अथ श्री कलम-कथा - यशवन्त कोठारी मु झे एक पेन खरीदना था। दुकानदर के पास हजारों तरह के पेन थ्ो। दुकान पर बहुत भीड़ थी। मैं भीड़ से डरत...
अथ श्री कलम-कथा
- यशवन्त कोठारी
मुझे एक पेन खरीदना था। दुकानदर के पास हजारों तरह के पेन थ्ो। दुकान पर बहुत भीड़ थी। मैं भीड़ से डरता हूं, अतः दुकानदार से बोला भ्ौया एक ठीक-ठीक सा पेन दिखाओ जो चलते समय रुके नहीं। दुकानदार ने कई पेन दिखाये मगर कीमत इतनी ज्यादा थी कि मेरे बस में नहीं था। मैंने एक सस्ता सा मध्यमवर्गीय पेन दिखाने को कहा। उसने मुझे घूरा, फिर पेन दिखाने के बजाय पूछ बैठा। आप क्या करते है ? मैं लिखता पढ़ता हूँ। अच्छा तो आप लेखक है। शक्ल से तो मेवाफरोश लगते हो।
लेखक की शक्ल नहीं देखी जाती। लेखन की क्वालिटी देखी जाती है। ख्ौर तुम नहीं समझोगे। एक ठीक-ठीक सा पेन दिखाओ।
अगर सच्चे लेखक हो तो पेन का क्या करोगे, एक रीफिल ले लो। तुम्हारे बजट में भी आ जायेगी और इस बचत से तुम कागज, लिफाफा, गोंद, टिकट, कूरियर, स्टेपलर, यूपिन आदि भी खरीद सकोगे और ये सब चीजें मेरी दुकान पर उपलब्ध है। उसने चतुर व्यापारी की तरह कहा।
मैं समझ गया यह खुली अर्थव्यवस्था के सिलसिले में मुझे अनावश्यक सामान खरीदने को बाध्य कर रहा है लेकिन मैं उसके झांसे में आने वाला नहीं था। मैंने फिर पेन का राग अलापा।
‘कोई ठीक-ठाक सा पेन दिखाओ।'
ठीक है ये देखिये, ये लाल पेन लीजिये। इससे लिखी गई रचनाएं क्रान्तिकारी होगी। कल ही एक प्रगतिशील लेखक ले गये थ्ो। बहुत खुश थ्ो लेकिन मुझे लाल रंग के पेन पसन्द नहीं है। कोई बात नहीं ये केसरिया रंग का पेन लीजिये। सभी स्वयंसेवक इसी पेन से लिखते है कई तो केन्द्र में मंत्री और राज्यांे में मुख्यमंत्री बन गये है।
अरे भाई आजकल केसरिया रंग फीका पड़ गया है। इस रंग की बड़ी भद पिट रही है, देखा नहीं राष्ट्रपति के चुनाव में क्या हुआ। मुझे तो आप कोई अन्य पेन दिखाओ।
दुकानदार अब तक बोर हो चुका था। उसने एक हरा पेन निकाला और कहा। ये पेन आपको मुफीद आयेगा। आतंकवादी संगठनों का प्रिय रंग है, इससे लिखी आपकी रचना किसी मानव बम की तरह होगी।
लेकिन मानव बम तो स्वयं को भी मार डालता है। ठीक कह रहे है आप हुजूर। मगर हरे रंग से दुनियां अटी पड़ी है। आपके सफेद कालर वाली इस शर्ट की जेब में यह पेन खूब फबेगा। मगर मुझे यह पेन भी पसन्द नहीं आया।
दुकानदार ने कुछ गिफ्ट पेक पेन दिखाये मगर गिफ्ट का लेन-देन संभव नहीं था। सरकारी नौकरी जाने का खतरा था। मैंने उससे कुछ नये ढंग के पेन दिखाने को कहा। कुछ ब्राण्डेड पेन इतने मंहगे थ्ो कि एक स्कूटर खरीदा जा सकता था।
उसने फिर एक डिब्बा खोला और नये पेन दिखाने शुरू किये। ये देखिये हूजूर बिल्कुल नया स्टाक कल ही आया है। गठबन्धन सरकारों की तरह चलता है ये पेन............ और इस कलम के तो कहने ही क्या। बिल्कुल धर्म निरपेक्ष सरकार की तरह चलता है।
पेन लेना अलग बात है, उसे काम में लेना अलग बात। ये जो पेन मैं आपको दिखा रहा हूं। यह बहुत निष्ठावान पेन है एक अफसर ले गये थ्ो इस श्रेणी का पेन। केवल पत्रावली पर हस्ताक्षर करते हैं। और ये देखिये एक नये ढंग का विदेशी पेन, स्वयंसेवी संस्थाओं के संस्थापकों का प्रिय ब्राण्ड है, प्रोजेक्ट बनाओ। सबमिट करो। अनुदान लो और मर्सीडीज में घूमो। ये पेन देखिये कथाकारों में बड़ा लोकप्रिय है लेकिन मुझे नहीं जमा। ये देखिये पत्रकारों का प्रिय पेन।
पेनों का इतिहास, भूगोल, वाणिज्य सुन-सुनकर मैं परेशान हो गया था। अभी तक मुझे एक भी पेन नही जंचा था। दुकानदार को भी अब मेरे में मजा आने लग गया था सो बोला।
सर ये पेन देखिये जनवादी है इससे लिखी कविताएं पूरी दुनिया में तहलका मचा देगी।
लेकिन मैं जनवादी नहीं हूं।
कोई बात नहीं जाने दीजिये। ये पेन लीजिये इस पेन से चार चुटकुले नुमा हास्यास्पद रस की कविताएं लिखकर आप करोड़ों कूट सकते है।
लेकिन मैं कवि सम्मेलनी कवि नही हूं।
तो आप क्या है हुजूर ?
मैं तो लेखक हूं।
तो ये कहिये ना भाई साहब।
ये पेन लीजिये। चुके हुए लेखक आजकल इसी ब्राण्ड का पेन काम में ले रहे है अरे हां एक नया ब्राण्ड और आया है जो नवोदित लेखकों के काम आता है। आप कहे तो दिखाऊँ।
दिखाओ।
उसने एक सस्ता सड़ा सा रिफिल वाला यूज एण्ड थ्रो पेन दिखाया। और बोला।
इस पेन से लिखी नवोदित की रचना भी यूज एण्ड थ्रो की श्ौली की ही होती है और आजकल इस श्रेणी के पेनों की बड़ी मांग है। वैसे बुद्धिजीवियांे में इन पेनों की बड़ी डिमाण्ड है। सेमिनारों में, कान्फ्रेसों में, मिटिगों में ये पेन खूब फल-फूल रहे है। इन पेनों से हर तरफ विकास, फेशन, सिनेमा, खुशहाली, हरियाली की नई-नई इबारतें। लिखी जा रही है।
और एक पेन है मेरे पास जिससे अकाल, भूखमरी, बाढ़, बिमारी, बेकारी, बलात्कार, अपहरण, अपराध, हत्या, भ्रूणहत्या आदि की इबारतें लिखी जा सकती है। मैंने यह पेन खरीद लिया है।
इस कलम को खरीदकर मैं खुश हूं, मगर मैं जानता हूं कि हजारों पेनां पर लाखों अयोग्य लोगों का कब्जा है वे पेनों से खुद का भविष्य सुधार रहे है। अपनी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य संवार रहे है।
इन लोगों के पास हर तरह के पेन है, लाल, केसरिया, हरा, पीला, काला, नीला। जब जिस रंग के पेन की जरूरत होती है निकाल लेते है और इनके पेनों से निकल्ो शब्द बन्दूक की गोली की तरह भागते है। शब्द की यह मार पूरा समाज झेला रहा है। कुछ बिकी हुए कलमें ही तो समाज और सरकार को चला रही है। क्या ख्याल है आपका।
0 0 0
सम्पर्क:
यशवन्त कोठारी 86, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर, जयपुर-302002
ykkothari3@yahoo.com
जिस तरह यशवंत भाई को
जवाब देंहटाएंपेन नहीं भाया आरामतलबी
वाला, पेन वही जो जन जन
के पेन (दर्द) को दिखलाए,
लेखक को तो वही है भाए
पर दुकानदार जैसी सरकार
को यह कौन कैसे समझाए ?
सब चाहते हैं ऐसा पेन
जो चाहे कैसा भी लिखे
उसका लिखा खूब छपे
और छापे नोट अनेक
चाहे लिखा जाए न नेक।