साहित्यकार आस्था विश्वास,सामाजिक न्याय एवं दर्शन को सदियों से हस्तानान्तरित करते एवं समय के संवाद को शब्द का अमृतपान कराकर मानव कल्याण हेत...
साहित्यकार आस्था विश्वास,सामाजिक न्याय एवं दर्शन को सदियों से हस्तानान्तरित करते एवं समय के संवाद को शब्द का अमृतपान कराकर मानव कल्याण हेतु लिपिबध्द करते आ रहे है । साहित्यकार कभी भी अपनी भूमिका से नहीं विचलित हुआ है । वर्तमान पीढ़ी के साहित्यकार समाज एवं राष्ट्र को सच्चे एवं अच्छे विचारों से सुदृढ कर रहे हैं। वर्तमान समय में साहित्यकारों की भूमिका और विस्तृत हुई है । साहित्यकार राष्ट्र एवं समाजोपयोगी चिन्तन के मुद्दे अपनी रचनाओं के माध्यम से सहज ही उपलब्ध करवाते जो समाज सुदृढ में मील के पत्थर साबित होते हैं ।
साहित्यकार अपनी भूमिका पर तटस्थ है । आजादी के दिनों में साहित्यकारों ने जिम्मेदारी के साथ अपनी भूमिका निभायी । साहित्यकारों की कलमें जातीय-धार्मिक उन्माद,श्रेष्ठता-निम्नता, गरीबी -अमीरी से उपजी सामाजिक पीड़ा के आक्रोश को कम करने के मुद्दे पर खूब चली है और आज भी थमी नहीं है । संकट के दौर में साहित्यकार समय की नब्ज को पहचान कर लेखन कर रहे हैं । साहित्यकार सर्वमंगलकारी विचार के इतिहास रचते हैं । साहित्यकार महज रचनाकार ही नहीं होता । वह सद्भावना सभ्यता संस्कृति लोककथाओं और नेक परम्पराओं को लिपिबद्ध कर हस्तान्तरित करता है। समाज राष्ट्र को दिशा निर्देशित करता है ।यही वजह है कि जनसामान्य साहित्यकार के व्यक्तित्व को उसकी रचनाओं में ढूंढता है जो साहित्यकार के तटस्थ भूमिका का द्योतक है ।
साहित्यकार वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध होता है । वैचारिक प्रतिबद्धता लेखकीय स्वतन्त्रता को बाधित नही करती है । यदि विचार कट्टरवादिता @ रूढिवादिता के शिकार हो जाते है तो लेखकीय स्वतन्त्रता पर प्रतिघात होता है । ऐसे विचार मानवता के प्रति न्याय नही कर पाते । साहित्यकार भी विवाद के घेरे में आ जाता है । साहित्यकार अपनी भूमिका के साथ न्याय करता है तो ऐसे विचार सभ्य समाज के बीच जरूर मान्य होंगे । यदि साहित्यकार अपनी भूमिका के प्रति प्रतिबद्ध है, उनके विचार कल्याणकारी है ,बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का मन्तव्य रखते हैं तो कबीर की भांति उसके विचार अवश्य प्रातः स्मरणीय होंगे ।
वर्तमान दौर साहित्यकारों के लिये संकट का समय है परन्तु वह संघर्षरत् रहकर भी सक्रीय है परन्तु कुछ सौभाग्यशाली साहित्यकारों को छोड़कर, दूसरे साहित्यकारों के विचार पाठकों तक नही पहुंच पा रहे है भला हो कुछ साहित्यिक पत्रिकाओं को जो साहित्यकारों नवोदित साहित्यकारों को आक्सीजन दे रहे हैं । ये पत्र-पत्रिकायें भीं संकट के दौर से पीड़ित है अतः रचनाकारों को पारिश्रमिक देने में अस्मर्थ है ।हां हौशला जरूर बढा रहे है । हौसले और सम्भावनाओं के उड़नखटोले पर साहित्यकार अपनी भूमिका के प्रति तटस्थ है ,जबकि न तो रायल्टी का सहारा है और नही कोई सरकारी सहयोग । साहित्यकार जरूरतों में कटौती कर अथवा रीन-कर्ज करके किताब छपवाने की हिम्मत जुटा भी लेता है तो उसके लिये बाजार उपलब्ध नही हो पाती, क्योंकि वह पुस्तक बेचने का कार्य नही कर सकता । परिणाम स्वरूप किताबें सन्दूकों में बन्द होकर रह जाती है ।
आज चिन्तन का विषय है कि रचनायें @ कृतियां पाठकों तक पहुंचे कैसे । साहित्यकारों को चाहिये साहित्यिक संस्थाओं के माध्यम से स्वयंसेवी संस्थाओं का निर्माण कर सरकार से अनुदान प्राप्त कर पुस्तक प्रकाशन एवं विक्रय खुद करें । सरकार दूसरी अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं को अनुदान दे रहीं हैं ।साहित्यिक-स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद सरकार अनुदान दे कर कर सकती है। संकट के दौर से गुजर रहे साहित्यकारों एवं साहित्यिक संस्थाओं की मदद के लिये सरकार को आगे आना चाहिये । साहित्यकारों के संघर्ष को स्वीकार कर ,उचित मूल्यांकन कर और उचित सहयोग देने की जरूरत है । आज का पाठक जो किताबों से दूर जा रहे है, उन पाठकों को भी साहित्य के महायज्ञ में आहुति देनी होगी । दुनिया जानती है साहित्यिक एवं किताबी ज्ञान अन्य माध्यमों की तुलना में कही ज्यादा बेहतर और जीवनोपयोगी होता है ।
वर्तमान समय में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता के क्षेत्र में अच्छे साहित्य का सृजन हो रहा है । सामाजिक न्याय के क्षेत्र में दिये गये योगदान को प्रेमचन्द को कभी नहीं भुलाया जा सकता है । सामाजिक कुरीतियों और नारी शोषण पर आधारित उनकी रचनायें कर्तव्य बोध, समाज को जोड़ने एवं सद्भावनापूर्ण वातावरण निर्मित करने में अहम् भूमिका निभायी हैं । परिवर्तन तो वैचारिक क्रान्ति से आता है। वर्तमान दौर में अन्य साधनों की घुसपैठ की वजह से जनमानस किताबों से दूर होता जा रहा है । ऐसे दौर में आवश्यक हो गया है कि लेखकों के विचार उनकी रचनायें गांव एवं शहर तक के पाठकों तक पहुंचे और आवाम के बीच चर्चा का विषय बनेे। यथार्थ के धरातल पर भारतीय अस्मिता जो हमारे देश के धर्म आघ्यात्म, योग विज्ञान और साहित्य के रूप में विराजमान है वह दुनिया के लिये गर्व का विषय है । आज भी उम्मीदों का सोता सूखा नही है, रोजागरोन्मुखी शिक्षा @नैतिक शिक्षा ,सामाजिक समानता एवं न्याय,सामाजिक बुराईयों ,गरीबी उन्मूलन राष्ट्र हित, देश-जोड़ो आदि मुद्दों पर साहित्यकार कलम चलाने के लिये प्रतिबद्ध हैं । देश और समाज हित में यह जरूरी भी है परन्तु आज साहित्यकार संकट के दौर से गुजर रहे हैं। कब तक वे अपनी जरूरतों की होली जलाकर जहां रोशन करेगा। साहित्यकारों के बारे में भी सरकार को सोचना चाहिये। उनके हितार्थ कदम उठाने चाहिये। सरकारी तौर पर परिचय पत्र जारी करने चाहिये । उनके आवागमन के लिये न्यूनतम् दरों पर टिकट उपलब्ध कराया जाना चाहिये एवं अन्य आवश्यक सुविधायें भी । साहित्यकार की प्रतिबद्धता पर सरकार को ईमानदारी से विचार कर संरक्षण प्रदान करना चाहिये । पाठकों तक साहित्य आसानी से पहुंच सके इसके लिये भी मदद करना चाहिये । पाठकों तक जब ये साहित्य पहुंचेंगे तभी पहुंचेंगे तभी साहित्यकार को सुकून मिलेगा और ऐसी पूरी सम्भावना भी है । सच, अंधियारा चाहे जितना भी गहरा क्यों न हो वह सुबह तो जरूर आयेगी जब संकट के दौर खत्म होगे । गर्व की बात है कि साहित्यकार अपनी भूमिका जिम्मेदारी के साथ निभा रहे हैं, यही दायित्वबोध साहित्यकार को समय का पुत्र बनाता है ।
साहित्यकार के विचार रूके हुए नही होते समय के साथ आगे बढते रहते हैं। साहित्यकार का उद्देश्य होता है कि उसके लेखनकर्म से समाज एवं राष्ट्र का हित सधे ,सामाजिक बुराईयों के खिलाफ लामबन्द स्थिति बने । सामाजिक सद्भावना एवं समरसता का वातावरण निर्मित हो । साहित्यकार की प्रतिबध्ता ही उसके विचार की गतिशीलता का परिचायक है । बहुजन हिताय बहुजन सुखाय को केन्द्र बिन्दु में रखकर लेखन करने वाले साहित्यकार के विचार तो थमे नहीं हैं । सच्चे और अच्छे विचार समाज को दिशा देते हैं । सामाजिक स्तर पर साहित्यकार मूल्यों का सजग प्रहरी है। व्यक्ति के स्तर पर साहित्यकार पीड़ा सहने की शक्ति देता है और सम्भावनाओं के साथ जीने की ललक पैदा करता है । आतंक, शोषण,उत्पीड़न बर्बरता और बुराईयों के खिलाफ साहित्यकार की भूमिका और अधिक तटस्थ हो जाती है । यही तटस्थता लेखन को अमरता प्रदान करती है । वर्तमान समय में साहित्यकार मुश्किलों के दौर से गुजरते हुए भी अपनी भूमिका बड़ी जिम्मेदारी के साथ निभा रहे हैं । देखना है क्या सरकारें और आज के पाठक अपनी भूमिका जिम्मेदारी के साथ निभा पाते हैं ?
वक्त गवाह है साहित्यकार तटस्थ है अपनी भूमिका पर संकटकाल में भी । वह अपनी भूमिका को नैतिक दायित्व एवं कर्तव्यबोध की तराजू पर तौल कर सृजन कार्य कर रहा है क्योंकि वह भौतिकवाद,पाश्चात्य संस्कृति के कुप्रभाव और नैतिक मूल्यों में आ रही गिरावट से बेचैन है । वह नैतिक मूल्यों की पुर्नस्थापना के लिये व्यग्र है। वह समय के साथ सामंजस्य बिठाकर स्वामी विवेकानन्द के पद चिन्हों पर चलते हुए गर्जना कर रहा है। समाज एवं राष्ट्र के उत्थान के लिये ,युवाशक्ति को जागृत करने के लिये । बुराईयों पर कुठराघात करने के लिये । सद्भावनापूर्ण एवं सभ्य समाज के लिये । कर्तव्यबोध एवं नैतिक मूल्यों की पुर्नस्थापना के लिये । अमन शान्ति के लिये और सुरक्षित कल के लिये । यही वक्त की मांग है और वर्तमान समय में साहित्यकार की भूमिका भी ।
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नन्दलाल भारती
शिक्षा - एम.ए. । समाजशास्त्र । एल.एल.बी. । आनर्स ।
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्ट
जन्म स्थान- - ग्र्राम चौकी। खैरा। तह.लालगंज जिला-आजमगढ ।उ.प्र।
प्रकाशित पुस्तकें
म.पुस्तक प्रकाशन उपन्यास-अमानत ,निमाड की माटी मालवा की छाव।प्रतिनिधि काव्य संग्रह।
प्रतिनिधि लघुकथा संग्रह- काली मांटी एवं अन्य कविता, लघु कथा एवं कहानी संग्रह ।
उपन्यास दमन और अभिशाप- उखड़े पांव ।लघुकथासंग्रह।
अप्रकाशित पुस्तके उपन्यास-दमन,चांदी की हंसुली एवं अभिशाप, कहानी संग्रह- 2
काव्य संग्रह-2 लघुकथा संग्रह-1 एवं अन्य
सम्मान लेखक मित्र ।मानद उपाधि।देहरदून।उत्तराखण्ड।
भारती पुष्प। मानद उपाधि।इलाहाबाद,
भाषा रत्न, पानीपत ।
डां.अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान,दिल्ली,
काव्य साधना,भुसावल, महाराष्ट्र,
ज्योतिबा फुले शिक्षाविद्,इंदौर ।म.प्र.।
डां.बाबा साहेब अम्बेडकर विशेष समाज सेवा,इंदौर
कलम कलाधर मानद उपाधि ,उदयपुर ।राज.।
साहित्यकला रत्न ।मानद उपाधि। कुशीनगर ।उ.प्र.।
साहित्य प्रतिभा,इंदौर।म.प्र.।
सूफी सन्ज महाकवि जायसी,रायबरेली ।उ.प्र.।
विद्यावाचस्पति,परियावां।उ.प्र.। एवं अन्य
आकाशवाणी से काव्यपाठ का प्रसारण ।कहानी, लघु कहानी,कविता
और आलेखों का देश के समाचार पत्रों@पत्रिकओं
में एवं www.swargvibha.tk/
www.swatantraawaz.com
rachanakar.com / hindi.chakradeo.net www.srijangatha.com,esnips.con, sahityakunj.net
एवं अन्य ई-पत्र पत्रिकाओं पर रचनायें प्रकाशित ।
आजीवन सदस्य इण्डियन सोसायटी आफ आथर्स।इंसा।नई दिल्ली
हिन्दी परिवार,इंदौर ।मध्य प्रदेश।
आशा मेमोरियल मित्रलोक पब्लिक पुस्तकालय,देहरादून ।उत्तराखण्ड। एवं अन्य
स्थायी पता आजाद दीप, 15-एम-वीणानगर ,इंदौर ।म.प्र.!
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