पक्ष को लाभ मिले । मगर विपक्षी दल भी सत्ता में आने के लिए ऐडी चोटी का जोर लगा रहा था ।
श्शुक्लाजी व श्री मती शुक्ला टेन से वापस आ रहे थे । मुख्यमंत्री की मिटिंग का गहरा असर था । ये बात अलग कि उन्हें मिला कुछ नहीं । वादेां , घोपणाओं से किसका पेट भरता है । टेन में भंयकर भीड़ थी। राजनैतिक रैली के कारण हर ड़िब्बे में बिना टिकट कार्यकर्ता सवार थे । टी. टी. रेलवे पुलिस , स्टेशन कर्मचारी ,अधिकारी सब घायब थे । रेली सत्ताधारी पार्टी की थी । सभी का मूक सहयोग था । श्शहर में भी पुलिस ,अर्ध सैनिक बल , अन्य सुरक्षा एजेन्सी सभी मिल कर रैली को सफल बनाने में जुटे थे । टेन में आरक्षित ड़िब्बों की भी हालत खराब थी आरक्षण टिकट वाले खड़े थे । राजनैतिक पार्टियों के कार्यकर्ता सीटों पर जमें पड़े थे । ऐसे माहोल में एक छुटभैये नेताजी िचरौरी करके ड़िब्बे में घुस गये ।श्शुक्ला जी व श्शुक्लाइन जी एक बर्थ में घुस गये । नेताजी ने अपनी रेली की सफलता और व्यवस्था की पूरी जानकारी दी ।
प्ूारी रेली में हम लोग छाये रहे । श्शाम को मंत्री जी के धर पर भोज था । दाल -बाटी ,चूरमा ! पड़ोस के मंत्री जी के यहां पर गुलाब जामुन पुडी,कचौड़ी जिसे जहां ठीक लगा खाया । कुछ लोग बांध कर भी ले आये । रास्ते में काम आयेगा ।
श्शुक्लाजी क्या बोलते । नेताजी आगे बोले ।
‘ लगे हाथ पार्टी के मुख्यालय भी हो आये ।
भईया ! का बताये ! पूरा दफतर दुल्हन की तरह सजा -धजा था । पार्टी कार्यालय तो महल है महल । बड़े -बड़े कक्ष । ए.सी. । कारे । टेलीफोन । फेक्स । फोटो स्टेट मशीने । इन्टरनेट । नेता ही नेता । अध्यक्ष जी का कमरा । क्या कहने । साथ में एक मंत्रणा-कक्ष । एक पी.ए. कक्ष । एक वेटिंग रूम । हर तरफ सत्ता की चकाचौध । आंखे चौधियां गई भईया हमारी तो ।
‘ अच्छा ! श्शुक्लाजी ने हुंकारा भरा नेताजी ने प्रवचन जारी रखा ।
‘ कहॉं गान्धी , नेहरू की राजनीति और कहां ये फाइवस्टार पोलिटिक्स ।
हमने गांधी को मारा ,इन्दरागान्धी की हत्या की । राजीव भी चले गये । मगर ससुरा ये देश नहीं सुधरा ।
क्यों ? श्री मती श्शुक्ला बोल पड़ी ,
अब आप ही देखिये । क्या गरीब वोटर इस पार्टी - दफतर में जा सकता है ? क्या कोई उसकी बात सुनेगा ?
पार्टी में रिटायर्ड़ आई .ए . एस . एस . आई . पी. . एस . , हाइकोर्ट के जज , सचिव , राजनायिको , विशेपज्ञों के मेले लगते हैं । मेले ! हर रोज किसी न किसी खेत्र विशेप की मीटींग । एक रोज वकील ,एक रोज
इन्जीनियर , एक राेज ड़ाक्टर , एक राेज हकीम -वैध , एक रेाज अध्यापक , एक रेाज पुलिस वाले , एक रेाज अफसर , भईया ऐसे मैं गरीब किसान ,मजदूर को कौन अन्दर घुसने देता है !!
‘ मगर असली वोटर तो वो ही है । ''
हां है , वोट के समय उसे खिला- पिला कर तैयार कर वोट की मशीन के सामने खड़ा कर देते हैं । बेचारा बटन दबा देता है । मगर उूपर के पदों तक नहीं पहुॅंचता ।
‘ श्शुक्लाजी चुपचांप सुन रहे थे । कोई स्टेंशन आ गया था । यहॉं से रेल की भीड़ और बढ़ गई थी ।
डिब्बे में भीड़ थी । अन्धेरा हो चला था । श्शुक्लाजी - श्श्क्लाइन जी ने नेताजी के नाश्ते में से नाश्ता किया । अध्यापकों का हम बहुत सम्मान करता हूॅं । नेता जी बोल पड़े थे । मगर श्शुक्लाइन चुप ही रही । वो जानती थी सरकारी अध्यापक बेचारा क्या क्या करता है । दोपहर का खाना बनाना , बांटना , जानवरों की गिनती करना ,पल्स पोलियों , चुनाव , मतदाता सूची ,टी . वी . मलेरिया की दवा बांटना , आदि सैकडा़े काम केवल पढ़ाने के काम के अलावा सव । हर काम का अलग अफसर । सरपंच की चमचागिरी अलग । तहसीलदार की सेवा उूपर से । फिर भी स्थानान्तरण , निलम्बन , बरखास्तगी का डर । साल में एक माह का वेतन इन लोगों को समर्पित करने पर ही गांव में रहना संभव । श्शुक्लाईन ये सब कभी भुगत चुकी थी । श्शुक्लाजी रजिस्टार बनने से पहले ये सब देख-सुन-भुगत चुके थे । रात गहरा रहीं थी । टेन अन्धेरे को चीरती हुई जा रही थी ।
माधुरी विश्वविधालय सहित सभी निजि विश्वविधालयों को राज भवन से नोटिस मिल गये ।,प्रवेश प्रक्रिया , फीस , डिग्री , केपिटेशन , अध्यापक , कर्मचारियों के बारें में जानकारियां मांगी गई । एक -एक प्रोफेसर ने तीन तीन विश्वविधालयों में अपना नाम फेकल्टी के रूप्ा में लिखा रखा था । एक ही समय वो प्रदेश के तीन अलग -अलग स्थनों पर कैसे पढ़ा सकते हैं । कैसे श्शोध करा सकते थे । कुछ प्रोफेसर तो सरकारी सेवाओं से निवृत्त हो कर पेंशन भी ले रहे थे । ऐसे ही एक मामले में एक वरिप्ठ शिक्षक जांच में दोपी पाये गये , उन्हें तीनो जगहो से त्यागपत्र देना पड़ा । पेंशन के लिए जो कागज वे अपने विभाग में देते थे , उसकी भी जांच हो गई । एक अन्य संस्था के निदेशक की जांच में पाया गया कि उनकी डिग्री ही फर्जी है । पी . एचड़ी जहां से की गई थी , वहॉं पर संस्था ही नहीं थी । एक अन्य अध्यापक के श्शोध पत्र पूर्व प्रकाशित श्शोध पत्रों की नकल पाये गये । एक अन्य सेवा निवृत अध्यापक ने जो किताब लिखी वो एक अन्य भापा की प्रकाशित पुस्तक का अनुवाद पाया गया ।
सेन्टल बोर्ड ने सभी विश्वविधालयों , संस्थाओं से फेकल्टी के नाम ,पते , फोटो ,परिचय , सम्पूर्ण विवरण मंगवा लिए । राज भवन के निर्देशों की पालना में जाचें श्शुरू हुई । मगर श्श्ौक्षणिक भ्रप्टाचार की गंगोत्री में सभी नहा रहे थे । हमाम में सभी नंगे थे । सभी नपुसंक थे । सभी राजा को नंगा साबित करने के प्रयास में लग गये । राज भवन की जांच समितियों की रपटे आने में ही काफी समय लग गया । कुछ संस्थाओं ने आयु सीमा बासंठ ,पैसंठ ,सत्तर वर्प कर दी । सेवानिवृत्त अध्यापकों के मजे हो गये । पेंशन ,दो -दो सस्थाओं से प्रोफेसरी के वेतन - भत्ते और अन्य लाभ ।
आखिर कुछ पकड़े गये । जेल किसी को नहीं हुई । सेवायें समाप्ति ही कार्यवाही के रूप में मान्य कर दी गई ।
माधुरी विश्वविधालय की कुलपति भी इन सभी समस्याओं से झंूझ रही थी । उसके विश्वविधालय के भवन में सुबह एम. बी . ए. सायंकाल इन्जीनियरिंग और रात को फारमेसी की कक्षाएं लग रही थी । बी.एड़ कराने का अलग लफड़ा पाल रखा था । अध्यापकों की बेहद कमी थी । सरकारी जांच से जो अध्यापक खाना-पूरी कर रहे थे वे भी भाग बये । कुछ ने पकड़े जाने और पेंशन बन्द हो जाने के डर से आना बन्द कर दिया ।
वास्तव में शिक्षा के तीन रूप्ा हो गये । एक थ्ाड़ी वाली शिक्षा की दुकानें ,दूसरे कुछ बड़े श्शोरूम और सबसे बड़े श्शोपिंग माल्स । विश्वविधालयों संस्थाओं ,तकनीकी सस्ंथाओं का ऐसा जाल फैला कि प्रदेश के हर गली - मोहल्लें में शिक्षा देने और फीस ,केंपिटेशन लेने वालों के बड़े -बड़े श्शोरूम हो गये । मेडिकल ,तकनीकि ,फारमेसी , आदि में तो और भी बुरा हाल हो गया । लड़के - लड़कियां ड़ाक्टर ,वैध , हकीम , कम्पाउड़र , फारमेसिस्ट बन गये , मगर कालेज की श्शकल श् नहीं देखी । जमकर दुकान दारी हाने लगी ।
प्रदेश के मंत्री असहाय । मुख्यमंत्री चुप । राज भवन की जांचे चलती रही । शिक्ष की गाड़ी में टेक्टर के पहिये लग गये । माधुरी ये सब जानबूझ कर भी अपनी दुकान चलाती रही । उसे कोई खतरा नहीं था ।
- श्शुक्लाजी और माधुरी अपने विश्वविधालय के प्रशासनिक भवन में जमे हुए थे । श्शुक्लाजी ने राजधानी में मुख्यमंत्री की मिटींग के बारे में बताया था ।
‘ वो तो ठीक है श्शुक्लाजी । मगर ये राज भवन का नोटिस ।
‘ नोटिस का क्या है ? आते रहते हैं । वैसे भी हमारा विश्वविधालय आर्थिक भ्रप्टाचार की श्रेणी में ही नहीं आता है ।
‘ लेकिन हमारे पास अध्यापकों की कमी है ।
‘ हां कुछ अध्यापकों को हम ओवर टाइम देकर ड़बल काम करा रहे है ।
‘ लेकिन ये गलत है ।
‘ इसमें कुछ भी गलत नहीं है ।
‘ अरे भाई फार्मेंसी कालेज में गणित वाले क्या कर रहे है ।
‘ पढ़ा रहे है ,और क्या ?
और इन्जिनियरिंग कालेज में तो कोई है ही नहीं ।
‘ है कैसे नहीं ,एक सीविल के रिटायर्ड प्रोफेसर सब कक्षाएं संभाल रहे है ।
‘ मगर हमारे यहॉं तो कम्यूंटर चलता है ।
‘ कम्यंूटर हर विधा में काम आता है ।
देख लीजिये कहीं विश्वविधालय को खतरा नहीं है । आप और मैं दोनों ही फंस जायेगे ।
‘ आप बेफिक्र रहे । ये कह कर श्शुक्लाजी माधुरी के केबिन से बाहर आ गये ।
विश्वविधालय में कई मुरारी हीरो बनने के लिए आते हैं और कई हीरो मुरारी बनने के लिए । ऐसे ही एक हीरो पी. एच. डी. के ड़ाक्टर बनने के लिए झपकलाल के सामने दीन - हीन दशा में सुदामा की भापा में चाटुकारिता का पाठ पढ़ रहे थे । झपकलाल के काम के करने के फण्ड़े बिलकुल पण्ड़ों की तरह साफ सुथरे थे। जितना गुड़ डालोगे उतना ही मीठा होता है नाम के कहावत वे अक्सर गुन गुनाते रहते थे । उन्होने श्शोधार्थी जी को समझाया कि आपकी थीसीस तब तक जमा नहीं हो सकती जब तक कि गाइड पैनल .........नहीं भेज देते ।
‘ मगर गाइड ने तो पैनल भेज दिया था । '
‘ भाईजान उस पैनल में वी . सी . मेडम के आदमी का नाम नहीं था , अतः पैनल मैंने ही अपने स्तर पर रिजेक्ट कर दिया ।
‘ आपको यह अधिकार किसने दिया ।
‘ जाकर रजिस्टार या वी . सी . से माथा मारो । यह कह कर झपकलाल ने एक अन्य श्शोध छाात्रा की िथ्सिस की फाइल आगे कर दी । फाइल पर प्रसाद का स्पप्ट प्रभाव दिखाई दे रहा था । श्शोध छात्र ने प्रत्रावली पर प्रसाद चढ़ाया । नेग - चार किया । और झपकलाल ने सिद्धान्तों से समझोता नहीं करते हुए श्शोध छात्र को समझाया।
‘ वी . सी . का पैनल ही अन्तिम होगा । अपने गाइड को समझाओ। नया पैनल बनवा कर कागज सीधे मेरे पास ले आओ । आवक -जावक श्शाखा में दिया तो पी . ए .चड़ी . अगले जनम में मिलेगी । समझे।
जी समझ गया ।
अचानक झपकलाल ने उसे वापस बुलाया और कहा । '
यार इस पैनल वाले कागज में तुम अपने हाथ से एक लखनउू वाले का नाम जोड़ दो । मैं फाइल आगे बढ़ा देता हूॅ । कौन देखता है ।
‘ लेकिन उस परीक्षक से गाइड का झगडा़ है ।
वहीं तो । मैं सब समझ रहा हूॅ । तुम्हारे गाइड का वी. सी. से झगड़ा है । वी. सी. उसे परीक्षक को बुलाना चाहती है और तुम्हारा गाइड ये नाम मरे ही नहीं लिखेगा । मगर तुम्हे डिग्री लेनी है , हमें देनी है ,विश्वविधालय को फीस व अंाकड़े चाहिये । ऐसी स्थिति में वही करो वत्स जो मैं कहता हूॅ । एक नाम अपने हाथ्ा से टांक दो । मरता क्या न करता । मुरारी नामक श्शोध छात्र ने लखनउू वाले परीक्ष्क का नाम गाइड के कागज पर लिख ड़ाला । फाइल आगे चली । वी. सी. ने लखनउू वाले परीक्षक को ही मौखिक परीक्षा के लिए हवाई यात्रा की स्वीकृति प्रदान की।
म्ुारारी के गाइड यह सब देख कर श्शरम से गड़ गये मगर गधा पहलवान तो साहब को मेहरबान होना पड़ता है । मुरारी ने बाह्य परीक्षक की हवाई यात्रा , होटल , घूमने -फिरने को ए. सी. टेक्सी , श्शराब ,
श्शबाब , मुर्गा सब व्यवस्था की । गाइड टापते रहे और माधुरी मेडम की कृपा से लखनउू वाले परीक्षक की चरण वंदना से मुरारी विश्वविधालय से पी. एच. ड़ी. वाले ड़ाक्टर हो गये । जानना चाहेंगे मुरारी की थिसिस किसने लिखी थी , डेटा कहां से आये थे । ये मूर्खतापूर्ण प्रश्न आपको श्शोभा नहीं देते । मगर आपके ज्ञान वर्धन हेतु बता देता हूू कि ये सभी काम श्शोध छात्र ने धुर दक्षिण की एक युनिवरसिटी से चुरा कर तैयार किये थे । गाइड ने उस काम में पूरा सहयोग किया था । गाइड के डर को मुरारी ने निर्मूल कर दिया और माधुरी विश्वविधालय के पहले ड़ाक्टर घोपित हो गये । गाइड के दुश्मनों ने विश्वविधालय में इस थिसिस की धज्जियां उड़ाने की कोशिश की मगर हमाम में सब नंगे ।
यही कहानी हर विश्वविधालय के हर विभाग की हर पी. एच. डी. में थोड़े बहुत फेर बदल के साथ दौहराई जाती है । दोहराई जाती रहेगी ।
ब्ुद्धिजीवियों की लड़ाईयॉं भी देखने में बड़ी बौधक होती है । बड़ी नजर आती है ,मगर अन्दर से छोटी घटिया और कमजोर होती है । बड़े लोगों के दिल बड़े छोटे होते हैं । छोटी -छोटी बातों से श्शुरू होकर ये लड़ाईयां अहम् अहंकार और धमण्ड की लड़ाईयां हो जाती है । िजसे बुद्धिजीवी स्वाभिमान की लड़ाई कहते हैं । ऐसे ही दो बुद्धिजीवी माधुरी विश्वविधालय के एक ही विभाग में प्रोफेसर भ्ाये । इन प्रोफेसरों का सीधा हिसाब था मेरा छात्र दूसरे प्रोफेसर केा नमस्ते तक नहीं कर सकता । यदि नमस्ते कर दिया तेा डिग्री से वंचित । दोनों के अपने अपने गुट थे । अपने अपने गुर्गे थे । अपने अपने गुण्डे थे । अपने अपने सामाजिक सरोकार थे । सामान्यतया दोनो एक दूसरे के सामने नहीं पडते थे । एक सुबह के समय आते । काम - काज निपटाते । चले जाते । दूसरे लंच के बाद आते । सुबह वाले को गरियाते । अपना काम- काज सलटाते । वी. सी. रजिस्टार के दफतर में हाजरी लगाते । चुगली खाते और चले जाते । विभाग में अघेापित युद्धविराम चलता रहता । कभी -कदा कोई बात हाेती तो दोनो एक दूसरे की अनुपिस्थ्ति में आपकी भड़ास निकालते और फिर श्शान्त हो जाते । लेकिन आज के दिन श्शायद विश्वविधालय के नक्षत्र ठीक नहीं थे । दोनो प्रोफेसरों के भी चन्द्रमा नीच के थे । सो दोनो आमने -सामने पड़ गये ।
प्रोफेसर क्रम संख्या एक जो माधुरी विश्वविधालय में आने से पहले एक राजनैतिक दल के निजि कालेज में शिक्षक थे । अपने आपको दल का नेता भी समझते थे नमस्ते करना गवारां नहीं किया ।
इधर प्रोफेसर क्रम संख्या दो जो एक अन्य विचारधारा के थे ,ने एक पोथी मांडकर यह पद हथियाया था अब कैसे चुप रहते ।
‘‘ क्या भाई नमस्ते से भी गये ? ''
क्यो नमस्ते ! नमस्कार ! सतश्रीआकाल ! गुड मार्निगं ! सलाम ! ''
‘‘ ये नमस्कार कर रहे हो या पत्थर फेंक रहे हो ।
‘ पत्थर तो आप फेंक रहे हैं ?
‘ आप गुर्रा क्यों रहे हैं ।
अब दूसरे प्रोफेसर कैसे चुप रहते ।
तुम भेंाको और मैं गुर्राउूं भी नहीं ये कैसे हो सकता है । ' '
बस फिर क्या था । बरामदे श्श्ौक्षणिक व्यभिचार ,अनाचार ,ब्लेक मेलिगं ,आदि नारों से गूजने लगे । विभाग के छात्र ,छात्राएं ,कर्मचारियों ,अन्य अध्यापको की भीड़ लग गई ।
प्रोफेसर एक दूसरे का कालर पकड़ना चाहते थे । मगर यह संभव न था । धीरे धीरे वार्ता गरम हो रही थी । वे एक दूसरे के इतिहास को दोहराने लगे थे ।
‘ तुम राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेते हो ।
‘ तुम पार्टी के दफतर में क्यों जाते हो । '
‘ कब गया । '
‘ पिछले माह '
‘ व्ोा तो एक राजनैतिक नियुक्ति का मामला था । '
‘ सो जब तुम जा सकते हो तो मैं क्यों नहीं । '
‘ तुम वहॉ पर चाटुकारिता करते हो । '
‘ नहीं मैं वहॉ पर चुनाव धोपणा पत्र में मदद के लिए गया था । '
ये तुम्हारा काम नहीं । वैसे भी पिछली बार तुमने पार्टी की लुटिया डुबोदी थी । '
ओर तुम्हारी साली की जमानत जब्त हो गई थी । '
उससे तुम्हें क्या ?
ओर तुम्हारी पी. एच. डी. की डिग्री फर्जी है ।
डिग्री असली है संस्था के बारे में थेाड़ा कन्फूजन है । लेकिन तुमने तो पूरी की पूरी थिसिस की नकल मार ली ।
‘ ये सब पूरी दुनिया में चलता है । '
त्ाुम चुप रहो ।
तुाम चुप रहो ।
पाठको ! जोश और क्रोध में बुद्धिजीवी अंगेजी बोलता है , ज्यादा क्रोध में गलत अंग्रेजी बोलता है । सो दोनो बोल पड़े ।
श्शट अप ।
यू श्शट अप ।
यू रासकल ।
यू गेट लोस्ट ।
यू गेट लोस्ट । दोनो गेट लोस्ट हो गये ।
अब कहने को क्या बचता है । ऐसा हर विश्वविससलय में साल में एक - दो बार हर विभाग में होता है । कर्मचारी इसे श्श्ौक्षणिक दुनियां का नाटक कहते हैं ।
0 0 0
श्री मान् ! मैं आपके विचार , चिंतन, मनन , मंथन या जो भी आप के दिमाग से हो सकता है उसे आमत्रिंत करता हूॅ । कृपया मुझे , देश , समाज को बताये कि व्यक्ति स्वयं भ्रप्ट होता है या परिस्थितियां उसे भ्रप्टाचारी बनाती है । वे कौन सी स्थितियां परिस्थितियां वगैरह होती है जो व्यक्ति को भ्रप्टाचार की और प्रवृत्त करती है । एक सीधा साधा गउू जैसा व्यक्ति कब ओर क्यों एक धूर्त ,पाजी ,बदमाश , मक्कार , बन जाता है । मैं आपके इस चिन्तन को भी धार देना चाहूंगा सर कि ईमानदारी की परिभाप क्या है । असली ,खालिस ,शुद्ध ईमानदारी क्या होती है? कैसी होती है? और ये कि क्यों होती है । आदमी मजबूरी में ईमानदार बना रहता है और मौका लगते ही बेइमानी पर उतर आता है । ऐसा क्यों होता है । ईमानदारी की परिभाप्ाा अपने आप में एक श्शोध का विपय है । इस असार संसार में पैसे लेकर काम कर देने वाला ईमानदार कहलाता है । इसी प्रकार काम नहीं होने पर पैसा वापस लौटा देने वाला भी ईमानदार कहलाता है । कुछ लोग सीमित ईमानदारी की वकालत करते हैं । इसी प्रकार क्या पुलिस में ईमानदारी की परिभापा शिक्षा विभाग के अध्यापक की ईमानदारी की परिभापा से मेल खा सकती है ।
क्या आयकर विभाग की ईमानदारी की तुलना हम किसी शिक्षक की ईमानदारी से कर सकते हैं ।
क्या पचास - सौ साल पहले ईमानदारी की परिभापा थी वो आज भी चलन में हैं।
ईमानदारी का नाटक और नाटक में ईमानदारी कैसे सम्भव है ।
ये कैसी विडम्बना है कि बेइमानी के काम में ही सबसे ज्यादा ईमानदारी रखी जाती है ।
श्री मान् ! आप इस लम्बी भूमिका से थक गये होंगे । लेकिन गुलकी बन्नों का दोहिंता ,शुक्ला जी का बच्चा , नेताजी के सुपुत्र और कल्लू मोची का इकलोता लड़का ये सभी इसी महत्वपूर्ण प्रश्न पर सेमिनार कर रहे है । ये बच्चे अब किशोर हो गये है। दुनियादारी की समझ रखने लगे है। पोनी बना कर ,जींस पहन कर , बेल्ट, जूते ,चश्मा , और मोबाइल रखते हैं । किसी एक की बाईक पर चारों पूरे श्शहर में धमा चौकड़ी मचाते हैं । अभी किसी में भी अपराधी प्रवृत्ति का विकास नहीं हुआ है । मगर समय के साथ सब आ जायेगा । हाल फिलहाल ये चारों माधुरी विश्वविधालय के होनहार छात्र है और एक बाबू की सेवा में सौ का नोट टिकाकर अपनी उपस्थिति पूरी कराना चाहते हैं बाबू काफी समय से अपनी ईमानदारी का रोना रो रहा था । मगर इन युवको का दिल नहीं पसीज रहा था । वो प्रति छात्र सौ रूपये मांग रहा था । नेता पुत्र ने अपना अस्त्र निकाला ‘ करना हो तो सौ रूपये में काम करदो वरना ....! ये भी नहीं मिलेगे । पापा काम करा देगे । इधर श्शुक्ला पुत्र भी गरजे '
पापा को अगर पता लग गया तो तुम्हारी ख्ौर नहीं है ।
कल्लू पुत्र ने तुरन्त अपना एस. सी. होने का लाभ उठाया ,बोला ‘ यदि मैंने शिकायत कर दी की तुम छुआ-छूत करते हो तो पण्ड़ित जी अन्दर हो जाओगे । '
बताईये सर ऐसी स्थिति में विश्वविधालय के बाबू का क्या कर्तव्य बनता है ?
बेताल ने विक्रमादित्य का यह प्रश्न सुना तो विक्रमादित्य से चुप नहीं रहा गया बोल पड़ा ।
‘ ऐसी सिथति में भागते भूत की लंगोटी ले लेनी चाहिये , अर्थात बाबू को सौ रूपये लेकर उपस्थिति पूरी कर देनी चाहीये । विक्रमादित्य का मौन टूटते ही बेताल फिर जाकर भ्रप्टाचार के पेड़ पर उल्टा लटक गया।
चारों बच्चों की उपस्थिति बाबू ने पूरी की । डीन एकेडेमिक ने स्वीकार की । बच्चें परीक्षा में बैढे ।
COMMENTS