नमस्कार प्यारे बच्चों , आपके लिए हमने एक अति लघु प्रयास किया है " हितोपदेश " की कुछ कहानियोँ को अत्यन्त सहज -सरल भाषा में कथ...
नमस्कार प्यारे बच्चों ,
आपके लिए हमने एक अति लघु प्रयास किया है " हितोपदेश " की
कुछ कहानियोँ को अत्यन्त सहज -सरल भाषा में कथा-काव्य शैली में
लिखने का. यह कहानियाँ शायद आपने पहले भी पढी-सुनी होँगी
काव्य-कथा के रूप मे पढ़ कर आपको कैसा लगा, बताना जरूर
आपके अच्छे सुझावोँ का भी इन्तजार रहेगा तो यह सुनो पहली कहानी...........
1 साधु और चूहा
इक जञ्गल में था इक साधु
जानता था वह पूरा जादू
करता रहता प्रभु की भक्ति
आ गई उसमें अदभुत शक्ति
इक दिन उसने लगाई समाधि
गिरा एक चूहा आ गोदी
साधु को आई बहुत दया
चूहे को उसने पाल लिया
पर इक दिन इक बिल्ली आई
देख के चूहे को ललचाई
चूहा तो मन में गया डर
साधु का हृदय गया भर
उसने अपना जादू चलाया
और चूहे को बिल्ली बनाया
ता कि बिल्ली न खा पाए
और चूहा आजाद हो जाए
कुछ समय तो सुख से बिताया
इक दिन वहाँ पे कुत्ता आया
बिल्ली के पीछे वह भागा
फिर साधु का जादू जागा
बिल्ली से कुत्ता बन जाओ
और कुत्तों से न घबराओ
खुश था चूहा कुत्ता बनकर
घूमे वह जञ्गल में जाकर
फिर इक दिन इक चीता आया
कुत्ते को उसने खूब भगाया
भागा कुत्ता साधु के पास
बोला मेरा करो विश्वास
खा जाएगा मुझको चीता
फिर कैसे मैं रहूँगा जीता
साधु को आ गया रहम
बोला !न पालो यह वहम
जाओ तुम चीता बन जाओ
सुख से अपना जीवन बिताओ
कुत्ते से चीता बन गया
नव-जीवन उसको मिल गया
भले ही वो बन गया था चीता
पर दिल तो चूहे का ही था
चूहे से बढ़ कर नहीं कुछ अच्छा
यह साधु नहीं बिल्कुल सच्चा
लोगों की बातों में आया
चूहे को चीता क्योँ बनाया
सोचे ! मेरी खोई पहचान
माना न साधु का अहसान
गुस्से से गया वह भर
झपट पड़ा वह साधु पर
साधु को अब हुआ अहसास
नहीं करो किसी पर विश्वास
फिर से उसको चूहा बनाया
और फिर उसको यह समझाया
दुष्ट नहीं बदले स्वभाव
अच्छों को देगा वह घाव
बातें करना लोगोँ का काम
केवल बिगड़े अपना दाम
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बच्चों तुम भी रखना ध्यान
बडोँ का न करना अपमान
लोगोँ की बातोँ मे न आना
अपनी समझदारी अपनाना
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2.दुष्ट आदमी
एक कौआ और एक थी बुलबुल
घर था उनका प्यारा जंगल
बुलबुल बड़ी नरम दिल वाली
बैठी रहती वृक्ष की डाली
बड़ा चतुर था पर वह कौआ
इधर-उधर उड़ता था भैया
इक दिन एक शिकारी आया
देखी पेड़ की गहरी छाया
गया था गर्मी में थक-हार
आया मन में एक विचार
क्यों न थोड़ा करे आराम
फिर जाएगा अपने काम
सोच के वह छाया में लेटा
और निद्रा का आ गया झूठा
आ गई उसको निद्रा गहरी
पर छाया न वहाँ पे ठहरी
धूप लगी आने वहाँ पर
पड़ने लगी थी उसके मुख पर
देख रही थी यह सब बुलबुल
पिघल गया बुलबुल का दिल
उसने अपने पंख फैलाए
ताकि वहाँ छाया हो जाए
पर कौआ था बड़ा चालाक
उड़ गया वह वहाँ से तपाक
हो गई जब सब दूर थकावट
ली शिकारी ने तब करवट
जब उसकी आँखें गईं खुल
देखा टहनी पर थी बुलबुल
झट से उठाया तीर-कमान
ले ली उस बुलबुल की जान
गिरी वो अब धरती पर आकर
बैठी थी जो पंख फैलाकर
बच गया था कौआ चालाक
बच्चों, होना नहीं अवाक
दुष्टों पे एतबार न करना
न ही इतने भोले बनना
करनी दुष्ट के संग में भलाई
समझो नई मुसीबत आई
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3.ब्राह्मण और तीन दुष्ट
एक बार था एक ब्राह्मण
मिला उसे इक भेड़ का मेमन
लेकर उसको कंधों पर
जा रहा था वह मार्ग पर
तीन दुष्टों ने उसको देखा
और मिलकर सबने यह सोचा
किसी तरह से ले ले मेमन
बेच के उसको मिलेगा धन
तीनों ने तरकीब लगाई
मिलकर इक योजना बनाई
थोड़ी-थोड़ी दूरी पर
खड़े हो गए मार्ग पर
जब मार्ग पर ब्राह्मण आया
पहले दुष्ट को सामने पाया
हाथ जोड़कर बोला दुष्ट
ब्राह्मण देवता क्यों हो रुष्ट ?
कुत्ते को कंधे पर उठाया
किसने तुमको है भरमाया?
कहने लगा वो सुनकर ब्राह्मण
यह तो है भेड़ों का मेमन
तुमने इसको नहीं पहचाना
इसलिए इसको कुत्ता माना
चल दिया ब्राह्मण यह कह कर
दूसरा दुष्ट था मार्ग पर
आकर ब्राह्मण को बुलाया
हाथ जोड़कर शीश नवाया
बोला कुत्ते को उठाए
इस मार्ग पर कैसे आए?
ब्राह्मण झिझक गया सुनकर
कुत्ता मेरे कंधे पर
नहीं, नहीं यह तो है मेमन
पर थोड़ा सा फिसला मन
मेमन नहीं कुत्ते का बच्चा
थोड़ी सी हुई मन में शंका
फिर उसने खुद को समझाया
आगे का मार्ग अपनाया
कुछ ही दूरी पर जब पहुँचा
तीसरे दुष्ट को मिल गया मौका
आया आगे वह बढ़कर
हाथ जोड़कर झुकाया सर
बोला दुष्ट हे ब्राह्मण देवा
करना चाहता हूँ कुछ सेवा
कुत्ता दो मेरे कंधों पर
पहुँचा दूँगा तेरे घर
कुत्ता सुनकर तो वह ब्राह्मण
खिन्न हो गया मन ही मन
मैंने समझा भेड़ का बच्चा
पर यह तो निकला है कुत्ता
केवल मैं ही हूँ भरमाया
कुत्ते के बच्चे को उठाया
कर दिया मैंने खुद को भ्रष्ट
खुश हो गए मन में दुष्ट
छोड़ के उसको भागा ब्राह्मण
बस बातों से खोया मेमन
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बच्चों तुम सबने यह जाना
किसी की बातों में न आना
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हितोपदेश - 4.कौआ और साँप
4.कौआ और साँप
कौवा-कौवी इक डाली पर
रहते थे अपने घर पर
उन दोनों के बच्चे चार
सुन्दर था उनका घर-बार
पर उस वृक्ष की छाया पर
साँप ने डाल लिया था घर
करता वह सबको परेशान
ले लेता बच्चों की जान
नन्हें बच्चों को खा जाता
फिर अपने बिल में छुप जाता
दुखी थे उससे पक्षी सारे
पर क्या करते वे बेचारे
इक दिन साँप गया तरु पर
कौवी- कौवा नही थे घर
खेल रहे थे उनके बच्चे
पकड़ साँप ने खाए कच्चे
खाकर उनको भर गया पेट
गया वो जाकर बिल मे लेट
कौवी- कौवा घर वापिस आए
बच्चे उन्होंने गायब पाए
समझ गए वो सारी चाल
साँप ने खाए उनके लाल
दुखी बहुत था उनका दिल
पर वो रो सकते थे केवल
साँप तो कितना ताकतवर
उसके मुख में है जहर
दुखी हो कौआ मन में विचारे
बैठ गया जा नदी किनारे
देखा उसने नदी के पार
खड़े हुए है पहरेदार
अपने गहने वहाँ रखकर
गई रानी जल के अन्दर
आया कौए को एक ख्याल
चली एक उसने भी चाल
एक हार उसने उठाया
जाके साँप के बिल में गिराया
भागे पीछे पहरेदार
देखा साँप के बिल में हार
जैसे ही लेने लगे वो हार
देख के साँप भी आया बाहर
पहरेदार ने साँप को मारा
खुश हो गया अब जंगल सारा
कौए की समझदारी रंग लाई
सबने मिलकर खुशी मनाई
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बच्चों, समझदारी अपनाना
गुस्से में तो कभी न आना
सोच समझ के करना काम
होगा ऊँचा जग में नाम
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इक जंगल में था इक शेर
देखा उसने आम का पेड़
घनी थी आम वृक्ष की छाया
देख के शेर के मन में आया
क्यों न वह यहाँ रह जाए
अपना अच्छा समय बिताए
पास में था चूहे का बिल
आया देख के बाहर निकल
देखा उसने सोया शेर
नहीं लगाई जरा भी देर
चढ़ गया उसकी पीठ पर
लगा कूदने शेर के ऊपर
खुल गई इससे शेर की जाग
लग गई उसके बदन मे आग
छुप गया चूहा अब बिल में
जला शेर दिल ही दिल में
उसने बिल्ली को बुलाया
और चूहे का किस्सा सुनाया
जैसे भी चूहे को मारो
तब तक मेरे यहाँ पधारो
खाना तुमको मैं ही दूँगा
हर पल तेरी रक्षा करूँगा
बिल्ली ने मानी शेर की बात
रहती बिल के पास दिन-रात
अच्छे-अच्छे खाने खाती
और बाकी सबको सुनाती
मैं तो हूँ तुम सबसे सयानी
समझने लगी वो खुद को रानी
बैठा चूहा बिल के अन्दर
नहीं निकला कुछ दिन तक बाहर
भूख से वह हो गया बेहाल
पर बाहर था उसका काल
कितने दिन वो भूख को जरता
भूखा मरता क्या न करता
कुछ दिन बाद वो बाहर निकला
और बिल्ली को मिल गया मौका
चूहे को उसने मार गिराया
जाकर शेर को सब बतलाया
शेर का मसला हो गया हल
बदल गई आँखें उसी पल
बोला! जाओ तुम अपनी राह
नहीं रखो कोई मुझसे चाह
अब न तुमको मिलेगा खाना
मेरे पास कभी न आना
अब बिल्ली ने जाना राज
मतलब से मिलता है ताज़
मतलब से सब पास में आएँ
बिन मतलब न कोई बुलाए
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हितोपदेश-6.मूर्ख को सलाह मत दो / मूर्ख बन्दर
एक बार इक नदी किनारे
रहते पक्षी प्यारे-प्यारे
हरे-भरे थे पेड़ वहाँ पर
बनाए वहाँ पर सुन्दर घर
पास थी इक छोटी सी पहाड़ी
रहते बन्दर वहाँ अनाड़ी
एक बार सर्दी की रात
होने लगी बहुत बरसात
आ गई बहुत नदी में बाढ़
बन्दरों को न मिली कोई आड़
छुप गए पक्षी अपने घर
नहीं था उन्हें वर्षा का डर
ठण्डी में बन्दर कँपकँपाते
कभी इधर कभी उधर को जाते
देख के उनको पक्षी बोले
छोटे से प्यारे मुँह खोले
नहीं है पास हमारे कर
फिर भी हमने बनाए घर
तुम्हारे पास है दो-दो हाथ
फिर भी तुम न समझे बात
जो तुम अपना घर बनाते
तो ऐसे न कँपकँपाते
आया अब बन्दरों को क्रोध
भर गया मन में प्रतिशोध
चढ़ कर सारे वृक्षों पर
तोड़ दिए पक्षियों के घर
अब पक्षियों को समझ में आया
व्यर्थ में मूर्खों को समझाया
जो न हम उनको समझाते
तो न अपने घर तुड़वाते
मूर्ख मूर्खता न छोड़े
मौका पा वो घर को फोड़े
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