सुनीता शर्मा की पुस्तक समीक्षा : हिंदी कहानी कोश

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गवेषणात्‍मक एवं विश्‍लेषणात्‍मक प्रतिभा की पहचान : हिन्‍दी कहानी कोश डॉ. सुनीता शर्मा कृति - हिन्‍दी कहानी कोश लेखिका - डॉ. मधु सं...

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गवेषणात्‍मक एवं विश्‍लेषणात्‍मक प्रतिभा की पहचान :

हिन्‍दी कहानी कोश

डॉ. सुनीता शर्मा

कृति - हिन्‍दी कहानी कोश

लेखिका - डॉ. मधु संधु

प्रकाशक - नेशनल पब्‍लिशिंग हाऊस, दिल्‍ली

पृष्‍ठ - 226 मूल्‍य - 350 रु.

कोश - रचना एक ऐसी कला है जिसके द्वारा कोशकार के परिश्रम, धैर्य एव रुचि का दिग्‍दर्शन होता है । कलात्‍मक दृष्‍टि और वैज्ञानिक बुद्धि का समन्‍वित रूप कोश निर्माण का प्रथम चरण है जबकि किसी क्षेत्र विशेष की आवश्‍यकता पूर्ति इसके निर्माण का प्रेरक कारण बनता है । ‘निघण्‍टु' से आरम्‍भ हुई कोशकारिता की यात्रा संस्‍कृत तथा अपभ्रंश से विभिन्‍न पड़ाव तय करती हुई हिन्‍दी में पदार्पण करती है । ‘खालिकबारी' तथा ‘नाममाला' यद्यपि हिन्‍दी कोश - रचना के प्रारम्‍भिक कोश है तो ‘भारतीय संस्‍कृति कोश', ‘समांतर कोश' आदि इसके आधुनिकतम रूप हैं । कोश के स्‍वरूपगत महत्‍व को देखकर ‘शब्‍दकोश' तथा ‘विश्‍वकोश' को आधुनिक युग के सूचना - प्रौद्यौगिकी के ‘महाकम्‍प्‍यूटर' की संज्ञा दी गई है।

साहित्‍य के क्षेत्र में विविधमुखी प्रयास होने के कारण कोशकारों का ध्‍यान विधापरक कोश-निर्माण की ओर भी गया पर बड़ी अल्‍पमात्रा में विधापरक कोश अभी तक उपलब्‍ध हो पाये हैं जिनमें दशरथ ओझा का ‘नाटक - कोश' गोपालराय का ‘उपन्‍यास कोश' का नाम लिया जा सकता है । इसी कोशकारी की यात्रा में एक नया नाम दर्ज हुआ है - ‘डॉ. मधु संधु' का । कोश जगत्‌ में इनकी सद्यः प्रकाशित रचना ‘हिन्‍दी कहानी कोश' नेशनल पब्‍लिशिंग हाऊस दिल्‍ली के सौजन्‍य से हिन्‍दी साहित्‍य को प्राप्‍त हुई है । इससे पूर्व इनका एक कहानी - कोश सन्‌ 1992 में भारतीय ग्रंथम से भी प्रकाशित हो चुका है । एक कहानीकार, आलोचक और अध्‍यापक का अकस्‍मात्‌ एक कोशकार के रूप में उपस्‍थित हो जाना एक आश्‍चर्यजनक आह्लाद है। डॉ. मधु संधु एक कहानीकार के रूप में प्रख्‍यात हैं और कहानी जगत्‌ का विस्‍तृत फलक जो उनके भीतर समाहित था उसी ने उन्‍हें कहानीकार से कोशकार बना दिया और वह व्‍यक्‍ति से संस्‍था बन गईं ।

प्रस्‍तुत कहानी कोश दस वर्षों की (1991-2000) अवधि को समेटे हुए है । इन दस वर्षों में प्रकाशित होने वाली कहानियों, कहानी संग्रहों एवं कहानी संकलनों में से छः सौ कहानियों को इस कोश में स्‍थान मिला है । कोश के लिए कहानियों का चयन लेखिका के गम्‍भीरतापूर्ण चयन की बानगी प्रस्‍तुत करता है । लेखकों की ख्‍याति और कथ्‍य की उत्‍कृष्‍टता चयन कसौटी कहे जा सकते हैं । इस कोश की पूर्णता हेतु जहां लेखिका ने विभिन्‍न कहानी संग्रहों एवं कहानी संकलनों को आधार बनाया वहीं ‘हंस', ‘हरिगंधा', ‘कथन', ‘कहानीकार', ‘कथादेश', ‘वर्तमान साहित्‍य', ‘इन्‍द्रप्रस्‍थ भारती', ‘इंडिया टूडे', ‘साक्षात्‍कार', ‘संचेतना' जैसी पत्रिकाएं एवं ‘जनवाणी', ‘जनसत्ता' आदि पत्रा भी उनकी पारखी दृष्‍टि के केन्‍द्र में रहे हैं ।

इस कहानी-कोश की कहानियों में पाठक को जहां अपने स्‍वानुभूत अतीत की झलक मिलती है वहीं उसका वर्तमान भी उसके सम्‍मुख कई प्रश्‍न लेकर उपस्‍थित मिलता है । इस कोश की कहानियों की धुरी में मध्‍यवर्गीय समाज है । इन कहानियों में मध्‍यवर्गीय परिवार की छोटी - छोटी आवश्‍यकताओं पर त्रासदियों का छाया इस प्रकार बढ़ते हुए दिखाया है कि चाहकर भी परिवारजन सामाजिक और पारिवारिक संबंधों का निर्वहन प्रसन्‍नतापूर्वक नहीं कर पाते । इन कहानियों में जहाँ श्रमिकों की साधना को दर्शाकर श्रम के महत्व पर प्रकाश डाला है तो दूसरी ओर दिनरात परिश्रम करने वाले खदानों के श्रमिक मल्‍लकटों और उनके परिवार के दर्दनाक जीवन के चित्र मिलते हैं । रोटी, कपड़ा और मकान हमारी मूलभूत आवश्‍यकताएं हैं। रोटी से जूझते हुए इस मध्‍यवर्गीय समाज में मकान एक स्‍वप्‍न बनकर रह गया है। मानव की इस इच्‍छापूर्ति के लिए कई बैंकों और कंपनियों ने सहायतार्थ आगे हाथ बढ़ाए हैं । इस कोश में ऐसी कहानियों को भी स्‍थान दिया गया है जिन्‍हें पढ़कर पाठक घर के लिए लोन देने वाली कंपनियों तथा एसोशिएसन्‍ज की धांधलियों से परिचित होता है । जैसे अलका सारावगी की ‘दूसरे किले में औरत' कहानी । न केवल कंपनियां अपितु आज अस्‍पताल भी मध्‍यवर्ग को लूट रहे हैं । धीरेन्‍द्र वर्मा की ‘दुक्‍खम्‌ शरणम्‌ गच्‍छामि' कहानी इन संस्‍थानों की व्‍यापारी वृत्ति की मुँह बोलती तस्‍वीर है ।

बेरोज़गारी से जूझता हमारा मध्‍यवर्ग इस ताक में रहता है कि किसी तरह सिफारिश या रिश्‍वत के बल पर एक बार रोजगार मिल जाए फिर आराम से इन्‍हीं लोगों का खून चूसेंगे । सुमन मेहरोत्रा की ‘बस हुकुम बजाते हैं' कहानी में जल्‍लाद के उपेक्षित और घृणित जीवन पर प्रकाश डाला है फिर भी इस काम के लिए इतनी होड़ है कि जल्‍लादी के लिए भी सिफारिश की ज़रूरत है । इन कहानियों में जहां एक ओर बेरोज़गारी का संताप है तो दूसरी ओर नौकरीपेशा के संताप भी पाठक को उद्वेलित करते हैं । कोश में नमिता सिंह की ‘नतीजा' कहानी नौकरी की हृदयहीनता को उघाड़ती है । साक्षात्‍कार की धांधलियों पर भी कुछ कहानियां इस कोश में सम्‍मिलित की गई हैं ।

भिखारी भारतीय समाज का वीभत्‍स चित्र प्रस्‍तुत करते हैं पर यह भिखारी समाज की सहानुभूति पाकर आराम और ऐश का जीवन गुजार रहे हैं । सैली बलजीत की कहानी ‘दौड़' कोश में स्‍थान पाने वाली ऐसी कहानी है जिसमें भिखारी लोगों की सहानुभूति पाने के लिए कभी अंधा, कभी लंगड़ा और कभी कोढ़ी बनकर भीख मांगता है और फिर उन्‍हीं पैसों से शराब, मीट तथा खाने का प्रबंध कर आराम का जीवन जीता है ।

इस मध्‍यवर्गीय समाज को जहां कई समस्‍याएं त्रस्‍त किए हुए हैं वहीं बार - बार होने वाले दंगों का आतंक समाज में इस प्रकार व्‍याप्‍त है कि साधारण व्‍यक्‍ति भी हर स्‍थान पर अपने आपको असुरक्षित अनुभव करता है । अग्‍निशेखर की ‘बोझ' कश्‍मीरी आतंकवाद के साये में सहमे कश्‍मीरियों की गाथा है तो विनोदशाही की ‘ब्‍लैक आउट' भारत-पाक युद्ध की भयावह स्‍थिति व्‍यक्‍त करती है । इन दंगों की आड़ में बदमाशों की स्‍वार्थपूर्ति पर भी प्रकाश डाला जाता है । नमिता सिंह की ‘मूषक' कहानी इन दंगों से त्रस्‍त व्‍यक्‍ति के मन की मलिनता तथा अपमान और भय को चित्रित करती है ।

भारतीय शिक्षातंत्र की न्‍यूनताओं को सम्‍मुख रखते हुए इस पर आधारित कुछ कहानियां इस कोश में स्‍थान पा सकी हैं । उर्मिला शिरीष की ‘दाखिला' कहानी शिक्षातंत्र में समाई विकृतियों पर प्रकाश डालती हैं । इन विकारों को दूर करने के लिए सरकार समय-समय पर योजनाएं बनाती है पर वे कागज़ों में जितनी प्रभावी दिखाई देती हैं व्‍यावहारिक रूप में उतनी प्रभावशाली नहीं हैं । प्रौढ़ शिक्षा के प्रति सरकार की योजनाएं और लोगों की अरुचि के माध्‍यम से सरकार की दम तोड़ती नीतियों को दर्शाया गया है । हमारे समाज में नवयुवक जब शिक्षा प्राप्‍ति के पश्‍चात्‌ भी जब रोजगार नहीं पाते तो आजीविका की तलाश में भारत का प्रतिभाशाली वर्ग विदेशों में प्रवासी बनता जा रहा है । ऐसी कहानियों का उद्देश्‍य सरकार को इसके दायित्‍व का एहसास करवाना है ।

नारी इस समाज का अभिन्‍न अंग है । वर्तमान में जहां हमारा समाज स्‍वयं को आधुनिक और स्‍त्री समर्थक के रूप में ‘एक्‍सपोज' कर रहा है वहीं इसी समाज में ऐसी स्‍थितियां उभर कर सामने आती हैं जिनमें इस माडर्न कहलाने वाले समाज में स्‍त्री किसी गुलाम से कम नहीं लगती । कोश की इन कहानियों में कहीं पति और सास का शोषण सहती बहु है तो कहीं संबंधों की मार झेलती विवश नारी । इस आधुनिक कहलाने वाले माडर्न समाज में अमानुषिक व्‍यवहार को सहती विधवा है तो कहीं बाप की हवस का शिकार हुई मज़बूर बेटी । कहीं ब्राह्मणों के शोषण का शिकार हुई चमारिनें हैं तो कहीं सभ्रांत पुरुषों के शौक पूरा करने वाली कालगर्ल । कोश में संकलित कहानियों को पढ़ कर पता चलता है जहां आदर्श पतिव्रता अपने घर - परिवार पर मर मिटती हैं तो वही आधुनिक कहलाने वाली यह नारी संबंधों में आने वाली उदासीनता के कारण कालगर्ल बन जाती है। ‘टूटी हुई डार' (गुरबचन सिंह) कहानी में जहां पारिवारिक विवशता के कारण उसे मज़दूरिन से वेश्‍यावृत्ति के धंधे में लगा दिया जाता है तो जया जादवानी की ‘बाज़ार' में नारी को हुस्‍न के बाज़ार की ऐसी वस्‍तु के रूप में सजा दिया जाता है जिसकी खरीदफरोख्‍़त करने के लिए संभ्रांत पुरुष भी लालायित रहते हैं । प्रस्‍तुत कोश में कोशकारा ने ऐसी कहानियों को भी स्‍थान दिया है जिनमें आधुनिक नारी इस समाज में उसके साथ होने वाले शोषण के प्रति परचम लहराती हुई नारी चेतना की उद्‌घोषण करती है । इन कहानियों की नायिकाएं उन्‍मुक्‍त जीवन को महत्‍व देती हैं, कामकाजी होने के कारण संबंधों की अपनी परिभाषा गढ़ती हुई नये धरातल कायम करती हैं । विधवा भी अपने बदले हुए रूप में सधवा के समान सम्‍मान प्राप्‍त करती है । प्राचीन रूढ़ियों को तोड़कर नारी अपने अधिकारों का हनन नहीं होने देती ।

इस कोश में लेखिका ने ऐसी कहानियों को भी स्‍थान दिया है जिनमें महानगरीय जीवन - बिडंबना तथा शुष्‍क और संवेदनाशून्‍य मानवीय संबंधों का यथार्थाकंन है । महानगरों का छद्म, वाहनों की भरमार तथा एक दूसरे को सीढ़ी बनाकर आगे निकलने की इस दौड़ में भागता व्‍यक्‍ति छटपटाता सा प्रतीत होता है ।

इस कोश की कुछ कहानियां चरमराती हुई राजनैतिक व्‍यवस्‍था पर भी प्रकाश डालती हैं । भ्रष्‍ट राजनीति, पथभ्रष्‍ट राजनेता, सत्ता की लालसा, नेतागणों का शोषण, राजनीति की आड़ में षडयंत्र और षडयंत्र की आड़ में राजनीति भ्रष्‍ट सरकार का पर्दाफाश करती है यही नहीं राजनैतिक हथकंडों को अपनाने के लिए रैली का आयोजन और रैली में भाड़े के लोगों पर होने वाले अत्‍याचारों का वर्णन भी मिलता है जिन्‍हें पढ़कर पाठक इन राजनीतिज्ञों से सचेत रहने की प्रेरणा लेता है । कोश की प्रविष्‍टि में उदय प्रकाश की ‘वारेन हेिस्‍ंटग्‍ज़ का सांड' के द्वारा पाठक को यह प्रेरणा दी है कि यदि विदेशी हमारी राजनीति या संस्‍कृति में छाने का प्रयास करते हैं तो हमें सांड के समान विरोध कर परिस्‍थितियाँ अपने अनुकूल बनानी हैं ।

लेखिका ने कोश में ऐसी महत्त्वपूर्ण कहानियों को भी संकलित किया है जिनमें मन की विभिन्‍न अवस्‍थाओं का मनोविश्‍लेषण हुआ है । इस कोश में बचपन से युवा होने वाले युवकों की यात्रा के विभिन्‍न पड़ाव हैं, वृद्धों के अकेलेपन की पीड़ा है, तलाकशुदा तथा अविवाहित प्रौढ़ का अकेलापन है, विकलांग का दर्द और अपराध बोध की कुंठा से जूझते व्‍यक्‍ति का चित्रण है जो पाठक को बरबस सोचने के लिए विवश करती हैं । नामिता सिंह की ‘बदली तुम हो, साहिया' में मानसिक तनाव को झेलती आलोका की छटपटाहट की धड़कन के पाठक स्‍पष्‍टता से अनुभव कर सकता है ।

जीवन और यथार्थ के हर पक्ष को उद्‌घाटित करने वाली कोश की यह कहानियां यह बताने का प्रयास करती हैं कि हर चमकती हुई चीज़ सोना नहीं होती। इसमें फिल्‍मी दुनिया का सच भी है और चोरों की झूठ भी । मैडिकल सांइस की प्रगति और मानवीय सोच का पिछड़ापन, अंधविश्‍वासों और काले जादू के जाल में फंसा मानव कसमसाता हुआ प्रतीत होता है । दलित चेतना, विदेशियों के साथ भारतीयों का दुर्व्‍यवहार, अमेरिका में जन्‍मे भारतीय बच्‍चों की समस्‍याएं, पुरुष का पुरुष पर शोषण आदि कहानियां भी इस कोश की अहम्‌ प्रविष्‍टियां हैं । पाठक के मानसिक तनाव को कम करने के लिए व्‍यंग्‍यप्रधान कहानियां भी इस कोश में स्‍थान पा सकी हैं। व्‍यंग्‍य के माध्‍यम से - संस्‍कारों, कर्मकाण्‍डों, प्रशासन तंत्र का खोखलापन, संकुचित जातीयता का खोखलापन, छद्म फ्रीडम फाइटर के सामाजिक छल को सार्वजनिक कर समाज को सचेत करने का प्रयास है ।

इस प्रकार इस कहानी-कोश में भारतीय एवं भारतीय मूल के प्रवासी लेखकों, स्‍वतंत्र लेखक, नौकरीपेशा, ग्रामीण-शहरी लेखक, पुरुष एवं नारी लेखकों की वे कहानियां संकलित हैं जो जीवन के सभी पक्षों पर प्रकाश डालती हैं । अतः कहानियों का यह विस्‍तृत फलक कोश लेखिका का विषय संबंधी ज्ञान तथा कहानियों के प्रति उनकी जागरूकता को स्‍पष्‍ट करता है । कोशकारा के विचारों की प्रौढ़ता, भाषा-शैली की गम्‍भीरता और विषयों की स्‍वीकार्यता पाठकों में नवीन आशाओं का सृजन करती है । लेखिका द्वारा प्रत्‍येक प्रविष्‍टि के बाद दिया गया कहानी का कथ्‍य पाठकों की जिज्ञासा को बढ़ाकर उन्‍हें पढ़ने के लिए प्रेरित करता है । अतः यह कहा जा सकता है कि प्रस्‍तुत ‘हिन्‍दी कहानी कोश' कोश लेखिका की गवेषणात्‍मक एवं विश्‍लेषणात्‍मक प्रतिभा की महत्‍वपूर्ण परिणति बनकर उभरा है।

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डॉ. सुनीता शर्मा, प्रवक्‍ता, हिन्‍दी विभाग, गुरु नानक देव विश्‍वविद्यालय, अमृतसर 143005,पंजाब, भारत।

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रचनाकार: सुनीता शर्मा की पुस्तक समीक्षा : हिंदी कहानी कोश
सुनीता शर्मा की पुस्तक समीक्षा : हिंदी कहानी कोश
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