छठि मईया आई न दुअरिया आकांक्षा यादव भारतीय संस्कृति में त्यौहार सिर्फ औपचारिक अनुष्ठान मात्र भर नहीं हैं , बल्कि जीवन का एक अभिन्...
छठि मईया आई न दुअरिया
आकांक्षा यादव
भारतीय संस्कृति में त्यौहार सिर्फ औपचारिक अनुष्ठान मात्र भर नहीं हैं, बल्कि जीवन का एक अभिन्न अंग हैं। त्यौहार जहाँ मानवीय जीवन में उमंग लाते हैं वहीं पर्यावरण संबंधी तमाम मुद्दों के प्रति भी किसी न किसी रूप में जागरूक करते हैं। सूर्य देवता के प्रकाश से सारा विश्व ऊर्जावान है और इनकी पूजा जनमानस को भी क्रियाशील, उर्जावान और जीवंत बनाती है। भारतीय संस्कृति में दीपावली के बाद कार्तिक माह के दूसरे पखवाड़े में पड़ने वाला छठ पर्व मूलतः भगवान सूर्य को समर्पित है। यह त्यौहार इस अवसर पर प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य नारायण की पूजा की जाती है। आदित्य हृदय स्तोत्र से स्तुति करते हैं, जिसमें बताया गया है कि ये ही भगवान सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरूण हैं तथा पितर आदि भी ये ही हैं।
छठ पर्व की लोकप्रियता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि यह पूरे चार दिन तक जोश-खरोश के साथ निरंतर चलता है। पर्व के प्रारम्भिक चरण में प्रथम दिन व्रती स्नान कर के सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं, जिसे ‘नहाय खाय‘ कहा जाता है। वस्तुतः यह व्रत की तैयारी के लिए शरीर और मन के शुिद्धकरण की प्रक्रिया होती है। सुबह सूर्य को जल देने के बाद ही कुछ खाया जाता है। लौकी की सब्जी और चने की दाल पारम्परिक भोजन के रूप में प्रसिद्ध है। दूसरे दिन सरना या लोहण्डा व्रत होता है, जिसमें दिन भर निर्जला व्रत रखकर शाम को खीर रोटी और फल लिया जाता है। इस दिन नमक का प्रयोग तक वर्जित होता है। तीसरा दिन छठ पर्व में सबसे महत्वपूर्ण होता है। संध्या अर्घ्य में भोर का शुक्र तारा दिखने के पहले ही निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। दिन भर महिलाएँ घरों में ठेकुआ, पूड़ी और खजूर से पकवान बनाती हैं। इस दौरान पुरूष घाटों की सजावट आदि में जुटते हैं। सूर्यास्त से दो घंटे पूर्व लोग सपरिवार घाट पर जमा हो जाते हैं। छठ पूजा के पारम्परिक गीत गाए जाते हैं और बच्चे आतिशबाजी छुड़ाते हैं। सूर्यदेव जब अस्ताचल की ओर जाते हैं तो महिलायें पानी में खड़े होकर अर्घ्य देती हैं। अर्घ्य देने के लिए सिरकी के सूप या बाँस की डलिया में पकवान, मिठाइयाँ, मौसमी फल, कच्ची हल्दी, सिंघाड़ा, सूथनी, गन्ना, नारियल इत्यादि रखकर सूर्यदेव को अर्पित किया जाता है- ऊँ ह्रीं षष्ठी देव्यै स्वाहा। इसके बाद महिलाएँ घर आकर 5 अथवा 7 गन्ना खड़ा करके उसके पास 13 दीपक जलाती हैं। इसे कोसी भरना कहते हैं। निर्जला व्रत जारी रहता है और रात भर घाट पर भजन-कीर्तन चलता है। छठ पर्व के अन्तिम एवं चौथे दिन सूर्योदय अर्घ्य एवं पारण में सूर्योदय के दो घंटे पहले से ही घाटों पर पूजन आरम्भ हो जाता है। सूर्य की प्रथम लालिमा दिखते ही सूर्यदेव को गाय के कच्चे दूध से अर्घ्य दिया जाता है एवं इसके बाद सभी लोग एक दूसरे को बधाई देते हैं। प्रसाद लेने के व्रती लोग व्रत का पारण करते हैं।
मूलतः बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के भोजपुरी समाज का पर्व माना जाने वाला छठ अपनी लोक रंजकता के चलते न सिर्फ भारत के तमाम प्रान्तों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है बल्कि मारीशस, नेपाल, त्रिनिडाड, सूरीनाम, दक्षिण अफ्रीका, हालैण्ड, ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में भी भारतीय मूल के लोगों द्वारा अपनी छाप छोड़ रहा है। कहते हैं कि यह पूरी दुनिया में मनाया जाने वाला अकेला ऐसा लोक पर्व है जिसमें उगते सूर्य के साथ डूबते सूर्य की भी विधिवत आराधना की जाती है। यही नहीं इस पर्व में न तो कोई पुरोहिती होती है और न कोई आडम्बर युक्त कर्मकाण्ड। छठ पर्व मूलतः महिलाओं का माना जाता है, जिन्हें पारम्परिक शब्दावली में ‘परबैतिन‘ कहा जाता है। पर छठ व्रत स्त्री-पुरूष दोनों ही रख सकते हैं। इस पर्व पर जब सब महिलाएं इकट्ठा होती हैं तो बरबस ही ये गीत गूँज उठते हैं- केलवा के पात पर उगेलन सूरज मल या छठि मईया आई न दुअरिया।
भारतीय संस्कृति में समाहित पर्व अन्ततः प्रकृति और मानव के बीच तादात्म्य स्थापित करते हैं। जब छठ पर्व पर महिलाएँ गाती हैं- कौने कोखी लिहले जनम हे सूरज देव या मांगी ला हम वरदान हे गंगा मईया....... तो प्रकृति से लगाव खुलकर सामने आता है। इस दौरान लोक सहकार और मेल का जो अद्भुत नजारा देखने को मिलता है, वह पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों को भी कल्याणकारी भावना के तहत आगे बढ़ाता है। यह अनायास ही नहीं है कि छठ के दौरान बनने वाले प्रसाद हेतु मशीनों का प्रयोग वर्जित है और प्रसाद बनाने हेतु आम की सूखी लकड़ियों को जलावन रूप में प्रयोग किया जाता है, न कि कोयला या गैस का चूल्हा। वस्तुतः छठ पर्व सूर्य की ऊर्जा की महत्ता के साथ-साथ जल और जीवन के संवेदनशील रिश्ते को भी संजोता है।
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जीवन-वृत्त
नाम ः आकांक्षा यादव
जन्म ः 30 जुलाई 1982, सैदपुर, गाजीपुर (उ0 प्र0)
शिक्षा ः एम0 ए0 (संस्कृत)
विधा ः कविता, लेख व लघु कथा
प्रकाशन ः देश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं मसलन - साहित्य अमृत, कादम्बिनी, युगतेवर, अहा जिन्दगी, इण्डिया न्यूज, रायसिना, दैनिक जागरण, राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला, गोलकोेण्डा दर्पण, युद्धरत आम आदमी, अरावली उद्घोष, प्रगतिशील आकल्प, शोध दिशा, सामान्यजन संदेश, समाज प्रवाह, राष्ट्रधर्म, सेवा चेतना, समकालीन अभिव्यक्ति, सरस्वती सुमन, शब्द, लोक गंगा, कल्पान्त, नवोदित स्वर, आकंठ, प्रयास, गृहलक्ष्मी, गृहशोभा, मेरी संगिनी, वुमेन अॉन टॉप, बाल साहित्य समीक्षा, वात्सल्य जगत, जगमग दीप ज्योति, प्रज्ञा, पंखुड़ी, कथाचक्र, नारायणीयम्, मयूराक्षी, मैसूर हिन्दी प्रचार परिषद पत्रिका, हिन्दी प्रचार वाणी, गुर्जर राष्ट्रवीणा इत्यादि सहित 100 से ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन। लगभग एक दर्जन प्रतिष्ठित काव्य संकलनों में कविताओं का प्रकाशन।
सम्पादन ः ''क्रान्ति यज्ञ ः 1857-1947 की गाथा'' पुस्तक में सम्पादन सहयोग।
वेब पेज ः http://www.poetrypoem.com/akanksha
http://www.writebay.com/akanksha
http://www.poetryvista.com/akanksha
सम्मान ः साहित्य गौरव (2006) - इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर, उ0प्र0
साहित्य श्री (2006) - श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्य संस्थान, कानपुर
भारती ज्योति (2007) - राष्ट्रीय राजभाषा पीठ, इलाहाबाद
साहित्य मनीषी सम्मान (2007)- मध्य प्रदेश नवलेखन संघ, भोपाल
साहित्य सेवा सम्मान (2007)- छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच
काव्य मर्मज्ञ (2007)- इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर, उ0प्र0
देवभूमि साहित्य रत्न (2008)- देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़़, उत्तरांचल
भारत गौरव (2007)- ऋचा रचनाकार परिषद, कटनी, म0प्र0
वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान (2007)-भारतीय दलित साहित्य अकादमी,नई दिल्ली
शब्द माधुरी (2008)- ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद, ग्वालियर
ब्रज-शिरोमणि (2008)- आसरा समिति, मथुरा
‘‘एस0एम0एस0‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा नकद पुरस्कार।
विश्ोष ः दिल्ली से प्रकाशित नारी सरोकारों को समर्पित पत्रिका ‘‘वुमेन अॉन टॉप‘‘ द्वारा देश की 13 अग्रणी नारियों में स्थान।
अभिरूचियाँ ः रचनात्मक अध्ययन व लेखन। नारी विमर्श, बाल विमर्श एवं सामाजिक समस्याओं सम्बन्धी विषय में विश्ोष रूचि ।
सम्प्रति ः प्रवक्ता, राजकीय बालिका इण्टर कॉलेज, नरवल, कानपुर (उ0प्र0)-209401
सम्पर्क ः आकांक्षा यादव पत्नी- श्री कृष्ण कुमार यादव, भारतीय डाक सेवा, वरिष्ठ डाक अधीक्षक, कानपुर मण्डल, कानपुर-208001 ई-मेलः kk_akanksha@yahoo.com
साहित्यकार के रूप में एक साहित्यकार के रूप में आकांक्षा यादव ने बहुत ही खुले नजरिये से संवेदना के मानवीय धरातल पर जाकर अपनी रचनाओं का विस्तार किया है। बिना लाग लपेट के सुलभ भाव भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें यही आपकी लेखनी की शक्ति है। आपकी रचनाओं में जहाँ जीवंतता है, वहीं उसे सामाजिक संस्कार भी दिया है। निश्चिततः, आकांक्षा जी ने अपने मनोभावों को जो शब्दाभिव्यक्ति दी है, वह अविलक्षण है और अन्तर्मन से विशु़द्ध साहित्यिक है। समकालीन साहित्यकारों की रचनाओं पर दुर्बोधता के कारण उनकी ग्रहणीयता या आस्वादकता पर जो प्रश्नचिन्ह लगाया जाता है, वह आकांक्षा जी की रचनाओं में नहीं है।
आकांक्षा यादव प्रवक्ता, राजकीय बालिका इण्टर कॉलेज
नरवल, कानपुर नगर-209401
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