गणतंत्र दिवस परेड में झांकियों की जरूरत अब नहीं है -अविनाश वाचस्पति आप इधर यह पढ़ रहे हैं उधर देश में गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है। इस बार ...
गणतंत्र दिवस परेड में झांकियों की जरूरत अब नहीं है
-अविनाश वाचस्पति
आप इधर यह पढ़ रहे हैं उधर देश में गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है। इस बार परेड में दिल्ली की झांकी नहीं है पर दिल्ली में झांकियों की कमी नहीं है। सरकार वैसे भी फालतू में ही दिल्ली की अलग से एक झांकी निकालने पर व्यर्थ ही श्रम और पैसे का अपव्यय करती थी क्योंकि आप दिल्ली में आप जहां भी झांकेंगे, पूरी राजधानी को झांकीमय पायेंगे। कड़े सुरक्षा ऑपरेशनों के बीच कदम कदम पर दम निकालती सुरक्षा व्यवस्था, इतने पर भी यह गारंटी कि अनहोनी होकर ही रहेगी। किलरलाईन नीली बसों को लाल रंग बहाने से नहीं रोक पायेंगे। वे बसें बदस्तूर तंत्र के गणों के जीवन से सरेआम खिलवाड़ करती रहेंगी, आप मूक होकर जैसे परेड देखते हैं, वैसे ही इस झांकी को बेबस होकर देखते रहेंगे।
मेट्रो तैयारी की झांकी, बिना झांकने का मौका दिए कहीं से भी जनगण के उपर भारी भरकम लोहे के गार्डर गिरा कर जनगणना के आंकड़े कम करने के उपक्रम में जुटी हुई हैं। डॉक्टर हड़ताल करके मरीजों की जान लेने के लिए ऐसे जुटे हुए हैं, मानो यमराज से उनको हर जानदार को बेजान बनाने के लिए कमीशन के तौर पर एक एक दिन की एकस्ट्रा जिंदगी दी जा रही हो।
आटो टैक्सी वालों की जीवंत झांकी यानी मीटर से न चलने का उनका रूतबा पहले की तरह ही कायम है। जगह जगह सुरक्षा कड़ी है कि परिंदा भी पर न मार सके। अब आतंकवादी न तो परिंदे हैं और न वे पर मारते हैं। वे बम फोड़ते हैं। सीधा नाता यमराज से जोड़ते हैं। यमराज से हमारे पड़ोसी का कोलेब्रेशन है। पड़ोसी अपने पड़ोस का बेड़ा गर्क करने पर जुटा हुआ है, कितना रहमदिल पड़ोसी है, स्वार्थी नहीं है। पेश किए सबूतों को पड़ोसी ने साबुत मानने से इंकार कर ही दिया है।
देश में और दिल्ली में सुरक्षा की सुगंध कायम है, सभी नाकदार सूंघ सकते हैं। पर ट्रैफिक उल्लंघन करने वालों की जेबों की सुरक्षा का कोई उपाय नहीं, वे विवश होकर यातायातकर्मियों से जेब कटवा रहे हैं। लाल बत्ती धड़ल्ले से पार हो रही है। सुविधाशुल्क के अग्रिम भुगतान का कमाल है। अब पुलिस की इस निर्ममता से छुटकारा दिलाने के लिए रहमदिल पुलिस की व्यवस्था गणतंत्र दिवस का आयोजन करने वाली सरकार कहां से करे, और क्यूं करे जब इसमें झांकने के लिए कोई तैयार ही नहीं है। झांकी बंद करेंगे तो जनता झांकना बंद करेगी, इस मुगालते में सरकार है। यह कोई नहीं सूंघ पा रहा है।
खुले में लघुशंका रुपी झांकी को देखते रहिए, अगर यह जानने की कोशिश की जाए कि - तलाशो, जिसने कभी सड़क किनारे, स्कूल की दीवार पर, कभी हल्की सी ओट और बिना ओट ही इस तलब से छुटकारा न पाया हो, तो ऐसा कोई नहीं मिलेगा। परेड छूटने के बाद यह दृश्य खुलेआम दिखेगा।
थूकना तो इस देश में जुर्म है ही नहीं। यह जर्म नेताओं तक में महामारी की तरह व्याप्त हैं। सब एक दूसरे तीसरे पर सरेआम थूक रहे हैं। आप और हम उनके थूकने की क्रिया को पहचान नहीं पा रहे हैं। खुले में धूम्रपान पर रोक का कानून बनाकर लागू है। कारों तक में धूम्रपान मना है। कारसवार और कार चालक खूब धुंआ उड़ा रहे हैं सिर्फ साइलेंसर से ही नहीं, सिगरेट बीड़ी का सेवन करके भी। बस वालों पर रोक लगाने से तो सरकार बेबस ही है क्योंकि सरकार कार में चलती है।
फुटपाथों पर पैदल चलने वालों की जगह विक्रेता कब्जा जमाए बैठे हैं और पैदलों को ही अपना सामान बेच रहे हैं। तो इतनी बेहतरीन मनोरम झांकियों के बीच जरूरत भी नहीं है कि परेड में 18 झांकियां भी निकाली जातीं, इन्हें बंद करना ही बेहतर है। राजधानी में झांकियों की कमी नहीं है। सूचना के अधिकार के तहत मात्र दस रुपये खर्च करके आप लिखित में संपूर्ण देश में झांकने की सुविधा का भरपूर लुत्फ उठा तो रहे हैं। देश को आमदनी भी हो रही है, जनता झांक भी रही है। सब कुछ आंक भी रही है। देश में झांकने के लिए छेद मौजूद हैं इसलिए झांकियों की जरूरत नहीं है।
....
अविनाश वाचस्पति
साहित्यकार सदन, पहली मंजिल, 195 सन्त नगर, नई दिल्ली 110065
ई मेल avinashvachaspati@gmail.com
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Avinash Vachaspati
http://avinashvachaspati.blogspot.com/
http://nukkadh.blogspot.com/
http://jhhakajhhaktimes.blogspot.com/
http://bageechee.blogspot.com/
http://tetalaa.blogspot.com/
-अविनाश वाचस्पति
आप इधर यह पढ़ रहे हैं उधर देश में गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है। इस बार परेड में दिल्ली की झांकी नहीं है पर दिल्ली में झांकियों की कमी नहीं है। सरकार वैसे भी फालतू में ही दिल्ली की अलग से एक झांकी निकालने पर व्यर्थ ही श्रम और पैसे का अपव्यय करती थी क्योंकि आप दिल्ली में आप जहां भी झांकेंगे, पूरी राजधानी को झांकीमय पायेंगे। कड़े सुरक्षा ऑपरेशनों के बीच कदम कदम पर दम निकालती सुरक्षा व्यवस्था, इतने पर भी यह गारंटी कि अनहोनी होकर ही रहेगी। किलरलाईन नीली बसों को लाल रंग बहाने से नहीं रोक पायेंगे। वे बसें बदस्तूर तंत्र के गणों के जीवन से सरेआम खिलवाड़ करती रहेंगी, आप मूक होकर जैसे परेड देखते हैं, वैसे ही इस झांकी को बेबस होकर देखते रहेंगे।
मेट्रो तैयारी की झांकी, बिना झांकने का मौका दिए कहीं से भी जनगण के उपर भारी भरकम लोहे के गार्डर गिरा कर जनगणना के आंकड़े कम करने के उपक्रम में जुटी हुई हैं। डॉक्टर हड़ताल करके मरीजों की जान लेने के लिए ऐसे जुटे हुए हैं, मानो यमराज से उनको हर जानदार को बेजान बनाने के लिए कमीशन के तौर पर एक एक दिन की एकस्ट्रा जिंदगी दी जा रही हो।
आटो टैक्सी वालों की जीवंत झांकी यानी मीटर से न चलने का उनका रूतबा पहले की तरह ही कायम है। जगह जगह सुरक्षा कड़ी है कि परिंदा भी पर न मार सके। अब आतंकवादी न तो परिंदे हैं और न वे पर मारते हैं। वे बम फोड़ते हैं। सीधा नाता यमराज से जोड़ते हैं। यमराज से हमारे पड़ोसी का कोलेब्रेशन है। पड़ोसी अपने पड़ोस का बेड़ा गर्क करने पर जुटा हुआ है, कितना रहमदिल पड़ोसी है, स्वार्थी नहीं है। पेश किए सबूतों को पड़ोसी ने साबुत मानने से इंकार कर ही दिया है।
देश में और दिल्ली में सुरक्षा की सुगंध कायम है, सभी नाकदार सूंघ सकते हैं। पर ट्रैफिक उल्लंघन करने वालों की जेबों की सुरक्षा का कोई उपाय नहीं, वे विवश होकर यातायातकर्मियों से जेब कटवा रहे हैं। लाल बत्ती धड़ल्ले से पार हो रही है। सुविधाशुल्क के अग्रिम भुगतान का कमाल है। अब पुलिस की इस निर्ममता से छुटकारा दिलाने के लिए रहमदिल पुलिस की व्यवस्था गणतंत्र दिवस का आयोजन करने वाली सरकार कहां से करे, और क्यूं करे जब इसमें झांकने के लिए कोई तैयार ही नहीं है। झांकी बंद करेंगे तो जनता झांकना बंद करेगी, इस मुगालते में सरकार है। यह कोई नहीं सूंघ पा रहा है।
खुले में लघुशंका रुपी झांकी को देखते रहिए, अगर यह जानने की कोशिश की जाए कि - तलाशो, जिसने कभी सड़क किनारे, स्कूल की दीवार पर, कभी हल्की सी ओट और बिना ओट ही इस तलब से छुटकारा न पाया हो, तो ऐसा कोई नहीं मिलेगा। परेड छूटने के बाद यह दृश्य खुलेआम दिखेगा।
थूकना तो इस देश में जुर्म है ही नहीं। यह जर्म नेताओं तक में महामारी की तरह व्याप्त हैं। सब एक दूसरे तीसरे पर सरेआम थूक रहे हैं। आप और हम उनके थूकने की क्रिया को पहचान नहीं पा रहे हैं। खुले में धूम्रपान पर रोक का कानून बनाकर लागू है। कारों तक में धूम्रपान मना है। कारसवार और कार चालक खूब धुंआ उड़ा रहे हैं सिर्फ साइलेंसर से ही नहीं, सिगरेट बीड़ी का सेवन करके भी। बस वालों पर रोक लगाने से तो सरकार बेबस ही है क्योंकि सरकार कार में चलती है।
फुटपाथों पर पैदल चलने वालों की जगह विक्रेता कब्जा जमाए बैठे हैं और पैदलों को ही अपना सामान बेच रहे हैं। तो इतनी बेहतरीन मनोरम झांकियों के बीच जरूरत भी नहीं है कि परेड में 18 झांकियां भी निकाली जातीं, इन्हें बंद करना ही बेहतर है। राजधानी में झांकियों की कमी नहीं है। सूचना के अधिकार के तहत मात्र दस रुपये खर्च करके आप लिखित में संपूर्ण देश में झांकने की सुविधा का भरपूर लुत्फ उठा तो रहे हैं। देश को आमदनी भी हो रही है, जनता झांक भी रही है। सब कुछ आंक भी रही है। देश में झांकने के लिए छेद मौजूद हैं इसलिए झांकियों की जरूरत नहीं है।
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Avinash Vachaspati
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भाई साहिब , प्रणाम.
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की आपको ढेर सारी शुभकामनाएं.
कसा हुआ व्यंग धारदार तीखा ... वाह वाह श्रीमान
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस पर आपको शुभकामनाएं .. इस देश का लोकतंत्र लोभ तंत्र से उबर कर वास्तविक लोकतंत्र हो जाएऐसी प्रभु से कामना है
जी साहब