रावेंद्रकुमार रवि नन्हे चूजे़ की दोस्त एक बिल्ली थी । मोटी-मोटी, गोल-मटोल, भूरे रंग की, चमकीली आँखोंवाली । काली-काली पँूछ थी उसकी और सफ़े...
रावेंद्रकुमार रवि
नन्हे चूजे़ की दोस्त
एक बिल्ली थी । मोटी-मोटी, गोल-मटोल, भूरे रंग की, चमकीली आँखोंवाली । काली-काली पँूछ थी उसकी और सफ़ेद-सफ़ेद मँूछ । देखने में वह बहुत अच्छी लगती थी !वह रोज सुबह नाश्ता करने के लिए अपने घर से निकल पड़ती । चूहे, खरगोश तथा नन्ही चिड़ियाओं को ढूँढा करती । मेंढक और गिलहरी भी वह खा लेती ।
एक दिन वह नाश्ते की खोज में घूम रही थी । उसने देखा, एक नन्हा-मुन्ना, बिलकुल नरम रुइर् के गोले-जैसा चूज़ा अकेला ख्ोल रहा है ।
उसके मुँह में पानी आ गया । वह उसे पकड़ने के लिए उसकी ओर बढ़ने लगी ।
जब वह उसके पास पहुँची, तो चूज़े ने भी उसे देख लिया । लेकिन चूज़ा उसे देखकर ज़रा-सा भी नहीं डरा । वह तो भोला-भाला बच्चा था । उसको नहीं पता था कि बिल्ली उसकी दुश्मन है !
उसने पहली बार बिल्ली को देखा था । वह उसे बहुत अच्छी लगी ! इसलिए उसे देखते ही वह किलकने लगा । चूँ-चूँ-चूँ-चूँ करके उसके आगे-पीछे दौड़ने लगा । ठुमक-ठुमककर उसके साथ ख्ोलने लगा । वह कभी बिल्ली की पूँछ पकड़ने की कोशिश करता और कभी उसकी मूँछ ।
बिल्ली को उसकी भोली-भाली शरारतें बहुत बढ़िया लगीं । उसका मन चूज़े पर रीझ गया । वह भी म्याऊँ-म्याऊँ करके उसके साथ नाचने लगी ।
चूज़ा बिल्ली के साथ ख्ोलने में मस्त हो गया । तभी चूज़े की माँ वहाँ आइर् । वह अपने बच्चे को ख़्ातरनाक बिल्ली के साथ ख्ोलते देख बुरी तरह डर गइर् और चिल्ला-चिल्लाकर अपने मुर्गे को बुलाने लगी ।
जब चूज़े ने अपनी माँ की आवाज़ सुनी, तो वह दौड़ा-दौड़ा उसके पास आया और उसकी चोंच के आगे फुदकता हुआ बोला - ‘‘माँ-माँ ! म्याऊँ !'' और जब तक मुर्गी उसे रोकती, वह फिर दौड़कर बिल्ली के पास चला गया ।
मुर्गी ने समझा, अब यह बिल्ली उसके बच्चे को खा जाएगी । वह रोने लगी ।
बिल्ली को उस पर बड़ी दया आइर् । वह उसकी ओर बढ़ी । चूज़ा झट से उसकी पीठ पर बैठ गया । मुर्गी और भी अधिक डर गइर् । वह भागने लगी ।
तब बिल्ली बहुत प्यार से बोली - ‘‘नहीं-नहीं बहन ! रोओ मत । तुम बिलकुल भी मत डरो । मैं तुम्हारे बच्चे को नहीं मारूँगी । मुझे तो उससे प्यार हो गया है।''
चूज़ा कूदकर माँ के पास आ गया । मुर्गी उसे चूमने लगी !
बिल्ली को यह देखकर बहुत अच्छा लगा !
;;
-------------
कविता
जाओ बीते वर्ष
जाओ बीते वर्ष,तुम्हारी बहुत याद तड़पाएगी !
जो भी सपने देख्ो हमने
किए तुम्हीं ने पूरे ।
बहुत प्रयास किए लेकिन
अब तक कुछ रहे अधूरे ।
माना नए वर्ष में ये
सपने पूरे हो जाएँगे ।
और हमारी आशाओं के
नए पंख लग जाएँगे ।
किंतु किसी टूटे सपने की
फिर भी याद सताएगी !
जाओ बीते वर्ष,
तुम्हारी बहुत याद तड़पाएगी !
अगर बिछुड़ते हैं कुछ तो
कुछ नए मीत भी मिलते हैं ।
जिनके साथ बैठकर हम
सुख-दुख की बातें करते हैं ।
माना नए मिले साथी भी
मन को भा ही जाएँगे ।
उनके साथ ख्ोल-पढ़ लेंगे
संग-संग मुस्काएँगे ।
किंतु किसी बिछुड़े साथी की
फिर भी याद रुलाएगी !
जाओ बीते वर्ष,
तुम्हारी बहुत याद तड़पाएगी !
-----
लघुकथा
( 1 ) हैप्पी न्यू इयर
इकत्तीस दिसंबर, दो हज़ार छः। हल्द्वानी से बरेली जा रही बस में भीड़ लगातार बढ़ाइर् जा रही थी। मैं अपनी पत्नी के साथ ड्राइवर के ठीक पीछेवाली सीट पर बीच में बैठा था। बोनट, ड्राइवर की सीट और हमारी सीट के बीच की जगह सामान से खचाखच भरी थी। बोनट पर ‘रोल' किया गया किसी का गद्दा रखा था। मैंने अपने पैर ड्राइवर की सीट के पिछले हिस्से से टिका रख्ो थ्ो। पैरों के नीचे एक के ऊपर एक हमारे दो बैग तथा खिड़की के पास हमारी ही सीट पर बैठे एक अन्य यात्री का सूटकेस रखा था।कंध्ो पर काले रंग का छोटा बैग डाले एक नवयुवक लालकुआँ से बस में चढ़ा। उसके हाथों में अनखिले फूलों से लदी ‘ग्लेडियोलस' की लंबी-लंबी जड़कटी टहनियों का बंडल थमा था। उसने इधर-उधर देखा। उसे बंडल रखने के लिए मेरे पैरों के नीचेवाली जगह पसंद आ गइर्। उसने मुझसे कहा - ‘‘सर ! बंडल का निचला हिस्सा बहुत ‘हार्ड' है। इस पर आप पैर रख सकते हैं। ऊपरी हिस्सा ‘साॅफ्ट' है। इसे ज़रा बचाकर रखिएगा।''
मैं उसका विनम्र अनुरोध टाल न सका। उसकी चिंता दूर हो गइर्। वह इत्मीनान से गद्दे पर बैठ गया और सामने भरी भ्ोड़-बकरियों को निहारने लगा। मेरी पत्नी के चेहरे पर नज़र पड़ते ही उसकी आँखों की चमक कुछ बढ़ गइर्, जो मुझे कुछ अच्छी नहीं लगी।
तभी ‘बाड़ा' फिर रोक दिया गया। उसके अंदर भरी सारी भ्ोड़-बकरियों ने एक साथ कान खड़े करके मिमियाते हुए दरवाज़े की ओर देखा। एक बकरी अपने दो मेमनों के साथ बाड़े में चढ़ रही थी। उसके चढ़ते ही बाड़ा चला दिया गया। नइर् बकरी ने इधर-उधर देखा। उसकी नज़र गद्दे पर पड़ी। वह कुछ कहती, उससे पहले ही नवयुवक खड़ा हो गया। बकरी अपने मेमनों के साथ गद्दे पर विराजमान हो गइर्।
जिस तरह से मैं नवयुवक के ग्लेडियोलस के बंडल के साॅफ्ट हिस्से की ‘केयर' कर रहा था, उससे उसे मुझ पर भरोसा हो गया था।
‘‘सर ! इसमें ‘रोज़' हैं।'' - यह कहते हुए उसने कंध्ो पर लटका बैग भी मेरी ओर बढ़ा दिया। ‘रोज़' मेरे हवाले करने के बाद उसने मिमियाते हुए इधर-उधर दौड़कर जगह बनाने की कोशिश की और कंडक्टर के सामने लगे लोहे के पाइप पर चढ़ गया। वह बैठ पाता, उससे पहले ही कंडक्टर ने उसे हाँक दिया।
कुछ ही देर में मेमनोंवाली बकरी का गाँव आ गया। वह उतरी और फुर्ती दिखाते हुए नवयुवक फिर से गद्दे पर आसीन हो गया। भोजीपुरा आने तक अधिकांश भ्ोड़-बकरियाँ उतर चुकी थीं। वह नवयुवक भी एक सीट पर बैठकर सो चुका था। बरेली स्टैंड पर बस रुकते ही मैंने उसके ‘ग्लेडियोलस' और ‘रोज़' उसके हवाले कर दिए। वह ‘थ्ौंक्यू' कहता हुआ नीचे उतर गया। मुझे बहुत अफ़सोस हुआ। एक भी ‘रोज़' मैं उसके बैग में से निकालने की हिम्मत नहीं कर पाया था। हम भी बस से उतर गए। मेरी आँख्ों रिक्शावाले को तलाशने लगीं।
मेरी पत्नी काफी थकी-थकी लग रही थी। अचानक वही नवयुवक दौड़ता हुआ आया। उसके आगे खड़ा होकर थोड़ा-सा झुका, धीरे-से मुस्कुराया और पीछे से आगे लाकर उसने अपना दायाँ हाथ ऊपर उठाया। हाथ को उसके और अपने दिल के बीच रोककर वह बोला - ‘‘हैप्पी न्यू इअर !''
उसके हाथ में एक महकता हुआ ‘रेड रोज़' मुस्कुरा रहा था। अभी तक मुरझाइर्-सी खड़ी मेरी पत्नी का चेहरा ‘रोजे़ज़' से सज गया। उसने एक ऐसी अभिनव मुस्कान के साथ मेरी ओर देखा, जिसने मेरे हृदय में न जाने कितने महकते हुए ‘रोज़' खिला दिए। मेरी आँखों में मुस्कुराते हुए ‘रोज़' से मधुर संकेत पाकर उसका हाथ उसके हाथ से ‘रोज़' लेने के लिए बढ़ने लगा।
----
लघुकथा
( 2 ) हमें नहीं पसंद है
‘‘भइ, हमें आपकी बेटी पसंद है । आप अपनी बेटी से पूछ लीजिए कि उसे भी हमारा बेटा पसंद है या नहीं !''लड़के के पिता ने जब यह कहा, तो ‘उनकी' बेटी ने लजाकर नजरें झुका लीं ।
यह देखकर लड़के की माँ बोलीं - ‘‘ठीक है ! अब हम सगाइर् की रस्म पूरी करके ही जाएँगे । अगले महीने की कोइर् तारीख़्ा शादी के लिए भी निश्चित कर लेंगे ... ... ... बेटी ! अपना हाथ आगे बढ़ाओ ... ... ... लो बेटा ! यह अँगूठी बहू की उँगली में पहना दो ... ... ... ''
‘‘लेकिन ... ... ... '' - उन्होंने तुरंत उनको रोक दिया ।
‘‘अरे भइ, पहनाने दीजिए !'' - लड़के के पिता ने अनुरोध किया ।
लेकिन वे बोले - ‘‘देखिए भाइर् साहब ! हमारी एक ही लड़की है । पहले सारी बातें तो तय कर लीजिए । बाद में सगाइर् भी हो जाएगी और शादी भी ।''
‘‘क्या मतलब ?''
‘‘यही कि आप लोगों की माँग क्या है ? वह भी पहले ही बता दें, तो ज्यादा अच्छा रहेगा ।''
यह सुनकर लड़के के पिता हँसने लगे । बोले - ‘‘भगवान का दिया सब कुछ है हमारे पास । हमें तो बस आपकी बेटी चाहिए । हमारी कोइर् माँग नहीं है और न ही हम कुछ लेंगे ... ... ... बेटा ! तुम अँगूठी पहनाओ ।''
‘‘लेकिन फिर भी, हमें कुछ सोचने का मौका तो दीजिए ।'' - यह कहकर उन्होंने लड़के को फिर रोक दिया ।
‘‘ठीक है भइ, सोच-समझकर ही बताइएगा ।'' - बाहर की ओर साँस छोड़ते हुए लड़के के पिता ने अपनी पत्नी और बेटे की ओर चलने का इशारा किया ।
लड़की ने बड़ी हसरत-भरी निगाहों से उन्हें जाते हुए देखा ।
उनके जाने के बाद वे अपनी पत्नी से बोले - ‘‘बिना दहेज दिए बेटी की शादी करके बिरादरी में नाक नहीं कटानी हमें ! डाल देना एक पोस्टकार्ड और लिख देना - हमें नहीं पसंद है, उनका बेटा !''
-----
परिचय (विस्तृत) ः रावेंद्र कुमार रवि
नाम ः-- रावेंद्र कुमार रवि
जन्म ः-- 02.05.1966 (बरेली)
श्ौक्षिक योग्यताएँ ः-- 1. एम.एस-सी. (गणित) 2. एल.टी. (विज्ञान)
3. हिंदी में सृजनात्मक लेखन में डिप्लोमा, इग्नू (राष्ट्रपति द्वारा विश्वविद्यालय स्वर्ण पदक से सम्मानित)
सृजन की मुख्य विधाएँ ः-- बालकथा, बालकविता, लघुकथा, नवगीत, समीक्षा
प्रकाशन ः-- 1983 से निरंतर, पहली बालकथा नंदन में और पहली बालकविता अमर उजाला में प्रकाशित,
यूनिसेफ और एकलव्य द्वारा एक-एक चित्रकथा-पुस्तक, नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया द्वारा सृजनात्मक शिक्षा के अंतर्गत गणित की गतिविधि-पुस्तक ‘‘वृत्तों की दुनिया'' और सौ से अधिक जानी-पहचानी
पत्रिकाओं, कुछ संकलनों व पत्रों के साहित्यिक परिशिष्टों में साढ़े तीन सौ से अधिक रचनाएँ प्रकाशित
रुचियाँ ः-- साहित्य-सर्जन, छायांकन, बागवानी, पर्यटन
संप्रति ः-- शिक्षक (विज्ञान/गणित), कंप्यूटर मास्टर ट्रेनर (इंटेल)
पत्र-संपर्क ः-- राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, चारुबेटा, खटीमा, ऊधमसिंहनगर (उत्तराखंड) - 262 308.
स्थायी पता ः-- कमल-कुंज, बड़ी बिसरात रोड, हुसैनपुरा, शाहजहाँपुर (उ�प्र�) - 242 001.
दूरभाष ः-- 098976 14866 व 097600 14866 (मोबाइल), 05842 283276 (घर ः शाहजहाँपुर)
प्रकाशित पुस्तकें ः-- 1. यूनीसेफ, लखनऊ द्वारा 2002 में प्रकाशित चित्रकथा-पुस्तक ‘‘चकमा'' ।
2. एकलव्य, भोपाल द्वारा 2003 में प्रकाशित चित्रकथा-पुस्तक ‘‘नन्हे चूज़े की दोस्त ... ...''।
3. नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया द्वारा 2008 में प्रकाशित गणित की गतिविधि-पुस्तक ‘‘वृत्तों की दुनिया'' ।
अनुवाद ः-- एक-एक कहानी का राजस्थानी, सिंधी व अँगरेजी में ।
पुरस्कार (साहित्य) ः-- 1. स्वर्ण पदक विजेता, हिंदी में सृजनात्मक लेखन में डिप्लोमा, इग्नू-2005
(डाॅ� ए�पी�जे� अब्दुल कलाम, राष्ट्रपति, भारत द्वारा सम्मानित)
पुरस्कार (शिक्षा) ः-- 1. टीचर आॅफ द इयर-2004, उत्तरांचल टेक्नोलाॅजी अवार्ड, विकासखंड विजेता, खटीमा (ऊ�सिं�न�)
2. टीचर आॅफ द इयर-2003, उत्तरांचल टेक्नोलाॅजी अवार्ड, मंडल विजेता, कुमाऊँ
राष्ट्रीय स्तर पर कार्यशाला/संगोष्ठी में प्रतिभाग ः-- लगभग दो दर्जन, जिनमें से प्रमुख हैं -
1. यूनिसेफ/नेशनल बुक ट्रस्ट, नइर् दिल्ली/नालंदा, लखनऊ द्वारा आयोजित लेखन कार्यशाला 2002
(एक चित्रकथा-पुस्तक ‘‘चकमा'' का चयन व यूनिसेफ द्वारा प्रकाशन)
2. केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा द्वारा आयोजित ‘‘विविध भारतीय भाषाओं का बालसाहित्य'' पर सेमिनार व कवि सम्मेलन 2003
(कुमाउँनी व गढ़वाली बालसाहित्य पर आलेख-वाचन व कवि सम्मेलन में बालकविताओं का पाठ)
3. नेशनल बुक ट्रस्ट, नइर् दिल्ली/नालंदा, लखनऊ द्वारा आयोजित गणित लेखन कार्यशाला 2004
(एक पुस्तक ‘‘वृत्तों की दुनिया'' का चयन व नेशनल बुक ट्रस्ट, नइर् दिल्ली द्वारा प्रकाशित)
4. सर्व शिक्षा अभियान, चमोली (उत्तरांचल) के अंतर्गत आयोजित राज्य स्तरीय बालसाहित्य लेखल कार्यशाला जनवरी 2006
(कार्यशाला में तैयार कुछ कहानियाँ व कविताएँ प्रकाशित)
5. नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया द्वारा देहरादून में पुस्तक मेला के अंतर्गत आयोजित बालसाहित्य संगोष्ठी जून 2006
(संगोष्ठी का संयोजन, विषय ः 'समकालीन भारतीय बालसाहित्य के परिदृश्य में उत्तरांचल के बालसाहित्य ः स्थिति, समस्या एवं संभावनाएँ' पर आलेख का वाचन और कवि सम्मेलन में कविताओं का पाठ)
6. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 के आलोक में पाठ्यक्रम विकास कार्यशाला, एस�सी�इर्�आर�टी�, उत्तरांचल, नरेंद्रनगर, जुलाइर् 2006
(कक्षा - एक से पाँच तक के गणित के पाठ्यक्रम के निर्माण में सहयोग)
7. सांस्कृतिक स्रोत व प्रशिक्षण केंद्र, नइर् दिल्ली द्वारा ‘‘प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में स्कूलों की भूमिका'' पर कार्यशाला, सितं. 06
(मुख्य समारोह व उत्तरांचल की सांस्कृतिक प्रस्तुति का संचालन और युवाशक्ति का पलायन ः पहाड़ से मैदान की ओर विषय पर प्रोजेक्ट प्रस्तुत)
8. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 के आलोक में पाठ्यक्रम पुस्तक लेखन कार्यशाला, एस�सी�इर्�आर�टी�, उत्तरांचल, ग�मं�वि�नि�ऋषिकेश सितं.06 से दिसं.06
(पूर्व कार्यशाला में निर्मित कक्षा - एक से पाँच तक के गणित के पाठ्यक्रम पर आधारित पाठ्यपुस्तकों के लेखन में सहयोग)
9. राज्य विज्ञान महोत्सव 2006 में एस�सी�इर्�आर�टी�, उत्तरांचल की गणित प्रयोगशाला का संचालन, रा�बा�इ�काॅ�, पंतनगर, 14 से 17 नवंबर 2006
उन पत्र-पत्रिकाओं की सूची, जिनमें रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं
पत्रिकाएँ ः-- नंदन, पराग, बालभारती, बालहंस, चकमक, बालवाणी, चंपक, धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, मधुमती, इंद्रप्रस्थ भारती, हिमप्रस्थ, सुमन सौरभ, स्नेह, बच्चों का देश, बालमेला, बालवाटिका, उत्तर प्रदेश, समाज-कल्याण, विज्ञान प्रगति, पाठक मंच बुलेटिन (नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया), देवपुत्र, अनुराग, हँसती दुनिया, प्रेरणा अंशु, अछूते संदर्भ, वीणा, अणुव्रत, बालमितान, बच्चे और आप, बालसाहित्य समीक्षा, रत्नलाल शर्मा न्यास की स्मारिका, विद्यामेघ, लोटपोट, लल्लू जगधर, मधु मुस्कान, सरिता, मुक्ता, सरस सलिल, गरिमा भारती, हिमालिनी, प्रगति निर्माण, प्रिय संपादक, सानुबंध, गरिमा भारती, जाह्नवी, नारायण्ीयम्, लोकगंगा, पंखुड़ी, कुछ कविता व कहानी संकलन, स्पजजसम ळंपदजए बाग बहार (गुजराती) इत्यादि ।
पत्र ः-- भास्कर (भोपाल), अमर उजाला (बरेली, मेरठ), चौथी दुनिया (दिल्ली), हिंदुस्तान (दिल्ली, लखनऊ), जनसत्ता (दिल्ली), नवभारत टाइम्स (दिल्ली), देशबंधु (रायपुर), जागरण (बरेली, कानपुर), पुनर्नवा-जागरण (कानपुर), राजस्थान पत्रिका (जयपुर), नइर् दुनिया (इंदौर), पायनियर (लखनऊ), स्वतंत्र भारत (लखनऊ), ट्रिब्यून (चंडीगढ़), अमृत प्रभात (लखनऊ), सहारा समय (लखनऊ), पंजाब केसरी (जालंधर), स्पूतनिक (लखनऊ) आज (वाराणसी), नव सत्यम् (बरेली), एक झलक (शाहजहाँपुर), इत्यादि ।
(रावेंद्र कुमार रवि)
परिचय ः रावेंद्र कुमार रवि
नाम ः
रावेंद्र कुमार रवि
जन्म ः
02 मइर् 1966 को बरेली में
शिक्षा ः
1- एम� एस-सी� (गणित)
2- एल� टी� (विज्ञान)
3- हिंदी में सृजनात्मक लेखन में डिप्लोमा
लेखन की मुख्य विधाएँ ः
बालकथा, बालकविता, लघुकथा, नवगीत, समीक्षा
कृतित्व ः
1983 से निरंतर लेखन एवं रचनाओं का प्रकाशन । पहली बालकहानी नंदन में और पहली बालकविता अमर उजाला में प्रकाशित । यूनिसेफ और एकलव्य द्वारा एक-एक चित्रकथा-पुस्तक, नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया द्वारा सृजनात्मक शिक्षा के अंतर्गत गणित की गतिविधि-पुस्तक ‘‘वृत्तों की दुनिया'' और सौ से अधिक जानी-पहचानी पत्रिकाओं, कुछ संकलनों व पत्रों के साहित्यिक परिशिष्टों में साढ़े तीन सौ से अधिक रचनाएँ प्रकाशित । एक-एक कहानी का राजस्थानी, सिंधी व अँगरेज़ी में अनुवाद ।
पुरस्कार-सम्मान ः
हिंदी में सृजनात्मक लेखन के लिए सर्वोच्च स्थान पाने पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की ओर से राष्ट्रपति ए� पी� जे� अब्दुल कलाम द्वारा विश्वविद्यालय स्वर्ण पदक से विभूषित ।
संप्रति ः
शिक्षक (विज्ञान/गणित) ।
पता ः
राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, चारुबेटा, खटीमा, ऊधमसिंहनगर (उत्तराखंड) - 262 308.
ईमेल raavendra.ravi@gmail.com
(रावेंद्र कुमार रवि)
nice work ..
जवाब देंहटाएंरेलवे ट्रैक का माडल
क्यूँ नहीं जलता है बल्ब का फिलामेंट
kya baat hai ravender ji bahut bahut badhai aapki itni unchi udaan ke liye
जवाब देंहटाएंhamen bhi batayen kuch nuskhe unchi udaan ke
dijiye prakashan ki nai urja
abhaar