रपट- पंत-शैलेश के बहाने साहित्यिक विमर्श अपनी समग्रता में उत्त्ाराखण्ड को पहली बार महाकवि सुमित्रानंदन पंत और कथाशिल्पी शैलेश मटिय...
रपट-
पंत-शैलेश के बहाने साहित्यिक विमर्श
अपनी समग्रता में उत्त्ाराखण्ड को पहली बार महाकवि सुमित्रानंदन पंत और कथाशिल्पी शैलेश मटियानी की रचनाओं के द्वारा जाना गया। यहाँ की प्रकृति को पंत ने उजागर किया तो मटियानी ने यहाँ के आम आदमी को। मटियानी से पहले इस क्षेत्र को लोग एक खूबसूरत प्राकृतिक और आध्यात्मिक स्थान के रूप में जानते थे, जहाँ देवता निवास करते हैं। इस सुंदर ‘देवभूमि' के अंदर हाड.मांस के मामूली लोग भी रहते हैं, यह बात लोगों को मालूम नहीं थी। यह ठीक है कि पंत और मटियानी अलग-अलग विधाओं के लेखक हैं, मगर इन दोनों को एक साथ रखे बगैर इस क्षेत्र का पूरा बिंब सम्भव नहीं है। इस रूप में ये दोनों लेखक एक-दूसरे के पूरक हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए पिछले दिनों (14 से 16 नवम्बर, 2008) महादेवी वर्मा सृजन पीठ, कुमाऊँ विश्वविद्यालय द्वारा संस्कृति विभाग, उत्त्ाराखण्ड शासन के सहयोग से पंत की जन्मस्थली कौसानी में ‘पंत-शैलेश स्मृति' शीर्षक से विमर्श और कविता-पाठ का एक वृहद् कार्यक्रम आयोजित किया गया।
हिन्दी आज एक ओर अपने अस्तित्व के अनेकमुखी संकटों से गुजर रही है तो दूसरी ओर उसकी लोकभाषाएँ उससे भी गम्भीर संकट की शिकार हैं। साहित्य तो दूर, बोलचाल की भाषा में तक लोकभाषाओं का प्रयोग गायब होता जा रहा है। अपनी जड़ों की भाषा की इसी स्थिति पर विचार करते हुए लगा कि अपने कवियों-लेखकों के साथ समाज का सीधा संवाद स्थापित करके ही शायद कुछ बात बन सकती है। समाज का सबसे संवेदनशील क्षेत्र होने के कारण साहित्य ही आखिरी आदमी की खबर लेता है। इसलिए तेजी से बदलते हुए अपने इस दौर में हम अपनी पूर्ववर्ती दो पीढ़ियों के युगप्रवर्तक रचनाकारों-सुमित्रानंदन पंत और शैलेश मटियानी का स्मरण करते हुए दिशा पा सकते हैं।
सम्मेलन का उद्घाटन उत्त्ाराखण्ड के राज्यपाल श्री बी․ एल․ जोशी ने किया। उन्होंने कवि सुमित्रानंदन पंत तथा कथाकार शैलेश मटियानी का भावपूर्ण स्मरण करते हुए कहा कि उत्त्ाराखण्ड की धरती के ये दोनों रचनाकार अपनी-अपनी विधा के महारथी रहे हैं। पंत साहित्य में उन्होंने अरविन्द दर्शन के प्रभाव को रेखांकित किया तो दूसरी और मटियानी साहित्य में उत्त्ाराखण्ड के आम आदमी के संघर्ष की पीड़ा को। संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि उत्त्ाराखण्ड के संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री प्रकाश पंत ने प्रतिभागियों का आहवान किया कि वे उत्त्ाराखण्ड और हिन्दी साहित्य तथा यहाँ कि स्थानीय भाषाओं को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर लाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे।
कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो․ सी․ पी․ बर्थवाल ने भारत के विभिन्न कोनों से आये हिन्दी, हिन्दीतर भाषाओं तथा कुमाउंनी, गढ़वाली, जौनसारी एवं भोटिया भाषा के विद्वानों का स्वागत करते हुए तीन दिन तक चलने वाले इस विचार-विमर्श एवं कविता पाठ को लेकर आशा व्यक्त की कि इससे उत्त्ाराखण्ड में मुख्य धारा की साहित्यिक संस्कृति का परिचय प्राप्त होगा। उद्घाटन सत्र में मद्रास विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो․ एम․ शेषन ने दक्षिण भारतीय भाषाओं में हिन्दी साहित्यकारों विशेष रूप से सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, इलाचन्द्र जोशी तथा शैलेश मटियानी के महत्व को रेखांकित किया।
महादेवी वर्मा सृजन पीठ के निदेशक प्रो․ बटरोही ने संगोष्ठी के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिन्दीतर भारतीय भाषाओं में उत्त्ाराखण्ड तथा हिन्दी भाषा व साहित्य की स्थिति का पता लगाने के लिए इस त्रि-दिवसीय संगोष्ठी में आठ भाषाओं - तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, मराठी, गुजराती, बांग्ला तथा ओडिया के विशेषज्ञों को आमंत्रित किया गया। उन्होंने उत्त्ाराखण्ड में साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के तत्काल निर्माण की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि किसी भी राज्य की भावात्मक एकता और स्थिरता के क्षेत्र में वहाँ के साहित्यकार एवं संस्कृतिकर्मी कवच का काम करते हैं। राज्य की स्थिरता उसके विकास कार्यो से तो निर्धारित होती ही है, उन कार्यों का वहाँ के नागरिकों में सकारात्मक एवं स्थायी प्रभाव साहित्य-संस्कृति से जुड़ी संस्थाओं का ही पड़ता है।
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वरिष्ठ कवि लीलाधर जगूडी ने अपने आधार व्याख्यान ‘उत्त्ाराखण्ड के रचनाकारों के संघर्ष और सौंदर्य की दुनिया' में हिन्दी एवं उसकी लोकभाषाओं में सृजनरत् रचनाकारों के सामने आने वाली चुनौतियों एवं संघर्षों का विस्तार से जिक्र किया। हिन्दी कविता को एक नई तथा रचनात्मक भाषा प्रदान करने के
संदर्भ में उन्होंने सुमित्रानंदन पंत, चंद्रकुँवर बर्त्वाल तथा मंगलेश डबराल का विशेष रूप से उल्लेख किया। इन कवियों में उनके अनेक समकालीन भी शामिल हैं जिनमें न केवल नई कलात्मक भाषा का बल्कि अत्यन्त प्रभावशाली बिम्बों, प्रतीकों का ऐसा प्रयोग दिखाई देता है जिसने हिन्दी कविता को नए आयाम प्रदान किये।
संगोष्ठी के प्रथम सत्र का विषय था ‘हिन्दीतर प्रान्तों में हिन्दी साहित्य और उत्त्ाराखण्ड'। इस सत्र की अध्यक्षता उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद की पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो․ पी․ माणिक्याम्बा ने की। आन्ध्र विश्वविद्यालय, विशाखापट्नम की प्रो․ के․ लीलावती ने आन्ध्र प्रदेश एवं तेलुगु भाषा में हिन्दी साहित्य के पठन-पाठन का उल्लेख करते हुए बताया कि आन्ध्र में विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में हिन्दी केे पुराने लेखक तो शामिल हैं लेकिन नये लेखकों से अभी उनका परिचय नहीं है। उदाहरण के लिए पंत को तो लोग जानते हैं लेकिन शैलेश मटियानी को नहीं।
कर्नाटक विश्वविद्यालय, धारवाड. की हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो․ सुमंगला एस․ मुम्मिगट्टी ने कर्नाटक में हिन्दी साहित्य एवं उत्त्ाराखण्ड के रचनाकारों का विस्तार से परिचय दिया। उन्होंने भी यही बात कही कि छायावादी काल तक के कवियों, लेखकों को तो वहाँ के हिन्दी पाठ्यक्रम में शामिल किया है लेकिन नये साहित्यकारों को नहीं। प्रो․ मुम्मिगट्टी ने हिन्दी की बोलियों तथा उपभाषाओं से जुड़े साहित्य विशेष रूप से अवधि, ब्रज आदि को लेकर अध्यापन में आने वाली कठिनाईयों का उल्लेख किया।
मद्रास विश्वविद्यालय, चेन्नई के प्रो․ एम․ शेषन ने तमिलनाडु में हिन्दी शिक्षण तथा हिन्दी साहित्य की स्थिति पर आलेख प्रस्तुत किया। इस संदर्भ में उन्होंने विशेष रूप से महादेवी वर्मा के वैचारिक गद्य का उल्लेख करते हुए कहा कि महादेवी की तरह का वैचारिक साहित्य किसी भी भारतीय भाषा में नहीं है। उन्होंने महादेवी की गद्य रचनाओं के सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद पर विशेष बल दिया।
पुरी (उड़ीसा) से आयी हुई ओडिया की प्रसिद्ध कवयित्री शैलबाला महापात्र ने उड़ीसा में हिन्दी साहित्य की स्थिति को रेखांकित किया और बताया कि आधुनिक ओडिया साहित्य में भी लगभग उसी प्रकार के काव्य आंदोलन मिलते हैं जैसे कि हिन्दी साहित्य में। उन्होंने ओडिया और हिन्दी के समकालीन साहित्य पर आलेख प्रस्तुत किया। गंजम (उड़ीसा) से आये हुए राजनैतिक शास्त्र के प्राध्यापक एवं अनुवादक डॉ दासरथी भुइयाँ ने समकालीन ओडिसा साहित्य का परिचय देते हुए हिन्दी के महत्वपूर्ण कवियों के ओडिया में अनुदित साहित्य का उल्लेख किया।
गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद की हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो․ रंजना अरगडे ने विस्तार से गुजरात में हिन्दी साहित्य के विभिन्न रचना आंदोलनों एवं शोध कार्यों का उल्लेख किया। साथ ही समकालीन हिन्दी साहित्य के गुजराती में हुए अनुवाद का विस्तृत परिचय दिया। अहमदाबाद की ही हिन्दी प्राध्यापिका डॉ․ नयना डेलीवाला ने शैलेश मटियानी के साहित्य पर हो रहे शोधकार्यों का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए उन्हें दलित चेतना का एक ऐसा प्रखर रचनाकार बताया जिस पर और अधिक विस्तार से काम किये जाने की आवश्यकता है।
अध्यक्ष पद से बोलते हुए प्रो․ पी․ माणिक्याम्बा ने आन्ध्र प्रदेश में हिन्दी साहित्य की वर्तमान स्थिति का परिचय दिया तथा विशेष रूप से सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, प्रेमचंद, अज्ञेय तथा नये कवियों लीलाधर जगूडी, मंगलेश डबराल के साहित्यिक अनुवाद को लेकर प्रकाशित साहित्य का उल्लेख किया।
‘पंत-शैलेश स्मरण' सत्र में सुमित्रानंदन पंत तथा शैलेश मटियानी के संपर्क में आये वरिष्ठ तथा नये रचनाकारों ने अपने भावपूर्ण संस्मरण सुनाये। सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार प्रदीप पंत ने की। उपन्यासकार पंकज बिष्ट ने मटियानी को लेकर अनेक प्रसंगों का उल्लेख किया और कहा कि अगर किसी साहित्यकार का लेखन सही-गलत का विवेक प्रस्तुत नहीं करता और पाठक में सही के पक्ष में खड़े होने का सामर्थ्य पैदा नहीं करता तो उसकी कोई उपादेयता नहीं है। उन्होंने शैलेश मटियानी के साहित्य को इस प्रकार के विवेक से युक्त बताया। पत्रकार एवं उपन्यासकार नवीन जोशी ने सुमित्रानंदन पंत तथा मटियानी को लेकर आत्मीय प्रसंगों का उल्लेख किया और कहा कि उनके व्यक्तित्व ने ही उन्हें लेखन की प्रेरणा दी। कथाकार क्षितिज शर्मा ने कहा कि शैलेश मटियानी के व्यक्तित्व में साधारण लोगों के प्रति जो
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आत्मीयता थी, वह आज दुर्लभ है। वे अपने लेखन और व्यक्तित्व में एक समान थे। सत्र के संचालक डॉ․ ओम प्रकाश गंगोला ने कहा कि शैलेश के साहित्य में कहीं भी हताशा नहीं है। वे हमेशा दूसरों को ऐसी प्रेरणा देते रहे जिससे कि उनका व्यक्तित्व खिल सके। शैलेश की बेटी शुभा मटियानी ने अपने बाबूजी के
अनेक अंतरंग संस्मरणों तथा कवि महेन्द्र मटियानी ने एक भाई के रूप में शैलेश की आत्मीयता को याद किया। सत्र के अध्यक्ष प्रदीप पंत ने कहा- शैलेश का साहित्य पूरे पहाड़. की पीड़ा है। उन्होंने अपने साहित्य में पहली बार पहाड़ी जीवन के अंतर्विरोधों को प्रस्तुत किया तथा हिन्दी साहित्य में उत्त्ाराखण्ड की वर्तमान पीढ़ी एक प्रकार से उन्हीं के साहित्य का विस्तार है।
‘उत्त्ाराखण्ड में हिन्दी कविता' शीर्षक से आयोजित सत्र में चर्चित एवं युवा हिन्दी कवियों- लीलाधर जगूडी, वीरेन डंगवाल, सुन्दर चन्द ठाकुर, जितेन्द्र श्रीवास्तव, हेमन्त कुकरेती, अशोक पाण्डे, शैलेय, राजेन्द्र कैडा, स्वाति मेलकानी तथा सिद्धेश्वर सिंह ने अपने कविताओं का पाठ किया तथा उन रचनात्मक दबावों का उल्लेख किया जिन्होंने उन्हें कवि बनने के लिए प्रेरित किया।
गढ़वाली और जौनसारी कविता पाठ की अध्यक्षता वरिष्ठ गढ़वाली कवि नरेन्द्र सिंह नेगी ने की तथा संचालन युवा रचनाकार नंद किशोर हटवाल ने किया। गढ़वाली के चर्चित कवियों में मदन मोहन डुकलाण, गिरीश सुंदरियाल, वीरेन्द्र पंवार, नीता कुकरेती, कुसुम भट्ट, मधुसूदन थपलियाल, निरंजन सुयाल, हेमवती नंदन भट्ट तथा गणेश खुगशाल ‘गणी' ने अपनी ताजा कविताओं का पाठ किया और अपने सृजनात्मक लेखन के प्रेरणा स्रोतों के बारे में विस्तार से बातें की। कवियों ने अपनी कविताओं का हिन्दी अनुवाद भी प्रस्तुत किया जिससे कि हिन्दीतर भाषाओं में उनकी चुनी हुई कविता का अनुवाद किया जा सके। इस सत्र में गढ़वाल के जौनसार-भाबर क्षेत्र की लोकभाषा जौनसारी की कविता का रतन सिंह जौनसारी के द्वारा पाठ किया गया। इसके साथ ही जौनसारी के ही समकक्ष लोकभाषा जौनपुरी के कविता साहित्य के बारे में सुरेन्द्र पुण्डीर ने ध्यान आकर्षित किया।
‘कुमाउंनी एवं शौका कविता पाठ' सत्र में कुमाउंनी के वरिष्ठ एवं युवा कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया। सत्र का संचालन युवा कवि हेमन्त बिष्ट ने किया। गोष्ठी में शेरदा ‘अनपढ़', मथुरादत्त्ा मठपाल, महेन्द्र मटियानी, शेर सिंह बिष्ट, जगदीश जोशी, रतन सिंह किरमोलिया, देवकी महरा, मोहन कुमाउंनी, दीपक कार्की आदि ने कविता-पाठ किया। इन कविताओं में आज के उत्त्ाराखण्ड की सामाजिक एवं सांस्कृतिक विसंगतियों को मुख्य रूप से रेखांकित किया गया। भोटिया भाषा के विशेषज्ञ डॉ․ शेर सिंह पांगती ने भोटिया (शौका) कविता का पाठ किया।
समापन सत्र में गढ़वाली, कुमाउंनी, जौनसारी और शौका कविताओं को लेकर विशेषज्ञों ने आलेख पढ़े तथा इन भाषाओं के वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य पर विस्तार से चर्चा की। श्री मदन मोहन डुकलाण ने समकालीन गढ़वाली कविता, रतन सिंह जौनसारी ने जौनसारी कविता, डॉ․ कैलाश चन्द्र लोहनी ने कुमाउंनी कविता तथा डॉ․ शेर सिंह पांगती ने शौका कविता की परम्परा पर अपने आलेख पढ़े। इस सत्र के चर्चाकारों में अचलानंद जखमोला, कमल जोशी, जगमोहन रौतेला, दीपक पोखरियाल, गीता गैरोला, ओम प्रकाश सेमवाल, शिवराज सिंह रावत ‘निसंग', योगम्बर सिंह बर्त्वाल, नवीन चन्द्र शर्मा, प्रीति आर्या, मन्नू ढौंडियाल आदि शामिल थे।
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प्रस्तुति-
मोहन सिंह रावत
सम्पर्क-
ई-6, स्टोनले कम्पाउण्ड
तल्लीताल, नैनीताल-263 002
(उत्त्ाराखण्ड)
जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.............कर्नाटक और मद्रास में भी कॉलेज में हिन्दी पढाई होती है ये तो पता है मुझे पर इतने सक्रिय हैं ये नही पता था.....
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की आपको हार्दिक शुभकामनाये
किसी के पास रमेश मटियानी जी का संपर्क सूत्र हो तो क्रप्या मुझे भेजे
जवाब देंहटाएंSangeetaraj492@gmail.com