मंगल करने वाली मां, कहलाती है मंगला माँ !! एक निवेदन करुँ मैं तुमसे खड़ा हो कर दरबार में . मुझ पर थोड़ी करना कृपा खड़ा मैं भी क...
मंगल करने वाली मां,
कहलाती है मंगला माँ !!
एक निवेदन करुँ मैं तुमसे
खड़ा हो कर दरबार में .
मुझ पर थोड़ी करना कृपा
खड़ा मैं भी कतार में .
मैं देश रहूँ , परदेश रहूँ ,
पर रहे तुम्हारा साथ माँ .
अनजान डगर पे बिन तेरे
रह जाऊंगा अनाथ माँ .
सबको सफल करने वाली
कहलाती सुसफला माँ !!
---- * ----
तू मंगला माँ कल्याणी
जगतमातु महारानी .
हर्ष का एक द्वीप तो दो
चहुदिशी पानी पानी .
---- * ----
माँ पर मुझे भरोसा है
और स्वयं पर है विश्वास .
एक दिन मुठ्ठी में होगा
सफलता का ये आकाश
---- * ----
बस इतनी कृपा करना माँ .
अपने चरणों में रखना माँ .
मेरे हृदय, मेरी आत्मा,
रोम-रोम में बसना माँ .
---- * ----
1
जीवन है एक सतत धारा
चलना मानव की नियति है .
मोह के रेशमी शिविरों में
मत उलझाओ हृदय को .
माया के मादक गंध से
मत बहकाओ हृदय को .
पग-पग पर दस सहयात्री
मिलेंगे तुमको राहों में .
कितनों का चेहरा कैद करोगे
छोटी-सी निगाहों में ?
अतीत बिसार भविष्य देखना
वर्तमान की वही प्रगति है .
पल-पल जो निचोड़ के जीता
जीवन का वही रस लेता है .
स्मृति अरण्य वासी को
जीवन सर्प बन डस लेता है .
कहो गर्व से तुम मानव हो
इस जगत की तुम रौनक हो .
फिर अंधेरा अंतरतम क्यों
तुम तो दिवा के ऐनक हो .
तम को मन में बसने देना
स्वयं उर दीपक की क्षति है .
---- * ----
2
कदम-कदम पर है संग्राम
कब मेरे दिन फिरेंगे राम ?
किसको अपनी व्यथा सुनाऊँ ?
दर्द में भीगी कथा सुनाऊँ
कौन मेरा है, किसका मैं हूँ ?
हाथ-हाथ का सिक्का मैं हूँ .
मैं सागर एक फेन भरा हूँ
कल्प से ही बेचैन बड़ा हूँ .
ना जाने कब मिलेगा मेरी
उन्मत लहरों को विराम ?
कब मेरे दिन फिरेंगे राम ?
गम के गलियारे में मेरा
दर्दों का शीशमहल है .
छत पे जैसे छुरी चली हो
दीवारें बेचैन विकल हैं .
घाव के मुख के दरवाजे पे
टीस-अतिथि का दस्तक है .
झाड़ झंझाड़ आजू-बाजू
लहूलुहान मस्तक है .
काशी-काबा भाग्य में कहाँ ?
मेरा तो है यही दुःखधाम .
कब मेरे दिन फिरेंगे राम ?
कर्क है या मकर है ये ?
सीधी किरणों से दहकी
गुजरी हुई रेखाएँ बाजू
कोई नहीं मुझसे मिल पाया
मेरा दिल सबके लिये तड़पे
कोई नहीं मुझसा दिल पाया
त्रिभुज, चतुर्भुज या वृत्त
क्या है इस अस्तित्व का नाम ?
कब मेरे दिन फिरेंगे राम ?
3 ---- * ----
दिल ने खाए इतने धोखे,
अब कोई धोखा नया नहीं .
जख्मों का इलाज है लेकिन
टूटे दिल की दवा नहीं .
चाँदनी की गोद में था मैं
चाँद को लेकिन छुआ नहीं .
समंदर हैं मेरी आँखें
बरसातों का कुआँ नहीं .
जलता है तो सूरज भी
लेकिन उठता धुआँ नहीं .
क्या कहूँ मैं थानेदार से ?
क्या-क्या लूटा पता नहीं .
इश्क किया मैं खता है मेरी
जफाएँ तेरी खता नहीं .
---- * ----
4
गले में अपनी प्यास दबाए
जाम माँगते फिरते हैं .
ये दर ना तो अगला दर
काम माँगते फिरते हैं .
बडी अजीब है ये दुनिया
देना कुछ भी ना चाहे .
कल तक जो मेरे अपने थे,
आज बने हैं पराये .
दरवाजे पे दस्तक दी,
लेकिन खुली खिड़कियाँ .
मैंने कुछ कहा भी नहीं
उन्होंने दे दी झिड़कियाँ .
और नहीं कुछ अपने चीज का
दाम माँगते फिरते हैं .
गले में अपनी प्यास दबाए
जाम माँगते फिरते हैं .
आग ठंडी पड जाती है
लू के गर्म नजारों से .
सूरज चंदा की बात क्या
चुंधियाई आँखें तारों से .
बड़ी उम्मीद लिये सुबह से
शाम माँगते फिरते हैं .
गले में अपनी प्यास दबाए
जाम माँगते फिरते हैं .
---- * ----
5
साँस आती रही, साँस जाती रही .
धड़कनें मेरी शोर मचाती रही .
आओगे तुम, आओगे तुम
हर आहट ये उम्मीद बंधाती रही .
मैं रो रहा हूँ किस बेवफा के लिये ?
सोच-सोच मुझको हंसी आती रही .
मेरे ढलते आँसू बेनकाब हो गए
शमा शब भर चादर फैलाती रही .
मैं दबे होंठ से कुछ गाता रहा .
खामोशी उसे दोहराती रही .
किरणें आई वहाँ छुप गई रात
शबनम में जो नंगी नहाती रही .
---- * ----
6
जाने कैसे-कैसे लोग इस दुनिया में बसते हैं ?
दूजे की बेबसी पर दिल खोल कर हंसते हैं .
जिसको सिखाया हमने धनुष पकड़ने का हुनर,
चुप-चुप निशाना हम ही पे अब वो कसते हैं .
दिल का कोई ढूँढे इस शहर-ए-बेदिली में .
पैसों के प्यार यहाँ है दौलत के सब रिश्ते हैं .
फन से डसनेवालों से इतना डर नहीं सागर
जितना उन नागों से हैं जो पूँछ से डंसते हैं .
मरहम की साधी पट्टी रंगीली-सी हो जाती
जख्म-ए-जिंदगी हरदम सुर्खी ले कर रिसते हैं .
---- * ----
7
सागर का पानी क्या बोले
लहरों की जुबान समझ .
होंठ तो सबकुछ कह नहीं पाता
नजरों की जुबान समझ .
क्या बोल नहीं रही कुछ पायल
पैरों की जुबान समझ .
उसकी बेबसी नचा रही है
मुजरों की जुबान समझ .
मंजिल का पता इन में है .
ठोकरों की जुबान समझ .
पहाड़ में भी एक दिल है .
पत्थरों की जुबान समझ .
जीवन के शतरंजी दाँव में
मोहरों की जुबान समझ .
छोड गाँव में कूकना कोयल
शहरों की जुबान समझ .
---- * ----
8
जिसने हार न मानी है
धन्य वही जवानी है .
इतिहास के पन्नों पर
रहती है छाप अमर
जो न पीठ दिखाकर भागे,
झेले वार सीने पर.
हल्दी घाटी के रण में
जिसका बिस्तर सजता है .
रहते हैं बस मृत्यु अमर
जीवन तो बहता पानी है
जिसने हार न मानी है,
धन्य वही जवानी है .
---- * ----
9
काश !
मेरी तुमसे नजदीकियाँ बढती .
काश !
हम दोनों की बेबसियाँ बढती .
काश !
थोड़ी तेरी शैतानियाँ बढती .
काश !
थोड़ी मेरी नादानियाँ बढती .
काश !
ढलते हुए दिनों की बेचैनियाँ बढती .
काश !
पशेमाँ शब की परेशानियाँ बढती .
काश !
दिलों की पहल से पहेलियाँ बढती .
काश !
संगम पे दिलों की किश्तियाँ बढती .
काश !
शांत लहरों की मस्तियाँ बढती .
लेकिन सारे ’काश’ काश रह गये .
तुमसे दूर जा कर तेरे पास रह गये .
---- * ----
10
इतनी हलचल
इतनी सिलवटें
मेरी रुह की चादर पे
क्यों ?
मेरा रोम-रोम
सिहर रहा है
आँखों के रंग-ए-गुलाबी में
तब्दिलियाँ आ रही है
क्यों ?
मेरे मन की खिड़कियाँ
फटाक-फटाक
खुल-बंद हो रही है .
क्यों ?
जवानी की जलती
हुई ज्योति
ज्वाला बनने पर तुली है
क्यों ?
मेरे अतीत के मखमल पे
कोई धप-धप काँप कर,
मेरी ओर बढ़ा आ रहा है
क्यों ?
. . . . . कहीं दिल के
किसी निर्जन टापू पर
अतीत के ताजमहल में दबा
कोई सपना
करवट तो नहीं बदल रहा ?
---- * ----
11
मेरे कमरे में सूरज उतरा नहीं .
रोशनी सुरागों में एक कतरा नहीं .
दरीजे खोलूँ, या दर बंद करुँ ?
छुप रहा कमरे का अंधेरा नहीं .
अंधेरे से लड़ने जल रही बाती
दीपक में तेल का एक कतरा नहीं .
अंधेरे की बेड़ियाँ कसती गयीं
उजाला दो गज तक भी बिखरा नहीं .
झील पूछती है क्या माजरा
चाँद मेरे दर्पण में आज संवरा नहीं .
कुत्ते ने झुक कर उठाया मुर्गे को
सुबह तक वो क्यों जागा नहीं .
बार-बार दर अपना खोल रहा हूँ मैं
ये जान कर भी कि दस्तक कोई दे रहा नहीं .
तकिये की गर्मी कह रही है कि
शब भर वो सीने से हटा नहीं .
12
साक्षी मान कर तुम्हें विधाता
एक प्रण आज लेता हूँ .
टिका रहूँगा कर्तव्यों पर
डिगूंगा नहीं अपने पथ से .
अपने यौवन के पहियों को
लगा दूँगा प्राण लक्ष्य के रथ से .
सबकी तरह जग में आया
था मैं भी अकेला ही
आँख खोली तो पाया मैंने
रिश्तों का एक मेला भी .
पला, बढ़ा मैं इसी चमन में
आज इसका चहेता हूँ .
विस्मृत कैसे करुँ वो आँचल
जिस में कभी मैं खेला था ?
कैसे भूल जाऊँ जिनकी
उँगलियाँ पकड़ कर चला था .
ऋण है मुझ पर उस आँगन का
जिस पर दौड़ा करता था .
उन बागों का कर्जदार हूँ
तितली जहाँ पकड़ा करता था .
पतादोप तक संकल्पित मैं
किस मंच का अभिनेता हूँ ?
13
COMMENTS