हड़ताल बिना जिंदगी अधूरी आप कहीं भी जायें, चाहे सरकारी दफ्तर हो या निजी कार्यालय हो चारों तरफ लोगबाग काम कम हड़ताल करते ज्यादा नजर आते...
हड़ताल बिना जिंदगी अधूरी
आप कहीं भी जायें, चाहे सरकारी दफ्तर हो या निजी कार्यालय हो चारों तरफ लोगबाग काम कम हड़ताल करते ज्यादा नजर आते है। हड़ताल जैसी बीमारी से देश के बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठान एक ग्रसित हैं, साथ ही साथ इससे पानी, बिजली चिकित्सा जैसी लोक उपयोगी सेवा वाले क्षेत्र भी अछूते नहीं हैं। लोग जरा सी बात पर काम रोको हड़ताल, भूख हड़ताल, कलम बंद हड़ताल करना अपना परम कर्तव्य समझते है।
लोग हड़ताल क्यों करते हैं ? इसका कारण हड़तालियों के पास भी नहीं रहता है, तो हम और आप क्या कह सकते हैं, लेकिन शायद वे अपनी योग्यता, क्षमता व कार्यकुशलता से ज्यादा पाने की कोशिश हड़ताल द्वारा करते है। आज छात्र इसलिए हड़ताल नहीं करता है कि उसे उचित ढंग से शिक्षा प्रदान की जावे, बल्कि आज इसलिए छात्र हड़ताल करते हैं कि उन्हें परीक्षा में अनुचित साधनों का प्रयोग करने दिया जाये या बिना परीक्षा दिये ही घर बैठे पास कर दिया जाये। आज मजदूर इसलिए हड़ताल नहीं करते हैं कि उनकी आर्थिक, सामाजिक स्थिति सुधारी जाये, उनके आवास की दशाएं बदली जायें, बल्कि वे इसलिए हड़ताल करते हैं कि उनहें अलग से कुछ पैसे प्राप्त हो, ताकि वह अपने साहबों की तरह स्कूटर , मोपेड आदि में घूम सकें, नशीले पदार्थ भांग और शराब का शौक पूरा कर सकें। आज जूनियर डॉक्टर , इंजीनियर इसलिए हड़ताल करते हैं कि उनहें बिना कुछ सीखे-समझे ही सीनियर मान लिया जाये व अपने से बडों के बराबर तनख्वाह दी जावे। नगर निगम के कर्मचारी , गली मोहल्लों , सड़कों, की सफाई समय पर नहीं करना चाहते, इसलिए वे ज्यादा काम के बोझ का बहाना बनाकर हड़ताल करते हैं, शिक्षक घर में तो घंटों बच्चों को ट्यूशन पढ़ा सकते हैं, लेकिन स्कूल, कॉलेज में नहीं पढ़ाना चाहते , इसलिए पेंशन ग्रैच्युटी, तनख्वाह आदि का बहाना बनाकर हड़ताल करते है।
इस तरह लाखों लोग काम करना नहीं चाहते हैं, इसलिए हड़ताल करते हैं इन हड़तालियों को बढावा कलयुग के ब्रम्हा, विष्णु, महेश उर्फ नेता लोग देते हैं। ये लोग आग में घी का काम करते हैं तथा लोगों को हड़ताल करने को उकसाते है। जिस व्यक्ति को अगले चुनाव में टिकिट चाहिए, वह सबसे ज्यादा हड़तालों में भाग लेता है और सबसे जयादा हड़ताल कराकर नाम कमा कर पार्टी का टिकिट अगले चुनाव में प्राप्त करना चाहता है, ताकि उसकी उंगलियां घी और सिर कढ़ाई में धंस जाये। हड़ताल की यह बीमारी हमारे समाज में बुरी तरह व्याप्त है इससे कुछ चुने हुए लोग नहीं बल्कि समाज का सबसे पिछड़ा वर्ग मजदूर वर्ग भी ग्रसित हैं हड़ताल समाज के पढे -लिखों से लेकर बुद्धिजीवी तक करते हैं। कुछ लोग जाति अथवा संप्रदाय के आधार पर राज्य बनाना चाहते हैं, इसलिए हड़ताल करते हैं कुछ लोग हत्या जैसी जघन्य अपराध को जन्म देने के लिए सती -प्रथा को बढावा देने के लिए हड़ताल करते हैं तो कुछ लोग देश को धर्म , भाषा, क्षेत्र, जाति के आधार पर बांटने के लिए हड़ताल करते हैं। इस प्रकार एक दिन में बड़ी संख्या में लोग बाग किसी न किसी रूप में हड़ताल करके देश के विकास को अवरूद्ध करते है।
आज लोग हड़ताल क्यों करते हैं ? इससे उन्हें बहुत से फायदे होते है। इससे जहां उनका समय, श्रम, कार्यकुशलता भले ही नष्ट होती हो उन्हें आराम मौज-मस्ती, हरामखोरी करने को मिलती है। हड़ताल से जहां हमारे देश का सामाजिक ढांचा गड़बड़ाता हैं, वहीं औद्योगिक विकास का मार्ग अवरूद्ध होता है। हड़ताल करने वाले आगे बढते हैं। कई बार उनकी तनख्वाह बढती है, उनकी तरक्की होती है। उन्हें इसकी चिंता नहीं होती है कि हड़ताल करने से देश का नुकसान हो सकता है उस समाज का नुकसान हो सकता है, जिसमें वे रहते हैं। लेकिन हड़ताल करने वालों का ख्याल है कि उनका कुछ नुकसान नहीं होता है। वे यह मानते हैं कि हड़ताल करना अच्छा है। बुरा नहीं। लेकिन आज हममें से कोई देश में एकता स्थापित करने की मांग के साथ हड़ताल नहीं करता हैं देश की अखंडता को बरकरार रखने हड़ताल नहीं करता। देश को खोखला कर रही साम्प्रदायिकता, जातीयता, धार्मिकता को दूर करने के लिए हड़ताल या आंदोलन नहीं करता । सामाजिक बुराइयों, दहेज, अंध विश्वास और असमानता को मिटाने के लिए हम लोग हड़ताल नहीं करते। आज सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए हम हड़ताल जैसे खतरनाक हथियार का उपयोग करते है।
हड़ताल आज के इंसान की जिंदगी की अनिवार्य आवश्यकता बन गई है। रोटी, कपड़ा और मकान के बाद उसे सिर्फ हड़ताल की याद रह गई है। आज हड़ताल के बिना छात्रों को नींद नहीं आती, मजदूर का खाना नहीं पकता, शिक्षकों की गाड़ी नहीं चलती, नेताओं को बदहजमी हो जाती है। मजदूर को लगता है कि उसकी जिंदगी अधूरी है, अगर उसने हड़ताल करके अपने मालिकों की नाक में दम नहीं किया है, छात्र सोचता है कि उसकी जवानी बेकार है अगर उसने अपने सामने कालेज या यूनिवर्सिटी को नहीं झुकाया है। नेताओं को तो मालूम है कि बिना हड़ताल कराये समाचार पत्रों में नाम छपवाये नेता गिरी चलती नहीं है।
इस प्रकार लाखों लोगों के लिए हड़ताल आज जिंदगी की मुख्य आवश्यकता बन गई है। जिस प्रकार बच्चों के बिना शादी अधूरी लगती है, उसी प्रकार हड़ताल बिना जिंदगी सूनी लगती है। आज आप सीना ठोंक कर कह सकते हैं कि हमारे देश में दुनिया का सातवां आश्चर्य ताजमहल नहीं, बल्कि काली पट्टी लगाये हाथ में बैनर लिये, हमारी मांगें पूरी करो, चिल्लाते हुए लोगों की भीड़ का न दिखना है। अगर आप कहीं जायें और हड़ताल आपका स्वागत न करें तो आप अपने भाग्य को कोसिये कि आप चंद समझदारों, देश के प्रति समर्पित कुछ कर्तव्यनिष्ठ , लेकिन फालतू लोगों के बीच आ फंसे है- जिनको अपने जन्मसिद्ध अधिकार हड़ताल का ज्ञान नहीं है।
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कौन कहता है-भूत नहीं होता
हमारा, महात्मा बुद्ध का, कर्म स्थान और शिक्षा का महान केन्द्र नालंदा विश्वविद्यालय की जन्म स्थली बिहार राज्य देश में एक ऐसा राज्य है जो रोज नये, एक से एक राज, हीरे की खदान की तरह उगल रहा है। पहले आश्चर्य प्रकट हुआ कि जानवर का चारा आदमी खा गये, उसके बाद आश्चर्य हुआ कि जेल में कैदी घर से ज्यादा ऐशो आराम में मोबाइल फोन, वी.सी.आर., टी.वी., ए.सी. के बीच जिंदगी गुजार रहे हैं। फिर पता चला कि वहां पर 21 भूत वेतन ले रहे है। इस खबर को पढ़ते ही मन में उत्सुकता हुई कि भूत क्या है ?
भूत बीता हुआ कल है, जो हमेशा सामने उजागर रहता हैं। कुछ लोग हैं, जो कहते हैं कि भूत नहीं होते हैं। वे कल में जी रहे नहीं होते है, बल्कि वर्तमान में मर रहे होते हैं। इसलिए उन्हें भूत की याद नहीं रहती है। यदि वे कुछ कर गये होते तो वर्तमान अच्छा कटता और फिर भविष्य की चिंता नहीं सताती और भूत उन्हें हमेशा याद रहता है।
हम कल क्या होंगे, सोचकर जी नहीं पाते हैं, बल्कि कल हमें क्या करना है सोचकर जीते हैं और वर्तमान में ऐसा जीवन क्यों जी रहे हैं इसे सोचने-समझने हमेशा भूत को याद करते रहते है। काश ऐसा कर देते तो कहां होते ? काश ऐसा नहीं किया होता तो आज यह दिन देखने नहीं मिलता ? इस प्रकार भूत हमेशा साथ रहता है। वह कभी पीछे नहीं छूटता। वर्तमान की परछाई अगर भविष्य है तो उसका अतीत भूत है।
काल तीन बताये गये हैं - भूत, भविष्य, वर्तमान लेकिन शाश्वत काल तो एक है उसके बाद न तो भूत बचता है, न भविष्य की चिंता , न वर्तमान की खटपट रहती है।
पूरे ‘जीवन कालचक्र‘ में जिसमें ‘काल‘ के बाद भविष्य कभी नहीं रहता है। इसलिए जीते जी भविष्यवाणी करना टेढ़ी खीर है। तीर तुक्के मारने पर तीर निशाने के आसपास लग सकता है, लेकिन भविष्य को भूत नहीं बना सकते, क्योंकि वर्तमान जिये बिना भविष्य नहीं आ सकता है। यही कारण है कि आज देश में गांधी का भूत जिंदा है।
गांधी चले गये, चरखा, लाठी, सत्य, अहिंसा, स्वावलंबन की शिक्षा दे गये। व्यवसाय के नाम पर लघु, कुटीर उद्योग बता गये। लेकिन किसी को भी इस भूत में भविष्य नहीं दिख रहा है। इसलिए वर्तमान इन बातों से अधूरा पडा है। कोई सत्य, अहिंसा, स्वावलंबन पर नहीं चलना चाहता है, सब मशीनगन, स्टैनगन से बात करते हैं। उधारी कोई नहीं रखता है, सब तुरन्त उधारी चुकाना चाहते हैं। वास्तविक जीवन में भले हम गांधी बने रहते हैं, लेकिन भूत और भविष्य में कोई गांधी नहीं बनना चाहता है।
आज हम कल की बात करते हैं और कल के लिए लोक की धमकी देते हैं। सब स्वर्ग लोक में जी रहे हैं। जो बीत चुका वह पाताल लोक है जो बीतने वाला है वह भविष्य का नरकलोक है। वर्तमान में स्वप्न में स्वर्ग में जीने का स्वप्न पूरे कर रहे है। इसलिए भूत के पाताल की याद कर भविष्य के नरक की तस्वीर वर्तमान के स्वप्न में नहीं देखना चाहते है।
कर्म, काज, कार्य जो सबका पालनहार है। वह ‘काल‘ की चिंता नहीं करता है। अर्थात् उसे भविष्य का डर नहीं हैं। इसलिए ‘कर्मयोगी‘ वर्तमान में जीते हैं। भूत से सीखते हैं, कामगारों को कोई भूत भी नहीं सताता है। क्योंकि वह हमेशा कर्म करने के कारण वर्तमान में ही जीते रहते हैं। वर्तमान में जीना ही सही जीवन है, भूत की याद, भविष्य के डर से वर्तमान को भूल जाना कहां उचित है।
भूतकाल में यदि हम बीते अवसर को याद करते हैं तो उनका सही लाभ न उठा पाने के कारण भी पीड़ा पहुंचती हैं। इसलिए हम उन्हें याद नहीं करना चाहते हैं और उसे प्रेतात्मा के दुःस्वप्न के साथ जोड़ देते हैं। जो व्यक्ति बीते अवसरों का लाभ उठा लेते हैं, उन्हें भूत याद नहीं आते हैं और वे वर्तमान में जीकर भूत की उपेक्षा करते हैं, उन्हें राक्षसों का भय नहीं सताता हैं, इसलिए वे कहते हैं कि भूत नहीं है।
बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता है। लेकिन जब हम उस समय से कोई सीख नहीं ले पाते है। तो वह समय फिर डरावने स्वप्न की तरह बारबार दिखाई देता है। जब तक उससे सीख नहीं ले लेते हैं वह दिखाई देते जाता है और उसी स्वप्न को हम भूत मानते हैं जिसे कोई भी बात जानने के बाद देखना नहीं चाहता। जब बीता ‘काल‘ दिखता है तो विचार आता है कि ‘कर्म‘ उस पर, उस समय भारी नहीं था, इसलिए उस ‘भूत‘ को ‘वर्तमान‘ पचा नहीं पाया और वह अपच ‘भूत‘ बनकर हमारे गले बार-बार पड रही है। दिल को ऐंठ मरोड़ रही है।
हमारे नीति के भूत गांधी है। उसी ‘भूत‘ के कारण हम उन्हें याद करते हैं और जिस दिन गांधी वर्तमान में आ जायेंगे, उस दिन से उनका ‘भूत‘ लोगों के सिर से उतर जायेगा। लेकिन ‘गांधी‘ का ‘भूत‘ आसानी से लोगों के सिर पर चढने वाला नहीं है, क्योंकि वर्तमान में सत्य बोलने के रास्ते बंद है। अहिंसा की भाषा कोई समझता नहीं है।
गांधी मशीनीकरण के विरूद्ध थे। हम आज मशीनों पर जिंदा हैं। आदमी मशीन बन गया है। कुटीर उद्योग केवल इंटीरियर डेकोरेशन की वस्तु रह गये हैं। ऐन्टीक और यूनिक वस्तुओं में उनकी गिनती है, जो घर के एक कोने की शो-पीस के रूप में शोभा बढ़ाते है।
धर्म-निरपेक्षता, साम्प्रदायिकता, तकनीकी शिक्षा के अभाव में बेरोजगारों की भीड़ है। अन्याय के विरूद्ध अहिंसा ने हिंसा का रूप ले लिया है। हम पहले अन्याय का विरोध नहीं करते है। और जब वह बढ़ कर पाप बन जाता है तब विरोध करते हैं उसके बाद पाप का इलाज अहिंसा से करना संभव नहीं है। फिर कुटिलता के कांटे को कौटिल्य से ही निपटाना पड़ता है।
हम मकान बनाते हैं, नींव खोदते हैं, उसके ऊपर इमारत खड़ी कर देते हैं। भूल जाते हैं कि नींव भूत हो जाती है। जो मकान खड़ा है वह वर्तमान है। वह ‘भूत‘ को भूल नहीं पाता है और जब तक नींव को याद करता है, तब तक खड़ा रहता है। जैसे ही भूलता है, उसके ढेर होने का ‘भविष्य‘ प्रारंभ हो जाता है। जिस दिन पूरी तरह भूल जाता है, उस दिन ढेर हो जाता है, उस दिन ढेर हो जाता है और भविष्य को देख नहीं पाता है।
वर्तमान ही भूत और भविष्य है। भूत को लेकर वर्तमान में जिये तो भविष्य सुखी, उज्ज्वल होगा और कभी भूत , भविष्य की चिंता नहीं सतायेगी। जैसे सत्य ही ईश्वर है और सत्य ही सुंदर है। उसी प्रकार से वर्तमान ही भूत है, वर्तमान ही भविष्य की छवि है।
कर्म का कोई ‘काल‘ नियत नहीं किया गया है। ‘काल करे सो आज कर‘‘, जो भूत में कर्म करने वाले थे, अभी करों और ‘आज करे‘ सो अब अर्थात जो भविष्य में कर्म की सोच रहे हो उसे तुरन्त वर्तमान में करों। यहां पर शब्दों का अर्थ वहीं हैं सिर्फ ‘काल‘ का फर्क है। ‘कल कर‘ सो आज करें में कल भूत, आज वर्तमान है आज करे सो अब में, आज भविष्य है, अब वर्तमान काल है और कर्म अर्थात ‘अब‘ वर्तमान में जी रहे है।
यहां पर हम पहले सोचते हैं, जैसे ही सोचते हैं कर्म का विचार आता हैं । वहीं ‘कर्मकाल‘ है। सोचते ही नहीं किया वह ‘‘ भूत‘‘ हो गया और ‘‘आज‘‘ नहीं कर पाते हैं, इसलिए नहीं होने के कारण ‘भविष्य‘ में चला जाता है। उसके बाद ‘अब‘ बनता है जो ‘वर्तमान‘ है, जिसे नहीं किया तो वह कभी नहीं हो सकता है। क्योंकि ‘पल‘ बीतते ही विचार भूत, भविष्य में बदल जाते है। वे वर्तमान का रूप नहीं ले पाते है।
उपर्युक्त विश्लेषण से यह बात तो स्पष्ट है कि भूत होता है और भूत के आधार पर वर्तमान में कोई जी रहा है तो उसे भूत नहीं कहेंगे। इसलिए यदि मक्कारी बेईमानी, भ्रष्टाचार, अय्यारी के कारण लोग वेतन निकाल रहे हैं तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं होना चाहिए । यह हमारे राष्ट्रीय चरित्र में शामिल है। जिस तरह की यह घटना है, वहां की लीला के हिसाब से यह बहुत छोटी बात है। इनसे दूसरे प्रदेशों की जनता शिक्षा न ले यह उनके बस की बात नहीं है, इसलिए भूत होता है यह मानकर उस घटना को भूल ही जाने दें। क्योंकि वर्तमान और भविष्य को कर्म के प्रभाव से बदला जा सकता है, किन्तु भूत तो शाश्वत है इसलिए भूत, भूत होता है उसे बदला नहीं जा सकता। यह मानकर उस घटना को भूत हो जाने दें।
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