साहित्यकारों में राजनीति एक गंभीर समस्या राजनीतिज्ञों की राजनीति देखी धर्म, सम्प्रदाय में राजनीति दिखी जाति, भाषा से बंटे...
साहित्यकारों में राजनीति एक गंभीर समस्या
राजनीतिज्ञों की राजनीति देखी
धर्म, सम्प्रदाय में राजनीति दिखी
जाति, भाषा से बंटे लोग देखे
देखा भाई-भतीजावाद का हर वो चेहरा
पर साहित्यकारों में भी राजनीति होगी
इसकी कभी परिकल्पना नहीं कि थी मैंने
सब दिखा हंस और पाखी के प्रतिवाद में
उस पु्रस्कार से
जिसे समृद्ध ज्ञानत्व वाले लोगो को दिया जाता है
आलोचक रचनाकारों के तेवरों ने भी
दिखाया राजनीति का चेहरा
दिखाया कैसे एक साहित्यकार
साहित्य के क्षेत्र में एक छत्र
राज करने को लालायित रहता है
अपनी ही पत्रिका और लेखनी को
सर्वोच्च ठहराने की जुगत करता है
इस क्रम में एक-दूसरे पर आक्षेप
करने से भी नहीं चूकता
आदतें उन तमाम राजनीतिज्ञों की तरह
जो अपने ही दल को देश का प्रहरी मानता है
और दूसरे को देश का दुश्मन
उन धर्मनिर्पेक्ष और साम्प्रदायिक ठेकेदारों की तरह
जिन्हें न तो देश से लगाव है न ही देशवासियों से
ज्ञान बांटने वाले ये लोग
अज्ञानता की राजनीति से गुजरते देखे जायेंगे
नवीन कवियों और लेखको के लिए
यह बेहद चिंता का विषय है
खेमेबाजी की इस दौर में
नये उभरते लेखकों को
एक खेमा चुनने की विवशता
कहीं उनके लेखनी में जड़ता न ला दे
जिस समाज को बदलने की आश लिए
नए साहित्यकार अपना कलम चलाते हैं
कहीं उनके मन में डर न समा जाए कि
कौन सा खेमा उनसे ख़ीज खाकर
उसके पन्नों पर ही स्याही न छीड़क दे
निष्कर्ष सोचकर ही हम जैसे
रचनाकारों को डर सा लगने लगा है
कही हमारे पल्लवित होते पंख को भी
आलोचक राजनीति खेमेबाजी कर कुतर न डालें।
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हम है हममें है हमसे ये दुनिया सारी है
हम है हममें है हमसे ये दुनिया सारी है
हमसे टकराए गिर जाए हम तो भारी है
जलजला है हम, पल भर में जला देंगे
देखे दुश्मन हमको तो मिट्टी में मिला देंगे
अरे जोश है तुम मे तो आज़मा दम में
पल भर में चित करके तुमको हम दिखा देंगे
हम है हममें है हमसे ये दुनिया सारी है...
पीछे से करते वार, तुम करते हो हर बार
हिम्मत है तो सामने आके दिखला एक बार
हर मुंह की खाई है तुमने जो देखो हमसे
हर बाजी हारी है, तुमने अपने बचपन से
अब सोचों जिद छोड़ो, ये मान मेरा कहना
भाई हो छोटे से, हमे आपस में ही है रहना
हम है हममें है हमसे ये दुनिया सारी है...
न बहको बेमतलब बहकाने दो जमाने को
थोड़ी सी लगा अकल, उन्हें भी आजमाने को
वो दोस्त नहीं है तेरे, है दुश्मन वो मेरे
चाहते है हमसे मिट जाए हम लड़-लड़के
हममें शांति है सच्चाई है हममें,
ये देख नहीं पाते जीते वो इस गम में
हम है हममें है हमसे ये दुनिया सारी है...
वतन के नौजवान है हम
वतन के नौजवान है हम
वतन पे जा लुटा देंगे
वतन के रास्ते में जो आए
कसम से उसे हम मिटा देंगे
वतन के नौजवान है हम...
हममें एकता है इतनी
जो तोड़े टूट न पाती है
भरा है विश्वास जो हममें इतना
फौलाद भी आके बिखर जाती है
जो देखे दुश्मन हमारी तरफ
आंखों से रौशन चुरा लेते हम
वतन के नौजवान है हम...
न जाति हममें, न मजहब है
वतन के सभी रखवाले है
अमर हमारी प्रेम कहानी
जान वतन के हवाले है
न हिन्दू, मुस्लिम सिख न ईसाई हम
बस एक दूजे के भाई है हम
वतन के नौजवान है हम...
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मौत का तांडव
छिपे-छिपाए चकमा देकर,
असला बारूद भरकर
आ गये फिल्मी नगरी के भीतर
देखा इंसानी चेहरों को
मासूम भी दिखें,
उम्र दराज जिंदगियां भी थी
पर शायद दरिंदगी छुपी थी सीने में
उनके जहन में था वहसियानापन
कुछ आग पीछे सोचे बगैर
मचा दिया कोहराम
बजा दी तड़-तड़ की आवाजें
बिछा दी लाशें धरती पर
क्या बच्चें, बूढे और जवान
क्या देशी व विदेशी
चुन-चुन कर निशान बनाया
लाल स्याही से
पट गया धरती का आंगन
कुछ हौसले दिखे
दिलेरी का मंजर दिखा
जो निहत्थे थे पर जुनून था
टकरा गए राई मानो पहाड़ से
खुद की परवाह किए बगैर
शिकस्त दिया खुद भी खाई
वीरता से जान गँवाई
बचे खुचे दहशतगर्द
आग बढ़ गए
ताज को कब्जे में किया
फिर जो दिखा
दुनिया भी देखी
आतंक का चेहरा
कत्ले आम किया।
कुछ बच गए
रहमत था उनपर
जो मारे गये
किस्मत थी उनकी
फिर युद्ध चला
पराजित भी हुए
पर जांबाजो की ढेर लगी
मोमबत्तियाँ जली आंसू बहे
एकता का बिगुल बजा
नेताओं पर गाज गिरी
निकम्मों को सजा मिली
सबूत ढूंढे गए
दोषी भी मिले
सजा देना मुकम्मल नहीं
लोहा गरम है
कहीं मार दे न हथौड़ा
पानी डालने के लिए
अब कूटनीति है चली
लेकिन जनता जाग चुकी है
सवाल पूछने आगे बढ़ी है
पर शायद जवाब
किसी के पास है ही नहीं
जिन्होंने देश को तोड़ा
जाति क्षेत्र मजहब के नाम पर
आज खामोश है वे सब
मौकापरस्ती और
तुष्टिकरण की बात पर
चुनाव आनी है
दो और दो से पांच बनानी है
खामोश रहना ही मुनासिब समझा
बह कह दिया, सुरक्षा घेरा
हटा दो मेरा!
कुछ दिनों तक तनातनी का
यहीं चलेगा खेल
फिर बढती आबादी की रेलमपेल
एक बुरा सपना समझकर
फिर सब भूल जायेंगे
याद आयेंगे तब
जब अगली बार फिर से
मौत का तांडव मचायेंगे।
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मारना तो पड़ेगा ही
प्रकृति या फिर इंसान को
उसके बेटे पेड़, पौधे, जीव-जन्तु को मार गिराया है
रंग बिरंगी तितलियों का नामों निशान मिटा दिया
जो प्रकृति को खुशियां देती थी
प्रकृति के बनाए जीवन चक्र को भी
तहस नहस कर दिया है तुमने
और अगर कसूर तुम इंसानों ने किया है तो
सजा कौन भुगतेगा? प्रकृति या फिर इंसान
तभी अंतः मन के दूसरे सिरे से आवाज आई
इंसान कहता हम मजबूर है,
हमारी संख्या बढ़ी जा रही है
हमे जीना है जीवन-यापन करना है
मारना तो पड़ेगा ही।
प्रकृति ने कहा हमने कही थी इतनी आबादी बढ़ाओ
आबादी बढ़ाकर ढे़र सारी मुसीबत घर ले आओ
क्या दो बच्चों से संसार नही चलता तुम्हारा
ज्यादा बच्चे बनाने के चक्कर में
हमारे बच्चों का नुकसान क्यों पहुँचाते हो
खुद के लिए भी परेशानियां खड़े करते हो
और हमारा हरा-भरा संसार भी उजाड़ जाते हो
अब भी सुधर जाओ
हो सके तो एक में ही संभल जाओ
वरना अब की मेरे रक्षक बेटे ओज़ोन का
कुछ हुआ तो अंजाम देख लेना
पुरी दुनिया का नामों निशान
न मिटा दिया तो मेरा नाम बदल देना।
एक सुन्दर कोमल सुसज्जित,
ऐसा एहसास जो सदा रहे दिल के पास
जो कभी ठंड का एहसास कराती
तो कभी पल में गर्माहट ले आती
कभी ओस बनकर धरा में उतरकर
उमंग भरे चादर से सब को ढंक देती
हाँ कभी बूंदें भी बरसाती है
लेकिन बूंदें बिल्कुल असमान होती है
क्योंकि एक बूंदें जहां बिरहा दिलों को
मिलन की याद दिलाती है
वही दूसरी बूंदें वो तबाही का मंजर ले आती है
जिससे न चाह कर भी अपनों से विरह होने को विवश हो जाते है लोग
ये तमाम एहसास कराती कोई और नहीं
हमारी प्रकृति है जिससे एक नहीं कई रूप है
जो रूप बदल बदल कर
खुशियां और गम लोगों को देती है
फिर सवाल उठता है
आखिर खुशियां देने वाली गम क्यो देती है
तभी अंतः मन से एक आवाज आती है
कसूरवार खुद मुझको ठहराती है
कहती है तुमने ही
प्रकृति के परिवार को कष्ट दिया है
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एक मच्छर और एक आतंकवादी
दर्द का एहसास इंसानों को ही आता है
हाँ एक और समानताएं है दोनों में
दोनों छुप कर वार करने में माहिर है
सामने आकर लड़ने का कलेजा नहीं होता
एक सोते हुए व्यक्ति का जीना हराम कर देता है
तो दूसरा इतना बड़ा जख्म देता है
कि जिंदगी जीना हराम लगता है
जहां तक रही इनके सफाए की बात
तो आज तक मच्छर साफ नही हो पाए
तो भला इन कायरों को कौन साफ कर पाए
एक ही उपाय है
सही मात्रा में लगातार डीडीटी का छिड़काव
और दूसरा वोट के जरिए
ऐसे राजनीतिज्ञ पार्टियों का सफाया
जिन्होंने आतंकवाद को कौमी रंग देकर
इसका भरपूर लाभ चुनाव में उठाया
एक मच्छर और एक आतंकवादी
दोनो की बढ़ रही है आबादी
दोनो का नाता बस खून से है
एक इंसान का खून पीता है
तो दूजा खून बहाता है।
इसलिए पीने वाला मच्छर
और बहाने वाला आतंकवादी कहलाता है
दोनों में कई समानताएं और विषमताएं है
समानताएं है दोनों कौम नहीं देखते
बस खून देखने की अभिलाषा होती है
मच्छर की माने तो
स्वाद का मजा बराबर का आता है
मगर आतंकवादी कहते
जिहाद में सब जायज हो जाता है
खून जिसका भी बहे,
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है ये कहानी वीरों की कहानी
क्या कहता सुन ये मन है, क्यों सबकी आंखें नम है,
कुछ तो खोया है, सब ने रोया है
दर्द है ये दिल की है कहानी, वीरों ने दी है कुर्बानी
है ये कहानी, वीरों की कहानी-2
फख्र है हमको नाज यहीं है, अपने देश का ताज यही है,
सबकी इसने लाज बचा दी, मेरे गीतों का साज यही है
हंस हंस के ये जान लुटा दे, लुटा दे अपनी जवानी
है ये कहानी वीरों की कहानी-2
इसको तोड़ो उसको फोड़ो, नेताओं ने राग है छेड़ा
जाति क्षेत्र मजहब में तोड़ो, ताकि वोट मिले और थोड़ा
शहीदों को वे वोट में तौले, कड़वी इनकी जुबानी
है ये कहानी वीरों की कहानी-2
क्या कहता सुन ये मन है, क्यों सबकी आंखें नम है
कुछ तो खोया है, सबने रोया है
दर्द है ये दिल की है कहानी, वीरों ने दी है कुर्बानी
है ये कहानी वीरों की कहानी
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जहां जन्मा हूं आदिवासी क्षेत्र है
नाम झारखण्ड प्रदेश है
उसपर भी ऐसा गांव बालीडिह
जिसका साहित्य से नाता
दूर-दूर तक नहीं रहा
वहां तो शुद्ध हिन्दी भी बोली नहीं जाती
कुछ बोल के नमूने है,
‘‘कहा घर लागों रे नू नू,
तीन टका के नून दीहे,
सुनूम 5 टका के दे गो,’’
शुद्ध देशी संस्कृति का समावेश
उस पर भी बनिया परिवार में जन्मा
पिताजी के कारोबार में
हाथ बंटा कर बेटे का फर्ज भी
पूरा करने की जिम्मेदारी थी
वहां से भागना भी संभव नहीं था
हां मेरे मंझले भाई पर
इसका असर नहीं है,
इसलिए वो मां को
अंग्रेजियत मम्मी से पुकारते है
लेकिन मैं खांटी प्रदेश का
मां कहता या फिर
तेज आवाज में मईया गे।
ऐसे में बार-बार मुझसे कहना
साहित्य पढ़ो, बस पढ़ो
एक और बात जान ले
ये साहित्य का भूत,
कविता, लेखन, गीत लिखना
महज दो वर्षो से ही है
इससे पहले मैं अनजान था
आखिर जानूंगा कहां से भाई
मैंने बचपन से पढ़ाई ही
घाल मेल तरीके से की
हां इधर एक-दो सालों से
पढ़ने की ललक जागी है
और सबसे बड़ी बात
जो मुझे लगती है
सब ऊपर वाले का करिश्मा है
जो भ्रम के मकड़ जाल में पड़े
इस बालक को भविष्य के लिए
एक साफ सुथरा रास्ता सुझाया है
कमियां है मुझमें सीख रहा हूं
कुछ लोग कहते है मुझको,
लिखाडू हो तुम
ये अच्छी बात है
प्रेरित हो मगर
अभी प्रेरणा नहीं बन पाए हो
प्रेरणा तब बनोगे जब पढ़ोगे
पढ़ाई के साहित्यिक
सागर में डूब जाओगे
अभी बहुत सारी
कमियाँ है तुम में
मैं कहां, मानता हूं
मुझमें कमियां है
कमियां किसमें नहीं होती
कोई पूर्ण नहीं है
जो पूर्ण हो जाता है
खुद व खुद उसमें
विराम लग जाता है
और मैं अभी विराम
होना ही नहीं चाहता
एक और बात
मुझमें कमियां निकालने से पहले
कुछ जान ले मेरे बारे में
हां मैं साहित्य के मामले में
बिल्कुल कालिदास हूं
वो कालिदास ग्रंथों वाला नहीं
बल्कि वो डाली वाला कालिदास
जिसने बैठे हुए डाली को ही काट डाला
मेरा जन्म, जन्म स्थान,
परिवार और मेरी जाति
ये सभी इसके लिए दोषी है
मैं कोई इलाहाबाद, बनारस में नहीं जन्मा
जहां लोग पेट में ही अभिमन्यु की तरह
साहित्य सिख लेते है
ना ही मैं कोई पण्डित हूं
जिसे संस्कृत का रट्टा लगाकर
हिन्दी समझना जरूरी होता है
लाला भी नहीं हूं
जिसे जन्मजात ही
चित्रगुप्त की कृपा पात्र होती है
और जो कुछ भी मैं लिख रहा हूं
वो लिखने वाला मैं नहीं
मेरा तिलस्मी करिश्मा है,
जो कविता लिखना चाहता तो,
उसे लिख लेता
गीत लिखना चाहता
आसानी से लिख लेता
जबकि मुझे सुर का ज्ञान नहीं है
फिर भी गीत के साथ
उसके बोल भी बना लेता हूं
लिखना शुरू किया तो
लिखे जा रहा हूं
बिल्कुल कालिदास की तरह
जिन्होंने एक गलती के बाद
ग्रंथों की झड़ी लगा दी
उन्होंने संस्कृत में ग्रंथ लिखी
आपने साहित्य का सहारा लिया
मैं हिन्दी की सरस
भाषा में ही लिखूंगा
मैं सीखता भी रहूंगा
और लिखता भी रहूंगा
साहित्य का प्रयोग न हो
खड़ी हिन्दी में ही लिखूंगा
ये विश्वास है मुझे कि
भविष्य में मेरी कविताओं
लेखों, कहानियों और गीतों
को अवश्य सम्मान मिलेगा
बदलते समाज का युवा
मुझे जरूर सराहेगा।।
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संपर्क:
नरेन्द्र निर्मल
के- 10, द्वितीय तल, शकरपुर, दिल्ली
"jahan janma hoon aadivasi kshetra hai" rachna achchhi lagi.
जवाब देंहटाएंiske liye vishes abhar.