प्रशासन को सरल व सबल बनाने में ई-गवर्नेन्स की भूमिका - डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव सरकारी कामकाज को ‘हाइटेक’ करने तथा कामकाज...
प्रशासन को सरल व सबल बनाने में ई-गवर्नेन्स की भूमिका
- डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव
सरकारी कामकाज को ‘हाइटेक’ करने तथा कामकाज की प्रक्रियाओं को सरल-सहज बनाने और आम जनता की दिक्कतें दूर करने के लिए ई-सुविधाएं या ई-गवर्नेन्स की परिकल्पना की गई है। भारत सरकार ने इसके लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं एवं लक्ष्य घोषित कर लिए हैं। व्यवहारिक रूप से यदि देखा जाये तो यह शासन प्रणाली इतिहास में मानव सभ्यता के उदय से ही विद्यमान रही है क्योंकि मुख्य रूप से शासन का कार्य राज्य में कानून व्यवस्था बनाये रखना जनता का कल्याण करना रहा है। कौटिल्य ने अपने ग्रन्थ ‘अर्थशास्त्र’ में प्रजा के हित को राजा का परम कर्तव्य बताते हुए लिखा है: ‘‘प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है और प्रजा की भलाई में ही राजा की भलाई; राजा को जो अच्छा लगे वह हितकर नहीं है वरन हितकर वह है जो प्रजा को अच्छा लगे।’’अर्थशास्त्र के इस उद्धरण से यह बात निकलकर आती है कि शासन के मूल में जनकल्याण की भावना होनी चाहिए। लोकतांत्रिक सरकारों में शासन की मूल भावना को नहीं बदला गया परन्तु उनकी शासन प्रणाली की प्रक्रिया में कुछ परिवर्तन अवश्य आये। संसदीय लोकतंत्र की स्थापना से एक ऐसी प्रणाली (नौकरशाह) का उदय हुआ जिसने सरकार एवं जनता (राजा एवं प्रजा) के बीच की दूरियों को बढ़ाने का कार्य किया। लालफीताशाही, भ्रष्टाचारी व लेटलतीफी जैसी बुराइयों से ग्रस्त इन अफसरों का जनता से कोई सरोकार नहीं रह गया जिससे तीव्र विकास एवं समान वितरण की प्रक्रिया में बाधा आयी। प्रशासन की प्रक्रिया को सरल बनाने, नौकरशाहों को अधिक जबावदेह बनाने तथा नागरिकों के अनुकूल प्रशासनिक व्यवस्था करने के लिए ई-गवर्नेन्स की अवधारणा पर अधिक बल दिया जाने लगा। भारतीय प्रशासन के बारे में बहुत पहले पॉल एपलबी ने कहा था - ‘‘भारतीय प्रशासन में ब्रेक तो अनेक हैं परन्तु एक्सीलेटर एक भी नहीं है।’’ पॉल एपलबी के कहने का तात्पर्य यह कि भारतीय प्रशासन में पदसोपान (स्तरों) की संख्या अधिक होने से कार्यों में अनावश्यक देरी होती है जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।अतः इस समस्या से निबटने के लिए ई-गवर्नेन्स की अवधारणा विकसित की गई है।
सूचना प्रौद्योगिकी ने कम्प्यूटर, इण्टरनेट तथा ई-मेल जैसे माध्यमों से नागरिक तथा प्रशासन को एक-दूसरे के आमने-सामने लाकर खड़ा कर दिया है। सरकार द्वारा जनता को दी जाने वाली सभी सेवाएं एवं लाभ ऑनलाइन ;व्दसपदमद्ध उपलब्ध कराये जा रहे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में ई-गवर्नेन्स न केवल कुशल होगा अपितु पारदर्शी भी बनता जा रहा है। ई-गवर्नेन्स प्रशासन को चुस्त-दुरस्त बनाने का एक सशक्त माध्यम है। यदि हम ई-गवर्नेन्स से पूर्व पारस्परिक प्रशासन की बात करें तो कार्यालयों एवं विभागों में आज भी वही पुराने नियम व प्रक्रियायें लागू हैं जो बहुत समय पहले अंग्रेजों ने अपने फायदे के लिये लागू किये थे इससे प्रशासन के मूल्यों एवं उद्देश्यों में बाधा आती है। प्रशासन अप्रभावशाली बनता जा रहा है। अफसरों की लालफीताशाही से आमजनों को दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं जिससे उनमें समय और पैसों का अपव्यय होता है। सरकारी सेवाएं, सरकारी लाभ, योजनाओं को आम लोगों तक पहुँचाने में, शिक्षा के प्रसार आदि में प्रशासन अप्रभावी सिद्ध हो रहा है। प्रशासन की भूमिका को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं और एक स्वच्छ, अधिक जबावदेह एवं विभिन्न चुनौतियों का मुकाबला करने वाली शासन प्रणाली की अवधारणा को अधिक बल मिला है। आर्थिक उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के युग में सूचना प्रौद्योगिकी के प्रयोग द्वारा ई-गवर्नेन्स की अवधारणा अधिक बलवती हुई है। ई-प्रशासन द्वारा पारदर्शिता बढ़ाने, नागरिकों को तीव्रगति से सूचना प्रदान करने, प्रशासनिक कार्यक्षमता में सुधार लाने, नागरिक सेवाओं जैसे यातायात, स्वास्थ्य, जल, सुरक्षा, नगर पालिका सेवाओं में सुधार किया जा रहा है। ई-गवर्नेन्स ने सरकार एवं जनता के बीच दूरी को कम किया है और इसके साथ ही सीधे संवाद कराने में सक्षम हो रही है। सरकार एवं जनता के बीच सीधा संवाद आम लोगों में समय और पैसा बचाता है। प्रशासन में शीघ्र निर्णय लेने की शक्ति होती है। जिससे चुस्त व सही आंकड़े व सूचनाएं सदैव उपलब्ध रहते हैं। नौकरशाहों के कार्य का बोझ कम होता है। नौकरशाहों के पद सोपान के स्तरों में कमी आयेगी जिससे कर्मचारियों एवं लागत में कटौती संभव हो सकेगी। लालफीताशाही एवं भ्रष्टाचार में कमी आयेगी और सरकारी राजस्व बढ़ेगा। ई-प्रशासन के महत्व को एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। गुजरात राज्य के सड़क परिवहन विभाग की कम्प्यूटरीकृत चैक पोस्ट परियोजना से गुजरात के सीमावर्ती 10 चुंगी वसूली केन्द्रों पर भ्रष्टाचार शून्य स्तर तक पहुँच गया और राजस्व 60 करोड़ से (1998-99) बढ़कर 250 करोड़ (2000-2001) रूपये हो गया जबकि परियोजना मात्र 18 करोड़ रूपये से लागू की गई थी।
सूचना प्रौद्योगिकी के महत्व को समझते हुए सरकार ने 2001 को सूचना प्रौद्योगिकी (आई. सी.) वर्ष घोषित किया और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की स्थापना की। इस मंत्रालय के तहत ई-गवर्नेन्स केन्द्र स्थापित किये गये जिसका प्रमुख उद्देश्य ई-प्रशासन का प्रयोग एवं साधनों का प्रदर्शन करना था। केन्द्रीय मंत्रालय द्वारा ई-प्रशासन प्रारम्भ करने के क्रम में सभी विभागों में लोकल एरिया नेटवर्क ;स्।छद्ध की स्थापना की गई है। अनेक मंत्रालयों में साफ्टवेयर की सहायता से कार्यालयों में कामकाज की प्रक्रिया को स्वचलन किया जा रहा है। प्रत्येक मंत्रालय एवं विभाग में नवीनतम सूचनाओं से युक्त बेवसाइट तैयार किये जा रहे हैं। जहाँ प्रशासन में सूचनाओं को गोपनीय रखकर नौकरशाह अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। वहीं ई-गवर्नेन्स में सूचनाओं को बांटकर सहभागिता को प्रोत्साहित कर प्रशासन को अधिक जबावदेह एवं पारदर्शी बनाया जा रहा है। उसके कामकाज की सूचनाएं ऑनलाइन पर तुरन्त मिल जाती हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से रेलवे प्रशासन ने देश भर में अनेक केन्द्रों पर कम्प्यूटरीकृत नेटवर्क का विकास किया है। देश भर में किसी भी स्टेशन से किसी भी जगह के लिए ट्रेनों में आरक्षण कराया जा सकता है। ऐसी स्वचालित प्रणाली के माध्यम से यात्री अपनी यात्रा की स्थिति, रेलवे समय सारिणी, ट्रेनों की स्थिति जान सकते हैं। रेलवे की बेवसाइट द्वारा भी उक्त जानकारी एवं पर्यटन सम्बन्धी सूचनाएं प्राप्त कर सकते हैं। आई. टी. क्षेत्र की मदद से बैंकिंग तंत्र लगातार सरल व कारगर होता जा रहा है। वर्तमान में मनी ट्रांसफर, जमा, निकासी सब कुछ ऑनलाइन हो रहा है।
ए. टी. एम. ;।ण्ज्ण्डण्द्ध मशीनों से करेन्सी की निकासी कुछ ही सेकेन्डों में हो जाती है। जिससे ग्राहकों को बैंकों का चक्कर नहीं लगाना पड़ता। इससे बैंकिंग प्रक्रिया व बैंकिंग सेवाओं में बहुत सुधार हुआ है। अगले कुछ ही समय में घर बैठे या किसी सूचना ढाबे से हम अपने बीमा, बिजली, पानी, गृहकर आदि की अदायगी देश के किसी भी भाग में किसी भी समय कर सकते हैं। सरकारी दफ्तरों में जमा किये गये आवेदनों की नवीनतम स्थिति की जानकारी इन्टरनेट से प्राप्त हो सकेगी। सरकारी दफ्तर खुलने की राह देखने तथा लाइन में लगने की समस्या कम हो जायेगी। ई-गवर्नेन्स के द्वारा नैस्काम के अध्यक्ष स्व. देवांग मेहता का मानना है कि प्रशासन में सूचना प्रौद्योगिकी से स्मार्ट गवर्नमेण्ट की संभावना बढ़ी है। अनेक परियोजनाओं में कुशल संचालन का कार्य कम्प्यूटर और इण्टरनेट के माध्यम से होगा नागरिक घर बैठे ही अपनी समस्यायें सम्बन्धित विभाग में या अधिकारियों को भेज सकेंगे। ई-जुडिशयरी के माध्यम से न्यायिक कार्यों में हो रहा विलम्ब दूर होगा। शिक्षा के लिए ई-एजूकेशन, थाने में प्राथमिकी दर्ज कराने हेतु म्.थ्ण्प्ण्त्ण् आदि सुविधाएं शुरू की जा सकती है। यह निश्चित है कि ई-गवर्नेन्स के जरिये रिश्वतखोरी खत्म हो जायेगी और इससे देश में गुणात्मक सुधार आयेगा।(3) ई-गवर्नेन्स एक तरह से प्रशासन को सुशासन की ओर ले जाना ठोस कदम है। जहाँ पारदर्शिता के कारण भ्रष्टाचार में कमी आयेगी, पेपर लेस होने के कारण पर्यावरण की रक्षा होगी जहाँ घर बैठकर हम अपनी समस्याओं और सरकार के बीच सामंजस्य बैठा सकते हैं।
केन्द्रीय सत्ता के साथ-साथ विभिन्न राज्यों द्वारा ई-गवर्नेन्स लागू करने के प्रयास किये जा रहे है। इस दिशा में केरल, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश जैसे राज्यों में सर्वाधिक कार्य हुआ है। आन्ध्र प्रदेश के सभी जिला मुख्यालय एक सूचना नेटवर्क द्वारा राजधानी से जोड़ दिये गये हैं जिसके माध्यम से मुख्यमंत्री, जिला स्तरीय अधिकारियों के आमने-सामने संवाद करते हैं तथा आधारभूत वास्तविकता का तुरन्त मूल्यांकन कर लिया जाता है। महाराष्ट्र सरकार ने भी सकल ई-प्रशासन के लिए इस कनेक्टिविटी को एक महत्वपूर्ण औजार के रूप में स्वीकार कर लिया है। राज्य के 3000 कार्यालयों को नेटवर्क द्वारा सीधे जोड़ दिया गया है। सरकारी सभी जिलों में वाइड एरिया नेटवर्क का विकास कर रही है। स्टाम्प एवं पंजीकरण विभाग का कम्प्यूटरीकरण तथा कर्मचारियों को व्यापक प्रशिक्षण देने का कार्य हो रहा है। भौगोलिक सूचना तंत्र तथा जिला स्तर पर संचार नेटवर्क की सहायता से आपदा-प्रबन्धन का एक कार्यक्रम चलाया जा रहा है। 1999 में तिरुवैरुर जिले के जिलाधिकारी ने जिले में ई-गवर्नेन्स की दिशा में उल्लेखनीय पहल की है। जिसके प्रयासों में तिरुवैरुर को भारत का पहला पूर्ण कार्यशील ई-जिला कहा जाता है। उ. प्र. में ई-गवर्नेन्स योजना के तहत पूरे प्रदेश में 17909 जनसेवा केन्द्र स्थापित होने हैं। कार्य तेजी से प्रगति पर है इसके तहत पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर राज्य के छह जिलों गोरखपुर, गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, सुल्तानपुर, सीतापुर और रायबरेली को ‘ई-डिस्ट्रिक्ट’ के रूप में विकसित किया जाना है। केन्द्र सरकार द्वारा वित्तपोषित इस योजना के तहत इन जिलों में जनता को ई-सुविधा के माध्यम से दस सेवाएं और 32 उपसेवाएं उपलब्ध करायी जानी हैं। इस पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद इस पूरे प्रदेश में लागू किया जाना है। इस योजना को 30 अक्टूबर तक पूरा किये जाने का लक्ष्य निर्धारित है पर अभी तक इसका पचास फीसदी काम भी पूरा नहीं हो सका है। बाकी काम कैसे पूरा होगा यह भविष्य के गर्भ में है।
वस्तुतः ई-प्रशासन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि अधिकारी एवं राजनेता कितने तत्पर हैं। नौकरशाही के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना सबसे कठिन कार्य है। केवल कम्प्यूटर खरीद लेने से या नेटवर्क कायम करने से ई-प्रशासन लागू नहीं हो जाता। अधिकांश कार्यालय ऐसे हैं जहाँ ये सुविधाएं काफी समय से हैं लेकिन वहाँ काम कागज पर ही किया जाता है। कम्प्यूटर का इस्तेमाल प्रिन्ट आउट निकलने तक सीमित रह गया है। कम्प्यूटर के जरिये समस्त सूचना ऑनलाइन हो, यानी हर वांछित टेबल, कार्यालय, शहर में सुलभ रहे तथा नवीनतम शोध के परिप्रेक्ष्य में अपडेट होती रहे। तभी उसे ई-प्रशासन कह सकते हैं। ई-प्रशासन की सफलता इस बात पर भी निर्भर है कि कैसी है, कितनी है, कितनी अपडेट है और इसका इस्तेमाल किस चीज में किया जा रहा है। इस सबके लिए कार्यालयों के पूरे रवैये में परिवर्तन की जरूरत है। उ. प्र. राज्य के संदर्भ में एक उदाहरण के द्वारा इसे बखूबी समझा जा सकता है। आज से छह माह बाद सभी सरकारी विभागों में ‘ई-प्रोक्योरमेंट’ प्रणाली के तहत काम शुरू हो जाना है। इस प्रणाली के तहत हर विभाग की सारी खरीद प्रक्रिया इण्टरनेट के माध्यम से ही होनी है। जो भी टेंडर आदि होंगे, वे ‘ई-टेंडरिंग’ के माध्यम से डाले जाएंगे। शुरूआती चरण में छह विभागों को ‘ई-प्रोक्योरमेंट’ के लिए चिन्हित किया गया था, जिसमें विश्व बैंक की योजनाओं के भी टेंडर शामिल किए गए थे पर विश्व बैंक की ओर से यह कहकर इंकार कर दिया गया कि पहले राज्य सरकार अपने सभी विभागों में तो इसे लागू कर ले। निर्धारित समय यानी गत 30 सितम्बर तक जिन बाकी पांच विभागों में इसे लागू हो जाना था, उसमें चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग में इसकी अभी तक शुरूआत ही नहीं हो सकी है। सिंचाई विभाग ने मात्र तीन टेंडर ही चिन्हित किये हैं। उद्योग विभाग में भी अभी तैयारी ही चल रही है। लोक निर्माण विभाग सेंट्रल के जोन में ही इसकी शुरूआत हो सकी है। अलबत्ता सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, जो इसकी ‘मॉनीटरिंग’ करता है, के अलावा मुद्रण एवं लेखन विभाग में अमलीजामा पहनाया जा सका है।
हमारे देश के समक्ष ई-प्रशासन के सफल क्रियान्वयन में बहुत बाधाएं दृष्टिगोचर हो रही हैं जिसके चलते ई-गवर्नेन्स कुछ वर्षों तक स्वप्न साबित होगा। कारण कि अभी भी हमारे देश में इण्टरनेट उपभोक्ताओं की संख्या सबसे कम है जहाँ अमेरिका में दो में से एक व्यक्ति इण्टरनेट का इस्तेमाल करता है वहीं भारत में एक अरब की आबादी में सिर्फ 15 लाख लोग नेट का इस्तेमाल करते हैं। जिस देश में चलने के लिए पक्की सड़के न हों, पीने के लिए स्वच्छ पानी नहीं, गाँवों में टेलीफोन नहीं तथा 34.51 प्रतिशत आबादी साक्षर नहीं, वहाँ इण्टरनेट बेवसाइट और इलेक्ट्रॉनिक प्रशासन की बात करना शगूफेबाजी होगी।
इन समस्याओं के बावजूद भी ई-प्रशासन के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है। हमारी ई-प्रशासन सम्बन्धी अर्धसंरचना विश्वस्तरीय नहीं है। टेलीफोनों की संख्या बहुत कम है। आर्थिक दृष्टि से आम आदमी समर्थ न होने के कारण कम्प्यूटरों की संख्या भी बहुत कम है। इसी कमी को दूर करने के लिए इण्टरनेट कियोस्क खोले जाने की आवश्यकता है। सूचना प्रौद्योगिकी के द्वारा हम असीमित लाभ तब ले सकते हैं जब मशीन पर कार्यशील व्यक्ति कार्य के प्रति दक्ष व समर्पित हों। इसके सफल क्रियान्वयन हेतु कर्मचारियों को उच्च स्तर का व्यवसायिक प्रशिक्षण अपरिहार्य है। जिस तरह से कर्मचारियों में अरूचि दिखाई देती है उस स्थिति में सफल ई-गवर्नेन्स की आशा करना व्यर्थ की बात होगी। जैसे कि रेलवे आरक्षण प्रणाली में सुधार हो रहा है परन्तु क्लर्कों द्वारा धीमी गति से कार्य करने से खिड़कियों पर लम्बी कतार देखी जा सकती है। कई विभागों में कम्प्यूटर शोभा की वस्तु बन गये हैं। जागरूकता की कमी के चलते एवं मनोवैज्ञानिक डर के कारण कम्प्यूटरों के प्रयोग में उत्साह एवं रूचि दिखाई नहीं पड़ रही है। आन्ध्र प्रदेश सरकार ने अनुशासन बनाये रखना तथा कर्मचारियों के अंदर-बाहर आने जाने के रिकार्ड रखने के लिए स्मार्ट कार्ड प्रणाली लागू की है जो ई-गवर्नेन्स के इतिहास में महत्वपूर्ण कदम है। कर्मचारियों के दृष्टिकोण एवं व्यवहार में परिवर्तन के लिये कार्यालयों की प्रक्रिया को सरल बनाना तथा मौजूदा प्रशासनिक तंत्र के कानूनी ढांचे में सुधार करना परमावश्यक है। सभी अधिनियमों, नियमों, परिपत्रों को इलेक्ट्रानिक के रूप में परिवर्तित होना चाहिए।
निष्कर्षतः हम यह कह सकते हैं कि ई-गवर्नेन्स, उत्तम शासन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। प्रशासन व जनसेवाओं में सुधार की असीम संभावनाएं है परन्तु कमी है तो दृढ़ इच्छा शक्ति की। इसके लिए हमें राजनीतिज्ञों, अधिकारियों एवं नागरिकों को प्राणपथ से संगठित प्रयास करना होगा तभी हम ई-गवर्नेन्स में गुड गवर्नेन्स का सपना साकार कर सकते हैं और मानव संसाधन का विकास एवं नागरिकों की समाजार्थिक स्थिति में सुधार ला सकते है ।
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परिचय:
युवा साहित्यकार के रूप में ख्याति प्राप्त डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव ने दलित विमर्श के क्षेत्र में ‘दलित विकासवाद ’ की अवधारणा को स्थापित कर उनके सामाजिक,आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया है। आपके दो सौ पचास से अधिक लेखों का प्रकाशन राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की स्तरीय पत्रिकाओं में हो चुका है। दलित विमर्श, स्त्री विमर्श, राष्ट्रभाषा हिन्दी में अनेक पुस्तकों की रचना कर चुके डॉ. वीरेन्द्र ने विश्व की ज्वलंत समस्या पर्यावरण को शोधपरक ढंग से प्रस्तुत किया है। राष्ट्रभाषा महासंघ मुम्बई, राजमहल चैक कवर्धा द्वारा स्व0 श्री हरि ठाकुर स्मृति पुरस्कार, बाबा साहब डॉ.0 भीमराव अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान 2006, साहित्य वारिधि मानदोपाधि एवं निराला सम्मान 2008 सहित अनेक सम्मानो से उन्हें अलंकृत किया जा चुका है। वर्तमान में आप भारतीय उच्च शिक्षा अध्ययन संस्थान राष्ट्रपति निवास, शिमला (हि0प्र0) में नई आर्थिक नीति एवं दलितों के समक्ष चुनौतियाँ (2008-11) विषय पर तीन वर्ष के लिए एसोसियेट हैं।
सम्पर्क -वरिष्ठ प्रवक्ता, हिन्दी विभाग
डी. वी. कालेज, उरई (जालौन) 285001 उ. प्र.
- डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव
सरकारी कामकाज को ‘हाइटेक’ करने तथा कामकाज की प्रक्रियाओं को सरल-सहज बनाने और आम जनता की दिक्कतें दूर करने के लिए ई-सुविधाएं या ई-गवर्नेन्स की परिकल्पना की गई है। भारत सरकार ने इसके लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं एवं लक्ष्य घोषित कर लिए हैं। व्यवहारिक रूप से यदि देखा जाये तो यह शासन प्रणाली इतिहास में मानव सभ्यता के उदय से ही विद्यमान रही है क्योंकि मुख्य रूप से शासन का कार्य राज्य में कानून व्यवस्था बनाये रखना जनता का कल्याण करना रहा है। कौटिल्य ने अपने ग्रन्थ ‘अर्थशास्त्र’ में प्रजा के हित को राजा का परम कर्तव्य बताते हुए लिखा है: ‘‘प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है और प्रजा की भलाई में ही राजा की भलाई; राजा को जो अच्छा लगे वह हितकर नहीं है वरन हितकर वह है जो प्रजा को अच्छा लगे।’’अर्थशास्त्र के इस उद्धरण से यह बात निकलकर आती है कि शासन के मूल में जनकल्याण की भावना होनी चाहिए। लोकतांत्रिक सरकारों में शासन की मूल भावना को नहीं बदला गया परन्तु उनकी शासन प्रणाली की प्रक्रिया में कुछ परिवर्तन अवश्य आये। संसदीय लोकतंत्र की स्थापना से एक ऐसी प्रणाली (नौकरशाह) का उदय हुआ जिसने सरकार एवं जनता (राजा एवं प्रजा) के बीच की दूरियों को बढ़ाने का कार्य किया। लालफीताशाही, भ्रष्टाचारी व लेटलतीफी जैसी बुराइयों से ग्रस्त इन अफसरों का जनता से कोई सरोकार नहीं रह गया जिससे तीव्र विकास एवं समान वितरण की प्रक्रिया में बाधा आयी। प्रशासन की प्रक्रिया को सरल बनाने, नौकरशाहों को अधिक जबावदेह बनाने तथा नागरिकों के अनुकूल प्रशासनिक व्यवस्था करने के लिए ई-गवर्नेन्स की अवधारणा पर अधिक बल दिया जाने लगा। भारतीय प्रशासन के बारे में बहुत पहले पॉल एपलबी ने कहा था - ‘‘भारतीय प्रशासन में ब्रेक तो अनेक हैं परन्तु एक्सीलेटर एक भी नहीं है।’’ पॉल एपलबी के कहने का तात्पर्य यह कि भारतीय प्रशासन में पदसोपान (स्तरों) की संख्या अधिक होने से कार्यों में अनावश्यक देरी होती है जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।अतः इस समस्या से निबटने के लिए ई-गवर्नेन्स की अवधारणा विकसित की गई है।
सूचना प्रौद्योगिकी ने कम्प्यूटर, इण्टरनेट तथा ई-मेल जैसे माध्यमों से नागरिक तथा प्रशासन को एक-दूसरे के आमने-सामने लाकर खड़ा कर दिया है। सरकार द्वारा जनता को दी जाने वाली सभी सेवाएं एवं लाभ ऑनलाइन ;व्दसपदमद्ध उपलब्ध कराये जा रहे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में ई-गवर्नेन्स न केवल कुशल होगा अपितु पारदर्शी भी बनता जा रहा है। ई-गवर्नेन्स प्रशासन को चुस्त-दुरस्त बनाने का एक सशक्त माध्यम है। यदि हम ई-गवर्नेन्स से पूर्व पारस्परिक प्रशासन की बात करें तो कार्यालयों एवं विभागों में आज भी वही पुराने नियम व प्रक्रियायें लागू हैं जो बहुत समय पहले अंग्रेजों ने अपने फायदे के लिये लागू किये थे इससे प्रशासन के मूल्यों एवं उद्देश्यों में बाधा आती है। प्रशासन अप्रभावशाली बनता जा रहा है। अफसरों की लालफीताशाही से आमजनों को दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं जिससे उनमें समय और पैसों का अपव्यय होता है। सरकारी सेवाएं, सरकारी लाभ, योजनाओं को आम लोगों तक पहुँचाने में, शिक्षा के प्रसार आदि में प्रशासन अप्रभावी सिद्ध हो रहा है। प्रशासन की भूमिका को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं और एक स्वच्छ, अधिक जबावदेह एवं विभिन्न चुनौतियों का मुकाबला करने वाली शासन प्रणाली की अवधारणा को अधिक बल मिला है। आर्थिक उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के युग में सूचना प्रौद्योगिकी के प्रयोग द्वारा ई-गवर्नेन्स की अवधारणा अधिक बलवती हुई है। ई-प्रशासन द्वारा पारदर्शिता बढ़ाने, नागरिकों को तीव्रगति से सूचना प्रदान करने, प्रशासनिक कार्यक्षमता में सुधार लाने, नागरिक सेवाओं जैसे यातायात, स्वास्थ्य, जल, सुरक्षा, नगर पालिका सेवाओं में सुधार किया जा रहा है। ई-गवर्नेन्स ने सरकार एवं जनता के बीच दूरी को कम किया है और इसके साथ ही सीधे संवाद कराने में सक्षम हो रही है। सरकार एवं जनता के बीच सीधा संवाद आम लोगों में समय और पैसा बचाता है। प्रशासन में शीघ्र निर्णय लेने की शक्ति होती है। जिससे चुस्त व सही आंकड़े व सूचनाएं सदैव उपलब्ध रहते हैं। नौकरशाहों के कार्य का बोझ कम होता है। नौकरशाहों के पद सोपान के स्तरों में कमी आयेगी जिससे कर्मचारियों एवं लागत में कटौती संभव हो सकेगी। लालफीताशाही एवं भ्रष्टाचार में कमी आयेगी और सरकारी राजस्व बढ़ेगा। ई-प्रशासन के महत्व को एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। गुजरात राज्य के सड़क परिवहन विभाग की कम्प्यूटरीकृत चैक पोस्ट परियोजना से गुजरात के सीमावर्ती 10 चुंगी वसूली केन्द्रों पर भ्रष्टाचार शून्य स्तर तक पहुँच गया और राजस्व 60 करोड़ से (1998-99) बढ़कर 250 करोड़ (2000-2001) रूपये हो गया जबकि परियोजना मात्र 18 करोड़ रूपये से लागू की गई थी।
सूचना प्रौद्योगिकी के महत्व को समझते हुए सरकार ने 2001 को सूचना प्रौद्योगिकी (आई. सी.) वर्ष घोषित किया और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की स्थापना की। इस मंत्रालय के तहत ई-गवर्नेन्स केन्द्र स्थापित किये गये जिसका प्रमुख उद्देश्य ई-प्रशासन का प्रयोग एवं साधनों का प्रदर्शन करना था। केन्द्रीय मंत्रालय द्वारा ई-प्रशासन प्रारम्भ करने के क्रम में सभी विभागों में लोकल एरिया नेटवर्क ;स्।छद्ध की स्थापना की गई है। अनेक मंत्रालयों में साफ्टवेयर की सहायता से कार्यालयों में कामकाज की प्रक्रिया को स्वचलन किया जा रहा है। प्रत्येक मंत्रालय एवं विभाग में नवीनतम सूचनाओं से युक्त बेवसाइट तैयार किये जा रहे हैं। जहाँ प्रशासन में सूचनाओं को गोपनीय रखकर नौकरशाह अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। वहीं ई-गवर्नेन्स में सूचनाओं को बांटकर सहभागिता को प्रोत्साहित कर प्रशासन को अधिक जबावदेह एवं पारदर्शी बनाया जा रहा है। उसके कामकाज की सूचनाएं ऑनलाइन पर तुरन्त मिल जाती हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से रेलवे प्रशासन ने देश भर में अनेक केन्द्रों पर कम्प्यूटरीकृत नेटवर्क का विकास किया है। देश भर में किसी भी स्टेशन से किसी भी जगह के लिए ट्रेनों में आरक्षण कराया जा सकता है। ऐसी स्वचालित प्रणाली के माध्यम से यात्री अपनी यात्रा की स्थिति, रेलवे समय सारिणी, ट्रेनों की स्थिति जान सकते हैं। रेलवे की बेवसाइट द्वारा भी उक्त जानकारी एवं पर्यटन सम्बन्धी सूचनाएं प्राप्त कर सकते हैं। आई. टी. क्षेत्र की मदद से बैंकिंग तंत्र लगातार सरल व कारगर होता जा रहा है। वर्तमान में मनी ट्रांसफर, जमा, निकासी सब कुछ ऑनलाइन हो रहा है।
ए. टी. एम. ;।ण्ज्ण्डण्द्ध मशीनों से करेन्सी की निकासी कुछ ही सेकेन्डों में हो जाती है। जिससे ग्राहकों को बैंकों का चक्कर नहीं लगाना पड़ता। इससे बैंकिंग प्रक्रिया व बैंकिंग सेवाओं में बहुत सुधार हुआ है। अगले कुछ ही समय में घर बैठे या किसी सूचना ढाबे से हम अपने बीमा, बिजली, पानी, गृहकर आदि की अदायगी देश के किसी भी भाग में किसी भी समय कर सकते हैं। सरकारी दफ्तरों में जमा किये गये आवेदनों की नवीनतम स्थिति की जानकारी इन्टरनेट से प्राप्त हो सकेगी। सरकारी दफ्तर खुलने की राह देखने तथा लाइन में लगने की समस्या कम हो जायेगी। ई-गवर्नेन्स के द्वारा नैस्काम के अध्यक्ष स्व. देवांग मेहता का मानना है कि प्रशासन में सूचना प्रौद्योगिकी से स्मार्ट गवर्नमेण्ट की संभावना बढ़ी है। अनेक परियोजनाओं में कुशल संचालन का कार्य कम्प्यूटर और इण्टरनेट के माध्यम से होगा नागरिक घर बैठे ही अपनी समस्यायें सम्बन्धित विभाग में या अधिकारियों को भेज सकेंगे। ई-जुडिशयरी के माध्यम से न्यायिक कार्यों में हो रहा विलम्ब दूर होगा। शिक्षा के लिए ई-एजूकेशन, थाने में प्राथमिकी दर्ज कराने हेतु म्.थ्ण्प्ण्त्ण् आदि सुविधाएं शुरू की जा सकती है। यह निश्चित है कि ई-गवर्नेन्स के जरिये रिश्वतखोरी खत्म हो जायेगी और इससे देश में गुणात्मक सुधार आयेगा।(3) ई-गवर्नेन्स एक तरह से प्रशासन को सुशासन की ओर ले जाना ठोस कदम है। जहाँ पारदर्शिता के कारण भ्रष्टाचार में कमी आयेगी, पेपर लेस होने के कारण पर्यावरण की रक्षा होगी जहाँ घर बैठकर हम अपनी समस्याओं और सरकार के बीच सामंजस्य बैठा सकते हैं।
केन्द्रीय सत्ता के साथ-साथ विभिन्न राज्यों द्वारा ई-गवर्नेन्स लागू करने के प्रयास किये जा रहे है। इस दिशा में केरल, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश जैसे राज्यों में सर्वाधिक कार्य हुआ है। आन्ध्र प्रदेश के सभी जिला मुख्यालय एक सूचना नेटवर्क द्वारा राजधानी से जोड़ दिये गये हैं जिसके माध्यम से मुख्यमंत्री, जिला स्तरीय अधिकारियों के आमने-सामने संवाद करते हैं तथा आधारभूत वास्तविकता का तुरन्त मूल्यांकन कर लिया जाता है। महाराष्ट्र सरकार ने भी सकल ई-प्रशासन के लिए इस कनेक्टिविटी को एक महत्वपूर्ण औजार के रूप में स्वीकार कर लिया है। राज्य के 3000 कार्यालयों को नेटवर्क द्वारा सीधे जोड़ दिया गया है। सरकारी सभी जिलों में वाइड एरिया नेटवर्क का विकास कर रही है। स्टाम्प एवं पंजीकरण विभाग का कम्प्यूटरीकरण तथा कर्मचारियों को व्यापक प्रशिक्षण देने का कार्य हो रहा है। भौगोलिक सूचना तंत्र तथा जिला स्तर पर संचार नेटवर्क की सहायता से आपदा-प्रबन्धन का एक कार्यक्रम चलाया जा रहा है। 1999 में तिरुवैरुर जिले के जिलाधिकारी ने जिले में ई-गवर्नेन्स की दिशा में उल्लेखनीय पहल की है। जिसके प्रयासों में तिरुवैरुर को भारत का पहला पूर्ण कार्यशील ई-जिला कहा जाता है। उ. प्र. में ई-गवर्नेन्स योजना के तहत पूरे प्रदेश में 17909 जनसेवा केन्द्र स्थापित होने हैं। कार्य तेजी से प्रगति पर है इसके तहत पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर राज्य के छह जिलों गोरखपुर, गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, सुल्तानपुर, सीतापुर और रायबरेली को ‘ई-डिस्ट्रिक्ट’ के रूप में विकसित किया जाना है। केन्द्र सरकार द्वारा वित्तपोषित इस योजना के तहत इन जिलों में जनता को ई-सुविधा के माध्यम से दस सेवाएं और 32 उपसेवाएं उपलब्ध करायी जानी हैं। इस पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद इस पूरे प्रदेश में लागू किया जाना है। इस योजना को 30 अक्टूबर तक पूरा किये जाने का लक्ष्य निर्धारित है पर अभी तक इसका पचास फीसदी काम भी पूरा नहीं हो सका है। बाकी काम कैसे पूरा होगा यह भविष्य के गर्भ में है।
वस्तुतः ई-प्रशासन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि अधिकारी एवं राजनेता कितने तत्पर हैं। नौकरशाही के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना सबसे कठिन कार्य है। केवल कम्प्यूटर खरीद लेने से या नेटवर्क कायम करने से ई-प्रशासन लागू नहीं हो जाता। अधिकांश कार्यालय ऐसे हैं जहाँ ये सुविधाएं काफी समय से हैं लेकिन वहाँ काम कागज पर ही किया जाता है। कम्प्यूटर का इस्तेमाल प्रिन्ट आउट निकलने तक सीमित रह गया है। कम्प्यूटर के जरिये समस्त सूचना ऑनलाइन हो, यानी हर वांछित टेबल, कार्यालय, शहर में सुलभ रहे तथा नवीनतम शोध के परिप्रेक्ष्य में अपडेट होती रहे। तभी उसे ई-प्रशासन कह सकते हैं। ई-प्रशासन की सफलता इस बात पर भी निर्भर है कि कैसी है, कितनी है, कितनी अपडेट है और इसका इस्तेमाल किस चीज में किया जा रहा है। इस सबके लिए कार्यालयों के पूरे रवैये में परिवर्तन की जरूरत है। उ. प्र. राज्य के संदर्भ में एक उदाहरण के द्वारा इसे बखूबी समझा जा सकता है। आज से छह माह बाद सभी सरकारी विभागों में ‘ई-प्रोक्योरमेंट’ प्रणाली के तहत काम शुरू हो जाना है। इस प्रणाली के तहत हर विभाग की सारी खरीद प्रक्रिया इण्टरनेट के माध्यम से ही होनी है। जो भी टेंडर आदि होंगे, वे ‘ई-टेंडरिंग’ के माध्यम से डाले जाएंगे। शुरूआती चरण में छह विभागों को ‘ई-प्रोक्योरमेंट’ के लिए चिन्हित किया गया था, जिसमें विश्व बैंक की योजनाओं के भी टेंडर शामिल किए गए थे पर विश्व बैंक की ओर से यह कहकर इंकार कर दिया गया कि पहले राज्य सरकार अपने सभी विभागों में तो इसे लागू कर ले। निर्धारित समय यानी गत 30 सितम्बर तक जिन बाकी पांच विभागों में इसे लागू हो जाना था, उसमें चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग में इसकी अभी तक शुरूआत ही नहीं हो सकी है। सिंचाई विभाग ने मात्र तीन टेंडर ही चिन्हित किये हैं। उद्योग विभाग में भी अभी तैयारी ही चल रही है। लोक निर्माण विभाग सेंट्रल के जोन में ही इसकी शुरूआत हो सकी है। अलबत्ता सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, जो इसकी ‘मॉनीटरिंग’ करता है, के अलावा मुद्रण एवं लेखन विभाग में अमलीजामा पहनाया जा सका है।
हमारे देश के समक्ष ई-प्रशासन के सफल क्रियान्वयन में बहुत बाधाएं दृष्टिगोचर हो रही हैं जिसके चलते ई-गवर्नेन्स कुछ वर्षों तक स्वप्न साबित होगा। कारण कि अभी भी हमारे देश में इण्टरनेट उपभोक्ताओं की संख्या सबसे कम है जहाँ अमेरिका में दो में से एक व्यक्ति इण्टरनेट का इस्तेमाल करता है वहीं भारत में एक अरब की आबादी में सिर्फ 15 लाख लोग नेट का इस्तेमाल करते हैं। जिस देश में चलने के लिए पक्की सड़के न हों, पीने के लिए स्वच्छ पानी नहीं, गाँवों में टेलीफोन नहीं तथा 34.51 प्रतिशत आबादी साक्षर नहीं, वहाँ इण्टरनेट बेवसाइट और इलेक्ट्रॉनिक प्रशासन की बात करना शगूफेबाजी होगी।
इन समस्याओं के बावजूद भी ई-प्रशासन के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है। हमारी ई-प्रशासन सम्बन्धी अर्धसंरचना विश्वस्तरीय नहीं है। टेलीफोनों की संख्या बहुत कम है। आर्थिक दृष्टि से आम आदमी समर्थ न होने के कारण कम्प्यूटरों की संख्या भी बहुत कम है। इसी कमी को दूर करने के लिए इण्टरनेट कियोस्क खोले जाने की आवश्यकता है। सूचना प्रौद्योगिकी के द्वारा हम असीमित लाभ तब ले सकते हैं जब मशीन पर कार्यशील व्यक्ति कार्य के प्रति दक्ष व समर्पित हों। इसके सफल क्रियान्वयन हेतु कर्मचारियों को उच्च स्तर का व्यवसायिक प्रशिक्षण अपरिहार्य है। जिस तरह से कर्मचारियों में अरूचि दिखाई देती है उस स्थिति में सफल ई-गवर्नेन्स की आशा करना व्यर्थ की बात होगी। जैसे कि रेलवे आरक्षण प्रणाली में सुधार हो रहा है परन्तु क्लर्कों द्वारा धीमी गति से कार्य करने से खिड़कियों पर लम्बी कतार देखी जा सकती है। कई विभागों में कम्प्यूटर शोभा की वस्तु बन गये हैं। जागरूकता की कमी के चलते एवं मनोवैज्ञानिक डर के कारण कम्प्यूटरों के प्रयोग में उत्साह एवं रूचि दिखाई नहीं पड़ रही है। आन्ध्र प्रदेश सरकार ने अनुशासन बनाये रखना तथा कर्मचारियों के अंदर-बाहर आने जाने के रिकार्ड रखने के लिए स्मार्ट कार्ड प्रणाली लागू की है जो ई-गवर्नेन्स के इतिहास में महत्वपूर्ण कदम है। कर्मचारियों के दृष्टिकोण एवं व्यवहार में परिवर्तन के लिये कार्यालयों की प्रक्रिया को सरल बनाना तथा मौजूदा प्रशासनिक तंत्र के कानूनी ढांचे में सुधार करना परमावश्यक है। सभी अधिनियमों, नियमों, परिपत्रों को इलेक्ट्रानिक के रूप में परिवर्तित होना चाहिए।
निष्कर्षतः हम यह कह सकते हैं कि ई-गवर्नेन्स, उत्तम शासन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। प्रशासन व जनसेवाओं में सुधार की असीम संभावनाएं है परन्तु कमी है तो दृढ़ इच्छा शक्ति की। इसके लिए हमें राजनीतिज्ञों, अधिकारियों एवं नागरिकों को प्राणपथ से संगठित प्रयास करना होगा तभी हम ई-गवर्नेन्स में गुड गवर्नेन्स का सपना साकार कर सकते हैं और मानव संसाधन का विकास एवं नागरिकों की समाजार्थिक स्थिति में सुधार ला सकते है ।
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परिचय:
युवा साहित्यकार के रूप में ख्याति प्राप्त डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव ने दलित विमर्श के क्षेत्र में ‘दलित विकासवाद ’ की अवधारणा को स्थापित कर उनके सामाजिक,आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया है। आपके दो सौ पचास से अधिक लेखों का प्रकाशन राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की स्तरीय पत्रिकाओं में हो चुका है। दलित विमर्श, स्त्री विमर्श, राष्ट्रभाषा हिन्दी में अनेक पुस्तकों की रचना कर चुके डॉ. वीरेन्द्र ने विश्व की ज्वलंत समस्या पर्यावरण को शोधपरक ढंग से प्रस्तुत किया है। राष्ट्रभाषा महासंघ मुम्बई, राजमहल चैक कवर्धा द्वारा स्व0 श्री हरि ठाकुर स्मृति पुरस्कार, बाबा साहब डॉ.0 भीमराव अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान 2006, साहित्य वारिधि मानदोपाधि एवं निराला सम्मान 2008 सहित अनेक सम्मानो से उन्हें अलंकृत किया जा चुका है। वर्तमान में आप भारतीय उच्च शिक्षा अध्ययन संस्थान राष्ट्रपति निवास, शिमला (हि0प्र0) में नई आर्थिक नीति एवं दलितों के समक्ष चुनौतियाँ (2008-11) विषय पर तीन वर्ष के लिए एसोसियेट हैं।
सम्पर्क -वरिष्ठ प्रवक्ता, हिन्दी विभाग
डी. वी. कालेज, उरई (जालौन) 285001 उ. प्र.
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