कुछ दिनों से लोग मुझे कुछ सिरफिरा समझने लगे हैं | सबको शिकायत है कि शहर में एक नामी सन्त के प्रवचन का आयोजन चल रहा है और मैं अपने घर पर ह...
कुछ दिनों से लोग मुझे कुछ सिरफिरा समझने लगे हैं | सबको शिकायत है कि शहर में एक नामी सन्त के प्रवचन का आयोजन चल रहा है और मैं अपने घर पर ही पड़ा रहता हूं| अधर्मी व्यक्तियों के लिए जितने भी विशेषण हो सकते है उन सभी से वे मुझे सम्मानित कर चुके है| एक दिन मैंने भी तय कर ही लिया कि जब पूरे शहर के कुछ पुरूष एवं बहुत सी महिलाएं वहां जाते हैं तो मैं भी अपनी जन्मपत्री में ठोकर मार ही दूं|
जितना बड़ा, पण्डाल उस प्रवचन के आयोजन के लिए लगाया गया था उसके अन्दर तो सैकड़ों गरीब एवं मध्यमवर्गी जोड़ों के सामूहिक विवाह का आयोजन सम्पन्न हो सकता था | सन्त जी जन समुदाय को जो बातें बता रहे थे सभी लोग उन बातों को अनेक बार सुन चुके थे तथा सब कुछ जानते हुए भी इस तरह सुनने में व्यस्त थे जैसे पहली बार ही सुन रहे हो |
उन्होंने एक बहुत ही महत्वपूर्ण रहस्योद्घाटन किया कि ये जीवन दो दिन का है | मैंने अपने पास में बैठे एक सज्जन से पूछा ‘भार्इ साहब क्या जीवन वास्तव में दो दिन का ही है”|
वे वोले ‘ हां जब ये कह रहे है तो दो दिन का ही होगा’ |
मैनें पूछा ‘इनका ये कार्यक्रम कितने दिन और चलेगा’|
वे बोले ‘सात दिन’ |
पर जीवन तो दो ही दिन का है बाकी पांच दिन का क्या होगा |
वे बोले ‘दो दिन का मतलब दो दिन नहीं होता ज्यादा होता है’|
मैंने पूछा ‘कितना होता है |
वे बोले ‘इसका किसी को पता नहीं वो तो कहने के लिए दो दिन का होता है मानने के लिए नहीं’|
‘जब इनकी बातें सिर्फ कहने के लिए ही हैं मानने के लिए नहीं तो फिर सुनने से क्या लाभ |
‘हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश तो जिन्दगी में लगा ही रहता है | यहां तो सब सुनने के लिए ही आते हैं यदि उन बातों पर अमल करेंगे फिर तो सभी सन्त हो जाएंगे|
मुझे उनकी बातें सन्त की बातों से अधिक प्रभावशाली लग रहीं थीं|
मैंनें उनका पीछा नहीं छोड़ा ‘ पर एक और दूसरे सन्त हैं वो तो कहते हैं कि दो दिन का तो जग में मेला होता है|
वो गलत कह रहे है |कहने वाले तो जीवन और मेले को चार दिनों का भी कह सकते हैं और दस दिन का भी |खुद हमारे शहर में मेला पन्द्रह दिन का होता है| कर्इ लोग तो चार दिन की चांदनी भी बताते है पर होती कहाँ है| अभी इस सन्त का प्रवचन चल रहा है तो जीवन दो दिन का ही मानना पड़ेगा दूसरे सन्त का चलेगा तो वे जितने दिन का कहेंगे उतने दिन का मान लेंगे |
‘दूसरे सन्त दो दिन का मेला क्यों बताते हैं’ मैंने फिर पूछा
‘ये दूसरे सन्त जो दो दिन का मेला बता रहे हैं क्या इन सन्त से बडे हैं |
अब सन्त तो सन्त ही होता है उसमें क्या बड़ा और क्या छोटा |
वाह ऐसे कैसे बडा छोटा नहीं होता है | क्या उनके लम्बी लम्बी दाढ़ी है और क्या वे सिर्फ धोती ही पहनते हैं और नंगे बदन रहते हैं क्या बहुत सी साध्वियां उनके साथ साथ चलती है क्या वे हवार्इ जहाज से यात्रा करते हैं क्या उनके बडे बडे, आश्रम हैं |यदि ये सब विशेषताएं उनमें हैं तभी वे बडे सन्त कहलाएंगे|
‘नहीं वे दूसरे सन्त तो पेन्ट शर्ट ही पहनते है लेकिन है बहुत ज्ञानी|
काहे के ज्ञानी | सन्त होने के लिए तो गैटअप भी तो सन्त जैसा होना चाहिए नहीं तो कौन उनको सन्त मानेगा खाली ज्ञान या विद्वान होने से ही कोर्इ सन्त थोडे ही हो जाएगा|
‘लेकिन हम गलत बात क्यों मानें कि जीवन दो दिन का है |
नहीं मानोगे तो उनके भक्त तुम्हारे घर में तोड़ फोड़ कर देंगे और यदि उनको ज्यादा गुस्सा आ गया तो तुम्हारी हत्या भी कर सकते है |सन्तों की बातों का अनुसरण उनके अनुयायियों के लिए करना आवश्यक नहीं है फिर तुम्हें पता चल जाएगा कि तुम्हारा जीवन भी दो ही दिनों का था |उनके सामने बडे बडे, सूरमा भी कुछ नहीं कर सकते|| मैं ही कौन सा उनकी बात मान रहा हूं | मेरा तो जीवन हर माह की पहली तारीख को शुरू होता है तथा छह सात दिन चलता है उसके वाद तो मरण ही मरण है | कर्इ लोगों का पन्द्रह दिन का हो जाता है | राज नेताओं का चुनाव नतीजे आने के वाद शुरू होता है तथा उनका जीवन जीवन भर या कर्इ कर्इ पीढियों तक चलता है |
मैंने एक दूसरे सज्जन से जो उन सन्त का प्रवचन कम और इधर उधर अधिक देख रहे थे से भी पूछ ही लिया कि क्या उनका जीवन भी दो दिन का ही है|
वे बोले ‘ मेरा जीवन तो इन जैसे सन्त महात्माओं के प्रवचन के इन कार्यक्रमों के चलते रहने से ही चलता है इस आयोजन में टेन्ट तथा दरी गद्दों का ठेका मेरे ही पास है अब चाहे वो दो दिन का बताएं या दस दिन का | जीवन जितने अधिक दिनों का बताएंगे मेरे लिए तो उतना ही अच्छा है |तुम्हें यदि दो दिन का कम लगता है तो तुम चार दिन का मान लो | तुमने क्या सुना नहीं कि ‘ उम्रे दराज मांग के लाए थे चार दिन दो आरजू, में कट गए दो इन्तजार में | इससे तो यही जाहिर होता है कि जीवन दो दिन का हो न हो चार दिन का तो होता ही होगा|
‘परन्तु कुछ मापदण्ड तो हो कि जीवन दो या चार दिन का किस हिसाब से है’|
वे बोले : मान लीजिए मनुष्य की आयु 100 वर्ष है तो फारमूला यह है कि मनुष्य की आयु को दो से या चार से भाग दीजिए फिर जो भागफल आए उतने वर्ष को एक दिन के बराबर मान लेना चाहिए | वैसे यहां प्रवचन सुनने कुछ ऐसे भी है लोग आए हुए है जिनकेा अपना जीवन पारिवारिक कलह जमीन जायदाद के झगडों शारीरिक कष्ट सन्तान के भविष्य की चिन्ता बेटे बहुओं के दुराचरण तथा अनेक कठिनाइयों से एक दिन का भी भारी लग रहा है |
सन्त के प्रवचन में जीवन को दो दिन का सुन कर कम से कम वे कुछ समय के लिए संभवत: यह सोचकर खुश हो लेते होंगे कि चलो अब वो दो दिन करीब ही होगें जब उनके कष्टों का अन्त होने वाला होगा |मैं यह सोच कर घर वापस आ गया कि जब जीवन के वारे में ही अलग अलग मत हैं तो अपना जीवन किसी अच्छे काम में ही क्यों न लगा क्यों कि मेरे हिसाब से जीवन का कोर्इ भरोसा नहीं|
अच्छा लगा , शरद जी :)
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